13-10-2020, 10:49 PM
(This post was last modified: 13-10-2020, 11:02 PM by sanskari_shikha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अगले दिन जब अंशिका का फोन आया तो मैंने उसे शाम को घर आने को कहा, पर उसने कहा की घर पर किसी का डिनर है, इसलिए नहीं आ पाएगी..तय्यारी करनी है और संडे को तो वैसे भी वो घर से निकलती ही नहीं थी. शाम तक मम्मी-पापा भी आ गए.
मुझे काफी अच्छा लगा, इतने दिनों के बाद मम्मी के हाथो का खाना खाने को मिला, मम्मी पूरा दिन शादी की बाते बताती रही, ये हुआ, वो हुआ. कुल मिलकर वो अब पापा के रिश्तेदारों से नाराज नहीं थी. मैंने उन्हें अपने फ्रेंड्स के साथ टूर पर जाने के बारे में बताया, उन्होंने इजाजत दे दी.
रात को मेरी अंशिका से फिर से बात हुई. वो भी मुझसे मिलने को कुलबुला रही थी. पिछले चार दिनों से मैंने उसे देखा भी नहीं था. मैंने सोच लिया की मंडे को किसी भी हालत में उससे मिलके रहूँगा..उसका फोन आया 11 बजे, पर मैंने उसे कुछ नहीं बताया, और फिर सीधा उसकी छुट्टी के समय मैं उसके कॉलेज के सामने पहुँच गया, अपनी बाईक लेकर.
मैं उसका इन्तजार कर ही रहा था की मुझे पीछे से किट्टी में की आवाज आई...: अरे विशाल...कहाँ रहते हो तुम आजकल.
मैंने उनकी तरफ देखा, वो अपनी प्यासी नजरो से मुझे घूरने में लगी हुई थी.
मैं: अरे मैम...कैसी है आप??
किट्टी मैम: चुप रहो तुम. तुमने तो आजकल दिखाई देना ही बंद कर दिया है. ज्यादा ही बिजी हो आजकल. कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ मैं.
वो अपनी चूत वाले हिस्से तक अपने हाथ ले गयी और वहां खुजा कर वापिस ऊपर ले आई.
किट्टी मैम: चलो कोई बात नहीं. अब तो तुम चार दिनों तक मेरे साथ ही रहोगे. अपनी कजन बहन अंशिका से थोडा दूर ही रहना. ताकि मेरे साथ ज्यादा टाईम निकाल सको...समझे..
मैं समझ गया की इस पिकनिक वाले टूर में ये आंटी मेरे लंड का कचूमर बनाकर रहेगी और दूसरी तरफ इसकी हॉट बेटी स्नेहा भी तो है.
मैं: ओके मेडम...जैसा आप चाहोगी, मैं वैसा ही करूँगा. .वैसे आपकी फेमिली में से कौन जा रहा है.
किट्टी मैम: सीधा पूछो न की स्नेहा जा रही है या नहीं.
मैं झेंप गया...
किटी मैम: नहीं...स्नेहा नहीं जा रही, उसके एग्साम है, चार दिन की छुट्टी लेकर वो नहीं चल सकती. मेरा बेटा सचिन चल रहा है..
मैं: ओहो...कोई बात नहीं. आप तो होंगी ही न वहां. अपनी बेटी के बदले के मजे आप ले लेना.
किटी मैम: बदमाश.
वो कुछ और बोलती, पर तभी अंशिका आती हुई दिखाई दी. वो मुझे देखकर हैरान रह गयी.
अंशिका: अरे विशाल...तुम यहाँ..?
मैं: मैं इधर से ही जा रहा था, सोचा तुम्हे घर छोड़ता चलू.
अंशिका वैसे ही मुझे देखकर काफी खुश थी, मेरी बात सुनकर और उसका मतलब समझकर, उसके चेहरे का रंग लाल हो गया.
