11-03-2019, 12:44 PM
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अपनी सुंदरता के आगे किसी की बेबसी देखाई दी थी, उसकी सुंदरता के आगे किसी इंसान को बेसब्र और चंचल होते देखा था उसने। वो तो उस नजर को ढूँढ़ रही थी, उसे तो बस उस नजर का इंतेजार था। वो नजर जिसमें की उसकी तारीफ थी, उसके अंग-अंग की भूख को जगा गई थी। वो नजर भीमा और लक्खा में कोई फर्क नहीं था। कामया के लिए दोनों ही उसके दीवाने थे, उसके शरीर के दीवाने, उसके सुंदरता के दीवाने, और तो और वो चाहती भी यही थी।
इतने दिनों की शादी के बाद भी यह नजर उसके पति ने नहीं पाई थी, जो नजर उसने भीमा की और लक्खा काका के अंदर पाया था। उनके देखने के अंदाज से ही वो अपना सब कुछ भूलकर उनकी नजरों को पढ़ने की कोशिश करने लगती थी, और जब वो पाती थी की उनकी नजर में भूख है तो वो खुद भी एक ऐसे समुंदर में गोते लगाने लग जाती थी की उसमें से निकालना भीमा चाचा या फिर लक्खा काका के हाथ में ही होता था। आज वो फिर उस नजर का पीछा कर रही थी। पर लक्खा काका तो बस गाड़ी चलाते हुए एक-दो बार ही पीछे देखा था।
उस दिन तो पार्टी में जाते समय कामेश के साथ होते हुए भी कितनी बार काका ने पीछे उसे रियर व्यू में नजर बचाकर देखा था, और उतरते-उतरते भी उसे नहीं छोड़ा था। आज कहां गई वो दीवानगी? और कहां गई वो चाहत? कामया सोचने को मजबूर थी की अचानक ही उसने अपना दांव खेल दिया। वो थोड़ा सा आगे हुई और अपने समर कोट के बटनों को खोलने लगी, और धीरे से बहुत ही धीरे से अपने आपको उस कोट से अलग करने लगी।
लक्खा जो की गाड़ी चलाने पर ध्यान दे रहा था पीछे की गतिविधि को ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था। उसकी आँखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी उउफफ्फ़… क्या नजारा था… जैसे ही बहू ने अपने कोट को अपने शारीर से अलग किया, उसका यौवन उसके सामने था, आंचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज़ के परे था, नीचे गिरा हुआ था।
कोट को उतारकर कामया ने धीरे से साइड में रखा और अपने दायें हाथ की नाजुक-नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चूचियों को ढका, या फिर कहिए लक्खा को चिढ़ाया की देख यह मैं हूँ, और आराम से वापस टिक कर बैठ गई थी। जैसे की कह रही हो- “लो लक्खा काका मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट, मेरी ओर से तो तुम्हें खुला निमंत्रण है अब तुम्हारी बारी है…”
और लक्खा को तो जैसे साप सूंघ गया हो, वो गाड़ी चलाए या फिर क्या करे? दिमाग काम नहीं कर रहा था। जो बहू अब तक उसकी गाड़ी के अंदर ढकी ढकाई बैठी थी, अब सिर्फ एक कोट उतरने से ही उसकी सांसें रोक सकती है तो, जब वो गाड़ी चलायेगी उसके पास बैठकर तो तो वो तो मर ही जाएगा।
वो अपने को क्या संभाले, वो तो बस उस सुंदरता को रियर व्यू में बार-बार देख रहा था और अपने भाग्य पर इठला रहा था की क्या मौका मिला था आज उसे? जहां वो बहू को गाड़ी चलाने के लिए सब लोगों को मना करने वाला था, और कहां वो आज उस जन्नत के दीदार कर रहा है। वो सोचते-सोचते अपनी गाड़ी को ग्राउंड की और ले चला था।
और कामया ने जो सोचा था, वो उसे मिल गया था। वो लक्खा काका का अटेन्शन खींचने में सफल हो गई थी, जो नजर गाड़ी चलाते समय सड़क पर थी, वो अब बार-बार उसपर पड़ रही थी। वो अपने इस कदम से खुश थी, अपनी सुंदरता पर इठला रही थी, वो अपने आप को एक जीवंत सा महसूस कर रही थी। उसके शरीर में जो आग लगी थी, अब वो आग धीरे-धीरे भड़क रही थी। उसकी सांसों का तेज होना शुरू हो गया था, और हो भी क्यों नहीं उसकी सुंदरता को कोई पुजारी जो मिल गया था। उसके शरीर की पूजा करने वाला और उसकी तारीफ करने वाला, भले ही शब्दों से ना करे, पर नजर से तो कर ही रहा था। कामया अपने को और भी ठीक करके बैठने की कोशिश कर रही थी। ठीक से क्या अपने आपको काका के दर्शन के लिए और खुला निमंत्रण दे रही थी। वो थोड़ा सा आगे की और हुई, और अपनी दोनों बाहों को सामने सीट पर ले गई।
फिर कामया ने बड़े ही इठलाते हुए कहा- “और कितनी दूर है हाँ?”
