24-10-2020, 01:57 PM
आदिवासी लडक़ी
रोज सुबह ऑफिस जाते वक़्त रास्ते मे एक निहायती भोली भाली सूरत वाली सावली लड़की बरगद के पेड़ के निचे अपने माँ के साथ महुआ देसी शराब बेचती नज़र आती थी ,कुछ दिन नैनों से नैन भी लड़े पर वहाँ भीड़ होने की वजह से रुक नहीं पाता था और दिन महीने बीत गए और मेरा आकर्षण तीव्रता से बढ़ता रहा और मेरे मन मे उसकी सूरत बस गई थी ।
वो अठारह उनेश की होगी उसके स्तन छोटे पर कड़क दिखते थे मालूम हो एकदम अन्छुवे सुडौल मुलायम और उसकी गाँड गोल और कमर पतली ,अक्सर वो मैली टीशर्ट और लंबी फोर्क पहने रहती और उसकी सफेद समीज देख मेरा मन डोल जाया करता ओर उसके पाव मे घुघरू वाली पायल अक्सर मेरे कानों मे छम छम की मधुरता डालती रहती और उसकी गहरी नाभि देख मेरा दिल जोरो से धधक जाता और पसिने की बूंदे सूरज की छटाओं से उसके बदन से चमकती रहती ।
एक दोपहर मैं खाना खा के रास्ते पर धीमे मोटरसायकल चलाता आ रहा था और तेज़ गर्मी की दोपहर वो मुझे रास्ते पर अकेली मिली और मैंने तुरंत रुक कर उसे घूरा और इशारे से पास बुलाया ,वो मुझे महीनों से जानती थी कि मैं रोजाना उसको घूरता हूँ जिस कारण वो हल्का जिझक्ति पास आई और मैंने उसका नाम पूछा वो इठलाती हल्का शर्माती लजाती अपना नाम सावित्री बताई और मैंने हिमत कर उसका हाथ पकड़ लिया और वो मुझे आपने कातिल आँखों से ताकती रही और मैं उसके आँखों मे देखता रहा और बोला प्लांट के पीछे जो जंगल है वहाँ एक बिराना टूटा मकान है वहाँ आना मैं इंतज़ार करूँगा और वो हल्का मुश्कुराती वहाँ से चली गईं और मैं गदगद मन से प्लांट मे पहुँच कर अलमारी से छुपाए कंडोम ले कर जंगल के जर्जर मकान मे जा बैठा और बेताबी से उसका इंतजार करने लगा । एक एक पल मुझे सदियों सा लगने लगा और वो दो घंटे बाद वहाँ आई और मैंने बिना सोचे समझे सावित्री को कस के बाहों मे भर लिया और वो थोड़ी देर बाद आपने हाथों से मेरी पीठ पकड़ी मुझे यकीन हो गया कि वो अब पट चुकी है और मैंने भी कोई जल्दबाजी नहीं कि ओर सावित्री के कोमल स्तनों को अपने सीने पर दबाता उसके पीठ को सहलता रहा और हल्के हल्के हाथों से मैंने उसके कमर को सहलाया और टीशर्ट समीज के अंदर हाथ डालता उसके नंगे पीठ को सहलाने लगा और मेरे हल्के हल्के छूने से वो उतावली होने लगी थी और वो मुझे कस कर पकड़े जा रही थी ।
मैंने बहुत देर तक उसके पीठ को सहलाया और फिर दोनों हाथों से उसके चेहरे को पकड़ उसके होंठो को चूमने लगा वो शर्मा के लाल हो चुकी थी और उसकी आंखें बंद थी और मेरा लड़ तन के तंबू बना हुआ था ।
मैंने सावित्री के नाभी को सहलाया और टीशर्ट समीज संग पकड़ उठाने लगा पर मुझे दोनों हाथों स पकड़ उतारने की मंजूरी नहीं दे रही थी पर मैंने भी उसके हाथों को अपने गले पर डाला और उसके होंठो को चुसने लगा और धीरे धीरे उसके कपड़ो को उठाने लगा और वो विरोद कर के भी साथ देने लगी और मैंने उसके वस्त्र उतार जमीन पर फेक दिया और वो मुझसे लिपट गई, अब वो मेरे बाहों मे निर्वस्त्र लिपटी थी और मैं उसके