13-03-2019, 06:10 PM
(This post was last modified: 19-08-2019, 08:22 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
छुटकी
देख के कोई कह नहीं सकता था की नयी बहु नहीं है 'वो '
और जो कुछ नयी बहु से करवाया जाता था वो सब करवाया गया।
मोहल्ले का कुँवा झंकवाया गया , घर घर जाके बुजुर्ग औरतों के पाँव छुए ,
एक जगह तो ढोलक भी उनसे बजवाई गई
और कहीं आशीर्वाद भी मिला , ठीक नौ महीने में सोहर हो।
और साथ में जबरदंग होली भी हर घर में सलहज और साली के साथ।
शायद ही कोई साली , सलहज बची होगी
जिसका जम के जोबन मरदन और योनि मसलन और ऊँगली से गहराई कि नाप जोख उन्होंने न की हो।
और साली सलहजो ने उनसे भी ज्यादा , उनके मस्त जबरदंग औजार के मजे लिए.
आखिर वो होली क्या , जिसमें सलहज साली , नंदोई , जीजा के साथ मस्ती न करें।
हम सब घर लौटे तो दो बजने वाले थे। बस उसी आंगन में नहाये।
कुछ रंग छूटा , ज्यादा नहीं छूटा।
लेकिन होली का रंग अगर एक दिन में छूट जाए तो कौन सा रंग।
मम्मी ने खाना बना रखा था , पूड़ी , कचौड़ी , पूआ , तरह तरह की सब्जी।
दो साली और सास खिलाने वाली , पूछ के जिद के कर के , अपने हाथ से , जम के खाया इन्होने।
और खाने के बाद मैं और ये अपने कमरे में सो गए , एकदम चिपक कर।
तुरन्त नींद आ गयी ( सच कोई बदमाशी नहीं की , कितने रातों की मैं जगी थी , और इन्होने अपनी ताकत ससुराल वालियों के लिए बचा रखी थी ) . ये तो जल्दी उठगये मैं देर तक सोती रही। उठी तो शाम , नीम की फुनगियों से आँगन में उतर आयी थी।
मैं निकली तो ये बरामदे में बैठे हुए थे ,भुकुरे। मुंह उतरा। मैंने लाख पुछा , लेकिन उन्होंने नहीं बताया।
मम्मी किचेन में थी वो भी थोड़ी उदास। थोड़ी देर बाद पता चला गड़बड़ क्या हुयी।
कुछ छुटकी की गलती , कुछ इनकी गलती।
लेकिन मैं इनकी गलती ज्यादा मानती थी। इनको सोचना चाहिए था की ससुराल में है कहीं ,…
हुआ ये की तिजहरिया में जब सब सो रहे थे इन्होने छुटकी पे घात लगायी ,
सुबह मंझली के साथ तो इन्होने मजे लिए ही थी और ऊपर झाँपर का छुटकी के साथ भी खूब लिया था।
लेकिन 'गृह प्रवेश ' नहीं हुआ था।
छुटकी ने शुरू में थोड़े नखड़े बनाये , नहीं जीजा नहीं , और इन्होने थोड़ी जबरदस्ती की।
खेल तमाशा शुरू हुआ। टिकोरों के मजे तो उन्होंने खूब लिए ,
लेकिन जब गली में घुसने का समय आया तो गड़बड़ हो गयी
वो भी तो थी बस अभी जवानी की दहलीज पे खड़ी , ९वें में पढ़ने वाली किशोरी , कच्ची कली कचनार की।
जब उन्होंने अपना औजार उस की परी पे थोड़ी देर रगड़ा , तब तक वो सिसकारी भरती रही।