लक्खा- “जी बस पहुँच ही गये…”
और गाड़ी मैदान में उतर गई थी और एक जगह रुक गई। लक्खा अपनी तरफ का गेट खोलकर बाहर निकलते समय पीछे पलटकर कामया की ओर देखते हुए कहा- “जी आइए ड्राइविंग सीट पर…”
कामया ने लगभग मचलती हुई अपने साइड का दरवाजा खोला और जल्दी से नीचे उतरकर बाहर आई और लगभग दौड़ती हुई पीछे से घूमती हुई आगे ड्राइविंग सीट की ओर आ गई।
बाहर लक्खा दरवाजा पकड़े खड़ा था और अपने सामने स्वप्न-सुंदरी को ठीक से देख रहा था। वो अपनी नजर को नीचे नहीं रख पा रहा था। वो उस सुंदरता को पूरी इज्जत देना चाहता था। वो अपनी नजर को झुका कर उस सुंदरता का अपमान नहीं करना चाहता था। वो अपने जेहन में उस सुंदरता को उतार लेना चाहता था। वो अपने पास से बहू को ड्राइविंग सीट की ओर आते हुए देखता रहा, और बड़े ही आदाब से उसका स्वागत भी किया। थोड़ा सा झुक कर और थोड़ा सा मुश्कुराते हुए वो बहू के चेहरे को पढ़ना चाहता था। वो उसकी आँखों में झांक कर उसके मन की बातों को पढ़ना चाहता था। वो अपने सामने उस सुंदरी को देखना चाहता था, वो एकटक बहू की ओर नजर गड़ाए देखता रहा, जब तक वो उसके सामने से होते हुए ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ गई।
कामया का बैठना भी एक और दिखावा था। वो तो लक्खा को अपने शरीर का दीदार करा रही थी। बैठते ही उसका आंचल उसके कंधे से डालकर उसकी कमर तक उसको नंगा कर गया, सिर्फ ब्लाउज़ में उसकी चूचियां जो की आधे से ज्यादा ही बाहर थीं, लक्खा के सामने उजागर हो गईं, पर कामया का ध्यान ड्राइविंग सीट पर बैठते ही स्टियरिंग पर अपने हाथों को ले जाने की जल्दी में थे। वो बैठते ही अपने आपको भुलाकर स्टियरिंग पर अपने हाथों को फेरने लगी थी, और उसके होंठों पर एक मधुर सी मुश्कान थी। पर बाहर खड़े हुए लक्खा की तो जैसे जान ही निकल गई थी।
अपने सामने ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई उसकी कामाग्नि से जलती हुई सुंदरता की उस अप्सरा को वो बिना पलकें झपकाए, आँखें गड़ाए खड़ा-खड़ा देख रहा था। उसकी सांसें जैसे रुक गई थीं, वो अपने मुख से थूक का घूंट पीते हुए दरवाजे को बंद करने को था की उसकी नजर बहू की साड़ी पर पड़ी जो की दरवाजे से बाहर जमीन तक जा रही थी, और बहू तो स्टियरिंग पर ही मस्त थी। वो बिना किसी तकल्लुफ के नीचे झुका और अपने हाथों से बहू की साड़ी को उठाकर गाड़ी के अंदर रखा, और अपने हाथों से उसे ठीक करके बाहर आते हुए हल्के हाथों से बहू की जांघों को थोड़ा सा छुआ और दरवाजा बंद कर दिया।
फिर वो जल्दी से घूमकर अपनी सीट पर बैठना चाहता था, पर घूमकर आते-आते उसने धोती को और अपने अंडरवेर को थोड़ा सा हिलाकर अपने लिंग को अकड़ने से रोका, या कहिए थोड़ा सा सांस लेने की जगह बना दी। वो तो तूफान खड़ा किए हुए था अंदर।
कामया अब भी उसी स्थिति में बैठी हुई थी। उसने अपने पल्लू को उठाने की जहमत नहीं की थी, और अपने हाथों को स्टियरिंग पर अब भी घुमाकर देख रही थी। लक्खा काका के आने के बाद वो उसकी ओर देखकर मुश्कुराई और कहा- “हाँ… अब क्या?”
लक्खा साइड की सीट पर बैठे हुए थोड़ा सा हिचका था पर फिर थोड़ा सा दूरी बनाकर बैठ गया और बहू को देखता रहा। ब्लाउज़ के अंदर से उसकी गोल-गोल चूचियां जो की बाहर से ही दिख रही थीं, उनपर नजर डालते हुए और गला को तर करते हुए बोला- “जी आप गाड़ी स्टार्ट करें…”
कामया- कैसे? और अपने पल्लू को बड़े ही नाटकीय अंदाज से अपने कंधे पर डाल लिया, ना देखते हुए की उससे कुछ ढका की नहीं?
लक्खा- “जी वो चाबी घुमा के साइड से…” और आँखों का इशारा करते हुए साइड की ओर देखा।
कामया ने भी थोड़ा सा आगे होकर चाबी तक हाथ पहुँचाया और घुमा दिया। गाड़ी एक झटके से आगे बढ़ी और फिर आगे बढ़ी और बंद।
लक्खा ने झट से अपने पैरों को साइड से लेजाकर ब्रेक पर रख दिया और ध्यान से बहू की ओर देखा। लक्खा के ब्रेक पर पैर रखते ही कामया का सारा बदन जल उठा, उसकी जांघों पर अब लक्खा काका की जांघें चढ़ी हुई थीं, और उसकी नाजुक जांघें उनके नीचे थीं। भारी और मजबूत थी उनकी जांघें और हाथ उसके कंधे पर आ गये थे। साड़ी का पल्लू फिर से एक बार उसकी चूचियों को उजागर कर रहे थे, वो अपनी सांसों को नियंत्रण करने में लगे थे। लक्खा ने जल्दी से अपने पैरों को उसके ऊपर से हटाया और गियर पर हाथ लेजाकर उसे न्यूट्रल किया और बहू की ओर देखता रहा। उसकी जान ही अटक गई थी, पता नहीं अब क्या होगा? उसने एक बहुत बड़ी गलती कर दी थी।
पर कामया तो नार्मल थी और बहुत ही सहज भाव से पूछी- “अरे काका हमें कुछ नहीं आता। ऐसे थोड़ी सिखाया जाता है गाड़ी।
लक्खा- “जी जी जी वो…” उसके गले में सारी आवाज ही फँस गई थी। क्या कहे उसके सामने? जो चीज बैठी है, उसको देखते ही उसके होश उड़ गये हैं और क्या कहे कैसे कहे?
