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Non-erotic चक्रव्यहू by Jayprakash Pawar 'The Stranger'
#23
 "एक्चुअली, तूने मुझसे काफी लम्बे समय तक मुझसे काॅन्टेक्ट नहीं किया तो मुझे लगा कि तू अपनी मैरिड लाइफ में बिजी होकर मुझे भूल गई होगी, इसलिए मैंने भी तुझे तेरे हाल पर छोड़ देना हीं ठीक समझा। पर तू तो अपने मनपसंद साथी का साथ मिल जाने की वजह से मुझे याद नहीं कर रही थीं।"

         "यार, तू इतनी ज्यादा कमीनी हैं कि मेरे पास तेरे कमीनेपन को एक्सप्लेन करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं, पर पता नहीं फिर भी तू मुझे क्यों अच्छी लगती हैं ?"

        "मैंने तेरे साथ क्या किया जो तू मेरे लिए इतना बुरा बोल रही हैं ?"

         "मैंने अपने दिल के हाथों मजबूर होकर तेरे हसबैंड के साथ एज द फ्रेंड कुछ समय साथ बिता लिया तो तुझे इतनी-सी बात की इतनी तकलीफ हो गई कि तू बार-बार घूम-फिरकर उसी बात पर आ रही हैं। ये तेरा कमीनापन नहीं हैं तो क्या हैं ? अरे, तेरी जगह मैं होती और मेरी जगह पर तू होती तो मैं तेरे इमोशंस और फिलिंग की रिस्पेक्ट करते हुए कह देती कि निक्की, तुझे मेरे हसबैंड से जब, जहाँ, जितनी देर के लिए मिलना हैं, मिल सकती हैं, लेकिन तू तो इतनी बेदर्द हैं कि मैं मरने लायक कंडीशन में भी पहुँच जाऊँगी, तब भी तू ऐसा कभी नहीं कहेगी।"

        "ऐसा नहीं हैं बहन, मैं इतनी बेदर्द भी नहीं हूँ जितनी तू मुझे समझती हैं। यदि तुझे मेरे पास मौजूद ऐसी किसी चीज की जरूरत होती जो मैं तेरे साथ शेयर की जा सकती थीं तो जरूर शेयर कर लेती, चाहे वो चीज कितनी भी कीमती क्यूँ न होती, बट अनफोर्चनेटली तुझे ऐसी चीज की जरूरत हैं जो चाहकर भी मैं तेरे साथ शेयर नहीं कर सकती, क्योंकि इसकी न तो हमारा दिल परमिशन देता हैं, न हमारी सोसायटी और न हमारे कन्ट्री का कानून, इसलिए मुझे तेरे दर्द को देखकर भी अनदेखा करना पड़ता हैं।"

         "थैंक यू सो मच फाॅर इट कि तू मेरे इमोशंस और फिलिंग को गलत नहीं समझती हैं और रहा सवाल मेरे इमोशंस और फिलिंग के लिए मेरी कोई अनर्गल डिमांड पूरी करने का तो मैं खुद भी नहीं चाहती हूँ कि तू या तेरा हसबैंड मेरी ऐसी कोई डिमांड पूरी करें जो इल्लिगल या इम्मोरल हो। वो तो मैं तेरे हसबैंड के साथ फ्रेंडशीप इसलिए बनाए हुए थीं क्योंकि मुझे यकीन था कि वे न अपने कदमों को कभी बहकने देंगे और न मेरे कदमों को। बट अब ये भी नहीं करूँगी, क्योंकि ऐसा तू भी नहीं चाहती हैं और मेरे डैड भी नहीं चाहते हैं। बाइ द वे, मैं तुझसे तो मिलने तेरे घर आ सकती हूँ न ?"

         "एनी टाइम।"

         "तो तू थोड़ी देर रूक, मैं तैयार होकर आती हूँ। मेरी तेरे बेटे से मिलने की बहुत दिनों से इच्छा हैं, इसलिए आज तेरे साथ हीं चलकर तेरे बेटे से मिल लेती हूँ। एनी प्राॅब्लम ?"

         "मुझे क्या प्राॅब्लम हो सकती हैं ?"

          "थैंक्स। मैं पाँच मिनट में तैयार होकर आ रही हूँ।"

          "ओके।" निक्की का जवाब सुनते हीं मानसी अपने घर के हाल से उठकर सीढ़ियों की ओर कदम बढ़ाने लगी।
                             ......................

         "निक्की, तेरा बेटा तो बहुत ही क्यूट हैं।" मानसी ने अपनी गोद में बैठे करीब तीन साल के बच्चे के सिर पर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।

        "अले, आप मुदे इनका बेटा क्यूँ बोल लही हैं ? मैं तो पापा दी की बेटा हूँ।" मानसी की बात पर निक्की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, इससे पहले ही तीन वर्षीय बालक ने अपनी तोतली भाषा में उसकी बात पर अपनी आपत्ति प्रकट कर दी।

        "साॅरी बेटा, मुझे पता नहीं था कि आप सिर्फ अपने पापा जी के बेटे हैं, इसलिए मैंने आपको इनका बेटा बोल दिया। बाइ द वे, क्या मैं जान सकतीं हूँ कि आप अपनी मम्मी के बेटे क्यों नहीं हो ?"

