25-09-2020, 11:57 AM
(This post was last modified: 25-09-2020, 12:25 PM by sanskari_shikha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
रात को खाना खाकर मैं ऊपर छत्त पर जाकर टहलने लगा, मुझे सारे दिन की बातें याद आ रही थी, आज अंशिका ने मेरा लंड चूसा और अपनी चूत चुस्वयी और शाम को स्नेहा के साथ भी कितना मजा आया.. खासकर वो लम्हा जब स्नेहा मेरे सामने नंगी लेटी हुई थी और मैंने उसकी चूत नहीं मारी, सिर्फ अंशिका को दिए वादे की वजह से..
मैंने अंशिका को फोन मिलाया
मैं: हाय...क्या कर रही हो?
अंशिका: कुछ ख़ास नहीं, बताया था न की छोटी बहन कनिष्का आई हुई है, बस उसी के साथ बैठी हुई गप्पे मार रही थी..
मैं: अच्छा जी, क्या बातें हो रही हैं दोनों बहनों में.
अंशिका: ये समझ लो की तुम्हारी ही बात कर रहे थे.
मैं: मेरी बात?? तो तुमने उसे मेरे बारे में सब बता दिया..
अंशिका (हँसते हुए): अरे नहीं, ऐसे ही बात हो रही थी की कोई बॉय फ्रेंड है या नहीं..वो अपनी बता रही थी और मैं अपनी..
मैं: तो क्या उसका भी बॉय फ्रेंड है ?
अंशिका: हाँ है...पर हमारी तरह उनमे कुछ नहीं हुआ है..वही सब बता रही थी वो की कैसे उसका बॉय फ्रेंड हर समय उसे छुने के लिए और चूमने के लिए मिन्नतें करता रहता है..पर कनिष्का उसे मना करती रहती है. उसे इन सब बातों से बड़ा डर लगता है, मैंने ही उसे ये सब ना करने के लिए कहा हुआ है..
मैं: यार, क्यों उसके आशिक को तरसा रही हो अपनी हुकुमत अपनी बहन के ऊपर चलाकर, मजे लेने दो न दोनों को..प्रोब्लम क्या है..
अंशिका: प्रोब्लम ये है की कन्नू अभी नासमझ है, और उसकी उम्र भी कम है, उसे अच्छे बुरे की पहचान नहीं है, कोई उसका फायदा उठा कर निकल जाए, मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहती..आई लव माय सिस्टर वैरी मच....और हर कोई तुम्हारी तरह नहीं होता..जो अपनी फ्रेंड का इतना ध्यान रखे..
मैं: अगर कहो तो तुम्हारे साथ-साथ मैं उसका भी ध्यान रख लेता हूँ..
अंशिका (थोडा गुस्से में): मैंने तुम्हे पहले भी कहा है न, मेरी बहन के बारे में गलत मत सोचना..
मैं: यार तुम भी अजीब हो, मान लो उसके फ्रेंड की जगह अगर मैं होता, तब भी क्या तुम अपनी बहन को मुझसे दूर रहने के लिए कहती..
अंशिका: नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारा नेचर जानती हूँ, तुम उसका गलत फायेदा नहीं उठाओगे..
मैं: येही तो मैं कह रहा हूँ, मैं उसका गलत फायेदा नहीं उठाऊंगा, सिर्फ दोस्ती और कुछ नहीं..
अंशिका (खीजते हुए): अब तुम यहाँ मुझे छोड़कर मेरी बहन से फ्रेंडशिप करने की सोच रहे हो क्या ?
मैं समझ गया की बात तो बन सकती है पर अभी अंशिका से ये सब बातें करने का कोई फायदा नहीं है, कही वो भी हाथ से ना निकल जाए..
मैं: अरे यार , तुम तो बुरा मान गयी, ऐसा कुछ नहीं है..चलो छोड़ो इन सब बातों को, ये बताओ की तुम उसे मेरे बारे में क्या कह रही थी..
अंशिका (शर्माते हुए): यही की बड़ा प्यारा दोस्त है, मिलते भी हैं हम, और कभी-कभी किस्स वगेरह भी कर लेते हैं..
मैंने मन ही मन सोचा की सत्यानाश, ये सब बताने की क्या जरुरत थी, वो तो अब मुझे लाईन देगी ही नहीं..चलो कोई बात नहीं..
मैं: और वो क्या बोली...
अंशिका: बोलना क्या है, बस मुस्कुराती रही..और कुछ नहीं..
मैं: और तुमने आज दोपहर वाली बात भी बताई उसे, बोंटे पार्क वाली..
अंशिका: पागल हो गए हो क्या, मैंने उसे सिर्फ ये कहा है की कभी कभार किस्सेस और हग्स करते हैं, और कुछ नहीं...तुम भी कैसी बाते करते हो, मैं उसे अपने बारे में इतनी अन्दर की बातें क्यों बताउंगी भला..
मैं: अरे उसे भी तो पता चले की उसकी बहन कितनी बड़ी ठरकी है...जिसे आजकल पब्लिक प्लेस में भी नंगा होने में शर्म नहीं आती...और उसकी चूत में रोज आग लगी होती है, जिसे मैं ही बुझा सकता हूँ, पर मौका नहीं मिलता...बोल देती ये सब भी.
अंशिका (शर्माते हुए): तुम न..सच में पागल हो..वैसे भी मुझे दोपहर से कुछ हो रहा है, मेरी चूत पर तुम्हारे होंठो का एहसास अभी तक है, सच में, आज जितना मजा कभी नहीं आया, कहाँ से सीखा इतना मजा देना तुमने..
मैं: जब सामने तुम्हारी जैसी हसीन चूत हो तो ये सब अपने आप आ जाता है, वैसे एक बात बताओ, अगर वो हवलदार ना आता तो क्या तुम मुझसे वहीँ पार्क में चुदवा भी लेती क्या..?
अंशिका: शायद...
मैं (हैरानी से) : पर तुमने तो कहा था की सही मौका और सही जगह का इन्तजार करना होगा..
अंशिका: हम लड़कियों की हर बात का ऐतबार मत किया करो, हम तो ऐसी ही होती है, आज कुछ और कल कुछ और..हे हे..
मैं: समझ गया, अब देखना, अगली बार जहाँ भी मौका मिलेगा, चोद दूंगा तुम्हे..
अंशिका: चोद लेना, मैं तो आज भी तैयार थी, पर तुम्हारी किस्मत में शायद थोडा और इन्तजार लिखा है..
