11-03-2019, 12:41 PM
.
उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी, ना चाहते हुए भी उसने एक जोर की सांस छोड़ी, अपनी जांघों को आपस में जोड़ लिया और नजरें झुका के खाने लगी। पर मन था की बार-बार उसके जेहन में वही बात याद डालती जा रही थी। वो अपने आपसे लड़ने लगी थी, अपने मन से या फिर कहिए अपने दिमाग से। बार-बार वो अपनी निगाहें उठाकर पापाजी और मम्मीजी की ओर देखने लगी थी की शायद कोई और बात हो?
तो वो यह बात भूलकर कहीं और इन्वॉल्व हो जाए पर कहां? सेक्स एक ऐसा खेल है या फिर कहिए एक-एक नशा है की पेट भरने के बाद सबसे जरूरी शारीरिक भूख। पेट की भूख बुझी नहीं की पेट के नीचे की चिंता होने लगती है। कामया तो एक बार वो मजा चख चुकी थी, और उसका पूरा मजा भी ले चुकी थी। वो तो बस उसको नजरअंदाज करना चाहती थी। वो यह अच्छे से जानती थी की अगर वो ना चाहे तो भीमा क्या, भीमा का बाप भी उसे हाथ नहीं लगा सकता था। भीमा तो इस घर का नौकर है, किसे क्या बताएगा? एक शिकायत में तो वो घर से बाहर हो जाएगा। इसलिए उसे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं थी की भीमा उसके साथ कोई गलत हरकत कर सकता है।
पर कामया अपने आपको कैसे रोके? यही सोचते हुए ही तो वो आज पापाजी और मम्मीजी के साथ ही खाना खाने को आ गई थी। अभी जब कामेश गया था तब भी उसकी आँखें भीमा से टकराई थी। उसने भीमा चाचा की आँखों में वही भूख देखी थी, या फिर शायद इंतेजार देखा था, जो की उसके लिए खतरनाक था। अगर वो नहीं संभली तो पता नहीं क्या हो जायेगा? यही सोचते हुए वो अपनी निगाहें झुकाए खाना खा रही थी। पापाजी का हो गया था और वो उठ गये थे, पर मम्मीजी कामया का साथ देने को अब भी बैठी थी। कामया ने जैसे ही पापाजी को उठते देखा तो जल्दी-जल्दी करने लगी।
मम्मीजी- अरे अरे आराम से खा लो बहू।
कामया- “जी बस हो गया गया…” कहकर आखिरी निवाला किसी तरह से अपने मुँह में ठूंसा और पानी के ग्लास पर हाथ पहुँचा दिया।
मम्मीजी भी हँसते हुए उठ गई और कामया भी। सभी ने उठकर हाथ मुँह धोया और पापाजी के कमरे से निकलने का इंतेजार करने लगे। पापाजी भी आए और बाहर निकल गये। बाहर लक्खा गाड़ी के पास खड़ा था, पर आज उसकी नजर नहीं उठी, ना तो उसने कामया की ओर ही देखा, और न ही कोई ऐसी बात जो की कामया को परेशान कर सकती हो।
लेकिन जैसे ही लक्खा घूमकर वापस ड्राइविंग सीट पर बैठने जा रहा था की मम्मीजी की आवाज ने उसे रोक दिया- “अरे लक्खा, ध्यान रखना शाम को आ जाना। बहू को लेकर जाना है…”
लक्खा- “जी माँजी…” और उसकी नजर मम्मीजी के बाद एक बार कामया से टकराई और फिर नीचे हो गई।
मम्मीजी- तू ही याद रखना इन लोगों के भरोसे नहीं रहना, नहीं तो वहीं खड़ा रह जाएगा। याद से आ जाना। ठीक है?
लक्खा- “जी माँजी…” और एक बार फिर से उसकी नजर कामया से टकराई और वो झट से गाड़ी के अंदर समा गया।
जब गाड़ी गेट के बाहर चली गई तो कामया भी मम्मीजी के साथ अंदर दाखिल हो गई और मम्मीजी के पीछे-पीछे उनके कमरे की ओर बढ़ गई थी, ना जाने क्यों वो अपने को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, या फिर डर था कि कहीं कोई फिर से गलत कदम ना उठा ले, या फिर अपने शरीर की भूख को संभालने की कोशिश थी? या जो भी हो?
कामया मम्मीजी के साथ उनके कमरे में आ गई थी। आते समय जब उसका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया तो देखा की डाइनिंग टेबल साफ था। मतलब भीमा चाचा ने आज जल्दी ही टेबल साफ कर दिया था, नहीं तो वो हमेशा ही सबके अपने कमरे में पहुँचने का इंतेजार करता था, और फिर आराम से डाइनिंग टेबल साफ करके बर्तन धोकर रख देता था। अंदर किचेन से बर्तन धोने की आवजें भी आ रही थी। वो कुछ और ज्यादा नहीं सोचते हुए जल्दी से मम्मीजी कमरे में घुस गई।
मम्मीजी कामया को अपने कमरे में घुसते हुए देखकर थोड़ा सा अचम्भित हुई पर हँसते हुए कहा- “क्या बात है बहू, कोई बात है?”
