17-03-2019, 08:33 AM
साजन का रंग
समझ में नहीं आ रहा ये कहानी कैसे शुरू करूँ , इत्ते दिन हो गए छोड़े , जब जोरू का गुलाम लिखना छूटा ,.... , तो शायद लिखना थोड़ा मुश्किल हो रहा है , और फिर कहानी में अगर फ़साना कम , और आप बीती ज्यादा हो तो और ,... क्या छोडूं कैसे शुरू करूँ ,.... चलिए कोशिश करती हूँ।
ऑफ कोर्स मेरी होली की कहानी है , मेरी ससुराल में जो होली हुयी।
लेकिन मेरी ससुराल में होली , शादी के बाद मेरी पहली होली नहीं थी , दूसरी भी नहीं।
असल में शादी के पहले मेरी भाभियाँ बहुत डराती चिढ़ाती थीं , ससुराल की पहली होली के नाम से , .. और तो और मेरी मम्मी भी , वो मेरी भाभियों से किसी तरह कम नहीं थी , एकदम खुल कर ,... भाभियों के साथ मिल के ,... अरे नयी बहू की असली रगड़ाई तो होली में ही होती है , पहली रात तो चीख चिल्ला के झेल लेती है , उसको भी मालूम रहता है , फटेगी तो है ही , फिर जेठानी भी कुछ वैसलीन , सरसों का तेल ,...
लेकिन होली में तो ,.... जैसे नए गुड़ को देख कर चींटे आते हैं , नयी नवेली बहू को देख कर , सिर्फ रिश्तेदार लड़के ही नहीं अड़ोस पड़ोस वाले भी देवर बन के , और फागुन भर तो देवर जेठ , ससुर कुछ नहीं ,...
और देवरों से बढ़ कर ननदें , सब की सब पक्की छिनार ,...चाहे कच्चे टिकोरों वाली , फ्रॉक वाली हों , या चार चार बच्चों की माँ , ...
सब नयकी भौजी के अगवाड़े पिछवाड़े , अंगुली ,... तीन तीन , चार चार ( मैंने खुद एक होली में मम्मी को दुबे चाची के साथ मिल कर , बुआ की बिल में पूरी की पूरी मुट्ठी ठेलते देखा था ),...
और सबसे बड़ी बात उसे बचाने वाला कोई होता नहीं , पहली होली में घूंघट , पर्दा भी थोड़ा बहुत ,... और घर आंगन का अंदाज नहीं , ...हाँ दूसरी तीसरी होली तक तो वो भी , लेकिन पहली होली , शादी के बाद की , .... ससुराल में ,... जबरदस्त रगड़ाई वाली होती है ,...
लेकिन मैं बच गयी ,.... शादी के बाद मेरी पहली होली ससुराल में नहीं हुयी , दूसरी भी नहीं ,...
तीसरे साल मैं होली में अपने ससुराल में थी ,
और ये कहानी उसी उसी होली की है , लेकिन कहानी बिना भूमिका के ,... एकदम मजा नहीं आएगा न
तो बस थोड़ी थोड़ी बात पहली दूसरी होली की , ...
कैसे वो होली मेरी ससुराल में नहीं हुयी और फिर देवर ननद के संग खेली होली की ,
लेकिन साथ साथ थोड़ा अपने , थोड़ा इनके और थोड़ा इनके सालियों के मायके वालियों के बारे में नहीं बताउंगी , तो चलिए फिर शुरू से
समझ में नहीं आ रहा ये कहानी कैसे शुरू करूँ , इत्ते दिन हो गए छोड़े , जब जोरू का गुलाम लिखना छूटा ,.... , तो शायद लिखना थोड़ा मुश्किल हो रहा है , और फिर कहानी में अगर फ़साना कम , और आप बीती ज्यादा हो तो और ,... क्या छोडूं कैसे शुरू करूँ ,.... चलिए कोशिश करती हूँ।
ऑफ कोर्स मेरी होली की कहानी है , मेरी ससुराल में जो होली हुयी।
लेकिन मेरी ससुराल में होली , शादी के बाद मेरी पहली होली नहीं थी , दूसरी भी नहीं।
असल में शादी के पहले मेरी भाभियाँ बहुत डराती चिढ़ाती थीं , ससुराल की पहली होली के नाम से , .. और तो और मेरी मम्मी भी , वो मेरी भाभियों से किसी तरह कम नहीं थी , एकदम खुल कर ,... भाभियों के साथ मिल के ,... अरे नयी बहू की असली रगड़ाई तो होली में ही होती है , पहली रात तो चीख चिल्ला के झेल लेती है , उसको भी मालूम रहता है , फटेगी तो है ही , फिर जेठानी भी कुछ वैसलीन , सरसों का तेल ,...
लेकिन होली में तो ,.... जैसे नए गुड़ को देख कर चींटे आते हैं , नयी नवेली बहू को देख कर , सिर्फ रिश्तेदार लड़के ही नहीं अड़ोस पड़ोस वाले भी देवर बन के , और फागुन भर तो देवर जेठ , ससुर कुछ नहीं ,...
और देवरों से बढ़ कर ननदें , सब की सब पक्की छिनार ,...चाहे कच्चे टिकोरों वाली , फ्रॉक वाली हों , या चार चार बच्चों की माँ , ...
सब नयकी भौजी के अगवाड़े पिछवाड़े , अंगुली ,... तीन तीन , चार चार ( मैंने खुद एक होली में मम्मी को दुबे चाची के साथ मिल कर , बुआ की बिल में पूरी की पूरी मुट्ठी ठेलते देखा था ),...
और सबसे बड़ी बात उसे बचाने वाला कोई होता नहीं , पहली होली में घूंघट , पर्दा भी थोड़ा बहुत ,... और घर आंगन का अंदाज नहीं , ...हाँ दूसरी तीसरी होली तक तो वो भी , लेकिन पहली होली , शादी के बाद की , .... ससुराल में ,... जबरदस्त रगड़ाई वाली होती है ,...
लेकिन मैं बच गयी ,.... शादी के बाद मेरी पहली होली ससुराल में नहीं हुयी , दूसरी भी नहीं ,...
तीसरे साल मैं होली में अपने ससुराल में थी ,
और ये कहानी उसी उसी होली की है , लेकिन कहानी बिना भूमिका के ,... एकदम मजा नहीं आएगा न
तो बस थोड़ी थोड़ी बात पहली दूसरी होली की , ...
कैसे वो होली मेरी ससुराल में नहीं हुयी और फिर देवर ननद के संग खेली होली की ,
लेकिन साथ साथ थोड़ा अपने , थोड़ा इनके और थोड़ा इनके सालियों के मायके वालियों के बारे में नहीं बताउंगी , तो चलिए फिर शुरू से