मैं: इन्तजार की माँ की चूत, कल ही लो, कल दोबारा चलेंगे उसी पार्क में, और मैं हवलदार को भी पहले से ही पैसे देकर बोल दूंगा की उस तरफ ना आये, ठीक है न..
अंशिका: तुम बड़ी जल्दी एक्साइटेड हो जाते हो, पूरी बात तो सुनते नहीं मेरी...मैंने कहा था न की कनिष्का के एडमिशन के लिए जाना है दुसरे कॉलेज में, तो कल से मैं तीन दिनों की छुट्टी पर हूँ, उसके साथ चार पांच कॉलेज जाना है, और फार्मस भरने है.
मैं: यार , तुम भी न...वो अकेली नहीं जा सकती क्या..
अंशिका: नहीं..बिलकुल नहीं, अगर वो जाना भी चाहती तो नहीं जाने देती..उसे यहाँ के रास्ते सही ढंग से नहीं मालुम..
मैं: और जब वो कॉलेज जायेगी तो उसे रोज छोड़ने और लेने भी जाया करोगी क्या..
अंशिका: तुम मेरी हर बात को मजाक में क्यों लेते हो...मैं ज्यादा से ज्यादा , उसकी मदद करना चाहती हूँ...
मैं: ठीक है फिर, जब फुर्सत मिल जाए तो मुहे फोन भी कर लेना..
और मैंने गुस्से में फोन रख दिया. उसने उसके बाद मुझे कई बार फ़ोन किया पर मैंने जान बुझकर उठाया नहीं, मुझे मालुम था की उसे थोडा बहुत सबक सिखाना ही पड़ेगा, नहीं तो वो समझेगी की उसकी कही हुई हर बात को मैं इसलिए मान लेता हूँ की मैं उसकी चूत मारना चाहता हूँ, लड़कियों को कभी-कभी थोड़ी बहुत डोस देनी पड़ती है. मैंने फोन सायलेंट मोड पर रख दिया और सो गया.
अगली सुबह जब उठा तो मेरे सेल पर 27 मिस काल्स थी अंशिका की, आखिरी कॉल रात के २ बजे की थी. मैं समझ गया की मेरा पासा सही पड़ा है. मैं नहाने के लिए अन्दर चला गया, पापा ऑफिस जा चुके थे, मम्मी नाश्ता बना रही थी. मैं नहा कर निकला तो बेल बजी, मैंने टावल पहना हुआ था, इसलिए मैंने वहीँ से चिल्ला कर मम्मी को दरवाजा खोलने को कहा. मैं अलमारी से अपने कपडे निकाल कर प्रेस करने लगा, तभी पीछे से आवाज आई "गुड मोर्निंग..." मैंने पीछे मुड कर देखा तो हैरान रह गया, मेरे सामने अंशिका खड़ी थी. मैं अंशिका को अपने सामने देखकर हैरान रह गया..मैंने सिर्फ एक बार ही उसे अपना घर बाहर से ही दिखाया था, और वो आज मेरे घर आ भी गयी और मेरे कमरे में भी...मम्मी ने उसे अन्दर कैसे आने दिया..
मैं: अंशिका......!!!! तुम..तुम यहाँ कैसे..?
अंशिका (कातिल मुस्कान फेंककर से मेरी तरफ आते हुए) : पहले मुझे ये बताओ, तुमने मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठाया...मेरी कल वाली बात से इतने नाराज हो गए क्या..हूँ...बोलो...बोलो न..
वो कहती हुई बिलकुल मेरे पास आकर खड़ी हो गयी, मैं तो सिर्फ टावल लपेट कर खड़ा हुआ अपनी शर्ट प्रेस कर रहा था, मुझे क्या मालुम था की वो इस तरह से मेरे कमरे में आ जायेगी, मेरे कमरे में आने के लिए तो मम्मी भी बाहर से आवाज लगा कर अन्दर आती है, ये तो धड़ल्ले से अंदर चली आई. वो मेरे बिलकुल सामने आकर खड़ी हो गयी, उसकी साँसे मेरी साँसों से टकरा रही थी, उसके शरीर से निकलती गर्मी मुझे साफ़ महसूस हो रही थी, और मेरे पीछे खड़ी हुई प्रेस से निकलती गर्मी मुझे अपनी पीठ के ऊपर महसूस होने लगी...मैंने झट से पलट कर प्रेस को बंद कर दिया..
मैं: वो...वो. तुमने बात ही ऐसी करी थी की मुझे बुरा लगा...और उसके बाद मैंने सेल को सायलेंट मोड पर कर दिया..
अंशिका (मेरी गर्दन के दोनों तरफ अपने पंजे जमाते हुए , मेरी आँखों में देखते हुए) : लव मी...हेट मी....बट नेवर इग्नोर मी...अंडरस्टेंड ...
मुझे उसकी आवाज में एक तरह कठोरता थी...पर अगले ही पल उसके होंठो पर मुस्कान तेर गयी...और बोली " आई एम् सॉरी फॉर येस्टरडे ..प्लीस मुझे माफ़ कर दो...और ये कहते हुए उसने अपने होंठ मुझपर जमा दिए और उन्हें किसी पागल बिल्ली की तरह से चूसने लगी. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था...मुझे सबसे ज्यादा चिंता तो मम्मी की हो रही थी, जो बाहर थी, अगर उन्होंने अंशिका को अंदर आने दिया है तो वो भी कभी भी अंदर आ सकती है...मैंने उसकी किस को तोड़ते हुए उसे पीछे किया...उसकी आँखों में हेरत के भाव थे, मैंने पहली बार ऐसा किया था..
मैं: अंशिका....अंशिका...प्लीस..ये क्या कर रही हो...मम्मी बाहर ही है...वो अंदर आ जाएँगी..क्यों मुझे मरवाने के काम कर रही हो...
अंशिका के चूमने की वजह से मेरा लंड तन कर खड़ा हो चूका था, मैंने टावल के नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था..इसलिए मेरे टावल के सामने की तरफ एक टेंट सा बना हुआ था, जिसे देखकर अंशिका होले-होले मुस्कुराने लगी. मैंने भी उसकी नजरों का पीछा करते हुए जब नीचे देखा तो तब मुझे पता चला की कमीना लंड खड़ा हो चूका है...
अंशिका: तुम अपनी मम्मी की चिंता मत करो, वो बाहर बैठकर मेरी बहन कनिष्का के साथ गप्पे मार रही है.
मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया, वो अपनी बहन को लेकर आई थी मेरे घर..
