04-10-2020, 02:25 PM
अध्याय 38
सुशीला को रोते देखकर मोहिनी ने उसे अपने गले लगा लिया। शांति, रागिनी, नीलिमा भी सुशीला के पास आ गए...उसे चुप कराने लगे...लेकिन सब को अपने पास महसूस करके सुशीला और भी ज्यादा रोने लगी
“चुप होजा बेटी.... रवि हर हाल में आयेगा.... उसे आना ही होगा....” मोहिनी ने समझाते हुये कहा
“आपको क्या लगता है चाचीजी में सारे घर-परिवार और बच्चों के बीच हँसती मुसकुराती रहती हूँ तो में खुश हूँ.... या मुझे उनकी याद नहीं आती...वो तो घर में रहकर भी अकेले ही रहते थे....तब में भी उनसे ज्यादा घर को अपनाए हुयी थी... क्योंकि मुझे लगता था की वो तो मेरे हैं ही.......... लेकिन आज जब वो मेरे साथ नहीं हैं तो में उन से भी ज्यादा अकेली हो गयी हूँ..... जबकि वही सारा परिवार आज मेरे साथ है” कहती हुई सुशीला और भी ज़ोर से रोने लगी
“अच्छा अब चुप हो जाओ और हमें खुशी-खुशी भेजो.... में तुमसे ये नहीं कहूँगी कि तुम हमारे साथ चलो.... लेकिन यहाँ रहकर हमारी कामयाबी के लिए प्रार्थना तो कर सकती हो, हम हर हाल में रवि का पता लगाकर ही आएंगे” कहते हुये मोहिनी ने सबकी ओर देखा तो सब सुशीला के पास आए और उसकी पीठ पर हाथ रखकर सांत्वना देने लगे।
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“दादा जय सिया राम” उधर से आवाज आयी तो विनायक ने आवाज पहचानने की कोशिश की
“अरे चाचा आप..... जय सिया राम चाचा! में विनायक बोल रहा हूँ...” विनायक ने पहचानते ही कहा
“सब कैसे हैं बेटा.... और दादा कहाँ हैं?” उधर से कहा गया
“चाचा आज तो कई साल बाद आपने घर फोन किया है.... पिताजी बाहर ही हैं... में अभी उनसे बात कराता हूँ” विनायक ने कहा
“ठीक है... दादा को बुला ला.... तब तक भाभी से बात करा मेरी” उधर से फिर कहा गया तो विनायक ने अपनी माँ को ले जाकर फोन दिया
“किसका फोन है...” मंजरी ने पूंछा तो विनायक ने हँसकर फोन उसके कान पर लगा दिया
“आप ही पता कर लो” और हँसते हुये बाहर चला गया
“कौन” मंजरी ने फोन अपने कण पर लगते हुये कहा
“भाभी नमस्ते! कैसी हैं आप?” उधर से आवाज आयी तो मंजरी भाभी शब्द सुनते ही चोंक गयी
“नमस्ते में ठीक हूँ.... आप कौन” मंजरी ने पूंछा
“आप अब भी नहीं समझीं.... सोचो कौन हो सकता है” उधर से बात करनेवाले ने मंजरी की बेचैनी का मजा लेते हुये कहा
“मुझे कभी कोई भाभी नहीं कहता.... सिवाय...”मंजरी ने बोला तो दूसरी ओर से हंसने की आवाज आयी
“सिवाय मेरे.......... आपकी ज़िंदगी में अकेला में ही हूँ.....या कोई और भी है” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा
“आज अपनी भाभी की कैसे याद आ गयी.... हमेशा तो अपनी भतीजे से ही संदेश भिजवाते हो” मंजरी ने गुस्सा होते हुये कहा
“भतीजा... अरे वो तो मेरा बेटा है....बड़ा बेटा और रहा मेरे बात न करने का सवाल... तो आप ही अपने इस बेटे को भूल गईं...आपने ही कहाँ कभी बात की” उसने उदास लहजे में कहा
“मेंने तो कितनी बार विनायक से तुम्हारा नंबर मांगा लेकिन वो बहाने बना देता है की तुम्हारा कोई नंबर उसके पास नहीं... हमेशा तुम ही उसे कॉल करते हो” मंजरी ने जवाब दिया
“मुझसे बात करने के लिए मेरा नंबर होना जरूरी है क्या? अगर आप सुशीला से भी मिल लेतीं, उससे बात कर लेतीं तो भी मुझे यही लगता की आपने मुझसे बात की है.... भाभी! पूरे परिवार में किसी ने ये जानने की कभी कोशिश ही नहीं की कि सुशीला और बच्चे कैसे हैं.... या उन्हें भी किसी कि जरूरत हो सकती है... चलिये छोड़िए.... आप कैसी हैं” उसने बात बदलते हुये कहा तो अपने मन में ग्लानि महसूस करती मंजरी के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गयी