कोमल स्तनों को छूने मसलने चुसने को बेताब हुआ जा रहा था कि मैंने उसे पलट कर अपने हाथों को उसके कोमल स्तनों पर रख सहलाया और पीछे से उसके गर्दन पर चुम्बन करने लगा ओर वो धीरे धीरे कामुक्ता के माया जाल मे डूबने लगी ओर सिशकिया फुट पड़ी और मैंने मौका देख उसके कमर से उसकी फोर्क को नीचे किया पर सावित्री के हाथों ने मेरे हाथों को कस के जकड़ा पर अब वो विरोध भी कामुक्ता के पूर्व हल्की शर्म हया का था जो थोड़ी देर मे जाता गया और फोर्क के साथ उसकी इलास्टिक वाली बड़ी पैंटी भी सरकती नीचे जाने लगी और मेरा हाथ उसके कोमल पसिने से भीगे झांटो पर पहुँच गया और हल्के हाथों से मैंने उसके चप चप करती मुलायम चुत पर उँगलियों से ज्यूँ ही हरकत की वो पूरी ताकत से मुड़ मेरे सीने से आ लिपटी और मैं उसके गाँड पर हाथ फेरता बोला सावित्री मुझसे कैसी लाज और वो गाँव की भोली आदिवासी लड़की बस लिपट तेज़ सासों से मेरे बदन पर हवस बढ़ती रही और मैंने सावित्री को उसके ही उतारे कपड़ों पर जमीन पर लेटा ऊपर चढ़ उसके हलके भूरे निपल्लों को चुसने लगा ओर वो बाहों के हार डाले मुझसे लिपट आहे भरने लगी और एक हाथ से मैंने सावित्री के चुत का जायजा लिया जो बेताब हुए गरम के साथ पूरी तरह योवन रस से तरबतर थी और मेरी उँगलियों को वो अपने टाँगों से दबाती जा रही थी मानो वो शर्मा के मुझे अपने बेताबी से रूबरू न होने देना चाहती थी पर मैं ना जाने कितने दिनों से सावित्री को पा लेने के लिए तड़प रहा था और अब जब वो मेरे नीचे नंगी पड़ी थी अब बिना चोदे रहना मेरे लिए मुमकिन न था और मैंने उसके हाथों को जकड़ सर के ऊपर करते उसके होंठो को चुसने लगा और हलके हलके उसके झाघो को फैलाने लगा और थोड़े देर मे है उसकी टाँगे फैली हुई थी और मैं उसके चुत पर उंगलियां फेरता उसको हवस के आग मे झोंकने लगा और एक उँगली के अंदर डालते ही सावित्री सकपका गई ओर मैं बोल पड़ा सावित्री क्या किसी ने तुम्हें छुवा नहीं वो शर्माती ना मे सर हिलाई और मेरी खुशी चौगुनी हो गई और मैंने उसके होंठो को बेताहाशा चूसने लगा और जब वो कमर हिलाने लगी तब मौका देख उसके टाँगों के बीच पहुँच चुत पर मुँह लगा दिया ओर सावित्री मेरे चाटने से यू बेताब हुई कि मेरे बालों को कस के पकड़ हलके तेज़ आवाज़ से आहे भरने लगी और कुछ मिनटों मे मेरी बरसों की प्यास सावित्री के चुत के पानी से बुझने लगी और वो कमर उठा अपने जीवन का पहला योन सुख पाते ही पसिने से तरबतर होती निढ़ाल सी हो गई और मैंने उसके चुत का रस चाट कर सूखा दिया और उठ कर जल्दी से अपने कपड़ों को उतार कर उसके हाथ मे अपना लड़ पकड़ा दिया और सोचा क्यों न इस जवानी को पहले दिन से ही मौखिक योन सुख का अभ्यस्त कर दु की बरसों इसे मन मुताबिक खाऊ ओर ये मेरी प्यासी बन जाए । वो मेरे लड़ को कसकर हथेली पर जकड़े थी ओर मैंने बोला सावित्री उठ कर चुसोगी नहीं वो बेचारी भोली लडक़ी मेरी चुत चाटने से चर्मसुख का अनुभव करने के बाद मानो बिल्कुल उतावली हुई पड़ी हो और वो उठ कर मेरे लड़ को मुँह