13-10-2020, 09:15 PM
(This post was last modified: 13-10-2020, 09:47 PM by sanskari_shikha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
बाहर खड़े हुए बन्दे ने जैसे ही पारुल को ऐसी अवस्था में देखा. वो हैरान रह गया. वो हकलाते हुए बोला: जी...जी...वो...खाना मंगवाया था...आपने. उसकी नजरे पारुल की मोटी छाती से होते हुए, नीचे उसकी मखमली और मोटी जांघो की तरफ फिसल रही थी.
पारुल: ओह...या....पर तुम शकल से तो डिलीवरी बॉय नहीं लगते.
वो बोला: जी...आज लड़का छुट्टी पर है. तो मैं ही ले आया. मैं रेस्टोरेंट का मेनेजर हूँ. वो क्या है न... कभी-कभी स्टाफ की शोर्टेज हो जाती है. वो हकलाते हुए बोल रहा था. यानी उसे ये सिचुएशन बड़ी ही अजीब लग रही थी. जहाँ एक जवान लड़की आधे-अधूरे कपड़ो में उससे खाने की डिलीवरी लेने आई थी.
पारुल: ओके....आप अन्दर आओ. मैं पैसे देती हूँ.
वो अन्दर आ गया और पारुल ने पीछे से दरवाजा बंद कर दिया. वो दरवाजे के पास ही खड़ा रहा और पारुल अपनी गांड मटकाती हुई अन्दर की तरफ आ गयी. जहाँ मैं बैठा हुआ था, वहां से मुझे साफ़ दिखाई दे रहा था की अन्दर आते ही मेनेजर ने अपनी पेंट के उभार को छुपाया और दरवाजे के पास ही खड़ा होकर वेट करने लगा.
पारुल ने उसे अन्दर बुलाया: अरे...तुम बाहर क्यों खड़े हो. अन्दर आओ न.
वो धीरे-धीरे चलते हुए अन्दर तक आया और सोफे के पास आकर खड़ा हो गया. पारुल ने उसे बैठने को कहा. पर जैसे ही वो बेठने लगा, सोफे पर लेटी हुई कनिष्का को देखकर वो एकदम से वापिस उठ बैठा.
कनिष्का सोने की एक्टिंग कर रही थी, उसने अपने कपडे तो पहन लिए थे पर सोफे पर उल्टा सोने की वजह से उसकी गांड ऊपर की तरफ घुमावदार सी साफ़ दिखाई दे रही थी, और उसने अपनी टी-शर्ट ऊपर खिसका रखी थी, जिसकी वजह से उसकी कमर आधी से ज्यादा नंगी थी.
पारुल: ओहो....यहाँ तो मेरी फ्रेंड सो रही है. वो क्या है न...हम दोनों आज सुबह ही मुंबई से आई हैं और ये घर मेरे दूर के अंकल का है. वो लोग बाहर रहते हैं, इसलिए एक दिन के लिए उन्होंने हमें यहाँ रहने की इजाजत दे दी. हम रात को ही बेंगलोर निकल जायेंगे.
वो मूक सा खड़ा होकर पारुल की बनायीं हुई कहानी सुन रहा था. वो क्या करती है और कहाँ जा रही है, वो उसे क्यों बता रही है. शायद येही सोच रहा होगा वो. पर असल में वो सही कर रही थी, जैसा की मैंने उसे कहा था की अगर इसके साथ मजे लेने है तो ऐसा कुछ करना की सिर्फ आज के मजे मिले. कहीं उसे उसकी ठरक दुबारा यहाँ न खींच लाये.
पारुल: मुझे आज यूनिवर्सिटी में काम है, उसके बाद हम निकल जायेंगे. ये मेरी फ्रेंड है सकीना और मैं हूँ नेहा.
मैनेजर: ओके...ह्म्म्म और मेरा नाम...चेतन है.
बेचारा और बोल ही क्या सकता था.
पारुल आगे बोली: सुबह से ही भूख लगी थी. अब मजा आएगा और वो खाने के डब्बे खोलने लगी.
मैनेजर: जी...वो...पेमेंट कर देती तो मैं चलता फिर....
पारुल: ओहो...मैं तो भूल ही गयी....सॉरी चेतन...रुको. अभी देती हूँ...
और वो अपनी पेंट को उठा कर उसकी जेब में पैसे धुंडने लगी. पर उसमे पैसे नहीं थे.
