25-09-2020, 12:34 PM
(This post was last modified: 25-09-2020, 12:57 PM by sanskari_shikha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
कार के चलते ही पीछे बैठी हुई कनिष्का की चंचल अकाज गूंजी : "वाव दीदी...आपने तो कमाल कर दिया..आई एम् इम्प्रेस..."
मैं: कुछ समझा नहीं की वो क्या बोल रही है?
और फिर कनिष्का मेरी तरफ सर घुमा कर बोली : यु नो विशाल, दीदी ने मुझे चेलेंज किया था की वो आज तुम्हारे कमरे में जाकर दिखाएगी...और वो भी पहली बार में ही..और इन्होने वो कर दिया..
ओहो..अब समझा, तो ये सब पहले से तय था और इसलिए वो इतनी दिलेरी दिखा रही थी..
मैं (कनिष्का की तरफ देखते हुए): तो इसमें कौनसी बड़ी बात है..किसी के कमरे में जाना तो बहुत आसान है..कोई भी कर सकता है.
कनिष्का : नहीं, मेरी दीदी नहीं कर सकती ये सब, ये ऐसी है ही नहीं, तभी तो मैंने इन्हें ये चेलेंज दिया था, यहाँ आते वक़्त...
मैं (अंशिका की आँखों में देखकर मुस्कुराते हुए): मुझे मालुम है की तुम्हारी दीदी ऐसी नहीं है, पर अब हो गयी है, मेरी संगत में आकर..
अंशिका ने शरमाकर अपना चहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और बाहर की और देखने लगी. कनिष्का थोडा आगे खिसक आई और हम दोनों के बीच अपनी गर्दन लाकर बोली : वैसे क्या मैं पूछ सकती हूँ की आप दोनों इतनी देर तक कर क्या रहे थे अन्दर..?? उसकी बात सुनकर अंशिका के चेहरे की लालिमा और गहरी हो गयी..
मैं: तुम्हे इतनी फिकर हो रही थी अपनी दीदी की तो अन्दर ही आकर देख लेती की हम क्या कर रहे थे..
अब शर्माने की बारी कनिष्का की थी, मैंने इतने करीब से उसके चेहरे पर आते शर्म के भाव देखे की मेरा तो मन किया की उसे वहीँ चूम लू..उसमे से आती भीनी खुशबू पूरी कार में भरी हुई थी..और बड़ी मदहोश सी करने वाली थी..
अंशिका (अपनी बहन से): तू अपने काम से काम रख कन्नू...अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है तू जो इन सबमे इतना इंटरेस्ट ले रही है तू..
कनिका : ओहो दीदी..आप भी न, मुझे तो आप बच्ची ही समझते रहना, आई एम् यंग नाव..कॉलेज में आ गयी हूँ अब तो..
मैं उन दोनों बहनों की बातें सुनता रहा और मजे लेता रहा.
मैं: अच्छा अब मुझे ये बताओ की मुझे क्यों साथ लेकर आई हो तुम, और चलना कहाँ है..
अंशिका: वो तुम कल नाराज हो गए थे न, इसलिए मैंने सोचा की तुम्हे भी आज साथ ले चलू और तुम थोड़ी हेल्प भी करा देना हमारी , ठीक है न..
मैं क्या कहता, बस मुस्कुरा दिया और हम पहले कॉलेज में जा पहुंचे.
वहां बड़ी भीड़ थी, लम्बी-लम्बी लाईन लगी हुई थी फार्म लेने के लिए.. पर मेरा एक दोस्त था उसी कॉलेज में, मैंने उसे फोन किया और सब बताया, उसने सिर्फ पांच मिनट में ही मुझे अन्दर जाकर फॉर्म लाकर दे दिया..इतनी जल्दी काम होते देखकर वो दोनों बहने बड़ी खुश हुई. उसके बाद हम दो -तीन कॉलेज में और गए और हर बार मैंने किसी न किसी तरह की तिकड़म लगा कर उनका काम जल्दी करवा दिया..ये सब देखकर कनिष्का बड़ी खुश हुई..
कनिष्का : वाव विशाल, तुमने हमारा ये दो दिनों का काम एक ही दिन में करवा दिया, मुझे तो लगा था की इन पांच कॉलेजेस के फार्म लेने में ही दो दिन लग जायेंगे..
अंशिका: आखिर दोस्त किसका है..
कनिष्का : सिर्फ दोस्त..या..
अंशिका: सिर्फ दोस्त..और तू अपना दिमाग बेकार की बातों में मत चला..समझी.
उन दोनों बहनों की नोक-झोंक देखने में बड़ा मजा आ रहा था. उसके बाद हम सभी खाना खाने के लिए एक अच्छे से रेस्तरो में गए, और फिर वापिस चल दिए. रास्ते में कनिष्का अपनी आदत के अनुसार चबर-चबर बोलती रही..और हम दोनों मजे ले लेकर उसकी बातें सुनते रहे..मैंने नोट किया की अंशिका कुछ चुप-चाप सी बैठी है..
मैं: क्या हुआ अंशिका..कोई प्रोब्लम है क्या?
अंशिका (धीरे से): वो..वो..मुझे प्रेशर आया है..काफी तेज..
मैं समझ गया की उसे मूतना है..पर यहाँ कैसे, हम उस वक़्त हाईवे पर थे..दूर-दूर तक कुछ भी नहीं था..
मैं: अभी थोडा आगे जाकर देखते हैं, कोई पेट्रोल पम्प या ढाभा हुआ तो वहां कर लेना..
अंशिका (बुरा सा मुंह बनाते हुए): वहां तक के लिए रोक पाना मुश्किल है...प्लीस..कुछ करो.
कनिष्का : दीदी आप भी न, अभी जहाँ खाना खाया था वहीँ कर लेती..
अंशिका कुछ न बोली, वो बोलने की हालत में लग ही नहीं रही थी..
मैंने कार एक तरफ रोक दी, रोड के थोड़ी दुरी पर एक पेड़ था..
मैं: जाओ जल्दी से, वहां कर लो.
अंशिका मेरी तरफ देखकर बोली: यहाँ, खुले में..?
मैं: फिर बैठी रहो, आगे कोई होटल आएगा न तब आप कर लेना..
कनिष्का मेरी बात सुनकर हंसने लगी..
अंशिका: ठीक है ..ठीक है..जाती हूँ..
और वो कार से उतर गयी कर पेड़ की तरफ चल दी.
उसके उतरते ही कनिष्का फिर से अपना चेहरा आगे करके मेरे पास आकर बोली : वैसे विशाल, दीदी तो मना कर रही है, पर मुझे मालुम है की तुम दोनों में कुछ न कुछ खिचड़ी तो बन ही रही थी अन्दर कमरे में. मैंने भी मजे लेने के मूड में उससे कहा : अच्छा जी, तब तो बता ही दो की क्या चल रहा था मेरे कमरे में.
कनिष्का : तुम ही क्यों नहीं बता देते..
मैं: तो सुनो, जब अंशिका मेरे कमरे में आई तो मैं टावल में खड़ा हुआ था, और वो आकर मुझसे लिपट गयी और फिर उसने मुझे चूमा और मैंने भी उसके होंठो को अच्छी तरह से किस किया..और फिर मेरा टावल खुल गया...और उसके बाद...
कनिष्का : बस बस...मुझे और नहीं सुनना
उसका चेहरा देखने लायक था..शर्म से लाल सुर्ख. मैं मुडकर उसे शर्माते हुए देखने लगा की तभी मेरी नजर पेड़ के पीछे छुप कर सुसु करती हुई अंशिका पर गयी..उसके मोटे कुल्हे दूर से साफ़ दिखाई दे रहे थे, उसका चेहरा दूसरी तरफ था और वो पेड़ के पीछे थी पर पूरी तरह से छुप नहीं पा रही थी..उसकी गांड देखकर तो मेरे मुंह में पानी आ गया. तभी कनिष्का की आवाज आई : विशाल, क्या तुम मुझे अपना नंबर दे सकते हो?
मैं: क्यों ?