मैं: क्या !! तुम्हारी बहन भी आई है...तुमने क्या कहा उससे?
अंशिका: मैंने उसे तुम्हारे बारे में तो कल ही बता दिया था, और जब उसने मेरा मायूस चेहरा देखा तो वो मुझसे बोली की चलो पहले तुम्हारे घर ही चलते हैं..तुमसे मिलने, और जब हम यहाँ आये तो तुम्हारी मम्मी ने कहा की तुम अभी अंदर ही हो, मैंने उनसे पूछा की क्या मैं अंदर जाकर तुमसे मिल सकती हूँ तो उन्होंने मना नहीं किया, मैंने कनिष्का को इशारा करके कहा की तुम्हारी मम्मी को बातों में लगाये रखे..तो इसलिए तुम अपनी मम्मी की चिंता मत करो...सिर्फ अपने नीचे खड़े इस लंड की चिंता करो..जो तुम्हारे बस में नहीं है, और मुझे देखते ही खड़ा हो गया है..
मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया, वो बड़े आराम से ये सब बोले जा रही थी, और उसे मेरी मम्मी के अंदर आने का भी डर नहीं था, उसे पक्का विशवास था की उसकी बहन बाहर सब संभाल लेगी, पर ये करना क्या चाहती है..वो पिछले कई दिनों से पब्लिक प्लेसेस में आधे अधूरे सेक्स कर रही थी, जिसकी वजह से उसकी झिझक ख़त्म सी हो गयी थी, पर ये कोई पब्लिक प्लेस नहीं है, ये मेरा घर है, बाहर ये सब करने में मुझे कोई डर नहीं लगता था, पर अपने ही घर में मेरी गांड फट रही थी...और दूसरी तरफ अंशिका को तो जैसे इन सबमे एक अनोखा मजा आ रहा था. मैं आज उसकी ये हिम्मत देखकर सच में उसकी जवानी की आग का कायल हो गया.
मैं: तुम समझा करो अंशिका..ये सब यहाँ करना ठीक नहीं है... मैं अब तुमसे गुस्सा नहीं हूँ...चलो बाहर चलते हैं..
ये कहकर मैंने अपनी शर्ट उठाई और पहनने लगा..पर अंशिका ने झपटकर उसे छीन लिया..
अंशिका: तुम डर क्यों रहे हो, तुमने भी तो मेरे साथ कई बार ऐसी सिचुअशन में मजे लिए हैं...आज मैं भी तो वोही कर रही हूँ..
और ये कहते हुए उसने आगे बढकर मेरे टावल के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया..
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अंशिका......म्मम्म.....
अंशिका: और मैंने सोचा की अगर मैं पर्सनली आकर तुमसे "सॉरी" बोलूंगी तो तुम मुझे जरुर माफ़ कर दोगे...बोलो..करोगे न..
और उसने मेरे लंड को धीरे-धीरे दबाना शुरू कर दिया. मेरी तो हालत ही खराब हो गयी, गीले टावल के ऊपर से उसके हाथ मेरे लंड को पकडे हुए थे, और मेरा लंड एकदम स्टील जैसा कठोर हो चूका था, मुझमे सोचने समझने की हिम्मत ही नहीं थी...एक मन तो कर रहा था की इसे अपने बिस्तर पर पटकू और नंगा करके यहीं पेल दूँ, पर अगले ही पल बाहर बैठी उसकी बहन और अपनी मम्मी के बारे में सोचकर मुझे पसीना आने लगा..
मैं: रुको...एक मिनट...मुझे बाहर तो देखने दो की वो दोनों क्या कर रहे हैं..
अंशिका ने मुस्कुराते हुए मुझे जाने का रास्ता दे दिया. मैं लगभग भागते हुए दरवाजे के पास गया और उसे थोडा सा खोलकर बाहर की और देखा..मेरे कमरे और ड्राईंग रूम के बीच एक स्टोर रूम और बाथरूम है, और उसके बाड़ बीच में में सोफे के ऊपर बैठी हुई कनिष्का को जब मैंने देखा तो देखता ही रह गया..एकदम परी जैसी थी वो, पिंक कलर के सूट में वो बार्बी की गुडिया जैसी लग रही थी...एकदम गोरी, छाती भी पूरी भरी हुई, और बाल कंधे से थोडा नीचे तक थे..मैं उसे निहार रहा था की तभी मेरे पीछे से अंशिका के हाथ आगे की तरफ आकर मुझसे लिपट गए और उसके सोफ्ट सी ब्रेस्ट मेरी नंगी कमर के ऊपर रगड़ खाने लगी..अंशिका ने मेरे दोनों निप्पल पकड़कर उन्हें मसलना शुरू कर दिया, मुझे थोड़ी गुदगुदी सी हो रही थी, और साथ ही साथ उसने अपने गीले होंठो से मेरी पीठ पर अनगिनत किस्सेस करनी शुरू कर दी.
ड्राईंग रूम के दूसरी तरफ किचन थी..मम्मी वहां खड़ी हुई चाय बना रही थी..और साथ ही साथ कनिष्का से कुछ बाते भी कर रही थी, कनिष्का का ध्यान मेरे कमरे की तरफ ही था, उसकी बहन जो अंदर थी, पर वो अपना काम अच्छी तरह से कर रही थी, मम्मी से गप्पे लगाकर उन्हें उलझाये रखने का..वो क्या बात कर रहे थे, मुझे सुनाई तो नहीं दे रहा था, पर बीच-बीच में दोनों के हंसने की आवाजें जरुर सुनाई दे रही थी..कनिष्का जब भी मेरे कमरे की तरफ देखती तो मुझे डर लगने लगता की कहीं उसे मैं खड़ा हुआ तो दिखाई नहीं दे रहा, पर वो काफी दूर थी, और इतनी दुरी से दरवाजें में थोड़ी सी दरार को देखना लगभग नामुमकिन था..मुझे भी अब इस नए अड्वेंचर में मजा आने लगा था..खासकर अंशिका के "सॉरी" बोलने के तरीके पर.
अब अंशिका का हाथ मेरी छाती से फिसलता हुआ नीचे की और आने लगा..और उसने फिर से मेरा लंड पकड़ लिया..और अगले ही पल दुसरे हाथ से उसने मेरा टावल खोल दिया..टावल मेरी टांगो के बीच आकर गिर गया और मेरा लंड अंशिका के हाथ में आ गया.
