16-03-2019, 12:03 PM
***** *****श्रिंगार - रसिया को नार बनाऊँगी
“अरे, ऐसे ही बिदा कर दो न, बिना कपड़ों के। अच्छे तो लग रहे हैं…”
खिलखिलाते हुए एक भाभी सुझाया।
लेकिन दूबे भाभी ने तुरंत वो सुझाव रिजेक्ट कर दिया, और मेरी भाभी ने भी दूबे भाभी का साथ दिया-
“तुझे मालूम नहीं, इस गली के बाहर कितने लौंडेबाज रहते हैं। इस हालत में इनको देखेंगे न,
तो बस, इतने लौंडेबाज चढ़ेंगे ऊपर, ऐसा चिकना लौंडा, पैदायशी गान्डू, वो भी होली के दिन, दो दिन तक नहीं छोड़ेंगे,
और उसके बाद इनका पिछवाड़ा हमारी बिन्नो (दीदी की ओर इशारा करके) की सास के भोसड़े से भी चौड़ा हो जाएगा…”
दूबे भाभी बोलीं।
“एकदम सही, आखिर होली खेलने आये हैं, तो इनके माल की गारंटी की जिम्मेदारी भी हमारी है।
हम लोग मार ले चलो, ससुराल वाले हैं, रिश्ता है, मौका है। लेकिन ऐसे जाने अनजाने, फिर पता नहीं कंडोम लगाएंगे की नहीं?”
मेरी भाभी बोलीं।
मैं- “क्यों जीजू के भी गाभिन होने का खतरा है क्या?”
चिढ़ाने का मौका मैं क्यों छोड़ती।
और सारी भाभियां हँसने लगी।
तय ये हुआ की आखिर हमारे पास लड़कों के कपड़े कहाँ से आएंगे?
इसलिए उन्हें फिर जो हम लोगों के कपड़े हैं उसी में बिदा कर देंगे। हाँ इन कपड़ों के बदले 4-5 दिन के लिए अपनी छुटकी बहनिया को हमारे यहाँ भेजना होगा।
जीजू कुछ बोलते उसके पहले ही दीदी ने उनकी ओर से हाँ कर दी-
“एकदम ठीक है, मेरी छिनार ननद का मुँह का स्वाद भी बदल जायेगा। हरदम मेरे मायके के बारे में बोलती रहती है, खुद ही आकर देख लेगी…”
मेरी भाभी ने दूबे भाभी के साथ श्रृंगार का जिम्मा लिया। मैं भी सहायक भूमिका में।
कपड़े पहनाने का काम मिश्राइन भौजी के साथ में बाकी भाभियां भी।
दीदी मजे ले रही थीं, अपने पति की हालत देखकर। और हम लोगों को चढ़ा भी रही थीं।
भाभियों ने सबसे पहले दीदी की पेटीकोट उतारी थी, थोड़ी नुची, रंगों में डूबी वो आँगन के कोने में पड़ी थी। वही उठाकर जीजू को पहनाई गई।
ब्रा और किसकी अटती, दीर्घस्तना मिश्राइन भौजी थीं सबसे, उन्हीं की ब्रा जीजू को।
मैं मुश्कुराते देख रही थी, मुझे एक आइडिया आया और लाल रंग से भरे दो गुब्बारे ब्रा के अंदर।
मेरी भाभी ने तारीफ की निगाह से देखा और बोलीं-
“हाँ अब अपने मायके वालियों के गदराए जोबन के टक्कर के हुए न…”
मेरी भाभी ने अपने ननदोई के पैरों का जिम्मा लिया और वहां से धीरे-धीरे ऊपर,
पहले तो रच-रच कर पैरों में महावर, क्या कोई नाउन नई नवेली गौने की दुल्हन को ऐसे पहली रात लगाती होगी?
