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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#21
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वो जानता था की वो ज्यादा देर का मेहमान नहीं है। उसकी उत्तेजना शिखर पर है और वो इस कामुक सुंदरी को ज्यादा देर नहीं झेल पाएगा। इसलिये वो अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने की जल्दी में था और बिना किसी रोक-टोक के अपने शिखर की ओर बढ़ने लगा था।

उधर कामया जो की नीचे काका के हर धक्के के साथ ही अपने को एक बार फिर उस अशीम सागर में गोते लगाने लगी थी, जिसमें डूबकर अभी-अभी निकली थी। पर कितना सुखद था यह सफर, कितना सुखदाई था यह सफर, एक साथ दो-दो बार उसकी योनि से पानी झड़ने को था। अब भी उसकी योनि इतनी गीली थी की उसे लग रहा था की पहली बार की ही छूट पूरी नहीं हो पाई थी, की दूसरी छूट की तैयारी हो चली थी। वो भी अपनी कमर को उठाकर काका की हर चोट का मजा भी ले रही थी, और उसका पूरा साथ दे रही थी। अब तो वो भी अपनी जीभ काका के साथ लड़ाने लग गई थी।

वो भी अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़कर उन्हें छूने लगी थी की अचानक ही उसके मुख से निकला- “आआह्ह काका और जोर से…”

काका- चुप थे।

कामया- “और जोऽऽर से उउम्म्म्मम…” और वो काका के चारों ओर अपनी जांघों का घेरा बनाकर उसकी बाहों में झूल गई, और काका के हर धक्के को कहीं अंदर, अपने अंदर बहुत अंदर महसूस करने लगी। उसकी योनि से एक बहुत ही तेज धार जो की सीधे काका के लिंग से टकराई और काका भी अब झड़ने लगे। काका की गिरफ़्त बहू के चारों तरफ इतनी कस गई थी की कामया का सांस लेना भी दूभर हो गया था। वो अपने मुख को खोल कर किस तरह से सांसें ले रही थी और हर सांस लेने से उसके मुख से एक लम्बी सी सांस निकलती थी।

काका भी अब अपना दम खो चुके थे और धीरे-धीरे उनकी पकड़ भी बहू पर से ढीली पड़ने लगी थी। वो अपने को अब भी बहू के बालों और कंधों के सहारे अपने चेहरे को ढके हुए थे और अपनी सांसों को कंट्रोल कर रहे थे। दोनों शांत हो चुके थे, पर एक दूसरे को कोई भी नहीं छोड़ रहा था। पर धीरे-धीरे हल्की सी तड़क और तेज हवा का झोंका जब उनके नंगे शरीर पर पड़ने लगा या फिर उनको एहसास होने लगा तो जैसे दोनों ही जागे हों, और अपनी पकड़ ढीली की और बिना एक दूसरे से नजर मिलाए काका ने सहारा देकर बहू के पैर जमीन पर टिकाए और नीचे गर्दन किए दूसरी तरफ पलट गये। वो बहू से नजर नहीं मिला पा रहे थे।

उधर कामया की भी हालत ऐसे ही थी। वो अपने ड्राइवर के सामने ऊपर से बिल्कुल नंगी थी। नीचे खड़े होने से उसकी साड़ी ने उसके नीचे का नंगापन तो ढक लिया था, पर ऊपर तो सब खुला हुआ था, वो भी एक सूनसान से ग्राउंड में। कामया को जैसे ही अपनी परिस्थिति का ज्ञान हुआ, वो दौड़कर पीछे की सीट पर आ गई, और जल्दी से दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गई, और अपने कंधे पर पड़े हुए ब्रा और ब्लाउज़ को ठीक करने लगी। उसकी नजर बाहर गई तो देखा की बाहर काका अपनी अंडरवेर ठीक करने के बाद अपनी धोती को ठीक से बाँध रहे थे और अपने चेहरे को भी पोंछ रहे थे।

