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Adultery नदी का रहस्य
(21-10-2020, 10:21 PM)Dark Soul Wrote: २०)

अंतिम भाग

अ)

घोर अँधेरी रात....

हाथ को हाथ न सूझे...

घोर निस्तब्धता...

साथ चलते सह यात्री का आहट तो सुनाई दे पर स्वयं वो सह-यात्री ही दिखाई न दे...

तारे भी कुछ इस तरह टिमटिमा रहे थे मानो एक हल्के से संकेत की प्रतीक्षा कर रहे हों; संकेत का ‘स’ हुआ नहीं की तुरंत कहीं छुप जाए सारे के सारे.

रात्रि के इस भयावहता को बढ़ाने में सहायता के लिए रह रह कर पेड़ों से उल्लूओं के बोल और विभिन्न कीड़ों के बजबजाते स्वर चारों ओर से सुनाई दे रहे थे.

कुछ रात्रि अपने साथ ऐसे स्याहपन ले कर आते हैं जिसे साधारण जन सोचना तक पसंद नहीं करते हैं.

ऐसी ही एक रात्रि होती है अमावस्या की.

एक ऐसी रात्रि जिसके विषय में लोग व समाज न तो बातें करना पसंद करते हैं और न ही इसके बारे में ज्यादा कुछ जानते हैं. निःसंदेह ऐसे विषयों पर स्वयं की जानकारी से कहीं अधिक वर्षों से चली आ रही सुनी सुनाई बातों पर साधारण जन को अधिक विश्वास होता है.. और यदि सुनी सुनाई बातें केवल सुनने में ही हद से अधिक भयावह हो तो फ़िर आम लोगों का क्या दृष्टिकोण हो सकता है ये तो अपने आप में ही जगजाहिर हैं.

ऐसी ही रात्रियों में कुछ विरले रात्रि ऐसी भी होती है जोकि शुरू होते ही अपने साथ कई प्रकार की विशेषताएँ ले आती हैं.

विशेषताएँ इसलिए क्योंकि ये स्वयं ही होती हैं इस रात्रि की और इस रात्रि से संबंध रखने वालों की... इस तरह की रात्रियों की प्रतीक्षा करने वालों की... उन प्रतीक्षारत लोगों की भी जो

गाँव की यदि बात की जाए तो यहाँ के लोग तो बहुत समय पहले से ही शीघ्र सो जाने के आदि थे पर अब जो पिछले कुछ समय से गाँव में जिस प्रकार की घटनाएँ हो रही हैं; उस कारण संध्या काल में ही दुकान बढ़ा कर (बंद कर) सब के सब सात से साढ़े सात बजे तक अपने अपने घरों में घुस जाते हैं.

और जिस दिन अमावस्या हो.. उसपे भी ऐसी विशेष तिथि, ग्रह – नक्षत्र वाली अमावस्या... उस दिन तो सुबह से ही लोगों के मन मस्तिष्क में एक अलग ही आतंक होना तो बहुत सामान्य सी बात है.

आज ऐसी ही एक रात्रि है.

आठ बजते बजते ही सब खा पी कर सो गए.

पूरे गाँव में सन्नाटा पसर गया.

रात्रि के इसी भयावह वाले पलों में गाँव से निकल कर उससे सटे वन की ओर पाँच जोड़ी पैर तेज़ी और सावधानी से बढ़े जा रहे थे.

तीन तो अपने ही बाबा जी और उनके दो शिष्य चांदू और गोपू हैं.. और बाकी दो बाबा जी के वरिष्ठ सहयोगी हैं जो आज ही के दिन बाहर से आए थे. ये दोनों भी कई प्रकार की सिद्धियाँ रखते हैं जोकि आज की रात काफ़ी काम देने वाली है.

आज की रात एक ऐसे काम के लिए... एक ऐसी प्रक्रिया के लिए... जिसकी भयावहता का न तो कोई सीमा है और न ही कोई अनुमान.

सभी के कदम तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं.

एक निर्दिष्ट स्थान के लिए.

सभी के चेहरे दृढ़ संकल्पता का साक्ष्य लिए थे.

सबसे आगे गोपू और चांदू हाथों में मशाल लिए चल रहे थे.

बीच में बाबा जी मंत्रजाप करते हुए चल रहे थे और पीछे पूरी सतर्कता के साथ मंत्रजाप करते हुए हाथ में मशाल थामे कदम बढ़ाए जा रहे थे बाबा जी के दोनों नए सहयोगी.