लेकिन अंगूठे से फैला के जब उन्होंने उस की कच्ची कली में ठेला तो वो बहुत जोर से चिल्लाई।
और उनके एक एक दो धक्के के बाद ही उसके आंसू निकलने लगे।
अभी सुपाड़ा ठीक से घुसा भी नहीं था।
फिर वो जोर जोर से चिल्लाने लगी ,
" प्लीज जीजू , छोड़ दीजिये , मुझे नहीं करवाना। बहोत दर्द हो रहा है। निकाल लीजिये। "
उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी और जिद करती रही , मुझे नहीं करवाना। एकदम नहीं।
और उनका भी मूड बिगड़ गया , उन्होंने निकाल लिया और चले गए।
तब से उनका मूड भुकरा था।
मम्मी ने छुटकी को भी समझाया , वो भी मान रही थी कि उससे गड़बड़ हुयी लेकिन अब क्या कर सकते थे।
मेरी पूरी सहानुभति उनके साथ थी , लेकिन मुझे ये भी लग रहा की गलती उन्ही से हुयी।
चिल्लाने देते छुटकी को , पेल देते उसकी दोनों कलाई पकड़ के। एक बार लंड ठीक से घुस जाता , तो बस लाख चूतड़ पटकती , बिना चोदे नहीं छोड़ते।
कुछ देर में खुद ही उसे मजा आने लगता। लेकिन कौन समझाए , ये भी। कोई जरा भी रोये चिल्लाये तो देख नहीं सकते।
मैं छुटकी के पास गयी।
सोचा उसे डाँटूगी।
लेकिन वो खुद रुंआसी बैठी थी। मेरी गोद में सर रख कर उस की डब डब हो रही आँखों से आंसू गिरने लगे।
" दी , सारी गलती मेरी है। मैं भी बेवकूफ हूँ। जीजा जी ,
बिचारे इतनी मुस्किल से होली में आये , अपना घर छोड़ के। और मैं भी , थोडा सा दर्द बर्दास्त कर लेती ,
मुझे नहीं लग रहा था की वो निकाल ,…
कितने गुस्सा हैं। अब तो नहीं लगता जिंदगी भर मुझसे बोलेंगे। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं उनसे माफी माँगने को तैयार हूँ , प्लीज दी एक बार जीजू से बोल दो न , मुझसे बात कर लें। अब कभी मैं ,… "
मैं बाहर निकली तो ये अब बरामदे में नहीं थे ना मेरे कमरे में।
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किधर गए वो ?
फिर लगा शायद बाहर घूमने निकल गए होंगे।
तब तक रीतू भाभी आ गयी।
देख के कोई कह नहीं सकता था की नयी बहु नहीं है 'वो '
और जो कुछ नयी बहु से करवाया जाता था वो सब करवाया गया।
मोहल्ले का कुँवा झंकवाया गया , घर घर जाके बुजुर्ग औरतों के पाँव छुए ,
एक जगह तो ढोलक भी उनसे बजवाई गई
और कहीं आशीर्वाद भी मिला , ठीक नौ महीने में सोहर हो।
और साथ में जबरदंग होली भी हर घर में सलहज और साली के साथ।
शायद ही कोई साली , सलहज बची होगी
जिसका जम के जोबन मरदन और योनि मसलन और ऊँगली से गहराई कि नाप जोख उन्होंने न की हो।
और साली सलहजो ने उनसे भी ज्यादा , उनके मस्त जबरदंग औजार के मजे लिए.
