29-09-2020, 05:59 PM
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ऐसे ही अनाप-सनाप बकती हुई चाची, लग रहा था अपना आपा ही खो चुकी थी…
मेने भी अब कमान अपने हाथ में ले ली और उनके धक्कों की ताल मिलाते हुए नीचे से धक्के लगाने लगा..
कमरे में ठप-ठप की अवजें गूँज रही थी.. दोनो ही पसीने से तर-बतर हो चुके थे.. फिर जैसे ही मुझे लगा कि अब मेरा छूटने वाला है…
मेने झपट कर चाची को फिरसे नीचे लिया, और 20-25 तूफ़ानी धक्के लगा कर उनकी चूत को अपने वीर्य से भर दिया………….!
15 मिनिट के बाद चाची मेरे बगल से उठी और अपने कपड़े समेटने लगी… मेने उनका हाथ पकड़ कर कहा – ये क्या कर रही हो चाची..?
वो – अरे ! फ्रेश तो होने दो… फिर चाय बनाके लाती हूँ.. और साथ में कुच्छ नाश्ता भी कर लेंगे…
मे – ऐसे ही जाओ, जहाँ जाना है..
वो अपने मूह पर हाथ रखकर बोली – हाई… लल्ला तुम तो बड़े बेशर्म हो, और मुझे भी बेशर्म बनाए दे रहे हो…
अब ऐसे नंगी-पुँगी… बाहर कैसे जा सकती हूँ..? किसी ने उपर से देख लिया तो..?
मे – तो एक चादर ओढ़ लो.. बस,… हँसते हुए उन्होने अपने शरीर पर एक चादर डाल ली और बाहर निकल गयी…
बाथरूम तो जैसे मेने पहले ही कहा है.. ओपन ही था,
तो उसी में बैठकर वो मूतने लगी, और बैठे-2 ही अपनी चूत साफ करके किचेन में घुस गयी…
उन्होने चाय बनाने के लिए गॅस पर रख दी, अभी वो उसमें चाय-चीनी डाल ही रही थी, कि मेने पीछे से जाकर उन्हें जकड लिया..
मे एकदम नंगा ही था अब तक..
मेने उनकी चादर हटाकर एक तरफ रख दी, और अपना कड़क लंड उनकी मोटी लेकिन मस्त उभरी हुई गान्ड की दरार में फँसा दिया और अपनी कमर चलाने लगा..
मेरा लंड उनकी गान्ड के छेद से लेकर चूत के मूह तक सरकने लगा…
आहह………सीईईईईईईईईईईईईईईईई……………लल्लाआाआ…. रुकूऊ…चाय तो बनाने दो… सच में बहुत बेसबरे हो तुम…
मेने बिना कोई जबाब दिए चाची को पलटा लिया और किचेन के स्लॅब से सटा कर उनके होठ चूसने लगा…
चाय जल जाएगी मेरे सोनााआ….आआईयईई…..नहियिइ…..रकूओ…प्लेआस्ीई… उनकी चुचि को दाँतों से काटते हुए मेने हाथ लंबा करके गॅस बंद कर दी..
मेने अपने हाथ की दो उंगलियाँ उनकी चूत में घुसा दी और अंदर बाहर करते हुए चुचियों को चूसने मसल्ने लगा….
ओह्ह्ह्ह…उफ़फ्फ़…. बहुत बेसबरे हो मेरे सोनाआ….सीईईई…आअहह….आययीईई…
तुम्हारी चुचियों को देखकर किस मदर्चोद को सबर होगा चाची… क्या मस्त माल हो तुम…
उनके होठ चबाते हुए मेने कहा- चाचा भोसड़ी का चूतिया है.. जो इतने मस्त माल को भी नही चोदता …
उस चूतिया का नाम लेकर मज़ा खराब मत करो लल्लाआ……सीईईईई……..चाची अपने खुश्क हो चुके होठों पर जीभ से तर करते हुए बोली.
फिर मेने चाची की एक जाँघ के नीचे से हाथ फँसा कर उठा लिया और अपना लंड उनकी गीली चूत में खड़े-2 पेल दिया….
अहह……………मैय्ाआआआआ……मारगाई………..भोसड़ी के धीरीईई…..नहियीईईईईई….डाल सकताआआआअ…..आआआआआअ…..धीरे….
चाची का एक पैर ज़मीन पर था, एक हाथ स्लॅब पर टिका लिया था और दूसरा हाथ मेरे गले में लपेट लिया…
हुमच-हुमच कर धक्के लगाने से चाची का बॅलेन्स बिगड़ने लगा..
मेने दूसरी टाँग को भी उठा लिया, अब चाची हवा में मेरी कमर पर अपने पैरों को लपेटे हुए थी.. एक हाथ अभी भी उनका स्लॅब पर ही टिका रखा था…
इस पोज़ में लंड इतना अंदर तक चला जाता, की चाची हर धक्के पर कराह उठती…
एक बार फिर चाची हार गयी.. और उनकी चूत पानी फेंकने लगी…
मेने उनको नीचे उतारा और स्लॅब पर दोनो हाथ टिका कर घोड़ी बना लिया…
उनकी गान्ड देख कर तो में वैसे ही पागल हो जाता था, सो पेल दिया लंड दम लगा कर उनकी चूत में … एक ही झटके में मेरे टटटे… गान्ड से टकरा गये..