किटी मैम: ओके जी...तुम दोनों भाई बहन जाओ. मैं चलती हूँ और विशाल. कल मिलते हैं.
मैंने और अंशिका ने उन्हें बाय कहा और वो चली गयी..
उनके जाते ही अंशिका मेरे बिलकुल पास आकर खड़ी हो गयी, उसने आज पिंक कलर की साडी और स्लीवलेस ब्लाउस पहना हुआ था, जिसमे वो बड़ी ही सेक्सी लग रही थी. उसकी जांघे मेरी टांगो से टच कर रही थी.
अंशिका: मुझे तुम्हारा ये सर्प्राईस अच्छा लगा.
मैं: मैं अगर तुमसे आज नहीं मिलता तो मैं खुद मरने के कगार पर पहुँच जाता.
अंशिका ने अपनी कोमल उंगलिया एक झटके से मेरे होंठो पर रख दी. और बोली: खबरदार...ऐसी बात अगर मुंह से निकाली तो और फिर जब उसे एहसास हुआ की वो कॉलेज के बाहर खड़ी है तो उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया और घूमकर मेरे पीछे आई और बाईक पर बैठ गयी.
अंशिका: चलो यहाँ से.
मैं: कहाँ चलू...तुम्हारे घर क्या..
अंशिका: नहीं..घर नहीं..कही भी चलो.
मैं: समझ गया की आज इसकी चूत में कुछ ज्यादा ही कुलबुलाहट हो रही है.
मैं बाईक चलाते हुए सोचने लगा की मैं अंशिका को कहाँ लेकर जाऊ. पर उसके पीठ पर चुभ रहे मुम्मे मुझे सोचने ही नहीं दे रहे थे. मैंने बाईक चलाते-चलाते उससे बात की: तुमने तैयारी कर ली कल जाने की.
अंशिका: हाँ...कर ली है. तुमने नहीं की क्या?
मैं: मैंने क्या करना है, एक-दो जींस और टी-शर्ट ही तो लेनी है.
अंशिका: और नाईट ड्रेस ?
मैं: नाईट में तो मैं नंगा ही सोता हूँ.
अंशिका ने मेरी पीठ पर मुक्का मारा
मैं: अरे सच में...तुम देख लेना..
अंशिका: देख लेना तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैं तुम्हारे साथ ही सौउंगी
मैं: तुम सारा टूर मेनेज कर रही हो. तुम ही डिसाईड करना की कौन किसके पास सोयेगा..
अंशिका: तुम अपना दिमाग ज्यादा तेज मत चलाओ. तुम हमारे कॉलेज के टूर में जा रहे हो .यही बहुत नहीं है क्या तुम्हारे लिए..
मैं: ये दिल बड़ा ही लालची है....जितना मिलता है, उससे ज्यादा की आस करता है.
अंशिका ने अपना सीना मेरी पीठ पर और तेजी से गाड़ दिया और धीरे से बोली: मेरा भी तो येही हाल है विशाल. आज तक तुमने जो भी मुझे दिया है, मेरा दिल हमेशा उससे ज्यादा की आस लगाये रहता है तुमसे. उसका एक हाथ फिसलकर मेरे लंड के ऊपर आ गया, बाईक चलाते हुए अंशिका ने पहली बार मेरा लंड पकड़ा था वो भी बिना किसी डर के..वो तो अपना चेहरा मेरे कंधे पर झुकाकर अपना चेहरा छुपा रही थी, पर मुझे डर लग रहा था की किसी ने मुझे अंशिका के साथ देख लिया और वो भी इतनी बुरी तरह से चिपटे हुए, तो क्या होगा.