पारुल: मेरी पॉकेट वाले पैसे तो ख़तम हो गए. मैंने सामान नहीं खोला है अभी. वो मेरा सूटकेस ऊपर है. अरे हाँ...इसके पास जरुर होगा.
और वो भागकर कन्नू के पास गयी और उसकी पॉकेट में पैसे खोजने लगी. उसकी पीछे वाली दोनों पॉकेट खाली थी. पारुल ने उसकी आगे वाली पॉकेट में हाथ डालने की कोशिश की. पर वो अपने पेट के बल लेटी हुई थी. इसलिए उसे मुश्किल हो रही थी.
पारुल: सुनो...चेतन, यहाँ आओ न...मेरी हेल्प करो. ये तो गहरी नींद में सो रही है. इसकी आगे वाली पॉकेट में पैसे होंगे जरुर. मैं इसे टेड़ा करती हूँ, तुम पैसे निकाल लेना. ओके.
बड़ी ही अजीब सिचुएशन लग रही थी चेतन को. पर लड़की को छुने की ललक में वो कुछ न बोला और आगे आकर सोफे के किनारे पर खड़ा हो गया.
पारुल ने कन्नू को कंधे से पकड़कर आधा सीधा किया और चेतन ने जल्दी से उसकी आगे वाली जेब में हाथ डाल दिया. पर उसे वहां भी कुछ न मिला...पारुल ने उसकी दूसरी जेब में हाथ डालने को कहा और जैसे ही उसने अपना हाथ अन्दर खिसकाया कन्नू ने उसके हाथ को पकड़ा और अपनी चूत के ऊपर रख कर उसे घिसने लगी और धीरे से सिसकारी मारकर बोली...ओह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल...
मानो वो सारा काम नींद में कर रही हो. अब तो चेतन की शक्ल देखने लायक थी. वो घबरा रहा था. पर ये सब देखकर पारुल जोरो से हंसने लगी. पारुल को हँसता देखकर चेतन भी खिसियानी हंसी में हंसने लगा. वो ज्यादा चालु टाईप का नहीं लग रहा था, अगर होता तो अब तक शुरू हो गया होता.
पारुल: हा हा हा....आई...आई एम् सॉरी....वो क्या है न....सुबह से बेचारी को अपने बॉय फ्रेंड की बड़ी याद आ रही है. बेचारी चार दिनों से नहीं मिली है उसे और शायद येही सपना देख रही है की उसका बॉय फ्रेंड आ गया है. उसके पास. और तभी तुम्हारा हाथ रगड़ रही है अपनी चूत पर. हा हा...
पारुल के मुंह से चूत शब्द सुनकर बेचारा चेतन झेंप सा गया.
पारुल (थोडा सीरियस होते हुए): सुनो चेतन...अगर तुम बुरा न मानो तो एक काम कर सकते हो क्या.
चेतन: जी...जी क्या काम...
पारुल: वो मैंने कहा न की ये चार दिनों से तड़प रही है...अपने बॉय फ्रेंड के लिए. तो क्या तुम इसकी हेल्प करोगे.
चेतन: जी मैं...मैं कैसे...हेल्प..करू.
वो शायद समझ तो चूका था की आज उसके साथ क्या होने वाला है और ये सोचकर ही उसके आते के ऊपर पसीना आने लगा था.
पारुल: तुम इसे ऐसे ही घिसते रहो और देखना इसका ओर्गास्म कितनी जल्दी हो जाता है फिर.
वो कुछ न बोला...बस अपने हाथ को ढीला छोड़कर वहीँ सोफे पर बैठ गया और कन्नू उसके हाथ को पकड़कर अपनी चूत के ऊपर घिसती रही.
मैंने मन में सोचा. साला कितना बड़ा घोंचू है....इतना खुला ऑफर मिला है. फिर भी आराम से बैठा हुआ है..
पारुल: तुमने तो अपने हाथ को ढीला छोड़ रखा है. थोडा टाईट करो. तभी तो उसे भी मजा आएगा.
तभी कन्नू नींद में ही बडबडाने लगी..." ओह्ह्ह.....विशाल्ल्ल.......हां.....जोर से करो न.....म्मम्म "
पारुल ने चेतन की तरफ मुस्कुरा कर देखा और कहा: ये विशाल ही है इसका बॉय फ्रेंड. सोच रही है की नींद में वोही सब कर रहा है. तुम लगे रहो और ये कहते हुए पारुल वहीँ उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गयी. पारुल के कहने पर चेतन ने अपने हाथ की पकड़ उसकी चूत के ऊपर थोड़ी बड़ा दी...
