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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#22
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कामया- “जी बाथरूम में हैं, आते ही बता देती हूँ…” और कामया के शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ गई। वो फोन नीचे रखकर बिस्तर पर बैठी और सोचने लगी क्या हुआ लक्खा काका को? क्यों नहीं आ रहे हैं आज? क्या हुआ उनकी तबीयत को? बीमार हैं क्या? वो सोच रही थी और अपने साथ हुई एक-एक घटना को फिर से उसके जेहन में उतारती जा रही थी। उसकी सांसें फूलने लगी थीं, वो फिर से कामाग्नि की चपेट में थी। पर काका को क्या हो गया, से ज्यादा चिंता इस बात की थी की आज शाम को वो नहीं आयेंगे।

वो सोच ही रही थी की कामेश बाथरूम से निकाला और मिरर के सामने आकर खड़ा हो गया। कामया ने जो सोचा था वो सब धरा का धरा रह गया।

कामया- जी वो काका आज नहीं आएंगे, बीमार हैं।

कामेश- अरे यार यह साले नौकरों का भी झमेला है, साले कभी बीमार तो, कभी कुछ और।

कामया के जैसे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई हो। उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा की काका के बारे में उसका पति इस तरह से बोले। कामया ने कहा- “अरे इसमें क्या तबीयत ही तो खराब हुई है? तुम ले जाना पापाजी को…”

कामेश- तुम्हें नहीं मालूम, कल से उसकी ड्यूटी एक और बढ़ गई है ना… साला इसलिए छुट्टी मार दिया।

कामया- छीः छीः इतने बड़े आदमी के बारे में इस तरह से कहते हो, वो तो आप लोगों के कितने वफादार हैं, और कितना काम करते हैं, कभी भी मना नहीं किया।

कामेश- हाँ… वो तो है। चलो ठीक है मतलब तुम्हारा आज का दिन कैन्सल। अब क्या करोगी?

कामया- “क्या करूँगी? घर ही रहूंगी, कौन सा रोज घूमने जाती हूँ?” कामया को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उनकी बातों में कहीं भी नहीं लगा था की लक्खा काका उनके लिए जितने नमकहलाल और निष्ठावान हैं, उसका फल उन्हें मिल भी रहा है।

कामेश- ऐसे ही कहीं घूम आना, नहीं तो घर में बैठी बोर हो जाओगी। तुम थोड़ा बहुत घर से निकला भी करो बैठी-बैठी मोटी हो जाओगी मम्मी की तरह।

कामया- हाँ… अकेली-अकेली जाऊँ और जाऊँ कहां? बता दो तुम्हें तो काम से फुर्सत ही नहीं है।

कामेश- अरे काम नहीं करूँगा तो फिर यह शानो शौकत कहां से आएगी?

कामया- नहीं चाहिए यह शानो शौकत।

कामेश- “हाँ… तुम तो पता नहीं किस दुनियां में रहती हो? कोई नहीं पूछेगा अगर घर में नौकर चाकर नहीं हों, और खर्चा करने को जेब में पैसा समझी?” और कामेश मुँह बनाते हुए जल्दी से तैयार होने लगा। फिर इंटरकाम उठाकर डेल किया।
कामेश- हाँ… पापा आप जल्दी कर लो प्लीज… आज ही इस लक्खा को मरना था।

कामया का दिमाग गुस्से से भर गया था। कितना मतलबी है उसका पति, सिर्फ अपनी ही सोचते रहते हैं। पता नहीं क्या हुआ होगा काका को? और यह है की जब से सिर्फ गालियां दिए जा रहे हैं। कामया का चेहरा एकदम गुस्से से लाल था।

पर कामेश तो अपनी धुन में ही था और जल्दी से तैयार होकर कामया की ओर देखा, कहा- “चलो नीचे…” जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।