मैं अपने कमरे के दरवाजे में अब नंगा खड़ा हुआ था, और बाहर मेरी मम्मी और उसकी बहन थी, पर उसे इन बातों से जैसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था...वो तो बस "सॉरी" बोलने में लगी हुई थी..मैं तो नंगा था पर मुझे मालुम था की वो यहाँ नंगी नहीं हो सकती थी..पर अब मेरे जिस्म में भी अजीब सी तरंगे उठने लगी थी, मैं एकदम से उसकी तरफ घुमा और उसके होंठों को अपने होंठों से जकड कर जोरों से चूसने लगा...उसके गीले मुंह से निकलता सारा रस मेरे मुंह में जाने लगा, उसके होंठों का नमपन आज कुछ ज्यादा ही मीठा लग रहा था..मेरे दोनों हाथ उसकी छाती पर जम गए और उन्हें मसलने लगे, सूट और ब्रा पहनने के बावजूद उसके खड़े हुए निप्पल मुझे साफ़ महसूस हो रहे थे.
अंशिका भी हलकी-हलकी आवाजें निकलती हुई अपने शरीर को मेरे नंगे बदन से रगड़ रही थी..उसके दोनों हाथ मेरे लंड के ऊपर जमे हुए थे..और वो उन्हें काफी तेजी से आगे-पीछे कर रही थी. मुझे लगा की अगर उसने एक-दो और झटके दिए तो मैं तो गया काम से...मैंने झट से उसके कंधे पर दबाव डाला और उसे नीचे बिठा दिया...और अगले ही पल मेरा पूरा लंड उसके मुंह के अंदर था..
अह्ह्ह्हह्ह .... यस बेबी ...सक मी....सक मी....हार्ड.... मैंने दिवार से टेक लगाकर नीचे पंजो के बल बैठी अंशिका के मुंह में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया..और सर घुमाकर बाहर की और देखा कहीं कोई आ तो नहीं रहा..
मम्मी चाय बनाकर ले आई थी..और उन्होंने मुझे बाहर से ही आवाज लगायी..."विशाल्ल्ल....ओ विशाल...बेटा बाहर आओ, चाय बन चुकी है.."
मेरे लंड से एकदम से में ऐसा प्रेशर बन गया की किसी भी पल बाड़ आ सकती थी.....मैं वहीँ दरवाजे में खड़ा हुआ चिल्लाया..."कमिंग...आई एम् कमिंग....." और अगले ही पल मेरे लंड से पिचकारियाँ निकल-निकल कर अंशिका के मुंह में जाने लगी. अब बेचारी कनिष्का और मम्मी को थोड़े ही मालुम था की मैंने "कमिंग" किसलिए बोला था. अंशिका ने मेरा सारा माल चूस-चूसकर पी लिया..और ऊपर की तरफ देखकर अपने उसी अंदाज में बोली...यम्मी...
मैंने उसे जल्दी से बाहर जाने को कहा, वो अपने रुमाल से चेहरा साफ़ करती हुई बाहर की और चली गयी. बाहर जाकर उसकी आवाज मुझे सुनाई दी "आंटी...विशाल आ रहा है बस..."
और वो बैठकर अपनी बहन से खुसर फुसर करने लगी. मैंने बिजली की तेजी से कपडे पहने और एक मिनट के अंदर ही मैं भी बाहर आ गया. कनिष्का ने जब मुझे देखा तो वो मंत्रमुग्ध सी मुझे देखती हुई उठ खड़ी हुई..
अंशिका: विशाल, ये है मेरी सिस्टर..कनिष्का, इसी के एडमिशन के लिए मैंने तुमसे बात करी थी..
मैं: भी कनिष्का की सुन्दरता देखकर अपनी सुध बुध खो सा बैठा..अंशिका की बात सुनकर मैं थोडा मुस्कुराया और कनिष्का की तरफ हाथ बढाकर कहा "हाय..कनिष्का, हाव आर यु...?"
कनिष्का ने भी अपना हाथ मुझे थमा दिया, बिलकुल रुई जैसा था उसका एहसास.....मैंने उसे छुआ तो मेरे पुरे बदन में करंट सा लग गया, जिसे शायद कनिष्का ने भी महसूस किया होगा.
मैंने उन दोनों को चाय ऑफर की और मैं किचन में खड़ी हुई मम्मी के पास गया, जो अजीब सी नजरों से मुझे घूरे जा रही थी..
मम्मी: तेरी फ्रेंड्स भी है, तुने तो कभी बताया भी नहीं..
मैं: मम्मी, ये क्या बताने की बातें होती हैं...ये तो बस ऐसे ही..
मम्मी से मेरी काफी अच्छी बनती है, वो अक्सर मुझसे मेरे कॉलेज के बारे में और मेरी गर्ल फ्रेंड्स के बारे में पूछती रहती है..पर मैं उनसे शर्म की वजह से कुछ नहीं बोल पाता..और वैसे भी आजकल के हर माँ बाप जानते है की उनके बच्चे अब ये सब नहीं करेंगे तो क्या उनकी उम्र में जाकर करेंगे..
मम्मी: वैसे दोनों बहने हैं काफी सुन्दर..तुझे कौनसी पसंद है..
मैं: मोम...आप भी ना...ऐसा कुछ नहीं है..
मम्मी : कुछ तो है बेटा, मैंने भी पूरी दुनिया देखी है, कोई लड़की पहली ही बार में लड़के के बेडरूम में नहीं चली जाती...खासकर जब उसकी मम्मी बैठि हो..
मैं: मोम..आजकल ये सब चलता है, आपके ज़माने में ऐसा नहीं होता होगा, और आपको ये सब अच्छा नहीं लगता इसलिए मेरी फ्रेंड्स घर नहीं आती, और ये आई तो अंदर भी चली गयी, इसमें कौनसी बड़ी बात है...वैसे भी ये अंशिका अपनी बहन के एडमिशन को लेकर काफी परेशान है, और मेरी एक-दो कॉलेज में अच्छी पहचान है, बस तभी ये उसे लेकर आई है, और आप है की पाता नहीं क्या-क्या सोच रही हो..
मम्मी : ठीक है..ठीक है, नाराज क्यों होता है, मैं तो बस तेरी टांग खींच रही थी..हा हा .. चल बाहर चल, नहीं तो वो दोनों समझेंगी की मैं उन दोनों में से किसी को अपनी बहु बनाने के लिए तुझसे लडाई कर रही हूँ..
मैं और मम्मी हँसते हुए बाहर आ गए..
फिर सबने चाय पी, मैंने हल्का सा नाश्ता किया और मैं उन दोनों के साथ बाहर आ गया.