मे लेती अनुभवहीन की तरह चुसने लगी पर मैंने उसे जब समझाया कि चुसने वाली चॉकलेट की तरह चुसो तो वो वैसे ही चुसने लगी और मैं उसके सर के बालों को कस के पकड़ कर आग की तरह तपने लगा था और अचानक से मिली इतनी खुशी से मेरा सीघ्र पतन तय था इसलिए मैंने सावित्री से बोला जो भी मुँह मे निकलेगा पी लेना वो हाँ मैं सर हिलाई और पॉच मिनटों मे मेरा लड़ सावित्री के मुँह मे अनगिनत धार मारने लगा और बेचारी लाख कोशिश करती रही पर उसके होंठो के दोनों तरफ से मेरा मुठ बहने लगा आखिर इतने महीने मैंने जो तड़प तड़प तड़प गुज़री थी उसके फलस्वरूप मेरा लड़ धार बरसाता रहा और वो गटक कर मेरे वीर्य को पीती रही और मैंने सपूर्ण सुख भोगते सावित्री के मुँह मे है लड़ आगे पीछे करने लगा और एक एक बूंद वो चूस पी गई और उसके होंठो के पास जो कुछ बूंदे बह निकली थी वो मैंने लड़ से उठा सावित्री को चटवा दिया और वो एक झलक मुझे घूर मुँह फेर शर्मा कर अपने वस्त्रों को उठाने लगी पर असली मज़ा तो बाकी था ।
मैंने उसके हाथों से कपड़े ले कर बोला सावित्री वो लजाती फिर मेरे बदन से आ चिपकी और मैंने उसके गाँड के गोलाई को हाथों से दबाते उसके पसिने से गीले जिस्म को अपने सीने पर दबाते वापस कड़कपन की ओर बढ़ने लगा और मेरा लड़ तंबू बन सावित्री के नाभी पर दबने लगा और वो समझ गई उसने अपने हाथों को मेरे पीठ पर कस के पकड़े रखा और मैंने सावित्री को वापस जमीन पर लेटा दिया और उसके टाँगों को खोल अपने लड़ को उसके चुत के ऊपर रगड़ने लगा लगा और मेरा लड़ सावित्री के सख्त चुत को फाड़ने को मचलने लगा पर मैंने धर्य से लड़ तब तक रगड़ता रहा जब तक सावित्री की कमर हिचकोले न मारने लगी और हल्का पानी जैसे ही उसके चुत पर आया मैंने अपने लड़ का सुपाड़ा उसके चुत पर रखा और सावित्री के ऊपर चढ़ कर उसके होंठो को चूमते उसके हाथों को जकड़ कर एक हल्का धक्का लगाया और मेरा लड़ सावित्री के कुँवारी चुत के अंदर जाने लगा और वो दर्द से छटपटाती रही पर मेरा लड़ उसके सुर्ख़ सकरी चुत मे रागड़खाते जलने लगा और मेरा जोश बढ़ते रहा ये सोच क्या मस्त चुत मिली चोदने को ,थोड़ी देर हौले हौले लड़ घिसने के बाद जब सावित्री थोड़ा साथ देने लगी मैंने उसके हाथों को छोड़ा वो मेरे गर्दन को पकड़ कर एक नज़र मुझे देख शर्म से आँखे बूँद ली फिर मैंने अपने जानवर को जागृत करते उसके मदमस्त सकरी कुँवारी चुत को धक्कों से इतना चोदा की सावित्री की चुत खुशी से झड़ने लगी और वो मुझे इतना ज़ोर से पकड़ी की मानो वो योन सुख से अत्यंत खुश हो गई हो और सावित्री के चुत का रस अपने लड़ पर पा कर मेरा प्यार उमड़ आया और वीर्य त्याग करने से पहले मैंने लड़ उसके चुत के ऊपर रख घिसा और तेज़ रफ़्तार मेरा वीर्य सावित्री के गर्दन तक छलक गया और अनगिनत वीर्य की बूंदे उसके जिस्म पर जहाँ तहाँ पड़ने लगी और मैंने परमानंद प्राप्त कर सावित्री के ऊपर ही निढ़ाल हो हाँफते हाँफते अपने लड़ के दर्द को महसूस किया और सावित्री मुझे पकड़ी धीमे आवाज़ मे बोली बहुत दर्द हो रहा है ।