पारुल: तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या...चेतन...
चेतन: जी...जी नहीं.
पारुल (हेरानी से): और तुमने पहले कभी किया है किसी लड़की के साथ कुछ.
चेतन: जी...जी कभी नहीं.
पारुल: इसका मतलब. तुम अभी तक कुंवारे हो.
उसकी आँखों में अजीब सी चमक आ चुकी थी.
चेतन: जी हाँ
उसके लंड का उभार फिर से दिखाई देने लगा था अब.
उसकी बात सुनते ही ना जाने पारुल को क्या भूत चड़ा की वो बड़ी ही बेशर्मी से अपनी मोटी छाती को चेतन की आँखों में देखते-देखते ही मसलने लगी. उसकी टी-शर्ट काफी टाईट थी, और मसलने की वजह से उसके निप्पल चमक कर बाहर की और निकलने लगे, मानो टी-शर्ट को फाड़कर छेद कर देंगे. चेतन भी पारुल को देखकर अपने पर काबू न रख पाया और अपने दुसरे हाथ से लंड को पेंट के ऊपर से ही सहलाने लगा.
अब आलम ये था की चेतन का एक हाथ अपने लंड पर था और दूसरा कनिष्का की चूत के ऊपर और आँखे थी पारुल की गोल मटोल गोलइयो पर. जिसे पारुल बड़ी ही तेजी से दबा रही थी.
नींद का बहाना कर रही कनिष्का की सिस्कारियां निकालनी शुरू हो चुकी थी. उसने एक झटके में अपनी जींस को नीचे किया और चेतन के हाथ को अपनी नंगी चूत के ऊपर रख कर उसे घिसने लगी.
चेतन का ध्यान पारुल की तरफ था, इसलिए वो कन्नू को अपनी जींस नीचे करते नहीं देख पाया, पर जब उसका हाथ गीली चूत के ऊपर गया तो उसने देखा की जींस तो खिसक कर नीचे जा चुकी है और अब उसका हाथ कन्नू की नंगी चूत के ऊपर है.
वो गोर से उसकी चूत को देखने लगा.
पारुल: पहली बार देखी है क्या...तुमने किसी लड़की की चूत.
चेतन: हाँ.
उसके होंठ कांप रहे थे... ये कहते हुए.
पारुल: और एक साथ दो चूत देखी है कभी.
और ये कहते हुए उसने अपनी जांघे खोल डाली और अपना दूसरा हाथ सीधा अपनी चूत के ऊपर लेजाकर उसे मसलने लगी.
चेतन की तो हालत ही खराब हो गयी. चेतन ने अपनी पेंट की जिप खोली और अपना लंड निकाल कर बाहर किया और उसे मसलने लगा. उसके काले लंड की झलक देखते ही पारुल का भूत सर चड़कर बोलने लगा. वो बडबडाने लगी "ओह्ह्ह......क्या कोरा लंड है तेरा.....म्मम्म....साले....इसे अपने तहखाने में क्यों रखा हुआ था.....लंड को निकाल कर....मजे लिया कर इसके और दुसरो को भी दिया कर....अह्ह्ह..."
पारुल ने अपना एक हाथ अपनी टी-शर्ट के अन्दर डालकर अपनी लेस्ट ब्रेस्ट को बाहर खींचा और उसे दबाकर अपनी सिस्कारियो को और भी तेज कर दिया. चेतन का लंड भी अच्छा ख़ासा मोटा और लम्बा था और ख़ास बात थी की वो वर्जिन था. जैसा की मैं था कुछ दिनों पहले तक. पारुल ने अपनी टी-शर्ट उतार फेंकी और अब वो चेतन के सामने पूरी नंगी होकर खड़ी थी..वो अपनी जगह से उठी और चेतन के पास आकर उसकी गोद में बैठ गयी.
उसके हाथ सीधा पारुल की मस्त गोलइयो पर जा टिके और वो उन्हें जोर से दबाने लगा.
अब उसके हाथ कनिष्का के ऊपर से हट चुके थे.
कनिष्का ने आँख खोलकर देखा की पारुल ने मैदान मार लिया है और अब चेतन का पूरा ध्यान पारुल की ही तरफ है और हो भी क्यों न...उसकी गोद में नंगी जो बैठी थी वो.