तब तक कामया ने अपने आपको ठीक किया और जल्दी से कोट भी पहन लिया, ताकी वो घर चलने से पहले ठीक-ठाक हो जाए। अपनी साड़ी को अंदर बैठे-बैठे ठीक किया और नीचे की ओर झटकारने लगी। उसकी नजर बीच-बीच में बाहर खड़े हुए काका पर भी चली जाती थी।

काका अब पूरी तरह से अपने आपको ठीक-ठाक कर चुके थे और बाहर खड़े हुए शायद उसी का इंतेजार कर रहे थे, या फिर अंदर आने में झिझक रहे थे। वो शायद उसके तैयार होने का इंतेजार बाहर खड़े होकर कर रहे थे। पर कामया में तो इतनी हिम्मत नहीं थी की वो काका को अंदर बुला ले। पर उसने काका को तभी ड्राइविंग साइड कर गेट खोलते हुए देखा तो झट से उसने अपना सिर बाहर खिड़की की ओर कर लिया और बाहर देखने लगी। पर कनखियों से उसने देखा की काका ने नीचे से कुछ उठाया और उसको गाड़ी की लाइट में देखा और अंदर की ओर कामया की तरफ भी उनकी नजर हुई।

पर कामया की नजर उस चीज पर नहीं पड़ पाई, जो उन्होंने उठाई थी। पर जब काका को उसे अपने मुँह के पास लेकर सूंघते हुए देखा तो वो शरम से पानी-पानी हो गई, वो उसकी पैंटी थी जो की काका के हाथ में थी। वो अंदर आकर बैठ गये और अपना एक हाथों पीछे करके उसकी पैंटी को साइड सीट के ऊपर रख दिया, ताकी कामया की नजर उसपर पड़ जाए और गेट बंद कर लिया। फिर गाड़ी का इग्निशन चालू करके गाड़ी को धीरे-धीरे ग्राउंड के बाहर की और दौड़ा दिया

गाड़ी जैसे ही ग्राउंड से बाहर की ओर दौड़ी, वैसे ही कामया ने अपनी पैंटी को धीरे से हाथ बढ़ाकर अपने पास खींच लिया, ताकी काका की नजर में ना आए। पर कनखियो से लक्खा की नजर से वो ना बच पाई थी। हाँ… पर लक्खा को एक चिंता अब सताने लगी थी की अब क्या होगा? जो कुछ करना था वो तो वो कर चुके, लेकिन वो चिंतित था कहीं बहू ने इस बात की शिकायत कहीं साहब लोगों से कर दी तो? या फिर कहीं बहू को कुछ हो गया तो? या फिर कहीं उसकी नौकरी चली गई तो? इसी उधेड़बुन में काका अपनी गति से गाड़ी चलाते हुए बंगलो की ओर जा रहे थे।

उधर कामया भी अपने तन की आग बुझाने के बाद अपने होश में आ चुकी थी। वो बार-बार अपनी साड़ी से अपनी जांघों के बीच का गीलापन और चिपचिपापन को पोंछ रही थी। उसका ध्यान अब भी बाहर की ओर ही था, और मन ही मन बहुत कुछ चल रहा था। वो काका के साथ बिताए बक्त के बारे में सोच रही थी, वो जानती थी की उसने बहुत बड़ी भूल कर ली है, पहले भीमा चाचा और अब लक्खा काका, दोनों के साथ उसने वो खेल लिया था जिसका की भविष्य क्या होगा उसके बारे में सोचने से ही उसका कलेजा कांप उठता था।

पर वो क्या करती? वो तो यह सब कुछ नहीं चाहती थी। वो तो उसके मन या कहिए अपने तन के आगे मजबूर हो गई थी। वो क्या करती जो नजर उसपर पड़ी थी भीमा चाचा की या फिर लक्खा काका की वो नजर तो आज तक कामेश की उसपर नहीं पड़ी थी क्या करती वो? उसने जानबूझ कर तो यह नहीं किया हालात ही ऐसे बन गये की वो उसे रोक नहीं पाई, और यह सब हो गया। अगर कामेश उसे थोड़ा सा टाइम देता। या फिर वो कहीं व्यस्त रहती, या फिर उसके लिए भी कोई टाइम-टेबल होता तो क्या उसके पास इतना टाइम होता की वो इन सब बातों की ओर ध्यान देती?