कनिष्का : वो..वो..अगर कोई प्रोब्लम हुई तो तुम्हारी हेल्प ले लिया करुँगी..
मैं: ठीक है, लिख लो.
और मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तभी अंशिका उठ कड़ी हुई और अपने कपडे ठीक करने के बाद वापिस आने लगी.
मैं: वैसे हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ था जैसा मैंने कहा या फिर जैसा तुमने सोचा..
कनिष्का हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. वो कुछ कहना चाहती थी पर तभी उसकी बहन अन्दर आ गयी.
अंशिका: अब ठीक है..चलो अब.
कनिष्का :नहीं ..अभी नहीं...वो क्या है की...मुझे भी..जाना है.
अंशिका: अब क्या हुआ...तू तो मुझे लेक्चर दे रही थी अभी..चल जा जल्दी से..
वो उतर कर चल दी उसी पेड़ के पीछे. मुझे नहीं मालुम की उसे भी सुसु आया था या नहीं..कहीं वो जान बुझकर , मुझे अपनी गांड के जलवे दिखने के लिए तो वहां नहीं उतरी थी. मैंने अपना चेहरा घुमा कर दूसरी तरफ कर लिया..ताकि अंशिका को ना लगे की मैं उसकी बहन को सुसु करते हुए देख रहा हूँ.
अंशिका: क्या बोल रही थी कन्नू...कुछ बताया तो नहीं तुमना..
मैंने सर घुमा कर उसकी तरफ देखा : तुम भी बच्चो जैसी बात करती हो..मैं कैसे उसे बता देता की तुमने आज सुबह मेरा लंड चूसकर मेरा सारा रस पी लिया..
मेरी बात सुनते ही उसने अपना सर शर्म से झुका लिया, बस इतना ही समय काफी था मुझे कनिष्का की तरफ देखने के लिए. जो अपने जींस उतार कर बैठी हुई आराम से अपनी गांड दर्शन मुझे करवा रही थी..पहले अंशिका और अब कनिष्का..दोनों बहनों की नंगी गांड देखकर तो मेरा बुरा हाल हो चूका था..वो उठी और अपनी जींस को ऊपर किया और अपने ग्लोबस को वापिस अन्दर छुपा लिया..और फिर हमारी तरफ आ गयी..
अन्दर आते ही कनिष्का बोली : दीदी, आपने कभी सोचा भी था की हम दोनों इस तरह से खुले में जाकर सुसु करेंगी..हे हे ..पर टाईम कुछ भी करा सकता है...है न..
अंशिका: हाँ मेरी माँ...अब चुप हो जा..
और उसके बाद हम तीनो हँसते हुए वापिस चल दिए. शाम काफी हो चुकी थी ,मुझे स्नेहा के पास भी जाना था. पुरे दिन बाहर रहने की वजह से मेरे सेल की बेटरी भी ख़तम हो चुकी थी.. मैं आधा घंटा देर से पोहचुंगा वहां. मैंने अंशिका को कहा की वो मुझे किटी मैम के घर छोड़ दे, ताकि मैं स्नेहा को पड़ा सकूँ. उसने कहा ठीक है और मुझे किटी में के घर के बाहर छोड़कर वो दोनों वापिस चली गयी..
मैं ऊपर गया और बेल बजायी...किटी में ने दरवाजा खोला : अरे विशाल तुम, आओ अन्दर आओ...
अन्दर आकर मैं सोफे पर बैठ गया, उसी जगह जहाँ कल शाम को स्नेहा मेरी बाँहों में नंगी थी और मैंने स्नेहा की चूत चाटी थी..मैं हाथ लगा कर सोफे पर लगे स्नेहा की चूत से निकले रस के निशान को रगड़ने लगा..
मैं: वो स्नेहा ..स्नेहा कहाँ है मैम?
किटी मैम: उसने तुम्हे बताया नहीं, मैंने कहा था की फोन कर दे तुम्हे, वो तो आज अपनी सहेली के घर गयी है, उसका बर्थडे है..कॉलेज से सीधा चली गयी थी वो, साथ में अपनी ड्रेस भी ले गयी.
मैं: ओहो...एक्चुयल्ली मेरा फ़ोन डेड हो गया था आज, शायद इसलिए ...बात नहीं हो पायी उससे..ठीक है , कोई बात नहीं, मैं चलता हूँ..
किटी मैम: रुको..बैठो थोड़ी देर..मुझे तुमसे बात करनी है..
मैं: उनकी बात सुनकर डर सा गया..कहीं उन्हें मेरे और स्नेहा के बारे में तो कुछ मालुम नहीं हो गया है..
किटी मैम अन्दर चली गयी, और मेरे लिए पानी लेकर आई. मेरी नजर तो उनके तरबूजों पर ही थी..आज बिना चुन्नी के उनकी छाती पर लटके उन रसीले फलों को देखकर तो मेरा लंड जींस में से टाईट होने लगा. पानी देने के बाद वो मेरे सामने बैठ गयी. वो मुझे घूरे जा रही थी..मानो मन में सोच रही हो की बात कहाँ से शुरू की जाए..
किटी मैम: तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या..?
मैं: उनकी बात सुनकर घबरा गया..आज इनको क्या हो गया है जो मुझसे मेरी गर्ल फ्रेंड के बारे में पूछ रही है..अगर कोई और होता तो उसे शायद आज मैं अंशिका या स्नेहा के बारे में बता भी देता पर इनको तो येही मालुम है की अंशिका मेरी कजन है और स्नेहा तो इनकी सगी बेटी है..
मैं: जी...जी नहीं...
किटी मैम (हँसते हुए): घबराओ मत...मैं किसी से नहीं कहूँगी..
मैं: नहीं मैम, ऐसी कोई बात नहीं है...मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है.
किटी मैम (मेरी आँखों में देखकर बोलते हुए): तभी..तभी तुम ऐसे हो..
मैं: फिर से घबरा गया, ये क्या कह रही है..
मैं: जी..मैं ..मैं कुछ समझा नहीं..
किटी मैम: मेरे कॉलेज में मेरा पाला हर रोज तुम्हारी उम्र के लडको से पड़ता है..और उनकी नजरे देखकर ही मुझे पता चल जाता है की उनके दिमाग में क्या चल रहा है..
मेरा तो सर भन्ना गया..साली मेरे दिमाग का तो एक्सरे करने में नहीं लगी हुई...मेरे माथे पर पसीना आने लगा, मैंने दोबारा से पानी का गिलास उठाया और पूरा खाली कर दिया..
मेरी हालत देखकर वो मुस्कुराने लगी..
किटी: तुम क्यों घबरा रहे हो..मैंने तो अभी कुछ कहा भी नहीं..
मैं नजरे इधर उधर करके उन्हें अवोइड करने की कोशिश करने लगा.
मैं: आप क्या कह रही हैं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैम..
किटी: अच्छा तो फिर सुनो, मैंने तुम्हे कई बार अपने यहाँ घूर कर देखते हुए पाया है...इसका क्या मतलब है.
उन्होंने अपनी भरी पूरी छातियों की तरफ इशारा किया..
मैं: जी..जी...मैं... मैं...नहीं.तो..मैंने तो...नहीं...
मेरी हालत देखकर वो फिर से हंसने लगी..
किटी: हे हे...घबराओ मत...मैं समझ सकती हूँ, मैं कॉलेज में हयूमन साईंस पढ़ाती हूँ...और आज कल के लडको की साईकोलोजी मैं अच्छी तरह से समझती हूँ..जो चीज तुम्हे मिल नहीं सकती उसे देखकर ही मन भर लेते हो...है न..!!
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की आज इन्हें हो क्या गया है...चाहता तो मैं भी कब से था की मैं उनके साथ इस तरह की बाते करूँ पर मुझे नहीं मालुम था की वो भी शायद ऐसा ही चाहती हैं..मैंने मन में सोचा की बेटा विशाल, आज ही मोका है, चांस लेकर देख ले..क्या पता किटी मैम की खीर खाने को मिल जाए. मैंने अब घबराना छोड़ दिया था..मैंने भी हँसते हुए उनकी बातों का जवाब देना शुरू कर दिया.