वो भी उठ बैठी और अपनी टी-शर्ट को उतार दिया. जींस तो पहले से ही नीचे थी, उसे भी उसने अपनी टांगो से नीचे करके निकाल दिया. अब वो भी नंगी थी. पारुल की ही तरह...उसने अपने हाथ आगे किये और चेतन को पीछे से उसकी पीठ से लिपट गयी.
चेतन ने जैसे ही अपनी पीठ पर दो और मुम्मे महसूस किये वो एकदम से पलटा और कनिष्का को नंगा पाकर वो हेरानी से उसे देखने लगा और फिर वो कभी कनिष्का को और कभी पारुल को देखने लगा.
पारुल: देख क्या रहे हो...मेरी फ्रेंड और मुझे दोनों को अपने कुंवारे लंड के मजे दो. चलो जल्दी करो.
और ये कहते-कहते उसने चेतन के कपडे उतारने शुरू कर दिए.
तभी मेरा सेल बज उठा. वो अंशिका का फोन था. मैंने दो रिंग में ही उठा लिया.
तब तक शायद चेतन ने सेल की आवाज सुन ली थी. वो बोला " किसका फ़ोन है. कोई है क्या अन्दर..."
पारुल: अरे नहीं...वो मेरा ही फ़ोन है...अन्दर चार्जिंग पर लगा है. बाद में देखूंगी. अभी टाईम नहीं है.
और वो चेतन को नंगा करने में दोबारा से जुट गयी.
मैंने फ़ोन उठाया और धीरे से उससे कहा: हेलो...क्या हाल है...
अंशिका: इतना धीरे क्यों बोल रहे हो.... बिजी हो क्या..?
मैं: हाँ बिजी तो हूँ...तुम्हारी बहन के साथ ही.
अंशिका (झेंपते हुए): ठीक है फिर...बाद में बात करुँगी.
मैं: नहीं यार...कोई बात नहीं.
अंशिका: मैंने तो बस ऐसे ही फोन कर दिया. तुम्हारी याद आ रही थी. वैसे क्या कर रहे हो अभी.
मैं: तुम्हारी बहन की चूत चाटी थी मैंने अभी...बस अपने लंड को वहां डालने की तय्यारी कर रहा हूँ.
अंशिका की साँसे तेज होने लगी ये सब सुनकर.
अंशिका: तुम लोग करो....मैं रखती हूँ.
मैंने थोडा तेज आवाज में कहा: बोला न नहीं रखो अभी. बात करती रहो. मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर उसे रोंदना शुरू कर दिया.
अंशिका (तेज साँसों में): क्या कर रहे हो अब.
मैं: लंड पर कन्नू की चूत का रस लगाकर उसे चिकना बना रहा हूँ.
अंशिका की हालत खराब हो गयी मेरी बात सुनकर...
इस बीच चेतन पूरा नंगा हो चूका था. अब बात थी की इस कुंवारे लंड को कौन अपनी चूत में लेगा पहले. पारुल बड़ी थी, इसलिए कन्नू ने उसकी तरफ देखा की वो ही फेसला करे की पहल कौन करेगा. पारुल ने बड़े प्यार से कन्नू की आँखों में देखा और बोली: चल सकीना...चढ़ जा इसके ऊपर और मिटा ले अपनी चूत की खुजली. विशाल के नाम की. कनिष्का तो फूली न समाई. वो जल्दी से आगे आई और सोफे पर बैठे हुए चेतन की टांगो के दोनों तरफ टाँगे करके उसकी गोद में आ बैठी और पारुल ने पीछे से उसके लंड का निशाना उसकी चूत पर लगाया और कन्नू की चूत में जैसे ही चेतन के लंड का सुपाड़ा गया, वो बहक उठी और अपना पूरा भार उसने चेतन के लंड के ऊपर छोड़ दिया और उसकी चूत फुलझड़ी की तरह सुलगती हुई नीचे तक आती चली गयी.
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह........म्मम्म.....ओह्ह्हह्ह.....माय गोड........साला....क्या लंड है तेरा...मम्म...ऊऊ विशाल्ल्ल्ल.....मम्म...
वो अभी तक अपना रोल प्ले कर रही थी और उसने आगे बढकर उसके चिकने चेहरे पर अपनी जीभ से लार की पुताई करनी शुरू कर दी.चेतन ने आँखे बंद कर ली. मैंने मौका देखा और जल्दी से भागकर बाहर आया और सोफे के पीछे जाकर छुप गया.
