16-03-2019, 05:55 PM
भाग - 56
क्योंकि जिस शहर में गेंदामल सेठ की दुकान थी.. वहाँ पर बहुत बड़ा मेला लगने वाला था और मेला में दिन रात चहल-पहल बनी रहती थी। मेला पूरे हफ्ते भर चलता था.. इसलिए दुकान मेले के दिनों में दिन-रात खुली रहती थी। गेंदामल को दिन-रात दुकान में ही रहना पड़ता था। इसलिए वो दीपा और राजू को ले जाने आया था.. क्योंकि रात को कुसुम अकेली हो जाती।
आज उन तीनों को गाँव वापिस जाना था.. इसलिए तीनों घर वापिस जाने की तैयारी कर रहे थे और कुछ ही देर में वो तीनों घर के लिए रवाना हो गए।
शाम को जब तीनों घर पर पहुँचे.. तो कुसुम तीनों को देख कर बहुत खुश हुई खास तौर पर राजू को देख कर..
चमेली जो कि रतन के वापिस चले जाने से कुछ उदास थी.. वो भी राजू को देख कर खुश थी। आख़िर कोई तो उसे भी अपनी चूत की आग बुझाने के लिए चाहिए था।
चमेली अपना काम निपटा कर चली गई.. शाम के 4 बजे जब सब अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे।
सेठ दुकान पर जा चुका था.. तो कुसुम चुपके से अपने कमरे से बाहर निकल कर पीछे राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी।
राजू अपने कमरे मैं खाट पर लेटा हुआ था.. कुसुम को अपने कमरे में देखते ही वो चारपाई से उठ खड़ा हुआ और कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया।
कुसुम ने भी अपनी बाँहें उसकी कमर पर कस लीं और दोनों के होंठ आपस में जा लगे।
थोड़ी देर बाद कुसुम ने अपने होंठों को राजू के होंठों से हटाया और उसका हाथ पकड़ कर अपने पेट पर रख दिया।
राजू उसकी आँखों में सवालिया नज़रों से देख रहा था।
कुसुम ने मुस्कुराते हुए.. उसके कान के पास जाकर धीरे से बोला- तुम्हारा है..
कुसुम की ये बात राजू अच्छे से नहीं समझ पाया।
राजू ने धीमी आवाज़ में कहा- क्या ?
कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा- मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा है।
राजू कुसुम की बात सुन कर एकदम से घबरा गया.. वो फटी हुई आँखों से कुसुम की तरफ देखे जा रहा था। अगले ही पल कुसुम एकदम से हँस पड़ी।
कुसुम- अरे तू इतना घबरा क्यों रहा है.. तुझे कुछ नहीं होने दूँगी.. तेरे जाने के बाद मैं तेरे सेठ के साथ कुछ रातों को हम-बिस्तर हुई थी। ये बच्चा उनके ही नाम से इस दुनिया में आएगा.. यकीन मानो किसी को पता भी नहीं चलेगा.. बस दु:ख इस बात का है कि अब कई महीनों तक तुझसे चुदवा नहीं पाऊँगी।
कुसुम की बात सुन कर राजू को थोड़ी राहत मिली और वो भी मुस्कुराते हुए.. उसके पेट पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगा।
“पर मालकिन अब मेरा क्या होगा.. इतना समय मैं कैसे गुजारा करूँगा..?”
उसने कुसुम की आँखों में देखते हुए कहा।
“ढूँढ़ दूँगी तेरे लिए एक नई चूत.. अब खुश..”
राजू- नई चूत? कहाँ से ढूँढोगी..?
कुसुम- है मेरी नज़र में एक.. वैसे तू भी जानता है उसके बारे में.. और मुझे लगता है कि वो भी तेरे ऊपर फिदा है।
राजू- अच्छा मुझे भी बताओ.. कौन मुझ पर फिदा है।
कुसुम- बता दूँ..?
राजू- हाँ.. जल्दी बताओ ना..।
कुसुम- दीपा… तुम्हें पसंद है ना..?