अंशिका आज अपने पापा की कार लेकर आई थी, मारुती स्विफ्ट. उसने चाभी मेरी तरफ फेंकी और खुद आगे जाकर बैठ गयी, कनिष्का पीछे जाकर बेठी और मैंने कार चलानी शुरू कर दी.
मैंने अंशिका को फोन मिलाया
मैं: हाय...क्या कर रही हो?
अंशिका: कुछ ख़ास नहीं, बताया था न की छोटी बहन कनिष्का आई हुई है, बस उसी के साथ बैठी हुई गप्पे मार रही थी..
मैं: अच्छा जी, क्या बातें हो रही हैं दोनों बहनों में.
अंशिका: ये समझ लो की तुम्हारी ही बात कर रहे थे.
मैं: मेरी बात?? तो तुमने उसे मेरे बारे में सब बता दिया..
अंशिका (हँसते हुए): अरे नहीं, ऐसे ही बात हो रही थी की कोई बॉय फ्रेंड है या नहीं..वो अपनी बता रही थी और मैं अपनी..
मैं: तो क्या उसका भी बॉय फ्रेंड है ?
अंशिका: हाँ है...पर हमारी तरह उनमे कुछ नहीं हुआ है..वही सब बता रही थी वो की कैसे उसका बॉय फ्रेंड हर समय उसे छुने के लिए और चूमने के लिए मिन्नतें करता रहता है..पर कनिष्का उसे मना करती रहती है. उसे इन सब बातों से बड़ा डर लगता है, मैंने ही उसे ये सब ना करने के लिए कहा हुआ है..
मैं: यार, क्यों उसके आशिक को तरसा रही हो अपनी हुकुमत अपनी बहन के ऊपर चलाकर, मजे लेने दो न दोनों को..प्रोब्लम क्या है..
अंशिका: प्रोब्लम ये है की कन्नू अभी नासमझ है, और उसकी उम्र भी कम है, उसे अच्छे बुरे की पहचान नहीं है, कोई उसका फायदा उठा कर निकल जाए, मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहती..आई लव माय सिस्टर वैरी मच....और हर कोई तुम्हारी तरह नहीं होता..जो अपनी फ्रेंड का इतना ध्यान रखे..
मैं: अगर कहो तो तुम्हारे साथ-साथ मैं उसका भी ध्यान रख लेता हूँ..
अंशिका (थोडा गुस्से में): मैंने तुम्हे पहले भी कहा है न, मेरी बहन के बारे में गलत मत सोचना..
मैं: यार तुम भी अजीब हो, मान लो उसके फ्रेंड की जगह अगर मैं होता, तब भी क्या तुम अपनी बहन को मुझसे दूर रहने के लिए कहती..
अंशिका: नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारा नेचर जानती हूँ, तुम उसका गलत फायेदा नहीं उठाओगे..
मैं: येही तो मैं कह रहा हूँ, मैं उसका गलत फायेदा नहीं उठाऊंगा, सिर्फ दोस्ती और कुछ नहीं..
अंशिका (खीजते हुए): अब तुम यहाँ मुझे छोड़कर मेरी बहन से फ्रेंडशिप करने की सोच रहे हो क्या ?
मैं समझ गया की बात तो बन सकती है पर अभी अंशिका से ये सब बातें करने का कोई फायदा नहीं है, कही वो भी हाथ से ना निकल जाए..
मैं: अरे यार , तुम तो बुरा मान गयी, ऐसा कुछ नहीं है..चलो छोड़ो इन सब बातों को, ये बताओ की तुम उसे मेरे बारे में क्या कह रही थी..
अंशिका (शर्माते हुए): यही की बड़ा प्यारा दोस्त है, मिलते भी हैं हम, और कभी-कभी किस्स वगेरह भी कर लेते हैं..
मैंने मन ही मन सोचा की सत्यानाश, ये सब बताने की क्या जरुरत थी, वो तो अब मुझे लाईन देगी ही नहीं..चलो कोई बात नहीं..
मैं: और वो क्या बोली...
अंशिका: बोलना क्या है, बस मुस्कुराती रही..और कुछ नहीं..
मैं: और तुमने आज दोपहर वाली बात भी बताई उसे, बोंटे पार्क वाली..
अंशिका: पागल हो गए हो क्या, मैंने उसे सिर्फ ये कहा है की कभी कभार किस्सेस और हग्स करते हैं, और कुछ नहीं...तुम भी कैसी बाते करते हो, मैं उसे अपने बारे में इतनी अन्दर की बातें क्यों बताउंगी भला..
मैं: अरे उसे भी तो पता चले की उसकी बहन कितनी बड़ी ठरकी है...जिसे आजकल पब्लिक प्लेस में भी नंगा होने में शर्म नहीं आती...और उसकी चूत में रोज आग लगी होती है, जिसे मैं ही बुझा सकता हूँ, पर मौका नहीं मिलता...बोल देती ये सब भी.
अंशिका (शर्माते हुए): तुम न..सच में पागल हो..वैसे भी मुझे दोपहर से कुछ हो रहा है, मेरी चूत पर तुम्हारे होंठो का एहसास अभी तक है, सच में, आज जितना मजा कभी नहीं आया, कहाँ से सीखा इतना मजा देना तुमने..
मैं: जब सामने तुम्हारी जैसी हसीन चूत हो तो ये सब अपने आप आ जाता है, वैसे एक बात बताओ, अगर वो हवलदार ना आता तो क्या तुम मुझसे वहीँ पार्क में चुदवा भी लेती क्या..?
अंशिका: शायद...
मैं (हैरानी से) : पर तुमने तो कहा था की सही मौका और सही जगह का इन्तजार करना होगा..
अंशिका: हम लड़कियों की हर बात का ऐतबार मत किया करो, हम तो ऐसी ही होती है, आज कुछ और कल कुछ और..हे हे..
मैं: समझ गया, अब देखना, अगली बार जहाँ भी मौका मिलेगा, चोद दूंगा तुम्हे..
अंशिका: चोद लेना, मैं तो आज भी तैयार थी, पर तुम्हारी किस्मत में शायद थोडा और इन्तजार लिखा है..
मैं: इन्तजार की माँ की चूत, कल ही लो, कल दोबारा चलेंगे उसी पार्क में, और मैं हवलदार को भी पहले से ही पैसे देकर बोल दूंगा की उस तरफ ना आये, ठीक है न..