कामया- जी नहीं, बस ऐसे ही।
मम्मीजी- हाँ… मैं जानती हूँ तुझे बहुत अकेला लगता होगा ना? सारा दिन घर में अकेले अकेले और बस कमरे में, और कुछ भी नहीं है।
कामया- जी नहीं, मैं तो बस ऐसे ही आ गई थी। जाती हूँ।
मम्मीजी- “अरे अरे बुरा मान गई क्या? बैठ यहां…” और कामया को अपने पास बिठाकर मम्मीजी दुनियां भर की बातें करती रही, और सुनती रही।
पर कामया का ध्यान तो उनकी बातों में कम था। उसका ध्यान कमरे में रखी चीजों पर कहीं ज्यादा था। बहुत ही मंहंगी चीजें रखी थी कमरे में, और बहुत से फोटो भी। एक फोटो किसी साधु का भी था।
वो खड़ी होकर उन फोटो को देखने लगी।
मम्मीजी- वो हमारे गुरुजी हैं, उन्हीं के आशीर्वाद से कामेश का जनम हुआ था।
कामया- चुप रही
मम्मीजी- हाँ… हमारे बच्चे पहले पैदा होते ही मर जाते थे। पर जब से बाबाजी का आशीर्वाद हमारे ऊपर हुआ है, तब से हम लोगों ने दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की की है। कभी आयेंगे तो तुमको मिलाऊँगी। बहुत पहुँचे हुए हैं। वो शहर के बाहर एक आश्रम है, वहां रहते हैं। तुम्हारे पापाजी ने ही बनवाया है। मैं तीरथ से लौटूंगी तो तुम्हें ले चलूंगी। ठीक है?
कामया- “जी…”
कामया को इन साधु सन्यासियों से कोई मतलब नहीं था। वो तो बस दूर से नमस्कार करती थी उन सबको। कोई इच्छा भी नहीं थी मिलने की।
मम्मीजी कहते-कहते अपने बिस्तर पर पहुँच चुकी थी, और आराम से अपने तकिये में सिर रखकर लेट गई थी। कामया जानती थी की मम्मीजी को नींद आ रही है, पर वो अपने को मम्मीजी के साथ ही बांधे रखना चाहती थी। पर मम्मीजी हालत देखकर कामया ने अपना मूड बदला और जाने के लिये खड़ी हो गई।
कामया- “मम्मीजी, आप आराम कीजिए मैं चलती हूँ…”
मम्मीजी- “हाँ… थोड़ा तू भी सो ले। शाम को लक्खा आएगा तैयार रहना हाँ…”
कामया- “जी…” और एक लम्बी सी सांस फेंक कर कामया अपने कमरे की ओर चल दी। रूम के बाहर आते ही वो थोड़ा सा सचेत हो गई थी। उसकी नजर आनयास ही डाइनिंग रूम ओर, फिर उसके आगे किचेन तक चली गई थी। पर वहां शांति थी, बिल्कुल सन्नाटा था। वो थोड़ा रुकी और थोड़ा धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते हुए सीढ़ियों की ओर चली, पर उसे कोई भी आहट सुनाई नहीं दी, कहां हैं भीमा चाचा? किचेन में नहीं है क्या? या फिर अपने कमरे में चले गये होंगे ऊपर? या फिर? सोचते हुए कामया सीढ़ियों पर चढ़ती हुई अपने कमरे की ओर जा रही थी। पर ना जाने क्यों उसका मन बार-बार किचेन की ओर देखने को हो रहा था। शायद इसलिए की कल दोपहार को जो घटना हुई थी, क्या वो भीमा चाचा भूल गये थे? या फिर घर छोड़कर भाग गये थे? या फिर कुछ और?
कामया सीढ़ियां चढ़ती जा रही थी और सोच रही थी- क्या भीमा चाचा उससे एक बार खेलकर ही उसे भूल गये हैं? पर वो तो नहीं भूल पाई। तो क्या वो जितनी सुंदर और सेक्सी लगती थी, वो है नहीं क्या? भीमा चाचा भी एक बार के बाद उसे फिर से अपने साथ सेक्स के लिए लालायित नहीं होंगे? मैंने तो सुना था की आदमी एक बार किसी औरत को भोग ले तो बार-बार उसकी इच्छा करता है, और वो तो इतनी खूबसूरत है, और उसने इस बात की पुष्टि भी की थी। उसे भीमा चाचा की नजरों में ही यह बात दिखी थी। पर अभी तो कहीं गायब ही हो गये थे? वो सीढ़ियां चढ़ना भूल गई थी। वहीं एक जगह खड़ी होकर एकटक किचेन की ओर ही देख रही थी।
कुछ सोचते हुए वो फिर से नीचे की ओर उतरी और धीरे-धीरे किचेन की ओर चल दी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, पर फिर भी हिम्मत करके वो किचेन की ओर जा रही थी, पर क्यों पता नहीं? पर कामया के पैर जो की अपने आप ही किचेन की ओर जा रहे थे, किचेन के दरवाजे पर पहुँचकर अंदर देखा तो वहां शांति थी। वो थोड़ा और आगे बढ़ी तो उसे भीमा चाचा के पैर देखकर, वो शायद नीचे फर्श पोंछ रहे थे। वो अपने को इस स्थिति में पाकर आगे क्या करे? सोचने का टाइम भी ना मिला की तभी भीमा की नजर कामया पर पड़ गई। वो कामया को दरवाजे पर खड़ा देखकर जल्दी से उठा और अपने धोती को संभालते हुये हाथ पीछे करके खड़ा हो गया।
और भीमा ने कहा- जी बहूरानी, कुछ चाहिए?
