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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#17
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कामया का पूरा शरीर थरथर कांप रहा था, और शरीर से पशीना भी निकल रहा था। वो कुछ धीरे कदमों से बाथरूम की ओर जा ही रही थी की दरवाजे पर एक हल्की सी खटखट से वो चौंक गई। वो जहां थी वहीं खड़ी हो गई, और ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगी। नहीं, कोई आहट नहीं हुई थी। शायद उसके मन का भ्रम था, कोई नहीं है दरवाजे पर। मम्मीजी तो नीचे सो रही होंगी, और कौन हो सकता है? भीमा चाचा? अरे नहीं, वो इतनी हिम्मत नहीं कर सकता। वो क्यों आएगा?

और उधर भीमा ने जैसे ही फोन उठाकर हेलो कहा, फोन कट गया था। वो भी फोन हाथ में लिए खड़ा का खड़ा रह गया था, सोचता हुआ की क्या हुआ बहू को कहीं कोई चीज तो नहीं चाहिए? शायद भूल गई हो नीचे? या फिर कोई काम था उसे? या कुछ और? वो धीरे से किचेन से निकला और ऊपर सीढ़ियों की ओर देखता रहा, पर कहीं कोई आवाज ना सुनकर वो बड़ी ही हिम्मत करके ऊपर की ओर चला और बहू के कमरे की ओर आते-आते पशीना-पशीना हो गया। बड़ी ही हिम्मत की थी उसने आज दरवाजे पर आकर। वो चुपचाप खड़ा हुआ अंदर की आवाज को सुनने की कोशिश करने लगा था। एक हल्की सी आहट हुई तो वो कुछ सोचकर हल्के से दरवाजे पर एक खटखट करके खड़ा हो गया, और इंतेजार करने लगा। पर कोई आहट नहीं हुई तो यह सोचते हुए नीचे की ओर चल दिया की शायद बहू सो गई होगी।

और अंदर कामया का पूरा ध्यान दरवाजे पर ही था। नारी मन की जिज्ञाशा ही कहिए, वो अपने को उस खटखट का कारण जानने की कोशिश में दरवाजे की ओर चली और कान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगी की कहीं कोई आहट या फिर कोई चहल पहल की आवाज हो रही है की नहीं? पर कोई आवाज ना सुनकर वो दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर की ओर देखती है, पर कोई नहीं था, वहां कुछ भी नहीं था तो वो बाहर आ गई थी। बाहर भी कोई नहीं था। लेकिन आचनक ही उसकी नजर सामने सीढ़ियों पर पड़ी तो वहां भीमा खड़ा था जो की अब उसी की ओर देख रहा था।

कामया ने अब भी सफेद ब्लाउज़ और पेटीकोट ही पहना हुआ था, और हाथ में तौलिया था। वो भीमा चाचा को सीढ़ियों में देखकर सब कुछ भूल गई थी। उसे अपने आपको ढकने की बात तो दूर, वो फिर से अपने को उस आग की गिरफ़्त में पाती जा रही थी, जिस आग से वो अब तक निकलने की कोशिश कर रही थी। उसकी सांसों में अचानक ही तेजी आ गई थी, और वो उसकी धमनियों से टकरा रही थी।

भीमा सीढ़ियों में खड़ा-खड़ा बहू के इस रूप को देख रहा था। बहू तो कल जैसे ही स्थिति में है, तो क्या वो आज भी मालीश के बहाने उसे बुला रही थी? हाँ शायद। पर अब क्या करे? वो हिम्मत करके सीढ़ियों में ही घूमा और बहू की ओर कदम बढ़ाया। अपने सामने इस तरह से खड़ी कोई स्वप्न सुंदरी को कैसे छोड़कर जा सकता था? वो उसका दीवाना था, वो तो उसके रूप का पुजारी था, उस रूप को उस काया को वो भोग चुका था, उसकी मादकता और नाजुकता का अनुमान था उसे। उसके लिए वो तो कब से लालायित था, और वो उसके सामने इस तरह से खड़ी थी। भीमा अपने आपको रोक ना पाया और बड़े ही सधे हुए कदमों से बहू की और बढ़ने लगा।

कामया ने जब भीमा चाचा को अपने ओर बढ़ते हुए देखा तो जैसे वो जमीन में गड़ गई थी। उसकी सांसें जो की अब तक उसकी धमनियों से ही टकरा रही थीं, अब उसके मुँह से बाहर आने को थी। हर सांस के साथ उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी भी निकलने लगी थी, उसके शरीर के हर एक रोम-रोम में सेक्स की एक लहर दौड़ गई थी। उसे भीमा चाचा के हाथ और उनके शरीर के बालों का गुच्छा… याद आने लगा था। कल जब भीमा चाचा ने उसे अपनी बाहों में लेकर रौंदा था, वो एक-एक वाकया उसे याद आने लगा था।