कामया- अरे काका, आप थोड़ा इधर आकर बैठो और हमें बताओ की क्या करना है? और ब्रेक वगैरा सब कुछ, हमें कुछ नहीं पता है।
लक्खा- “जी जी…” और लक्खा अपने आपको थोड़ा सा सम्भालता हुआ बहू की ओर नजर गड़ाए हुए उसे बताने की कोशिश करने लगा- “जी वो बांये तरफ वाला अक्सीलिरेटर है, बीच में ब्रेक है, और दायें में क्लच है और बताते हुए उसकी आँखें बहू के उठे हुए उभारों को और उसके नीचे उसे पेट और नाभि तक दीदार कर रही थीं। ब्लाउज़ के अंदर जो उथल पुथल चल रही थी, वो उसे भी दिख रहा था।
पर जो शरीर के अंदर चल रहा था वो तो सिर्फ कामया को ही पता था। उसके निपल टाइट और टाइट हो चुके थे, जांघों के बीच में गीलापन इतना बढ़ चुका था की लग रहा था की सू-सू निकल गई है। पैरों को जोड़कर रखना उसके लिए दूभर हो रहा था। वो अब जल्दी से अपने शरीर में उठ रही अग्नि को शांत करना चाहती थी, और वो आई भी इसीलिए थी।
लक्खा काका की नजर अब उसपर थी, और वो काका को और भी भड़का रही थी। वो जानती थी की बस कुछ ही देर में वो लक्खा के हाथों का खिलौना बन जाएगी, और लक्खा काका उसे भीमा चाचा जैसे ही रौंदकर रख देंगे। वो चाहत जिसके लिए वो हर उस काम को अंजाम दे रही थी जिससे की वो जल्दी से मुकाम को हासिल कर सके।
कामया- उफ़्फऊ… काका एक काम कीजिए आप घर चलिए ऐसे में तो कभी भी गाड़ी चलाना सिख नहीं पाऊँगी।
लक्खा- जी। पर कोशिश तो आपको ही करनी पड़ेगी।
कामया- “जी… पर मैं तो कुछ भी नहीं जानती। आप जब तक हाथ पकड़कर नहीं सिखाऐंगे तो, गाड़ी चलाना तो दूर स्टार्ट करना भी नहीं आएगा…” और अपना हाथ स्टेयरिंग पर रखकर बाहर की ओर देखने लगी।
लक्खा भी सकते में था की क्या करे? वो कैसे हाथ पकड़कर सिखाए? पर सिखाना तो है, बड़े मालिक का आदेश है। वो अपने आपको संभलता हुआ बोला- “आप एक काम करें आक्सीलिरेटर पर पैर आप रखें, मैं ब्रेक और क्लच सम्भालता हूँ, और स्टेयरिंग भी थोड़ा सा देखा लूंगा…”
कामया- “ठीक है…” एकदम से मचलते हुए उसने कहा, और नीचे हाथ लेजाकर चाबी को घुमा दिया और आक्सीलिरेटर पर पैर रख दिया, दूसरा पैर फ्री था और वो लक्खा काका की ओर देखने लगी।
लक्खा भी नहीं जानता था की अब क्या करे?
कामया- अरे काका, क्या सोच रहे हैं? आप तो बस ऐसा करेंगे तो फिर घर चलिए।
घर चलिए के नाम से लक्खा के शरीर में जैसे जोश आ गया था। अपने हाथों में आई इस चीज को वो नहीं छोड़ सकता, अब चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे जान भी चली जाए, वो अब पीछे नहीं हटेगा।
लक्खा ने अपने हाथों को ड्राइविंग सीट के पीछे रखा और थोड़ा सा आगे की ओर झुक कर अपने पैरों को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा, ताकी उसके पैर ब्रेक तक पहुँच जाएं। पर कहां पहुँचे वाले थे पैर?
कामया लक्खा की इस परेशानी को समझते हुए अपने पल्लू को फिर से ऊपर करते हुए- “अरे काका, थोड़ा इधर आइये तो आपका पैर पहुँचेगा नहीं तो कहां?”
लक्खा- “जी पर वो?”
कामया- “उफफ्फ़… आप तो बस थोड़ा सा टच हो जाएगा तो क्या होगा? आप इधर आइये…” और अपने आपको भी थोड़ा सा दरवाजे की ओर सरका के वो बैठ गई।
अब लक्खा के अंदर एक आवेश आ गया था और वो अपने को रोक ना पाया। उसने अपने लेफ्ट पैर को गियर के उस तरफ कर लिया, और बहू की जांघों से जोड़कर बैठ गया। उसकी जांघें बहू की जांघों को रौंद रही थीं। उसके वजन से कामया की जांघों को तकलीफ ना हो, सोचकर लक्खा थोड़ा सा अपनी ओर हुआ, ताकी बहू अपना पैर हटा सके। पर बहू तो वैसे ही बैठी थी, और अपने हाथों को स्टियरिंग पर घुमा रही थी।
लक्खा ने ही अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ा और थोड़ा सा उधर कर दिया, और अपनी जांघों को रखने के बाद उसकी जांघों को अपने ऊपर छोड़ दिया। वाह… कितनी नाजुक और नरम सी जांघों का स्पर्श था वो, कितना सुखद और नरम सा। लक्खा ने अपने हाथों को सीट के पीछे लेजाकर अपने आपको अडजस्ट किया और बहू की ओर देखने लगा।
बहू अब थोड़ा सा उससे नीचे थी, उसका आंचल अब भी जगह में नहीं था, उसकी दोनों चूचियां उसे काफी हद तक दिख रही थीं। वो उत्तेजित होता जा रहा था, पर अपने पर काबू किए हुआ था। अपने पैरों को वो ब्रेक तक पहुँचा चुका था, और अपनी पूरी जांघों से लेकर टांगों तक बहू के स्पर्श से अभिभूत सा हुआ जा रहा था। वो अपने नथुनों में भी बहू की सुगंध को बसाकर अपने आपको जन्नत की सैर की ओर ले जा रहा था। बहू लगभग उसकी बाहों में थी और उसे कुछ भी ध्यान नहीं था। वो अपनी स्वप्न-सुंदरी के इतने पास था, वो सोच भी नहीं सकता था।
गाड़ी स्टार्ट थी और गियर पड़ते ही चालू हो जाएगी। लक्खा का दायां हाथ अब गियर के ऊपर था और उसने क्लच दबाकर धीरे से गियर चेंज किया और धीरे-धीरे क्लच को छोड़ने लगा और कहा- “आप धीरे-धीरे आक्सीलिरेटर बढ़ाना…”
कामया- “जी हमम्म्म…”
लक्खा ने धीरे से क्लच को छोड़ा पर आक्सीलिरेटर बहुत कम था सो गाड़ी फिर रुक गई। कामया ने अपनी जगह पर से ही अपना चेहरा उठाकर काका की ओर देखा और कहा- क्या हुआ?
