17-03-2019, 12:06 PM
अध्याय 3
होली, आज मेरे जीवन की सबसे हसीन होली होने वाली थी ,आज मैं अपने नए जीजू के साथ होली खेलने वाली थी,वो जीजू जिनसे मैं बहुत ही प्यार करने लगी थी ,जाने अनजाने ही उनमे अपना पति और अपनी मोहोब्बत देखने लगी थी,वो ही एक मेरे लिए मर्द थे बाकी के लोगो पर तो मेरी नजर ही नही जाती और कल के वाकये के बाद से ,
और दीदी के मुह से उनकी इतनी तारीफ सुनने के बाद मैं तो उनसे मिलने को पागल ही हो रही थी,पापा के डर से आज मैंने फ्रॉक नही पहनी थी बल्कि एक सफेद सलवार सूट पहन लिया था,मेरे यौवन की आहट को इसमें भी छिपाना मुश्किल ही था,तने हुए उजोर साले सूट में ऐसे कस रहे थे की मैं बेचैन हो जाती थी,ऊपर एक ब्रा भी पहनो ,मैंने थोड़ा ढीला सा सूट पहनना ही उचित समझा ,लेकिन क्या करू ये निगोड़ी जवानी ……
दिन भर सहेलियों और परिवार वालो से होली खेली जो की आम होली की तरह ही थी दोपहर होते होते थककर घर आ गई दीदी भी साथ ही थी,ऐसे भी दोपहर के बाद होली के दिन हमारे गांव में लडकिया बाहर नही निकला करती क्योकि गांव के मर्द दारू के नशे में dj लगाकर झूमने लगते है,गली में घूमते रहते है और महिलाओं खासकर लड़कियों के लिए ऐसे माहौल में जाना उचित नही समझा जाता ,होली की दोपहर सबसे बोरिंग होती है लेकिन आज नही क्योकि आज तो मेरे जीजू आने वाले थे,पापा रात से पहले घर नही आने वाले थे वो भी दारू पीकर कही पड़े होंगे,वही माँ अधिकतर अपनी सहेलियों के घर ही रुक जाती थी
जंहा सभी औरते एक साथ होली खेलती और भांग पीकर मस्त रहती,दीदी को ये सब कभी पसंद नही था इसलिए वो हमेशा मुझे दोपहर को ही घर ले आती थी,मैंने जीजू के स्वागत की तैयारी के लिए घाघरा चोली पहनी मेरी ब्रा मुझे बहुत ही परेशान कर रहा था इसलिए मैंने उसे ना ही पहनने का निर्णय किया,और बाल्टी में रंग घोलकर भी रख लिया,दीदी थक चुकी थी और कमरे में जाकर सो गई थी लेकिन मुझे कहा नींद थी,मैं तो बेचैनी से इधर उधर टहल रही थी,3 बजने को थे की कार के हॉर्न से मैं दरवाजे की तरफ दौड़ी ,दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी लेकिन मैं दरवाजे के पास ही खड़ी हुई बस इंतजार कर रही थी,
“अरे कौन है दरवाजा तो खोलो “
जीजू की आवाज में थोड़ी लड़खड़ाहट थी ,मैंने बाल्टी पास ही रखी और दरवाजा खोलकर उसके पीछे ही छिप गई जीजू अंदर आये और चोरों तरफ देखने लगे,मैंने हल्के से दरवाजा बंद किया , किसी को ना पाकर वो पलटे ही थे की मैंने पूरी बाल्टी ही उनके ऊपर डाल दी
“हैप्पी होली “”मैं भागने ही वाली थी की उन्होंने मेरे हाथो को पकड़ लिया और मुझे अपने से सटा लिए ,वो पूरी तरह से गीले थे और उनके गीले कपड़े के कारण मेरे कपड़े भी गीले हो रहे थे,मेरे उजोर उनके सीने से दबे हुए थे और मैं कसमसा रही थी,
“साली जी ऐसे कैसे भगोगी अभी तो हमने आपको भिगोया ही नही है”
“जीजू छोड़ो ना “जीजू के मुह से शराब की थोड़ी बदबू आयी
“अपने शराब पी है”