अंशिका: तुम बड़ी जल्दी एक्साइटेड हो जाते हो, पूरी बात तो सुनते नहीं मेरी...मैंने कहा था न की कनिष्का के एडमिशन के लिए जाना है दुसरे कॉलेज में, तो कल से मैं तीन दिनों की छुट्टी पर हूँ, उसके साथ चार पांच कॉलेज जाना है, और फार्मस भरने है.
मैं: यार , तुम भी न...वो अकेली नहीं जा सकती क्या..
अंशिका: नहीं..बिलकुल नहीं, अगर वो जाना भी चाहती तो नहीं जाने देती..उसे यहाँ के रास्ते सही ढंग से नहीं मालुम..
मैं: और जब वो कॉलेज जायेगी तो उसे रोज छोड़ने और लेने भी जाया करोगी क्या..
अंशिका: तुम मेरी हर बात को मजाक में क्यों लेते हो...मैं ज्यादा से ज्यादा , उसकी मदद करना चाहती हूँ...
मैं: ठीक है फिर, जब फुर्सत मिल जाए तो मुहे फोन भी कर लेना..
और मैंने गुस्से में फोन रख दिया. उसने उसके बाद मुझे कई बार फ़ोन किया पर मैंने जान बुझकर उठाया नहीं, मुझे मालुम था की उसे थोडा बहुत सबक सिखाना ही पड़ेगा, नहीं तो वो समझेगी की उसकी कही हुई हर बात को मैं इसलिए मान लेता हूँ की मैं उसकी चूत मारना चाहता हूँ, लड़कियों को कभी-कभी थोड़ी बहुत डोस देनी पड़ती है. मैंने फोन सायलेंट मोड पर रख दिया और सो गया.
अगली सुबह जब उठा तो मेरे सेल पर 27 मिस काल्स थी अंशिका की, आखिरी कॉल रात के २ बजे की थी. मैं समझ गया की मेरा पासा सही पड़ा है. मैं नहाने के लिए अन्दर चला गया, पापा ऑफिस जा चुके थे, मम्मी नाश्ता बना रही थी. मैं नहा कर निकला तो बेल बजी, मैंने टावल पहना हुआ था, इसलिए मैंने वहीँ से चिल्ला कर मम्मी को दरवाजा खोलने को कहा. मैं अलमारी से अपने कपडे निकाल कर प्रेस करने लगा, तभी पीछे से आवाज आई "गुड मोर्निंग..." मैंने पीछे मुड कर देखा तो हैरान रह गया, मेरे सामने अंशिका खड़ी थी. मैं अंशिका को अपने सामने देखकर हैरान रह गया..मैंने सिर्फ एक बार ही उसे अपना घर बाहर से ही दिखाया था, और वो आज मेरे घर आ भी गयी और मेरे कमरे में भी...मम्मी ने उसे अन्दर कैसे आने दिया..
मैं: अंशिका......!!!! तुम..तुम यहाँ कैसे..?
अंशिका (कातिल मुस्कान फेंककर से मेरी तरफ आते हुए) : पहले मुझे ये बताओ, तुमने मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठाया...मेरी कल वाली बात से इतने नाराज हो गए क्या..हूँ...बोलो...बोलो न..
वो कहती हुई बिलकुल मेरे पास आकर खड़ी हो गयी, मैं तो सिर्फ टावल लपेट कर खड़ा हुआ अपनी शर्ट प्रेस कर रहा था, मुझे क्या मालुम था की वो इस तरह से मेरे कमरे में आ जायेगी, मेरे कमरे में आने के लिए तो मम्मी भी बाहर से आवाज लगा कर अन्दर आती है, ये तो धड़ल्ले से अंदर चली आई. वो मेरे बिलकुल सामने आकर खड़ी हो गयी, उसकी साँसे मेरी साँसों से टकरा रही थी, उसके शरीर से निकलती गर्मी मुझे साफ़ महसूस हो रही थी, और मेरे पीछे खड़ी हुई प्रेस से निकलती गर्मी मुझे अपनी पीठ के ऊपर महसूस होने लगी...मैंने झट से पलट कर प्रेस को बंद कर दिया..
मैं: वो...वो. तुमने बात ही ऐसी करी थी की मुझे बुरा लगा...और उसके बाद मैंने सेल को सायलेंट मोड पर कर दिया..
अंशिका (मेरी गर्दन के दोनों तरफ अपने पंजे जमाते हुए , मेरी आँखों में देखते हुए) : लव मी...हेट मी....बट नेवर इग्नोर मी...अंडरस्टेंड ...
मुझे उसकी आवाज में एक तरह कठोरता थी...पर अगले ही पल उसके होंठो पर मुस्कान तेर गयी...और बोली " आई एम् सॉरी फॉर येस्टरडे ..प्लीस मुझे माफ़ कर दो...और ये कहते हुए उसने अपने होंठ मुझपर जमा दिए और उन्हें किसी पागल बिल्ली की तरह से चूसने लगी. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था...मुझे सबसे ज्यादा चिंता तो मम्मी की हो रही थी, जो बाहर थी, अगर उन्होंने अंशिका को अंदर आने दिया है तो वो भी कभी भी अंदर आ सकती है...मैंने उसकी किस को तोड़ते हुए उसे पीछे किया...उसकी आँखों में हेरत के भाव थे, मैंने पहली बार ऐसा किया था..
मैं: अंशिका....अंशिका...प्लीस..ये क्या कर रही हो...मम्मी बाहर ही है...वो अंदर आ जाएँगी..क्यों मुझे मरवाने के काम कर रही हो...
अंशिका के चूमने की वजह से मेरा लंड तन कर खड़ा हो चूका था, मैंने टावल के नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था..इसलिए मेरे टावल के सामने की तरफ एक टेंट सा बना हुआ था, जिसे देखकर अंशिका होले-होले मुस्कुराने लगी. मैंने भी उसकी नजरों का पीछा करते हुए जब नीचे देखा तो तब मुझे पता चला की कमीना लंड खड़ा हो चूका है...
अंशिका: तुम अपनी मम्मी की चिंता मत करो, वो बाहर बैठकर मेरी बहन कनिष्का के साथ गप्पे मार रही है.
मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया, वो अपनी बहन को लेकर आई थी मेरे घर..
मैं: क्या !! तुम्हारी बहन भी आई है...तुमने क्या कहा उससे?