कुसुम की बात सुन कर राजू एकदम से चौंक जाता है.. पर उसे इस बात का अहसास हो जाता है कि कुसुम नहीं जानती कि उसके और दीपा के बीच पहले से ही सब कुछ हो चुका है।
राजू- वो तो ठीक है.. पर दीपा तो मुझसे घर में मिल भी नहीं पाती और आप तो जानती ही हो कि सेठ जी दीपा पर हमेशा नज़रें रखते हैं।
कुसुम- तू उसकी फिकर मत कर.. अब सेठ जी अगले एक हफ्ते के लिए दिन-रात दुकान पर ही रहेंगे और मैं तुम्हारे पास.. तो अब बहुत मौके होंगे.. बस किसी तरह एक बार तुम दीपा को पटा लो..।
राजू ने कुसुम के चेहरे पर ख़ुशी देखते हुए कहा- वो तो ठीक है.. पर आप को अच्छा लगेगा..? जब मैं और दीपा.. पर आप इतना क्यों खुश हो रही हो..?
कुसुम ने राजू की बात सुन कर एकदम सकपकाते हुए कहा- नहीं.. वो तो ऐसे ही बोल दिया, तुझे पता है ना.. मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती और तेरी वजह से ही तो अब मुझे अपने घर में पुरानी हैसियत वापिस मिलने वाली है.. और हाँ.. वैसे चमेली भी तो है.. उसे तो तुम कई बार चोद चुके हो ना…।
राजू कुसुम की बात सुन कर झेंप जाता है।
“नहीं मालकिन.. आपको किसने कहा.. मैं और चमेली.. हो ही नहीं सकता।”
कुसुम राजू की बातों का मज़ा ले रही थी।
“अच्छा.. मुझे बच्ची समझा है क्या.. बच्चे.. अच्छी तरह से जानती हूँ तुझे और उस चमेली को भी.. मुझसे होशियारी मत कर..।”
कुसुम हँसते हुए बाहर जाने लगती है और फिर पीछे मुड़ कर उससे कहती है।
“वैसे चमेली का मर्द भी दुकान पर ही रहेगा दिन-रात.. चाहो तो आज उसके घर चले जाना..।”
और फिर कुसुम घर के आगे के तरफ अपने कमरे में चली जाती है।
राजू तो जैसे ख़ुशी के मारे उछल पड़ता है.. वो जानता है कि कुसुम को इस बात का पता नहीं है कि उसकी और दीपा के बीच पहले से सब कुछ हो चुका है और अब तो कुसुम भी उसे खुल कर चमेली और दीपा को चोदने के लिए कह गई थी।
रात हो चुकी थी और चमेली सबको खाना खिला कर अपने घर वापिस जाने को थी।
जैसे ही चमेली दरवाजे तक पहुँची.. तो कुसुम ने उसे आवाज़ लगाई।
चमेली कुसुम की आवाज़ सुन कर वापिस आ गई।
आँगन में दीपा और कुसुम पलंग पर बैठे हुए थे.. जबकि राजू नीचे बैठा हुआ था।
कुसुम ने राजू के तरफ देखते हुए.. एक कातिल मुस्कान के साथ बात शुरू की।
कुसुम- चमेली मैं कह रही थी कि जब तक मेला चल रहा है और जब तक सेठ जी दुकान पर रहेंगे.. तब तक तुम यहीं सो लिया करो और वैसे भी तुम्हारे घर पर कौन है.. वहाँ पर भी जाकर तो सोना ही है।
चमेली- पर मालकिन वो में..।
कुसुम- पर..पर.. क्या लगा रखा है.. दीपा मेरे साथ सो जाएगी और तुम राजू के कमरे में सो जाना.. एक बिस्तर नीचे लगा लेना अपने लिए..।
जैसे ही चमेली ने ये बात सुनी। उसका दिल एकदम से ख़ुशी से उछल पड़ा.. पर अचानक से उसके मन में ख्याल आया कि आख़िर आज कुसुम को क्या हो गया है.. पहले तो वो राजू पर उसकी परछाई भी पड़ने नहीं देती थी और आज एकदम से वो इतनी मेहरबान कैसे हो गई।
चमेली सवालिया नज़रों से कुसुम की तरफ देख रही थी।
इस पहले कि कुसुम कुछ बोलती.. राजू उठ कर पीछे अपने कमरे की तरफ चला गया।
कुसुम ने देखा कि चमेली अब भी वहीं खड़ी है। उसने दीपा को बोला कि वो अन्दर जाकर बिस्तर ठीक करे.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ।
दीपा उठ कर कुसुम के कमरे में चली गई और कुसुम उठ कर रसोई की तरफ जाने लगी। जैसे ही वो चमेली के पास से गुज़री.. तो उसने चमेली को धीरे से रसोई में आने के लिए बोला।
चमेली कुसुम के पीछे रसोई के तरफ चल पड़ी। थोड़ी देर में दोनों रसोई के अन्दर थीं।
“जी मालकिन..?” चमेली ने नीचे की तरफ देखते हुए कहा।
कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
“अरे इतना क्यों घबरा रही हो.. क्या मैं जानती नहीं कि तू कितनी ही बार राजू से अपनी चूत चुदवा चुकी हो.. मैं तो बस यही चाहती हूँ कि आज तुम जी भर कर राजू का लण्ड अपनी चूत में लेकर चुदवा लो..