लक्खा- “जी थोड़ा सा और आक्सीलिरेटर दीजिएगा…” और अपने दायें हाथ से गियर को फ्री करके रुका। पर कामया की ओर से कोई हरकत ना देखकर बायें हाथ से उसके कंधे पर थोड़ा सा छूकर कहा- “जी वो गाड़ी स्टार्ट कजिए हमम्म्म आआह्ह…”
कामया- “जी हीहीही…” किसी इठलाती हुई लड़की की तरह से हँसी और झुक कर चाबी को घुमाकर फिर से गाड़ी स्टार्ट की।
लक्खा की हालत खराब थी। वो अपने को अडजस्ट ही कर रहा था, उसका लिंग उसका साथ नहीं दे रहा था। वो अपने आपको आजाद करना चाहता था। लक्खा ने फिर से अपनी धोती को अडजस्ट किया और अपने लिंग को गियर के सपोर्ट पर खड़ा कर लिया, ढीले अंडरवेर से उसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। अब वो गियर चेंज करने वाला ही था की कामया का हाथ अपने आप ही गियर रोड पर आ गया था, ठीक उसके लिंग के ऊपर था। जरा सा नीचे होते ही उसके लिंग को छू जाता। लक्खा थोड़ा सा पीछे हो गया और अपने हाथों को बहू के हाथों पर रख दिया और जोर लगाकर गियर चेंज किया और धीरे से क्लच छोड़ दिया गाड़ी आगे की ओर चल दी।
लक्खा- “जी थोड़ा सा और आक्सीलिरेटर दबाइए हमम्म्म…” उसकी गरम-गरम सांसें अब कामया के चेहरे पर पड़ रही थीं।
उधर र कामया की तो हालत ही खराब थी। वो जानती थी की वो किस परिस्थिति में है, और उसे क्या चाहिए? उसने अपने आप पर से नियंत्रण हटा लिया था और सब कुछ काका के हाथों में सौंप दिया था। उसकी सांसें अब उसका साथ नहीं दे रही थीं, उसके कपड़े भी जहां तहां हो रहे थे, उसके ब्लाउज़ के अंदर से उसकी चूचियां उसका साथ नहीं दे रही थीं। वो एक बेसुध सी काया बनकर रह गई थी, जो की बस इस इंतेजार में थी की लक्खा काका के हाथ उसे सहारा दें। वो बेसुधी में ही अपनी आँखें आगे की ओर गड़ाए हुए स्टियरिंग को किसी तरह से संभाले हुये थी। गाड़ी कभी इधर कभी उधर जा रही थी।
लक्खा का बायां हाथ तो अब बहू के कंधे पर ही आ गया था, और उस नाजुक सी काया का लुत्फ ले रहा था और दायां हाथ कभी उसके हाथों को स्टियरिंग में मदद करता, तो कभी गियर चेंज करने में। वो भी अपनी स्थिति से भली भांति परिचित था, पर आगे बढ़ने की कोशिश भी कर रहा था। पूरी थाली सजी पड़ी थी, बस हाथ धोकर श्री गणेश करना बाकी था। हाँ बस औपचारिकता ही उन्हें रोके हुए थी।
लक्खा अपने दायें हाथ से कामया का हाथ पकड़कर स्टियरिंग को डाइरेक्ट कर रहा था और अपने बायें हाथ से कामया के कंधों को अब जरा आराम से सहला रहा था। उसकी आँखें बहू की ओर ही थीं, और कभी-कभी बाहर ग्राउंड पर भी उठ जाती थीं। पर बहू की ओर से कोई भी ना-नुकर ना होने से उसके मन को वो और नहीं समझा सका। उसका बायां हाथ अब उसके कंधों से लेकर उसकी चूचियों तक को छूने लगे थे। पर बड़े ही प्यार से और बड़े ही नाजुक तरीके से वो उस स्पर्श का आनंद ले रहा था। उसका बायां हाथ अब थोड़ा सा आगे की ओर उसकी गर्दन तक आ जाता था, और उसके गले को छूते हुए फिर से कंधों पर पहुँच जाता था।
लक्खा अपने को उस सुंदरता पर मर मिटने को तैयार कर रहा था। उसकी सामने अब बहू थी, तेज चल रही थी, वो थोड़ा सा झुक कर कामया के बालों की खुशबू भी अपने अंदर उतार लेता था, और वो फिर से उसके कंधों पर ध्यान कर लेता था। उसके हाथ फिर से बहू के कंधों को छूते हुए गले तक पहुँचे थे, की छोटी उंगलियों को उसने और भी फैलाकर उसकी चूचियों के ऊपर छूने की कोशिश करने लगा था। और उधर कामया काका की हर हरकत को अपने अंदर समेटकर अपनी आग को और भी भड़काकर जलने को तैयार थी।
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अपनी सुंदरता के आगे किसी की बेबसी देखाई दी थी, उसकी सुंदरता के आगे किसी इंसान को बेसब्र और चंचल होते देखा था उसने। वो तो उस नजर को ढूँढ़ रही थी, उसे तो बस उस नजर का इंतेजार था। वो नजर जिसमें की उसकी तारीफ थी, उसके अंग-अंग की भूख को जगा गई थी। वो नजर भीमा और लक्खा में कोई फर्क नहीं था। कामया के लिए दोनों ही उसके दीवाने थे, उसके शरीर के दीवाने, उसके सुंदरता के दीवाने, और तो और वो चाहती भी यही थी।