कामया भी गुस्से से उठी और अपने पति के पीछे-पीछे नीचे डाइनिंग रूम में चली आई। पापाजी भी तैयार थे और मम्मीजी भी। जो तैयार नहीं था वो थी कामया। सुबह की ड्रेस ही पहने हुई थी और दिमाग खराब, वो गुस्से में तो थी ही, पर खाने के टेबल पर पापाजी और मम्मीजी के रहते उसने कुछ भी ऐसा नहीं दिखाया की किसी को उसके बारे में कोई शक हो। वो शांत थी और खाने को परोस कर दे रही थी।

जब सब खा चुके तो मम्मीजी और पापाजी भी उठे और बाहर को जाने लगे और कामेश भी किसी भूत की तरह जल्दी-जल्दी खाना खतम करके बाहर की ओर भागा।

जब दोनों चले गये तो मम्मीजी ने कहा- “जा जल्दी से नहाकर आ जा, खाना खा लेते हैं…”

कामया- “जी…” और कामया अपने कमरे की चली गई। जाते हुए भी उसका मन कुछ भी नहीं सोच पा रहा था। अपने पति की कही हुई बात उसे याद आ रही थी, और अपने पति के स्वार्थीपन का अंदाज वो लगा रही थी। वो भी तो उसके लिए एक चीज ही बनकर रह गई थी, जब उसका मन होता तो बहुत ही अच्छे से बात करते नहीं तो कोई फिकर ही नहीं। जब मन में आया उसे किया और फिर भूल गये। बस उनके दिमाग में जो बात हमेशा घर किए हुए रहती थी, वो थी पैसा सिर्फ पैसा।

कामया झल्लती हुई अपने कमरे में घुसी और चिढ़ती हुई सी बिस्तर पर बैठ गई। पर जल्दी ही उठी और बाथरूम में घुस गई। वो नहीं चाहती थी की मम्मीजी को कुछ भी पता चले। क्योंकी उसे मम्मीजी और पापाजी से कोई शिकायत नहीं थी। वो जल्दी से नहा धोकर तैयार होकर जल्दी से नीचे पहुँची, ताकी मम्मीजी को फोन ना करना पड़े।

पर नीचे जब वो पहुँची तो मम्मीजी अब तक नहीं आई थी। वो जैसे ही डाइनिंग रूम में दाखिल हुई, उसकी नजर भीमा चाचा पर पड़ गई, जो की बहुत ही तरीके से टेबल को सजा रहे थे। जैसे ही रूम में आवाज आई तो उसकी नजर भी कामया की ओर उठ गई थी, और भीमा और कामया की नजर एक बार फिर मिली और दोनों के शरीर में एक सनसनी सी दौड़ गई। कामया जो की अब तक अपने पति के बारे में सोच रही थी, एकदम से अपने को जिस स्थिति में पाया उसके लिए वो तैयार नहीं थी।

पर भीमा चाचा की नजर जैसे ही उससे टकराई वो सब कुछ भूल गई और अपने शरीर में उठ रही सनसनी को सभालने में लग गई। वो वहीं खड़ी-खड़ी कुछ सोच भी नहीं पा रही थी की इस स्थिति से कैसे लड़े। पर ना जाने क्यों अपने होंठों पर एक मधुर सी मुश्कान लिए हुए वो आगे बढ़ी और मम्मीजी के आने पहले ही अकेली डाइनिंग टेबल पर पहुँच गई।

कामया- “क्या बनाया है चाचा?” और टेबल पर पड़े हुए बाउल को खोलकर देखने लगी।

वो जिस तरह से झुक कर टेबल पर रखी हुइ चीजों को देख रही थी, उससे उसके सूट के गले से उसकी चूचियों को देख पाना बड़ा ही सरल था। भीमा ना चाहते हुए भी अपनी नजर उसपर से ना हटा सका। वो अपना काम भूलकर बहू को एकटक देखता रहा। कितनी सुंदर और कोमल सी बहू जिसके साथ उसने कुछ हसीन पल बिताए थे, वो आज फिर से उसके सामने खड़ी हुई अपने शरीर का कुछ हिस्सा उसे दिखा रही थी जानबूझ कर या अंजाने में पता नहीं? पर हाँ… देख जरूर रहा था वो बहू की चूचियों को। वो आगे बढ़ा और उसकी पतली सी कमर तक पहुँचा ही था की मम्मीजी के आने की आहट ने सब कुछ बिगड़ दिया और वो जल्दी से किचेन की ओर चला गया।