समाप्त ।
रोज सुबह ऑफिस जाते वक़्त रास्ते मे एक निहायती भोली भाली सूरत वाली सावली लड़की बरगद के पेड़ के निचे अपने माँ के साथ महुआ देसी शराब बेचती नज़र आती थी ,कुछ दिन नैनों से नैन भी लड़े पर वहाँ भीड़ होने की वजह से रुक नहीं पाता था और दिन महीने बीत गए और मेरा आकर्षण तीव्रता से बढ़ता रहा और मेरे मन मे उसकी सूरत बस गई थी ।
वो अठारह उनेश की होगी उसके स्तन छोटे पर कड़क दिखते थे मालूम हो एकदम अन्छुवे सुडौल मुलायम और उसकी गाँड गोल और कमर पतली ,अक्सर वो मैली टीशर्ट और लंबी फोर्क पहने रहती और उसकी सफेद समीज देख मेरा मन डोल जाया करता ओर उसके पाव मे घुघरू वाली पायल अक्सर मेरे कानों मे छम छम की मधुरता डालती रहती और उसकी गहरी नाभि देख मेरा दिल जोरो से धधक जाता और पसिने की बूंदे सूरज की छटाओं से उसके बदन से चमकती रहती ।
एक दोपहर मैं खाना खा के रास्ते पर धीमे मोटरसायकल चलाता आ रहा था और तेज़ गर्मी की दोपहर वो मुझे रास्ते पर अकेली मिली और मैंने तुरंत रुक कर उसे घूरा और इशारे से पास बुलाया ,वो मुझे महीनों से जानती थी कि मैं रोजाना उसको घूरता हूँ जिस कारण वो हल्का जिझक्ति पास आई और मैंने उसका नाम पूछा वो इठलाती हल्का शर्माती लजाती अपना नाम सावित्री बताई और मैंने हिमत कर उसका हाथ पकड़ लिया और वो मुझे आपने कातिल आँखों से ताकती रही और मैं उसके आँखों मे देखता रहा और बोला प्लांट के पीछे जो जंगल है वहाँ एक बिराना टूटा मकान है वहाँ आना मैं इंतज़ार करूँगा और वो हल्का मुश्कुराती वहाँ से चली गईं और मैं गदगद मन से प्लांट मे पहुँच कर अलमारी से छुपाए कंडोम ले कर जंगल के जर्जर मकान मे जा बैठा और बेताबी से उसका इंतजार करने लगा । एक एक पल मुझे सदियों सा लगने लगा और वो दो घंटे बाद वहाँ आई और मैंने बिना सोचे समझे सावित्री को कस के बाहों मे भर लिया और वो थोड़ी देर बाद आपने हाथों से मेरी पीठ पकड़ी मुझे यकीन हो गया कि वो अब पट चुकी है और मैंने भी कोई जल्दबाजी नहीं कि ओर सावित्री के कोमल स्तनों को अपने सीने पर दबाता उसके पीठ को सहलता रहा और हल्के हल्के हाथों से मैंने उसके कमर को सहलाया और टीशर्ट समीज के अंदर हाथ डालता उसके नंगे पीठ को सहलाने लगा और मेरे हल्के हल्के छूने से वो उतावली होने लगी थी और वो मुझे कस कर पकड़े जा रही थी ।
मैंने बहुत देर तक उसके पीठ को सहलाया और फिर दोनों हाथों से उसके चेहरे को पकड़ उसके होंठो को चूमने लगा वो शर्मा के लाल हो चुकी थी और उसकी आंखें बंद थी और मेरा लड़ तन के तंबू बना हुआ था ।
मैंने सावित्री के नाभी को सहलाया और टीशर्ट समीज संग पकड़ उठाने लगा पर मुझे दोनों हाथों स पकड़ उतारने की मंजूरी नहीं दे रही थी पर मैंने भी उसके हाथों को अपने गले पर डाला और उसके होंठो को चुसने लगा और धीरे धीरे उसके कपड़ो को उठाने लगा और वो विरोद कर के भी साथ देने लगी और मैंने उसके वस्त्र उतार जमीन पर फेक दिया और वो मुझसे लिपट गई, अब वो मेरे बाहों मे निर्वस्त्र लिपटी थी और मैं उसके कोमल स्तनों को