24-09-2020, 09:05 PM
(This post was last modified: 24-09-2020, 10:10 PM by sanskari_shikha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल्लल्ल्ल्ल ......म्मम्मम्म.......ओह्ह्ह्हह्ह गोड..... अह्ह्हह्ह
मैं: धीरे बोलो अंशिका......इतना तेज बोलोगी तो पुरे पार्क वाले लोग यहाँ आकर तुम्हे चोद देंगे..
अंशिका की आँखें गुलाबी सी हो गयी थी, वो समझ नहीं पा रही थी की मैंने जो कहा वो मैं चाहता हूँ या फिर ऐसे ही, पर शायद वो इमेजिन करने की कोशिश कर रही थी की अगर वहां सब लोग इकठ्ठा हो जाएँ और उसके साथ....ये सोचते ही उसने थूक से भीगे होंठ मेरे होंठों पर रगड़ने शुरू कर दिए...मैंने इतना गरम अंशिका को कभी नहीं देखा था..उसकी एक ब्रेस्ट बहार निकली हुई थी और वो बुरी तरह से मुझसे लिपट कर मुझे किस कर रही थी...और एक हाथ से वो मेरी जींस के ऊपर से ही मेरे लंड को रगड़ रही थी. मैंने उसे सीधा किया और उसकी दूसरी ब्रेस्ट को भी बाहर निकलने की कोशिश करने लगा, पर वो दोनों एक साथ बाहर नहीं आ पा रही थी, मैं उसका सूट ऊपर से उतारना नहीं चाहता था. पर मेरी सोच और अंशिका की सोच में अंतर निकला, उसने एक ही झटके में सूट को नीचे से पकड़ा और सर से घुमा कर उतार दिया और मेरी मुश्किल आसान कर दी. मैं उसकी हिम्मत देखकर अवाक रह गया, दिन के 3 बजे, अंशिका जैसी कॉलेज में पड़ाने वाली टीचर , मेरे सामने एक पार्क में टोपलेस हो गयी , अपने आप सच में उसकी अन्दर से जो हालत हो रही होगी, मैं ये सोचकर ही उत्तेजित सा होने लगा. अब मेरे सामने ब्लेक ब्रा के अन्दर सिमटी उसकी जवानी थी, एक बाहर और एक अन्दर...उसने मेरी आँखों में देखते हुए अपनी ब्रा के दोनों स्ट्रेप कंधे से नीचे खिसका दिए और अगले ही पल उसकी दोनों बाल्स मेरे चेहरे के सामने नंगी होकर नाच रही थी..मुझसे और सब्र नहीं हुआ...मैंने अपना मुंह खोला और उनपर टूट सा पड़ा..मैंने उसे नीचे घांस पर लिटा दिया और उसके दोनों ब्रेस्ट के रस को एक एक करके निचोड़ने लगा अपने मुंह में..
अह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......लव मी ....अह्ह्हह्ह .....अह.....ओह्ह्हह्ह्ह्ह.......म्मम्म.......सक ईट...सक हार्ड.....और जोर से...चुसो...इन्हें....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम्म.....बाईट मी हेयर.......ओ येस ...ओ येस........गोड.......म्मम्मम........ वो मेरे सामने लेटी हुई ऊपर से नंगी होकर तड़प रही थी और मैं उसके ताजा फलो का रस पीकर मजे ले रहा था. उसके दोनों निप्पल इतने बड़े हो चुके थे की मैं उसपर अपनी शर्ट टांग सकता था. मेरे दांतों से बनाया हुआ निशान अभी तक उसकी ब्रेस्ट के ऊपर था....मैंने उसपर फिर जीभ और दांत लगा दिए और चूस चूसकर उसे फिर से रीचार्ज कर दिया...वो भी हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए मुझे अपनी ब्रेस्ट पर वो ख़ास टाटू बनाते हुए देख रही थी और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरा रही थी. मैं जब ऊपर उठा तो अंशिका बोली - इसे ऐसे ही हमेशा मेरी ब्रेस्ट पर बनाये रखना...जैसे ही हल्का होने लगे, दोबारा बना दिया करो...समझे..
मैं: समझ गया मेडम.
अंशिका ने मुझे पीछे किया और झुक कर मेरी जींस के बटन खोलने लगी और फिर हाथ अन्दर डालकर उसने मेरा लंड बाहर निकाल लिया. जो इतना गर्म हो चूका था की मुझे लगा उसका मुंह ही ना जल जाए आज..लंड के ऊपर मेरी नसे चमक रही थी, जिन्हें वो बड़े गोर से देख रही थी...फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकली और मेरे लंड के ऊपर से जाती हुई हरे रंग की नस के ऊपर फिराने लगी...और उसका पीछा करते-करते वो नीचे मेरी बाल्स तक पहुँच गयी.