मैंने अपनी बाईक गुडगाँव हाईवे की तरफ मोड़ दी. जयपुर जाते हुए मैंने एक-दो बार नोट किया था की रास्ते में जंगल जैसा इलाका आता है, मैंने सोचा की आज अंशिका को वहीँ ले चलता हूँ. लगभग आधे घंटे बाद मैंने अपनी बाईक हाईवे से उतार कर एक घने जंगल में उतार दी. थोड़ी आगे जाने पर बाईक के जाने का रास्ता भी बंद हो गया, उसके आगे किसी खेत की बाउंड्री शुरू हो चुकी थी, इसलिए आगे जाना संभव नहीं था. मैंने बाईक साईड में लगायी, यहाँ से मेन रोड काफी दूर था, और दूर-दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था, खेत में एक झोपडी बनी हुई थी, उसके अलावा दूर -२ तक कोई नजर नहीं आ रहा था.
अंशिका: ये कौन सी जगह है.
मैं: पता नहीं.
अंशिका: कोई आ गया तो..
मैं: डर लग रहा है..
अंशिका मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरायी और बोली: आज तो तुम मुझे कहीं भी ले जाते, मुझे डर नहीं लगता..
वो मुझे जिस तरह देख रही थी, उसकी गुलाबी आँखों में तेर रहे डोरे साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे थे. वो इधर -उधर देखने लगी, मानो तय कर रही हो की कोई हमें नहीं देख रहा है और फिर वो मेरी तरफ घूमी और अपनी साडी का पल्लू उसने नीचे गिरा दिया.
अंशिका: ये तो काफी घना जंगल लगता है. बड़ी ही अजीब जगह ढूंढी है तुमने आज...प्यार करने की.
वो अपने होंठो में ऊँगली डाल कर बड़े ही कामुक तरीके से मेरे करीब आती जा रही थी. उसके ब्लाउस में फंसे हुए मोटे-मोटे मुमे देखकर मेरे मुंह में पानी आ गया.
जैसे ही वो मेरे करीब आई, मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी तरफ खींच लिया.
अंशिका: उनहू....मिस्टर....आज मैं इतनी आसानी से नहीं मिलने वाली आपको.
मैं: उसकी बात सुनकर थोडा रुक गया और उसके चेहरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगा..अभी तो वो इतनी तड़प रही थी और अब नखरे दिखा रही है.
मैं: क्या मतलब.
अंशिका: आज तुम कुछ नहीं करोगे...मैं जैसा कहूँगी, वैसा करते जाओ तो तुम्हे आज जंगल में जंगलीपन देखने को मिलेगा मेरा...वर्ना कुछ नहीं मिलने वाला आज.
उसने मेरे हाथ को अपनी कमर के ऊपर लेजाकर बुरी तरह से दबा दिया. उसके गुदाज पेट का ठंडा मांस मेरे हाथ की रगड़ से लाल हो उठा.
मैं: देखो अंशिका...टाईम कम है. तुम्हे घर भी जाना है न.
अंशिका: तुम उसकी फिकर मत करो.
और ये कहकर उसने अपना सेल निकाला और फोन मिलाया.
अंशिका: हेल्लो...कन्नू...अच्छा सुन, मेरा प्रोग्राम बना है आज विशाल के साथ मूवी देखने का. तू संभाल लेना मम्मी को प्लीस...मैं पांच बजे तक आ जाउंगी. ओके थेंक्स...लव यु.
और उसने फोन रख दिया. यानी अगले 2-3 घंटो का इंतजाम कर लिया था उसने. अंशिका ने फिर से अपने चारो तरफ देखा और बोली: कोई आएगा तो नहीं न यहाँ.
मैं: नहीं आएगा...तुम डरो मत..
अंशिका ने मुस्कुरा कर मुझे देखा और फिर अपनी साडी खोलने लगी, और उसे निकलकर मेरी बाईक पर रख दिया और फिर वो अपने ब्लाउस के हूक खोलने लगी, जैसे-जैसे उसकी पिंक ब्रा उजागर होती चली गयी, मेरा लंड खड़ा होकर उसकी तरफ देखने लगा.
