Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#20
.
उसके पल्लू ने तो कब का उसका साथ छोड़ दिया था। उसकी सांसें भी उखड़-उखड़ कर चल रही थीं। लक्खा के हाथों का कमाल था की उसके मुख से अब तक रोकी हुई सिसकारी एक लम्बी सी ‘आआह्ह’ बनकर बाहर निकल ही आई, और उसका बायां हाथ स्टियरिंग से फिसलकर गियर रोड पा आ गया। ठीक गियर रोड के साथ ही लक्खा अपने लिंग को टिकाए हुए था। बहू की उंगलियां उससे टकराते ही लक्खा का दायां हाथ बहू के ब्लाउज़ के अंदर और अंदर उतर गया, और उसके हाथों में वो जन्नत का मजा, या कहिए रूई का वो गोला आ गया था। जिसे वो बहुत देर से अपनी आँखें टिकाए देख भर रहा था।

वो थोड़ा सा आगे हुआ और अपने लिंग को बहू की उंगलियों को चुवा भर दिया और अपने दायें हाथ से बहू की चूचियों को दबाने लगा था। और कामया के हाथों में जैसे कोई मोटा सा रोड आ गया था। वो अपने हाथों को नीचे और नीचे ले गई थी, और लिंग को धोती के ऊपर से कसकर पकड़ लिया, जो उसकी हथेली में नहीं आ रहा था। पर गरम बहुत था कपड़े के अंदर से भी उसकी गर्मी वो महसूस कर रही थी। वो गाड़ी चलना भूल गई थी, ना ही उसे मालूम था की गाड़ी कहां खड़ी थी, उसे तो बस पता था की उसके ब्लाउज़ के अंदर एक बलिष्ठ सा हाथ उसकी चूचियों को दबा-दबाकर उसके शरीर की आग को बढ़ा रहा था और उसके हाथों में एक लिंग था, जिसके आकार का उसे पता नहीं था। उसके चेहरे को देखकर कहा जा सकता था की उसे जो चाहिए था, वो उसे बस मिलने ही वाला था।

तभी उसके कानों में एक आवाज आई- “आप बहुत सुन्दर हैं…” यह काका की आवाज थी, बहुत दूर से आती हुई और उसके जेहन में उतरती चली गई।

कामया का बायां हाथ भी अब उठकर काका के हाथों का साथ देने लगा था। उसके ब्लाउज़ के ऊपर से काका का दूसरा हाथ यानी की दायां हाथ अब कामया की दाईं चूची को ब्लाउज़ के ऊपर से दबा रहा था और होंठों से कामया के गले और गालों को गीला कर रहा था। कामया सब कुछ भूलकर अपने सफर पर रवाना हो चुकी थी, और काका के हाथों का खिलौना बन चुकी थी। वो अपने शरीर के हर हिस्से में काका के हाथों का इंतेजार कर रही थी, और होंठों को घुमाकर काका के होंठों से जोड़ने की कोशिश कर रही थी।

लक्खा ने भी अपनी बहू को निराश नहीं किया, और उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर अपनी प्यास बुझानी शुरू कर दी। अब तो गाड़ी के अंदर जैसे तूफान सा आ गया था की कौन सी चीज पकड़े या किस पर से हाथ हटाए? या फिर कहां होंठों को रखे, या फिर छोड़े? दोनों एक दूसरे से गुंथ से गये थे। कामया की पकड़ काका के लिंग पर बहुत कस गई थी और वो उसे अपनी ओर खींचने लगी थी।

पर लक्खा क्या करता? वो बायें हाथ से अपनी धोती को ढीला करके अपने अंडरवेर को भी नीचे कर दिया और फिर से बहू के हाथों को पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया और फिर से बहू के होंठों का रसपान करने लगा। बायें हाथ से उसने कब कामया की साड़ी ऊपर उठा दी थी, उसे पता ही नहीं चला। पर हाँ, उसके पत्थर जैसी हथेली का स्पर्श जैसे ही उसकी जांघों और टांगों पर हुआ, वो अपनी जांघों को और नहीं जोड़कर रख सकी थी। वो अपने आपको काका के सुपुर्द करके मुख को आजाद करके सीट के हेड-रेस्ट पर सिर रखकर जोर-जोर से सांसें ले रही थी। और लक्खा अपने हाथों में आई इस चीज का पूरा लुत्फ उठा रहा था।