“हा और तुम्हारे और तुम्हारी दीदी के लिए भी लाया हु ,लेकिन पहले तुम्हे भिगोने तो दो”मैं हंसते हुए छटपटाने लगी जीजू ने मुझे अपने गोद में उठा लिया और सीधे पास ही पड़े एक रंग से भारी बाल्टी के पास ले जाकर उतारा ,मैं समझ गई थी वो क्या करने वाले है लेकिन मैं भाग भी तो नही सकती थी ,सच में जीजू थे तो बड़े ही स्ट्रांग ,उन्होंने मेरे हाथो को एक हाथ से पकड़े रखा और दूसरे से बाल्टी को उठाकर मेरे उपर उढेल दिया ,
अब मैं पूरी तरह से गीली थी और मेरे कपड़े रंगों से सराबोर थे,सबसे ज्यादा शर्म तो मुझे तब आयी जब मेरे स्तन मेरे कपड़े से चिपक गए और ऐसे दिखने लगे जैसे की वो नंगे ही हो ,ब्लाउज़ का कपड़ा थोड़ा पतला था और मेरे मोटे मोटे स्तनों उसमे से झांक रहे रहे,थे ,मैं शर्म से दोहरी हो रही थी लेकिन जीजू उसे घूरे जा रहे थे,उन्होंने मुझे फिर से खीचकर अपने सीने से लगा लिया ,इसबार मेरे लिए एक और तूफान आ गया था उनके कमर के नीचे से मेरे कमर के नीचे कुछ चुभ रहा था ऐसा लगा जैसे कोई लकड़ी चुभो रहा हो.
“जीजू ये क्या चुभ रहा है”मैं
थोड़ी मचली लेकिन जीजू ने मेरे कमर के नीचे मेरे नितम्भो में हाथ फेरा और उसे अपनी ओर खिंच लिया जिससे वो लकड़ी जैसा कुछ मेरे जांघो के बीच पहुच गया और वही पर रगड़ खाने लगा,आज जीवन में पहली बार मुझे ऐसी उत्तेजना का अहसास हुआ था,मैं उनसे दूर होने को छटपटाने लगी थी,लेकिन वो अपने लकड़ी को मेरे जांघो के बीच रगड़े ही जा रहे थे,मुझे लगा जैसे की मेरे योनि से कुछ रिसाव सा हो रहा है,मुझे जोरो की पेशाब की लगने लगी थी,मैंने खुदको थोड़ा सम्हाला
“जीजू प्लीज छोड़ो ना अजीब लग रहा है,”
मैं थोड़ी शांत हो गई थी लेकिन मैं सच में छूटना चाहती थी
“अच्छा लेकिन एक शर्त में ,मुझे रंग लगाने दे “
“भिगो तो चुके हो “मैं थोड़ी शरारत भरे लहजे में कहने लगी
“अरे मेरी साली जी अभी तो आपको असली पिचकारी से भिगोना बाकी है लेकिन तब तक रंग ही लगाने दो “
जीजू की बात मुझे समझ तो नही आयी लेकिन मैंने पिंड छुड़ाने के लिए हामी भर दी ,जीजू जेब से रंग निकाले और मेरे चहरे से लगाना शुरू कीया उन्होंने लाल रंग का गुलाल निकाल कर मेरे गालो पर मलना शुरू किया ऐसी मालिस तो किसी ने आज तक नही की थी वो बहुत ही आराम और इत्मीनान से मेरे गालो में अपने हाथ चला रहे थे,
मेरे फुले हुए गोर गालो में उनके सख्त हाथो के स्पर्श ने मेरे होठो में एक अनजानी सी मुस्कान खिला दी ,वो थोड़े नीचे होते हुए मेरे गले में रंग लगाने लगे,मैंने केयर किया की उनकी सांसे थोड़ी तेज हो रही थी,उन्होंने मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही मेरे उरोजों को पकड़ा मैं मचली,
“जीजू नही “