अंशिका: ये मेरी वो किस, जो मैंने तुम्हे कल फोन पर दी थी.
और ये कहर उसने एक गीली सी किस्स मेरी बाल्स के ऊपर कर दी..
अंशिका: अब हिसाब साफ़ हो गया सब..
बड़ी हिसाब वाली है ये तो, मैं मन ही मन सोचने लगा और फिर उसी नस का पीछा करते हुए उसकी जीभ ऊपर तक आई और मेरे लंड के टॉप तक आकर रुक गयी और बड़ी ही नजाकत के साथ उसकी गुलाबी जीभ ने लंड से निकलते प्रीकम को समेटा और उसे निगल गयी...रस का स्वाद मिलते ही वो जैसे पागल सी हो गयी और अगले ही पल उसने अपना पूरा मुंह खोला और मेरे लंड को एक ही बार में अपने मुंह के अन्दर भर लिया.
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अंशी........का.......अह्ह्ह्हह्ह.........आई लव....द वे यु सक......अह्ह्ह्हह्ह....सक मी बेबी....सक में हार्ड......अह्ह्ह.... अब चूसने का काम अंशिका का था. वो मेरे लंड का पूरा स्वाद लेते हुए, उसे ऊपर से नीचे तक चूस रही थी. तभी मेरा मोबाइल बज उठा..मैंने देखा तो वो स्नेहा का फोन था...मैं सोच रहा था की उसे उठाऊ या नहीं..तभी अंशिका बोल पड़ी.."उठाते क्यों नहीं...किसका है.."
मैं: "दोस्त का है..."
अंशिका (शरारती लहजे में): तो फोन उठाओ और उसे बताओ की तुम क्या कर रहे हो...
मैं: पागल हो गयी हो क्या..
अंशिका: अरे मजा आएगा...उठाओ न प्लीस..
मैं: उसे नहीं मालूम की मेरी कोई गर्लफ्रेंड है...तुमने ही तो मन किया था न किसी को भी बताने के लिए..
अंशिका: ओह हां...कोई बात नहीं, उसे कहो की तुम अपनी टीचर को सोचकर मास्टरबेट कर रहे हो...प्लीस...मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते क्या..
और उसने ललचाने के लिए अपने दोनों मुम्मे मेरे लंड के चरों तरफ लपेट दिए..और उनमे फंसा कर वो मेरे लंड को अजीब सा मजा देने लगी..
मैंने फोन उठा लिया
अंशिका ने मेरा लंड अपने मुंह में डाला और उसे फिर से चुसना शुरू कर दिया.
मैं: हाय...क्या हाल है.
स्नेहा: कितनी देर से फोन कर रही हूँ...इतनी देर क्यों लग गयी...
मैं: मैं कुछ कर रहा था.
स्नेहा: क्या ??
अचानक अंशिका ने मेरे लंड पर हलके से बाईट किया और मेरे मुंह से आह निकल गयी..
स्नेहा: आर यू मास्टरबेटिंग...??
मैं: येस....आई एम् मास्टरबेटिंग ...
स्नेहा: वाव...किसे सोचकर कर रहे हो.. (उसने धीमी आवाज और तेज साँसों के बीच कहा.)
मैं अब सोच में पड़ गया की क्या बोलू, मैंने अंशिका को देखा , वो अपनी आँखें बंद करे लंड चूसने में लगी हुई थी..मैंने रिस्क ले ही लिया
मैं: यु...
मैंने ये "यु" इतना जल्दी और धीरे से कहा की अंशिका को सुनाई न दे...और ऐसा हुआ भी, अंशिका ने उस बात को नोट नहीं किया...और ऐसा करने में मुझे इतना अडवेंचर मिला की मैं आपको बता नहीं सकता...एक तरफ अंशिका मेरा लंड चूस रही थी और दूसरी तरफ वो स्नेहा ये सुनकर की मैं उसके बारे में सोचकर मुठ मार रहा हूँ....थोड़ी देर तक तो बात करना ही भूल गयी...सिर्फ उसकी साँसों की आवाज आ रही थी फोन पर. अंशिका भी मेरे लंड को आज ऐसे चूस रही थी..जैसे आज वो उसे कच्चा खा जायेगी. मेरे मुंह सी हलकी-२ सिस्कारियां सी निकलने लगी - अह्ह्ह्हह्ह......मम्म...
मैं: तुम भी मेरे साथ मास्टरबेट करो, मजा आएगा..