कामया- जी वो… पानी।
भीमा- “जी बहूरानी…” उसकी नजर अब भी नीचे ही थी, पर बहू का इस समय अपने पास खड़े होना उसके लिए एक बहुत बड़ा बरदान था। वो नजरें झुकाए हुए कामया की टांगों की ओर देख रहा था और पानी का ग्लास फिल्टर से भरकर कामया की ओर पलटा।
कामया ने हाथ बढ़ाकर ग्लास लिया तो दोनों की उंगलियां आपस में टच हो गईं। कामया और भीमा के शरीर में एक साथ एक लहर सी दौड़ गई, और शरीर के आंग-अंग पर छा गई। वो एक दूसरे को आँखें उठकर देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। पर किसी तरह कामया ने पानी पिया। पिया क्या वो तो अपने आपको भीमा के सामने पाकर कुछ और नहीं कह पाई थी, तो पानी माँग लिया था, और झट से ग्लास प्लेटफोर्म पे रखकर पलट गई, और अपने कमरे की ओर चल दी।
भीमा वहीं खड़ा-खड़ा अपनी स्वप्न सुन्दरी को जाते हुए देखता रहा। वो चाहता था की कामया रुक कर उससे बात करे, कुछ और नहीं भी करे तो कम से कम रुक जाए और वहीं खड़ी रहे। वो उसको देखना चाहता था, बस देखना चाहता था नजर भर के। पर वो तो जा रही थी। उसका मन कर रहा था की जाकर रोक ले वो बहू को, और कल की घटना के बारे में पूछे की कल क्यों उसने वो सब किया मेरे साथ? पर हिम्मत नहीं हुई। वो अब भी कामया को सीढ़ियां चढ़ते देख रहा था, किसी पागल भिखारी की तरह। जिसे सामने जाते हुये राहगीर से कुछ मिलने की आशा अब भी बाकी थी।
तभी कामया आखिरी सीढ़ी पे जाकर थोड़ा सा रुकी और पलटकर किचेन की ओर देखी। पर भीमा को उसकी तरफ देखता देखकर जल्दी से ऊपर चली गई।
भीमा अब भी अपनी आँखें फाड़-फाड़कर सीढ़ियों की ओर ही देख रहा था, पर वहां तो कुछ भी नहीं था, सब कुछ खाली था, और सिर्फ उसके जाने के बाद एक सन्नाटा सा पसर गया था उसे कोने में कोने में। बल्की पूरे घर में। भीमा भी पलटा और अपने काम में लग गया, पर उसके दिमाग में बहू की छवि अब भी घूम रही थी, सीधी-सादी सी लगने वाली बहूरानी अभी भी उसके जेहन पर राज कर रही थी। कितनी सुंदर सी सलवार कमीज पहने हुए थी, और उसपर कितना जम रहा था? उसका चेहरा कितना चमक रहा था? कितनी सुंदर लगती थी वो? पर वो अचानक किचेन में क्यों आई थी?
भीमा का दिमाग ठनका। हाँ यार क्यों आई थी? वो तो मम्मीजी के कमरे में थी और अगर पानी ही पीना था तो मम्मीजी के कमरे में भी तो आर॰ओ॰ था और तो और उनके कमरे में भी था। तो वो यहां क्यों आई थी? कहीं सिर्फ उसे देखने के लिए तो नहीं? या फिर कल के बारे में कुछ कह रही हो? या फिर उसे फिर से बुला रही हो? अरे यार, उसने पूछा क्यों नहीं की और कुछ चाहिए क्या? क्या बेवकूफ है वो? धत् तेरी की। अच्छा मौका था निकल गया। अब क्या करे? अभी भी शाम होने को देर थी, क्या वो बहू को फोन करके पूछे? अरे नहीं, कहीं बहू ने शिकायत कर दी तो? भीमा अपने दिमाग को एक झटका देकर फिर से अपने काम में जुट गया था, पर ना चाहते हुए भी उसकी नजर सीढ़ियों की ओर चली ही जाती थी।
उधर कामया ने जब पलटकर देखा था तो वो बस इतना जानना चाहती थी की भीमा क्या कर रहा था? पर उसे अपनी ओर देखते हुए पाकर वो घबरा गई थी, और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई थी, और जाकर अपने कमरे की कुण्डी लगाकर बिस्तर पर बैठ गई थी। पूरे घर में बिल्कुल शांति थी, पर उसके मन में एक उथल-पुथल मची हुई थी। उसने अपनी चुन्नी को उतार फेंका और चित्त होकर लेट गई। वो छत की ओर देखते हुए बिस्तर पर लेटी थी, उसके आँखों में नींद नहीं थी, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी कसक सी उठ रही थी।
वो ना चाहते हुए भी अपने आपको अपने में समेटने की कोशिश में लगी हुई थी। वो एक तरफ घूमकर अपने को ही अपनी बाहों में भरने की कोशिश कर रही थी। पर नहीं, वो यह नहीं कर पा रही थी। उसे भीमा चाचा की नजरें याद आ रही थीं, उसको पानी देते समय जो उंगलियां उससे टकराई थीं, वो उसे याद करके सनसना गई थी। वो एक झटके से उठी और बेड में ही बैठे-बैठे अपने को मिरर में देखने लगी। बिल्कुल भी सामान्य नहीं लग रही थी वो मिरर में।