ये एक संकरा सा रास्ता था! दोनों तरफ नागफनी ने विकराल रूप धारण कर रखा था, लेकिन उसके खिलते हुए लाल और पीले फूलों ने उसकी कर्कशता को भी हर लिया था! बहुत सुन्दर फूल थे, बड़े बड़े! अमरबेल आदि ने पेड़ों पर अपनी सत्ता कायम कर रखी थी! मकड़ियों ने भी अपने स्वर्ग को क्या खूब सजाया था अपने जालों से! ऊंचाई पर लगे बड़े बड़े जाले!


शीघ्र ही वे पाँचों एक संकरा सा पथ से होते हुए उस निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच गए. हालाँकि उस पथ को पार करने में भी बहुत कठिनाई आई. दोनों ओर से नागफनियों ने विकराल रूप धारण कर रखा था.. आवागमन के मार्ग पर झुक आए दोनों ओर से कई पेड़ों के टहनियों से बचते बचाते, जंगली बड़ी बड़ी मकड़ियों के सुंदर व विशाल जालों से स्वयं को दूर रखते हुए सब आगे बढ़ते गए.

आगे... ठीक उसी स्थान पर पहुँचे सब के सब जहाँ उन्हें पहुँचना था.

एक विशाल पेड़.. डाल, टहनियाँ उसकी दूर दूर तक फैली हुईं हैं. पत्तों के आकार भी एक सामान्य मनुष्य के हथेली से भी बड़े.




[Image: Banyan.jpg]


पेड़ के जात को जान पाना रात के इस अँधेरे में, भले ही हाथों में जलते मशालें हों; दुष्कर कार्य प्रतीत हो रहा था. वैसे भी अभी इस पेड़ के सामने पहुँचे ये पाँच आगंतुक इस पेड़ के जात - प्रजाति, प्रकार, इत्यादि जानने के इच्छुक तो बिल्कुल नहीं थे.

कुछ सफ़ेद फूल भी निकले थे वहाँ, जो निश्चय ही दिन के उजाले में एक अलग ही खूबसूरती दिखा रहे होते!

सभी ने बहुत अच्छे से उस वातावरण को देखते समझते हुए मन ही मन उसका एक बढ़िया अवलोकन व आंकलन किया. आसपास कुछ दूरी पर कई तरह के वृक्षों के जमावड़े थे. जैसे की, आम, पपीते, अमरुद, बेल, बेर, आंवले, बरगद इत्यादि सभी थे वहाँ. मशालों से उठती लपटों में नज़र आती बरगद और बेलों ने क्या खूब यौवन धारण किया था!

अद्भुत!

बाबा जी ने मन ही मन वहाँ के वातावरण की प्रशंसा करते हुए अपने सामने सर उठा कर तन कर खड़े उस पेड़ को देखते हुए सोचा,

‘यदि इस पेड़ के साथ वो दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना न जुड़ी होती तो कदाचित प्रायः दिन के उजाले में गाँव के बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ अवश्य ही इस स्थान पर आ कर हर्षित – आनंदित होते.

इस घोर अन्धकार रात्रि में, मशालों से होती रौशनी में यदि ये पूरा परिदृश्य इतना सुंदर लग सकता है तो फिर सूर्यदेवता की रेश्मी किरणों की उपस्थिति में कैसा दिखता होगा.’

“गुरूदेव... अब??”

साथ आए नए सहयोगी में से एक ने दबे स्वर में पूछा.

परिदृश्य में खोए बाबा जी की तंद्रा टूटी..

आगे बढ़ कर अच्छे से एकबार फिर पूरे स्थान को देखा.

ऊँगलियों पर कुछ गणना की...

उसी निर्दिष्ट पेड़ के सामने पहुँचे.

फिर चारों दिशाओं की ओर मुँह करके कुछ क्षणों तक हाथ जोड़ कर मंत्रपाठ करते हुए प्रार्थना करते रहे.

उसके बाद चांदू की ओर देख कर एक संकेत दिया...

चांदू शीघ्रता दिखाते हुए अपने कंधे पर लटकते झोले में से एक मुड़ा हुआ कपड़ा निकाला और उस कपड़े के अंदर रखे एक आसन को निकाल कर बाबा जी की ओर बढ़ा.

बाबा जी ने गोपू को भी एक संकेत किया.

गोपू उनके पास पहुँचा.

बाबा जी ने शांत ढंग से पूछा,

“सुबह यहीं इसी स्थान को साफ़ किया था ना?”

गोपू ने हाँ में सिर हिलाया.

बाबा जी ने उसे एकबार और उस स्थान को झाड़ देने का आदेश दिया.