चमेली- पर मालकिन आप.. पर आप तो राजू को..
चमेली बोलते-बोलते चुप हो गई।
इस पर कुसुम के होंठों पर एक बार फिर से मुस्कान फ़ैल गई।
कुसुम- तू यही कहना चाहती है ना कि राजू को तो मैंने फँसा रखा है।
चमेली- जी..
कुसुम- चमेली.. तुम जानती हो कि जब शिकारी का पेट शिकार को खा कर भर जाए.. तो उसे अपना शिकार दूसरों से बाँटने में कोई परेशानी नहीं होती.. चल आज से मैं अपना शिकार तेरे साथ बाँट लूँगी.. जा मज़े कर जाकर..।
ये कहने के बाद कुसुम अपने कमरे में आ गई।
चमेली वहीं खड़ी कुसुम के कमरे का दरवाजा बंद होने का इंतजार कर रही थी.. उसकी चूत तो अभी से पानी छोड़ने लगी थी.. ये सोच-सोच कर कि आज तो मालकिन कुसुम ने भी उस चुदवाने के इजाज़त दे दी है।
जैसे ही कुसुम के कमरे का दरवाजा बंद हुआ.. चमेली तेज़ी से रसोई में से निकल कर राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी। राजू के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर लालटेन जल रही थी।
अन्दर लेटा हुआ.. राजू चमेली को अपने कमरे की तरफ आ हुए देख रहा था और फिर चमेली ने अन्दर आते ही.. जल्दी से दरवाजा बंद किया और राजू की तरफ हसरत भरी नज़रों से देखने लगी।
राजू चारपाई से उठा और चमेली को अपनी बाँहों में भरते हुए.. उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया।
चमेली किसी बेल की तरह राजू से लिपट गई और दोनों के होंठों के बीच घमासान शुरू हो गया।
क्योंकि जिस शहर में गेंदामल सेठ की दुकान थी.. वहाँ पर बहुत बड़ा मेला लगने वाला था और मेला में दिन रात चहल-पहल बनी रहती थी। मेला पूरे हफ्ते भर चलता था.. इसलिए दुकान मेले के दिनों में दिन-रात खुली रहती थी। गेंदामल को दिन-रात दुकान में ही रहना पड़ता था। इसलिए वो दीपा और राजू को ले जाने आया था.. क्योंकि रात को कुसुम अकेली हो जाती।
आज उन तीनों को गाँव वापिस जाना था.. इसलिए तीनों घर वापिस जाने की तैयारी कर रहे थे और कुछ ही देर में वो तीनों घर के लिए रवाना हो गए।
शाम को जब तीनों घर पर पहुँचे.. तो कुसुम तीनों को देख कर बहुत खुश हुई खास तौर पर राजू को देख कर..
चमेली जो कि रतन के वापिस चले जाने से कुछ उदास थी.. वो भी राजू को देख कर खुश थी। आख़िर कोई तो उसे भी अपनी चूत की आग बुझाने के लिए चाहिए था।
चमेली अपना काम निपटा कर चली गई.. शाम के 4 बजे जब सब अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे।
सेठ दुकान पर जा चुका था.. तो कुसुम चुपके से अपने कमरे से बाहर निकल कर पीछे राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी।
राजू अपने कमरे मैं खाट पर लेटा हुआ था.. कुसुम को अपने कमरे में देखते ही वो चारपाई से उठ खड़ा हुआ और कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया।
कुसुम ने भी अपनी बाँहें उसकी कमर पर कस लीं और दोनों के होंठ आपस में जा लगे।
थोड़ी देर बाद कुसुम ने अपने होंठों को राजू के होंठों से हटाया और उसका हाथ पकड़ कर अपने पेट पर रख दिया।
राजू उसकी आँखों में सवालिया नज़रों से देख रहा था।
कुसुम ने मुस्कुराते हुए.. उसके कान के पास जाकर धीरे से बोला- तुम्हारा है..
कुसुम की ये बात राजू अच्छे से नहीं समझ पाया।
राजू ने धीमी आवाज़ में कहा- क्या ?
कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा- मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा है।
राजू कुसुम की बात सुन कर एकदम से घबरा गया.. वो फटी हुई आँखों से कुसुम की तरफ देखे जा रहा था। अगले ही पल कुसुम एकदम से हँस पड़ी।
कुसुम- अरे तू इतना घबरा क्यों रहा है.. तुझे कुछ नहीं होने दूँगी.. तेरे जाने के बाद मैं तेरे सेठ के साथ कुछ रातों को हम-बिस्तर हुई थी। ये बच्चा उनके ही नाम से इस दुनिया में आएगा.. यकीन मानो किसी को पता भी नहीं चलेगा.. बस दु:ख इस बात का है कि अब कई महीनों तक तुझसे चुदवा नहीं पाऊँगी।
कुसुम की बात सुन कर राजू को थोड़ी राहत मिली और वो भी मुस्कुराते हुए.. उसके पेट पर धीरे-धीरे हाथ फेरने लगा।
“पर मालकिन अब मेरा क्या होगा.. इतना समय मैं कैसे गुजारा करूँगा..?”
उसने कुसुम की आँखों में देखते हुए कहा।
“ढूँढ़ दूँगी तेरे लिए एक नई चूत.. अब खुश..”
राजू- नई चूत? कहाँ से ढूँढोगी..?
कुसुम- है मेरी नज़र में एक.. वैसे तू भी जानता है उसके बारे में.. और मुझे लगता है कि वो भी तेरे ऊपर फिदा है।
राजू- अच्छा मुझे भी बताओ.. कौन मुझ पर फिदा है।
कुसुम- बता दूँ..?
राजू- हाँ.. जल्दी बताओ ना..।
कुसुम- दीपा… तुम्हें पसंद है ना..?
कुसुम की बात सुन कर राजू एकदम से चौंक जाता है.. पर उसे इस बात का अहसास हो जाता है कि कुसुम नहीं जानती कि उसके और दीपा के बीच पहले से ही सब कुछ हो चुका है।
राजू- वो तो ठीक है.. पर दीपा तो मुझसे घर में मिल भी नहीं पाती और आप तो जानती ही हो कि सेठ जी दीपा पर हमेशा नज़रें रखते हैं।
कुसुम- तू उसकी फिकर मत कर.. अब सेठ जी अगले एक हफ्ते के लिए दिन-रात दुकान पर ही रहेंगे और मैं तुम्हारे पास.. तो अब बहुत मौके होंगे.. बस किसी तरह एक बार तुम दीपा को पटा लो..।
राजू ने कुसुम के चेहरे पर ख़ुशी देखते हुए कहा- वो तो ठीक है.. पर आप को अच्छा लगेगा..? जब मैं और दीपा.. पर आप इतना क्यों खुश हो रही हो..?
कुसुम ने राजू की बात सुन कर एकदम सकपकाते हुए कहा- नहीं.. वो तो ऐसे ही बोल दिया, तुझे पता है ना.. मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती और तेरी वजह से ही तो अब मुझे अपने घर में पुरानी हैसियत वापिस मिलने वाली है.. और हाँ.. वैसे चमेली भी तो है.. उसे तो तुम कई बार चोद चुके हो ना…।
राजू कुसुम की बात सुन कर झेंप जाता है।
“नहीं मालकिन.. आपको किसने कहा.. मैं और चमेली.. हो ही नहीं सकता।”
कुसुम राजू की बातों का मज़ा ले रही थी।
“अच्छा.. मुझे बच्ची समझा है क्या.. बच्चे.. अच्छी तरह से जानती हूँ तुझे और उस चमेली को भी.. मुझसे होशियारी मत कर..।”
कुसुम हँसते हुए बाहर जाने लगती है और फिर पीछे मुड़ कर उससे कहती है।
“वैसे चमेली का मर्द भी दुकान पर ही रहेगा दिन-रात.. चाहो तो आज उसके घर चले जाना..।”
और फिर कुसुम घर के आगे के तरफ अपने कमरे में चली जाती है।
राजू तो जैसे ख़ुशी के मारे उछल पड़ता है.. वो जानता है कि कुसुम को इस बात का पता नहीं है कि उसकी और दीपा के बीच पहले से सब कुछ हो चुका है और अब तो कुसुम भी उसे खुल कर चमेली और दीपा को चोदने के लिए कह गई थी।
रात हो चुकी थी और चमेली सबको खाना खिला कर अपने घर वापिस जाने को थी।
जैसे ही चमेली दरवाजे तक पहुँची.. तो कुसुम ने उसे आवाज़ लगाई।
