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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#87
अध्याय 39


“माँ! आपको याद होगा... हमारे रिश्ते की सच्चाई खुलने के बाद हमारे बीच में एक वादा हुआ था........ कि.... चाहे जो हो.... लेकिन हम आपके ही बच्चे रहेंगे और आप हमारी माँ रहेंगी....... किसी के मिलने या बिछड़ने से हमारे आपसी रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा” अनुराधा ने अपनी जगह से उठते हुये कहा और रागिनी के पास आकर घुटनों के बल जमीन पर बैठकर अपना सिर रागिनी के घुटनों पर रख दिया, प्रबल भी अपनी जगह से उठा और अनुराधा के बराबर में आकर बैठ गया

“अब तुम दोनों ये बचपना मत करो, दीदी कि भी अपनी ज़िंदगी है... उन्हें भी आज न सही उम्र ढलने पर कभी अपने पति और परिवार कि कमी महसूस होगी। उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने दो...” विक्रम ने थोड़े गुस्से से अनुराधा और प्रबल कि ओर देखते हुये कहा

“दीदी! हम सब यही चाहते हैं कि अब तक जो भी हुआ और जिसकी भी वजह से हुआ.... लेकिन अब जब सब सही हो गया है तो आप को भी अपनी ज़िंदगी जीने, अपना परिवार बसने का अधिकार है... हम सभी चाहते हैं कि आप स्वयं अपना जीवन साथी चुनें... अपनी पसंद से.... आप हम सब से बड़ी हैं और बड़ी ही रहेंगी... पूरा परिवार आपके साथ है...लेकिन अब आप भी अपना जीवन अपनी पसंद से जिएँ” नीलिमा ने भी रागिनी से कहा

“अगर तुम लोगों ने अपनी बात कह ली हो तो में भी अपनी बात कहूँ?” रागिनी ने गंभीर स्वर में कहा

“जी दीदी.... आप बताइये... यहाँ वही होगा जो आप कहेंगी” सुशीला ने कहा

“सबसे पहली बात.... अनुराधा और प्रबल अगर मेरे साथ रहना चाहते हैं, तो ये मेरे साथ ही रहेंगे। कोई भी इन पर ज़ोर जबर्दस्ती नहीं करेगा....कोई भी ....समझे। और दूसरी बात...अब सभी एक दूसरे को जान गए हैं...। लेकिन मुझे आज भी हमारे परिवार में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा...यहाँ सब अपनी अपनी चलाने की कोशिश कर रहे हैं....क्या कोई इस परिवार का मुखिया है... जो सभी के लिए फैसले ले और सब उसके फैसले मानें” रागिनी ने कठोर शब्दों में कहा तो वहाँ एकदम सन्नाटा छा गया

“दीदी! हम सब भाई बहनों में आप ही सबसे बड़ी हैं.... तो आप ही इस परिवार की मुखिया हैं” सुशीला ने खामोशी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय और नीलिमा ने भी सहमति में सिर हिलाया

“नहीं! में तुम्हारे परिवार की मुखिया नहीं हूँ... मुझे अपनी ज़िंदगी... तुम सब और अपने से बड़ों की फैलाई गंदगी साफ करने में नहीं बर्बाद करनी। पहले ही मेरी आधी ज़िंदगी एक तो उस बाप ने खराब कर दी.... जिसे हवस के अलावा कुछ भी नहीं पता था, अपनी बेटी को भी हवस की भेंट चढ़ा देता...दूसरा भाई... वो भी मेरी याददास्त जाने का फाइदा उठाकर कभी अपने चाचा की बीवी बना देता, कभी अपनी माँ और कभी इश्क़ फरमाता....अब मुझे अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीनी है.... और मेरे पास अपने दो बच्चे हैं.... जिन्हें कोई भी मुझसे अलग नहीं कर सकता” 

“दीदी! पापा के बारे में तो में कुछ नहीं कहता... लेकिन मेंने क्या किया... आपको अगर विमला बुआ के घर उस नर्क में रहना पड़ा तो पापा की वजह से, ममता और नाज़िया ने आपके खिलाफ साजिश की तो पापा की वजह से, मेंने आपकी सुरक्षा की वजह से आपकी पहचान बदलकर आपको कोटा रखा... वो मेरे दुश्मन नहीं थे पापा, नाज़िया आंटी के दुश्मन थे.... और ये बच्चे मुझे पालने थे इसलिए आपके पास छोड़े थे.... मेंने कभी आपसे ये नहीं कहा की में आपसे प्यार करता हूँ, ना ही मेंने कुछ गलत किया आपके साथ..... फिर भी आप मुझे दोष दे रही हैं” रणविजय ने भी गुस्से में जवाब दिया