अब यहाँ अंशिका को क्या मालुम था की मैं ये बात अपने दोस्त संजय को नहीं बल्कि किटी मैम की बेटी स्नेहा को कह रहा हूँ...
स्नेहा: .....ह..हाँ....ठीक....है...
और फिर उसकी जींस के उतरने की आवाज और फिर उसने जब अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में डाली तो एक लम्बा सा मोन उसके मुंह से निकल गया - अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......म्मम्मम्मम ....ऊऊऊऊ...........
मैंने फ़ोन का वोल्यूम थोडा कम कर दिया, ताकि अंशिका को दूसरी तरफ से लड़की की आवाज न सुनाई दे जाए. अंशिका के दोनों मुम्मे मेरी झांघो के ऊपर धपक धपक पड़ रहे थे...उसके पुरे बाल खुल कर उसका चेहरा ढक चुके थे. मैंने उसकी जुल्फों को ऊपर किया और उसके होंठो में फंसे अपने लंड को छटपटाते हुए देखने लगा. दूसरी तरफ तो स्नेहा की हालत कुछ ज्यादा ही बुरी हो चुकी थी..
स्नेहा: ऊऊऊ विशाल......म्मम्मम्म.......ई एम् फीलिंग....हॉट.....कम टू मी....प्लीस.....अह्ह्ह्हह्ह........आई वांट टू सक यौर पेनिस....अह्ह्हह्ह.......विशाल्लल्ल्ल......आई एम् कमिंग.....अह्ह्हह्ह.....ओह्ह्ह्ह विशाल्ल्ल्ल....ओ ओह्ह ओह्ह्ह ओह्ह्ह.......
और फिर अपनी तेज साँसों के बीच जब वो झड़ने लगी तो उससे फ़ोन पकड़ा नहीं गया और वो बेड पर गिर गया, अब उसकी मद्धम सी सिस्कारियां मुझे सुनाई दे रही थी.. मैं भी अपना रस निकलने ही वाला था....ये जानकार अंशिका ने उसे और तेजी से चुसना शुरू कर दिया. दूसरी तरफ से स्नेहा का फोन कट चूका था. मैंने भी फोन उठा कर साईड मैं रख दिया और अंशिका के सर के ऊपर हाथ रखकर उसे और तेजी से लंड चूसने को उकसाने लगा और फिर मेरे मुंह से आग के गोले निकल कर उसके मुंह में जाने लगे..
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह आंशिक...आआ.......अह्ह्ह्हह्ह......म्मम्म.....या..बेबी......ऊऊ येस...अह्ह्ह्ह..... और फिर अपने उसी अंदाज में उसने अपने चेहरा ऊपर उठाया और अपनी ठोडी पर लगे सफ़ेद वीर्य को मुंह में समेटते हुए जोर से एक चटखारा लिया...और बोली...यम्मी.... और वो ऊपर आई और मेरे मुंह को चूसने लगी...मुझे फिर से अपने ही रस की खुशबू उसके मुंह से सुंघनी पड़ी...पर अब मुझे भी इसमें मजा आने लगा था. तभी बाहर से किसी लड़के की आवाज आई : "आओ...डार्लिंग...यहाँ बैठते हैं...ये सबसे सेफ जगह है यहाँ की...कोई भी बाहर से नहीं देख सकता की अन्दर क्या हो रहा है..." ये कहते हुए वो अपना सर झुका कर नीचे झाडी के अन्दर घुस गया और अगले ही पल उसका चेहरा मेरे और अंशिका से थोडी ही दूर पर था...हम सभी एक दुसरे को आँखे फाड़े देख रहे थे, वो इतनी तेजी से अन्दर आया था की मुझे उसे रोकने का मौका भी नहीं मिला, और जब उसकी नजरे अंशिका की खुली हुई छाती पर पड़ी..तो वो हडबडा कर सॉरी कहता हुआ बाहर निकल गया...और थोडी ही देर बाद उसके और उसकी गर्ल फ्रेंड के हंसने की आवाज आई और वो कहीं और चले गए. उनके हंसने की आवाज सुनकर मुझे और अंशिका को भी हंसी आ गयी. मेरा तो मन कर रहा था की अंशिका को अपने लंड के ऊपर बिठा कर आज उसकी चूत मार ही लूँ...पर यहाँ काफी रिस्क था..कोई भी आ सकता था...मैं तो झड ही चूका था, मैंने अपनी पेंट के अन्दर लंड ठुंसा और अंशिका को भी ब्रा ठीक करके अपना सूट पहनने को कहा..और फिर मैंने उसे नीचे लिटा दिया और उसकी पयजामी का नाड़ा खोल दिया..उसने भी बिना कोई विरोध करे मेरी सब बाते मानते हुए अपनी पेंटी नीचे खिसका दी...और अब मेरे सामने अंशिका की रस से भीगी हुई गीली चूत थी...जिसे मैंने जैसे ही अपनी जीभ से साफ़ करना शुरू किया उसकी सिस्कारियां बड़ी तेजी से निकलने लगी..