कामया खड़ी-खड़ी कांपने लगी थी, उसके शरीर ने एक के बाद एक झटके लेना शुरू कर दिया था। वो खड़े-खड़े लड़खड़ा गई थी, और दीवाल का सहारा लेने को मजबूर हो गई थी। उसकी और भीमा चाचा की आखें एक दूसरे की ओर ही थीं, एक बार के लिए भी नहीं हटी थीं। अब कामया पीछे दीवार के सहारे खड़ी थी, कंधा भर टिका था दीवाल से, और पूरा शरीर पांव के सहारे खड़ा था। सांसों की तेजी के साथ कामया की चूचियां अब ज्यादा ही ऊपर की ओर उठी जा रही थीं। वो नाक और मुख से सांस लेते हुए भीमा चाचा को अपने करीब आते देख रही थी।

भीमा करीब और करीब आते हुए उसके बहुत नजदीक खड़ा हो गया। अब भीमा की नजर बहू के शरीर का अवलोकन कर रही थी। वही शरीर, जिसे काल उसने भोगा था, और बहुत ही अच्छे तरीके से भोगा था, जैसे मन किया था, वैसे ही। आज फिर वो उसके सामने खड़ी थी कल जैसी ही परिस्थिति में और खुला आमंत्रण था भीमा को। वो सिर से पैर तक बहू को निहारता रहा और भीमा की नजर एक बार फिर से बहू के चेहरे पर पड़ी, और उसको देखते हुए उसने अपने हाथों को बहू की ओर बढ़ाया। धीरे से उसने बहू के पेट को छुआ।

कामया सिसकी- आआअह्ह… उउम्म्म्मम…”

भीमा के हाथों में जैसे मखमल आ गया हो। नाजुक-नाजुक और नरम-नरम सा बहू का पेट उसकी सांसों के साथ अंदर-बाहर और उपर नीचे होते हुए, वो अपने हाथों को एक जगह नहीं रख पाया। वो अपने दूसरे हाथ को भी लाकर बहू के पेट पर रख दिया और अपने दोनों हाथों से उसको सहलाने लगा। सहलाने क्या लगा, बल्की कहिए उनका आकर लेने लगा। वो अपने हाथों से बहू के पेट का आकर नाप रहा था, और उस ऊपर वाले की रचना को महसूस कर रहा था। वो अपनी आँखें गड़ाए बहू के पेट को ऊपर से देख भी रहा था, और अपने हाथों से उस रचना की तारीफ भी कर रहा था।

भीमा की आँखों के सामने बहू की दोनों चूचियां अपनी जगह से आजाद होने की कोशिश कर रही थीं। वो अपने हाथों को धीरे से बहू के ब्लाउज़ की ओर ले जाने लगा। तभी अचानक ही बहू लड़खड़ाई और भीमा की सख़्त बाहों ने बहू को संभाल लिया। अब बहू भीमा की गिरफ्त में थी, और बेसुध थी, उसकी आँखें बंद सी थीं, नथुनों फूल रहे थे, मुख से सिसकारी निकल रही थी। उसका पूरा शरीर अब भीमा के हाथों में था। उसके भरोसे में था, वो चाहे तो वहीं पटक कर बहू को भोग सकता था, या फिर उठाकर अपने कमरे में ले जा सकता था, या फिर अंदर उसके कमरे में कल जैसे बिल्कुल नंगा करके उसके सारे शरीर को जो चाहे वो कर सकता था। उसकी आँखें बहू की चेहरे पर थी।

कामया अपना सब कुछ भीमा के हाथों में सौंपकर लम्बी-लम्बी सांसें लेते हुई उसकी बाहों ले लटकी हुई थी। भीमा उस अप्सरा को अपनी बाहों में संभाले हुए, अपने एक हाथ से उसकी पीठ को सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके पैरों के नीचे से हाथ डालकर एक झटके से उसे उठाकर उसी के बेडरूम में घुस गया। वो कमरे में आते ही अपने हाथों की उस सुंदर और कामुक काया को कहां रखे? सोचने लगा। उसके हाथों में कामया एक बेसुध सी जान लग रही थी।