डिजाइन भी उसमें।
उंगलियों में घुंघरू वाले बिछुए, और साथ में भाभी गाना भी गा रहीं थीं
और मैं भी सुर में सुर मिलाकर जीजा की बहनों और अपनी दीदी की ननदों का बखान कर रही थी-
छोटे दाना वाला बिछुआ गजबै बना, हो छोटे दाना वाला,
ऊ बिछुआ पहिने, ऊ बिछुआ पहिने, अरे हमारे जीजा की बहिनी
अरे जीजा भण्डुवा की बहिनी,
अरवट बाजे, करवट बाजे, सारी रात चुदावत बाजे, हो छोटे दाना वाला,
बिछुआ के बाद पैरों में पायल, फिर कमर में करधनी।
दूबे भाभी किसी चुड़िहारिन की तरह, जीजू के हाथ में लाल हरी चूड़ियां कोहनी तक पहना रही थीं,
साथ में हाथों में मेंहदी, चेहरे के मेकअप की जिम्मेदारी मेरी थी, और वो मैंने बहुत ‘अच्छी तरह’ निभायी।
क्या रेड लाइट एरिया में बन संवर के शाम को रंडिया खड़ी होती होंगी, उसी स्टाइल का बल्कि उसको भी मात करता, चमेली में जो करीना कपूर लग रही थी, बस उसी मार्का का, खूब गाढ़ी लाल-लाल लिपस्टिक, थोड़ी स्मज,
आँखों में भर के काजल, डार्क मस्कारा, आईलैशेज, गालों पे रूज, नाक में स्प्रिंग वाली एक छोटी सी नथ।
दीदी मुझे उकसाती बोलीं, अरे गुड्डी, नथ तो बहुत जरूरी है, वरना उतरेगी क्या?
कानों में बाली, साथ-साथ गाने भी चल रहे थे-
रसिया को नार बनाऊँगी, रसिया को,
सर पे उढ़ाय सबुज रंग चुनरी, अरे
अरे पाँव महावर, माथे पर बेंदी,
जुबना पे चोली पहनाऊँगी।
रसिया को, रसिया को,
और गाने के साथ कमेंट भी-
“अरे आज कोठे पे घंटे भर भी बैठ जाएंगे तो, 20-20 रूपये के हिसाब से…”
कोई कहता-
एकदम पक्की रंडी लग रहे हो, पाहुन।
तो मेरी भाभी ने जवाब दिया-
“एहमें अचरज कौन है, खानदानी असर है, रंडी का जना, आज असल रंग में आ गया है…”
सब लोगों ने फोर्स करके उनसे ठुमके लगवाए, गाने गवाए, अच्छे वाले,
और गालियां भी मेरी दीदी की ननदों और सास का नाम ले ले के
“अरे, ऐसे ही बिदा कर दो न, बिना कपड़ों के। अच्छे तो लग रहे हैं…”
खिलखिलाते हुए एक भाभी सुझाया।
लेकिन दूबे भाभी ने तुरंत वो सुझाव रिजेक्ट कर दिया, और मेरी भाभी ने भी दूबे भाभी का साथ दिया-
“तुझे मालूम नहीं, इस गली के बाहर कितने लौंडेबाज रहते हैं। इस हालत में इनको देखेंगे न,
तो बस, इतने लौंडेबाज चढ़ेंगे ऊपर, ऐसा चिकना लौंडा, पैदायशी गान्डू, वो भी होली के दिन, दो दिन तक नहीं छोड़ेंगे,
और उसके बाद इनका पिछवाड़ा हमारी बिन्नो (दीदी की ओर इशारा करके) की सास के भोसड़े से भी चौड़ा हो जाएगा…”
दूबे भाभी बोलीं।
“एकदम सही, आखिर होली खेलने आये हैं, तो इनके माल की गारंटी की जिम्मेदारी भी हमारी है।
हम लोग मार ले चलो, ससुराल वाले हैं, रिश्ता है, मौका है। लेकिन ऐसे जाने अनजाने, फिर पता नहीं कंडोम लगाएंगे की नहीं?”
मेरी भाभी बोलीं।
मैं- “क्यों जीजू के भी गाभिन होने का खतरा है क्या?”
चिढ़ाने का मौका मैं क्यों छोड़ती।
और सारी भाभियां हँसने लगी।
तय ये हुआ की आखिर हमारे पास लड़कों के कपड़े कहाँ से आएंगे?