मैं: वो..वो क्या है न मैम...मेरी कोई गर्लफ्रेंड तो है नहीं..और मेरे सभी दोस्त मुझे हमेशा चिड़ाते रहते हैं...और अपने किस्से सुना सुनाकर मुझे जलाते हैं..इसलिए मेरी नजर अक्सर हर सुन्दर लड़की या औरत पर चली जाती है...इसलिए...इसलिए शायद आपको भी बुरा लगा होगा...मेरे ऐसे देखने से..
मेरे मुंह से सुन्दर औरत वाली बात सुनकर वो थोडा और चोडी हो गयी..
किटी: तो क्या मैं तुम्हे सुन्दर लगती हूँ..
मैं: जी...जी .आप बुरा तो नहीं मानेगी..
किटी: नहीं विशाल...बोलो..जो तुम्हारे मन मैं है बोलो..
मैं (शर्माते हुए): मैम...सुन्दर तो आप है ही...और आपकी ये ...ये ...ब्रेस्ट..और भी शानदार है...इसे कोई भी देख ले तो उसकी नजर ही न हटे इसपर से..प्लीस आप बुरा मत मानना ...और ये सब अंशिका को मत बताना...प्लीस...
किटी: नहीं...मैं बुरा नहीं मान रही...और न ही मैं: ये सब अंशिका को बताउंगी...मुझे मालुम है की वो तुम्हारे ऊपर कैसा रोब चलाती है...पर एक बात बताओ...क्या तुमने आज तक किसी भी लड़की या औरत की ब्रेस्ट को हाथ में लेकर या उन्हें...उन्हें..नंगा नहीं देखा..
उनकी आखिरी बात सुनकर जो हरकत मेरे लंड में हुई, मैं बता नहीं सकता...साली मेरे सामने अपने दोनों बर्तनों को भरकर बैठी हुई मुझसे इस तरह की बात करेगी तो मेरा तो क्या...आप पड़ने वालो का भी लंड पेंट फाड़ कर बाहर आ जाएगा...
मैं: जी...जी नहीं मैम...ऐसा कोई मौका ही नहीं आया आजतक..
मेरी बात सुनकर वो फिर से मुझे घूरने लगी..मानो कुछ तय करने की कोशिश कर रही हो...
किटी: देखो...तुम अगर किसी से कुछ न कहो..तो मैं..तुम्हे आज अपने ब्रेस्ट दिखा सकती हूँ..
मैं (चोंकते हुए): क्या...आप..आप अपनी...अपनी ब्रेस्ट मुझे....वाव...आई मीन...कैसे...और मुझे क्यों...आप दिखाएगी..
किटी: देखो विशाल...तुमने स्नेहा के पापा को तो देखा ही है....उनकी उम्र नहीं रही अब ये सब करने की...मेरी भी कुछ तमन्नाये है...जो उनकी ढलती उम्र की वजह से अधूरी रह गयी है...और इसलिए मुझे जब भी मौका मिलता है...मैं तुम जैसे लडको के साथ कुछ मजे लेकर अपने अरमान पुरे कर लेती हूँ...बस इसलिए...और वैसे भी तुम मेरी बेटी की पढाई में मदद कर रहे हो...इसलिए मुझे भी तो तुम्हे थेंक्स कहने का मौका मिलना चाहिए न..
और वो उठकर मेरी बगल में आकर बैठ गयी...ठीक उसी जगह पर जहाँ उनकी बेटी कल नंगी मेरे साथ बैठी थी..
किटी मैम के शरीर से निकलती आग को मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था...पर बात वहीँ पर आकर अटक जानी थी जहाँ कल अटकी थी...मैं अंशिका की चूत मारे बिना इनकी भी नहीं मार पाउँगा...जब मेरे इस फेसले को वो कुंवारी स्नेहा की चूत ना बदल सकी तो ये चालीस साल की आंटी क्या बदल पाएगी...पर मजे लेने में तो कोई पाबंदी नहीं है ना..और वैसे भी इनके रसीले फलों का तो मैं शुरू से दीवाना रहा हूँ..इसलिए मैंने भी सोच लिया की उनके साथ किस हद तक मुझे मजे लेने है या....देने है.
मैं: तो क्या आप..आप अपने स्टुडेंट्स के साथ भी...ये सब करती है...
किटी: नहीं...सभी के साथ नहीं..सिर्फ उनके साथ जो कॉलेज में नहीं है अब..और जो मुझे पसंद होते हैं..मैं हमेशा थर्ड ईयर स्टुडेंट्स को चूस करती हूँ...क्योंकि कॉलेज में पड़ने वाले अपने दोस्तों से कुछ ना कुछ बोल ही देते हैं...और फिर उसी कॉलेज में पढाना काफी मुश्किल हो जाता है..यु नो..
मैं: उनकी बात समझ गया..पर हमारे कॉलेज में ऐसी कोई टीचर क्यों नहीं है...मैं भी तो अब थर्ड ईयर में हूँ...मुझे तो किसी टीचर ने आजतक कभी भी ऐसा प्रोपोसल नहीं दिया..
किटी मैम आज मुझे अपने सारे राज बताती जा रही थी, थर्ड इयर के कई स्टुडेंट्स से चुदवा चुकी थी वो..तभी तो उनके एवरेस्ट इतने ऊँचे थे..और गांड भी क्या क़यामत ढाने वाली थी...मेरा तो लंड ना जाने कितनी बार खड़ा हो चूका था उनकी मचलती हुई गांड देखकर..
किटी: तुम्हारी तो कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है ना...यानी तुम अभी तक वर्जिन हो...
मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया था किटी मैम ने अब. अब मैं उन्हें क्या बताऊँ, कल इसी सोफे पर उनकी लाडली बेटी स्नेहा की चूत मारने का अच्छा मौका था, पर अंशिका को दिए वाडे की वजह से वो नहीं कर पाया, वर्ना आज ये उनकी वर्जिन वाली बात मेरे दिल पर तीर की तरह नहीं लगती...और अंशिका के साथ भी मैंने लगभग सब कुछ कर लिया था..पर सही जगह की कमी की वजह से उसकी चूत को मारने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था. मुझे सोचते हुए देखकर किटी मैम ने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख दिया..मेरे लंड से कुछ ही दुरी पर. मेरे तो पुरे शरीर में उनके हाथ से निकलती गर्मी की वजह से सुरसुराहट सी होने लगी..
उन्होंने अपने हाथ को वहां धीरे-२ मलते हुए कहा : तो क्या सोचा तुमने...तैयार हो..पहली बार किसी औरत की ब्रेस्ट देखने के लिए..बोलो. अब इतना भी मैं मारा नहीं जा रहा उनकी ब्रेस्ट देखने के लिए...उनकी चाहे जितनी बड़ी और भरी हुई क्यों ना हो..पर अंशिका की ब्रेस्ट से उनका कोई मुकाबला नहीं है...और दुसरे नंबर पर मैं स्नेहा को रखूँगा...क्योंकि उसके छोटे-२ संतरे और उनपर लगे अंगूर जैसे निप्पल मुझे काफी पसंद आये थे...अब इन्हें कौन समझाए की मैं लंड से कुंवारा हूँ ...चूत मारने के अलावा मैं: सब कुछ कर चूका हूँ..पर इनसे ये सब छुपा कर रखना पड़ेगा..तभी तो वो मुझे अच्छी टीचर की तरह से ये सेक्स का चेप्टर पढ़ाएंगी ..
मैं: जी...हां...क्यों नहीं...
मेरा इतना कहने की देर थी की उन्होंने अपने ब्लाउस के हूक खोलने शुरू कर दिए...मैं फटी आँखों से उन बड़े- २ देत्यकार तरबूजों को बेपर्दा होते हुए देख रहा था. सारे हूक खुलने के बाद उन्होंने गहरी सांस ली..और अब उनकी व्हाईट कलर की लेंस वाली ब्रा में केद दो बड़े से जानवर मुझे हिलते हुए नजर आने लगे..ब्लाउस में होने की वजह से वो काफी तंग महसूस कर रहे थे..खुली जगह मिलते ही उन्होंने अपने आप को थोडा और फेला लिया..पर अभी भी एक और बाधा थी जो उन्हें पूरी तरह से सांस नहीं लेने दे रही थी..और वो थी उनकी सेक्सी ब्रा. अपना ब्लाउस उतार कर उन्होंने मेरी तरफ उछाल दिया..मैं उसमे से आती उनके पसीने की महक को सूंघकर मदहोश सा होने लगा.