“बूढ़ी हो गयी हूँ....और कैसी होऊंगी..... ये तो उम्र ही ऐसी है कि बिना पूंछे ही बीमारियाँ आती-जाती रहती हैं” मंजरी ने कहा
“कहाँ से बूढ़ी हो गईं आप.... दादा के काम की भी नहीं रहीं क्या.... तो दादा का भी कुछ इंतजाम कराना पड़ेगा....वो तो अभी बूढ़े नहीं हुये” उधर से कहा गया तो मंजरी हंस दी
“मुझे सुशीला मत समझ लेना ..... उसने तुम्हें आज़ादी दे दी... लेकिन में तुम्हारे दादा के पीछे-पीछे वहीं पहुँच जाऊँगी” मंजरी ने बोला
“में कहाँ जा रहा हूँ.... जो तुम्हें पीछा करना पड़े...” अचानक पीछे से आयी अपने पति की आवाज सुनकर मंजरी चोंक गयी
“क्या पता कहीं जाने की सोचने लगा...अपने भाई की तरह.... लो बात कर लो” कहते हुये मंजरी ने फोन अपने पति की ओर बढ़ा दिया
“दादा नमस्ते! कहाँ घूमते रहते हो.... दूसरे घर गए थे क्या?” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा
“नमस्ते! एक ही चुड़ैल ने खून पी रखा है.... दूसरी आफत क्यों मोल लूँगा... ये तो तुम ही कर सकते हो.... कहाँ पर हो” उन्होने कहा
“दादा सब ठीक हूँ.... वक़्त आने पर सिर्फ बताऊंगा ही नहीं...बुलाऊंगा भी... अभी एक जरूरी बात बतानी थी आप लोगों को....” उधर से कहा गया
“हाँ बताओ... क्या बात है” उन्होने कहा
“बलराज चाचाजी दिल्ली से चुपचाप चले आए हैं घर पर बिना बताए, आप एक बार उनकी ननिहाल में पता करवाओ... मेरे ख्याल से वो वहीं पर हैं... उनका किसी भी तरह पता लगा के उन्हें अपने पास ले आओ... दिल्ली से कोई आकर उन्हें ले जाएगा” उधर से कहा गया
“कोई बात नहीं में देख लूँगा, और अब उन्हें दिल्ली जाने की भी जरूरत नहीं। वो हमारे साथ ही रह लेंगे, आखिरकार मेरे भी चाचा हैं” वीरेंद्र ने कहा
“ठीक है दादा, आप देख लेना जो आपको सही लगे” उधर से कहा गया
“और तुम कब आओगे? कितने साल हो गए तुम्हें देखे” वीरेंद्र ने कहा
“दादा देखो किस्मत कब मिलाये.... वैसे मुझे लगता है वो समय अब आ गया है... जल्दी ही हम सब फिर से मिलेंगे, अब में रखता हूँ” कहते हुये उधर से फोन रख दिया गया
वीरेंद्र ने फोन काटा और मंजरी की ओर देखा, वीरेंद्र की आँखों में हल्की सी नमी देख मंजरी उनके पास आयी, उनकी भी आँखों में नमी थी।
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“में बलराज बोल रहा हूँ” मोहिनी, ऋतु, रागिनी और नीलिमा अभी घर से बाहर निकलकर गाड़ी में बैठते ही जा रहे थे कि मोहिनी का फोन बजने लगा मोहिनी ने देखा किसी अंजान नंबर से कॉल थी तो उन्होने बाहर खड़े हुये ही फोन उठाया... फोन उठाते ही उधर से बलराज की आवाज सुनाई दी
“बलराज! कहाँ हो तुम? ऐसे बिना बताए कहाँ चले गए” मोहिनी ने बलराज की आवाज सुनते ही गुस्से से कहा तो बलराज का नाम सुनते ही ऋतु, रागिनी, नीलिमा और ड्राइविंग सीट पर से रणविजय भी उतरकर उनके पास आ गए... इधर घर के दरवाजे पर खड़ी शांति और सुशीला भी पास में आकर खड़ी हो गईं
“बिना बताए! अरे .... मेंने तुम्हें बताया तो था कि में 4-5 दिन के लिए जा रहा हूँ.... तुम लोग पता नहीं कितने बेचैन हो गए। और रवि को क्यों बताया कि में घर छोडकर चला गया हूँ” उधर से बलराज ने कहा
“रवि को.... रवि का तो हमें पता भी नहीं... तुमसे किसने कहा कि रवि को हमने बताया? और सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम हो कहाँ” मोहिनी ने फिर से पूंछा... इधर रवि का नाम सुनते ही सभी कि उत्सुकता बढ़ गयी
“में वीरेंद्र के पास हूँ... रवि ने वीरेंद्र को कॉल करके बताया था... सुशीला से तो नहीं कहा था तुमने... कभी सुशीला ने ही रवि को बोलकर यहाँ फोन कराया हो” बलराज ने कहा तो सुशीला ने मोहिनी को इशारा कर फोन अपने हाथ में ले लिया...