इसलिए उन्हें फिर जो हम लोगों के कपड़े हैं उसी में बिदा कर देंगे। हाँ इन कपड़ों के बदले 4-5 दिन के लिए अपनी छुटकी बहनिया को हमारे यहाँ भेजना होगा।
जीजू कुछ बोलते उसके पहले ही दीदी ने उनकी ओर से हाँ कर दी-
“एकदम ठीक है, मेरी छिनार ननद का मुँह का स्वाद भी बदल जायेगा। हरदम मेरे मायके के बारे में बोलती रहती है, खुद ही आकर देख लेगी…”
मेरी भाभी ने दूबे भाभी के साथ श्रृंगार का जिम्मा लिया। मैं भी सहायक भूमिका में।
कपड़े पहनाने का काम मिश्राइन भौजी के साथ में बाकी भाभियां भी।
दीदी मजे ले रही थीं, अपने पति की हालत देखकर। और हम लोगों को चढ़ा भी रही थीं।
भाभियों ने सबसे पहले दीदी की पेटीकोट उतारी थी, थोड़ी नुची, रंगों में डूबी वो आँगन के कोने में पड़ी थी। वही उठाकर जीजू को पहनाई गई।
ब्रा और किसकी अटती, दीर्घस्तना मिश्राइन भौजी थीं सबसे, उन्हीं की ब्रा जीजू को।
मैं मुश्कुराते देख रही थी, मुझे एक आइडिया आया और लाल रंग से भरे दो गुब्बारे ब्रा के अंदर।
मेरी भाभी ने तारीफ की निगाह से देखा और बोलीं-
“हाँ अब अपने मायके वालियों के गदराए जोबन के टक्कर के हुए न…”
मेरी भाभी ने अपने ननदोई के पैरों का जिम्मा लिया और वहां से धीरे-धीरे ऊपर,
पहले तो रच-रच कर पैरों में महावर, क्या कोई नाउन नई नवेली गौने की दुल्हन को ऐसे पहली रात लगाती होगी?
डिजाइन भी उसमें।
उंगलियों में घुंघरू वाले बिछुए, और साथ में भाभी गाना भी गा रहीं थीं
और मैं भी सुर में सुर मिलाकर जीजा की बहनों और अपनी दीदी की ननदों का बखान कर रही थी-
छोटे दाना वाला बिछुआ गजबै बना, हो छोटे दाना वाला,
ऊ बिछुआ पहिने, ऊ बिछुआ पहिने, अरे हमारे जीजा की बहिनी
अरे जीजा भण्डुवा की बहिनी,
अरवट बाजे, करवट बाजे, सारी रात चुदावत बाजे, हो छोटे दाना वाला,
बिछुआ के बाद पैरों में पायल, फिर कमर में करधनी।
दूबे भाभी किसी चुड़िहारिन की तरह, जीजू के हाथ में लाल हरी चूड़ियां कोहनी तक पहना रही थीं,
साथ में हाथों में मेंहदी, चेहरे के मेकअप की जिम्मेदारी मेरी थी, और वो मैंने बहुत ‘अच्छी तरह’ निभायी।
क्या रेड लाइट एरिया में बन संवर के शाम को रंडिया खड़ी होती होंगी, उसी स्टाइल का बल्कि उसको भी मात करता, चमेली में जो करीना कपूर लग रही थी, बस उसी मार्का का, खूब गाढ़ी लाल-लाल लिपस्टिक, थोड़ी स्मज,
आँखों में भर के काजल, डार्क मस्कारा, आईलैशेज, गालों पे रूज, नाक में स्प्रिंग वाली एक छोटी सी नथ।
दीदी मुझे उकसाती बोलीं, अरे गुड्डी, नथ तो बहुत जरूरी है, वरना उतरेगी क्या?
कानों में बाली, साथ-साथ गाने भी चल रहे थे-
रसिया को नार बनाऊँगी, रसिया को,
सर पे उढ़ाय सबुज रंग चुनरी, अरे
अरे पाँव महावर, माथे पर बेंदी,
जुबना पे चोली पहनाऊँगी।
रसिया को, रसिया को,
और गाने के साथ कमेंट भी-
“अरे आज कोठे पे घंटे भर भी बैठ जाएंगे तो, 20-20 रूपये के हिसाब से…”
कोई कहता-
एकदम पक्की रंडी लग रहे हो, पाहुन।
तो मेरी भाभी ने जवाब दिया-
“एहमें अचरज कौन है, खानदानी असर है, रंडी का जना, आज असल रंग में आ गया है…”
सब लोगों ने फोर्स करके उनसे ठुमके लगवाए, गाने गवाए, अच्छे वाले,
और गालियां भी मेरी दीदी की ननदों और सास का नाम ले ले के