इतने दिनों की शादी के बाद भी यह नजर उसके पति ने नहीं पाई थी, जो नजर उसने भीमा की और लक्खा काका के अंदर पाया था। उनके देखने के अंदाज से ही वो अपना सब कुछ भूलकर उनकी नजरों को पढ़ने की कोशिश करने लगती थी, और जब वो पाती थी की उनकी नजर में भूख है तो वो खुद भी एक ऐसे समुंदर में गोते लगाने लग जाती थी की उसमें से निकालना भीमा चाचा या फिर लक्खा काका के हाथ में ही होता था। आज वो फिर उस नजर का पीछा कर रही थी। पर लक्खा काका तो बस गाड़ी चलाते हुए एक-दो बार ही पीछे देखा था।
उस दिन तो पार्टी में जाते समय कामेश के साथ होते हुए भी कितनी बार काका ने पीछे उसे रियर व्यू में नजर बचाकर देखा था, और उतरते-उतरते भी उसे नहीं छोड़ा था। आज कहां गई वो दीवानगी? और कहां गई वो चाहत? कामया सोचने को मजबूर थी की अचानक ही उसने अपना दांव खेल दिया। वो थोड़ा सा आगे हुई और अपने समर कोट के बटनों को खोलने लगी, और धीरे से बहुत ही धीरे से अपने आपको उस कोट से अलग करने लगी।
लक्खा जो की गाड़ी चलाने पर ध्यान दे रहा था पीछे की गतिविधि को ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था। उसकी आँखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी उउफफ्फ़… क्या नजारा था… जैसे ही बहू ने अपने कोट को अपने शारीर से अलग किया, उसका यौवन उसके सामने था, आंचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज़ के परे था, नीचे गिरा हुआ था।
कोट को उतारकर कामया ने धीरे से साइड में रखा और अपने दायें हाथ की नाजुक-नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चूचियों को ढका, या फिर कहिए लक्खा को चिढ़ाया की देख यह मैं हूँ, और आराम से वापस टिक कर बैठ गई थी। जैसे की कह रही हो- “लो लक्खा काका मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट, मेरी ओर से तो तुम्हें खुला निमंत्रण है अब तुम्हारी बारी है…”
और लक्खा को तो जैसे साप सूंघ गया हो, वो गाड़ी चलाए या फिर क्या करे? दिमाग काम नहीं कर रहा था। जो बहू अब तक उसकी गाड़ी के अंदर ढकी ढकाई बैठी थी, अब सिर्फ एक कोट उतरने से ही उसकी सांसें रोक सकती है तो, जब वो गाड़ी चलायेगी उसके पास बैठकर तो तो वो तो मर ही जाएगा।
वो अपने को क्या संभाले, वो तो बस उस सुंदरता को रियर व्यू में बार-बार देख रहा था और अपने भाग्य पर इठला रहा था की क्या मौका मिला था आज उसे? जहां वो बहू को गाड़ी चलाने के लिए सब लोगों को मना करने वाला था, और कहां वो आज उस जन्नत के दीदार कर रहा है। वो सोचते-सोचते अपनी गाड़ी को ग्राउंड की और ले चला था।
और कामया ने जो सोचा था, वो उसे मिल गया था। वो लक्खा काका का अटेन्शन खींचने में सफल हो गई थी, जो नजर गाड़ी चलाते समय सड़क पर थी, वो अब बार-बार उसपर पड़ रही थी। वो अपने इस कदम से खुश थी, अपनी सुंदरता पर इठला रही थी, वो अपने आप को एक जीवंत सा महसूस कर रही थी। उसके शरीर में जो आग लगी थी, अब वो आग धीरे-धीरे भड़क रही थी। उसकी सांसों का तेज होना शुरू हो गया था, और हो भी क्यों नहीं उसकी सुंदरता को कोई पुजारी जो मिल गया था। उसके शरीर की पूजा करने वाला और उसकी तारीफ करने वाला, भले ही शब्दों से ना करे, पर नजर से तो कर ही रहा था। कामया अपने को और भी ठीक करके बैठने की कोशिश कर रही थी। ठीक से क्या अपने आपको काका के दर्शन के लिए और खुला निमंत्रण दे रही थी। वो थोड़ा सा आगे की और हुई, और अपनी दोनों बाहों को सामने सीट पर ले गई।
फिर कामया ने बड़े ही इठलाते हुए कहा- “और कितनी दूर है हाँ?”