मैंने हाथ आगे करके उसके मुम्मो को पकड़ना चाह, पर उसने मुझे रोक दिया और बोली: रुको वहीँ... जब तक मैं न कहूँ, कुछ मत करो..
मैंने उसकी बात मान ली.
उसने अपना ब्लाउस उतारा और फिर पेटीकोट भी, अब वो सिर्फ हाई हील में थी, और ऊपर उसने सिर्फ ब्रा और लेस वाली पेंटी पहनी हुई थी. बड़ी ही सेक्सी लग रही थी..ब्रा में से झांकते हुए उसके काले निप्पल साफ़ दिखाई दे रहे थे. उसकी आँखों की मदहोशी भी बढ चुकी थी और वो अब बिना डरे अपने हूँस्न को मेरे सामने बेपर्दा करके पुरे मजे लेने के मूड में थी.
मुझे भी उसके खेल में मजा आने लगा था. मैंने अपना लंड अपनी जींस से बाहर निकाल लिया.
मेरे तने हुए लंड को देखते ही उसकी आँखे बंद होती चली गयी. और उसने अपनी बीच वाली ऊँगली अपने मुंह में डाली और फिर वही ऊँगली अपने पेंटी में डालकर अपनी चूत के रस में डुबोयी और फिर वही गीली ऊँगली वो मेरे पास लेकर आई और मेरे लंड के ऊपर रगड़ डाली और सारा रस मेरे लंड के ऊपर मल दिया.
उसके ठन्डे हाथ अपने गर्म लंड पर पाकर मेरे लंड ने दो-चार जोरदार झटके खाए. मन तो कर रहा था की उसे अपने सामने बिठा कर अपना लंड उसके मुंह में ठूस दू. पर उसने कुछ भी करने को मना किया हुआ था अभी तक.
अंशिका ने अपनी पेंटी को अपनी टांगो से निकाल कर साईड में रख दिया और फिर अपनी ब्रा भी खोल डाली.
अब अंशिका पुरे जंगल में नंगी खड़ी थी. कभी भी कोई आ सकता था, इसके बावजूद वो अपने पुरे कपडे उतार कर खड़ी थी मेरे सामने, दिन की रौशनी में पूरा नंगा शरीर मैंने पहली बार देखा था. उसके शरीर पर एक भी बाल नहीं था, चूत वाला हिस्सा बिलकुल सफाचट था, टाँगे भी बिलकुल स्मूथ थी और ऊपर उसकी बड़ी-२ ब्रेस्ट के ऊपर चमक रहे दो काले रंग के जामुन, जिन्हें ना जाने मैं कितनी बार खा चूका था, पर उसका रस हर बार मुझे अपनी तरफ खींचता था.
उसके होंठ बार-बार सूख रहे थे, जिन्हें वो अपनी जीभ से गीला कर रही थी.
अंशिका: क्या देख रहे हो...विशाल..
मैं: यु आर ब्यूटीफुल अंशिका....देखो मेरे लंड की क्या हालत हो गयी है तुम्हारे नंगे जिस्म को देखकर.
मैंने अपने लंड की तरफ इशारा किया...
अंशिका: हालत तो मेरी चूत की भी ऐसी ही है विशाल..पर आज कुछ अलग करने का विचार है मेरा. तुम अपने कपडे उतारो जल्दी से.
उसके कहने की देर थी, मैं एक मिनट में उसके सामने नंगा खड़ा था. मेरा हाथ अपने लंड के ऊपर था.
अंशिका मेरे पास आई और मेरे हाथ को लंड से हटा दिया और बोली: जब तक मैं न कहूँ, तुम इसे हाथ मत लगाना अब..ओके...
मैं: ओके....पर जो भी करना है, जल्दी करो. मुझसे ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं होगा अब.
मैंने अपना हाथ हटा लिया लंड से. मेरा लंड हवा में ऊपर नीचे हो रहा था, बड़ा ही भारीपन आ गया था उसमे एक दम से. वो खुद तो तड़प ही रही थी, मुझे भी तडपाने के मूड में थी शायद.