“चाचाजी नमस्ते! में सुशीला बोल रही हूँ”
“हाँ बेटी कैसी हो तुम....”
“में तो ठीक हूँ .... आप कैसे हैं और कहाँ हैं...” सुशीला ने पूंछा
“में वीरेंद्र के पास हूँ.... गढ़ी आया था में... वीरेंद्र को रवि ने फोन करके मेरे बारे में बताया और अपने साथ लाने के लिए कहा। रवि से तुमने कहा था क्या? और तुम क्या दिल्ली आयी हुई हो?” बलराज ने पूंछा
“चाचाजी में चंडीगढ़ गयी थी विक्रम के पास वहाँ से विक्रम और हम सभी यहाँ आ गए हैं रागिनी दीदी के पास... चाचीजी, विक्रम और ये सब आप की तलाश में निकाल ही रहे थे तब तक आपका फोन आ गया... वैसे आपका फोन तो बंद आ रहा है... ये किसका नंबर है” सुशीला ने कहा
“ये वीरेंद्र का ही नंबर है.... मेंने अपना फोन तो ऑन ही नहीं किया... कुछ दिन अकेला रहना चाहता था.... चलो गढ़ी ना सही यहीं सही... और इन लोगों से भी कह देना कि में अब कुछ दिन यहीं रहूँगा” बलराज ने कहा
“ठीक है चाचाजी कोई बात नहीं... वैसे में भी गाँव ही आ रही हूँ... आपका जब मन हो गाँव आ जाना... में भी अकेली ही रहूँगी... आप आ जाएंगे तो अच्छा लगेगा..... मंजरी दीदी से बात करा दो मेरी” सुशीला ने कहा तो बलराज ने फोन मंजरी को दे दिया और उन दोनों कि आपस में बातें होने लगीं
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सुशीला कि बात खत्म होने के बाद ऋतु ने कहा कि वो बलराज को लेने वहाँ जाएगी लेकिन मोहिनी और सुशीला ने मना कर दिया कि घूमने-मिलने जाना चाहें तो चल सकते हैं लेकिन उनको लाने के लिए दवाब नहीं दिया जाएगा। रणविजय ने भी उनकी बात का समर्थन किया तो ऋतु चुप हो गयी लेकिन रागिनी कुछ सोच में डूबी हुई चुपचाप ही खड़ी रही...जब तक इन सबकी बातें चलती रहीं। इस बात पर किसी और का ध्यान नहीं गया लेकिन सुशीला की नज़र से छुप नहीं सकी
फिर सुशीला ने कहा कि बच्चों को भी आ जाने दो फिर देखते हैं 2-3 दिन के लिए जाने का कार्यक्रम बनाएँगे... जिससे बलराज से भी मिल लेंगे और वीरेंद्र के परिवार से भी सबका परिचय हो जाएगा। फिर विक्रम यानि रणविजय ने बताया कि वीरेंद्र के यहाँ पहले वो भी घूमकर आया था रविन्द्र भैया के साथ लेकिन अब तो बहुत साल हो गए हैं.... तो सुशीला ने कहा की वो तो 5-6 साल पहले ही गईं थी ....वीरेंद्र भैया की बड़ी बेटी की शादी में।
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बच्चे कॉलेज कॉलेज से वापस लौटकर घर आए तो प्रबल कुछ उदास सा था। थोड़ी देर बाद सबने हाथ-मुंह धोकर खाना खाया और अपने अपने कमरों की ओर चल दिये तो सुशीला ने सबको हॉल में बैठने को कहा, कुछ जरूरी बात करने के लिए। जब सभी हॉल में आकर बैठ गए तो सुशीला जाकर रागिनी के पास बैठ गयी और रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेकर सबकी ओर नज़र घुमाते हुये बोलना शुरू किया