तभी अचानक ही लक्खा अपनी सीट से अलग होकर जल्दी से बाहर की ओर लपका और घूमकर अपनी ढीली धोती और अंडरवेर को संभलता हुआ ड्राइविंग सीट की ओर लपका और एक झटके में ही दरवाजा खोलकर बहू को खींचकर उसके टांगों को बाहर निकाल लिया, और उसकी जांघों और टांगों को चूमने लगा।

कितनी सुंदर और सुडौल टाँगें थी बहू की, और कितने चिकने और नरम उऊफ… वो अपने हाथों को बहू के पेटीकोट के अंदर तक बिना किसी झिझक के ले जा रहा था और एक झटके में उसकी पैंटी को खींचकर बाहर भी निकाल भी लिया और देखते ही देखते उसकी जांघों को किस करते हुए उसकी योनि तक पहुँच गया,
और कामया ने अपने जीवन का पहला अनुभव किया, अपनी योनि को चूमने का। उसका पूरा शरीर जबाब दे गया था और उसके मुख से एक लम्बी सी सिसकारी निकली, और वो बुरी तरह से अपने आपको काका की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी थी।

पर कहां काका की पकड़ इतनी मजबूत थी की वो कुछ भी ना कर पाई। हाँ… इतना जरूर था की उसकी चीख अब उसके बस में नहीं थी, वो लगातार अपनी चीख को सुन भी सकती थी, और उसके सुख का आनंद भी ले सकती थी। उसे लग रहा था की जैसे उसका हार्ट फेल हो जाएगा। उसके अंदर उठ रही अम-अग्नि अपने चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी, और वो काका की जीभ और होंठों का जवाब ढूँढ़ती और अपने को बचाती वो काका के हाथों में ढेर हो गई।

पर काका को कहां चैन था? वो तो अब भी अपने होंठों को बहू की योनि में लगाकर उसके जीवन का अमृत पी रहा था, उसका पूरा चेहरा बहू की योनि से निकलने वाले रस से भर गया था, और वो अपने चेहरे को अब भी उसपर घिस रहा था। कामया जो की अब तक अपने को संभालने में लगी थी, उसे नहीं पता था की वो किस परिस्थिति में है? हाँ, पता था तो बस एक बात की वो एक ऐसे जन्नत के सफर पर है, जिसका की कोई अंत नहीं है, उसके शरीर पर।

अब भी झटके से उसकी योनि से रस अब तक निकल रहा था और अपनी योनि पर उसे अभी तक काका के होंठों का और जीभ का एहसास हो रहा था। उसकी जांघों पर जैसे कोई सख़्त सी चीज ने जकड़ रखा था और उसकी पकड़ इतनी बजबूत थी कि वो चाहकर भी अपनी जांघों को हिला नहीं पा रही थी।

और उधर लक्खा अपनी जीभ को अब भी बहू की योनि के अंदर आगे पीछे करके अपनी जीभ से बहू के अंदर से निकलते हुए रस को पी रहा था, जैसे कोई अमृत मिल गया हो, और वो उसका एक भी कतरा बरबाद नहीं करना चाहता था। उसके दोनों हाथ बहू की जांघों के चारों और कस के जकड़े हुए थे, और वो बहू की जांघों को थोड़ा सा खोलकर सांस लेने की जगह बनाने की कोशिश कर रहा था। पर बहू की जांघों ने उसके सिर को इतनी जोर से जकड़ रखा था की वो अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उसकी जांघों को अलग नहीं कर पा रहा था।
वो इससे ही अंदाजा लगा सकता था की बहू कितनी उत्तेजित है, या फिर कितना मजा आ रहा है।

लक्खा अपने को और भी बहू की योनि के अंदर घुसा लेना चाहता था। पर उसने अपने को छुड़ाने की कोशिश में एक झटके से अपना चेहरा उसकी जांघों से आजाद कर लिया, और बाहर आकर सांस लेने लगा। तब उसकी नजर बहू पर पड़ी, जो की अब भी ड्राइविंग सीट पर लेटी हुई थी, और जांघों तक नंगी थी। उसकी सफेद और सुडौल सी जांघें और पैर बाहर कार से लटके हुए थे। दूर से आ रही रोशनी उसके नंगे शरीर को चार चाँद लगा रहे थे। लक्खा का पूरा चेहरा बहू के रस से भीगा हुआ था और वो अब भी बहू को एक भूखे शेर की तरह देख रहा था, और अपने मजबूत हाथों से उसकी जांघों को और उसके पैरों को सहला रहा था। बहू का चेहरा उसे नहीं दिख रहा था, वो अंदर कहीं शायद गियर रोड के पास नीचे की ओर था। लक्खा उठा और सहारा देकर बहू को थोड़ा सा बाहर खींचा, ताकी बहू का सिर किसी तरह से सीट पर आ जाए।