आज से पहले वो तो कालेज और स्कूल में दोस्तों के साथ कितना घूमी फिरी है। पर कभी भी इस तरह की बात नहीं हुई, या फिर उसके जेहन में भी इस तरह की बात नहीं आई थी। सेक्स तो उसके लिए बाद की बात थी। पहले तो वो खुद थी फिर उसकी जिंदगी और फिर सेक्स वो भी रात को अपने पति के साथ घर के नौकर के साथ सेक्स। वो तो कभी सोच भी नहीं पाई थी की वो इतना बड़ा कदम कभी उठा भी सकती थी, वो भी एक बार नहीं दो बार। पहली को तो गलती कहा जा सकता था पर दूसरी और फिर आज भी वो भी दूसरे के साथ
यह गलती नहीं हो सकती थी। यही सोचते-सोचते कब घर आ गया उसे पता भी ना चल।

फिर जैसे ही गाड़ी रुकी उसने बाहर की ओर देखा तो घर का दरवाजा खुला था, पर गाड़ी के दरवाजे पर काका को नजर झुकाए खड़े देखकर एक बार फिर कामया सचेत हो गई, और जल्दी से गाड़ी के बाहर निकली और लगभग दौड़ती हुई सी घर के अंदर आ गई, और जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर चली गई। कमरे में पहुँचकर सबसे पहले अपने आपको मिरर में देखा। अरे बाप रे… कैसी दिख रही थी? पूरे बाल अस्त-व्यस्त थे और चेहरे की तो बुरी हालत थी। पूरा मेकप ही बिगड़ा हुआ था। अगर कोई देख लेता तो झट से समझ लेता की क्या हुआ है? कामया जल्दी से अपने आपको ठीक करने में लग गई और बाथरूम की ओर दौड़ पड़ी और कुछ ही देर में सूट पहनकर वापस मिरर के सामने थी। हाँ अब ठीक है उसने जल्दी से थोड़ा सा टचिंग किया और अपने पति का इंतेजार करने लगी। वो बहुत थकी हुई थी, उसे नींद आ रही थी और हाथ पांव जबाब दे रहे थे।

तभी इंटरकाम की घंटी बजी। कौन होगा कामया ने सोचा। पर फिर भी हिम्मत करके फोन उठा लिया- “जी…”

मम्मीजी- अरे बहू खाना खा ले, इन लोगों को तो आने में टाइम लगेगा।

कामया- “जी आई…” उसे ध्यान आया, हाँ आज तो उसके पति और ससुरजी तो लेट आने वाले थे। चलो खाना खा लेती हूँ फिर इंतेजार करूँगी। वो नीचे आ गई और मम्मीजी के साथ खाना खाने लगी। पर मम्मीजी तो बस बड़-बड़ किए ही जा रही थी। उसका बिल्कुल मन नहीं था कोई भी बात का जबाब देने का। पर क्या करे?

मम्मीजी- कैसा रहा आज का तेरा क्लास?

कामया- “जी बस…” क्या बताती कामया की कैसा रहा?

मम्मीजी- क्यों कुछ सीखा की नहीं?