किटी: केसे लगे..ये तुम्हे..?
मैं: इतने करीब से पहली बार इतने बड़े मुम्मे देख रहा था..मेरी आँखों के सामने सिर्फ वोही थे, और कुछ भी मेरी आँखों के एंगल में आ ही नहीं पा रहा था..
मैं: वाव..मैम...दे आर बियुटिफुल...कैन ..कैन आई टच देम..
किटी: या या...श्योर..
और वो आगे होकर मुझसे सट कर बैठ गयी... मैंने कांपते हाथों से अपने हाथ ऊपर करके उनके दोनों मुम्मो पर रख दिए...ऊऊओ कितने सोफ्ट थे...वो दोनों.
अह्ह्ह्हह्ह , किटी मैम ने एक जोरदार सिसकारी मारी और मेरा मुंह पकड़कर अपने मुम्मो पर दबा दिया. ऊओह्ह्ह्ह विशाल्ल्ल्ल .....म्मम्मम......येस्स्स्स.....म्मम्म.....
मेरा तो दम हो घुटने लगा उनकी दोनों ब्रेस्ट के बीच में फंसकर. पर मजा भी बड़ा आ रहा था...इतने गद्देदार मुम्मे तो मैंने पहली बार देखे थे, और किटी मैम पर तो जैसे कोई भूतनी चढ़ गयी थी...मुझे किसी बच्चे की तरह से अपने शरीर से दबा कर ऐसे रगड़ रही थी की मुझे उनकी ब्रा के कपडे की रगड़ की वजह से मेरे चेहरे पर जलन सी होने लगी थी..
मैं पीछे हो गया..
किटी: क्या हुआ...आओ ना...
मैं: वो मैम...ये ..आपकी ब्रा ..मेरे चेहरे पर..चुभ रही है..
किटी मैम: ओह...ये..
और इस बार उन्होंने हूक खोलने की जेहमत भी नहीं उठाई और खींच कर अपनी ब्रा को अपने शरीर से अलग कर दिया और अपनी दिसायीनर ब्रा को बर्बाद कर दिया...पर इसकी उन्हें कोई फिकर नहीं थी..क्योंकि सेक्स की आग जो उनके शरीर में जल रही थी उसके सामने ऐसी ब्रा की कोई कीमत नहीं होती और उनकी ब्रा के हटते ही उनके दोनों मस्ताने, रसीले, मोटे-ताजे, तरबूज मेरी आँखों के सामने झूल गए...
मैं: वाव...आई कांट बिलीव ईट ...दे आर सो लोव्ली...
किटी (गहरी सांस लेते हुए): देन...सक देम...
और उन्होंने फिर से मेरे सर को पकड़ कर अपनी छाती पर दे पारा और मेरा मुंह सीधा उनके दांये मुम्मे के निप्पल पर जा लगा ...और मैं उसे चूसने लगा...
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......विशाल्ल्ल्ल....यु आर सकिंग वैरी वेल्ल....या.....कीप ईट....लाईक दिस....या.....ऊऊऊ माय गोड...म्मम्मम
उन्होंने मेरे मुंह को खींचकर अपने स्तन से अलग किया...मेरा उन्हें छोड़ने का मन भी नहीं था...क्योंकि वो बड़े टेस्टी से लग रहे थे...खींचने की वजह से उनका निप्पल मेरे दांतों के बीच फंसकर रह गया...और उनके एक तेज झटके की वजह से वो पक की आवाज के साथ बाहर निकल गया...
अह्ह्ह्ह......शायद उन्हें दर्द हुआ होगा..
उन्होंने मेरे चेहरे को अलग किया और मेरी तरफ ऐसी भूखी नजरों से देखा तो मुझे लगा की कहीं मैंने उन्हें ज्यादा तेज तो नहीं चूस लिया...पर मेरा अंदाजा गलत निकला, मेरे चूसने की वजह से उनके अन्दर की आग और भड़क गयी थी...और अगले ही पल कुछ देर तक घूरने के बाद, उन्होंने मेरे होंठों को किसी भूखी लोमड़ी की तरह से चुसना शुरू कर दिया...
अह्ह्हह्ह ....पुच....पुच.....ऊऊओ विशाल.....म्मम्मम.....यु....आर वैरी टेस्टी.....अह्ह्हह्ह.....पुच ...पुच.....
वो अपने गीले मुंह से मुझे चूमती जा रही थी और मेरी सकिंग की तारीफ करती जा रही थी...
मैंने भी उनके रसीले और गीले होंठों को चुसना और चबाना शुरू कर दिया..और मेरे दोनों हाथ अब उनके दोनों मुम्मो पर थे...उनके दोनों चोकलेट कलर के निप्पल मेरे हाथों में किसी शूल की तरह से चुभ रहे थे..मैंने उन्हें अपनी दोनों हाथों की उँगलियों से मसलना शुरू कर दिया..जिसकी वजह से होने वाली सुरसुराहट की वजह से किटी मैम ने मुझे और तेजी से चुसना चालू कर दिया...
अब उनका एक हाथ सीधा मेरे लंड के ऊपर आकर टिक गया...मेरी तो जान ही निकल गयी जब उन्होंने उसे अपनी मुट्ठी में दबाकर भींच दिया...क्योंकि साथ में मेरी बाल्स भी आ गयी थी उनके हाथ में..
अह्ह्ह्हह्ह....धीरे मैम....
किटी: निकालो...इसे निकालो विशाल...जल्दी...मैं इसे देखना चाहती हूँ.....जल्दी करो...
मैं: किसी आज्ञाकारी स्टुडेंट की तरह से उठ खड़ा हुआ ...और उन्होंने मेरी जींस की बेल्ट खोल कर उसे नीचे कर दिया...मेरे जोक्की के ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाने लगी...और अगले ही पल उसे भी नीचे कर दिया..
मेरा लंड उन्हें सलामी देने लगा..
किटी: इट्स लवली....एंड बिग्ग...
उसे देखकर उन्होंने अपने होंठों पर जीभ फेरी और फिर मेरे लंड के सिरे से निकलते रस को चाटकर चटखारा मारा और फिर पूरा अन्दर डाल लिया...
मैंने उनके मुंह को पकड़कर धक्के मारना शुरू कर दिया...उनके चूसने में और अंशिका और स्नेहा के चूसने में जमीन आसमान का अंतर था...वो अपने पुरे एक्सपेरिएंस से चूस रही थी...जिसकी वजह से मैं जल्दी ही झड़ने के करीब पहुँच गया...और अगले ही पल मेरा रस निकल कर उनके मुंह में जाने लगा....
आआआआअह्ह ऊऊऊओ ,.......म्मम्म......ऊऊऊ....मैम.......आआअह्ह्ह........... वो पूरा रस पी गयी..
मेरी टाँगे कमजोरी के कारण कांपने लगी और मैं वहीँ सोफे पर लुडक गया...
तभी बाहर दरवाजे की घंटी बज उठी. हम दोनों के चेहरे पर भय के भाव आ गए..
किटी: इस समय कौन आ गया...
उन्होंने जल्दी से अपने कपडे पहने और बाहर की और गयी...."आई बाबा...कौन है..."
बाहर उनके पति थे. वो अन्दर आये और मुझे घूर कर देखने लगे..
किटी: ये स्नेहा का इन्तजार कर रहा है...
वो बिना कुछ बोले अन्दर चले गए...वो जानते तो थे की मैं स्नेहा को पड़ाने आता हूँ..पर पता नहीं क्यों, मुझे लगा की शायद उन्हें कुछ शक सा हो गया है...
जो भी हो...मैंने जल्दी से किटी मैम को बाय बोला और बाहर की और चल दिया...