         "मम्मा, मुदे औल पापा दी को हमेता दातती लहती हैं, इतलिए।"

          "तब तो आपकी मम्मा वाकई बहुत बुरी हैं। एनी वे, हम लोग ऐसे बुरे लोगों की बात करके अपना टाइम वेस्ट नहीं करते हैं। अब हम लोग अपनी बात करते हैं। बेटा, ये बताइए कि आपका नाम क्या हैं ?"

          "लिथु।"

          "लिथु तो बहुत प्यारा नाम हैं। आपका इतना प्यारा नाम पापा जी ने रखा या मम्मा ने ?"

          "पता नहीं, बत मेला नाम लिथु नहीं 'लिथु' हैं।"

          "डू यू मीन रिषु  ?"

          "हाँ।"

          "अच्छा रिषु जी, अब ये बताओं कि मैं आपको कैसी लगी ?"

           "अत्थी।"

           "सिर्फ अच्छी या बहुत अच्छी ?"

           "बहुत अत्थी।"

           "तो आप मुझे मौसी कहेंगे ?"

           "हाँ।"

           "मौसी नहीं, तू बोलेगी तो ये तुझे मम्मी भी कह देगा।" ये कहकर निक्की ने दोनों की बातचीत में व्यवधान उत्पन्न कर दिया।

          "निक्की, तू ऐसी बात करेगी तो मैं अब तेरे घर कभी नहीं आऊँगी।" मानसी ने नाराजगी जाहिर की।

          "अरे, भड़क क्यूँ रही हैं ? मैं तो मजाक कर रही थी।"

          "छोटे से बच्चों के सामने ऐसा मजाक करना भी गलत हैं, जिससे उनके मन में बुरा असर हो सकता हैं।"

           "ये बात मुझे भी पता हैं।"

           "पता हैं तो ऐसी बकवास क्यों की ?"

           "इस छुटके को अभी इतनी समझ नहीं हैं कि इसके मन पर ऐसी बातों का अच्छा या बुरा असर पड़े, इसलिए।"

           "यदि तू ऐसा सोचती हैं तो तू गलत हैं। मैंने तीन साल से लेकर पंद्रह साल की उम्र के बच्चों के कॉलेज में पूरे पाँच साल तक टीचरशीप की हैं, इसलिए मुझे इतना एक्सपीरियंस हो चुका हैं कि मैं किसी बच्चे से दो मिनट की बातचीत करके जान लेती हूँ कि उस बच्चे की समझ-बूझ कितनी विकसित हो चुकी हैं और मेरे इस एक्सपीरियंस के आधार पर जान लिया कि तेरे बेटे...साॅरी, मेरे जीजू के बेटे के अंदर तुझसे तो ज्यादा हीं समझ-बूझ विकसित हो चुकी हैं।"

        "तू सही बोल रही हैं, इसमें अपने बाप की तरह कुछ ज्यादा हीं समझ-बूझ विकसित हो गई हैं।"

        "देख निक्की, मैं तुझे अपनी बहन मानती हूँ इसलिए तुझे एक नेक सलाह दे रही हूँ कि तू इस तरह अपने बच्चे के सामने उसके पापा जी की डायरेक्ट या इनडायरेक्ट बुराई मत कर, अदरवाइज ये तुझसे उसी तरह दूर हो जाएगा जैसे जीजू तुझसे दूर हो चुके हैं। चल छोड़ इस बात को और ये बता कि क्या मैं मेरे रिषु को आज दिन भर के लिए अपने साथ ले जा सकती हूँ ?"

        "ले जा, बट उसकी च्वाइस के एकार्डिंग कुछ मत खिलाना। यदि कुछ खिलाना जरूरी हो जाए तो इस उम्र बच्चों के लिए जो हेल्दी हो, वही खिलाना।"

       "यार, फिर तू इसे अपने पास हीं रख लें क्योंकि मुझसे बच्चों का दिल दुखाना नहीं होता हैं।"

       "तो तू क्या बच्चों की खुशी के लिए उन्हें मनमानी करने देने के फेवर में हैं ?"

        "नहीं, बट कभी-कभी मौसी के साथ जाए तो मस्ती तो बनती हैं।"

        "ठीक हैं, बट ये तेरा भैय्यू बिगड़ा न तो इसे पर्मानेन्टली तेरे घर भेज दूँगी।"

         "नो प्राॅब्लम। भैय्यू, मेरे साथ चलोगे ?"