लक्खा को अपने नौकर होने का एहसास अब भी था। वो नहीं चाहता था की बहू को तकलीफ हो, पर अपनी वासना को भी नहीं रोक पा रहा था। उसने एक बार बहू की ओर देखा और उठ खड़ा हुआ, और अपनी धोती से अपना चेहरा पोंछा और थोड़ा सा अंदर घुसकर बहू की ओर देखने लगा। बहू अब भी शांत थी, पर उसके शरीर से अब भी कई झटके उठ रहे थे। बीच-बीच में थोड़ा सा खांस भी लेती थी। पर काका को अचानक ही अपने ऊपर झुके हुए देखकर वो थोड़ा सा सचेत हो गई, और अपनी परिस्थिति का अंदाज लगाने लगी।

काका का चेहरा बहुत ही सख्त सा दिखाई दे रहा था, उस अंधेरे में भी उसे उनकी आँखों में एक चमक दिखाई दे रही थी। उसके पैरों पर अब थोड़ा सा ठंड का एहसास उसे हुआ तो वो अपने पैरों को मोड़कर अपने नंगेपन को छुपाने की कोशिश की।

तब काका ने उसके कंधों को पकड़कर थोड़ा सा उठाया और कहा- “बहू…”

कामया- चुप थी।

काका ने जब देखा की कामया की ओर से कोई जबाब नहीं है तो, वो बाहर आया और अपने हाथों से कामया को सहारा देकर बैठा लिया। काका जो की बाहर खड़ा था और लगभग कामया के चेहरे तक उसकी कमर आ रही थी, कामया के बैठे ही उसने कामया को कंधे से जकड़कर अपने पेट से चिपका लिया।

कामया भी काका की हरकत को जानकर अपने को रोका नहीं। पर जैसे ही वो काका के पेट से लगी तो उसके गले पर एक गरम सी चीज टकराई, गरम बहुत ही गरम। उसने अपने चेहरे को नीचे करके उस गरम चीज को अपने गले और ठोड़ी के बीच में फँसा लिया, और हल्के से अपने ठोड़ी को हिलाकर उसके एहसास का मजा लेने लगी। कामया के शरीर में एक बार फिर से उत्तेजना की लहर उठने लगी थी और वो वैसे ही अपने गले और ठोड़ी को उस चीज पर घिसती रही।

उधर लक्खा अपने लिंग के अकड़पन को अब ठंडा करना चाहता था। वो उत्तेजित तो था ही, पर बहू की हरकत को वो और नहीं झेल पा रहा था। वो भी बहू को अपनी कमर पर कसकर जकड़ लिया और अपनी कमर को बहू के गले और चेहरे पर घिसने लगा। वो अपने लिंग को शायद अच्छे से दिखा लेना चाहता था, की देख किस चीज पर आज हाथ साफ किया है? या कभी देखा है इतनी सुंदर हसीना को? या फिर तेरी जिंदगी का वो लम्हा शायद फिर कभी भी ना आए इसलिए देख ले।

और उधर कामया की हालत फिर से खराब होने लगी थी। वो अपने चेहरे पर और गले और गालों पर काका के लिंग के एहसास को झुठला नहीं पा रही थी, और वो भी अपने आपको काका के और भी नजदीक ले जाना चाहती थी। उसने अपने दोनों हाथों को काका की कमर में चारों ओर कस लिया और खुद ही अपने चेहरे को उनके लिंग पर घिसने लगी थी। पहली बार। जिंदगी में पहली बार वो यह सब कर रही थी, और वो भी अपने घर के ड्राइवर के साथ। उसने अपने पति का लिंग भी कभी अपने चेहरे पर नहीं घिसा था, या शायद कभी मौका ही नहीं आया था। पर हाँ… उसे अच्छा लग रहा था, उसकी गर्मी के एहसास को वो भुला नहीं पा रही थी। उसके शरीर में एक उत्तेजना की लहर फिर से दौड़ने लगी थी। उसकी जांघों के बीच में फिर से गुदगुदी सी होने लगी थी। ठंडी हवा उसकी जांघों और, योनि के द्वार पर अब अच्छे से टकरा रही थी। और वो अपने चेहरे को घिस कर अपने आपको फिर से तैयार कर रही थी।