मम्मीजी- अरे जल्दी नहा लिया तूने तो।

कामया- जी सोचा आपसे पहले ही आ जाऊँ।

मम्मीजी- हाँ… चल बैठ और सुन, शाम को तैयार हो जाना मंदिर चलेंगे।

कामया- “जी…” लेकिन उसका मन बिल्कुल नहीं था मम्मीजी के साथ मंदिर जाने का, पर कैसे मना करे? सोचने लगी वो कहीं भी नहीं जाना चाहती थी पर।

मम्मीजी- “आज मंदिर में कुछ बाहर से लोग आने वाले हैं, सत्संग है। तू भी चल क्या करेगी घर में?

कामया- जी पर?

मम्मीजी- पर क्या? थोड़ा बहुत घूम लेगी और क्या मैं कौन सा कह रही हूँ की बैठकर हम बुड्ढों के साथ तू सत्संग सुनना।

कामया- जी तो फिर?

मम्मीजी- अरे वहां आसपास गार्डेन है, तू थोड़ा घूम लेना और मैं भी ज्यादा देर कौन सा रुकने वाली हूँ। वो तो मंदिर हमने बनवाया है ना, इसलिए जाना पड़ता है। नहीं तो मुझे तो अपना घर का ही मंदिर सबसे अच्छा।

कामया- जी।

और दोनों खाना खाने लगे थे, और बातों का दौर चलता रहा। कामया और मम्मीजी खाने के बाद उठे और हाथ मुँह धोकर वहीं थोड़ा सा बातें करते रहे।

मम्मीजी- “अरे भीमा टेबल साफ कर दे…” और फिर कामया की ओर मुड़ गई और बातें चालू।

भीमा किचेन से निकला और टेबल पड़े जूठे बर्तन उठने लगा। पर हल्की सी नजर कामया पर भी डाल ली।

कामया उसी की तरफ चेहरा किए हुए थी, और मम्मीजी की पीठ उसकी त्तरफ थी। भीमा चोर नजर से कामया को देख रहा था, और सामान भी समेट रहा था। कामया की नजर भी कभी-कभी चाचा की हरकतों पर पड़ रही थी, और उसके होंठों पर एक मुश्कान दौड़ गई थी, जो की भीमा से नहीं छुप पाई और वो एकटक बहू की ओर देखता रहा। पर जैसे ही कामया की नजर उस पर पड़ी तो दोनों ही अपनी नजरें झुका के कामया अपने कमरे की ओर और भीमा अपने किचेन की ओर चल दिए।

मम्मीजी भी अपने कमरे की ओर जाते-जाते बोली- “शाम को 6:00 बजे तक तैयार हो जाना टैक्सी वाले को बोल दिया है।

कामया- “जी…” और मुड़कर मम्मीजी की ओर देखती, पर उसकी नजर भीमा चाचा पर वापस टिक गई, जो की फिर से किचेन से निकल रहे थे।

भीमा भी निकलते हुए सीढ़ियों पर जाती हुई बहू को देखना चाहता था। इसलिए वो वापस जल्दी से पलटकर डाइनिंग हाल में आ गया था। वो तो बहू की मस्त चाल का दीवाना था। जब वो अपने कूल्हे मटका-मटकाकर सीढ़ी चढ़ती थी तो उसका दिल बैठ जाता था, और वो उसी के दीदार को वापस आया था। पर जैसे ही उसकी नजर कामया पर पड़ी तो वो भी झेंप गया, पर अपनी नजर को वो वहां पर से हटा नहीं पाया था। उसे बहू की नजर में एक अजीब सी कशिश दिखी थी, एक अजीब सा नशा था, एक अजीब सा खिंचाव था जो कि शायद वो पहले नहीं देख पाया था। वो बहू को अपनी ओर देखते हुए अपने कमरे की जाते हुए देखता रहा, जब तक वो उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गई। एक लम्बी सी सांस छोड़कर वो फिर से काम में लग गया।