लक्खा- “जी बस पहुँच ही गये…”
और गाड़ी मैदान में उतर गई थी और एक जगह रुक गई। लक्खा अपनी तरफ का गेट खोलकर बाहर निकलते समय पीछे पलटकर कामया की ओर देखते हुए कहा- “जी आइए ड्राइविंग सीट पर…”
कामया ने लगभग मचलती हुई अपने साइड का दरवाजा खोला और जल्दी से नीचे उतरकर बाहर आई और लगभग दौड़ती हुई पीछे से घूमती हुई आगे ड्राइविंग सीट की ओर आ गई।
बाहर लक्खा दरवाजा पकड़े खड़ा था और अपने सामने स्वप्न-सुंदरी को ठीक से देख रहा था। वो अपनी नजर को नीचे नहीं रख पा रहा था। वो उस सुंदरता को पूरी इज्जत देना चाहता था। वो अपनी नजर को झुका कर उस सुंदरता का अपमान नहीं करना चाहता था। वो अपने जेहन में उस सुंदरता को उतार लेना चाहता था। वो अपने पास से बहू को ड्राइविंग सीट की ओर आते हुए देखता रहा, और बड़े ही आदाब से उसका स्वागत भी किया। थोड़ा सा झुक कर और थोड़ा सा मुश्कुराते हुए वो बहू के चेहरे को पढ़ना चाहता था। वो उसकी आँखों में झांक कर उसके मन की बातों को पढ़ना चाहता था। वो अपने सामने उस सुंदरी को देखना चाहता था, वो एकटक बहू की ओर नजर गड़ाए देखता रहा, जब तक वो उसके सामने से होते हुए ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ गई।
कामया का बैठना भी एक और दिखावा था। वो तो लक्खा को अपने शरीर का दीदार करा रही थी। बैठते ही उसका आंचल उसके कंधे से डालकर उसकी कमर तक उसको नंगा कर गया, सिर्फ ब्लाउज़ में उसकी चूचियां जो की आधे से ज्यादा ही बाहर थीं, लक्खा के सामने उजागर हो गईं, पर कामया का ध्यान ड्राइविंग सीट पर बैठते ही स्टियरिंग पर अपने हाथों को ले जाने की जल्दी में थे। वो बैठते ही अपने आपको भुलाकर स्टियरिंग पर अपने हाथों को फेरने लगी थी, और उसके होंठों पर एक मधुर सी मुश्कान थी। पर बाहर खड़े हुए लक्खा की तो जैसे जान ही निकल गई थी।
अपने सामने ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई उसकी कामाग्नि से जलती हुई सुंदरता की उस अप्सरा को वो बिना पलकें झपकाए, आँखें गड़ाए खड़ा-खड़ा देख रहा था। उसकी सांसें जैसे रुक गई थीं, वो अपने मुख से थूक का घूंट पीते हुए दरवाजे को बंद करने को था की उसकी नजर बहू की साड़ी पर पड़ी जो की दरवाजे से बाहर जमीन तक जा रही थी, और बहू तो स्टियरिंग पर ही मस्त थी। वो बिना किसी तकल्लुफ के नीचे झुका और अपने हाथों से बहू की साड़ी को उठाकर गाड़ी के अंदर रखा, और अपने हाथों से उसे ठीक करके बाहर आते हुए हल्के हाथों से बहू की जांघों को थोड़ा सा छुआ और दरवाजा बंद कर दिया।
फिर वो जल्दी से घूमकर अपनी सीट पर बैठना चाहता था, पर घूमकर आते-आते उसने धोती को और अपने अंडरवेर को थोड़ा सा हिलाकर अपने लिंग को अकड़ने से रोका, या कहिए थोड़ा सा सांस लेने की जगह बना दी। वो तो तूफान खड़ा किए हुए था अंदर।
कामया अब भी उसी स्थिति में बैठी हुई थी। उसने अपने पल्लू को उठाने की जहमत नहीं की थी, और अपने हाथों को स्टियरिंग पर अब भी घुमाकर देख रही थी। लक्खा काका के आने के बाद वो उसकी ओर देखकर मुश्कुराई और कहा- “हाँ… अब क्या?”
लक्खा साइड की सीट पर बैठे हुए थोड़ा सा हिचका था पर फिर थोड़ा सा दूरी बनाकर बैठ गया और बहू को देखता रहा। ब्लाउज़ के अंदर से उसकी गोल-गोल चूचियां जो की बाहर से ही दिख रही थीं, उनपर नजर डालते हुए और गला को तर करते हुए बोला- “जी आप गाड़ी स्टार्ट करें…”
कामया- कैसे? और अपने पल्लू को बड़े ही नाटकीय अंदाज से अपने कंधे पर डाल लिया, ना देखते हुए की उससे कुछ ढका की नहीं?
लक्खा- “जी वो चाबी घुमा के साइड से…” और आँखों का इशारा करते हुए साइड की ओर देखा।
कामया ने भी थोड़ा सा आगे होकर चाबी तक हाथ पहुँचाया और घुमा दिया। गाड़ी एक झटके से आगे बढ़ी और फिर आगे बढ़ी और बंद।
लक्खा ने झट से अपने पैरों को साइड से लेजाकर ब्रेक पर रख दिया और ध्यान से बहू की ओर देखा। लक्खा के ब्रेक पर पैर रखते ही कामया का सारा बदन जल उठा, उसकी जांघों पर अब लक्खा काका की जांघें चढ़ी हुई थीं, और उसकी नाजुक जांघें उनके नीचे थीं। भारी और मजबूत थी उनकी जांघें और हाथ उसके कंधे पर आ गये थे। साड़ी का पल्लू फिर से एक बार उसकी चूचियों को उजागर कर रहे थे, वो अपनी सांसों को नियंत्रण करने में लगे थे। लक्खा ने जल्दी से अपने पैरों को उसके ऊपर से हटाया और गियर पर हाथ लेजाकर उसे न्यूट्रल किया और बहू की ओर देखता रहा। उसकी जान ही अटक गई थी, पता नहीं अब क्या होगा? उसने एक बहुत बड़ी गलती कर दी थी।
पर कामया तो नार्मल थी और बहुत ही सहज भाव से पूछी- “अरे काका हमें कुछ नहीं आता। ऐसे थोड़ी सिखाया जाता है गाड़ी।
लक्खा- “जी जी जी वो…” उसके गले में सारी आवाज ही फँस गई थी। क्या कहे उसके सामने? जो चीज बैठी है, उसको देखते ही उसके होश उड़ गये हैं और क्या कहे कैसे कहे?
