13-11-2020, 02:51 PM
कुछ दिनों के बाद भैया का तबादला ग्वालियर में हो गया, वहाँ पर उनको सरकारी क्वार्टर भी मिल गया.. इसलिए वो भाभी को साथ लेकर जाना चाहते थे और तब तक मेरा रिजल्ट भी आ गया था.. इसलिए पापा के कहने पर भैया ने मेरा एडमीशन भी ग्वालियर में ही बीएससी में करवा दिया।
भैया को जो सरकारी र्क्वाटर मिला.. उसमें एक छोटा सा डाइनिंग हॉल, किचन, लैट.. बाथ और दो ही कमरे थे.. जिनमें से एक कमरा भैया भाभी ने ले लिया और दूसरे में मैं रहने लगी।
कुछ दिनों तक तो नया शहर था इसलिए मेरा दिल नहीं लगा.. मगर धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।
मैं खाना खाकर सुबह दस साढ़े बजे कॉलेज चली जाती और शाम को चार बजे तक घर लौटती थी.. उसके बाद कुछ देर टीवी देखती और फिर फ्रेश होकर रात का खाना बनाने में भाभी का हाथ बंटाती थी।
उसके बाद खाना खाकर रात कुछ देर पढ़ाई करती और फिर सो जाती।
धीरे-धीरे कॉलेज में कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हो गई.. मगर कभी लड़कों से दोस्ती करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।
एक रात मैं पढ़ाई कर रही थी.. तो मुझे ‘इईशश.. श… श.. अआआह.. ह…ह.. इईशश.. श…श.. अआआह.. ह…ह..’ की आवाज सुनाई दी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है।
भैया को जो सरकारी र्क्वाटर मिला.. उसमें एक छोटा सा डाइनिंग हॉल, किचन, लैट.. बाथ और दो ही कमरे थे.. जिनमें से एक कमरा भैया भाभी ने ले लिया और दूसरे में मैं रहने लगी।
कुछ दिनों तक तो नया शहर था इसलिए मेरा दिल नहीं लगा.. मगर धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।
मैं खाना खाकर सुबह दस साढ़े बजे कॉलेज चली जाती और शाम को चार बजे तक घर लौटती थी.. उसके बाद कुछ देर टीवी देखती और फिर फ्रेश होकर रात का खाना बनाने में भाभी का हाथ बंटाती थी।
उसके बाद खाना खाकर रात कुछ देर पढ़ाई करती और फिर सो जाती।
धीरे-धीरे कॉलेज में कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हो गई.. मगर कभी लड़कों से दोस्ती करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।
एक रात मैं पढ़ाई कर रही थी.. तो मुझे ‘इईशश.. श… श.. अआआह.. ह…ह.. इईशश.. श…श.. अआआह.. ह…ह..’ की आवाज सुनाई दी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