इस बार मेरी आवाज में एक सिहरन भी थी,मैं मादकता में डूबती जा रही थी,जीजू का ऐसा करना मुझे बहुत सुकून दे रहा था लेकिन फिर भी मुझे बहुत ही शर्म आ रही थी ,जीजू ने मुझे पलटा और मेरी पीठ को अपने सीने से लगा लिया ,मैं मचलती हुई हल्के हल्के नही नही बोल रही थी जबकि मेरे मन में बस हा ही हा थी ,वो मेरे उजोरो को हल्के हल्के दबाने लगे मेरी आंखे भी बंद हो गई थी ,ना जाने जीजू ये कैसी होली खेल रहे थे,लेकिन मुझे बहुत ही मजा आ रहा था और मेरे होठो से बस सिसकिया ही निकल रही थी,
“आह जीजू “
उनके हाथो का अहसास मेरे वक्षो पर ऐसे हो रहा था जैसे मैंने कपड़े पहने ही ना हो ,वैसे भी मैंने जो पहना था उसका कोई मतलब नही रह गया था,जीजू के हाथ मेरे पीछे आये और उन्होंने मेरे ब्लाउज़ के पीछे लगे चैन को खोल दिया ,उनके सामने अब मेरी नंगी पीठ थी जिसे पर वो हाथो से नही अपने होठो से अपने थूक को लगा रहे थे ,उ
नके कमर के बीच की वो लड़की जिसे लिंग कहते है तन कर सच में किसी रॉड की तरह हो चुका था और मेरे नितम्भो को धीरे धीरे से ठोकर लगा रहा था ,वो थोड़े उत्तेजित होने लगे थे उन्होंने मेरी कमर को अपने कमर से सटा लिया और अपने लिंग को मारे गद्देदार नितम्भो में रगड़ना शुरू कर दिया,मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा था,थोड़ी शर्म और बहुत सा मजा ,
मैं पागल हुए जा रही थी ,मुझे लगने लगा की मैं सच में जवान हो गई हु और कई ऐसी चीज है जो मुझे अभी सीखना है,वो अपने होठो से मेरे पीठ के कोने कोने को चूम रहे थे और उनके होठ गीले होकर अपने लार छोड़ रहे थे,मैं मचल रही थी जीजू मचल रहे थे ,और सबसे ज्यादा उनके जांघो के बीच वो रॉड मचल रहा था ………
उन्होंने रंग से मेरी पीठ को रंग दिया और उनके हाथ मेरे बांहो से होते हुए मेरी नंगी पीठ पर चलते हुए मेरे उरोजों तक पहुच गए,मेरे नंगे उरोजों को वो इतने प्यार सहला रहे थे की मैं पागल ही हो गई,मेरे निप्पल कड़े हो चुके थे और वो उन्हें अपनी उंगलियों से सहला रहे थे,उन्होंने फिर के रंग लिया और मेरे उरोजों में मलने लगे,मेरे योनि का गीलापन भी बढ़ रहा था उससे ज्यादा उसमे एक अजीब सी खुजली का अहसास हो रहा था,जो मुझे और भी बेचैन कर रही थी,
मैं अपने दोनो जांघो को आपस में रगड़ने लगी ,जीजू बहुत ही ज्यादा समझदार निकले उन्होंने एक हाथ मेरे उरोजों से हटाया और मेरे जांघो के बीच लाकर रख दिया मेरे घाघरे के ऊपर से ही उन्होंने मेरे योनि को सहलाना शुरू किया
“आह जीजू क्या कर रहे हो ,मर जाऊंगी ओह माँ ,नही “
लेकिन वो कहा मानते एक हाथ से मेरे स्तनों की हालत बुरी कर रखी थी तो दूसरे से मेरे योनि को मसलने लगे थे ,उनका मन अब भी नही भरा उन्होंने मेरे घाघरे का नाडा ही खोल दिया वो सरक कर जमीन में ही गिर जाता अगर मैं अपने हाथो से उसे नही पकड़ती मैं सर उठाकर जीजू को देखने या उन्हें रोकने की हालत में ही नही थी,उन्होंने ढीले घाघरे के अंदर से अपना हाथ घुसा दिया ,मैं अगर उन्हें रोकने को अपना हाथ उठाती तो घाघरा जमीन में ही गिर जाता मैं मचलती हुई खड़ी रही मुझे अजीब सी गुदगुदी हो रही थी ,
“जीजू प्लीज् ना नही “