कामया- अरे काका, आप थोड़ा इधर आकर बैठो और हमें बताओ की क्या करना है? और ब्रेक वगैरा सब कुछ, हमें कुछ नहीं पता है।
लक्खा- “जी जी…” और लक्खा अपने आपको थोड़ा सा सम्भालता हुआ बहू की ओर नजर गड़ाए हुए उसे बताने की कोशिश करने लगा- “जी वो बांये तरफ वाला अक्सीलिरेटर है, बीच में ब्रेक है, और दायें में क्लच है और बताते हुए उसकी आँखें बहू के उठे हुए उभारों को और उसके नीचे उसे पेट और नाभि तक दीदार कर रही थीं। ब्लाउज़ के अंदर जो उथल पुथल चल रही थी, वो उसे भी दिख रहा था।
पर जो शरीर के अंदर चल रहा था वो तो सिर्फ कामया को ही पता था। उसके निपल टाइट और टाइट हो चुके थे, जांघों के बीच में गीलापन इतना बढ़ चुका था की लग रहा था की सू-सू निकल गई है। पैरों को जोड़कर रखना उसके लिए दूभर हो रहा था। वो अब जल्दी से अपने शरीर में उठ रही अग्नि को शांत करना चाहती थी, और वो आई भी इसीलिए थी।
लक्खा काका की नजर अब उसपर थी, और वो काका को और भी भड़का रही थी। वो जानती थी की बस कुछ ही देर में वो लक्खा के हाथों का खिलौना बन जाएगी, और लक्खा काका उसे भीमा चाचा जैसे ही रौंदकर रख देंगे। वो चाहत जिसके लिए वो हर उस काम को अंजाम दे रही थी जिससे की वो जल्दी से मुकाम को हासिल कर सके।
कामया- उफ़्फऊ… काका एक काम कीजिए आप घर चलिए ऐसे में तो कभी भी गाड़ी चलाना सिख नहीं पाऊँगी।
लक्खा- जी। पर कोशिश तो आपको ही करनी पड़ेगी।
कामया- “जी… पर मैं तो कुछ भी नहीं जानती। आप जब तक हाथ पकड़कर नहीं सिखाऐंगे तो, गाड़ी चलाना तो दूर स्टार्ट करना भी नहीं आएगा…” और अपना हाथ स्टेयरिंग पर रखकर बाहर की ओर देखने लगी।
लक्खा भी सकते में था की क्या करे? वो कैसे हाथ पकड़कर सिखाए? पर सिखाना तो है, बड़े मालिक का आदेश है। वो अपने आपको संभलता हुआ बोला- “आप एक काम करें आक्सीलिरेटर पर पैर आप रखें, मैं ब्रेक और क्लच सम्भालता हूँ, और स्टेयरिंग भी थोड़ा सा देखा लूंगा…”
कामया- “ठीक है…” एकदम से मचलते हुए उसने कहा, और नीचे हाथ लेजाकर चाबी को घुमा दिया और आक्सीलिरेटर पर पैर रख दिया, दूसरा पैर फ्री था और वो लक्खा काका की ओर देखने लगी।
लक्खा भी नहीं जानता था की अब क्या करे?
कामया- अरे काका, क्या सोच रहे हैं? आप तो बस ऐसा करेंगे तो फिर घर चलिए।
घर चलिए के नाम से लक्खा के शरीर में जैसे जोश आ गया था। अपने हाथों में आई इस चीज को वो नहीं छोड़ सकता, अब चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे जान भी चली जाए, वो अब पीछे नहीं हटेगा।
लक्खा ने अपने हाथों को ड्राइविंग सीट के पीछे रखा और थोड़ा सा आगे की ओर झुक कर अपने पैरों को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा, ताकी उसके पैर ब्रेक तक पहुँच जाएं। पर कहां पहुँचे वाले थे पैर?
कामया लक्खा की इस परेशानी को समझते हुए अपने पल्लू को फिर से ऊपर करते हुए- “अरे काका, थोड़ा इधर आइये तो आपका पैर पहुँचेगा नहीं तो कहां?”
लक्खा- “जी पर वो?”
कामया- “उफफ्फ़… आप तो बस थोड़ा सा टच हो जाएगा तो क्या होगा? आप इधर आइये…” और अपने आपको भी थोड़ा सा दरवाजे की ओर सरका के वो बैठ गई।
अब लक्खा के अंदर एक आवेश आ गया था और वो अपने को रोक ना पाया। उसने अपने लेफ्ट पैर को गियर के उस तरफ कर लिया, और बहू की जांघों से जोड़कर बैठ गया। उसकी जांघें बहू की जांघों को रौंद रही थीं। उसके वजन से कामया की जांघों को तकलीफ ना हो, सोचकर लक्खा थोड़ा सा अपनी ओर हुआ, ताकी बहू अपना पैर हटा सके। पर बहू तो वैसे ही बैठी थी, और अपने हाथों को स्टियरिंग पर घुमा रही थी।
लक्खा ने ही अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ा और थोड़ा सा उधर कर दिया, और अपनी जांघों को रखने के बाद उसकी जांघों को अपने ऊपर छोड़ दिया। वाह… कितनी नाजुक और नरम सी जांघों का स्पर्श था वो, कितना सुखद और नरम सा। लक्खा ने अपने हाथों को सीट के पीछे लेजाकर अपने आपको अडजस्ट किया और बहू की ओर देखने लगा।
बहू अब थोड़ा सा उससे नीचे थी, उसका आंचल अब भी जगह में नहीं था, उसकी दोनों चूचियां उसे काफी हद तक दिख रही थीं। वो उत्तेजित होता जा रहा था, पर अपने पर काबू किए हुआ था। अपने पैरों को वो ब्रेक तक पहुँचा चुका था, और अपनी पूरी जांघों से लेकर टांगों तक बहू के स्पर्श से अभिभूत सा हुआ जा रहा था। वो अपने नथुनों में भी बहू की सुगंध को बसाकर अपने आपको जन्नत की सैर की ओर ले जा रहा था। बहू लगभग उसकी बाहों में थी और उसे कुछ भी ध्यान नहीं था। वो अपनी स्वप्न-सुंदरी के इतने पास था, वो सोच भी नहीं सकता था।
गाड़ी स्टार्ट थी और गियर पड़ते ही चालू हो जाएगी। लक्खा का दायां हाथ अब गियर के ऊपर था और उसने क्लच दबाकर धीरे से गियर चेंज किया और धीरे-धीरे क्लच को छोड़ने लगा और कहा- “आप धीरे-धीरे आक्सीलिरेटर बढ़ाना…”
कामया- “जी हमम्म्म…”
लक्खा ने धीरे से क्लच को छोड़ा पर आक्सीलिरेटर बहुत कम था सो गाड़ी फिर रुक गई। कामया ने अपनी जगह पर से ही अपना चेहरा उठाकर काका की ओर देखा और कहा- क्या हुआ?