उसके होंठ भी कई बार काका के लिंग को छू गये थे, पर सिर्फ टच और कुछ नहीं। उसके होंठों का टच होना और लक्खा के शरीर में एक दीवानेपन की लहर और उसपर उसका वहसीपन और भी बढ़ गया था। वो अपने लिंग को अब बहू के होंठों पर बार-बार छूने की कोशिश करने लगा था। वो अपने दोनों हाथों से एक बार फिर बहू की पीठ और बालों को सहलाने के साथ उसकी चूची की ओर ले जाने की कोशिश, बहू के उसकी कमर के चारों ओर चिपके होने से उसे थोड़ी सी मसक्कत करनी पड़ी। पर हाँ… कामयाब हो ही गया वो, अपने हाथों को बहू की चूचियों पर पहुँचने में।

ब्लाउज़ के ऊपर से ही वो उनको दबाने लगा और उनके मुलायमपन का आनंद लेने लगा। एक तरफ तो वो बहू की चूचियों से खेल रहा था और दूसरी तरफ वो अपने लिंग को बहू के होंठों पर घिसने की कोशिश भी कर रहा था। उसके हाथ अब उसके इशारे पर नहीं थे, बल्की उसको मजबूर कर रहे थे की बहू की चूचियों को अंदर से छुए तो वो अपने हाथों से बहू के ब्लाउज़ के बटनों को खोलकर एक ही झटके से उसकी ब्रा को भी आजाद कर लिया, और उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथों में लेकर तौलने लगा उसके निपलों को भी अपनी उंगलियों के बीच में लेकर हल्के सा दबाने लगा।

नीचे बहू के मुख से एक हल्की सी सिसकारी ने उसे और भी बलिष्ठ बना दिया था और वो अपनी उंगलियों के दबाब को उसके निपलों पर और भी ज्यादा जोर से मसलने लगा था। बहू की सिसकारी अब धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी, और उसका चेहरा भी अब कुछ ज्यादा ही उसके पेट पर घिसने लगा था। लक्खा अपने हाथों का दबाब खड़े-खड़े उसकी चूचियों पर भी बढ़ाने लगा था, और अब तो कुछ देर बाद वो उन्हें मसलने लगा था। बहू के मुख से निकलने वाली ‘सीऽ सी…’ अब थोड़ी बहुत दर्द भी लिए हुए थी। पर बहू मना कुछ नहीं कर रही थी, बल्की बहू की पकड़ उसकी कमर पर और भी ज्यादा होती जा रही थी, और उसका चेहरा भी उसके ठीक लिंग के ऊपर और उसके लिंग के चारों तरफ कुछ ज्यादा ही इधर-उधर होने लगा था।

लक्खा काका ने एक बार नीचे बहू की ओर देखा और जोर से उसकी चूचियों को दबा दिया दोनों हाथों से, और जैसे ही उसका मुख से ‘आआह्ह’ निकली काका ने झट से अपने लिंग को उसके सुंदर और सांस लेने की लिए खुले होंठों के बीच में रख दिया और एक झटका से अंदर गुलाबी होंठों में फँसा दिया।

कामया के तो होश ही गुम हो गये। जैसे ही उसके मुख में काका का लिंग घुसा, उसे घिन सी आई और वो अपने आपको आजाद करने की कोशिश करने लगी, और अपने मुख से काका के लिंग को निकालने में लग गई थी। पर काका की पकड़ इतनी मजबूत थी की वो अपने आपको उनसे अलग तो क्या हिला तक नहीं पाई थी। काका का एक हाथ अब उसके सिर के पीछे था और दूसरे हाथ से उसके कंधों को पकड़कर उसे अपने लिंग के पास और पास खींचने की कोशिश कर रहे थे।

कामया का सांस लेना दूभर हो रहा था। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो रही थीं और वो अपने को छुड़ा ना पाकर ऊपर काका की ओर बड़ी दयनीय स्थिति में देखने लगी थी। पर काका का पूरा ध्यान अपने लिंग को कामया के मुख के अंदर घुसाने में लगा था, और वो उस परम आनंद को कहीं से भी जाने नहीं देना चाहते थे। वो अपने हाथों का दबाब बहू के सिर और कंधे पर बढ़ाते ही जा रहे थे, और अपने लिंग को उसके मुँह में अंदर-बाहर धीरे से करते जा रहे थे।

कामया जो की अपने को छुड़ाने में असमर्थ थी अब किसी तरह से अपने मुख को खोलकर उस गरम चीज को अपने मुख में अडजस्ट करने की कोशिश करने लगी थी।