“में कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन अब कहती हूँ.... जिससे तुम्हें अपनी गलतियाँ समझ आ सकें.... कम से कम जो मेरे साथ हुआ... वो तुम्हारे बच्चों के साथ ना हो............. पहली बात... जब और जो भी पापा ने किया... उस समय तुम भी बच्चे नहीं रह गए थे... बल्कि एक आम आदमी से ज्यादा समझदार और दबंग थे.... एक बहुत बड़े क्रिमिनल जिसके नाम से दिल्ली के आसपास 150-200 किलोमीटर तक लोग काँपते थे..... लेकिन तुमने क्या किया?..... कॉलेज में मेरे साथ पढ़ते थे... लेकिन बहन से ज्यादा ऐयाशी में लगे रहते.... बाप के कारनामों से वाकिफ थे.... फिर भी कभी ये नहीं सोचा कि बहन को अपने पास रखूँ .....बजाय उस बाप के.... और सोच भी कैसे सकते थे.... माहौल तो तुम्हारा भी उतना ही गंदा था..... मुझे इतने साल से कोटा में रखे हुये थे.... कभी ये सोचा कि बहन की शादी ही कर दूँ... मेरी याददास्त चली गयी थी, पागल नहीं थी में..... जब मेंने तुमसे प्यार का इजहार किया.... में तो नहीं जानती थी कि तुम मेरे भाई हो.... लेकिन तुम तो बता सकते थे कि में तुम्हारी बहन हूँ.... तो शायद में अपनी उस उम्र को नाकाम इश्क़ में तड़पते हुये गुजरने की बजाय.... एक नए विकल्प का सोचती.... मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने में जितना पापा का हाथ है...उतना ही तुम्हारा भी है............... आज मुझे पछतावा होता है कि जब माँ कि मृत्यु हुई थी तब ताऊजी, ताईजी के पास रहने के उनके प्रस्ताव को मेंने क्यों नहीं माना... उस समय तो मेरे आँखों पर मोह कि पट्टी बंधी थी.... अपने पापा, अपना भाई...इनके बारे में सोचती थी.... उस समय कोटा ले जाने की बजाय अगर तुमने मुझे रवीन्द्र के पास भी छोड़ दिया होता तो वो मेरी सुरक्षा भी कर लेता और शायद आज में अपने घर बसाये हुये होती” रागिनी ने भी अपने दिल का गुब्बार सामने निकाल कर रक्ख दिया तो रणविजय चुपचाप सिर झुकाकर बैठ गया... सुशीला और नीलिमा भी एक दूसरे कि ओर देखने लगीं.... मोहिनी, शांति, ऋतु और सभी बच्चे चुपचाप बैठे थे

अचानक वैदेही अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और उसने भानु को भी साथ आने का इशारा किया। रागिनी के पास पहुँचकर वैदेही ने अनुराधा और प्रबल को हाथ पकड़कर उठाया और रागिनी को भी साथ आने को कहा। रागिनी, अनुराधा, प्रबल और भानु, वैदेही के पीछे-पीछे अंदर की ओर चल दिये। सुशीला ने उठकर उन्हें रोक्न चाहा तो भानु ने हाथ के इशारे से उन्हें वहीं बैठने को कहा।

अंदर रागिनी के कमरे में सभी के अंदर जाने के बाद भानु ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। बाहर बैठे सभी बेचैनी से एक दूसरे को देखने लगे

“सुशीला! ये बच्चे रागिनी को अंदर क्यों ले गए... क्या बात है?” आखिरकार मोहिनी देवी ने सुशीला से कहा

“चाची जी! वैदेही उन्हें अंदर क्यों ले गयी.... ये तो मुझे अंदाजा है.... लेकिन अब बात क्या होगी.... वो तो में क्या... कोई भी.... नहीं जान सकता....... पता है क्यों?” सुशीला ने बड़े शांत भाव से कहते हुये रणविजय की ओर देखा तो वो चौंक गया

“मतलब....भाभी....इसका मतलब....भैया से बात होगी दीदी की...इन बच्चों के पास नंबर है भैया का.........और आप कहती हो, आपकी बात नहीं होती...आपको उनके बारे में कुछ पता नहीं” रणविजय ने सुशीला से कहा तो मोहिनी और ऋतु भी चौंक गईं और रणविजय की ओर देखने लगीं

“धुरंधर तो तुम भी बहुत बड़े हो... तुमसे ज्यादा तुम्हारे भैया को और कौन जानता है....बस ये है.... कि हम सब को वो बिना कोशिशों के हासिल हो गए तो हम उनपर ध्यान नहीं देते...........वरना अब तक तो आप उनसे मिल भी लिए होते.... मुझसे वो खुद मिलने आएंगे.... लेकिन ऐसे नहीं...जिस दिन में उनकी शर्त मान लूँगी.... और ऐसा मेरा अभी कोई इरादा नहीं है....बच्चों की उनसे बात होती रहती है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय आकर उनके सामने जमीन पर बैठ गया...और उनके पैर पकड़कर आँखों में आँसू लाकर सुशीला से बोला

“भाभी मुझे भी भैया से बात करा दो.... एक बार उनसे मिलना चाहता हूँ”