गोपू ने तुरंत उन मशालों की रौशनी में बाबा जी के दिखाए उस स्थान को ऊपर – ऊपर से हल्के से साफ़ किया.

तत्पश्चात बाबा ने उस स्थान पर चांदू से आसन ले कर बिछा दिया और एक कमंडल में से हथेली में जल ले कर उस आसन से तीन फीट की दूरी माप कर आसन के चारों ओर एक गोल घेरा बनाते हुए मंत्रजाप करते हुए जल डाला.

कुछ क्षण हाथ जोड़ कर प्रार्थना किया और फिर बैठ गए आसन पर.

कुछ क्षण और उन्होंने मंत्रजाप किया.

इतना कर के उन्होंने अपने शिष्यों की ओर देखा.

दोनों शिष्य जल्दी जल्दी बाबा जी के पूर्व निर्देशानुसार अपने साथ लाए झोलों में से भिन्न भिन्न प्रकार के तंत्र – मंत्र – यंत्र के सभी सामान निकाल निकाल कर रखने व सजाने लगे.

एक सीधी, आमने सामने की तेज़ टक्कर के लिए ये बहुत आवश्यक होता है कि आप अपनी पूरी तैयारी के साथ हों. इसलिए बाबा जी भी पूरी सजगता के साथ अपने शिष्यों द्वारा की जा रही तैयारी पर एक तीक्ष्ण दृष्टि जमाए हुए थे.

ये तैयारी थी एक गूढ़ अनुष्ठान के लिए... जो दैवीय भी होगा और घातक भी.

अनुष्ठान का शुभ मुहूर्त अब से कुछ देर बाद शुरू होने वाला था.

दोनों नए सहयोगियों ने बाबा जी की ही तरह जल से गोल घेरा बना कर अपने अपने लिए आसन बिछाए और उसपे बैठते ही मंत्रजाप प्रारंभ कर दिया.

दोनों शिष्यों ने भी प्राण रक्षा कवच का स्तोत्र पाठ करते हुए बाबा जी के स्थान से थोड़ा पीछे अपने लिए आसन बिछा कर उसपे बैठ गए. मशालों को पहले ही साथ लाए चार बांस के साथ बाँध कर उन्हें चार कोनों पर गड्ढे खोद कर गाड़ दिए गए थे.

दो लालटेनों को भी हल्के आंच पर जलता रख दिया था गोपू ने.

कुछ ही देर में वहाँ उस स्थान पर, उस वातावरण में केवल उन पाँचों के मुख से एक लय में निकलते मंत्रोच्चारण ही गूँज रहे थे... धीमे आवाज़ में.

कुछ समय ऐसे ही बीता.

मंत्रोच्चारण के स्वर धीरे धीरे अपनी गति पकड़ते हुए अब तक थोड़ी तेज़ हो चुकी बहती हवा के कारण उस निर्जन वातावरण में गूँजते हुए दूर दूर तक फैलने लगे.

कुछ समय बीतने के पश्चात गोपू और चांदू ने मंत्रोच्चारण के साथ साथ अपने साथ लाए एक विशेष कटोरे नुमा पीतल मिश्रित किसी अन्य धातु से बने उस बर्तन को वाद्ययंत्र की भांति बजाने लगे.

समय बीतने के साथ साथ मंत्रोच्चारण और वाद्ययंत्रों से निकलने वाली ध्वनियाँ तेज़ होती हवा के साथ दूर का सफ़र तय करते हुए नदी के तट तक पहुँच गए.

ध्वनियों का नदी के लहरों से टकराते ही एक भिन्न हलचल होने लगी उनमें; विशेष कर नदी के दक्षिणी दिशा में. कुछ ऐसा मानो कोई सोया हुआ अपने आसपास होती गतिविधियों के कारण धीरे धीरे नींद से जाग रहा हो.

बाबा जी, उनके शिष्यों और सहयोगियों के मंत्रपाठ में भी शनैः शनैः तीक्ष्णता बढ़ती जा रही थी. हर मंत्र का हरेक शब्द... यहाँ तक की उन शब्दों में प्रयुक्त होने वाले मात्रा तक थोड़ा थोड़ा करके एक भीषण अलौकिक व दैवीय ऊर्जा को जन्म दे रही थी.

नदी के लहरों में हलचल बढ़ने के साथ साथ बाबा जी के सामने स्थित पेड़ में भी; विशेष कर उसके पत्तियों में हलचल होने लगी. सूखी पत्तियाँ एक एक कर के नीचे गिरने लगीं.