एक रति के रूप में कामया लगभग बेहोशी की मुद्रा में थी। उसे सब पता था कि क्या चल रहा था? पर उसके हाथों से अब बात निकल चुकी थी। वो अब भीमा को भेंट चढ़ चुकी थी, या कहिए वो अपने को भीमा के सुपुर्द कर चुकी थी। अब वो इस खेल का हिस्सा बनने को तैयार थी।

अब कामया उस भीमकाय दैत्य के हर उस पुरुषार्थ को सहने को तैयार थी, जो की उसे चाहिए था, जो की उसे कामेश से नहीं मिला था, या फिर उसे नहीं पता था इतने दिनों तक। वो अब अपने आपको किसी भी स्थिति में रोकना नहीं चाहती थी। भीमा के गोद में वो ऐसी लग रही थी की कोई बनमानुष उसे उठाकर अपनी हवस का शिकार करने जा रहा हो। वो तैयार थी उस बनमानुष को झेलने के लिये, उस सख्श को अपने अंदर समा लेने के लिये वो चुपचाप उस सख्श का साथ दे रही थी। उसके हर कदम को देख भी रही थी और समझ भी रही थी, जैसे कह रही हो करो और करो, जो मन में आए करो, पर मेरे तन की आग को ठंडा करो, प्लीज।

भीमा अपने हाथों में बहू को उठाए कमरे में दाखिल हुआ और सोचने लगा की अब क्या करे? पर वो खुद ही बिना किसी मुश्किल के बहू को उसके बिस्तर तक ले गया और धीरे से, हाँ बहुत ही धीरे से बहू को उसके बिस्तर पर लिटा दिया।

कामया अब सिर, नितम्बों और पैरों के तले को रखकर बिस्तर पर लेटी हुई थी। कामया को जैसे ही भीमा ने बिस्तर पर रखा, वो एक जल बिन मछली की तरह से तड़प उठी, उसके हाथ पांव और सिर बिस्तर पर अपने आपसे इधर उधर होने लगे थे। वो अपने को भीमा के शरीर से अलग नहीं करना चाहती थी। जब भीमा उसे अपनी गोद में भरकर लाया था तो उसके नथुनों में भीमा के पशीने की खुशबू को सूंघकर ही बेसुध हो गई थी। कितनी मर्दानी खुशबू थी? कितनी मादक थी यह खुशबू? कामाग्नि में जलती हुई कामया का पूरा शरीर अब भीमा के रहमो करम पर था। वो चाहती थी की भीमा कल जैसे उसे निचोड़कर रख दे। उसके शरीर में उठ रही हर एक लहर को अपने हाथों से रोक दे। वो अपने आपको अकेला सा पा रही थी बिस्तर पर।

और भीमा पास खड़े हुए बहू की इस स्थिति को अपने आँखों से देख रहा था। बहू के ब्लाउज़ में कैद हुए उसकी गोल-गोल बड़ी-बड़ी गोलाइयों को वहीं खड़े-खड़े निहार रहा था। उसके ऊपर-नीचे होते हुए आकार को बढ़ते घटते देख रहा था, उसके पेट को अंदर-बाहर होते देख रहा था, जांघों में फँसी हुई पेटीकोट को उसकी टांगों के साथ ऊपर-नीचे होते हुए देख रहा था। उसकी आँखें बहू के हर हिस्से को देख रही थीं, और उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतारने की कोशिश कर रही थी।

भीमा खड़े-खड़े देख ही रहा था की उसके हाथों से बहू की नाजुक हथेली टकराई, कामया उसकी मजबूत हथेली को अपनी हथेली में लेने की कोशिश कर रही थी, वो अपनी हथेली को भीमा की हथेली पर कसकर पकड़ बनाने की कोशिश कर रही थी, और अपने पास खींच रही थी। उसके हाथ भीमा को अपने पास और पास आने का न्योता दे रहे थे।

भीमा भी अब कहां रुकने वाला था। वो भी बहू के हाथों के साथ अपने आपको आगे बढ़ाया और बहू के हाथों का अनुसरण करने लगा। बहू अपने हाथों को भीमा के हाथों के सहारे अपनी चूचियों तक लाने में सफल हो गई थी। उसकी चूचियां और भी तेज गति से ऊपर की ओर हो गईं। कामया के मुख से एक ‘आअह्ह’ निकली और वो भीमा के हाथों को अपनी चूचियों के ऊपर घुमाने लगी थी।