छूने मसलने चुसने को बेताब हुआ जा रहा था कि मैंने उसे पलट कर अपने हाथों को उसके कोमल स्तनों पर रख सहलाया और पीछे से उसके गर्दन पर चुम्बन करने लगा ओर वो धीरे धीरे कामुक्ता के माया जाल मे डूबने लगी ओर सिशकिया फुट पड़ी और मैंने मौका देख उसके कमर से उसकी फोर्क को नीचे किया पर सावित्री के हाथों ने मेरे हाथों को कस के जकड़ा पर अब वो विरोध भी कामुक्ता के पूर्व हल्की शर्म हया का था जो थोड़ी देर मे जाता गया और फोर्क के साथ उसकी इलास्टिक वाली बड़ी पैंटी भी सरकती नीचे जाने लगी और मेरा हाथ उसके कोमल पसिने से भीगे झांटो पर पहुँच गया और हल्के हाथों से मैंने उसके चप चप करती मुलायम चुत पर उँगलियों से ज्यूँ ही हरकत की वो पूरी ताकत से मुड़ मेरे सीने से आ लिपटी और मैं उसके गाँड पर हाथ फेरता बोला सावित्री मुझसे कैसी लाज और वो गाँव की भोली आदिवासी लड़की बस लिपट तेज़ सासों से मेरे बदन पर हवस बढ़ती रही और मैंने सावित्री को उसके ही उतारे कपड़ों पर जमीन पर लेटा ऊपर चढ़ उसके हलके भूरे निपल्लों को चुसने लगा ओर वो बाहों के हार डाले मुझसे लिपट आहे भरने लगी और एक हाथ से मैंने सावित्री के चुत का जायजा लिया जो बेताब हुए गरम के साथ पूरी तरह योवन रस से तरबतर थी और मेरी उँगलियों को वो अपने टाँगों से दबाती जा रही थी मानो वो शर्मा के मुझे अपने बेताबी से रूबरू न होने देना चाहती थी पर मैं ना जाने कितने दिनों से सावित्री को पा लेने के लिए तड़प रहा था और अब जब वो मेरे नीचे नंगी पड़ी थी अब बिना चोदे रहना मेरे लिए मुमकिन न था और मैंने उसके हाथों को जकड़ सर के ऊपर करते उसके होंठो को चुसने लगा और हलके हलके उसके झाघो को फैलाने लगा और थोड़े देर मे है उसकी टाँगे फैली हुई थी और मैं उसके चुत पर उंगलियां फेरता उसको हवस के आग मे झोंकने लगा और एक उँगली के अंदर डालते ही सावित्री सकपका गई ओर मैं बोल पड़ा सावित्री क्या किसी ने तुम्हें छुवा नहीं वो शर्माती ना मे सर हिलाई और मेरी खुशी चौगुनी हो गई और मैंने उसके होंठो को बेताहाशा चूसने लगा और जब वो कमर हिलाने लगी तब मौका देख उसके टाँगों के बीच पहुँच चुत पर मुँह लगा दिया ओर सावित्री मेरे चाटने से यू बेताब हुई कि मेरे बालों को कस के पकड़ हलके तेज़ आवाज़ से आहे भरने लगी और कुछ मिनटों मे मेरी बरसों की प्यास सावित्री के चुत के पानी से बुझने लगी और वो कमर उठा अपने जीवन का पहला योन सुख पाते ही पसिने से तरबतर होती निढ़ाल सी हो गई और मैंने उसके चुत का रस चाट कर सूखा दिया और उठ कर जल्दी से अपने कपड़ों को उतार कर उसके हाथ मे अपना लड़ पकड़ा दिया और सोचा क्यों न इस जवानी को पहले दिन से ही मौखिक योन सुख का अभ्यस्त कर दु की बरसों इसे मन मुताबिक खाऊ ओर ये मेरी प्यासी बन जाए । वो मेरे लड़ को कसकर हथेली पर जकड़े थी ओर मैंने बोला सावित्री उठ कर चुसोगी नहीं वो बेचारी भोली लडक़ी मेरी चुत चाटने से चर्मसुख का अनुभव करने के बाद मानो बिल्कुल उतावली हुई पड़ी हो और वो उठ कर मेरे लड़ को मुँह मे लेती अनुभवहीन