“पहली बात तो ये है कि आज रात या कल सुबह हम सभी गाँव चलेंगे...और अपने घर परिवार के लोगों से मिलकर आएंगे.... अब हमें इस घर को दोबारा बनाना है तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे घर-पअरिवार में कौन-कौन हैं.... वरना फिर से पहले जैसे हालात बन जाएंगे कि सगे भाई बहन को भी एक दूसरे के बारे में जानकारी ही नहीं”
“हाँ भाभी.... में भी यही चाहती हूँ.... कि ये बच्चे हमारी तरह अकेले ना भटकते फिरें.... आज रात को ही गाँव चलते हैं” ऋतु ने भी चहकते हुये कहा
“अब दूसरी बात .....आप सभी ने पता नहीं इस बात पर ध्यान दिया या नहीं लेकिन मुझे ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है की जब से हम सब यहाँ आए हैं रागिनी दीदी कुछ उदास और उलझी-उलझी सी हैं, अब ये अभी से हैं या पहले से ही...ये नहीं कह सकती...इनके अलावा यहाँ कोई और भी इन्हीं की तरह उदास और उलझा हुआ है... लेकिन उसके बारे में दीदी का मामला सुलझने के बाद बताऊँगी”
“हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है... और शायद इसकी वजह है कि रागिनी दीदी को पिछला कुछ भी याद नहीं हमारे बारे में इसीलिए ये उलझी हुई रहती हैं” रणविजय ने कहा
“याद तो इन्हें पिछले 20 साल से नहीं था.... ये बात तुमसे अच्छा और कौन जानता है...आखिर पिछले 20 साल से तुम्हारे ही साथ तो रही थीं... ये वजह कुछ और है” कहते हुये सुशीला ने रागिनी की ओर देखा और फिर रणविजय की ओर गहरी सी नज़र डाली तो रणविजय ने कुछ असहज सा महसूस किया और रागिनी कि ओर देखा तो वो भ रणविजय कि ओर ही देख रही थी...कुछ देर एक दूसरे कि आँखों में देखने के बाद दोनों ने अपनी नज़रें सुशीला की ओर घुमाईं तो उसे अपनी ओर घूरते पाया
“दीदी अब तक यहाँ जो भी हुआ या हो रहा है... अपने ही सम्हाला और आपके अनुसार चल रहा था.... लेकिन... अब कुछ फैसले मेंने आपसे बिना सलाह किए या आपको बताए बिना भी ले लिए... अब तक घर मेंने अपने बड़े होने के अधिकार से सबकुछ सम्हाला, फैसले लिए... उसी धुन में यहाँ भी.... लेकिन अभी मुझे अहसास हुआ कि यहाँ आज जो हम सब इकट्ठे हुये हैं.... सब आपकी वजह से ही हैं... और आपके फैसलों से ही आज पूरा परिवार इकट्ठा हो पाया है...जुड़ पाया है॥ में आपसे अपनी भूल के लिए क्षमा चाहती हूँ.... अबसे हम सभी आपके अनुसार ही चलेंगे" कहते हुये सुशीला ने अपने हाथ में थामे हुये रागिनी के हाथों को अपने माथे से लगा लिया
"नहीं... तुम सब का अंदाजा गलत है...... मुझे अपना हुक्म चलाने या लोगों के बारे में जानने का कभी ना तो शौक रहा और ना ही आदत मेरी इस उलझन की वजह कुछ और है" रागिनी न कहा तो सभी उनके मुंह कि ओर देखने लगे
"फिर क्या बात है दीदी..." अबकी बार नीलिमा भी उठकर रागिनी के बराबर में दूसरी ओर बैठ गयी और अपने हाथ सुशीला व रागिनी के हाथों पर ही रख दिये
"आज तुम सब को परिवार मिल गया .... प्रबल को भी माँ-बाप मिल गए, अनुराधा की ज़िम्मेदारी भी तुम सब मिलकर पूरी कर लोगे... मुझे पूरा भरोसा है...अब मेरे लिए क्या बचा करने को.... मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मुझे क्या करना है और क्यूँ?"