भीमा को तो मन की मुराद ही मिल गई थी, जो खड़े-खड़े देख रहा था, अब उसके हाथों में था। वो और नहीं रुक पाया, वो अपने अंदर के शैतान को और नहीं रोक पाया था। वो अपने दोनों हाथों से बहू की दोनों चूचियों को कसकर पकड़ लिया, और ब्लाउज़ के ऊपर से ही दबाने लगा। कामया का पूरा शरीर धनुष की तरह से अकड़ गया था, वो अपने सिर के और कमर के बल ऊपर को उठ गई थी।

कामया सिसकी- “उम्म्म्मम… आआअह्ह…”

और भीमा के होंठ उसकी आवाज को दबाने को तैयार थे। उसके होंठों ने कामया के होंठों को सील दिया और अब खेल शुरू हो गया। दोनों एक दूसरे से बिना किसी औपचारिकता से गुंथ गये थे। भीमा कब बिस्तर पर उसके ऊपर गिर गया, पता ही नहीं चला। वो कामया को अपनी बाहों में जकड़े हुए निचोड़ता जा रहा था, और उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथों से दबाता जा रहा था।

कामया जो की नीचे से भीमा को पूरा समर्थन दे रही थी, अब उसकी जांघों को खोलकर भीमा को अपने बीच में लेने को आतुर थी। वो सेक्स के खेल में अब देरी नहीं करना चाहती थी। उसकी जांघों के बीच में जो हलचल मची हुई थी, वो अब उसकी जान की दुश्मन बन गई थी वो अब किसी तरह से भीमा को जल्दी से जल्दी अपने अंदर समा लेना चाहती थी। पर वो तो अब तक धोती में था और ऊपर भी कुछ पहने हुए था। अब तो कामया भूखी शेरनी बन गई थी, वो नहीं चाहती थी की अब देर हो। भीमा को अपने ऊपर से पकड़े ही उसने हिम्मत करके एक हाथ से उसके धोती को खींचना चालू किया और अपने को उसके साथ ही अडजस्ट करना चालू किया।

भीमा जो की उसके ऊपर था बहू के इशारे को समझ गया था, और आश्चर्य भी हो रहा था की बहू आज इतनी उतावली क्यों है? पर उसे क्या वो तो आज बहू को जैसे चाहे वैसे भोग सकता था। यही उसके लिए वरदान था। वो थोड़ा सा ऊपर उठा और अपनी धोती और अंडरवेर को एक झटके से निकाल दिया और वापस बहू पर झुक गया। झुका क्या झुका लिया गया।

नीचे पड़ी कामया को कहां सब्र था, वो खुद ही अपने हाथों से भीमा को पकड़कर अपने होंठों से मिलाकर अपनी जांघों को खोलकर भीमा को अडजस्ट करने लगी थी। भीमा का लिंग उसकी योनि के आस-पास टकरा रहा था बहुत ही गरम था और बहुत ही बड़ा। पर उससे क्या वो तो कल भी इससे खेल चुकी थी, उसको उस चीज का मजा आज भी याद था, वो और ज्यादा सह नहीं पाई

कामया- “आआआह्ह उउंम्म… चाचा पहले जैसे करो ना प्लीज…”

और भीमा चाचा के कानों में एक मादक सी घुल जाने वाली आवाज ने कहा तो भीमा के अंदर तक आग सी लहर दौड़ गई और भीमा का लिंग एक झटके से अंदर हो गया। और कामया की चीख- “ईईईईईईईई… उउम्म्म्मम… भी भीमा चाचा के गले में कहीं गुम हो गई।

भीमा का लिंग बहू के अंदर जाते ही जैसे कमरे में तूफान सा आ गया था। बिस्तर पर एक द्वन्द युद्ध चल रहा था। दोनों एक दूसरे में समा जाने की कोशिश में लगे थे और एक दूसरे के हर अंग को छूने की कोशिश में लगे हुए थे। कामया तो जैसे पागल हो गई थी। कल की बातें याद करके आज वो खुलकर भीमा के साथ इस खेल में हिस्सा ले रही थी। वो अपने आपको खुद ही भीमा चाचा के हाथों को अपने शरीर में हर हिस्से को छूने के लिए उकसा रही थी। वो अपने होंठों को भीमा के गालों से लेकर जीभ तक को अपने होंठों से चूस-चूसकर चख रही थी, और भीमा तो जैसे अपने नीचे बहू की सुंदर काया का आकार समझ ही नहीं पा रहा था। वो अपने हाथों को और अपने होंठों को बहू के हर हिस्से में घुमा-घुमाकर चूम भी रहा था और चाट-चाटकर उस कमसिन सी नारी का स्वाद भी ले रहा था और अपने अंदर के शैतान को और भी भड़का रहा था वो किसी वन मानुष की तरह से बहू को अपने नीचे रौंद रहा था और वो उसे अपनी बाहों में भरकर निचोड़ता जा रहा था।