लक्खा- “जी थोड़ा सा और आक्सीलिरेटर दीजिएगा…” और अपने दायें हाथ से गियर को फ्री करके रुका। पर कामया की ओर से कोई हरकत ना देखकर बायें हाथ से उसके कंधे पर थोड़ा सा छूकर कहा- “जी वो गाड़ी स्टार्ट कजिए हमम्म्म आआह्ह…”
कामया- “जी हीहीही…” किसी इठलाती हुई लड़की की तरह से हँसी और झुक कर चाबी को घुमाकर फिर से गाड़ी स्टार्ट की।
लक्खा की हालत खराब थी। वो अपने को अडजस्ट ही कर रहा था, उसका लिंग उसका साथ नहीं दे रहा था। वो अपने आपको आजाद करना चाहता था। लक्खा ने फिर से अपनी धोती को अडजस्ट किया और अपने लिंग को गियर के सपोर्ट पर खड़ा कर लिया, ढीले अंडरवेर से उसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। अब वो गियर चेंज करने वाला ही था की कामया का हाथ अपने आप ही गियर रोड पर आ गया था, ठीक उसके लिंग के ऊपर था। जरा सा नीचे होते ही उसके लिंग को छू जाता। लक्खा थोड़ा सा पीछे हो गया और अपने हाथों को बहू के हाथों पर रख दिया और जोर लगाकर गियर चेंज किया और धीरे से क्लच छोड़ दिया गाड़ी आगे की ओर चल दी।
लक्खा- “जी थोड़ा सा और आक्सीलिरेटर दबाइए हमम्म्म…” उसकी गरम-गरम सांसें अब कामया के चेहरे पर पड़ रही थीं।
उधर र कामया की तो हालत ही खराब थी। वो जानती थी की वो किस परिस्थिति में है, और उसे क्या चाहिए? उसने अपने आप पर से नियंत्रण हटा लिया था और सब कुछ काका के हाथों में सौंप दिया था। उसकी सांसें अब उसका साथ नहीं दे रही थीं, उसके कपड़े भी जहां तहां हो रहे थे, उसके ब्लाउज़ के अंदर से उसकी चूचियां उसका साथ नहीं दे रही थीं। वो एक बेसुध सी काया बनकर रह गई थी, जो की बस इस इंतेजार में थी की लक्खा काका के हाथ उसे सहारा दें। वो बेसुधी में ही अपनी आँखें आगे की ओर गड़ाए हुए स्टियरिंग को किसी तरह से संभाले हुये थी। गाड़ी कभी इधर कभी उधर जा रही थी।
लक्खा का बायां हाथ तो अब बहू के कंधे पर ही आ गया था, और उस नाजुक सी काया का लुत्फ ले रहा था और दायां हाथ कभी उसके हाथों को स्टियरिंग में मदद करता, तो कभी गियर चेंज करने में। वो भी अपनी स्थिति से भली भांति परिचित था, पर आगे बढ़ने की कोशिश भी कर रहा था। पूरी थाली सजी पड़ी थी, बस हाथ धोकर श्री गणेश करना बाकी था। हाँ बस औपचारिकता ही उन्हें रोके हुए थी।
लक्खा अपने दायें हाथ से कामया का हाथ पकड़कर स्टियरिंग को डाइरेक्ट कर रहा था और अपने बायें हाथ से कामया के कंधों को अब जरा आराम से सहला रहा था। उसकी आँखें बहू की ओर ही थीं, और कभी-कभी बाहर ग्राउंड पर भी उठ जाती थीं। पर बहू की ओर से कोई भी ना-नुकर ना होने से उसके मन को वो और नहीं समझा सका। उसका बायां हाथ अब उसके कंधों से लेकर उसकी चूचियों तक को छूने लगे थे। पर बड़े ही प्यार से और बड़े ही नाजुक तरीके से वो उस स्पर्श का आनंद ले रहा था। उसका बायां हाथ अब थोड़ा सा आगे की ओर उसकी गर्दन तक आ जाता था, और उसके गले को छूते हुए फिर से कंधों पर पहुँच जाता था।
लक्खा अपने को उस सुंदरता पर मर मिटने को तैयार कर रहा था। उसकी सामने अब बहू थी, तेज चल रही थी, वो थोड़ा सा झुक कर कामया के बालों की खुशबू भी अपने अंदर उतार लेता था, और वो फिर से उसके कंधों पर ध्यान कर लेता था। उसके हाथ फिर से बहू के कंधों को छूते हुए गले तक पहुँचे थे, की छोटी उंगलियों को उसने और भी फैलाकर उसकी चूचियों के ऊपर छूने की कोशिश करने लगा था। और उधर कामया काका की हर हरकत को अपने अंदर समेटकर अपनी आग को और भी भड़काकर जलने को तैयार थी।
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