पता नहीं क्या पर कुछ चाहिए था? क्या पता नहीं? हाँ… शायद भीमा हाँ… उसे भीमा चाचा का हाथ अपने पूरे शरीर में चाहिए था। वो बैठे-बैठे ही अपनी सलवार को खोलकर खींचकर उतार दिया और अपनी गोरी-गोरी टांगों को और जांघों को खुद ही सहलाने लगी थी, बड़ी ही शेप लिए हुए थी उसकी टाँगें। पतली और सुडौल सी, गोरी-गोरी और कोमल सी उसकी टांगों को वो सहलाते हुए उनपर भीमा चाचा के सख़्त हाथों की कल्पना कर रही थी। उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थीं।
उसके हाथ अपने आप ही उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों की ओर बाढ़ चले थे, जैसे की वो खुद को ही टटोलकर देखना चाहती थी की क्या वो वाकई इतनी सुंदर है? या फिर ऐसे ही? हाँ वो बहुत सुंदर है। जब उसके हाथ उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों पर पहुँचे तो खुद को रोक नहीं पाई वो, उन्हें थोड़ा सा दबाकर देखा तो उसके मुख से एक ‘आआह्ह’ निकली। कितना सुख है, पर अपने हाथों के बजाए और किसी के हाथों से उसका मजा दोगुना हो जाएगा।
कामेश भी तो कितना खेलता है इन दोनों से, पर अपने हाथों के स्पर्श का वो आनंद उसे नहीं मिल पा रहा था। उसने अपने कुर्ते को भी उतार दिया और खड़े होकर अपने को मिरर में देखने लगी थी। सिर्फ ब्रा और पैंटी में वो कितनी खूबसूरत लग रही थी? लम्बी-लम्बी टाँगों से लेकर जांघों तक बिल्कुल सफेद और चिकनी थी वो। कमर के चारों ओर पैंटी फँसी हुई थी, जो की उसकी जांघों के बीच से होकर पीछे कहीं चली गई थी।
बिल्कुल सपाट पेट और उसपर गहरी सी नाभि और उसके ऊपर उसकी ब्रा में कैद दो ठग। हाँ… कामेश उनको ठग ही कहता था, जो मस्त उभार लिए हुए थे।
कामया अपने शरीर को मिरर में देखते हुए कहीं खो गई थी, और अपने हाथों को अपने पूरे शरीर में चला रही थी, और अपने अंदर सोए हुए ज्वालामुखी को और भी भड़का रही थी। वो नहीं जानती थी की आगे क्या होगा? पर उसे ऐसे अच्छा लग रहा था। आज पहली बार कामया अपने जीवनकाल में अपने को इस तरह से देखते हुए खेल रही थी।
कामया ने अपने आपसे खेलते हुए पता नहीं क्यों अपनी ब्रा और पैंटी को भी धीरे से उतारकर एक तरफ बड़े ही स्टाइल से फेंक दिया, और बिल्कुल नग्न अवस्था में खड़ी हुई अपने आपको मिरर में देखती रही। उसने अपने आपको बहुत बार देखा था, पर आज वो अपने आपको कुछ अजीब ही तरह से देख रही थी। उसके हाथ उसके पूरे शरीर पर घूमते हुए उसे एक अजीब सा एहसास दे रहे थे।
उसके अंदर एक ज्वाला सी भड़क रही थी, जो की अब उसके बर्दास्त के बाहर होती जा रही थी। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे अपने निपल्स के ऊपर घुमाती हुई कामया अपने पेट की ओर जा रही थी, और अपनी नाभि को भी अंदर तक छूकर देखती जा रही थी। दूसरे हाथों की उंगलियां अब उसकी जांघों के बीच में लेने की कोशिश में थी, जिससे उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी पूरे कमरे में फैल गई, और वो अपने सिर को ऊंचा करके नाक से और मुख से सांसें छोड़ने लगी।
कामया की जांघों के बीच में अब आग लग गई थी। वो उसके लिए कुछ भी कर सकती थी। हाँ कुछ भी… वो एकदम से नींद से जागी। और फिर से अपने आपको मिरर में देखते हुए अपने आपको वार्डरोब के पास ले गई। फिर एक सफेद पेटीकोट और ब्लाउज़ निकालकर पहनने लगी। बिना ब्रा के ब्लाउज़ पहनने में उसे थोड़ा सा दिक्कत हुई, पर ठीक है वो तैयार थी। अपने बालों को एक झटका देकर वो अपने को एक बड़े ही मादक पोज में मिरर की ओर देखी और लड़खड़ाती हुई इंटरकम तक पहुँची और किचेन का नंबर डायल कर दिया।
किचेन में एक घंटी जाते ही भीमा ने फोन उठा लिया- हेलो।
कामया ने तुरंत फोन काट दिया, और फ़ोन रखकर तेज-तेज सांसें लेने लगी। उसके अंतरमन में एक ग्लानि सी उठ रही थी। ना चाहते हुए भी उसने फोन रख दिया था, और बिस्तर पर बैठे-बैठे सोचने लगी कि क्या कर रही है वो? एक इतने बड़े घर की बहू को क्या यह सोभा देता है अपने घर के नौकर के साथ? और वो भी इसी घर में। क्या वो पागल हो गई है? नहीं, उसे यह सब नहीं करना चाहिए। वो सोचते हुए बिस्तर पर लुढ़क गई और अपने दोनों हाथों से अपने को समेटे वैसे ही पड़ी रही। उसका पूरा शरीर जिस आग में जल रहा था, उसके लिए उसके पास कोई भी तरीका नहीं था बुझाने के लिये। पर क्या कर सकती थी वो? जो वो करना चाहती थी, वो गलत था पर? हाँ नहा लेती हूँ। सोचकर वो एक झटके से उठी और तौलिया हाथ में लिए बाथरूम की ओर चल दी।
.