“मेरी जान होली के दिन जीजू को कभी भी नही नही बोलते”उन्होंने मेरे गालो को भरकर चूमा और मेरे पेंटी के इलास्टिक को थोड़ा सरका कर मेरे नग्न योनि में अपने उंगलियों को ठिका दिया,वो अपनी उंगलियों से उसे नापने को हुए लेकिन योनि का मुह अभी पूरी तरह से बंद था वो ऊपर की त्वचा को ही सहलाने लगे ,मेरा गीलापन उनकी उंगलियों को भिगोने लगा ,
मेरे लिए ये सब सहन करना ही मुश्किल था और मैं ऐसे झड़ी जैसे कोई बांध टूट गया हो,जैसे जोरो से पेशाब कर दी हो.,तो अब खड़े नही हो पा रही थी मेरे पाव लड़खड़ाने लगे ,उन्होंने मुझे सम्हाला और अपने हाथो को निकालकर मेरे कमर को पकड़ लिया मुझे अपनी ओर किया ,मैं उसके बांहो में खुद को छोड़ चुकी थी जैसे मैं बेहोश ही हो गई हु,उन्होंने मेरे गिरे हुए सर को उठाया और मेरे होठो को अपने होठो में मिला कर चूसने लगे,मैं इतनी भी शक्ति नही जुटा पाई की अपने प्यारे जीजू का साथ दे सकू ,
“आई लव यू साली जी “
उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा
“लब यू जीजू “मैं इतना ही बोल पाई मेरे होठो में मुस्कान खिल गई थी मुझे आज मेरे जीजू का इतना प्यार जो मिला था मुझे लगने लगा जैसे मैं उनके ही लिए हु ,मेरा सब कुछ उनका ही है,मैं थोड़ी संहली तो उनसे नजर ही नही मिला पाई ,मैं अंदर जाने को हुई उन्होंने फिर से मुझे अपनी ओर खिंच लिया और मेरे होठो में अपने होठो को भर लिया ,
मैं एक हाथ से घाघरे का नाडा लगा रही थी उसे कसकर मैंने अपना हाथ उसके सर पर रख दिया हम दोनो बहुत देर तक एक दूसरे के होठो को चूसते रहे मेरे लिए ये सब पहली बार था लेकिन अब कोई भी डर मेरे अंदर नही था ना ही कोई संकोच ही बचा था,मुझे समझ आ गया था की मेरे जीजू मुझे कितना प्यार करते है और मुझे कितनी खुशिया दे सकते है,शायद इसी लिए दीदी इनकी इतनी दीवानी थी ,जब हमारा चुम्मन टूटा मैं शर्मा कर अपना सर उनके मजबूत कंधों पर ठिका दिया ,उन्होंने मेरे मांसल नितम्भो को सहलाया ,
“मजा आया “
मैंने ना में सर हिलाया जो की बिल्कुल ही गलत था
“अच्छा तब तो तुम्हे पूरा मजा देना पड़ेगा “
मैं सर उठाकर उन्हें आश्चर्य से देखने लगी
“कैसे “मैंने मासूमियत भरा प्रश्न किया
“अपने इस लकड़ी को तुम्हारे छेद में घुसकर “जीजू जोर से हँसे
लेकिन मैं बुरी तरह से शर्मा गई ,बचपन से ही मुझे सिखाया गया था की इस छेद को किसी को नही दिखाना और मर्दो को तो बिल्कुल भी नही ,ये गंदी जगह होती है,
“छि जीजू आप कैसी बाते करते है”
“अरे मेरी जान जब तक मैं अपनी इस पिचकारी से तुम्हे भिगोउंगा नही तब तक तो साली और जीजा की होली अधूरी ही रहेगी”
“नही खेलनी ऐसी होली ,अब छोड़ो ना देखो कहा कहा रंग लगा दिए हो ,दीदी देखेगी तो डाटेंगी मैं नहाने जा रही हु आप भी नहा लो “
मैंने उनसे खुद को छुड़वाया
“नहाऊंगा पहले तेरी दीदी को तो भिगो दु अपने इस पिचकारी से “उन्होंने अपने खड़े हुए लिंग की तरफ इशारा किया ,मैं शर्माते हुए भाग गई और वो दीदी के कमरे की तरफ चले गए……...