अह्ह्ह्हह्ह .....ओह्ह्ह्हह्ह....विशाल्ल्ल्ल.....मार डालोगे तुम तो मुझे....अह्ह्ह......आई एम् डाईंग तो टेक यूर कोक्क.....सक माय पुसी...हार्ड...ओ य़ा.....हा....ऐसे ही......गुड....एस ऐसे ही.....और तेज.....अह्ह्हह्ह्ह्ह....मम्म.......और फिर उसकी चूत का झरना मेरे मुंह के अन्दर फूट पड़ा..मैंने सारा गरमागरम पानी पी लिया..और उसी अंदाज में उसे देखकर कहा...यम्मी... उसने मुस्कुराते हुए मुझे ऊपर खींच लिया और मेरे गीले होंठों को चूसने लगी...अब मेरे मुंह से उसके रस का स्वाद अंशिका के मुंह में जा रहा था. अब काफी देर हो चुकी थी....
हम अलग हुए ही थे की बाहर से फिर से एक और तेज आवाज आई...ओ रे छोरे...चल बाहर निकल...जल्दी से...और डंडा खडकाने की आवाज आई... मर गया, ये तो कोई हवलदार है...पोलिस को देखते ही अंशिका की तो हवा ही खिसक गयी...मैंने उसे आश्वासन दिया की कुछ नहीं होगा...और मैं बाहर आ गया..अंशिका अभी भी अन्दर थी, नीचे से नंगी. बाहर खड़े हवलदार ने मुझे देखा और पूछा : क्यों भाई...कहाँ से आया है...और क्या कर रहा है अन्दर...निकाल अपनी मेडम को भी बाहर, चलो थाने.
मैं: अरे सर...क्यों गुस्सा हो रहे हो...बस थोडा मस्ती कर रहे थे....समझा करो...
हवलदार: हमें भी करा दे फिर थोडी मस्ती...जाऊ के , मैं भी अन्दर..बोल..साला....सीधी तरह से थाने चल..
मैं: समझ गया की बात ऐसे नहीं बनेगी...और मैंने जेब में हाथ डालकर 100 रूपए उसके हाथ में रख दिए..
हवलदार: ये क्या हे रे...भिखारी समझा है क्या? मैं कह रहा हूँ...जल्दी निकल मेडम को बाहर और थाने चलो.
मैंने एक और नोट निकला और उसे दिया.
हवलदार: खेल मत खेल...500 रूपए दे और बात ख़तम कर.
मैंने बहस करनी उचित नहीं समझी और उसे 500 निकल कर दे दिए. वो खुश होकर चला गया. उसके जाते ही अंशिका भी बाहर आ गयी, वो अपने कपडे पूरी तरह से पहन चुकी थी...और वो थोडी डरी हुई सी लग रही थी.
अंशिका: जल्दी चलो यहाँ से...मुझे बड़ा डर लग रहा है.
मैं: अरे तुम भी न..मेरे होते हुए तुम घबराया मत करो...चलो अन्दर...अब तो मैंने यहाँ का किराया भी दे दिया है..
और मैं हंसने लगा..पर अंशिका काफी डर चुकी थी...और हारकर हम वापिस चल दिए. वापिस पहुंचकर मैंने अंशिका को उसके घर पर उतारा और वापिस चल दिया, मैंने टाईम देखा तो अभी 4 ही बजे थे....मैंने जल्दी से स्नेहा को फ़ोन किया...
स्नेहा: हेल्लो...
मैं: क्या कर रही हो...
स्नेहा: कुछ नहीं...तुम.?
मैं: आज मजा आया...
स्नेहा: हूँ..तुम्हे..?
मैं: मुझे भी....सुनो, मैं आ रहा हूँ शाम को तुम्हे "पड़ाने" ..मेरा वो दूसरा प्रोग्राम केंसल हो गया.
स्नेहा (ख़ुशी से चिल्लाते हुए): मैं आज भगवान् से कुछ और भी मांगती तो मिल जाता, तुम्हारे फ़ोन के आते ही मैं सोच रही थी की काश ये आने के लिए ही कह रहा हो..
मैं: तो तुम तैयार रहना ...आज..
स्नेहा (ख़ुशी को दबाते हुए): किस लिए ...?