घिन के मारे उसकी जान जा रही थी और काका के लिंग के आस पास उगे बालों पर से एक दुर्गंध आ रही थी, जिससे की उसे उबकाई भी आ रही थी। पर वो बेबस थी। वो काका जैसे बलिष्ठ इंसान से शक्ति में बहुत कम थी। वो किसी तरह से अपने होंठों को अडजस्ट करके उनके लिंग को उनके तरीके से अंदर-बाहर होने दे रही थी। पर जैसे ही उसने अपने मुख को खोलकर काका के लिंग को अडजस्ट किया, काका और भी वहशी से हो गये थे। वो अब जोर का झटका देते थे की उसके गले तक उनका लिंग चला जाता था, और फिर थोड़ा सा बाहर की ओर खींचते थे, तो कामया को थोड़ा सा सुकून मिलता था।

काका अपनी गति से लगे हुए थे और कामया अपने को अडजस्ट करने में। पर ना जाने क्यों थोड़ी देर बाद कामया को भी इस खेल में मजा आने लगा था। वो अब उतना विरोध नहीं कर रही थी बल्की काका के धक्के के साथ ही वो अपने होंठों को जोड़े ही रखी थी और धीरे-धीरे काका के लिंग को अपने अंदर मुख में लेते जा रही थी। अब तो वो अपनी जीभ को भी उनके लिंग पर चलाने लग गई थी। उसे अब उबकाई नहीं आ रही थी, और ना ही घिन ही आ रही थी। उसके शरीर से उठ रही गंध को भी वो भूल चुकी थी और तल्लीनता से उनके लिंग को अपने मुँह में लिए चूस रही थी।

लक्खा ने जैसे ही देखा की बहू अब उसके लिंग को चूस रही है और उसे कोई जोर नहीं लगाना पड़ रहा है तो उसने अपने हाथ का दबाव उसके सिर पर ढीला छोड़ दिया और अपनी कमर को आगे पीछे करने में ध्यान देने लगा। उसका लिंग बहू के छोटे से मुख में लाल होंठों से लिपटा हुआ देखकर वो और भी उत्तेजित होता जा रहा था। वो अब किसी भी कीमत पर बहू की योनि के अंदर अपने आपको उतार देना चाहता था। वो जानता था की अगर बहू के मुख में वो ज्यादा देर रहा तो वो झड़ जाएगा और वो मजा वो उसकी योनि पर लेने से वंचित रह जाएगा।

वो जल्दी से बहू के कंधों को पकड़कर एक झटके से उठाया और अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया, और उसके लाल-लाल होंठों को अपने मोटे और भौड़े से होंठों की भेंट चढ़ा दिया। वो पागलों की तरह से बहू के होंठों को चूस रहा था, और अपनी जीभ से भी उसके मुख की गहराई को नाप रहा था। कामया जब तक कुछ समझती तब तक तो काका उसे अपने होंठों से जोड़ चुके थे, और पागलों की तरह से किस कर रहे थे। किस के छूटते ही वो बहू के ऊपर थे और काका का लिंग उसकी योनि के द्वार पर था और एक ही झटके में वो उसके अंदर था।

काका के मजे का लगाता था की आज इंतेहाँ था, या फिर उनके पुरुषार्थ को दिखाने का समय, या फिर बहू को भोगने का उतावलापन। जिससे वो भूल चुका था की वो उस घर का एक नौकर है, और जो आज उसके साथ है, वो मालेकिन है, एक बड़े घर की बहू। उसे तो लग रहा था की उसके हाथों में जो थी वो एक औरत है और सिर्फ औरत। जिसके जिश्म का वो दीवाना था और जैसे चाहे वैसे उसे भोग सकता था।

वो बहू को बोनट पर चित्त लिटाकर अपने लिंग को उसकी योनि के द्वार पर रखकर एक जोरदार धक्के के साथ उसके अंदर समा गया। उसके अंदर घुसते ही बहू के मुख से एक चीत्कार निकली, जो की उस सूनसान ग्राउंड के चारों ओर फैल गई और शायद गाड़ियों की आवाज में दबकर कहीं खो गई। दुबारा धक्के के साथ ही लक्खा अपने होंठों को कामया के होंठों पर ले आया और किसी पिस्टन की भांति अपनी कमर से धक्के पर धक्के लगाने लगा।
.
.
[+] 1 user Likes jaunpur's post
Like Reply


Messages In This Thread
RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 11-03-2019, 12:44 PM



Users browsing this thread: 2 Guest(s)