और उधर जब मम्मीजी ने कामया को पुकार कर कहा तब वो जबाब देते हुए पलटी तो चाचा को अपनी ओर देखते पाकर वो भी अपनी नजर चाचा की नजर से अलग नहीं कर पाई थी। वो चाचा की नजर में एक भूख को आसानी से देख पा रही थी। उसके प्रति एक भूख, उसके प्रति एक लगाव, या फिर उसके प्रति एक खिंचाव को वो चाचा की नजर में देख रही थी। उसके शरीर में एक आग फिर से लग गई थी, जिसे वो अपनी सांसों को कंट्रो करके संभाली और एक तेज सांस छोड़कर अपने कमरे में चली गई।

कामया कमरे में घुसकर वापस बिस्तर पर ढेर हो गई, और अपने बारे में सोचती रही। उसे क्या हो गया है? जब देखो उसे ऐसा क्यों लगता रहता है? वो तो सेक्स की भूखी कभी नहीं थी। पर आज कल तो जैसे उसके शरीर में जब देखो तब आग लगी रहती है। क्या कारण है? क्या वो इतनी कामुक हो गई है की पति के ना मिलने पर वो किसी के साथ भी सेक्स कर सकती है? दो जनों के साथ तो वो सेक्स कर चुकी थी, वो भी इस घर के नौकरों के साथ, जिनकी हसियत ही क्या है उसके सामने?

पर आखिर क्यों वो चाचा को और लक्खा को इतना मिस करती है? क्यों उनके सामने जाते ही वो अपना सब कुछ भूल जाती है? अभी भी तो चाचा उसकी तरफ जैसे देख रहे थे, अगर मम्मीजी ने देख लिया होता तो वो अपने आपको संभालने की कोशिश करने लगी थी। नहीं यह गलत है? उसे इस तरह की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वो एक घर की बहू है, उसका पति है, सम्पन्न घर है वो सिर्फ सेक्स की खातिर अपने घर को उजाड़ नहीं सकती। उसने एक खटके से अपने दिमाग से भीमा चाचा को और लक्खा काका को निकाल बाहर किया और सूट चेंज करने के लिए वार्डरोब के सामने खड़ी हो गई।

उसने गाउन निकाला और जैसे ही पलटी उसकी नजर कल के ब्लाउज़ और पेटीकोट पर पड़ गई जो की उसने पहना था चाचा के लिए। वो चुपचाप उसपर अपनी नजर गड़ाए खड़ी रही, और धीरे से अपने हाथों से लेकर उनको सहलाने लगी। पता नहीं क्यों उसने गाउन रखकर फिर से वो पेटीकोट और ब्लाउज़ उठा लिया और बाथरूम की ओर चल दी चेंज करने को। जब वो बाथरूम में चेंज कर रही थी तो जैसे-जैसे वो ड्रेस को अपने शरीर पर कस रही थी, उसके शरीर में फिर से सेक्स की आग भड़कने लगी थी। वो अपनी सांसों को कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थीं, और उसकी चूचियां उस कसे हुए ब्लाउज़ को फाड़कर बाहर आने को हो रही थीं। पेटीकोट और ब्लाउज़ पहनकर उसने अपने को मिरर में देखा तो तो किसी अप्सरा सी दिख रही थी।

उसके कपड़ों को चूमा था, वो सब बाहर से साफ दिख रहा था और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे वो अपने हाथों से एक बार अपने को सहलाते हुए अपने को मिरर में देखती रही, और पलटकर जल्दी से कमरे में आ गई थी और बिस्तर पर धम्म से गिर गई। उसके पूरा शरीर में आग लगी हुई थी पर वो किसी तरह से अपने को कंट्रोल किया हुआ था। उसने चद्दर खींचकर अपने को ढका और सब कुछ भूलकर सोने की कोशिश करने लगी। उसने कामेश के तकिए को भी चद्दर के अंदर खींच लिया और अपने आपको अपनी बाहों में भर कर सोने की कोशिश करने लगी थी।