मैं: वो तुम जानती हो..
और ये कहते हुए मैंने फ़ोन रख दिया.
मैं: धीरे बोलो अंशिका......इतना तेज बोलोगी तो पुरे पार्क वाले लोग यहाँ आकर तुम्हे चोद देंगे..
अंशिका की आँखें गुलाबी सी हो गयी थी, वो समझ नहीं पा रही थी की मैंने जो कहा वो मैं चाहता हूँ या फिर ऐसे ही, पर शायद वो इमेजिन करने की कोशिश कर रही थी की अगर वहां सब लोग इकठ्ठा हो जाएँ और उसके साथ....ये सोचते ही उसने थूक से भीगे होंठ मेरे होंठों पर रगड़ने शुरू कर दिए...मैंने इतना गरम अंशिका को कभी नहीं देखा था..उसकी एक ब्रेस्ट बहार निकली हुई थी और वो बुरी तरह से मुझसे लिपट कर मुझे किस कर रही थी...और एक हाथ से वो मेरी जींस के ऊपर से ही मेरे लंड को रगड़ रही थी. मैंने उसे सीधा किया और उसकी दूसरी ब्रेस्ट को भी बाहर निकलने की कोशिश करने लगा, पर वो दोनों एक साथ बाहर नहीं आ पा रही थी, मैं उसका सूट ऊपर से उतारना नहीं चाहता था. पर मेरी सोच और अंशिका की सोच में अंतर निकला, उसने एक ही झटके में सूट को नीचे से पकड़ा और सर से घुमा कर उतार दिया और मेरी मुश्किल आसान कर दी. मैं उसकी हिम्मत देखकर अवाक रह गया, दिन के 3 बजे, अंशिका जैसी कॉलेज में पड़ाने वाली टीचर , मेरे सामने एक पार्क में टोपलेस हो गयी , अपने आप सच में उसकी अन्दर से जो हालत हो रही होगी, मैं ये सोचकर ही उत्तेजित सा होने लगा. अब मेरे सामने ब्लेक ब्रा के अन्दर सिमटी उसकी जवानी थी, एक बाहर और एक अन्दर...उसने मेरी आँखों में देखते हुए अपनी ब्रा के दोनों स्ट्रेप कंधे से नीचे खिसका दिए और अगले ही पल उसकी दोनों बाल्स मेरे चेहरे के सामने नंगी होकर नाच रही थी..मुझसे और सब्र नहीं हुआ...मैंने अपना मुंह खोला और उनपर टूट सा पड़ा..मैंने उसे नीचे घांस पर लिटा दिया और उसके दोनों ब्रेस्ट के रस को एक एक करके निचोड़ने लगा अपने मुंह में..
अह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......लव मी ....अह्ह्हह्ह .....अह.....ओह्ह्हह्ह्ह्ह.......म्मम्म.......सक ईट...सक हार्ड.....और जोर से...चुसो...इन्हें....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम्म.....बाईट मी हेयर.......ओ येस ...ओ येस........गोड.......म्मम्मम........ वो मेरे सामने लेटी हुई ऊपर से नंगी होकर तड़प रही थी और मैं उसके ताजा फलो का रस पीकर मजे ले रहा था. उसके दोनों निप्पल इतने बड़े हो चुके थे की मैं उसपर अपनी शर्ट टांग सकता था. मेरे दांतों से बनाया हुआ निशान अभी तक उसकी ब्रेस्ट के ऊपर था....मैंने उसपर फिर जीभ और दांत लगा दिए और चूस चूसकर उसे फिर से रीचार्ज कर दिया...वो भी हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए मुझे अपनी ब्रेस्ट पर वो ख़ास टाटू बनाते हुए देख रही थी और मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरा रही थी. मैं जब ऊपर उठा तो अंशिका बोली - इसे ऐसे ही हमेशा मेरी ब्रेस्ट पर बनाये रखना...जैसे ही हल्का होने लगे, दोबारा बना दिया करो...समझे..
मैं: समझ गया मेडम.
अंशिका ने मुझे पीछे किया और झुक कर मेरी जींस के बटन खोलने लगी और फिर हाथ अन्दर डालकर उसने मेरा लंड बाहर निकाल लिया. जो इतना गर्म हो चूका था की मुझे लगा उसका मुंह ही ना जल जाए आज..लंड के ऊपर मेरी नसे चमक रही थी, जिन्हें वो बड़े गोर से देख रही थी...फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकली और मेरे लंड के ऊपर से जाती हुई हरे रंग की नस के ऊपर फिराने लगी...और उसका पीछा करते-करते वो नीचे मेरी बाल्स तक पहुँच गयी.