// सुनील पण्डित //
होली, आज मेरे जीवन की सबसे हसीन होली होने वाली थी ,आज मैं अपने नए जीजू के साथ होली खेलने वाली थी,वो जीजू जिनसे मैं बहुत ही प्यार करने लगी थी ,जाने अनजाने ही उनमे अपना पति और अपनी मोहोब्बत देखने लगी थी,वो ही एक मेरे लिए मर्द थे बाकी के लोगो पर तो मेरी नजर ही नही जाती और कल के वाकये के बाद से ,
और दीदी के मुह से उनकी इतनी तारीफ सुनने के बाद मैं तो उनसे मिलने को पागल ही हो रही थी,पापा के डर से आज मैंने फ्रॉक नही पहनी थी बल्कि एक सफेद सलवार सूट पहन लिया था,मेरे यौवन की आहट को इसमें भी छिपाना मुश्किल ही था,तने हुए उजोर साले सूट में ऐसे कस रहे थे की मैं बेचैन हो जाती थी,ऊपर एक ब्रा भी पहनो ,मैंने थोड़ा ढीला सा सूट पहनना ही उचित समझा ,लेकिन क्या करू ये निगोड़ी जवानी ……
दिन भर सहेलियों और परिवार वालो से होली खेली जो की आम होली की तरह ही थी दोपहर होते होते थककर घर आ गई दीदी भी साथ ही थी,ऐसे भी दोपहर के बाद होली के दिन हमारे गांव में लडकिया बाहर नही निकला करती क्योकि गांव के मर्द दारू के नशे में dj लगाकर झूमने लगते है,गली में घूमते रहते है और महिलाओं खासकर लड़कियों के लिए ऐसे माहौल में जाना उचित नही समझा जाता ,होली की दोपहर सबसे बोरिंग होती है लेकिन आज नही क्योकि आज तो मेरे जीजू आने वाले थे,पापा रात से पहले घर नही आने वाले थे वो भी दारू पीकर कही पड़े होंगे,वही माँ अधिकतर अपनी सहेलियों के घर ही रुक जाती थी
जंहा सभी औरते एक साथ होली खेलती और भांग पीकर मस्त रहती,दीदी को ये सब कभी पसंद नही था इसलिए वो हमेशा मुझे दोपहर को ही घर ले आती थी,मैंने जीजू के स्वागत की तैयारी के लिए घाघरा चोली पहनी मेरी ब्रा मुझे बहुत ही परेशान कर रहा था इसलिए मैंने उसे ना ही पहनने का निर्णय किया,और बाल्टी में रंग घोलकर भी रख लिया,दीदी थक चुकी थी और कमरे में जाकर सो गई थी लेकिन मुझे कहा नींद थी,मैं तो बेचैनी से इधर उधर टहल रही थी,3 बजने को थे की कार के हॉर्न से मैं दरवाजे की तरफ दौड़ी ,दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी लेकिन मैं दरवाजे के पास ही खड़ी हुई बस इंतजार कर रही थी,
“अरे कौन है दरवाजा तो खोलो “
जीजू की आवाज में थोड़ी लड़खड़ाहट थी ,मैंने बाल्टी पास ही रखी और दरवाजा खोलकर उसके पीछे ही छिप गई जीजू अंदर आये और चोरों तरफ देखने लगे,मैंने हल्के से दरवाजा बंद किया , किसी को ना पाकर वो पलटे ही थे की मैंने पूरी बाल्टी ही उनके ऊपर डाल दी
“हैप्पी होली “”मैं भागने ही वाली थी की उन्होंने मेरे हाथो को पकड़ लिया और मुझे अपने से सटा लिए ,वो पूरी तरह से गीले थे और उनके गीले कपड़े के कारण मेरे कपड़े भी गीले हो रहे थे,मेरे उजोर उनके सीने से दबे हुए थे और मैं कसमसा रही थी,
“साली जी ऐसे कैसे भगोगी अभी तो हमने आपको भिगोया ही नही है”
“जीजू छोड़ो ना “जीजू के मुह से शराब की थोड़ी बदबू आयी
“अपने शराब पी है”