सुशीला को रोते देखकर मोहिनी ने उसे अपने गले लगा लिया। शांति, रागिनी, नीलिमा भी सुशीला के पास आ गए...उसे चुप कराने लगे...लेकिन सब को अपने पास महसूस करके सुशीला और भी ज्यादा रोने लगी
“चुप होजा बेटी.... रवि हर हाल में आयेगा.... उसे आना ही होगा....” मोहिनी ने समझाते हुये कहा
“आपको क्या लगता है चाचीजी में सारे घर-परिवार और बच्चों के बीच हँसती मुसकुराती रहती हूँ तो में खुश हूँ.... या मुझे उनकी याद नहीं आती...वो तो घर में रहकर भी अकेले ही रहते थे....तब में भी उनसे ज्यादा घर को अपनाए हुयी थी... क्योंकि मुझे लगता था की वो तो मेरे हैं ही.......... लेकिन आज जब वो मेरे साथ नहीं हैं तो में उन से भी ज्यादा अकेली हो गयी हूँ..... जबकि वही सारा परिवार आज मेरे साथ है” कहती हुई सुशीला और भी ज़ोर से रोने लगी
“अच्छा अब चुप हो जाओ और हमें खुशी-खुशी भेजो.... में तुमसे ये नहीं कहूँगी कि तुम हमारे साथ चलो.... लेकिन यहाँ रहकर हमारी कामयाबी के लिए प्रार्थना तो कर सकती हो, हम हर हाल में रवि का पता लगाकर ही आएंगे” कहते हुये मोहिनी ने सबकी ओर देखा तो सब सुशीला के पास आए और उसकी पीठ पर हाथ रखकर सांत्वना देने लगे।
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“दादा जय सिया राम” उधर से आवाज आयी तो विनायक ने आवाज पहचानने की कोशिश की
“अरे चाचा आप..... जय सिया राम चाचा! में विनायक बोल रहा हूँ...” विनायक ने पहचानते ही कहा
“सब कैसे हैं बेटा.... और दादा कहाँ हैं?” उधर से कहा गया
“चाचा आज तो कई साल बाद आपने घर फोन किया है.... पिताजी बाहर ही हैं... में अभी उनसे बात कराता हूँ” विनायक ने कहा
“ठीक है... दादा को बुला ला.... तब तक भाभी से बात करा मेरी” उधर से फिर कहा गया तो विनायक ने अपनी माँ को ले जाकर फोन दिया
“किसका फोन है...” मंजरी ने पूंछा तो विनायक ने हँसकर फोन उसके कान पर लगा दिया
“आप ही पता कर लो” और हँसते हुये बाहर चला गया
“कौन” मंजरी ने फोन अपने कण पर लगते हुये कहा
“भाभी नमस्ते! कैसी हैं आप?” उधर से आवाज आयी तो मंजरी भाभी शब्द सुनते ही चोंक गयी
“नमस्ते में ठीक हूँ.... आप कौन” मंजरी ने पूंछा
“आप अब भी नहीं समझीं.... सोचो कौन हो सकता है” उधर से बात करनेवाले ने मंजरी की बेचैनी का मजा लेते हुये कहा
“मुझे कभी कोई भाभी नहीं कहता.... सिवाय...”मंजरी ने बोला तो दूसरी ओर से हंसने की आवाज आयी
“सिवाय मेरे.......... आपकी ज़िंदगी में अकेला में ही हूँ.....या कोई और भी है” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा
“आज अपनी भाभी की कैसे याद आ गयी.... हमेशा तो अपनी भतीजे से ही संदेश भिजवाते हो” मंजरी ने गुस्सा होते हुये कहा
“भतीजा... अरे वो तो मेरा बेटा है....बड़ा बेटा और रहा मेरे बात न करने का सवाल... तो आप ही अपने इस बेटे को भूल गईं...आपने ही कहाँ कभी बात की” उसने उदास लहजे में कहा
“मेंने तो कितनी बार विनायक से तुम्हारा नंबर मांगा लेकिन वो बहाने बना देता है की तुम्हारा कोई नंबर उसके पास नहीं... हमेशा तुम ही उसे कॉल करते हो” मंजरी ने जवाब दिया
“मुझसे बात करने के लिए मेरा नंबर होना जरूरी है क्या? अगर आप सुशीला से भी मिल लेतीं, उससे बात कर लेतीं तो भी मुझे यही लगता की आपने मुझसे बात की है.... भाभी! पूरे परिवार में किसी ने ये जानने की कभी कोशिश ही नहीं की कि सुशीला और बच्चे कैसे हैं.... या उन्हें भी किसी कि जरूरत हो सकती है... चलिये छोड़िए.... आप कैसी हैं” उसने बात बदलते हुये कहा तो अपने मन में ग्लानि महसूस करती मंजरी के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गयी