अंशिका: ये मेरी वो किस, जो मैंने तुम्हे कल फोन पर दी थी.
और ये कहर उसने एक गीली सी किस्स मेरी बाल्स के ऊपर कर दी..
अंशिका: अब हिसाब साफ़ हो गया सब..
बड़ी हिसाब वाली है ये तो, मैं मन ही मन सोचने लगा और फिर उसी नस का पीछा करते हुए उसकी जीभ ऊपर तक आई और मेरे लंड के टॉप तक आकर रुक गयी और बड़ी ही नजाकत के साथ उसकी गुलाबी जीभ ने लंड से निकलते प्रीकम को समेटा और उसे निगल गयी...रस का स्वाद मिलते ही वो जैसे पागल सी हो गयी और अगले ही पल उसने अपना पूरा मुंह खोला और मेरे लंड को एक ही बार में अपने मुंह के अन्दर भर लिया.
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अंशी........का.......अह्ह्ह्हह्ह.........आई लव....द वे यु सक......अह्ह्ह्हह्ह....सक मी बेबी....सक में हार्ड......अह्ह्ह.... अब चूसने का काम अंशिका का था. वो मेरे लंड का पूरा स्वाद लेते हुए, उसे ऊपर से नीचे तक चूस रही थी. तभी मेरा मोबाइल बज उठा..मैंने देखा तो वो स्नेहा का फोन था...मैं सोच रहा था की उसे उठाऊ या नहीं..तभी अंशिका बोल पड़ी.."उठाते क्यों नहीं...किसका है.."
मैं: "दोस्त का है..."
अंशिका (शरारती लहजे में): तो फोन उठाओ और उसे बताओ की तुम क्या कर रहे हो...
मैं: पागल हो गयी हो क्या..
अंशिका: अरे मजा आएगा...उठाओ न प्लीस..
मैं: उसे नहीं मालूम की मेरी कोई गर्लफ्रेंड है...तुमने ही तो मन किया था न किसी को भी बताने के लिए..
अंशिका: ओह हां...कोई बात नहीं, उसे कहो की तुम अपनी टीचर को सोचकर मास्टरबेट कर रहे हो...प्लीस...मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते क्या..
और उसने ललचाने के लिए अपने दोनों मुम्मे मेरे लंड के चरों तरफ लपेट दिए..और उनमे फंसा कर वो मेरे लंड को अजीब सा मजा देने लगी..
मैंने फोन उठा लिया
अंशिका ने मेरा लंड अपने मुंह में डाला और उसे फिर से चुसना शुरू कर दिया.
मैं: हाय...क्या हाल है.
स्नेहा: कितनी देर से फोन कर रही हूँ...इतनी देर क्यों लग गयी...
मैं: मैं कुछ कर रहा था.
स्नेहा: क्या ??
अचानक अंशिका ने मेरे लंड पर हलके से बाईट किया और मेरे मुंह से आह निकल गयी..
स्नेहा: आर यू मास्टरबेटिंग...??
मैं: येस....आई एम् मास्टरबेटिंग ...
स्नेहा: वाव...किसे सोचकर कर रहे हो.. (उसने धीमी आवाज और तेज साँसों के बीच कहा.)
मैं अब सोच में पड़ गया की क्या बोलू, मैंने अंशिका को देखा , वो अपनी आँखें बंद करे लंड चूसने में लगी हुई थी..मैंने रिस्क ले ही लिया
मैं: यु...
मैंने ये "यु" इतना जल्दी और धीरे से कहा की अंशिका को सुनाई न दे...और ऐसा हुआ भी, अंशिका ने उस बात को नोट नहीं किया...और ऐसा करने में मुझे इतना अडवेंचर मिला की मैं आपको बता नहीं सकता...एक तरफ अंशिका मेरा लंड चूस रही थी और दूसरी तरफ वो स्नेहा ये सुनकर की मैं उसके बारे में सोचकर मुठ मार रहा हूँ....थोड़ी देर तक तो बात करना ही भूल गयी...सिर्फ उसकी साँसों की आवाज आ रही थी फोन पर. अंशिका भी मेरे लंड को आज ऐसे चूस रही थी..जैसे आज वो उसे कच्चा खा जायेगी. मेरे मुंह सी हलकी-२ सिस्कारियां सी निकलने लगी - अह्ह्ह्हह्ह......मम्म...
मैं: तुम भी मेरे साथ मास्टरबेट करो, मजा आएगा..
अब यहाँ अंशिका को क्या मालुम था की मैं ये बात अपने दोस्त संजय को नहीं बल्कि किटी मैम की बेटी स्नेहा को कह रहा हूँ...