और उधर भीमा अपने काम से फुर्सत हो गया था। पर उसकी नजर बार-बार इंटरकाम पर ही थी। उसे आज भी उम्मीद थी की बहू जरूर उसे बुला लेगी। पर जब बहुत देर तक फोन नहीं आया तो, उसने कई बार फोन उठाकर भी देखा की कहीं बंद तो नहीं हो गया था? पर टोन आते सुनकर उसने फोन वापस जल्दी से रख दिया, और किचेन में ही खड़ा-खड़ा इंतेजार करने लगा था। पर कोई फोन नहीं आया। वो अपने आपको उस हसीना के पास जाने से रोक नहीं पा रहा था। पर अपनी हैसियत और अपने छोटेपन का एहसास उसे रोके हुए था। पर कभी वो निकलकर सीढ़ियों की ओर देखता और वापस किचेन की ओर चला जाता। वो अपने को रोकते हुए भी कब सीढ़ियों की ओर उसके पैर उठ गये वो नहीं जानता था।

कहां से उसमें इतनी हिम्मत आ गई, वो नहीं जानता था। पर हाँ, वो अब सीढ़ियां चढ़ रहा था, बार-बार पीछे की ओर देखते हुए और बार-बार अपने को रोकते हुए। उसका एक कान किचेन में इंटरकाम की घंटी पर भी था, और दूसरा कान घर में होने वाली हर आहट पर भी था। वो जब बहू के कमरे के पास पहुँचा तो घर में बिल्कुल शांति थी। भीमा की सांसें फूल रही थीं, जैसे की बहुत दूर से दौड़कर आ रहा हो, या फिर कुछ भारी काम करके आया हो। भीमा अपने कानों को बहू के दरवाजे पर रखकर अंदर की आहट को सुनने लगा। पर कोई भी आहट नहीं हुई थी अंदर।

वो पलटकर वापस जाने लगा, पर थोड़ी दूर जाकर रुक गया। क्या कर रही है बहू? कहीं उसका इंतेजार तो नहीं कर रही है? अंदर फोन नहीं कर पाती होगी शायद शरम से, या फिर उसे लगता है की कल ही तो उसने बुलाया था, तो आज बुलाने की क्या जरूरत है? हाँ शायद यही हो। वो वापस मुड़ा और फिर से बहू के कमरे के बाहर आकर खड़ा हो गया। धीरे से, बहुत ही धीरे से दरवाजे पर एक थपकी दी। पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई, और न ही कल जैसे दरवाजा ही खुला।

पर भीमा तो जैसे अपने दिल के हाथों मजबूर था। उसका दिल नहीं मान रहा था। वो देखना चाहता था की बहू क्या कर रही है? शायद उसका इंतेजार ही कर रही हो? और वो अपने कारण इस चान्स को खो देगा।

वो हिम्मत करके धीरे से दरवाजे को धकेल ही दिया। दरवाजा धीरे से अंदर की ओर खुल गया थोड़ा सा, पर हाँ अंदर देख सकता था। अंदर जब उसने नजर घुमाकर देखा तो पाया की बहू तो बिस्तर पर सोई हुई है, एक चद्दर ढक कर तकिया पकड़कर। एक टांग जो की चद्दर के अंदर से निकलकर बाहर से तकिये के ऊपर कर लिया था वो पूरी नंगी थी। सफेद-सफेद जांघों के दर्शन उसे हुए, उसकी हिम्मत बढ़ी और वो थोड़ा सा और आगे होकर देखने की कोशिश करने लगा। वो लगभग अंदर ही आ गया था और धीरे-धीरे बहू के बिस्तर की ओर बढ़ने लगा था।