भगवान् का शुक्र किया की आज उनके पति की वजह से मेरी वर्जिनिटी बच गयी...वर्ना आज मेरा ये किटी मैम क्या हाल करती...पता नहीं ..
मैं: कुछ समझा नहीं की वो क्या बोल रही है?
और फिर कनिष्का मेरी तरफ सर घुमा कर बोली : यु नो विशाल, दीदी ने मुझे चेलेंज किया था की वो आज तुम्हारे कमरे में जाकर दिखाएगी...और वो भी पहली बार में ही..और इन्होने वो कर दिया..
ओहो..अब समझा, तो ये सब पहले से तय था और इसलिए वो इतनी दिलेरी दिखा रही थी..
मैं (कनिष्का की तरफ देखते हुए): तो इसमें कौनसी बड़ी बात है..किसी के कमरे में जाना तो बहुत आसान है..कोई भी कर सकता है.
कनिष्का : नहीं, मेरी दीदी नहीं कर सकती ये सब, ये ऐसी है ही नहीं, तभी तो मैंने इन्हें ये चेलेंज दिया था, यहाँ आते वक़्त...
मैं (अंशिका की आँखों में देखकर मुस्कुराते हुए): मुझे मालुम है की तुम्हारी दीदी ऐसी नहीं है, पर अब हो गयी है, मेरी संगत में आकर..
अंशिका ने शरमाकर अपना चहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और बाहर की और देखने लगी. कनिष्का थोडा आगे खिसक आई और हम दोनों के बीच अपनी गर्दन लाकर बोली : वैसे क्या मैं पूछ सकती हूँ की आप दोनों इतनी देर तक कर क्या रहे थे अन्दर..?? उसकी बात सुनकर अंशिका के चेहरे की लालिमा और गहरी हो गयी..
मैं: तुम्हे इतनी फिकर हो रही थी अपनी दीदी की तो अन्दर ही आकर देख लेती की हम क्या कर रहे थे..
अब शर्माने की बारी कनिष्का की थी, मैंने इतने करीब से उसके चेहरे पर आते शर्म के भाव देखे की मेरा तो मन किया की उसे वहीँ चूम लू..उसमे से आती भीनी खुशबू पूरी कार में भरी हुई थी..और बड़ी मदहोश सी करने वाली थी..
अंशिका (अपनी बहन से): तू अपने काम से काम रख कन्नू...अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है तू जो इन सबमे इतना इंटरेस्ट ले रही है तू..
कनिका : ओहो दीदी..आप भी न, मुझे तो आप बच्ची ही समझते रहना, आई एम् यंग नाव..कॉलेज में आ गयी हूँ अब तो..
मैं उन दोनों बहनों की बातें सुनता रहा और मजे लेता रहा.
मैं: अच्छा अब मुझे ये बताओ की मुझे क्यों साथ लेकर आई हो तुम, और चलना कहाँ है..
अंशिका: वो तुम कल नाराज हो गए थे न, इसलिए मैंने सोचा की तुम्हे भी आज साथ ले चलू और तुम थोड़ी हेल्प भी करा देना हमारी , ठीक है न..
मैं क्या कहता, बस मुस्कुरा दिया और हम पहले कॉलेज में जा पहुंचे.
वहां बड़ी भीड़ थी, लम्बी-लम्बी लाईन लगी हुई थी फार्म लेने के लिए.. पर मेरा एक दोस्त था उसी कॉलेज में, मैंने उसे फोन किया और सब बताया, उसने सिर्फ पांच मिनट में ही मुझे अन्दर जाकर फॉर्म लाकर दे दिया..इतनी जल्दी काम होते देखकर वो दोनों बहने बड़ी खुश हुई. उसके बाद हम दो -तीन कॉलेज में और गए और हर बार मैंने किसी न किसी तरह की तिकड़म लगा कर उनका काम जल्दी करवा दिया..ये सब देखकर कनिष्का बड़ी खुश हुई..
कनिष्का : वाव विशाल, तुमने हमारा ये दो दिनों का काम एक ही दिन में करवा दिया, मुझे तो लगा था की इन पांच कॉलेजेस के फार्म लेने में ही दो दिन लग जायेंगे..
अंशिका: आखिर दोस्त किसका है..
कनिष्का : सिर्फ दोस्त..या..
अंशिका: सिर्फ दोस्त..और तू अपना दिमाग बेकार की बातों में मत चला..समझी.
उन दोनों बहनों की नोक-झोंक देखने में बड़ा मजा आ रहा था. उसके बाद हम सभी खाना खाने के लिए एक अच्छे से रेस्तरो में गए, और फिर वापिस चल दिए. रास्ते में कनिष्का अपनी आदत के अनुसार चबर-चबर बोलती रही..और हम दोनों मजे ले लेकर उसकी बातें सुनते रहे..मैंने नोट किया की अंशिका कुछ चुप-चाप सी बैठी है..
मैं: क्या हुआ अंशिका..कोई प्रोब्लम है क्या?
अंशिका (धीरे से): वो..वो..मुझे प्रेशर आया है..काफी तेज..
मैं समझ गया की उसे मूतना है..पर यहाँ कैसे, हम उस वक़्त हाईवे पर थे..दूर-दूर तक कुछ भी नहीं था..
मैं: अभी थोडा आगे जाकर देखते हैं, कोई पेट्रोल पम्प या ढाभा हुआ तो वहां कर लेना..
अंशिका (बुरा सा मुंह बनाते हुए): वहां तक के लिए रोक पाना मुश्किल है...प्लीस..कुछ करो.
कनिष्का : दीदी आप भी न, अभी जहाँ खाना खाया था वहीँ कर लेती..
अंशिका कुछ न बोली, वो बोलने की हालत में लग ही नहीं रही थी..
मैंने कार एक तरफ रोक दी, रोड के थोड़ी दुरी पर एक पेड़ था..
मैं: जाओ जल्दी से, वहां कर लो.
अंशिका मेरी तरफ देखकर बोली: यहाँ, खुले में..?
मैं: फिर बैठी रहो, आगे कोई होटल आएगा न तब आप कर लेना..
कनिष्का मेरी बात सुनकर हंसने लगी..
अंशिका: ठीक है ..ठीक है..जाती हूँ..
और वो कार से उतर गयी कर पेड़ की तरफ चल दी.
उसके उतरते ही कनिष्का फिर से अपना चेहरा आगे करके मेरे पास आकर बोली : वैसे विशाल, दीदी तो मना कर रही है, पर मुझे मालुम है की तुम दोनों में कुछ न कुछ खिचड़ी तो बन ही रही थी अन्दर कमरे में. मैंने भी मजे लेने के मूड में उससे कहा : अच्छा जी, तब तो बता ही दो की क्या चल रहा था मेरे कमरे में.
कनिष्का : तुम ही क्यों नहीं बता देते..
मैं: तो सुनो, जब अंशिका मेरे कमरे में आई तो मैं टावल में खड़ा हुआ था, और वो आकर मुझसे लिपट गयी और फिर उसने मुझे चूमा और मैंने भी उसके होंठो को अच्छी तरह से किस किया..और फिर मेरा टावल खुल गया...और उसके बाद...
कनिष्का : बस बस...मुझे और नहीं सुनना
उसका चेहरा देखने लायक था..शर्म से लाल सुर्ख. मैं मुडकर उसे शर्माते हुए देखने लगा की तभी मेरी नजर पेड़ के पीछे छुप कर सुसु करती हुई अंशिका पर गयी..उसके मोटे कुल्हे दूर से साफ़ दिखाई दे रहे थे, उसका चेहरा दूसरी तरफ था और वो पेड़ के पीछे थी पर पूरी तरह से छुप नहीं पा रही थी..उसकी गांड देखकर तो मेरे मुंह में पानी आ गया. तभी कनिष्का की आवाज आई : विशाल, क्या तुम मुझे अपना नंबर दे सकते हो?
मैं: क्यों ?
कनिष्का : वो..वो..अगर कोई प्रोब्लम हुई तो तुम्हारी हेल्प ले लिया करुँगी..
मैं: ठीक है, लिख लो.
और मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तभी अंशिका उठ कड़ी हुई और अपने कपडे ठीक करने के बाद वापिस आने लगी.
मैं: वैसे हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ था जैसा मैंने कहा या फिर जैसा तुमने सोचा..
कनिष्का हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. वो कुछ कहना चाहती थी पर तभी उसकी बहन अन्दर आ गयी.
अंशिका: अब ठीक है..चलो अब.
कनिष्का :नहीं ..अभी नहीं...वो क्या है की...मुझे भी..जाना है.
अंशिका: अब क्या हुआ...तू तो मुझे लेक्चर दे रही थी अभी..चल जा जल्दी से..
वो उतर कर चल दी उसी पेड़ के पीछे. मुझे नहीं मालुम की उसे भी सुसु आया था या नहीं..कहीं वो जान बुझकर , मुझे अपनी गांड के जलवे दिखने के लिए तो वहां नहीं उतरी थी. मैंने अपना चेहरा घुमा कर दूसरी तरफ कर लिया..ताकि अंशिका को ना लगे की मैं उसकी बहन को सुसु करते हुए देख रहा हूँ.
अंशिका: क्या बोल रही थी कन्नू...कुछ बताया तो नहीं तुमना..
मैंने सर घुमा कर उसकी तरफ देखा : तुम भी बच्चो जैसी बात करती हो..मैं कैसे उसे बता देता की तुमने आज सुबह मेरा लंड चूसकर मेरा सारा रस पी लिया..
मेरी बात सुनते ही उसने अपना सर शर्म से झुका लिया, बस इतना ही समय काफी था मुझे कनिष्का की तरफ देखने के लिए. जो अपने जींस उतार कर बैठी हुई आराम से अपनी गांड दर्शन मुझे करवा रही थी..पहले अंशिका और अब कनिष्का..दोनों बहनों की नंगी गांड देखकर तो मेरा बुरा हाल हो चूका था..वो उठी और अपनी जींस को ऊपर किया और अपने ग्लोबस को वापिस अन्दर छुपा लिया..और फिर हमारी तरफ आ गयी..
अन्दर आते ही कनिष्का बोली : दीदी, आपने कभी सोचा भी था की हम दोनों इस तरह से खुले में जाकर सुसु करेंगी..हे हे ..पर टाईम कुछ भी करा सकता है...है न..
अंशिका: हाँ मेरी माँ...अब चुप हो जा..
और उसके बाद हम तीनो हँसते हुए वापिस चल दिए. शाम काफी हो चुकी थी ,मुझे स्नेहा के पास भी जाना था. पुरे दिन बाहर रहने की वजह से मेरे सेल की बेटरी भी ख़तम हो चुकी थी.. मैं आधा घंटा देर से पोहचुंगा वहां. मैंने अंशिका को कहा की वो मुझे किटी मैम के घर छोड़ दे, ताकि मैं स्नेहा को पड़ा सकूँ. उसने कहा ठीक है और मुझे किटी में के घर के बाहर छोड़कर वो दोनों वापिस चली गयी..
मैं ऊपर गया और बेल बजायी...किटी में ने दरवाजा खोला : अरे विशाल तुम, आओ अन्दर आओ...
अन्दर आकर मैं सोफे पर बैठ गया, उसी जगह जहाँ कल शाम को स्नेहा मेरी बाँहों में नंगी थी और मैंने स्नेहा की चूत चाटी थी..मैं हाथ लगा कर सोफे पर लगे स्नेहा की चूत से निकले रस के निशान को रगड़ने लगा..
मैं: वो स्नेहा ..स्नेहा कहाँ है मैम?
किटी मैम: उसने तुम्हे बताया नहीं, मैंने कहा था की फोन कर दे तुम्हे, वो तो आज अपनी सहेली के घर गयी है, उसका बर्थडे है..कॉलेज से सीधा चली गयी थी वो, साथ में अपनी ड्रेस भी ले गयी.
मैं: ओहो...एक्चुयल्ली मेरा फ़ोन डेड हो गया था आज, शायद इसलिए ...बात नहीं हो पायी उससे..ठीक है , कोई बात नहीं, मैं चलता हूँ..
किटी मैम: रुको..बैठो थोड़ी देर..मुझे तुमसे बात करनी है..
मैं: उनकी बात सुनकर डर सा गया..कहीं उन्हें मेरे और स्नेहा के बारे में तो कुछ मालुम नहीं हो गया है..
किटी मैम अन्दर चली गयी, और मेरे लिए पानी लेकर आई. मेरी नजर तो उनके तरबूजों पर ही थी..आज बिना चुन्नी के उनकी छाती पर लटके उन रसीले फलों को देखकर तो मेरा लंड जींस में से टाईट होने लगा. पानी देने के बाद वो मेरे सामने बैठ गयी. वो मुझे घूरे जा रही थी..मानो मन में सोच रही हो की बात कहाँ से शुरू की जाए..
किटी मैम: तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या..?
मैं: उनकी बात सुनकर घबरा गया..आज इनको क्या हो गया है जो मुझसे मेरी गर्ल फ्रेंड के बारे में पूछ रही है..अगर कोई और होता तो उसे शायद आज मैं अंशिका या स्नेहा के बारे में बता भी देता पर इनको तो येही मालुम है की अंशिका मेरी कजन है और स्नेहा तो इनकी सगी बेटी है..
मैं: जी...जी नहीं...
किटी मैम (हँसते हुए): घबराओ मत...मैं किसी से नहीं कहूँगी..
मैं: नहीं मैम, ऐसी कोई बात नहीं है...मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है.
किटी मैम (मेरी आँखों में देखकर बोलते हुए): तभी..तभी तुम ऐसे हो..
मैं: फिर से घबरा गया, ये क्या कह रही है..
मैं: जी..मैं ..मैं कुछ समझा नहीं..
किटी मैम: मेरे कॉलेज में मेरा पाला हर रोज तुम्हारी उम्र के लडको से पड़ता है..और उनकी नजरे देखकर ही मुझे पता चल जाता है की उनके दिमाग में क्या चल रहा है..
मेरा तो सर भन्ना गया..साली मेरे दिमाग का तो एक्सरे करने में नहीं लगी हुई...मेरे माथे पर पसीना आने लगा, मैंने दोबारा से पानी का गिलास उठाया और पूरा खाली कर दिया..
मेरी हालत देखकर वो मुस्कुराने लगी..
किटी: तुम क्यों घबरा रहे हो..मैंने तो अभी कुछ कहा भी नहीं..
मैं नजरे इधर उधर करके उन्हें अवोइड करने की कोशिश करने लगा.
मैं: आप क्या कह रही हैं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैम..
किटी: अच्छा तो फिर सुनो, मैंने तुम्हे कई बार अपने यहाँ घूर कर देखते हुए पाया है...इसका क्या मतलब है.
उन्होंने अपनी भरी पूरी छातियों की तरफ इशारा किया..
मैं: जी..जी...मैं... मैं...नहीं.तो..मैंने तो...नहीं...
मेरी हालत देखकर वो फिर से हंसने लगी..
किटी: हे हे...घबराओ मत...मैं समझ सकती हूँ, मैं कॉलेज में हयूमन साईंस पढ़ाती हूँ...और आज कल के लडको की साईकोलोजी मैं अच्छी तरह से समझती हूँ..जो चीज तुम्हे मिल नहीं सकती उसे देखकर ही मन भर लेते हो...है न..!!
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की आज इन्हें हो क्या गया है...चाहता तो मैं भी कब से था की मैं उनके साथ इस तरह की बाते करूँ पर मुझे नहीं मालुम था की वो भी शायद ऐसा ही चाहती हैं..मैंने मन में सोचा की बेटा विशाल, आज ही मोका है, चांस लेकर देख ले..क्या पता किटी मैम की खीर खाने को मिल जाए. मैंने अब घबराना छोड़ दिया था..मैंने भी हँसते हुए उनकी बातों का जवाब देना शुरू कर दिया.