“पता है तुम्हारे भैया तुम्हें ऐसे देखकर क्या कहते.... वो कहते हैं कि सारा परिवार नौटंकीबाज है और उनमें भी सबसे बड़ा ड्रामेबाज़ वो तुम्हें मानते हैं.... तुम मुझसे सीधे-सीधे भी कह सकते थे कि तुम्हारी उनसे बात करा दूँ….ये मुझे रोकर दिखाने की जरूरत क्या है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा और रणविजय का हाथ पकड़कर उसे अपने बराबर में सोफ़े पर बैठने को कहा

रणविजय चुपचाप उठकर खड़ा हो गया... लेकिन सुशीला के बराबर में नहीं बैठा... तब सुशीला ने उसे फिर बैठने को कहा तो उसने बोला की वो आज तक कभी उनके बराबर में नहीं बैठा और आज भी उसी मर्यादा को बनाए रखेगा.... यहाँ ये बातें चल रही थी उधर अंदर रागिनी और बच्चों की क्या बातें हुई ये जानने की बेचैनी भी सभी में थी। क्योंकि पूरा परिवार जानता था हर बात को समझने और करने का नज़रिया रवीद्र का पूरे परिवार से अलग रहा था शुरू से.... अच्छा नहीं उचित निर्णय.... चाहे वो किसी को या सभी को बुरा लगे। सुशीला ने रणविजय और सभी से कहा कि वो रवीद्र से उनकी बात कराएगी लेकिन अभी पहले रागिनी और बच्चों कि बात हो जाने दो.... फिर सब आपस में रागिनी कि कही गयी बातों पर विचार-विमर्श करने लगे।

थोड़ी देर बाद रागिनी और बच्चे बाहर हॉल में आए तो सभी उनकी ओर देखने लगे। सबको ऐसे देखता पाकर रागिनी मुस्कुराई और जाकर सुशीला के बराबर में बैठ गयी।

“ऐसे क्या देख रहे हो सब.... अब मेरी बात सुनो... मेरी रवीद्र से बात हुई है... और रणविजय के बारे में अपना आखिरी फैसला मेंने उसे बता दिया.... रणविजय ने घर में कोई भी ज़िम्मेदारी आजतक ढंग से पूरी नहीं की... इसलिए अब से घर के मामलों में फैसले रवीद्र खुद लेगा या उसकी ओर से सुशीला भाभी.............. रणविजय आज से अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीने को स्वतंत्र है... अपना घर, अपने बच्चे.... लेकिन प्रबल के मामले में रवीन्द्र का कहना है... कि वो कोई छोटा बच्चा नहीं.... अपने बारे में वो स्वयं फैसला करेगा..... अब रही मेरी बात तो में यहाँ भी रह सकती हूँ... और कोटा वाली हवेली में भी..... शांति, अनुराधा और अनुभूति मेरे साथ ही रहेंगे...प्रबल अगर रहना चाहे तो वो भी ...... रणविजय को कंपनी दे दी गयी है... उसमें धीरेंद्र भी शामिल रहेगा....लेकिन इन दोनों का परिवार के और किसी मामले में दखल नहीं होगा” रागिनी ने कहा तो रणविजय फूट-फूट कर रोने लगा और वहीं रागिनी के पास जमीन पर बैठ गया

“मुझे भैया और आपने घर से बिलकुल अलग कर दिया” रणविजय ने रागिनी से कहा

“तुम्हें किसी ने अलग नहीं किया.... तुम्हें जो जिम्मेदारिया दी गईं वो तुम ढंग से निभा नहीं सके...और अपनी गलतियों के लिए रोकर सबको भावुक बनाकर बच निकालना चाहते हो.... इसलिए तुम्हें तुम्हारे परिवार की ही ज़िम्मेदारी दे दी गयी है.... वो निभा कर दिखाओ...और यही धीरेंद्र के साथ भी है.... ऐसा नहीं की उसने तुम दोनों के साथ कुछ बुरा कर दिया.... लेकिन तुम्हारी लापरवाही से परिवार में किसी और के साथ बुरा ना हो पाये इसलिए बाकी परिवार की ज़िम्मेदारी उसने खुद अपने ऊपर ले ली है” रागिनी ने कहा

“दीदी! अब तो आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए... में अपने बच्चों को लेकर गाँव में ही रहूँगी... अब अगर आप सब तैयार हों तो मेरा मन है कि इन सब बच्चों को लेकर गाँव और मंजरी दीदी के यहाँ चलते हैं....जिससे ये बच्चे भी परिवार के लोगों को जान-समझ सकें...और बलराज चाचाजी और मोहिनी चाचीजी का मामला भी निबटाएँ...फिर सब अपना-अपना देखते हैं.... कम से कम अब पहले की तरह हालात तो नहीं होंगे ...कि किसी को दूसरे के बारे में पता ही नहीं” सुशीला बोली

“ठीक है.... चलो सब तैयार हो जाओ... अभी निकलते हैं” रागिनी ने भी कहा

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RE: मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक - by kamdev99008 - 04-10-2020, 06:54 PM



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