उसकी आँखों में बहू की जांघें और फिर गोरी-गोरी बाहें भी दिखने लगी थीं। चादर ठीक से नहीं ओढ़ी थी बहू ने, पर वो जो कुछ भी देख रहा था वो उसके शरीर में जो आग लगा रहे थे, और उसके अंदर एक ऐसी हिम्मत को जनम दे रहे थे की अब तो चाहे जो हो जाए वो बहू को देखे बगैर बाहर नहीं जाएगा। वो बहू के बिस्तर के और भी पास आ गया था। बहू अब तक सो रही थी, पर उसके चद्दर के अंदर से उसके शरीर का हर उतार चढ़ाव उसे दिख रहा था।

वो थोड़ा सा झुका और अपने हाथों को बहू की जांघों पर ले गया। वो धीरे-धीरे उसकी जांघों को अपनी हथेली से महसूस करने लगा। उसके हाथों में जैसे कोई नरम सी और चिकनी सी चीज आ गई हो, वो बड़ी ही तल्लीनता से बहू की जांघों को उसके पैरों तक और फिर ऊपर बहुत ऊपर तक उसकी कमर तक ले जाने लगा था। पर बहुत ही आराम से जैसे उसे डर था कहीं बहू उठ ना जाए। पर नहीं बहू के शरीर पर कोई हरकत नहीं हुई थी उसकी हिम्मत और बढ़ी और वो धीरे से बहू के ऊपर से चद्दर को हटाने लगा।

बहू की पीठ उसकी तरफ थी पर वो बहू की सांसों के साथ उसके शरीर के उठने बैठने के तरीके से समझ गया था की वो सो रही थी। उसने हिम्मत करके बहू के ऊपर से चद्दर को धीरे से हटा दिया उफफ्फ़… क्या शरीर था चद्दर के अंदर, गजब का दिख रहा था, सफेद ब्लाउज़ और पेटीकोट था पहने। हाँ… वहीं तो था कल वाला। तो क्या बहू उसके लिए ही तैयार हुई थी? आअह्ह्ह… भीमा के मुँह से अचानक ही एक आऽ निकली और उसके हाथ बहू की पीठ पर धीरे-धीरे घूमने लगे थे।

उसकी मनो स्थिति उस समय ऐसी थी की वो चाहकर भी अपने पैरों को वापस नहीं ले जा सकता था। वो अब बहू के रूप और रंग का दीवना था और किसी भी हालत में उसे फिर से हासिल करना चाहता था। वो दीवनों की तरह अपने हाथों को बहू के शरीर पर घुमा रहा था और ऊपर वाले की रचना को अपने हाथों से महसूस कर रहा था। उसके मन में बहुत सी बातें भी चल रही थीं, वो अपने चेहरे को थोड़ा सा आगे करके बहू को देख भी लेता था और उसकी स्थिति का जायजा भी लेता जा रहा था। सोते हुए बहू कितनी सुंदर लगती थी बिल्कुल किसी निराह बच्चे की तरह कितना सुंदर चेहरा है और कितनी सुंदर उसकी काया है। उसके हाथ अब बहू की जांघों को बहुत ऊपर तक सहला रहे थे, और लगभग उसकी कमर तक वो पहुँच चुका था।

वो धीरे से बहू के बिस्तर पर बैठ गया और बहू की दोनों टांगों को अपने दोनों खुरदुरे हाथों से सहलाने लगा था। कितना मजा आ रहा था भीमा को यह वो किसी को भी बता नहीं सकता था। उसके पास शब्द नहीं थे उस एहसास का वर्णन करने को। उसके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठते और फिर बहू की जांघों की कोमलता का एहसास करते हुए नीचे उसकी टांगों पर आकर रुक जाते थे। वो अपने को रोक नहीं पाया और उस सुंदरता को चखने के लिए वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठों को बहू की टांगों पर रख दिया और उन्हें छूने लगा बहुत धीरे से और अपने हाथों को भी उस जगह पर घुमाते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा।
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To be contd.
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 11-03-2019, 12:46 PM



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