“बूढ़ी हो गयी हूँ....और कैसी होऊंगी..... ये तो उम्र ही ऐसी है कि बिना पूंछे ही बीमारियाँ आती-जाती रहती हैं” मंजरी ने कहा
“कहाँ से बूढ़ी हो गईं आप.... दादा के काम की भी नहीं रहीं क्या.... तो दादा का भी कुछ इंतजाम कराना पड़ेगा....वो तो अभी बूढ़े नहीं हुये” उधर से कहा गया तो मंजरी हंस दी
“मुझे सुशीला मत समझ लेना ..... उसने तुम्हें आज़ादी दे दी... लेकिन में तुम्हारे दादा के पीछे-पीछे वहीं पहुँच जाऊँगी” मंजरी ने बोला
“में कहाँ जा रहा हूँ.... जो तुम्हें पीछा करना पड़े...” अचानक पीछे से आयी अपने पति की आवाज सुनकर मंजरी चोंक गयी
“क्या पता कहीं जाने की सोचने लगा...अपने भाई की तरह.... लो बात कर लो” कहते हुये मंजरी ने फोन अपने पति की ओर बढ़ा दिया
“दादा नमस्ते! कहाँ घूमते रहते हो.... दूसरे घर गए थे क्या?” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा
“नमस्ते! एक ही चुड़ैल ने खून पी रखा है.... दूसरी आफत क्यों मोल लूँगा... ये तो तुम ही कर सकते हो.... कहाँ पर हो” उन्होने कहा
“दादा सब ठीक हूँ.... वक़्त आने पर सिर्फ बताऊंगा ही नहीं...बुलाऊंगा भी... अभी एक जरूरी बात बतानी थी आप लोगों को....” उधर से कहा गया
“हाँ बताओ... क्या बात है” उन्होने कहा
“बलराज चाचाजी दिल्ली से चुपचाप चले आए हैं घर पर बिना बताए, आप एक बार उनकी ननिहाल में पता करवाओ... मेरे ख्याल से वो वहीं पर हैं... उनका किसी भी तरह पता लगा के उन्हें अपने पास ले आओ... दिल्ली से कोई आकर उन्हें ले जाएगा” उधर से कहा गया
“कोई बात नहीं में देख लूँगा, और अब उन्हें दिल्ली जाने की भी जरूरत नहीं। वो हमारे साथ ही रह लेंगे, आखिरकार मेरे भी चाचा हैं” वीरेंद्र ने कहा
“ठीक है दादा, आप देख लेना जो आपको सही लगे” उधर से कहा गया
“और तुम कब आओगे? कितने साल हो गए तुम्हें देखे” वीरेंद्र ने कहा
“दादा देखो किस्मत कब मिलाये.... वैसे मुझे लगता है वो समय अब आ गया है... जल्दी ही हम सब फिर से मिलेंगे, अब में रखता हूँ” कहते हुये उधर से फोन रख दिया गया
वीरेंद्र ने फोन काटा और मंजरी की ओर देखा, वीरेंद्र की आँखों में हल्की सी नमी देख मंजरी उनके पास आयी, उनकी भी आँखों में नमी थी।
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“में बलराज बोल रहा हूँ” मोहिनी, ऋतु, रागिनी और नीलिमा अभी घर से बाहर निकलकर गाड़ी में बैठते ही जा रहे थे कि मोहिनी का फोन बजने लगा मोहिनी ने देखा किसी अंजान नंबर से कॉल थी तो उन्होने बाहर खड़े हुये ही फोन उठाया... फोन उठाते ही उधर से बलराज की आवाज सुनाई दी
“बलराज! कहाँ हो तुम? ऐसे बिना बताए कहाँ चले गए” मोहिनी ने बलराज की आवाज सुनते ही गुस्से से कहा तो बलराज का नाम सुनते ही ऋतु, रागिनी, नीलिमा और ड्राइविंग सीट पर से रणविजय भी उतरकर उनके पास आ गए... इधर घर के दरवाजे पर खड़ी शांति और सुशीला भी पास में आकर खड़ी हो गईं
“बिना बताए! अरे .... मेंने तुम्हें बताया तो था कि में 4-5 दिन के लिए जा रहा हूँ.... तुम लोग पता नहीं कितने बेचैन हो गए। और रवि को क्यों बताया कि में घर छोडकर चला गया हूँ” उधर से बलराज ने कहा
“रवि को.... रवि का तो हमें पता भी नहीं... तुमसे किसने कहा कि रवि को हमने बताया? और सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम हो कहाँ” मोहिनी ने फिर से पूंछा... इधर रवि का नाम सुनते ही सभी कि उत्सुकता बढ़ गयी
“में वीरेंद्र के पास हूँ... रवि ने वीरेंद्र को कॉल करके बताया था... सुशीला से तो नहीं कहा था तुमने... कभी सुशीला ने ही रवि को बोलकर यहाँ फोन कराया हो” बलराज ने कहा तो सुशीला ने मोहिनी को इशारा कर फोन अपने हाथ में ले लिया...