आखिर वो होली क्या , जिसमें सलहज साली , नंदोई , जीजा के साथ मस्ती न करें।
हम सब घर लौटे तो दो बजने वाले थे। बस उसी आंगन में नहाये।
कुछ रंग छूटा , ज्यादा नहीं छूटा।
लेकिन होली का रंग अगर एक दिन में छूट जाए तो कौन सा रंग।
मम्मी ने खाना बना रखा था , पूड़ी , कचौड़ी , पूआ , तरह तरह की सब्जी।
दो साली और सास खिलाने वाली , पूछ के जिद के कर के , अपने हाथ से , जम के खाया इन्होने।
और खाने के बाद मैं और ये अपने कमरे में सो गए , एकदम चिपक कर।
तुरन्त नींद आ गयी ( सच कोई बदमाशी नहीं की , कितने रातों की मैं जगी थी , और इन्होने अपनी ताकत ससुराल वालियों के लिए बचा रखी थी ) . ये तो जल्दी उठगये मैं देर तक सोती रही। उठी तो शाम , नीम की फुनगियों से आँगन में उतर आयी थी।
मैं निकली तो ये बरामदे में बैठे हुए थे ,भुकुरे। मुंह उतरा। मैंने लाख पुछा , लेकिन उन्होंने नहीं बताया।
मम्मी किचेन में थी वो भी थोड़ी उदास। थोड़ी देर बाद पता चला गड़बड़ क्या हुयी।
कुछ छुटकी की गलती , कुछ इनकी गलती।
लेकिन मैं इनकी गलती ज्यादा मानती थी। इनको सोचना चाहिए था की ससुराल में है कहीं ,…
हुआ ये की तिजहरिया में जब सब सो रहे थे इन्होने छुटकी पे घात लगायी ,
सुबह मंझली के साथ तो इन्होने मजे लिए ही थी और ऊपर झाँपर का छुटकी के साथ भी खूब लिया था।
लेकिन 'गृह प्रवेश ' नहीं हुआ था।
छुटकी ने शुरू में थोड़े नखड़े बनाये , नहीं जीजा नहीं , और इन्होने थोड़ी जबरदस्ती की।
खेल तमाशा शुरू हुआ। टिकोरों के मजे तो उन्होंने खूब लिए ,
लेकिन जब गली में घुसने का समय आया तो गड़बड़ हो गयी
वो भी तो थी बस अभी जवानी की दहलीज पे खड़ी , ९वें में पढ़ने वाली किशोरी , कच्ची कली कचनार की।
जब उन्होंने अपना औजार उस की परी पे थोड़ी देर रगड़ा , तब तक वो सिसकारी भरती रही।
लेकिन अंगूठे से फैला के जब उन्होंने उस की कच्ची कली में ठेला तो वो बहुत जोर से चिल्लाई।
और उनके एक एक दो धक्के के बाद ही उसके आंसू निकलने लगे।
अभी सुपाड़ा ठीक से घुसा भी नहीं था।
फिर वो जोर जोर से चिल्लाने लगी ,
" प्लीज जीजू , छोड़ दीजिये , मुझे नहीं करवाना। बहोत दर्द हो रहा है। निकाल लीजिये। "
उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी और जिद करती रही , मुझे नहीं करवाना। एकदम नहीं।
और उनका भी मूड बिगड़ गया , उन्होंने निकाल लिया और चले गए।
तब से उनका मूड भुकरा था।
मम्मी ने छुटकी को भी समझाया , वो भी मान रही थी कि उससे गड़बड़ हुयी लेकिन अब क्या कर सकते थे।
मेरी पूरी सहानुभति उनके साथ थी , लेकिन मुझे ये भी लग रहा की गलती उन्ही से हुयी।
चिल्लाने देते छुटकी को , पेल देते उसकी दोनों कलाई पकड़ के। एक बार लंड ठीक से घुस जाता , तो बस लाख चूतड़ पटकती , बिना चोदे नहीं छोड़ते।
कुछ देर में खुद ही उसे मजा आने लगता। लेकिन कौन समझाए , ये भी। कोई जरा भी रोये चिल्लाये तो देख नहीं सकते।
मैं छुटकी के पास गयी।
सोचा उसे डाँटूगी।
लेकिन वो खुद रुंआसी बैठी थी। मेरी गोद में सर रख कर उस की डब डब हो रही आँखों से आंसू गिरने लगे।
" दी , सारी गलती मेरी है। मैं भी बेवकूफ हूँ। जीजा जी ,
बिचारे इतनी मुस्किल से होली में आये , अपना घर छोड़ के। और मैं भी , थोडा सा दर्द बर्दास्त कर लेती ,
मुझे नहीं लग रहा था की वो निकाल ,…
कितने गुस्सा हैं। अब तो नहीं लगता जिंदगी भर मुझसे बोलेंगे। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं उनसे माफी माँगने को तैयार हूँ , प्लीज दी एक बार जीजू से बोल दो न , मुझसे बात कर लें। अब कभी मैं ,… "
मैं बाहर निकली तो ये अब बरामदे में नहीं थे ना मेरे कमरे में।
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किधर गए वो ?
फिर लगा शायद बाहर घूमने निकल गए होंगे।
तब तक रीतू भाभी आ गयी।