मेरे धक्कों से चाची हाई..हाई… कर उठी… 20 मिनिट के धक्कों ने उनकी कमर चटका दी..
आख़िर में उनकी ओखली को अपने लंड के पानी से भरकर मेने चादर से अपना लंड पोन्छा और कमरे में चला गया…
10 मिनिट बाद चाची चाय लेकर कमरे में पहुँची.. तो मेने उन्हें अपनी गोद में बिठा लिया और हम दोनो चाय पीते हुए बातें करने लगे…
बहुत कुटाई करते हो लल्ला तुम… सच में मुझे तो तोड़ ही डाला… पूरी तरह..
मे – मज़ा नही आया आपको..?
वो – मज़ा..? मेने आज पहली बार जाना है कि चुदाई ऐसी भी होती है… इससे ज़्यादा जिंदगी में और कोई सुख नही हो सकता… सच में…
चाय ख़तम करके चाची बोली – लल्ला.. मानो तो एक बात कहूँ..?
मेने उनके होठों को चूमते हुए कहा… अब इससे बड़ी और क्या बात होगी जिसके लिए मे ना कर दूं…
वो – लल्ला ! अब तुम बड़े हो गये हो.. कॉलेज जाने लगे हो.. अब थोड़ा घर के कामों में भी हाथ बटाना चाहिए तुम्हें.. जेठ जी और कब तक करेंगे…
मे समझा नही चाची.. किन कामों की बात कर रही हो.. सारा काम तो नौकर ही करते हैं ना..!
वो – तो क्या हुआ, उनकी देखभाल भी तो करनी होती है.. मे बस यही कहूँगी.. कि तुम भी थोड़ा खेतों की देखभाल करो… जिससे तुम्हें कुच्छ चीज़ों का पता चले…और आगे चल कर तुम ये सब संभाल सको…
मेने कहा – ठीक है चाची मे आपकी बात समझ गया, आज से कोशिश करूँगा.. और फिर अपने कपड़े पहन कर उनके पास से चला आया……!
अभी मे अपने घर जाने की सोच ही रहा था….कि चाची के शब्द याद आगाये…”तुम्हें कुच्छ चीज़ों का पता चले”…!!!
चाची किस बारे में बोली..? कुच्छ तो ऐसा है.. जो चाची मुझे समझाना चाहती हैं…?
ऐसे ही अनाप-सनाप बकती हुई चाची, लग रहा था अपना आपा ही खो चुकी थी…
मेने भी अब कमान अपने हाथ में ले ली और उनके धक्कों की ताल मिलाते हुए नीचे से धक्के लगाने लगा..
कमरे में ठप-ठप की अवजें गूँज रही थी.. दोनो ही पसीने से तर-बतर हो चुके थे.. फिर जैसे ही मुझे लगा कि अब मेरा छूटने वाला है…
मेने झपट कर चाची को फिरसे नीचे लिया, और 20-25 तूफ़ानी धक्के लगा कर उनकी चूत को अपने वीर्य से भर दिया………….!
15 मिनिट के बाद चाची मेरे बगल से उठी और अपने कपड़े समेटने लगी… मेने उनका हाथ पकड़ कर कहा – ये क्या कर रही हो चाची..?
वो – अरे ! फ्रेश तो होने दो… फिर चाय बनाके लाती हूँ.. और साथ में कुच्छ नाश्ता भी कर लेंगे…
मे – ऐसे ही जाओ, जहाँ जाना है..
वो अपने मूह पर हाथ रखकर बोली – हाई… लल्ला तुम तो बड़े बेशर्म हो, और मुझे भी बेशर्म बनाए दे रहे हो…
अब ऐसे नंगी-पुँगी… बाहर कैसे जा सकती हूँ..? किसी ने उपर से देख लिया तो..?
मे – तो एक चादर ओढ़ लो.. बस,… हँसते हुए उन्होने अपने शरीर पर एक चादर डाल ली और बाहर निकल गयी…
बाथरूम तो जैसे मेने पहले ही कहा है.. ओपन ही था,
तो उसी में बैठकर वो मूतने लगी, और बैठे-2 ही अपनी चूत साफ करके किचेन में घुस गयी…
उन्होने चाय बनाने के लिए गॅस पर रख दी, अभी वो उसमें चाय-चीनी डाल ही रही थी, कि मेने पीछे से जाकर उन्हें जकड लिया..
मे एकदम नंगा ही था अब तक..
मेने उनकी चादर हटाकर एक तरफ रख दी, और अपना कड़क लंड उनकी मोटी लेकिन मस्त उभरी हुई गान्ड की दरार में फँसा दिया और अपनी कमर चलाने लगा..