मैंने आगे हाथ करके उसकी ब्रेस्ट पकडनी चाही, पर उसने मेरा हाथ परे झटक दिया और बोली: वेट करो बेबी.....
उसकी सिडक्टिव स्माईल बड़ी ही कातिलाना लग रही थी.
वो मेरे पीछे आई और अपने हाथो से मेरी पीठ के ऊपर अपनी उंगलियों के नाखुनो से धीरे-धीरे मुझे गुदगुदाने लगी.
मैं: ओहो......अंशिका...क्या कर रही हो. क्यों तदपा रही हो अपने दीवाने को.
अंशिका ने पीछे से मेरा सर पकड़ा और मेरे कान में धीरे से बोली: तुम्हारी यही तड़प काफी दिनों से देखना चाहती थी मैं. पर हर बार जल्दबाजी में सिर्फ फकिंग के अलावा कुछ और न कर पायी. आज पूरा हिसाब लुंगी..
उसके दोनों निप्पल मेरी पीठ पर चुभ रहे थे, उसकी ब्रेस्ट का सोफ्ट्पन मुझे पीछे की तरफ साफ़ महसूस हो रहा था. उसने अपनी गर्म जीभ से मेरे कानो को सहलाना शुरू किया..मुझे काफी गुदगुदी हो रही थी. वो मुझे पकड़ कर अपनी बाईक तक ले गयी और उसपर बैठ गयी..मेरी पीठ अभी भी उसकी तरफ थी, उसने मुझे पीछे से कस कर पकड़ा, अपनी दोनों टाँगे मेरे चारो तरफ लपेटी, एक हाथ से मेरे बाल पकडे और मेरे चेहरे को अपनी तरफ किया, और मेरे गालो और कान को किसी कुतिया की तरह चाटने लगी और अपने दुसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़ा और उसे जोरो से हिलाने लगी.
सुनसान जंगल में मैं चीख सा पड़ा एकदम से...: अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अंशी.......का...आअ..........अह्ह्ह्हह्ह......
मेरे कान को उसने एकदम से अपने कोमल से मुंह में लिया और उसे चूसने लगी. मेरी तो हालत ही खराब हो गयी, पुरे शरीर में ऐसा सेंसेशन होने लगा जो आजतक नहीं हुआ था. उसकी चूत का गीलापन मुझे अपने कुलहो पर साफ़ महसूस हो रहा था, वो अपनी चूत वाले हिसे को भी बड़ी ही लय के साथ मेरे कूल्हों पर रगड़ रही थी. पर इस पुरे खेल में वो मुझे हाथ भी नहीं लगाने दे रही थी, बड़ा ही अजीब सा एहसास था ये मेरे लिए, मुझे कण्ट्रोल करके वो मेरी सेक्स की भावनाओ को भड़का रही थी, और शायद बाद में उसे ज्यादा मजा मिले इसलिए ये सब कर रही थी वो..क्योंकि जब मेरे सब्र का बाँध टूटेगा तो वो ही डूबेगी उसके अन्दर..
वो मेरे लंड को तेजी से आगे पीछे कर रही थी. मेरे कंधे पर सर रखकर वो मेरे लंड को देखने लगी. मैं भी उसकी नजरो का पीछा करते हुए, अपने लंड को देखने लगा, पता नहीं वो क्या चाहती थी, पर अगर एक मिनट तक वो ऐसे ही करती रही तो शायद मेरा रस निकल जाएगा. मेरे लंड की नसे तन चुकी थी और अन्दर से आने वाली बाद का एलान कर चुकी थी, ये देखकर उसने अपनी गति और बड़ा दी, शायद वो भी यही चाहती थी. और मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरे लंड से पिचकारियाँ निकल-निकल कर दूर तक गिरने लगी. उसने मेरे लंड को अपने हाथो में ले रखा था और उसे तोप की तरह से पकड़कर वो दूर तक निशाना लगा रही थी. और अंत में जब सारा माल निकल कर नीचे जमीं पर बिखर गया तो हाँफते हुए मैंने उससे पूछा : ये...ये क्या किया तुमने....