कामया- “जी खास कुछ नहीं बस थोड़ा सा…” क्या बताती की उसने क्या सीखा? बताती की उसने अपने जीवन का वो सुख पाया था जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था? आज पहली बार किसी ने उसकी योनि को अपने होंठों से या फिर अपनी जीभ से चाटा था। सोचते ही उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी।

मम्मीजी- चलो शुरू तो किया तूने। अब किसी तरह से जल्दी से सीख जा तब अपन दोनों खूब घूमेंगे।

कामया- जी।

कामया का खाना कब का हो चुका था पर मम्मीजी के बक-बक के आगे वो कुछ भी नहीं कह पा रही थी। वो जानती थी की मम्मीजी भी कितनी अकेली हैं, और उससे बातें नहीं करेंगी तो बेचारी तो मर ही जायेंगी। वो बड़े ही हँस हँस कर कामया की देखती हुई अपनी बातों में लगी थी, और खाना भी खा रही थी। जब खाना खतम हुआ तो दोनों उठे और बेसिन में हाथ मुँह धोकर कामया अपने कमरे की ओर चल दी और मम्मीजी अपने कमरे की ओर। ऊपर जाते हुए कामया ने मम्मीजी कहते हुए सुना।

मम्मीजी- अरे भीमा, ध्यान रखना जरा दोनों को आने में देर होगी तू जाकर सो मत जाना।

भीमा- जी आप निश्चिंत रहें।

तब तक कामया अपने कमरे में घुस चुकी थी उसकी थकान से बुरी हालत थी, जैसे शरीर से सब कुछ निचुड़ चुका था। वो जल्दी से चेंज करके अपने बिस्तर पर ढेर हो गई और पता ही नहीं चला की कब सो गई, और कब सुबह हो गई थी।

सुबह जब नींद खुली तो रोज की तरह बाथरूम के अंदर से आवाजें आ रही थीं। मतलब कामेश जाग चुका था और बाथरूम में था वो। कामया भी बिस्तर छोड़कर उठी और बाथरूम में जाने की तैयारी करने लगी। कामेश के निकलते ही वो बाथरूम की ओर लपकी।

कामेश- कैसा रहा कल का ड्राइविंग क्लास?

कामया- जी कुछ खास नहीं थोड़ा बहुत।

कामेश- हाँ… तो क्या एक दिन में ही सीख लोगी क्या?

कामया तब तक बाथरूम में घुस चुकी थी। जब वो वापस निकली तो कामेश नीचे जाने को तैयार था, और कामया के आते ही दोनों नीचे खाने पीने के लिए चल दिए। कामेश कुछ शांत था, कुछ सोच रहा था पर क्या? कुछ और नहीं पूछा उसने की कब आई थी? कब गई थी? क्या-क्या सीखा और क्या हुआ? कुछ भी नहीं।

कामया का मूड सुबह-सुबह ही बिगड़ गया जब वो नीचे पहुँची तो मम्मीजी चाय सर्व कर रही थीं, और पापाजी पेपर पर नजर गड़ाए बैठे थे। दोनों के आने की आहट से मम्मीजी और पापाजी सचेत हो गये।

पापाजी- कहो कैसी रही कल की क्लास?

कामया- जी ठीक।

पापाजी- ठीक से चलाना सीख लो, लक्खा बहुत अच्छा ड्राइवर है।

कामया- “जी…” वो जानती थी की लक्खा कितना अच्छा ड्राइवर है, और कितनी अच्छी उसकी ड्राइविंग है। उसके शरीर में एक लहर फिर से दौड़ गई। वो अपनी चाय की चुस्की लेती रही और काका के बारे में सोचने लगी की कल उसने क्या किया? एक ग्राउंड में वो भी खुले में कोई देख लेता तो? और कुछ अनहोनी हो जाती तो? पर कल तो काका ने कमाल ही कर दिया था, जब उसके योनि पर उन्होंने अपना मुँह दिया था तो वो तो जैसे पागल ही हो गई थी, और अपना सब कुछ भूलकर वो काका का कैसे साथ दे रही थी।