“चाचाजी नमस्ते! में सुशीला बोल रही हूँ”
“हाँ बेटी कैसी हो तुम....”
“में तो ठीक हूँ .... आप कैसे हैं और कहाँ हैं...” सुशीला ने पूंछा
“में वीरेंद्र के पास हूँ.... गढ़ी आया था में... वीरेंद्र को रवि ने फोन करके मेरे बारे में बताया और अपने साथ लाने के लिए कहा। रवि से तुमने कहा था क्या? और तुम क्या दिल्ली आयी हुई हो?” बलराज ने पूंछा
“चाचाजी में चंडीगढ़ गयी थी विक्रम के पास वहाँ से विक्रम और हम सभी यहाँ आ गए हैं रागिनी दीदी के पास... चाचीजी, विक्रम और ये सब आप की तलाश में निकाल ही रहे थे तब तक आपका फोन आ गया... वैसे आपका फोन तो बंद आ रहा है... ये किसका नंबर है” सुशीला ने कहा
“ये वीरेंद्र का ही नंबर है.... मेंने अपना फोन तो ऑन ही नहीं किया... कुछ दिन अकेला रहना चाहता था.... चलो गढ़ी ना सही यहीं सही... और इन लोगों से भी कह देना कि में अब कुछ दिन यहीं रहूँगा” बलराज ने कहा
“ठीक है चाचाजी कोई बात नहीं... वैसे में भी गाँव ही आ रही हूँ... आपका जब मन हो गाँव आ जाना... में भी अकेली ही रहूँगी... आप आ जाएंगे तो अच्छा लगेगा..... मंजरी दीदी से बात करा दो मेरी” सुशीला ने कहा तो बलराज ने फोन मंजरी को दे दिया और उन दोनों कि आपस में बातें होने लगीं
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सुशीला कि बात खत्म होने के बाद ऋतु ने कहा कि वो बलराज को लेने वहाँ जाएगी लेकिन मोहिनी और सुशीला ने मना कर दिया कि घूमने-मिलने जाना चाहें तो चल सकते हैं लेकिन उनको लाने के लिए दवाब नहीं दिया जाएगा। रणविजय ने भी उनकी बात का समर्थन किया तो ऋतु चुप हो गयी लेकिन रागिनी कुछ सोच में डूबी हुई चुपचाप ही खड़ी रही...जब तक इन सबकी बातें चलती रहीं। इस बात पर किसी और का ध्यान नहीं गया लेकिन सुशीला की नज़र से छुप नहीं सकी
फिर सुशीला ने कहा कि बच्चों को भी आ जाने दो फिर देखते हैं 2-3 दिन के लिए जाने का कार्यक्रम बनाएँगे... जिससे बलराज से भी मिल लेंगे और वीरेंद्र के परिवार से भी सबका परिचय हो जाएगा। फिर विक्रम यानि रणविजय ने बताया कि वीरेंद्र के यहाँ पहले वो भी घूमकर आया था रविन्द्र भैया के साथ लेकिन अब तो बहुत साल हो गए हैं.... तो सुशीला ने कहा की वो तो 5-6 साल पहले ही गईं थी ....वीरेंद्र भैया की बड़ी बेटी की शादी में।
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बच्चे कॉलेज कॉलेज से वापस लौटकर घर आए तो प्रबल कुछ उदास सा था। थोड़ी देर बाद सबने हाथ-मुंह धोकर खाना खाया और अपने अपने कमरों की ओर चल दिये तो सुशीला ने सबको हॉल में बैठने को कहा, कुछ जरूरी बात करने के लिए। जब सभी हॉल में आकर बैठ गए तो सुशीला जाकर रागिनी के पास बैठ गयी और रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेकर सबकी ओर नज़र घुमाते हुये बोलना शुरू किया