चमेली कुसुम की आवाज़ सुन कर वापिस आ गई।
आँगन में दीपा और कुसुम पलंग पर बैठे हुए थे.. जबकि राजू नीचे बैठा हुआ था।
कुसुम ने राजू के तरफ देखते हुए.. एक कातिल मुस्कान के साथ बात शुरू की।
कुसुम- चमेली मैं कह रही थी कि जब तक मेला चल रहा है और जब तक सेठ जी दुकान पर रहेंगे.. तब तक तुम यहीं सो लिया करो और वैसे भी तुम्हारे घर पर कौन है.. वहाँ पर भी जाकर तो सोना ही है।
चमेली- पर मालकिन वो में..।
कुसुम- पर..पर.. क्या लगा रखा है.. दीपा मेरे साथ सो जाएगी और तुम राजू के कमरे में सो जाना.. एक बिस्तर नीचे लगा लेना अपने लिए..।
जैसे ही चमेली ने ये बात सुनी। उसका दिल एकदम से ख़ुशी से उछल पड़ा.. पर अचानक से उसके मन में ख्याल आया कि आख़िर आज कुसुम को क्या हो गया है.. पहले तो वो राजू पर उसकी परछाई भी पड़ने नहीं देती थी और आज एकदम से वो इतनी मेहरबान कैसे हो गई।
चमेली सवालिया नज़रों से कुसुम की तरफ देख रही थी।
इस पहले कि कुसुम कुछ बोलती.. राजू उठ कर पीछे अपने कमरे की तरफ चला गया।
कुसुम ने देखा कि चमेली अब भी वहीं खड़ी है। उसने दीपा को बोला कि वो अन्दर जाकर बिस्तर ठीक करे.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ।
दीपा उठ कर कुसुम के कमरे में चली गई और कुसुम उठ कर रसोई की तरफ जाने लगी। जैसे ही वो चमेली के पास से गुज़री.. तो उसने चमेली को धीरे से रसोई में आने के लिए बोला।
चमेली कुसुम के पीछे रसोई के तरफ चल पड़ी। थोड़ी देर में दोनों रसोई के अन्दर थीं।
“जी मालकिन..?” चमेली ने नीचे की तरफ देखते हुए कहा।
कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
“अरे इतना क्यों घबरा रही हो.. क्या मैं जानती नहीं कि तू कितनी ही बार राजू से अपनी चूत चुदवा चुकी हो.. मैं तो बस यही चाहती हूँ कि आज तुम जी भर कर राजू का लण्ड अपनी चूत में लेकर चुदवा लो..
चमेली- पर मालकिन आप.. पर आप तो राजू को..
चमेली बोलते-बोलते चुप हो गई।
इस पर कुसुम के होंठों पर एक बार फिर से मुस्कान फ़ैल गई।
कुसुम- तू यही कहना चाहती है ना कि राजू को तो मैंने फँसा रखा है।
चमेली- जी..
कुसुम- चमेली.. तुम जानती हो कि जब शिकारी का पेट शिकार को खा कर भर जाए.. तो उसे अपना शिकार दूसरों से बाँटने में कोई परेशानी नहीं होती.. चल आज से मैं अपना शिकार तेरे साथ बाँट लूँगी.. जा मज़े कर जाकर..।
ये कहने के बाद कुसुम अपने कमरे में आ गई।
चमेली वहीं खड़ी कुसुम के कमरे का दरवाजा बंद होने का इंतजार कर रही थी.. उसकी चूत तो अभी से पानी छोड़ने लगी थी.. ये सोच-सोच कर कि आज तो मालकिन कुसुम ने भी उस चुदवाने के इजाज़त दे दी है।
जैसे ही कुसुम के कमरे का दरवाजा बंद हुआ.. चमेली तेज़ी से रसोई में से निकल कर राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी। राजू के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर लालटेन जल रही थी।
अन्दर लेटा हुआ.. राजू चमेली को अपने कमरे की तरफ आ हुए देख रहा था और फिर चमेली ने अन्दर आते ही.. जल्दी से दरवाजा बंद किया और राजू की तरफ हसरत भरी नज़रों से देखने लगी।
राजू चारपाई से उठा और चमेली को अपनी बाँहों में भरते हुए.. उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया।
चमेली किसी बेल की तरह राजू से लिपट गई और दोनों के होंठों के बीच घमासान शुरू हो गया।