.
उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी, ना चाहते हुए भी उसने एक जोर की सांस छोड़ी, अपनी जांघों को आपस में जोड़ लिया और नजरें झुका के खाने लगी। पर मन था की बार-बार उसके जेहन में वही बात याद डालती जा रही थी। वो अपने आपसे लड़ने लगी थी, अपने मन से या फिर कहिए अपने दिमाग से। बार-बार वो अपनी निगाहें उठाकर पापाजी और मम्मीजी की ओर देखने लगी थी की शायद कोई और बात हो?
तो वो यह बात भूलकर कहीं और इन्वॉल्व हो जाए पर कहां? सेक्स एक ऐसा खेल है या फिर कहिए एक-एक नशा है की पेट भरने के बाद सबसे जरूरी शारीरिक भूख। पेट की भूख बुझी नहीं की पेट के नीचे की चिंता होने लगती है। कामया तो एक बार वो मजा चख चुकी थी, और उसका पूरा मजा भी ले चुकी थी। वो तो बस उसको नजरअंदाज करना चाहती थी। वो यह अच्छे से जानती थी की अगर वो ना चाहे तो भीमा क्या, भीमा का बाप भी उसे हाथ नहीं लगा सकता था। भीमा तो इस घर का नौकर है, किसे क्या बताएगा? एक शिकायत में तो वो घर से बाहर हो जाएगा। इसलिए उसे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं थी की भीमा उसके साथ कोई गलत हरकत कर सकता है।
पर कामया अपने आपको कैसे रोके? यही सोचते हुए ही तो वो आज पापाजी और मम्मीजी के साथ ही खाना खाने को आ गई थी। अभी जब कामेश गया था तब भी उसकी आँखें भीमा से टकराई थी। उसने भीमा चाचा की आँखों में वही भूख देखी थी, या फिर शायद इंतेजार देखा था, जो की उसके लिए खतरनाक था। अगर वो नहीं संभली तो पता नहीं क्या हो जायेगा? यही सोचते हुए वो अपनी निगाहें झुकाए खाना खा रही थी। पापाजी का हो गया था और वो उठ गये थे, पर मम्मीजी कामया का साथ देने को अब भी बैठी थी। कामया ने जैसे ही पापाजी को उठते देखा तो जल्दी-जल्दी करने लगी।
मम्मीजी- अरे अरे आराम से खा लो बहू।
कामया- “जी बस हो गया गया…” कहकर आखिरी निवाला किसी तरह से अपने मुँह में ठूंसा और पानी के ग्लास पर हाथ पहुँचा दिया।
मम्मीजी भी हँसते हुए उठ गई और कामया भी। सभी ने उठकर हाथ मुँह धोया और पापाजी के कमरे से निकलने का इंतेजार करने लगे। पापाजी भी आए और बाहर निकल गये। बाहर लक्खा गाड़ी के पास खड़ा था, पर आज उसकी नजर नहीं उठी, ना तो उसने कामया की ओर ही देखा, और न ही कोई ऐसी बात जो की कामया को परेशान कर सकती हो।
लेकिन जैसे ही लक्खा घूमकर वापस ड्राइविंग सीट पर बैठने जा रहा था की मम्मीजी की आवाज ने उसे रोक दिया- “अरे लक्खा, ध्यान रखना शाम को आ जाना। बहू को लेकर जाना है…”
लक्खा- “जी माँजी…” और उसकी नजर मम्मीजी के बाद एक बार कामया से टकराई और फिर नीचे हो गई।
मम्मीजी- तू ही याद रखना इन लोगों के भरोसे नहीं रहना, नहीं तो वहीं खड़ा रह जाएगा। याद से आ जाना। ठीक है?
लक्खा- “जी माँजी…” और एक बार फिर से उसकी नजर कामया से टकराई और वो झट से गाड़ी के अंदर समा गया।
जब गाड़ी गेट के बाहर चली गई तो कामया भी मम्मीजी के साथ अंदर दाखिल हो गई और मम्मीजी के पीछे-पीछे उनके कमरे की ओर बढ़ गई थी, ना जाने क्यों वो अपने को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, या फिर डर था कि कहीं कोई फिर से गलत कदम ना उठा ले, या फिर अपने शरीर की भूख को संभालने की कोशिश थी? या जो भी हो?
कामया मम्मीजी के साथ उनके कमरे में आ गई थी। आते समय जब उसका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया तो देखा की डाइनिंग टेबल साफ था। मतलब भीमा चाचा ने आज जल्दी ही टेबल साफ कर दिया था, नहीं तो वो हमेशा ही सबके अपने कमरे में पहुँचने का इंतेजार करता था, और फिर आराम से डाइनिंग टेबल साफ करके बर्तन धोकर रख देता था। अंदर किचेन से बर्तन धोने की आवजें भी आ रही थी। वो कुछ और ज्यादा नहीं सोचते हुए जल्दी से मम्मीजी कमरे में घुस गई।
मम्मीजी कामया को अपने कमरे में घुसते हुए देखकर थोड़ा सा अचम्भित हुई पर हँसते हुए कहा- “क्या बात है बहू, कोई बात है?”