स्नेहा: .....ह..हाँ....ठीक....है...
और फिर उसकी जींस के उतरने की आवाज और फिर उसने जब अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में डाली तो एक लम्बा सा मोन उसके मुंह से निकल गया - अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......म्मम्मम्मम ....ऊऊऊऊ...........
मैंने फ़ोन का वोल्यूम थोडा कम कर दिया, ताकि अंशिका को दूसरी तरफ से लड़की की आवाज न सुनाई दे जाए. अंशिका के दोनों मुम्मे मेरी झांघो के ऊपर धपक धपक पड़ रहे थे...उसके पुरे बाल खुल कर उसका चेहरा ढक चुके थे. मैंने उसकी जुल्फों को ऊपर किया और उसके होंठो में फंसे अपने लंड को छटपटाते हुए देखने लगा. दूसरी तरफ तो स्नेहा की हालत कुछ ज्यादा ही बुरी हो चुकी थी..
स्नेहा: ऊऊऊ विशाल......म्मम्मम्म.......ई एम् फीलिंग....हॉट.....कम टू मी....प्लीस.....अह्ह्ह्हह्ह........आई वांट टू सक यौर पेनिस....अह्ह्हह्ह.......विशाल्लल्ल्ल......आई एम् कमिंग.....अह्ह्हह्ह.....ओह्ह्ह्ह विशाल्ल्ल्ल....ओ ओह्ह ओह्ह्ह ओह्ह्ह.......
और फिर अपनी तेज साँसों के बीच जब वो झड़ने लगी तो उससे फ़ोन पकड़ा नहीं गया और वो बेड पर गिर गया, अब उसकी मद्धम सी सिस्कारियां मुझे सुनाई दे रही थी.. मैं भी अपना रस निकलने ही वाला था....ये जानकार अंशिका ने उसे और तेजी से चुसना शुरू कर दिया. दूसरी तरफ से स्नेहा का फोन कट चूका था. मैंने भी फोन उठा कर साईड मैं रख दिया और अंशिका के सर के ऊपर हाथ रखकर उसे और तेजी से लंड चूसने को उकसाने लगा और फिर मेरे मुंह से आग के गोले निकल कर उसके मुंह में जाने लगे..
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह आंशिक...आआ.......अह्ह्ह्हह्ह......म्मम्म.....या..बेबी......ऊऊ येस...अह्ह्ह्ह..... और फिर अपने उसी अंदाज में उसने अपने चेहरा ऊपर उठाया और अपनी ठोडी पर लगे सफ़ेद वीर्य को मुंह में समेटते हुए जोर से एक चटखारा लिया...और बोली...यम्मी.... और वो ऊपर आई और मेरे मुंह को चूसने लगी...मुझे फिर से अपने ही रस की खुशबू उसके मुंह से सुंघनी पड़ी...पर अब मुझे भी इसमें मजा आने लगा था. तभी बाहर से किसी लड़के की आवाज आई : "आओ...डार्लिंग...यहाँ बैठते हैं...ये सबसे सेफ जगह है यहाँ की...कोई भी बाहर से नहीं देख सकता की अन्दर क्या हो रहा है..." ये कहते हुए वो अपना सर झुका कर नीचे झाडी के अन्दर घुस गया और अगले ही पल उसका चेहरा मेरे और अंशिका से थोडी ही दूर पर था...हम सभी एक दुसरे को आँखे फाड़े देख रहे थे, वो इतनी तेजी से अन्दर आया था की मुझे उसे रोकने का मौका भी नहीं मिला, और जब उसकी नजरे अंशिका की खुली हुई छाती पर पड़ी..तो वो हडबडा कर सॉरी कहता हुआ बाहर निकल गया...और थोडी ही देर बाद उसके और उसकी गर्ल फ्रेंड के हंसने की आवाज आई और वो कहीं और चले गए. उनके हंसने की आवाज सुनकर मुझे और अंशिका को भी हंसी आ गयी. मेरा तो मन कर रहा था की अंशिका को अपने लंड के ऊपर बिठा कर आज उसकी चूत मार ही लूँ...पर यहाँ काफी रिस्क था..कोई भी आ सकता था...मैं तो झड ही चूका था, मैंने अपनी पेंट के अन्दर लंड ठुंसा और अंशिका को भी ब्रा ठीक करके अपना सूट पहनने को कहा..और फिर मैंने उसे नीचे लिटा दिया और उसकी पयजामी का नाड़ा खोल दिया..उसने भी बिना कोई विरोध करे मेरी सब बाते मानते हुए अपनी पेंटी नीचे खिसका दी...और अब मेरे सामने अंशिका की रस से भीगी हुई गीली चूत थी...जिसे मैंने जैसे ही अपनी जीभ से साफ़ करना शुरू किया उसकी सिस्कारियां बड़ी तेजी से निकलने लगी..