मैं: वो..वो क्या है न मैम...मेरी कोई गर्लफ्रेंड तो है नहीं..और मेरे सभी दोस्त मुझे हमेशा चिड़ाते रहते हैं...और अपने किस्से सुना सुनाकर मुझे जलाते हैं..इसलिए मेरी नजर अक्सर हर सुन्दर लड़की या औरत पर चली जाती है...इसलिए...इसलिए शायद आपको भी बुरा लगा होगा...मेरे ऐसे देखने से..
मेरे मुंह से सुन्दर औरत वाली बात सुनकर वो थोडा और चोडी हो गयी..
किटी: तो क्या मैं तुम्हे सुन्दर लगती हूँ..
मैं: जी...जी .आप बुरा तो नहीं मानेगी..
किटी: नहीं विशाल...बोलो..जो तुम्हारे मन मैं है बोलो..
मैं (शर्माते हुए): मैम...सुन्दर तो आप है ही...और आपकी ये ...ये ...ब्रेस्ट..और भी शानदार है...इसे कोई भी देख ले तो उसकी नजर ही न हटे इसपर से..प्लीस आप बुरा मत मानना ...और ये सब अंशिका को मत बताना...प्लीस...
किटी: नहीं...मैं बुरा नहीं मान रही...और न ही मैं: ये सब अंशिका को बताउंगी...मुझे मालुम है की वो तुम्हारे ऊपर कैसा रोब चलाती है...पर एक बात बताओ...क्या तुमने आज तक किसी भी लड़की या औरत की ब्रेस्ट को हाथ में लेकर या उन्हें...उन्हें..नंगा नहीं देखा..
उनकी आखिरी बात सुनकर जो हरकत मेरे लंड में हुई, मैं बता नहीं सकता...साली मेरे सामने अपने दोनों बर्तनों को भरकर बैठी हुई मुझसे इस तरह की बात करेगी तो मेरा तो क्या...आप पड़ने वालो का भी लंड पेंट फाड़ कर बाहर आ जाएगा...
मैं: जी...जी नहीं मैम...ऐसा कोई मौका ही नहीं आया आजतक..
मेरी बात सुनकर वो फिर से मुझे घूरने लगी..मानो कुछ तय करने की कोशिश कर रही हो...
किटी: देखो...तुम अगर किसी से कुछ न कहो..तो मैं..तुम्हे आज अपने ब्रेस्ट दिखा सकती हूँ..
मैं (चोंकते हुए): क्या...आप..आप अपनी...अपनी ब्रेस्ट मुझे....वाव...आई मीन...कैसे...और मुझे क्यों...आप दिखाएगी..
किटी: देखो विशाल...तुमने स्नेहा के पापा को तो देखा ही है....उनकी उम्र नहीं रही अब ये सब करने की...मेरी भी कुछ तमन्नाये है...जो उनकी ढलती उम्र की वजह से अधूरी रह गयी है...और इसलिए मुझे जब भी मौका मिलता है...मैं तुम जैसे लडको के साथ कुछ मजे लेकर अपने अरमान पुरे कर लेती हूँ...बस इसलिए...और वैसे भी तुम मेरी बेटी की पढाई में मदद कर रहे हो...इसलिए मुझे भी तो तुम्हे थेंक्स कहने का मौका मिलना चाहिए न..
और वो उठकर मेरी बगल में आकर बैठ गयी...ठीक उसी जगह पर जहाँ उनकी बेटी कल नंगी मेरे साथ बैठी थी..
किटी मैम के शरीर से निकलती आग को मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था...पर बात वहीँ पर आकर अटक जानी थी जहाँ कल अटकी थी...मैं अंशिका की चूत मारे बिना इनकी भी नहीं मार पाउँगा...जब मेरे इस फेसले को वो कुंवारी स्नेहा की चूत ना बदल सकी तो ये चालीस साल की आंटी क्या बदल पाएगी...पर मजे लेने में तो कोई पाबंदी नहीं है ना..और वैसे भी इनके रसीले फलों का तो मैं शुरू से दीवाना रहा हूँ..इसलिए मैंने भी सोच लिया की उनके साथ किस हद तक मुझे मजे लेने है या....देने है.
मैं: तो क्या आप..आप अपने स्टुडेंट्स के साथ भी...ये सब करती है...
किटी: नहीं...सभी के साथ नहीं..सिर्फ उनके साथ जो कॉलेज में नहीं है अब..और जो मुझे पसंद होते हैं..मैं हमेशा थर्ड ईयर स्टुडेंट्स को चूस करती हूँ...क्योंकि कॉलेज में पड़ने वाले अपने दोस्तों से कुछ ना कुछ बोल ही देते हैं...और फिर उसी कॉलेज में पढाना काफी मुश्किल हो जाता है..यु नो..
मैं: उनकी बात समझ गया..पर हमारे कॉलेज में ऐसी कोई टीचर क्यों नहीं है...मैं भी तो अब थर्ड ईयर में हूँ...मुझे तो किसी टीचर ने आजतक कभी भी ऐसा प्रोपोसल नहीं दिया..
किटी मैम आज मुझे अपने सारे राज बताती जा रही थी, थर्ड इयर के कई स्टुडेंट्स से चुदवा चुकी थी वो..तभी तो उनके एवरेस्ट इतने ऊँचे थे..और गांड भी क्या क़यामत ढाने वाली थी...मेरा तो लंड ना जाने कितनी बार खड़ा हो चूका था उनकी मचलती हुई गांड देखकर..
किटी: तुम्हारी तो कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है ना...यानी तुम अभी तक वर्जिन हो...
मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया था किटी मैम ने अब. अब मैं उन्हें क्या बताऊँ, कल इसी सोफे पर उनकी लाडली बेटी स्नेहा की चूत मारने का अच्छा मौका था, पर अंशिका को दिए वाडे की वजह से वो नहीं कर पाया, वर्ना आज ये उनकी वर्जिन वाली बात मेरे दिल पर तीर की तरह नहीं लगती...और अंशिका के साथ भी मैंने लगभग सब कुछ कर लिया था..पर सही जगह की कमी की वजह से उसकी चूत को मारने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था. मुझे सोचते हुए देखकर किटी मैम ने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख दिया..मेरे लंड से कुछ ही दुरी पर. मेरे तो पुरे शरीर में उनके हाथ से निकलती गर्मी की वजह से सुरसुराहट सी होने लगी..
उन्होंने अपने हाथ को वहां धीरे-२ मलते हुए कहा : तो क्या सोचा तुमने...तैयार हो..पहली बार किसी औरत की ब्रेस्ट देखने के लिए..बोलो. अब इतना भी मैं मारा नहीं जा रहा उनकी ब्रेस्ट देखने के लिए...उनकी चाहे जितनी बड़ी और भरी हुई क्यों ना हो..पर अंशिका की ब्रेस्ट से उनका कोई मुकाबला नहीं है...और दुसरे नंबर पर मैं स्नेहा को रखूँगा...क्योंकि उसके छोटे-२ संतरे और उनपर लगे अंगूर जैसे निप्पल मुझे काफी पसंद आये थे...अब इन्हें कौन समझाए की मैं लंड से कुंवारा हूँ ...चूत मारने के अलावा मैं: सब कुछ कर चूका हूँ..पर इनसे ये सब छुपा कर रखना पड़ेगा..तभी तो वो मुझे अच्छी टीचर की तरह से ये सेक्स का चेप्टर पढ़ाएंगी ..
मैं: जी...हां...क्यों नहीं...
मेरा इतना कहने की देर थी की उन्होंने अपने ब्लाउस के हूक खोलने शुरू कर दिए...मैं फटी आँखों से उन बड़े- २ देत्यकार तरबूजों को बेपर्दा होते हुए देख रहा था. सारे हूक खुलने के बाद उन्होंने गहरी सांस ली..और अब उनकी व्हाईट कलर की लेंस वाली ब्रा में केद दो बड़े से जानवर मुझे हिलते हुए नजर आने लगे..ब्लाउस में होने की वजह से वो काफी तंग महसूस कर रहे थे..खुली जगह मिलते ही उन्होंने अपने आप को थोडा और फेला लिया..पर अभी भी एक और बाधा थी जो उन्हें पूरी तरह से सांस नहीं लेने दे रही थी..और वो थी उनकी सेक्सी ब्रा. अपना ब्लाउस उतार कर उन्होंने मेरी तरफ उछाल दिया..मैं उसमे से आती उनके पसीने की महक को सूंघकर मदहोश सा होने लगा.