“पहली बात तो ये है कि आज रात या कल सुबह हम सभी गाँव चलेंगे...और अपने घर परिवार के लोगों से मिलकर आएंगे.... अब हमें इस घर को दोबारा बनाना है तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे घर-पअरिवार में कौन-कौन हैं.... वरना फिर से पहले जैसे हालात बन जाएंगे कि सगे भाई बहन को भी एक दूसरे के बारे में जानकारी ही नहीं”
“हाँ भाभी.... में भी यही चाहती हूँ.... कि ये बच्चे हमारी तरह अकेले ना भटकते फिरें.... आज रात को ही गाँव चलते हैं” ऋतु ने भी चहकते हुये कहा
“अब दूसरी बात .....आप सभी ने पता नहीं इस बात पर ध्यान दिया या नहीं लेकिन मुझे ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है की जब से हम सब यहाँ आए हैं रागिनी दीदी कुछ उदास और उलझी-उलझी सी हैं, अब ये अभी से हैं या पहले से ही...ये नहीं कह सकती...इनके अलावा यहाँ कोई और भी इन्हीं की तरह उदास और उलझा हुआ है... लेकिन उसके बारे में दीदी का मामला सुलझने के बाद बताऊँगी”
“हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है... और शायद इसकी वजह है कि रागिनी दीदी को पिछला कुछ भी याद नहीं हमारे बारे में इसीलिए ये उलझी हुई रहती हैं” रणविजय ने कहा
“याद तो इन्हें पिछले 20 साल से नहीं था.... ये बात तुमसे अच्छा और कौन जानता है...आखिर पिछले 20 साल से तुम्हारे ही साथ तो रही थीं... ये वजह कुछ और है” कहते हुये सुशीला ने रागिनी की ओर देखा और फिर रणविजय की ओर गहरी सी नज़र डाली तो रणविजय ने कुछ असहज सा महसूस किया और रागिनी कि ओर देखा तो वो भ रणविजय कि ओर ही देख रही थी...कुछ देर एक दूसरे कि आँखों में देखने के बाद दोनों ने अपनी नज़रें सुशीला की ओर घुमाईं तो उसे अपनी ओर घूरते पाया
“दीदी अब तक यहाँ जो भी हुआ या हो रहा है... अपने ही सम्हाला और आपके अनुसार चल रहा था.... लेकिन... अब कुछ फैसले मेंने आपसे बिना सलाह किए या आपको बताए बिना भी ले लिए... अब तक घर मेंने अपने बड़े होने के अधिकार से सबकुछ सम्हाला, फैसले लिए... उसी धुन में यहाँ भी.... लेकिन अभी मुझे अहसास हुआ कि यहाँ आज जो हम सब इकट्ठे हुये हैं.... सब आपकी वजह से ही हैं... और आपके फैसलों से ही आज पूरा परिवार इकट्ठा हो पाया है...जुड़ पाया है॥ में आपसे अपनी भूल के लिए क्षमा चाहती हूँ.... अबसे हम सभी आपके अनुसार ही चलेंगे" कहते हुये सुशीला ने अपने हाथ में थामे हुये रागिनी के हाथों को अपने माथे से लगा लिया
"नहीं... तुम सब का अंदाजा गलत है...... मुझे अपना हुक्म चलाने या लोगों के बारे में जानने का कभी ना तो शौक रहा और ना ही आदत मेरी इस उलझन की वजह कुछ और है" रागिनी न कहा तो सभी उनके मुंह कि ओर देखने लगे
"फिर क्या बात है दीदी..." अबकी बार नीलिमा भी उठकर रागिनी के बराबर में दूसरी ओर बैठ गयी और अपने हाथ सुशीला व रागिनी के हाथों पर ही रख दिये
"आज तुम सब को परिवार मिल गया .... प्रबल को भी माँ-बाप मिल गए, अनुराधा की ज़िम्मेदारी भी तुम सब मिलकर पूरी कर लोगे... मुझे पूरा भरोसा है...अब मेरे लिए क्या बचा करने को.... मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मुझे क्या करना है और क्यूँ?"