“हा और तुम्हारे और तुम्हारी दीदी के लिए भी लाया हु ,लेकिन पहले तुम्हे भिगोने तो दो”मैं हंसते हुए छटपटाने लगी जीजू ने मुझे अपने गोद में उठा लिया और सीधे पास ही पड़े एक रंग से भारी बाल्टी के पास ले जाकर उतारा ,मैं समझ गई थी वो क्या करने वाले है लेकिन मैं भाग भी तो नही सकती थी ,सच में जीजू थे तो बड़े ही स्ट्रांग ,उन्होंने मेरे हाथो को एक हाथ से पकड़े रखा और दूसरे से बाल्टी को उठाकर मेरे उपर उढेल दिया ,
अब मैं पूरी तरह से गीली थी और मेरे कपड़े रंगों से सराबोर थे,सबसे ज्यादा शर्म तो मुझे तब आयी जब मेरे स्तन मेरे कपड़े से चिपक गए और ऐसे दिखने लगे जैसे की वो नंगे ही हो ,ब्लाउज़ का कपड़ा थोड़ा पतला था और मेरे मोटे मोटे स्तनों उसमे से झांक रहे रहे,थे ,मैं शर्म से दोहरी हो रही थी लेकिन जीजू उसे घूरे जा रहे थे,उन्होंने मुझे फिर से खीचकर अपने सीने से लगा लिया ,इसबार मेरे लिए एक और तूफान आ गया था उनके कमर के नीचे से मेरे कमर के नीचे कुछ चुभ रहा था ऐसा लगा जैसे कोई लकड़ी चुभो रहा हो.
“जीजू ये क्या चुभ रहा है”मैं
थोड़ी मचली लेकिन जीजू ने मेरे कमर के नीचे मेरे नितम्भो में हाथ फेरा और उसे अपनी ओर खिंच लिया जिससे वो लकड़ी जैसा कुछ मेरे जांघो के बीच पहुच गया और वही पर रगड़ खाने लगा,आज जीवन में पहली बार मुझे ऐसी उत्तेजना का अहसास हुआ था,मैं उनसे दूर होने को छटपटाने लगी थी,लेकिन वो अपने लकड़ी को मेरे जांघो के बीच रगड़े ही जा रहे थे,मुझे लगा जैसे की मेरे योनि से कुछ रिसाव सा हो रहा है,मुझे जोरो की पेशाब की लगने लगी थी,मैंने खुदको थोड़ा सम्हाला
“जीजू प्लीज छोड़ो ना अजीब लग रहा है,”
मैं थोड़ी शांत हो गई थी लेकिन मैं सच में छूटना चाहती थी
“अच्छा लेकिन एक शर्त में ,मुझे रंग लगाने दे “
“भिगो तो चुके हो “मैं थोड़ी शरारत भरे लहजे में कहने लगी
“अरे मेरी साली जी अभी तो आपको असली पिचकारी से भिगोना बाकी है लेकिन तब तक रंग ही लगाने दो “
जीजू की बात मुझे समझ तो नही आयी लेकिन मैंने पिंड छुड़ाने के लिए हामी भर दी ,जीजू जेब से रंग निकाले और मेरे चहरे से लगाना शुरू कीया उन्होंने लाल रंग का गुलाल निकाल कर मेरे गालो पर मलना शुरू किया ऐसी मालिस तो किसी ने आज तक नही की थी वो बहुत ही आराम और इत्मीनान से मेरे गालो में अपने हाथ चला रहे थे,
मेरे फुले हुए गोर गालो में उनके सख्त हाथो के स्पर्श ने मेरे होठो में एक अनजानी सी मुस्कान खिला दी ,वो थोड़े नीचे होते हुए मेरे गले में रंग लगाने लगे,मैंने केयर किया की उनकी सांसे थोड़ी तेज हो रही थी,उन्होंने मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही मेरे उरोजों को पकड़ा मैं मचली,
“जीजू नही “
इस बार मेरी आवाज में एक सिहरन भी थी,मैं मादकता में डूबती जा रही थी,जीजू का ऐसा करना मुझे बहुत सुकून दे रहा था लेकिन फिर भी मुझे बहुत ही शर्म आ रही थी ,जीजू ने मुझे पलटा और मेरी पीठ को अपने सीने से लगा लिया ,मैं मचलती हुई हल्के हल्के नही नही बोल रही थी जबकि मेरे मन में बस हा ही हा थी ,वो मेरे उजोरो को हल्के हल्के दबाने लगे मेरी आंखे भी बंद हो गई थी ,ना जाने जीजू ये कैसी होली खेल रहे थे,लेकिन मुझे बहुत ही मजा आ रहा था और मेरे होठो से बस सिसकिया ही निकल रही थी,