अंशिका: मैंने उसे तुम्हारे बारे में तो कल ही बता दिया था, और जब उसने मेरा मायूस चेहरा देखा तो वो मुझसे बोली की चलो पहले तुम्हारे घर ही चलते हैं..तुमसे मिलने, और जब हम यहाँ आये तो तुम्हारी मम्मी ने कहा की तुम अभी अंदर ही हो, मैंने उनसे पूछा की क्या मैं अंदर जाकर तुमसे मिल सकती हूँ तो उन्होंने मना नहीं किया, मैंने कनिष्का को इशारा करके कहा की तुम्हारी मम्मी को बातों में लगाये रखे..तो इसलिए तुम अपनी मम्मी की चिंता मत करो...सिर्फ अपने नीचे खड़े इस लंड की चिंता करो..जो तुम्हारे बस में नहीं है, और मुझे देखते ही खड़ा हो गया है..
मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया, वो बड़े आराम से ये सब बोले जा रही थी, और उसे मेरी मम्मी के अंदर आने का भी डर नहीं था, उसे पक्का विशवास था की उसकी बहन बाहर सब संभाल लेगी, पर ये करना क्या चाहती है..वो पिछले कई दिनों से पब्लिक प्लेसेस में आधे अधूरे सेक्स कर रही थी, जिसकी वजह से उसकी झिझक ख़त्म सी हो गयी थी, पर ये कोई पब्लिक प्लेस नहीं है, ये मेरा घर है, बाहर ये सब करने में मुझे कोई डर नहीं लगता था, पर अपने ही घर में मेरी गांड फट रही थी...और दूसरी तरफ अंशिका को तो जैसे इन सबमे एक अनोखा मजा आ रहा था. मैं आज उसकी ये हिम्मत देखकर सच में उसकी जवानी की आग का कायल हो गया.
मैं: तुम समझा करो अंशिका..ये सब यहाँ करना ठीक नहीं है... मैं अब तुमसे गुस्सा नहीं हूँ...चलो बाहर चलते हैं..
ये कहकर मैंने अपनी शर्ट उठाई और पहनने लगा..पर अंशिका ने झपटकर उसे छीन लिया..
अंशिका: तुम डर क्यों रहे हो, तुमने भी तो मेरे साथ कई बार ऐसी सिचुअशन में मजे लिए हैं...आज मैं भी तो वोही कर रही हूँ..
और ये कहते हुए उसने आगे बढकर मेरे टावल के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया..
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अंशिका......म्मम्म.....
अंशिका: और मैंने सोचा की अगर मैं पर्सनली आकर तुमसे "सॉरी" बोलूंगी तो तुम मुझे जरुर माफ़ कर दोगे...बोलो..करोगे न..
और उसने मेरे लंड को धीरे-धीरे दबाना शुरू कर दिया. मेरी तो हालत ही खराब हो गयी, गीले टावल के ऊपर से उसके हाथ मेरे लंड को पकडे हुए थे, और मेरा लंड एकदम स्टील जैसा कठोर हो चूका था, मुझमे सोचने समझने की हिम्मत ही नहीं थी...एक मन तो कर रहा था की इसे अपने बिस्तर पर पटकू और नंगा करके यहीं पेल दूँ, पर अगले ही पल बाहर बैठी उसकी बहन और अपनी मम्मी के बारे में सोचकर मुझे पसीना आने लगा..
मैं: रुको...एक मिनट...मुझे बाहर तो देखने दो की वो दोनों क्या कर रहे हैं..
अंशिका ने मुस्कुराते हुए मुझे जाने का रास्ता दे दिया. मैं लगभग भागते हुए दरवाजे के पास गया और उसे थोडा सा खोलकर बाहर की और देखा..मेरे कमरे और ड्राईंग रूम के बीच एक स्टोर रूम और बाथरूम है, और उसके बाड़ बीच में में सोफे के ऊपर बैठी हुई कनिष्का को जब मैंने देखा तो देखता ही रह गया..एकदम परी जैसी थी वो, पिंक कलर के सूट में वो बार्बी की गुडिया जैसी लग रही थी...एकदम गोरी, छाती भी पूरी भरी हुई, और बाल कंधे से थोडा नीचे तक थे..मैं उसे निहार रहा था की तभी मेरे पीछे से अंशिका के हाथ आगे की तरफ आकर मुझसे लिपट गए और उसके सोफ्ट सी ब्रेस्ट मेरी नंगी कमर के ऊपर रगड़ खाने लगी..अंशिका ने मेरे दोनों निप्पल पकड़कर उन्हें मसलना शुरू कर दिया, मुझे थोड़ी गुदगुदी सी हो रही थी, और साथ ही साथ उसने अपने गीले होंठो से मेरी पीठ पर अनगिनत किस्सेस करनी शुरू कर दी.
ड्राईंग रूम के दूसरी तरफ किचन थी..मम्मी वहां खड़ी हुई चाय बना रही थी..और साथ ही साथ कनिष्का से कुछ बाते भी कर रही थी, कनिष्का का ध्यान मेरे कमरे की तरफ ही था, उसकी बहन जो अंदर थी, पर वो अपना काम अच्छी तरह से कर रही थी, मम्मी से गप्पे लगाकर उन्हें उलझाये रखने का..वो क्या बात कर रहे थे, मुझे सुनाई तो नहीं दे रहा था, पर बीच-बीच में दोनों के हंसने की आवाजें जरुर सुनाई दे रही थी..कनिष्का जब भी मेरे कमरे की तरफ देखती तो मुझे डर लगने लगता की कहीं उसे मैं खड़ा हुआ तो दिखाई नहीं दे रहा, पर वो काफी दूर थी, और इतनी दुरी से दरवाजें में थोड़ी सी दरार को देखना लगभग नामुमकिन था..मुझे भी अब इस नए अड्वेंचर में मजा आने लगा था..खासकर अंशिका के "सॉरी" बोलने के तरीके पर.
अब अंशिका का हाथ मेरी छाती से फिसलता हुआ नीचे की और आने लगा..और उसने फिर से मेरा लंड पकड़ लिया..और अगले ही पल दुसरे हाथ से उसने मेरा टावल खोल दिया..टावल मेरी टांगो के बीच आकर गिर गया और मेरा लंड अंशिका के हाथ में आ गया.