अंशिका: अब अगली बार तुम जब करोगे तो ज्यादा देर तक मेरी चूत के अन्दर रहोगे...समझे.
समझता तो मैं भी था, पर पहली बार भी तो चूत के अन्दर किया जा सकता था न...खेर..आज का खेल वो खेल रही थी. मैंने कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा.
मैं: एक बात समझ लो अंशिका...आज तो मैं वो सब कर रहा हूँ जो तुम कह रही हो. आज के दिन मैं तुम्हारा गुलाम हूँ. पर यही सब मैं तुम्हारे साथ भी करूँगा. नेनीताल में और तुम भी बिना सवाल किये मेरा कहना मानोगी. ठीक है...
अंशिका ने मुस्कुरा कर कहा : ठीक है...पर अभी तुम वो करो जो मैं चाहती हूँ.
मेरा लंड पिघल कर लटक चूका था. अंशिका ने उसे छोड़ दिया और अपने हाथो पर लगी हुई रस की एक-दो बूंदे चाटने लगी. फिर अंशिका ने अपने सेंडिल उतार दिए, और मेरे कंधो को पकड़ कर वो बाईक की सीट पर खड़ी हो गयी. और मेरा चेहरा पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमा लिया. अंशिका की जूस से भीगी हुई चूत मेरी आँखों के बिलकुल सामने थी, उसने अपने एक पैर उसने बाईक की टंकी के ऊपर रखा और दूसरा सीट पर. उसकी गीली चूत से रस की एक बूँद निकल कर गिरने को तैयार थी. मुझसे ये देखा न गया और मैंने अपनी जीभ लगा कर उसे अपने मुंह में समेत लिया.
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह विशाआआआआआल..........मेरी जान लेकर रहोगे एक दिन तुम तो.....
वो ये बात इसलिए कह रही थी क्योंकि मैंने उसकी चूत के लिप्स को अपने मुंह से ऐसे चुसना शुरू कर दिया था जैसे वो चूत के नहीं, उसके मुंह वाली लिप्स हो. उनपर मेरे दांतों और जीभ ग़दर मचा रही थी और वो बीच जंगल में नंगी खड़ी होकर मुझसे अपनी चूत की ऐसी चटवाई करवा रही थी मानो इस दुनिया में हमारे अलावा कोई और है ही नहीं और वो इतनी जोर से चीख रही थी की मुझे डर लगने लगा की दूर खेत में जो झोपड़ा है, उसमे से कोई निकल कर यहाँ न आ जाए, ये देखने की ऐसी आवाज कहाँ से आ रही है. पर लगता था की उस वक़्त उस झोपड़े में कोई नहीं था, मैंने अपना काम जारी रखा. चूत चूसने का.
आज अंशिका की चूत में बड़ी मिठास थी और कुछ ज्यादा गीलापन भी. मैंने अपनी एक ऊँगली अंशिका की गांड में डाल दी. ऊँगली अन्दर जाते ही वो बाईक की सीट पर पंजो के बल उचक गयी और अपने दोनों हाथो से मेरे सर के ऊपर अपना भार डाल दिया.
अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह एक जगह तो पूरी तरह करो पहले.....पीछे के छेद का लालच भी कर रहे हो.....हम्म्म्म.....
मैंने उसकी तरफ हँसते हुए देखा और चूत का चुप्पा लेना जारी रखा.
तभी अंशिका बोली: बस.....बस करो...विशाल.....अब रुक जाओ...
मैं रुक गया...वो ऊपर खड़ी होकर साँसे ले रही थी..मानो मिलों तक दौड़कर आई हो...
