16-03-2019, 12:12 PM
सिंदूरदान
मेरा काम मोबाइल पे फोटो खींचने का और वीडियो बनाने का था, रगड़ाई भाभियां कर रही थी,
मैं दीदी के साथ बैठी रस ले रही थी और होली की शूटिंग।
तब तक किसी भाभी को कुछ याद आ गया, और वो बोल पड़ी- “अरे सिंगार तो अधूरा रह गया…”
“क्यों क्या हुआ?” बाकी सबने पूछा।
“दुल्हन का सिंदूरदान तो हुआ नहीं?” वो चहक के बोलीं और पूरा आँगन सबकी खिलखिलाहटों से गूँज गया।
“लेकिन सिंदूरदान करेगा कौन?” मिश्राइन भौजी ने पूछा।
मैं दीदी और अपनी भाभी के बीच में बैठी थीं। मेरी भाभी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा-
“और कौन करेगा, ये हक तो सिर्फ और सिर्फ, छोटी, एकलौती साली का है…”
मैं बड़े ठसके से उठी, जीजू की देह से देह रगड़ते हुए उन्हें थोड़ा तड़पाया।
(अभी थोड़ी देर पहले छत पर उन्होंने क्या जमकर मेरी रगड़ाई की थी, अभी तक वहां दुःख रहा था,
पूरा फाड़ दिया था अब मेरी बारी थी)
फिर नैन नचा के, मुश्कुरा के चुटकी में सिन्दूर लेकर पूछा-
“क्यों जीजू डाल दूँ?”
“तू भी न, ये क्या डालने के पहले पूछते हैं, जो तू पूछ रही है?”
दीदी मुश्कुरा के मुझे उकसाते बोलीं।
बात उनकी एकदम सही थी, बिना पूछे मेरे फ्राक में डालकर मेरे नए आये जुबना को रगड़ा रंग लगा-लगा के,
फिर पैंटी में और छत पे तो बस टांग उठाकर जब तक मैं कुछ सोचू समझूं, एक बार में डाल दिया मूसल।
बस मैंने डाल दिया।
और पूरा, थोड़ा भरभरा के उनकी नाक पे भी गिरा।
खूब जोर से हल्ला हुआ। किसी ने कहा-
“नाक पे गिरना तो बहुत अच्छा सगुन होता है, अब इस दुल्हन की सास बहुत प्यार करेगी…”
तब दूबे भौजी बोलीं-
“अरे प्यार तो हम सब करेंगे, अभी तो सिन्दूर दान हुआ है…”
लेकिन भाभियां, मैं भी तो ननद ही थी, मुझे छेड़ने का मौका वो क्यों छोड़तीं, एक ने बोला-
“संगीता बिन्नो सिंदूरदान तो कर दिया है अब सुहागरात भी मनाओ…”
तो दूसरी बोली-
“एकदम सही, सिंदूरदान हम लोगों के सामने हुआ था तो सुहागरात भी हमारे सामने होनी चाहिए…”
भला हो दूबे भाभी का, वो हरदम मेरा साथ देती थीं। मुझे उन्होंने अपने पास बिठाया और सबका जवाब खुद दिया-
“अरे काहें घबड़ात हो, सुहागरात होगी और अभी होगी, और उहै करेगी, जिसने सिन्दूर दान किया है,
लेकिन पहले तुम लोग नयकी दुल्हन को तनी तैयार करो, बहुत जबर हथियार है समझाय देना उसको…”
मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन तब दो भाभियों ने पकड़कर उन्हें निहुरा दिया, साड़ी पेटीकोट कमर तक और पिछवाड़ा एकदम से खुल गया। एक भाभी ने बोतल से कड़ुवा तेल लेकर सीधे पिछवाड़े के अंदर ये बोलते हुए-
“अरे कड़ुवा तेल से चिकनाहट भी होगी, मजा भी कम नहीं होगा…”
मेरी समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था। लेकिन समझने की जरूरत भी नहीं थी, दूबे भाभी थी न।
उन्होंने एक खूब मोटी, लम्बी कैंडल पे कंडोम चढ़ा के ‘मेरी सहेली’ के ठीक ऊपर बाँध दिया अच्छे से, और बोलीं-
“चल चालू हो जा, एकदम एक बित्ते की है। एकबार में फाड़ दे…”
मैं एक पल के लिए ठिठकी।
तो दूबे भाभी गुस्से से बोलीं-
“तो ठीक है, मैं ये तेरी कोरी गाण्ड में डालती हूँ, अगर तुझे…”
बिना कुछ सोचे समझे मैं जीजू के पीछे, चालू हो गई।
सब भाभियां मुझे लहका रही थीं, लेकिन उन सबसे तेज आवाज मेरी दीदी की थी-
“अरे ससुराल की पहली होली है, याद रहनी चाहिए…”
जीजू को हमने उसी श्रृंगार में बिदा किया।
लेकिन जीजू ने चलते-चलते मेरे गाल पे प्यारी सी चुम्मी देके प्रामिस किया-
“आज तो उन्हें जल्दी थी, लेकिन पांच दिन बाद ही तो रंग पंचमी है, एक दिन पहले से आयेंगे और एक दिन बाद तक…”
दीदी की आँखें चमक गई, उनसे और मुझसे बोली-
“अरे जीजा साली का फागुन तो साल भर रहता है। जब चाहो तब होली…”
मेरा काम मोबाइल पे फोटो खींचने का और वीडियो बनाने का था, रगड़ाई भाभियां कर रही थी,
मैं दीदी के साथ बैठी रस ले रही थी और होली की शूटिंग।
तब तक किसी भाभी को कुछ याद आ गया, और वो बोल पड़ी- “अरे सिंगार तो अधूरा रह गया…”
“क्यों क्या हुआ?” बाकी सबने पूछा।
“दुल्हन का सिंदूरदान तो हुआ नहीं?” वो चहक के बोलीं और पूरा आँगन सबकी खिलखिलाहटों से गूँज गया।
“लेकिन सिंदूरदान करेगा कौन?” मिश्राइन भौजी ने पूछा।
मैं दीदी और अपनी भाभी के बीच में बैठी थीं। मेरी भाभी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा-
“और कौन करेगा, ये हक तो सिर्फ और सिर्फ, छोटी, एकलौती साली का है…”
मैं बड़े ठसके से उठी, जीजू की देह से देह रगड़ते हुए उन्हें थोड़ा तड़पाया।
(अभी थोड़ी देर पहले छत पर उन्होंने क्या जमकर मेरी रगड़ाई की थी, अभी तक वहां दुःख रहा था,
पूरा फाड़ दिया था अब मेरी बारी थी)
फिर नैन नचा के, मुश्कुरा के चुटकी में सिन्दूर लेकर पूछा-
“क्यों जीजू डाल दूँ?”