किटी: केसे लगे..ये तुम्हे..?
मैं: इतने करीब से पहली बार इतने बड़े मुम्मे देख रहा था..मेरी आँखों के सामने सिर्फ वोही थे, और कुछ भी मेरी आँखों के एंगल में आ ही नहीं पा रहा था..
मैं: वाव..मैम...दे आर बियुटिफुल...कैन ..कैन आई टच देम..
किटी: या या...श्योर..
और वो आगे होकर मुझसे सट कर बैठ गयी... मैंने कांपते हाथों से अपने हाथ ऊपर करके उनके दोनों मुम्मो पर रख दिए...ऊऊओ कितने सोफ्ट थे...वो दोनों.
अह्ह्ह्हह्ह , किटी मैम ने एक जोरदार सिसकारी मारी और मेरा मुंह पकड़कर अपने मुम्मो पर दबा दिया. ऊओह्ह्ह्ह विशाल्ल्ल्ल .....म्मम्मम......येस्स्स्स.....म्मम्म.....
मेरा तो दम हो घुटने लगा उनकी दोनों ब्रेस्ट के बीच में फंसकर. पर मजा भी बड़ा आ रहा था...इतने गद्देदार मुम्मे तो मैंने पहली बार देखे थे, और किटी मैम पर तो जैसे कोई भूतनी चढ़ गयी थी...मुझे किसी बच्चे की तरह से अपने शरीर से दबा कर ऐसे रगड़ रही थी की मुझे उनकी ब्रा के कपडे की रगड़ की वजह से मेरे चेहरे पर जलन सी होने लगी थी..
मैं पीछे हो गया..
किटी: क्या हुआ...आओ ना...
मैं: वो मैम...ये ..आपकी ब्रा ..मेरे चेहरे पर..चुभ रही है..
किटी मैम: ओह...ये..
और इस बार उन्होंने हूक खोलने की जेहमत भी नहीं उठाई और खींच कर अपनी ब्रा को अपने शरीर से अलग कर दिया और अपनी दिसायीनर ब्रा को बर्बाद कर दिया...पर इसकी उन्हें कोई फिकर नहीं थी..क्योंकि सेक्स की आग जो उनके शरीर में जल रही थी उसके सामने ऐसी ब्रा की कोई कीमत नहीं होती और उनकी ब्रा के हटते ही उनके दोनों मस्ताने, रसीले, मोटे-ताजे, तरबूज मेरी आँखों के सामने झूल गए...
मैं: वाव...आई कांट बिलीव ईट ...दे आर सो लोव्ली...
किटी (गहरी सांस लेते हुए): देन...सक देम...
और उन्होंने फिर से मेरे सर को पकड़ कर अपनी छाती पर दे पारा और मेरा मुंह सीधा उनके दांये मुम्मे के निप्पल पर जा लगा ...और मैं उसे चूसने लगा...
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......विशाल्ल्ल्ल....यु आर सकिंग वैरी वेल्ल....या.....कीप ईट....लाईक दिस....या.....ऊऊऊ माय गोड...म्मम्मम
उन्होंने मेरे मुंह को खींचकर अपने स्तन से अलग किया...मेरा उन्हें छोड़ने का मन भी नहीं था...क्योंकि वो बड़े टेस्टी से लग रहे थे...खींचने की वजह से उनका निप्पल मेरे दांतों के बीच फंसकर रह गया...और उनके एक तेज झटके की वजह से वो पक की आवाज के साथ बाहर निकल गया...
अह्ह्ह्ह......शायद उन्हें दर्द हुआ होगा..
उन्होंने मेरे चेहरे को अलग किया और मेरी तरफ ऐसी भूखी नजरों से देखा तो मुझे लगा की कहीं मैंने उन्हें ज्यादा तेज तो नहीं चूस लिया...पर मेरा अंदाजा गलत निकला, मेरे चूसने की वजह से उनके अन्दर की आग और भड़क गयी थी...और अगले ही पल कुछ देर तक घूरने के बाद, उन्होंने मेरे होंठों को किसी भूखी लोमड़ी की तरह से चुसना शुरू कर दिया...
अह्ह्हह्ह ....पुच....पुच.....ऊऊओ विशाल.....म्मम्मम.....यु....आर वैरी टेस्टी.....अह्ह्हह्ह.....पुच ...पुच.....
वो अपने गीले मुंह से मुझे चूमती जा रही थी और मेरी सकिंग की तारीफ करती जा रही थी...
मैंने भी उनके रसीले और गीले होंठों को चुसना और चबाना शुरू कर दिया..और मेरे दोनों हाथ अब उनके दोनों मुम्मो पर थे...उनके दोनों चोकलेट कलर के निप्पल मेरे हाथों में किसी शूल की तरह से चुभ रहे थे..मैंने उन्हें अपनी दोनों हाथों की उँगलियों से मसलना शुरू कर दिया..जिसकी वजह से होने वाली सुरसुराहट की वजह से किटी मैम ने मुझे और तेजी से चुसना चालू कर दिया...
अब उनका एक हाथ सीधा मेरे लंड के ऊपर आकर टिक गया...मेरी तो जान ही निकल गयी जब उन्होंने उसे अपनी मुट्ठी में दबाकर भींच दिया...क्योंकि साथ में मेरी बाल्स भी आ गयी थी उनके हाथ में..
अह्ह्ह्हह्ह....धीरे मैम....
किटी: निकालो...इसे निकालो विशाल...जल्दी...मैं इसे देखना चाहती हूँ.....जल्दी करो...
मैं: किसी आज्ञाकारी स्टुडेंट की तरह से उठ खड़ा हुआ ...और उन्होंने मेरी जींस की बेल्ट खोल कर उसे नीचे कर दिया...मेरे जोक्की के ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाने लगी...और अगले ही पल उसे भी नीचे कर दिया..
मेरा लंड उन्हें सलामी देने लगा..
किटी: इट्स लवली....एंड बिग्ग...
उसे देखकर उन्होंने अपने होंठों पर जीभ फेरी और फिर मेरे लंड के सिरे से निकलते रस को चाटकर चटखारा मारा और फिर पूरा अन्दर डाल लिया...
मैंने उनके मुंह को पकड़कर धक्के मारना शुरू कर दिया...उनके चूसने में और अंशिका और स्नेहा के चूसने में जमीन आसमान का अंतर था...वो अपने पुरे एक्सपेरिएंस से चूस रही थी...जिसकी वजह से मैं जल्दी ही झड़ने के करीब पहुँच गया...और अगले ही पल मेरा रस निकल कर उनके मुंह में जाने लगा....
आआआआअह्ह ऊऊऊओ ,.......म्मम्म......ऊऊऊ....मैम.......आआअह्ह्ह........... वो पूरा रस पी गयी..
मेरी टाँगे कमजोरी के कारण कांपने लगी और मैं वहीँ सोफे पर लुडक गया...
तभी बाहर दरवाजे की घंटी बज उठी. हम दोनों के चेहरे पर भय के भाव आ गए..
किटी: इस समय कौन आ गया...
उन्होंने जल्दी से अपने कपडे पहने और बाहर की और गयी...."आई बाबा...कौन है..."
बाहर उनके पति थे. वो अन्दर आये और मुझे घूर कर देखने लगे..
किटी: ये स्नेहा का इन्तजार कर रहा है...
वो बिना कुछ बोले अन्दर चले गए...वो जानते तो थे की मैं स्नेहा को पड़ाने आता हूँ..पर पता नहीं क्यों, मुझे लगा की शायद उन्हें कुछ शक सा हो गया है...
जो भी हो...मैंने जल्दी से किटी मैम को बाय बोला और बाहर की और चल दिया...
भगवान् का शुक्र किया की आज उनके पति की वजह से मेरी वर्जिनिटी बच गयी...वर्ना आज मेरा ये किटी मैम क्या हाल करती...पता नहीं ..