“आह जीजू “
उनके हाथो का अहसास मेरे वक्षो पर ऐसे हो रहा था जैसे मैंने कपड़े पहने ही ना हो ,वैसे भी मैंने जो पहना था उसका कोई मतलब नही रह गया था,जीजू के हाथ मेरे पीछे आये और उन्होंने मेरे ब्लाउज़ के पीछे लगे चैन को खोल दिया ,उनके सामने अब मेरी नंगी पीठ थी जिसे पर वो हाथो से नही अपने होठो से अपने थूक को लगा रहे थे ,उ
नके कमर के बीच की वो लड़की जिसे लिंग कहते है तन कर सच में किसी रॉड की तरह हो चुका था और मेरे नितम्भो को धीरे धीरे से ठोकर लगा रहा था ,वो थोड़े उत्तेजित होने लगे थे उन्होंने मेरी कमर को अपने कमर से सटा लिया और अपने लिंग को मारे गद्देदार नितम्भो में रगड़ना शुरू कर दिया,मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा था,थोड़ी शर्म और बहुत सा मजा ,
मैं पागल हुए जा रही थी ,मुझे लगने लगा की मैं सच में जवान हो गई हु और कई ऐसी चीज है जो मुझे अभी सीखना है,वो अपने होठो से मेरे पीठ के कोने कोने को चूम रहे थे और उनके होठ गीले होकर अपने लार छोड़ रहे थे,मैं मचल रही थी जीजू मचल रहे थे ,और सबसे ज्यादा उनके जांघो के बीच वो रॉड मचल रहा था ………
उन्होंने रंग से मेरी पीठ को रंग दिया और उनके हाथ मेरे बांहो से होते हुए मेरी नंगी पीठ पर चलते हुए मेरे उरोजों तक पहुच गए,मेरे नंगे उरोजों को वो इतने प्यार सहला रहे थे की मैं पागल ही हो गई,मेरे निप्पल कड़े हो चुके थे और वो उन्हें अपनी उंगलियों से सहला रहे थे,उन्होंने फिर के रंग लिया और मेरे उरोजों में मलने लगे,मेरे योनि का गीलापन भी बढ़ रहा था उससे ज्यादा उसमे एक अजीब सी खुजली का अहसास हो रहा था,जो मुझे और भी बेचैन कर रही थी,
मैं अपने दोनो जांघो को आपस में रगड़ने लगी ,जीजू बहुत ही ज्यादा समझदार निकले उन्होंने एक हाथ मेरे उरोजों से हटाया और मेरे जांघो के बीच लाकर रख दिया मेरे घाघरे के ऊपर से ही उन्होंने मेरे योनि को सहलाना शुरू किया
“आह जीजू क्या कर रहे हो ,मर जाऊंगी ओह माँ ,नही “
लेकिन वो कहा मानते एक हाथ से मेरे स्तनों की हालत बुरी कर रखी थी तो दूसरे से मेरे योनि को मसलने लगे थे ,उनका मन अब भी नही भरा उन्होंने मेरे घाघरे का नाडा ही खोल दिया वो सरक कर जमीन में ही गिर जाता अगर मैं अपने हाथो से उसे नही पकड़ती मैं सर उठाकर जीजू को देखने या उन्हें रोकने की हालत में ही नही थी,उन्होंने ढीले घाघरे के अंदर से अपना हाथ घुसा दिया ,मैं अगर उन्हें रोकने को अपना हाथ उठाती तो घाघरा जमीन में ही गिर जाता मैं मचलती हुई खड़ी रही मुझे अजीब सी गुदगुदी हो रही थी ,
“जीजू प्लीज् ना नही “