मैं अपने कमरे के दरवाजे में अब नंगा खड़ा हुआ था, और बाहर मेरी मम्मी और उसकी बहन थी, पर उसे इन बातों से जैसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था...वो तो बस "सॉरी" बोलने में लगी हुई थी..मैं तो नंगा था पर मुझे मालुम था की वो यहाँ नंगी नहीं हो सकती थी..पर अब मेरे जिस्म में भी अजीब सी तरंगे उठने लगी थी, मैं एकदम से उसकी तरफ घुमा और उसके होंठों को अपने होंठों से जकड कर जोरों से चूसने लगा...उसके गीले मुंह से निकलता सारा रस मेरे मुंह में जाने लगा, उसके होंठों का नमपन आज कुछ ज्यादा ही मीठा लग रहा था..मेरे दोनों हाथ उसकी छाती पर जम गए और उन्हें मसलने लगे, सूट और ब्रा पहनने के बावजूद उसके खड़े हुए निप्पल मुझे साफ़ महसूस हो रहे थे.
अंशिका भी हलकी-हलकी आवाजें निकलती हुई अपने शरीर को मेरे नंगे बदन से रगड़ रही थी..उसके दोनों हाथ मेरे लंड के ऊपर जमे हुए थे..और वो उन्हें काफी तेजी से आगे-पीछे कर रही थी. मुझे लगा की अगर उसने एक-दो और झटके दिए तो मैं तो गया काम से...मैंने झट से उसके कंधे पर दबाव डाला और उसे नीचे बिठा दिया...और अगले ही पल मेरा पूरा लंड उसके मुंह के अंदर था..
अह्ह्ह्हह्ह .... यस बेबी ...सक मी....सक मी....हार्ड.... मैंने दिवार से टेक लगाकर नीचे पंजो के बल बैठी अंशिका के मुंह में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया..और सर घुमाकर बाहर की और देखा कहीं कोई आ तो नहीं रहा..
मम्मी चाय बनाकर ले आई थी..और उन्होंने मुझे बाहर से ही आवाज लगायी..."विशाल्ल्ल....ओ विशाल...बेटा बाहर आओ, चाय बन चुकी है.."
मेरे लंड से एकदम से में ऐसा प्रेशर बन गया की किसी भी पल बाड़ आ सकती थी.....मैं वहीँ दरवाजे में खड़ा हुआ चिल्लाया..."कमिंग...आई एम् कमिंग....." और अगले ही पल मेरे लंड से पिचकारियाँ निकल-निकल कर अंशिका के मुंह में जाने लगी. अब बेचारी कनिष्का और मम्मी को थोड़े ही मालुम था की मैंने "कमिंग" किसलिए बोला था. अंशिका ने मेरा सारा माल चूस-चूसकर पी लिया..और ऊपर की तरफ देखकर अपने उसी अंदाज में बोली...यम्मी...
मैंने उसे जल्दी से बाहर जाने को कहा, वो अपने रुमाल से चेहरा साफ़ करती हुई बाहर की और चली गयी. बाहर जाकर उसकी आवाज मुझे सुनाई दी "आंटी...विशाल आ रहा है बस..."
और वो बैठकर अपनी बहन से खुसर फुसर करने लगी. मैंने बिजली की तेजी से कपडे पहने और एक मिनट के अंदर ही मैं भी बाहर आ गया. कनिष्का ने जब मुझे देखा तो वो मंत्रमुग्ध सी मुझे देखती हुई उठ खड़ी हुई..
अंशिका: विशाल, ये है मेरी सिस्टर..कनिष्का, इसी के एडमिशन के लिए मैंने तुमसे बात करी थी..
मैं: भी कनिष्का की सुन्दरता देखकर अपनी सुध बुध खो सा बैठा..अंशिका की बात सुनकर मैं थोडा मुस्कुराया और कनिष्का की तरफ हाथ बढाकर कहा "हाय..कनिष्का, हाव आर यु...?"
कनिष्का ने भी अपना हाथ मुझे थमा दिया, बिलकुल रुई जैसा था उसका एहसास.....मैंने उसे छुआ तो मेरे पुरे बदन में करंट सा लग गया, जिसे शायद कनिष्का ने भी महसूस किया होगा.
मैंने उन दोनों को चाय ऑफर की और मैं किचन में खड़ी हुई मम्मी के पास गया, जो अजीब सी नजरों से मुझे घूरे जा रही थी..
मम्मी: तेरी फ्रेंड्स भी है, तुने तो कभी बताया भी नहीं..
मैं: मम्मी, ये क्या बताने की बातें होती हैं...ये तो बस ऐसे ही..
मम्मी से मेरी काफी अच्छी बनती है, वो अक्सर मुझसे मेरे कॉलेज के बारे में और मेरी गर्ल फ्रेंड्स के बारे में पूछती रहती है..पर मैं उनसे शर्म की वजह से कुछ नहीं बोल पाता..और वैसे भी आजकल के हर माँ बाप जानते है की उनके बच्चे अब ये सब नहीं करेंगे तो क्या उनकी उम्र में जाकर करेंगे..
मम्मी: वैसे दोनों बहने हैं काफी सुन्दर..तुझे कौनसी पसंद है..
मैं: मोम...आप भी ना...ऐसा कुछ नहीं है..
मम्मी : कुछ तो है बेटा, मैंने भी पूरी दुनिया देखी है, कोई लड़की पहली ही बार में लड़के के बेडरूम में नहीं चली जाती...खासकर जब उसकी मम्मी बैठि हो..
मैं: मोम..आजकल ये सब चलता है, आपके ज़माने में ऐसा नहीं होता होगा, और आपको ये सब अच्छा नहीं लगता इसलिए मेरी फ्रेंड्स घर नहीं आती, और ये आई तो अंदर भी चली गयी, इसमें कौनसी बड़ी बात है...वैसे भी ये अंशिका अपनी बहन के एडमिशन को लेकर काफी परेशान है, और मेरी एक-दो कॉलेज में अच्छी पहचान है, बस तभी ये उसे लेकर आई है, और आप है की पाता नहीं क्या-क्या सोच रही हो..
मम्मी : ठीक है..ठीक है, नाराज क्यों होता है, मैं तो बस तेरी टांग खींच रही थी..हा हा .. चल बाहर चल, नहीं तो वो दोनों समझेंगी की मैं उन दोनों में से किसी को अपनी बहु बनाने के लिए तुझसे लडाई कर रही हूँ..
मैं और मम्मी हँसते हुए बाहर आ गए..
फिर सबने चाय पी, मैंने हल्का सा नाश्ता किया और मैं उन दोनों के साथ बाहर आ गया.
अंशिका आज अपने पापा की कार लेकर आई थी, मारुती स्विफ्ट. उसने चाभी मेरी तरफ फेंकी और खुद आगे जाकर बैठ गयी, कनिष्का पीछे जाकर बेठी और मैंने कार चलानी शुरू कर दी.


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