पारुल भी मुझे देखकर हैरान रह गयी. पर मैंने फ़ोन की तरफ इशारा किया और उसे चुप रहने को कहा.
कन्नू चेतन के लंड के ऊपर कूदने लगी और जोर से चिल्लाने लगी...अह्ह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल.....म्मम्म....ओह्ह्ह्ह माय पुससी.....अह्ह्ह्ह .....
और ये सब बाते बड़ी ही साफ़ आवाज में अंशिका सुन रही थी और सोच रही थी की मैं उसकी छोटी बहन की चूत मार रहा हूँ और ये सोचकर ही वो भी उत्तेजित होकर शायद अपनी चूत की मालिश कर रही थी.
और फिर एकदम से कनिष्का की चूत में एक तूफ़ान सा आ गया. अह्ह्हह्ह्ह्ह........ओह्ह्ह........आई एम् कमिंग........अह्ह्ह्हह्ह....... और वो अपना रस का छत्ता चेतन के लंड के ऊपर फोड़कर उसके कंधे पर सर रखकर जोरो से हांफने लगी.
और यही हाल दूसरी तरफ फोन पर अंशिका का भी था. वो भी झड चुकी थी. अपनी बहन के साथ ही.
चेतन का पहली बार था. इसलिए उसका रस निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था और ये अच्छा भी था. क्योंकि अपनी चूत के पर फेलाए दूसरी मोरनी यानी पारुल भी तो लाईन में थी.
मैंने तब तक अंशिका का फोन काट दिया. अगर उसने पारुल की आवाज सुन ली तो पता नहीं क्या सोचेगी.
और जैसे ही कन्नू चेतन के लंड से ऊपर उठी, पारुल आकर उसी जगह पर बैठ गयी और आते ही जोर से चीखना और कूदना शुरू कर दिया. पारुल को ज्यादा एक्स्पेरिंस था. उसने उसके लंड की चटनी बनानी शुरू कर दी, अपनी ओखली नुमा चूत में और अपनी मोटी ब्रेस्ट उसके मुंह में ठूस डाली.
अह्ह्ह्हह्ह.......वाह....क्या लंड है....
और फिर जल्दी ही चेतन ने भी उसकी ब्रेस्ट का दूध पीकर अपने लंड की शक्ति को बढाया और उसे चोदना शुरू कर दिया. जल्दी ही ऊपर से रस निकलकर नीचे आने लगा और नीचे से रस निकलकर ऊपर की और जाने लगा. दोनों की आँखे बंद हो गयी...झड़ते हुए.
मैंने चेतन की बंद आँखों का फायेदा उठाया और भागकर वापिस ऊपर चला गया और वापिस छुप गया. मैंने ऊपर जाकर अपने कपडे ठीक किये और नीचे देखने लगा, पारुल चेतन को समझा रही थी.
पारुल: आज रात को तो हम चले ही जायेंगे यहाँ से और जो कुछ हमारे बीच हुआ है वो किसी और को पता नहीं चलना चाहिए...ओके.
चेतन: नहीं चलेगा. आप दोनों की वजह से मेरी वर्जिनिटी टूटी है. जिसका मुझे कई दिनों से इन्तजार था. मुझे तो आप दोनों का थेंक्स बोलना चाहिए. थेंक्स और फ़िक्र मत करो. ये बात मैं किसी को नहीं बताऊंगा...ओके.
और फिर वो भी अपने कपडे पहन कर बाहर निकल गया. बेचारा जाते-जाते अपने पैसे लेना भी भूल गया था.
उसके जाते ही मैं नीचे आया, पारुल मुझे देखते ही मुझसे लिपट गयी. "थेंक्स विशाल...तुम्हारी वजह से ही आज ये सब हुआ है. .मजे तो तुम भी बहुत देते हो. पर जैसे तुम लडको को अलग-अलग लड़की की ललक होती है. वैसे ही हम लडकियों का भी मन दुसरे लंड देखकर मचल जाता है. पर जो भी था. मजा बहुत आया. है न. "
उसने कनिष्का की तरफ देखा. जो अपनी चूत के अन्दर ऊँगली डालकर अपना रस निकल कर चूस रही थी.
उसके बाद हम सबने खाना खाया और एक आखिरी बार शाम को जाते-जाते जमकर चुदाई की.