वो नीचे हुई और बाईक की सीट पर बैठ गयी. उसकी चूत से निकल रहे रस की वजह से सीट गीली हो गयी. अंशिका ने अपना एक पैर मेरे लंड के ऊपर रखा और मुझे थोडा पीछे किया. उसके और मेरे बीच अब एक पैर का फांसला था.
उसके नर्म-मुलायम पैरो की थिरकन से मेरे लंड में फिर से जान आने लगी. उसने अपने पैर के अंगूठे और ऊँगली के बीच मेरे लंड को किसी तरह से फंसा लिया और उसे आगे पीछे करने लगी. दुसरे पैर के अंगूठे से वो मेरी बाल्स को मसाज देने लगी.
अंशिका: मजा आ रहा है...बोलो...
मैं: तुम तो ये सब ऐसे कर रही हो जैसे सब कुछ प्लानिंग कर रखी हो तुमने आज की.....की क्या-क्या करोगी मेरे साथ. पर तुम्हे तो पता भी नहीं था की मैं आने वाला हूँ आज.
अंशिका: सच कहा तुमने. मैंने सोच तो रखा था की तुम्हारे साथ ये सब करुँगी. पर आज करुँगी ये नहीं सोचा था..आज मौका भी है...दस्तूर भी. तुम भी हो और हम भी.
नशे में डूबी हुई सी आवाज में उसके मुंह से कविता निकल रही थी. मैंने उसकी मांसल पिंडलिया पकड़ रखी थी और अपने लंड के ऊपर घिसाई कर रहे उसके पैरो को सपोर्ट दे रखी थी और जब उसने देखा की मेरा लंड फिर से तैयार है तो उसने अपने पैर मेरे लंड से हटा लिए और मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपनी तरफ खींचा. मेरा तना हुआ लंड सीधा जाकर उसके पेट से टकराया. मैंने अपना हाथ बीच में डालकर अपने लंड को उसकी चूत में डालना चाहा , पर उसने रोक दिया.
अंशिका: उनहू......इतनी जल्दी नहीं....अपने आप जाने दो इसे. बिना किसी सहारे के... यार ये तो मेरी जान लेकर रहेगी आज. पर कोई बात नहीं. मेरा भी टाईम आएगा.
मैं थोडा झुका और अपने लंड को नीचे किया, और जैसे ही उसकी चूत सामने आई, मैं ऊपर उठ गया. पर लंड के टोपे पर लगी चिकनाई और चूत से निकल रहा रसीला पानी उसे अन्दर जाने से पहले ही फिसला कर इधर उधर कर रहा था.
अंशिका मेरी हालत देखकर हँसे जा रही थी. मैं बड़े ही डेस्परेट तरीके से हर कोशिश कर रहा था.
और अंत में अंशिका ने मेरा चेहरा अपने हाथो में पकड़ा और बोली: अभी तक नहीं सीखे तुम. कोई बात नहीं. चलो मुझे उठाओ अपनी गोद में.
मैंने वैसा ही किया.
अंशिका ने अपनी बाहों से मेरी गर्दन लपेट डाली और आज के दिन की पहली किस की उसने मेरे होंठो पर.
उसके नम से हो चुके होंठो को चूसने में बड़ा मजा आ रहा था. मेरे हाथो में उसके भरे हुए कुल्हे थे. पर उसकी चूत अभी भी मेरे लंड से काफी ऊपर थी. मेरा लंड ऊपर मुंह किये उसका नीचे आने का इन्तजार कर रहा था और फिर अंशिका का जिस्म मेरे शरीर की घिसाई करता हुआ नीचे आने लगा और न मैंने हाथ लगाया और न उसने, मेरा लंड सीधा उसकी चूत में जा फंसा और जब ये हुआ तो उसके साथ-साथ मेरी साँसे भी अटक गयी. उसके चेहरे पर ऐसे एक्सप्रेशन आ रहे थे मानो मेरा लंड पहली बार जा रहा है उसकी चूत में.