उसके धक्कों में कोई कमी नहीं आई थी बल्की तेजी ही आई थी, और हर धक्के में वो बहू को अपनी बाहों में और जोर से जकड़ लेता था, ताकि वो हिल भी ना पाए, और उसके नीचे निश्चल सी पड़ी रहे। और कामया की जो हालत थी उसकी वो कल्पना भी नहीं कर पा रही थी। भीमा के हर धक्के पर वो अपने पड़ाव की ओर बढ़ती जा रही थी और हर धक्के की चोट पर भीमा चाचा की गिरफ़्त में अपने आपको और भी कसा हुआ महसूस करती थी। उसकी जान तो बस अब निकल ही जाएगी। सोचते हुए वो अपने मुकाम की ओर बढ़ चली थी और वो भीमा चाचा के जोरदार झटकों को और नहीं सह पाई और वो झड़ गई थी। झरना इसको कहते हैं उसे पता ही ना चला। लगा की उसकी योनि से एक लम्बी धार बाहर की ओर निकलने लगी थी जो की रुकने का नाम भी नहीं ले रही थी।

भीमा तो जैसे पागलों की तरह अपने आपमें गुम बहू को अपनी बाहों में भरे हुए अपनी पकड़ को और भी मजबूत करते हुए लगातार जोरदार धक्के लगाता जा रहा था। वो भी अपने पीक पर पहुँचने वाला था। पर अपने नीचे पड़ी बहू को ठंडा होते देखकर वो और भी सचेत हो गया और बिना किसी रहम के अपनी गति को और भी बढ़ा दिया, और अपने होंठों को बहू के होंठों के अंदर डालकर उसकी जीभ को अपने होंठों में दबाकर जोरदार धक्के लगाने लगा था।

कामया जो की झड़कर शांत हो गई थी, भीमा चाचा के लगातार धक्कों से फिर जाग गई थी, और हर धक्के का मजा लेते हुए फिर से अपने चरम सीमा को पार करने की कोशिश करने लगी थी। उसके जीवन कल में यह पहली बार था की वो एक के बाद दूसरी बार झड़ने को हो रही थी। भीमा चाचा की हर एक चोट पर वो अपनी नाक से सांस लेने को होती थी, और नीचे से अपनी कमर और योनि को उठाकर भीमा को और अंदर और अंदर तक उतर जाने का रास्ता भी देती जा रही थी।

उसके हर एक कदम ने उसका साथ दिया और भीमा का ढेर सारा वीर्य जब उसकी योनि पर टकराया तो वो एक बार फिर से पहली बार से ज्यादा तेजी से झड़ी थी। उसका शरीर एकदम से सुन्न हो गया था। पर भीमा चाचा की पकड़ अब भी उसके शरीर पर मजबूती से कसा हुआ था। वो हिल भी नहीं पा रही थी और न ही ठीक से सांस ही ले पा रही थी। हाँ अब दोनों धीरे-धीरे शांत हो चले थे।

भीमा भी अब बहू के होंठों को छोड़कर उसके कंधों के ऊपर अपने सिर को रखकर लम्बी-लम्बी सांसें ले रहा था, और अपने को शांत करने की कोशिश कर रहा था। उसकी पकड़ अब बहू पर से ढीली पड़ती जा रही थी और उसके कानों में कामया की सिसकारियां, और जल्दी-जल्दी सांस लेने की आवाज भी आ रही थी। जैसे उसे सपने में कुछ सुनाई दे रही थी।

भीमा अपने आपको संभालने में लगा था और अपने नीचे पड़ी हुई बहू की ओर भी देख रहा था। उसके बाल उसके नीचे थे। बहू का चेहरा उस तरफ था और वो तेज-तेज सांसें ले रही थी। बीच-बीच में खांस भी लेती थी। उसकी चूचियां अब आजादी से उसके सीने से दबी हुई थीं। भीमा की जांघों से बहू की जांघें अब भी सटी हुई थीं। उसका लिंग अब भी बहू के अंदर ही था।

वो थोड़ा सा दम लगाकर उठने की कोशिश करने लगा और अपने लिंग को बहू के अंदर से निकालकर बहू के ऊपर जोर ना देता हुआ उठ खड़ा हुआ, या कहिए वहीं बिस्तर पर बैठ गया। बहू अब भी निश्चल सी बिस्तर पर अपने बालों से अपना चेहरा ढके हुए पड़ी हुई थी।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 11-03-2019, 12:42 PM



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