“तू भी न, ये क्या डालने के पहले पूछते हैं, जो तू पूछ रही है?”
दीदी मुश्कुरा के मुझे उकसाते बोलीं।
बात उनकी एकदम सही थी, बिना पूछे मेरे फ्राक में डालकर मेरे नए आये जुबना को रगड़ा रंग लगा-लगा के,
फिर पैंटी में और छत पे तो बस टांग उठाकर जब तक मैं कुछ सोचू समझूं, एक बार में डाल दिया मूसल।
बस मैंने डाल दिया।
और पूरा, थोड़ा भरभरा के उनकी नाक पे भी गिरा।
खूब जोर से हल्ला हुआ। किसी ने कहा-
“नाक पे गिरना तो बहुत अच्छा सगुन होता है, अब इस दुल्हन की सास बहुत प्यार करेगी…”
तब दूबे भौजी बोलीं-
“अरे प्यार तो हम सब करेंगे, अभी तो सिन्दूर दान हुआ है…”
लेकिन भाभियां, मैं भी तो ननद ही थी, मुझे छेड़ने का मौका वो क्यों छोड़तीं, एक ने बोला-
“संगीता बिन्नो सिंदूरदान तो कर दिया है अब सुहागरात भी मनाओ…”
तो दूसरी बोली-
“एकदम सही, सिंदूरदान हम लोगों के सामने हुआ था तो सुहागरात भी हमारे सामने होनी चाहिए…”
भला हो दूबे भाभी का, वो हरदम मेरा साथ देती थीं। मुझे उन्होंने अपने पास बिठाया और सबका जवाब खुद दिया-
“अरे काहें घबड़ात हो, सुहागरात होगी और अभी होगी, और उहै करेगी, जिसने सिन्दूर दान किया है,
लेकिन पहले तुम लोग नयकी दुल्हन को तनी तैयार करो, बहुत जबर हथियार है समझाय देना उसको…”
मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन तब दो भाभियों ने पकड़कर उन्हें निहुरा दिया, साड़ी पेटीकोट कमर तक और पिछवाड़ा एकदम से खुल गया। एक भाभी ने बोतल से कड़ुवा तेल लेकर सीधे पिछवाड़े के अंदर ये बोलते हुए-
“अरे कड़ुवा तेल से चिकनाहट भी होगी, मजा भी कम नहीं होगा…”
मेरी समझ में अभी भी कुछ नहीं आ रहा था। लेकिन समझने की जरूरत भी नहीं थी, दूबे भाभी थी न।
उन्होंने एक खूब मोटी, लम्बी कैंडल पे कंडोम चढ़ा के ‘मेरी सहेली’ के ठीक ऊपर बाँध दिया अच्छे से, और बोलीं-
“चल चालू हो जा, एकदम एक बित्ते की है। एकबार में फाड़ दे…”
मैं एक पल के लिए ठिठकी।
तो दूबे भाभी गुस्से से बोलीं-
“तो ठीक है, मैं ये तेरी कोरी गाण्ड में डालती हूँ, अगर तुझे…”
बिना कुछ सोचे समझे मैं जीजू के पीछे, चालू हो गई।
सब भाभियां मुझे लहका रही थीं, लेकिन उन सबसे तेज आवाज मेरी दीदी की थी-
“अरे ससुराल की पहली होली है, याद रहनी चाहिए…”
जीजू को हमने उसी श्रृंगार में बिदा किया।
लेकिन जीजू ने चलते-चलते मेरे गाल पे प्यारी सी चुम्मी देके प्रामिस किया-
“आज तो उन्हें जल्दी थी, लेकिन पांच दिन बाद ही तो रंग पंचमी है, एक दिन पहले से आयेंगे और एक दिन बाद तक…”
दीदी की आँखें चमक गई, उनसे और मुझसे बोली-
“अरे जीजा साली का फागुन तो साल भर रहता है। जब चाहो तब होली…”