मानो रात्रि के इस पहर में गहरी निद्रा में अब तक सोया हुआ वह पेड़ भी अंगड़ाईयाँ लेते हुए जाग रहा हो... और सूखी पत्तियाँ अंदर होते इसी करवट के परिणामस्वरूप डालियों से अलग हो कर नीचे गिर रही हैं.

बीच बीच में एक अजीब सी हल्की... दबी सी आवाज़ आ रही थी दूर कहीं से... हवाओं के साथ बहते हुए...

आवाज़ केवल बाबा जी की ही कानों से टकराई...

प्रश्न स्वयमेव ही कौंधा उनके मन में,

‘अरे... एक आवाज़ आ रही है न?! ये आवाज़.... किसकी....’

प्रश्न उनका पूरा होने से पहले ही दोबारा सुनाई दी वही आवाज़...

‘अरे... ये तो.... नहीं.. नहीं.... ये एक नहीं... वरन दो आवाजें हैं..!!’

बाबा जी ने अपना पूरा ध्यान केन्द्रित किया उस आवाज़ पर...

ऐसा करते ही अगले ही क्षण चौंक उठे;

क्योंकि आवाज़ एक नहीं.... वाकई दो आवाजें थीं... एक मर्दाना.. दूसरा जनाना..

मर्द दुःख, तड़प और पीड़ा की मार से मानो रो रहा हो... और.. जनाना; असीम आनंद की हँसी हँस रही हो... परन्तु इस जनाना की आवाज़ बहुत ही भिन्न है... अलग हट कर... बात क्या है...

‘कौन हो सकते हैं इन दो आवाजों के स्वामी?’

मन मस्तिष्क में चिंता लिए बाबा जी ने अपना कार्य जारी रखा...


और इधर,

लगभग एक साथ ही, अपने अपने घरों में, अपने अपने कमरों में गहरी नींद सोए देबू और रुना की आँखें एक साथ खुल गयीं.....

यदि कोई उस समय इनके पास खड़ा इन्हें देख रहा होता तो शायद इनके आँखें खुलते ही डर से मर गया होता.

क्योंकि दोनों की ही आँखों की पुतलियों के रंग एकदम से बदले हुए थे!

देबू की पुतलियाँ हल्की पीली – लाल मिश्रित रंग की जबकि रुना की हल्की नीली मिश्रित हरी...!

एक झटके से रुना अपने बिस्तर पर उठ बैठी...

आँखें घोर आश्चर्य से बड़ी बड़ी और गोल हो गयी थी... उसने पलट कर बगल में सोए अपने पति की ओर देखी...

नबीन बाबू घोड़े बेच कर सोने में व्यस्त थे..


रुना अपनी उन्हीं जलती आँखों से नबीन बाबू को देखती हुई उन्हें बिना छूए उनके सिर के ऊपर एक बार हाथ फिराई और फ़िर बिस्तर से उठ कर अपने कमरे से बाहर निकल गयी.....

अब देेेरी नहीं करेें, जल्द अपडेट दीजिये।
कहानी अपने अंतिम दौर में है इसलिए इसके साथ न्याय करे।
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नदी का रहस्य - by Dark Soul - 07-06-2020, 10:09 PM
RE: नदी का रहस्य - by sarit11 - 08-06-2020, 12:02 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 09-06-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Abstar - 10-06-2020, 12:10 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 16-06-2020, 03:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-06-2020, 10:53 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-06-2020, 12:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 25-06-2020, 03:20 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-06-2020, 03:18 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-06-2020, 10:42 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 27-06-2020, 03:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 27-06-2020, 11:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 04-07-2020, 10:16 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 04-07-2020, 10:33 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 06-07-2020, 01:50 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 01:01 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 11:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
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RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 18-07-2020, 07:03 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 21-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 21-07-2020, 08:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 25-07-2020, 10:55 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-07-2020, 10:04 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-07-2020, 11:13 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 31-07-2020, 01:32 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 31-07-2020, 07:08 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:25 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-08-2020, 09:15 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 07-08-2020, 02:22 PM
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RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 10-08-2020, 01:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 10-08-2020, 06:48 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 22-08-2020, 11:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-09-2020, 01:14 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 24-09-2020, 01:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-10-2020, 08:49 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 03-10-2020, 07:22 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-10-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 16-10-2020, 08:44 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-10-2020, 11:54 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 19-10-2020, 01:47 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 20-10-2020, 11:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 28-10-2020, 01:29 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 27-10-2020, 01:44 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 31-10-2020, 09:00 AM
RE: नदी का रहस्य - by sri7869 - 09-05-2024, 05:24 AM



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