“मेरी जान होली के दिन जीजू को कभी भी नही नही बोलते”उन्होंने मेरे गालो को भरकर चूमा और मेरे पेंटी के इलास्टिक को थोड़ा सरका कर मेरे नग्न योनि में अपने उंगलियों को ठिका दिया,वो अपनी उंगलियों से उसे नापने को हुए लेकिन योनि का मुह अभी पूरी तरह से बंद था वो ऊपर की त्वचा को ही सहलाने लगे ,मेरा गीलापन उनकी उंगलियों को भिगोने लगा ,
मेरे लिए ये सब सहन करना ही मुश्किल था और मैं ऐसे झड़ी जैसे कोई बांध टूट गया हो,जैसे जोरो से पेशाब कर दी हो.,तो अब खड़े नही हो पा रही थी मेरे पाव लड़खड़ाने लगे ,उन्होंने मुझे सम्हाला और अपने हाथो को निकालकर मेरे कमर को पकड़ लिया मुझे अपनी ओर किया ,मैं उसके बांहो में खुद को छोड़ चुकी थी जैसे मैं बेहोश ही हो गई हु,उन्होंने मेरे गिरे हुए सर को उठाया और मेरे होठो को अपने होठो में मिला कर चूसने लगे,मैं इतनी भी शक्ति नही जुटा पाई की अपने प्यारे जीजू का साथ दे सकू ,
“आई लव यू साली जी “
उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा
“लब यू जीजू “मैं इतना ही बोल पाई मेरे होठो में मुस्कान खिल गई थी मुझे आज मेरे जीजू का इतना प्यार जो मिला था मुझे लगने लगा जैसे मैं उनके ही लिए हु ,मेरा सब कुछ उनका ही है,मैं थोड़ी संहली तो उनसे नजर ही नही मिला पाई ,मैं अंदर जाने को हुई उन्होंने फिर से मुझे अपनी ओर खिंच लिया और मेरे होठो में अपने होठो को भर लिया ,
मैं एक हाथ से घाघरे का नाडा लगा रही थी उसे कसकर मैंने अपना हाथ उसके सर पर रख दिया हम दोनो बहुत देर तक एक दूसरे के होठो को चूसते रहे मेरे लिए ये सब पहली बार था लेकिन अब कोई भी डर मेरे अंदर नही था ना ही कोई संकोच ही बचा था,मुझे समझ आ गया था की मेरे जीजू मुझे कितना प्यार करते है और मुझे कितनी खुशिया दे सकते है,शायद इसी लिए दीदी इनकी इतनी दीवानी थी ,जब हमारा चुम्मन टूटा मैं शर्मा कर अपना सर उनके मजबूत कंधों पर ठिका दिया ,उन्होंने मेरे मांसल नितम्भो को सहलाया ,
“मजा आया “
मैंने ना में सर हिलाया जो की बिल्कुल ही गलत था
“अच्छा तब तो तुम्हे पूरा मजा देना पड़ेगा “
मैं सर उठाकर उन्हें आश्चर्य से देखने लगी
“कैसे “मैंने मासूमियत भरा प्रश्न किया
“अपने इस लकड़ी को तुम्हारे छेद में घुसकर “जीजू जोर से हँसे
लेकिन मैं बुरी तरह से शर्मा गई ,बचपन से ही मुझे सिखाया गया था की इस छेद को किसी को नही दिखाना और मर्दो को तो बिल्कुल भी नही ,ये गंदी जगह होती है,
“छि जीजू आप कैसी बाते करते है”
“अरे मेरी जान जब तक मैं अपनी इस पिचकारी से तुम्हे भिगोउंगा नही तब तक तो साली और जीजा की होली अधूरी ही रहेगी”
“नही खेलनी ऐसी होली ,अब छोड़ो ना देखो कहा कहा रंग लगा दिए हो ,दीदी देखेगी तो डाटेंगी मैं नहाने जा रही हु आप भी नहा लो “
मैंने उनसे खुद को छुड़वाया
“नहाऊंगा पहले तेरी दीदी को तो भिगो दु अपने इस पिचकारी से “उन्होंने अपने खड़े हुए लिंग की तरफ इशारा किया ,मैं शर्माते हुए भाग गई और वो दीदी के कमरे की तरफ चले गए……...
// सुनील पण्डित //
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!