कामया- जी नहीं, बस ऐसे ही।
मम्मीजी- हाँ… मैं जानती हूँ तुझे बहुत अकेला लगता होगा ना? सारा दिन घर में अकेले अकेले और बस कमरे में, और कुछ भी नहीं है।
कामया- जी नहीं, मैं तो बस ऐसे ही आ गई थी। जाती हूँ।
मम्मीजी- “अरे अरे बुरा मान गई क्या? बैठ यहां…” और कामया को अपने पास बिठाकर मम्मीजी दुनियां भर की बातें करती रही, और सुनती रही।
पर कामया का ध्यान तो उनकी बातों में कम था। उसका ध्यान कमरे में रखी चीजों पर कहीं ज्यादा था। बहुत ही मंहंगी चीजें रखी थी कमरे में, और बहुत से फोटो भी। एक फोटो किसी साधु का भी था।
वो खड़ी होकर उन फोटो को देखने लगी।
मम्मीजी- वो हमारे गुरुजी हैं, उन्हीं के आशीर्वाद से कामेश का जनम हुआ था।
कामया- चुप रही
मम्मीजी- हाँ… हमारे बच्चे पहले पैदा होते ही मर जाते थे। पर जब से बाबाजी का आशीर्वाद हमारे ऊपर हुआ है, तब से हम लोगों ने दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की की है। कभी आयेंगे तो तुमको मिलाऊँगी। बहुत पहुँचे हुए हैं। वो शहर के बाहर एक आश्रम है, वहां रहते हैं। तुम्हारे पापाजी ने ही बनवाया है। मैं तीरथ से लौटूंगी तो तुम्हें ले चलूंगी। ठीक है?
कामया- “जी…”
कामया को इन साधु सन्यासियों से कोई मतलब नहीं था। वो तो बस दूर से नमस्कार करती थी उन सबको। कोई इच्छा भी नहीं थी मिलने की।
मम्मीजी कहते-कहते अपने बिस्तर पर पहुँच चुकी थी, और आराम से अपने तकिये में सिर रखकर लेट गई थी। कामया जानती थी की मम्मीजी को नींद आ रही है, पर वो अपने को मम्मीजी के साथ ही बांधे रखना चाहती थी। पर मम्मीजी हालत देखकर कामया ने अपना मूड बदला और जाने के लिये खड़ी हो गई।
कामया- “मम्मीजी, आप आराम कीजिए मैं चलती हूँ…”
मम्मीजी- “हाँ… थोड़ा तू भी सो ले। शाम को लक्खा आएगा तैयार रहना हाँ…”
कामया- “जी…” और एक लम्बी सी सांस फेंक कर कामया अपने कमरे की ओर चल दी। रूम के बाहर आते ही वो थोड़ा सा सचेत हो गई थी। उसकी नजर आनयास ही डाइनिंग रूम ओर, फिर उसके आगे किचेन तक चली गई थी। पर वहां शांति थी, बिल्कुल सन्नाटा था। वो थोड़ा रुकी और थोड़ा धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते हुए सीढ़ियों की ओर चली, पर उसे कोई भी आहट सुनाई नहीं दी, कहां हैं भीमा चाचा? किचेन में नहीं है क्या? या फिर अपने कमरे में चले गये होंगे ऊपर? या फिर? सोचते हुए कामया सीढ़ियों पर चढ़ती हुई अपने कमरे की ओर जा रही थी। पर ना जाने क्यों उसका मन बार-बार किचेन की ओर देखने को हो रहा था। शायद इसलिए की कल दोपहार को जो घटना हुई थी, क्या वो भीमा चाचा भूल गये थे? या फिर घर छोड़कर भाग गये थे? या फिर कुछ और?
कामया सीढ़ियां चढ़ती जा रही थी और सोच रही थी- क्या भीमा चाचा उससे एक बार खेलकर ही उसे भूल गये हैं? पर वो तो नहीं भूल पाई। तो क्या वो जितनी सुंदर और सेक्सी लगती थी, वो है नहीं क्या? भीमा चाचा भी एक बार के बाद उसे फिर से अपने साथ सेक्स के लिए लालायित नहीं होंगे? मैंने तो सुना था की आदमी एक बार किसी औरत को भोग ले तो बार-बार उसकी इच्छा करता है, और वो तो इतनी खूबसूरत है, और उसने इस बात की पुष्टि भी की थी। उसे भीमा चाचा की नजरों में ही यह बात दिखी थी। पर अभी तो कहीं गायब ही हो गये थे? वो सीढ़ियां चढ़ना भूल गई थी। वहीं एक जगह खड़ी होकर एकटक किचेन की ओर ही देख रही थी।
कुछ सोचते हुए वो फिर से नीचे की ओर उतरी और धीरे-धीरे किचेन की ओर चल दी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, पर फिर भी हिम्मत करके वो किचेन की ओर जा रही थी, पर क्यों पता नहीं? पर कामया के पैर जो की अपने आप ही किचेन की ओर जा रहे थे, किचेन के दरवाजे पर पहुँचकर अंदर देखा तो वहां शांति थी। वो थोड़ा और आगे बढ़ी तो उसे भीमा चाचा के पैर देखकर, वो शायद नीचे फर्श पोंछ रहे थे। वो अपने को इस स्थिति में पाकर आगे क्या करे? सोचने का टाइम भी ना मिला की तभी भीमा की नजर कामया पर पड़ गई। वो कामया को दरवाजे पर खड़ा देखकर जल्दी से उठा और अपने धोती को संभालते हुये हाथ पीछे करके खड़ा हो गया।
और भीमा ने कहा- जी बहूरानी, कुछ चाहिए?