वो सोचते ही कामया एक बार फिर से गरम होने लगी थी। सुबह-सुबह ही उसके शरीर में एक सेक्स की लहर दौड़ गई। वो चाय पी तो रही थी, पर उसका पूरा ध्यान अपने साथ हुए हादसे या फिर कहिए कल की घटना पर दौड़ रही थी। वो ना चाहते हुए भी अपने को रोक नहीं पा रही थी। बार-बार उसके जेहन में कल की घटना ही घूम रही थी और वो धीरे-धीरे अपनी उत्तेजना को छुपाती जा रही थी।

चाय खतम होते-होते कामया की हालत बहुत ही खराब हो चुकी थी। वो अब अपने पति के साथ अपने कमरे में अकेली होना चाहती थी, और अपने तन की भूख को मिटाना चाहती थी। उसके शरीर की आग को वो अब कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। तभी उसके होंठों से एक लम्बी सी सांस निकली, और सबका ध्यान उसकी ओर चला गया।

कामेश- क्या हुआ?

कामया लजा गई- कुछ नहीं बस।

सभी की चाय खतम हो गई थी सभी अपने कमरे की और चल दिए शोरूम जाने की तैयारी में थे। चाय की टेबल पर पापाजी और कामेश कल के शाम की बातें ही करते रहे और कामया भी अपने साथ हुई घटना के बारे में सोचती रही जब दोनों कमरे में आए तो कामेश कल की घटना को अंजाम देने के लिए जल्दबाजी में था और तैयार होकर शोरूम जाने को और कामया कल की घटना के बारे में सोचते हुए इतना गरम हो चुकी थी की वो भी उसको अंजाम देना चाहती थी।

पर जैसे ही कमरे में वो लोग घुसे, कामेश ने कहा- “सुनो, जल्दी से ड्रेस निकल दो। आज से थोड़ा जल्दी ही जाना होगा शोरूम, कभी भी बैंक वाले आ सकते है इनस्पेक्सन के लिए।

कामया- जी पर रोज तो आप 10:30 बजे तक ही जाते हैं, आज क्यों जल्दी?

कामेश- “अरे कहा ना कि आज से थोड़ा सा जल्दी करना होगा। पापाजी भी जल्दी ही निकलेंगे…” और कहता हुआ वो बाथरूम में घुस गया।

कामया का दिमाग खराब हो गया। वो झल्लाकर अपने बिस्तर पर बैठ गई और गुस्से से अपने पैरों को पटकने लगी, कामेश को कोई सुध नहीं है मेरी। हमेशा ही शोरूम और बिज़नेस के बारे में सोचता रहता है। अगर कहीं जाना भी होता है तो अगर उसकी इच्छा हो तो नहीं तो? कामया को अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था वो अपने पैरों को झटकते हुए अपने शरीर में उठ रहे ज्वार को भी ठंडा कर रही थी। वो जानती थी की अब उसे किसी भी हालत में कामेश की जरुरत है। पर कामेश को तो जैसे होश ही नहीं है कि उसकी पत्नी को क्या चाहिए? और क्या उसकी तमन्ना है, उसे जरा भी फिकर नहीं है। क्या करे वो? कल की घटना उसे बार-बार याद आ रही थी। काका की जीभ की चुभन उसे अभी भी याद थी, उसके शरीर में उठने वाले ज्वार को वो अब नजर अंदाज नहीं कर सकती थी। वो कामेश के आते ही लिपट जाएगी और उसे मजबूर कर देगी की वो उसके साथ वो सब करे। वो सोच ही रही थी की इंटरकाम की घंटी बज उठी। वो ना चाहते हुए भी फोन उठा लिया।

उधर से मम्मीजी थी- अरे बहू।

कामया- जी।

मम्मीजी- अरे कामेश से कह देना की पापाजी भी उसके साथ ही जाऐंगे, पता नहीं लक्खा की तबीयत को क्या हो गया है, नहीं आएगा आज।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 11-03-2019, 12:45 PM



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