मेरा लंड उनकी गान्ड के छेद से लेकर चूत के मूह तक सरकने लगा…
आहह………सीईईईईईईईईईईईईईईईई……………लल्लाआाआ…. रुकूऊ…चाय तो बनाने दो… सच में बहुत बेसबरे हो तुम…
मेने बिना कोई जबाब दिए चाची को पलटा लिया और किचेन के स्लॅब से सटा कर उनके होठ चूसने लगा…
चाय जल जाएगी मेरे सोनााआ….आआईयईई…..नहियिइ…..रकूओ…प्लेआस्ीई… उनकी चुचि को दाँतों से काटते हुए मेने हाथ लंबा करके गॅस बंद कर दी..
मेने अपने हाथ की दो उंगलियाँ उनकी चूत में घुसा दी और अंदर बाहर करते हुए चुचियों को चूसने मसल्ने लगा….
ओह्ह्ह्ह…उफ़फ्फ़…. बहुत बेसबरे हो मेरे सोनाआ….सीईईई…आअहह….आययीईई…
तुम्हारी चुचियों को देखकर किस मदर्चोद को सबर होगा चाची… क्या मस्त माल हो तुम…
उनके होठ चबाते हुए मेने कहा- चाचा भोसड़ी का चूतिया है.. जो इतने मस्त माल को भी नही चोदता …
उस चूतिया का नाम लेकर मज़ा खराब मत करो लल्लाआ……सीईईईई……..चाची अपने खुश्क हो चुके होठों पर जीभ से तर करते हुए बोली.
फिर मेने चाची की एक जाँघ के नीचे से हाथ फँसा कर उठा लिया और अपना लंड उनकी गीली चूत में खड़े-2 पेल दिया….
अहह……………मैय्ाआआआआ……मारगाई………..भोसड़ी के धीरीईई…..नहियीईईईईई….डाल सकताआआआअ…..आआआआआअ…..धीरे….
चाची का एक पैर ज़मीन पर था, एक हाथ स्लॅब पर टिका लिया था और दूसरा हाथ मेरे गले में लपेट लिया…
हुमच-हुमच कर धक्के लगाने से चाची का बॅलेन्स बिगड़ने लगा..
मेने दूसरी टाँग को भी उठा लिया, अब चाची हवा में मेरी कमर पर अपने पैरों को लपेटे हुए थी.. एक हाथ अभी भी उनका स्लॅब पर ही टिका रखा था…
इस पोज़ में लंड इतना अंदर तक चला जाता, की चाची हर धक्के पर कराह उठती…
एक बार फिर चाची हार गयी.. और उनकी चूत पानी फेंकने लगी…
मेने उनको नीचे उतारा और स्लॅब पर दोनो हाथ टिका कर घोड़ी बना लिया…
उनकी गान्ड देख कर तो में वैसे ही पागल हो जाता था, सो पेल दिया लंड दम लगा कर उनकी चूत में … एक ही झटके में मेरे टटटे… गान्ड से टकरा गये..
मेरे धक्कों से चाची हाई..हाई… कर उठी… 20 मिनिट के धक्कों ने उनकी कमर चटका दी..
आख़िर में उनकी ओखली को अपने लंड के पानी से भरकर मेने चादर से अपना लंड पोन्छा और कमरे में चला गया…
10 मिनिट बाद चाची चाय लेकर कमरे में पहुँची.. तो मेने उन्हें अपनी गोद में बिठा लिया और हम दोनो चाय पीते हुए बातें करने लगे…
बहुत कुटाई करते हो लल्ला तुम… सच में मुझे तो तोड़ ही डाला… पूरी तरह..
मे – मज़ा नही आया आपको..?
वो – मज़ा..? मेने आज पहली बार जाना है कि चुदाई ऐसी भी होती है… इससे ज़्यादा जिंदगी में और कोई सुख नही हो सकता… सच में…
चाय ख़तम करके चाची बोली – लल्ला.. मानो तो एक बात कहूँ..?
मेने उनके होठों को चूमते हुए कहा… अब इससे बड़ी और क्या बात होगी जिसके लिए मे ना कर दूं…
वो – लल्ला ! अब तुम बड़े हो गये हो.. कॉलेज जाने लगे हो.. अब थोड़ा घर के कामों में भी हाथ बटाना चाहिए तुम्हें.. जेठ जी और कब तक करेंगे…
मे समझा नही चाची.. किन कामों की बात कर रही हो.. सारा काम तो नौकर ही करते हैं ना..!
वो – तो क्या हुआ, उनकी देखभाल भी तो करनी होती है.. मे बस यही कहूँगी.. कि तुम भी थोड़ा खेतों की देखभाल करो… जिससे तुम्हें कुच्छ चीज़ों का पता चले…और आगे चल कर तुम ये सब संभाल सको…
मेने कहा – ठीक है चाची मे आपकी बात समझ गया, आज से कोशिश करूँगा.. और फिर अपने कपड़े पहन कर उनके पास से चला आया……!
अभी मे अपने घर जाने की सोच ही रहा था….कि चाची के शब्द याद आगाये…”तुम्हें कुच्छ चीज़ों का पता चले”…!!!
चाची किस बारे में बोली..? कुच्छ तो ऐसा है.. जो चाची मुझे समझाना चाहती हैं…?