की तरह चुसने लगी पर मैंने उसे जब समझाया कि चुसने वाली चॉकलेट की तरह चुसो तो वो वैसे ही चुसने लगी और मैं उसके सर के बालों को कस के पकड़ कर आग की तरह तपने लगा था और अचानक से मिली इतनी खुशी से मेरा सीघ्र पतन तय था इसलिए मैंने सावित्री से बोला जो भी मुँह मे निकलेगा पी लेना वो हाँ मैं सर हिलाई और पॉच मिनटों मे मेरा लड़ सावित्री के मुँह मे अनगिनत धार मारने लगा और बेचारी लाख कोशिश करती रही पर उसके होंठो के दोनों तरफ से मेरा मुठ बहने लगा आखिर इतने महीने मैंने जो तड़प तड़प तड़प गुज़री थी उसके फलस्वरूप मेरा लड़ धार बरसाता रहा और वो गटक कर मेरे वीर्य को पीती रही और मैंने सपूर्ण सुख भोगते सावित्री के मुँह मे है लड़ आगे पीछे करने लगा और एक एक बूंद वो चूस पी गई और उसके होंठो के पास जो कुछ बूंदे बह निकली थी वो मैंने लड़ से उठा सावित्री को चटवा दिया और वो एक झलक मुझे घूर मुँह फेर शर्मा कर अपने वस्त्रों को उठाने लगी पर असली मज़ा तो बाकी था ।
मैंने उसके हाथों से कपड़े ले कर बोला सावित्री वो लजाती फिर मेरे बदन से आ चिपकी और मैंने उसके गाँड के गोलाई को हाथों से दबाते उसके पसिने से गीले जिस्म को अपने सीने पर दबाते वापस कड़कपन की ओर बढ़ने लगा और मेरा लड़ तंबू बन सावित्री के नाभी पर दबने लगा और वो समझ गई उसने अपने हाथों को मेरे पीठ पर कस के पकड़े रखा और मैंने सावित्री को वापस जमीन पर लेटा दिया और उसके टाँगों को खोल अपने लड़ को उसके चुत के ऊपर रगड़ने लगा लगा और मेरा लड़ सावित्री के सख्त चुत को फाड़ने को मचलने लगा पर मैंने धर्य से लड़ तब तक रगड़ता रहा जब तक सावित्री की कमर हिचकोले न मारने लगी और हल्का पानी जैसे ही उसके चुत पर आया मैंने अपने लड़ का सुपाड़ा उसके चुत पर रखा और सावित्री के ऊपर चढ़ कर उसके होंठो को चूमते उसके हाथों को जकड़ कर एक हल्का धक्का लगाया और मेरा लड़ सावित्री के कुँवारी चुत के अंदर जाने लगा और वो दर्द से छटपटाती रही पर मेरा लड़ उसके सुर्ख़ सकरी चुत मे रागड़खाते जलने लगा और मेरा जोश बढ़ते रहा ये सोच क्या मस्त चुत मिली चोदने को ,थोड़ी देर हौले हौले लड़ घिसने के बाद जब सावित्री थोड़ा साथ देने लगी मैंने उसके हाथों को छोड़ा वो मेरे गर्दन को पकड़ कर एक नज़र मुझे देख शर्म से आँखे बूँद ली फिर मैंने अपने जानवर को जागृत करते उसके मदमस्त सकरी कुँवारी चुत को धक्कों से इतना चोदा की सावित्री की चुत खुशी से झड़ने लगी और वो मुझे इतना ज़ोर से पकड़ी की मानो वो योन सुख से अत्यंत खुश हो गई हो और सावित्री के चुत का रस अपने लड़ पर पा कर मेरा प्यार उमड़ आया और वीर्य त्याग करने से पहले मैंने लड़ उसके चुत के ऊपर रख घिसा और तेज़ रफ़्तार मेरा वीर्य सावित्री के गर्दन तक छलक गया और अनगिनत वीर्य की बूंदे उसके जिस्म पर जहाँ तहाँ पड़ने लगी और मैंने परमानंद प्राप्त कर सावित्री के ऊपर ही निढ़ाल हो हाँफते हाँफते अपने लड़ के दर्द को महसूस किया और सावित्री मुझे पकड़ी धीमे आवाज़ मे बोली बहुत दर्द हो रहा है ।
समाप्त ।