उन दोनों के जाने के बाद मैंने पुरे घर की सफाई की, बेडशीट बदली, रूम फ्रेशनर से घर को महकाया.
रात को मैंने अंशिका को फोन किया
अंशिका: हाय...फ्री हो गए.
मैं: हाँ...कनिष्का घर आ गयी क्या.
अंशिका: हाँ...अपने कमरे में सो रही है. थक गयी थी.
मैं: अच्छा जी...काम हमने किया और थक वो गयी. कमाल है.
अंशिका: चुप रहो तुम. तुम्हे क्या पता की लड़की की क्या हालत होती है...सेक्स करने के बाद. पूरा बदन टूट जाता है और तुम तो पुरे जानवर की तरह करते हो. बेचारी को पता नहीं कितनी बार फक किया होगा.
मैं: चार बार.
अंशिका: हे भगवान्....मेरी फूल सी बहन को तुमने चार बार किया. तभी उसकी ऐसी हालत हुई पड़ी है. बेचारी.
अभी तो मैंने चेतन वाली चुदाई नहीं गिनी थी....
मैं: बड़ी फ़िक्र हो रही है तुम्हे अपनी बहन की. वैसे तुम्हे शायद याद नहीं है. पर जब तुमने पहली बार करवाया था तो हमने पांच बार किया था. याद है.
अंशिका: मैं बड़ी हूँ. पर वो तो अभी बच्ची है.
मैं: कोई बच्ची-वच्ची नहीं है वो. उसका बस चले तो एक साथ 3-4 लंड ले डाले अपनी चूत में.
अंशिका को मेरी बात सुनकर इस बार सही में गुस्सा आ गया.
अंशिका: बकवास बंद करो तुम अपनी. कैसे तुम मेरी बहन के बारे में बोले जा रहे हो. तमीज से बात करो उसके बार में...समझे.
मैं समझ गया की मेरे मुंह से कुछ ज्यादा ही निकल गया है आज. अंशिका अपनी बहन को कुछ ज्यादा ही प्यार करती है. उसके सामने मुझे ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए थी कन्नू के बारे में.
मैं: ओह....सॉरी यार....मैंने तो बस ऐसे ही कह दिया. ठीक है बाबा. मैं आगे से उसके बारे में कोई भी गलत बात नहीं बोलूँगा. अगर तुम कहोगी तो उसे चोदुंगा भी नहीं...खुश.
अंशिका: हम्म.
मैं: अच्छा तुम सुनाओ....आज का दिन कैसा बीता.
अंशिका (धीरे से): क्या बताऊ विशाल...आज बड़ा ही अजीब लग रहा था पूरा दिन. मुझे पता था की कन्नू तुम्हारे साथ है और क्या कर रही है. पर फिर भी मुझे बड़ी ही बेचनी थी. तभी मैंने तुम्हे फोन भी किया था और सच कहू. तुमने मुझे फ़ोन नहीं रखने दिया, मुझे अच्छा लगा. आज कई दिनों के बाद मुझे ऐसा ओर्गास्म हुआ, फोन पर. मन तो कर रहा था की मैं तुम दोनों को वो सब करते हुए देखती. पर ये मुमकिन नहीं था.
मैं: अगर ऐसी बात है तो अगली बार तुम सामने बैठ जाना और हम दोनों करेंगे.
अंशिका: और अभी तो तुम कह रहे थे की तुम उसे दोबारा नहीं...सेक्स
मैं: यार, तुम कभी कुछ कहती हो और कभी कुछ...चलो छोड़ो ये सब बाते. तुम्हारा टूर कब जा रहा है.
अंशिका: अगले वीक बुधवार को.
मैं: हम्म...आज फ्राईडे है. संडे को मम्मी-पापा आ जायेंगे. मैं उनसे कह दूंगा फिर.
अंशिका: और वहां जाकर तुम इधर-उधर मुंह मत मारना...समझे.
मैं: मैं तुम्हे ऐसा लगता हूँ क्या..??
अंशिका: मैं जानती हूँ. की तुम कैसे हो...समझे.
मैं (हँसते हुए): ओके बाबा...तुम जीती मैं हारा. ओके...अब मुझे नींद आ रही है. बाय
अंशिका: हाँ हाँ....अब तो नींद आएगी ही. पुरे दिन में चार बार जो किया है तुमने...चलो सो जाओ अब. मैं कल बात करुँगी.
मैं: बाय...गुड नाईट.
और फिर हमने फोन रख दिया.