अह्ह्ह्हह्ह .....ओह्ह्ह्हह्ह....विशाल्ल्ल्ल.....मार डालोगे तुम तो मुझे....अह्ह्ह......आई एम् डाईंग तो टेक यूर कोक्क.....सक माय पुसी...हार्ड...ओ य़ा.....हा....ऐसे ही......गुड....एस ऐसे ही.....और तेज.....अह्ह्हह्ह्ह्ह....मम्म.......और फिर उसकी चूत का झरना मेरे मुंह के अन्दर फूट पड़ा..मैंने सारा गरमागरम पानी पी लिया..और उसी अंदाज में उसे देखकर कहा...यम्मी... उसने मुस्कुराते हुए मुझे ऊपर खींच लिया और मेरे गीले होंठों को चूसने लगी...अब मेरे मुंह से उसके रस का स्वाद अंशिका के मुंह में जा रहा था. अब काफी देर हो चुकी थी....
हम अलग हुए ही थे की बाहर से फिर से एक और तेज आवाज आई...ओ रे छोरे...चल बाहर निकल...जल्दी से...और डंडा खडकाने की आवाज आई... मर गया, ये तो कोई हवलदार है...पोलिस को देखते ही अंशिका की तो हवा ही खिसक गयी...मैंने उसे आश्वासन दिया की कुछ नहीं होगा...और मैं बाहर आ गया..अंशिका अभी भी अन्दर थी, नीचे से नंगी. बाहर खड़े हवलदार ने मुझे देखा और पूछा : क्यों भाई...कहाँ से आया है...और क्या कर रहा है अन्दर...निकाल अपनी मेडम को भी बाहर, चलो थाने.
मैं: अरे सर...क्यों गुस्सा हो रहे हो...बस थोडा मस्ती कर रहे थे....समझा करो...
हवलदार: हमें भी करा दे फिर थोडी मस्ती...जाऊ के , मैं भी अन्दर..बोल..साला....सीधी तरह से थाने चल..
मैं: समझ गया की बात ऐसे नहीं बनेगी...और मैंने जेब में हाथ डालकर 100 रूपए उसके हाथ में रख दिए..
हवलदार: ये क्या हे रे...भिखारी समझा है क्या? मैं कह रहा हूँ...जल्दी निकल मेडम को बाहर और थाने चलो.
मैंने एक और नोट निकला और उसे दिया.
हवलदार: खेल मत खेल...500 रूपए दे और बात ख़तम कर.
मैंने बहस करनी उचित नहीं समझी और उसे 500 निकल कर दे दिए. वो खुश होकर चला गया. उसके जाते ही अंशिका भी बाहर आ गयी, वो अपने कपडे पूरी तरह से पहन चुकी थी...और वो थोडी डरी हुई सी लग रही थी.
अंशिका: जल्दी चलो यहाँ से...मुझे बड़ा डर लग रहा है.
मैं: अरे तुम भी न..मेरे होते हुए तुम घबराया मत करो...चलो अन्दर...अब तो मैंने यहाँ का किराया भी दे दिया है..
और मैं हंसने लगा..पर अंशिका काफी डर चुकी थी...और हारकर हम वापिस चल दिए. वापिस पहुंचकर मैंने अंशिका को उसके घर पर उतारा और वापिस चल दिया, मैंने टाईम देखा तो अभी 4 ही बजे थे....मैंने जल्दी से स्नेहा को फ़ोन किया...
स्नेहा: हेल्लो...
मैं: क्या कर रही हो...
स्नेहा: कुछ नहीं...तुम.?
मैं: आज मजा आया...
स्नेहा: हूँ..तुम्हे..?
मैं: मुझे भी....सुनो, मैं आ रहा हूँ शाम को तुम्हे "पड़ाने" ..मेरा वो दूसरा प्रोग्राम केंसल हो गया.
स्नेहा (ख़ुशी से चिल्लाते हुए): मैं आज भगवान् से कुछ और भी मांगती तो मिल जाता, तुम्हारे फ़ोन के आते ही मैं सोच रही थी की काश ये आने के लिए ही कह रहा हो..
मैं: तो तुम तैयार रहना ...आज..
स्नेहा (ख़ुशी को दबाते हुए): किस लिए ...?
मैं: वो तुम जानती हो..
और ये कहते हुए मैंने फ़ोन रख दिया.


![[+]](https://xossipy.com/themes/sharepoint/collapse_collapsed.png)