उसकी आँखों में अजीब सा नशा था. मैंने उसकी आँखों में देखते-२ उसके होंठो का रस पीना जारी रखा और अपने हाथो का दबाव उसकी गांड पर कम कर दिया, जिसकी वजह से मेरे लंड के ऊपर उसकी चूत लिपटती चली गयी. और वो सी-सी करती हुई मेरे लंड को अन्दर लेने लगी.
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह सीईई..........सीईई.........म्मम्मम...विशाल..........आई वास डाईंग....तो टेक युर कोक......अह्ह्हह्ह...
मैं चिल्लाया..... साली....इसलिए इतनी देर से ड्रामा कर रही थी. मेरे लंड को कितना तरसाया तुने आज....अब देख...मैं तेरी चूत का कैसे बेन्ड बजाता हूँ. भेन चोद...एक घंटा हो गया. पर चूत में लंड अब गया है..... अह्ह्ह्ह.....ले साली.....ले मेरा लंड......कुतिया....
मेरे मुंह से गलियों की बोछार सी निकलने लगी और वो भी तेज आवाज में.....उसके कानो के बिलकुल पास. अपनी चूत में मेरे लंड को लेकर और मेरे मुंह से गन्दी गलियां और बाते सुनकर उसका ओर्गास्म अपने चरम पर पहुँच गया और वो मेरी गोद में उछलती कूदती हुई झड़ने लगी....
अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह विशाल्ल्ल्ल ..........आई एम् कमिंग........अह्ह्हह्ह्ह्ह...... और उसकी चूत से गर्म रस निकल कर मेरे लंड और फिर नीचे की तरफ गिरने लगा....
मेरे लंड ने थोड़ी देर पहले ही पानी छोड़ा था, इसलिए दोबारा झड़ने में टाईम लगा रहा था. पूरी तरह से निचुड़ने के बाद वो मेरे लंड से नीचे उतर गयी. मेरा लंड अभी भी खड़ा हुआ था. मैंने उसे बाईक की तरफ घुमाया और उसके दोनों हाथ बाईक पर टिका दिए, और उसे थोडा नीचे झुका दिया, और फिर मैंने अपना लंड उसकी चूत में पीछे से डाल दिया और मैंने हाथ आगे करके उसके लटकते हुए मोटे-ताजे मुम्मे पकड़ लिए. उसके लटकते हुए मुम्मे पकड़ने से मुझे आज उसके साईज और गुदाज्पन का पूरा एहसास हुआ. मैंने चूत में झटके और ब्रेस्ट में स्ट्रोक मारने शुरू कर दिए. और लगभग पांच मिनट के बाद मेरे लंड से भी रस निकलने को तैयार हो गया....
मैंने आखिरी मौके पर उसे बाहर निकाला और सारा माल अंशिका की गोरी पीठ के ऊपर छोड़ दिया. उसकी पीठ पर जगह-जगह मेरे रस की चट्टानें बन गयी और फिर लकीरे बनकर नीचे की तरफ लुड़कने लगी. मैंने अपनी जींस से रुमाल निकाल कर उसकी पीठ और चूत और फिर अपना लैंड साफ़ किया और उसे वहीँ फेंक दिया.
मैं: अब क्या इरादा है और रुकना है या चले अब.
अंशिका: मन तो नहीं कर रहा. पर जाना भी है. चलो अभी चलते हैं. बाकी अब नेनीताल में करेंगे.
मैं: नेनीताल में जो होगा...मेरी मर्जी से भूल गयी क्या.
अंशिका: ओके...बाबा...अपनी मर्जी से कर लेना. अभी तो चलो यहाँ से..
मैं वापिस जाते हुए नेनीताल में क्या-क्या करूँगा ये सोचता रहा.