कामया- जी वो… पानी।
भीमा- “जी बहूरानी…” उसकी नजर अब भी नीचे ही थी, पर बहू का इस समय अपने पास खड़े होना उसके लिए एक बहुत बड़ा बरदान था। वो नजरें झुकाए हुए कामया की टांगों की ओर देख रहा था और पानी का ग्लास फिल्टर से भरकर कामया की ओर पलटा।
कामया ने हाथ बढ़ाकर ग्लास लिया तो दोनों की उंगलियां आपस में टच हो गईं। कामया और भीमा के शरीर में एक साथ एक लहर सी दौड़ गई, और शरीर के आंग-अंग पर छा गई। वो एक दूसरे को आँखें उठकर देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। पर किसी तरह कामया ने पानी पिया। पिया क्या वो तो अपने आपको भीमा के सामने पाकर कुछ और नहीं कह पाई थी, तो पानी माँग लिया था, और झट से ग्लास प्लेटफोर्म पे रखकर पलट गई, और अपने कमरे की ओर चल दी।
भीमा वहीं खड़ा-खड़ा अपनी स्वप्न सुन्दरी को जाते हुए देखता रहा। वो चाहता था की कामया रुक कर उससे बात करे, कुछ और नहीं भी करे तो कम से कम रुक जाए और वहीं खड़ी रहे। वो उसको देखना चाहता था, बस देखना चाहता था नजर भर के। पर वो तो जा रही थी। उसका मन कर रहा था की जाकर रोक ले वो बहू को, और कल की घटना के बारे में पूछे की कल क्यों उसने वो सब किया मेरे साथ? पर हिम्मत नहीं हुई। वो अब भी कामया को सीढ़ियां चढ़ते देख रहा था, किसी पागल भिखारी की तरह। जिसे सामने जाते हुये राहगीर से कुछ मिलने की आशा अब भी बाकी थी।
तभी कामया आखिरी सीढ़ी पे जाकर थोड़ा सा रुकी और पलटकर किचेन की ओर देखी। पर भीमा को उसकी तरफ देखता देखकर जल्दी से ऊपर चली गई।
भीमा अब भी अपनी आँखें फाड़-फाड़कर सीढ़ियों की ओर ही देख रहा था, पर वहां तो कुछ भी नहीं था, सब कुछ खाली था, और सिर्फ उसके जाने के बाद एक सन्नाटा सा पसर गया था उसे कोने में कोने में। बल्की पूरे घर में। भीमा भी पलटा और अपने काम में लग गया, पर उसके दिमाग में बहू की छवि अब भी घूम रही थी, सीधी-सादी सी लगने वाली बहूरानी अभी भी उसके जेहन पर राज कर रही थी। कितनी सुंदर सी सलवार कमीज पहने हुए थी, और उसपर कितना जम रहा था? उसका चेहरा कितना चमक रहा था? कितनी सुंदर लगती थी वो? पर वो अचानक किचेन में क्यों आई थी?
भीमा का दिमाग ठनका। हाँ यार क्यों आई थी? वो तो मम्मीजी के कमरे में थी और अगर पानी ही पीना था तो मम्मीजी के कमरे में भी तो आर॰ओ॰ था और तो और उनके कमरे में भी था। तो वो यहां क्यों आई थी? कहीं सिर्फ उसे देखने के लिए तो नहीं? या फिर कल के बारे में कुछ कह रही हो? या फिर उसे फिर से बुला रही हो? अरे यार, उसने पूछा क्यों नहीं की और कुछ चाहिए क्या? क्या बेवकूफ है वो? धत् तेरी की। अच्छा मौका था निकल गया। अब क्या करे? अभी भी शाम होने को देर थी, क्या वो बहू को फोन करके पूछे? अरे नहीं, कहीं बहू ने शिकायत कर दी तो? भीमा अपने दिमाग को एक झटका देकर फिर से अपने काम में जुट गया था, पर ना चाहते हुए भी उसकी नजर सीढ़ियों की ओर चली ही जाती थी।
उधर कामया ने जब पलटकर देखा था तो वो बस इतना जानना चाहती थी की भीमा क्या कर रहा था? पर उसे अपनी ओर देखते हुए पाकर वो घबरा गई थी, और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई थी, और जाकर अपने कमरे की कुण्डी लगाकर बिस्तर पर बैठ गई थी। पूरे घर में बिल्कुल शांति थी, पर उसके मन में एक उथल-पुथल मची हुई थी। उसने अपनी चुन्नी को उतार फेंका और चित्त होकर लेट गई। वो छत की ओर देखते हुए बिस्तर पर लेटी थी, उसके आँखों में नींद नहीं थी, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी कसक सी उठ रही थी।
वो ना चाहते हुए भी अपने आपको अपने में समेटने की कोशिश में लगी हुई थी। वो एक तरफ घूमकर अपने को ही अपनी बाहों में भरने की कोशिश कर रही थी। पर नहीं, वो यह नहीं कर पा रही थी। उसे भीमा चाचा की नजरें याद आ रही थीं, उसको पानी देते समय जो उंगलियां उससे टकराई थीं, वो उसे याद करके सनसना गई थी। वो एक झटके से उठी और बेड में ही बैठे-बैठे अपने को मिरर में देखने लगी। बिल्कुल भी सामान्य नहीं लग रही थी वो मिरर में।
पता नहीं क्या पर कुछ चाहिए था? क्या पता नहीं? हाँ… शायद भीमा हाँ… उसे भीमा चाचा का हाथ अपने पूरे शरीर में चाहिए था। वो बैठे-बैठे ही अपनी सलवार को खोलकर खींचकर उतार दिया और अपनी गोरी-गोरी टांगों को और जांघों को खुद ही सहलाने लगी थी, बड़ी ही शेप लिए हुए थी उसकी टाँगें। पतली और सुडौल सी, गोरी-गोरी और कोमल सी उसकी टांगों को वो सहलाते हुए उनपर भीमा चाचा के सख़्त हाथों की कल्पना कर रही थी। उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थीं।
उसके हाथ अपने आप ही उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों की ओर बाढ़ चले थे, जैसे की वो खुद को ही टटोलकर देखना चाहती थी की क्या वो वाकई इतनी सुंदर है? या फिर ऐसे ही? हाँ वो बहुत सुंदर है। जब उसके हाथ उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों पर पहुँचे तो खुद को रोक नहीं पाई वो, उन्हें थोड़ा सा दबाकर देखा तो उसके मुख से एक ‘आआह्ह’ निकली। कितना सुख है, पर अपने हाथों के बजाए और किसी के हाथों से उसका मजा दोगुना हो जाएगा।
कामेश भी तो कितना खेलता है इन दोनों से, पर अपने हाथों के स्पर्श का वो आनंद उसे नहीं मिल पा रहा था। उसने अपने कुर्ते को भी उतार दिया और खड़े होकर अपने को मिरर में देखने लगी थी। सिर्फ ब्रा और पैंटी में वो कितनी खूबसूरत लग रही थी? लम्बी-लम्बी टाँगों से लेकर जांघों तक बिल्कुल सफेद और चिकनी थी वो। कमर के चारों ओर पैंटी फँसी हुई थी, जो की उसकी जांघों के बीच से होकर पीछे कहीं चली गई थी।
बिल्कुल सपाट पेट और उसपर गहरी सी नाभि और उसके ऊपर उसकी ब्रा में कैद दो ठग। हाँ… कामेश उनको ठग ही कहता था, जो मस्त उभार लिए हुए थे।
कामया अपने शरीर को मिरर में देखते हुए कहीं खो गई थी, और अपने हाथों को अपने पूरे शरीर में चला रही थी, और अपने अंदर सोए हुए ज्वालामुखी को और भी भड़का रही थी। वो नहीं जानती थी की आगे क्या होगा? पर उसे ऐसे अच्छा लग रहा था। आज पहली बार कामया अपने जीवनकाल में अपने को इस तरह से देखते हुए खेल रही थी।
कामया ने अपने आपसे खेलते हुए पता नहीं क्यों अपनी ब्रा और पैंटी को भी धीरे से उतारकर एक तरफ बड़े ही स्टाइल से फेंक दिया, और बिल्कुल नग्न अवस्था में खड़ी हुई अपने आपको मिरर में देखती रही। उसने अपने आपको बहुत बार देखा था, पर आज वो अपने आपको कुछ अजीब ही तरह से देख रही थी। उसके हाथ उसके पूरे शरीर पर घूमते हुए उसे एक अजीब सा एहसास दे रहे थे।
उसके अंदर एक ज्वाला सी भड़क रही थी, जो की अब उसके बर्दास्त के बाहर होती जा रही थी। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे अपने निपल्स के ऊपर घुमाती हुई कामया अपने पेट की ओर जा रही थी, और अपनी नाभि को भी अंदर तक छूकर देखती जा रही थी। दूसरे हाथों की उंगलियां अब उसकी जांघों के बीच में लेने की कोशिश में थी, जिससे उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी पूरे कमरे में फैल गई, और वो अपने सिर को ऊंचा करके नाक से और मुख से सांसें छोड़ने लगी।
कामया की जांघों के बीच में अब आग लग गई थी। वो उसके लिए कुछ भी कर सकती थी। हाँ कुछ भी… वो एकदम से नींद से जागी। और फिर से अपने आपको मिरर में देखते हुए अपने आपको वार्डरोब के पास ले गई। फिर एक सफेद पेटीकोट और ब्लाउज़ निकालकर पहनने लगी। बिना ब्रा के ब्लाउज़ पहनने में उसे थोड़ा सा दिक्कत हुई, पर ठीक है वो तैयार थी। अपने बालों को एक झटका देकर वो अपने को एक बड़े ही मादक पोज में मिरर की ओर देखी और लड़खड़ाती हुई इंटरकम तक पहुँची और किचेन का नंबर डायल कर दिया।
किचेन में एक घंटी जाते ही भीमा ने फोन उठा लिया- हेलो।
कामया ने तुरंत फोन काट दिया, और फ़ोन रखकर तेज-तेज सांसें लेने लगी। उसके अंतरमन में एक ग्लानि सी उठ रही थी। ना चाहते हुए भी उसने फोन रख दिया था, और बिस्तर पर बैठे-बैठे सोचने लगी कि क्या कर रही है वो? एक इतने बड़े घर की बहू को क्या यह सोभा देता है अपने घर के नौकर के साथ? और वो भी इसी घर में। क्या वो पागल हो गई है? नहीं, उसे यह सब नहीं करना चाहिए। वो सोचते हुए बिस्तर पर लुढ़क गई और अपने दोनों हाथों से अपने को समेटे वैसे ही पड़ी रही। उसका पूरा शरीर जिस आग में जल रहा था, उसके लिए उसके पास कोई भी तरीका नहीं था बुझाने के लिये। पर क्या कर सकती थी वो? जो वो करना चाहती थी, वो गलत था पर? हाँ नहा लेती हूँ। सोचकर वो एक झटके से उठी और तौलिया हाथ में लिए बाथरूम की ओर चल दी।
.
.