         "हाँ मौथी।"

         "गुड ब्वाय। बाय निक्की, मैं जा रही हूँ।"

         "अरे, चाय-काॅफी कुछ तो ले ले।"

          "नो यार, तूने ये इतना प्यारा टाॅय मुझे दे दिया हैं, तो अब मेरा मन चाय-काॅफी में लगेगा क्या ? अब तो सालों बाद मानसी इस टाॅय के साथ जी भरकर मस्ती करेगी। बाय, जा रही हूँ मैं। बेटा, मम्मा को बाय बोलो।"

        "बाय मम्मा।" रिषु ने निक्की की ओर देखकर हाथ हिलाते हुए कहा।

         "बाय बेटा, बाय मानसी।" कहते हुए निक्की ने भी विदाई के अंदाज में अपना हाथ हिला दिया।
                          .......................

        "क्या हुआ डैड, आज आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं ?" घर के हाल में बैठे एस के गुप्ता के पास आकर मानसी ने सवाल किया।

        "बेटा, जैसे घर के बाकी लोगों ने मुझ पर ध्यान देना बंद कर दिया, वैसे ही तुम भी मुझ पर ध्यान देना बंद कर दो, क्योंकि आजकल मैं अक्सर कोई न कोई परेशानी की वजह से परेशान रहता हूँ और मुझ पर ध्यान देकर तुम भी बेवजह परेशान होती रहती हो।" एस के गुप्ता ने गम्भीर स्वर में उसकी बात के जवाब में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

         "डैड, मैं आपको अपने हाल पर छोड़ दूँ तो फिर हम दोनों के बीच के बाप-बेटी के रिश्ते का क्या सेंस रह जाएगा ?"

          "बेटा, जब इस घर के बाकी के दो स्थायी और दो अस्थायी सदस्यों के मुझे मेरे हाल पर छोड़ देने के बावजूद भी उनका मेरे साथ रिश्ता बना हुआ हैं तो तुम मेरे साथ रिश्ता बनाए रखने के लिए हर वक्त मेरा हाल-चाल और परेशानी जानकर परेशान होना क्यों जरूरी समझती हो ?"

          "इस घर के बाकी मेम्बर्स ने आपको आपके हाल पर छोड़ दिया, इसका मतलब ये नहीं हैं कि मैं भी आपको आपके हाल पर छोड़ दूँ। डैड, मैं आपको कभी आपके हाल पर नहीं छोड़ सकती, क्योंकि आप दुनिया के उन दो पर्सन्स में शामिल हैं जो मेरे लिए सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। आपको पता हैं न कि मैंने आपके दिल को कोई चोट न पहुँचे, इस वजह मैंने अपने लिए सबसे ज्यादा मायने रखने वाले दूसरे पर्सन का साथ तक छोड़ दिया ?"

         "हाँ बेटा और मुझे तुम्हारे उस डिसिजन की वजह से तुम्हें अपनी बेटी कहने में गर्व महसूस होता हैं, पर आज एक बात जानने के बाद तुम्हारे मन में अपने उस डिसिजन को लेकर जो अफसोस वो दूर हो जाएगा और तुम ये बात मानने पर मजबूर हो जाओगी कि अपने डैड को हर्ट न करने के लिए तुमने अपनी लाइफ के उस दूसरे सबसे इम्पाॅर्टेंट पर्सन का साथ छोड़ने का जो डिसिजन लिया था, वो बिल्कुल सही था। मैं आज परेशान भी उस शख्स के गलत निकल जाने की वजह से ही हूँ। दरअसल बात ये हैं कि आज फिर हमारे हाथ से एक टेंडर निकल गया हैं और इसकी वजह भी वही हैं जो पिछली बार हमारे हाथ से टेंडर निकल जाने की थीं, यानि किसी ने हमारी प्रतिद्वंद्वी कम्पनी को हमारे टेंडर एक्जेक्ट एमाउंट बता दिया और इस वजह से उस कम्पनी हमारे टेंडर के एमाउंट से मात्र एक हजार रूपये कम का टेंडर भरकर एक बड़ा ऑर्डर हमसे हथिया लिया।"

         "डैड, ये तो हमारे साथ वाकई बहुत बुरा हुआ, लेकिन इसकी वजह से हर्षित कैसे गलत साबित हो गया ?"

          "इस टेंडर के पेपर उसी ने तैयार किए थे और इस टेंडर के एमाउंट की मेरे अलावा सिर्फ उसी को जानकारी थीं। अब तुम खुद सोच सकती हो कि इस एमाउंट के बारे में हमारी कम्पेटेटर कम्पनी को किसने बताया होगा ?"

           "डैड, ये को-इन्सीडेंट भी तो हो सकता हैं।"

           "नहीं बेटा, ये को-इन्सीडेंट नहीं हैं क्योंकि को-इन्सीडेंट में करोड़ों के टेंडर में दो कम्पनियों के टेंडर के एमाउंट में इतना माइनर अंतर नहीं होता हैं।"

          "चलिए, मैं आपकी बात मान लेती हूँ कि ये को-इन्सीडेंट नहीं हैं, बट ये तो मैं मान हीं नहीं सकती कि हर्षित किसी के साथ विश्वासघात कर सकता हैं। ये जरूर किसी थर्ड पर्सन ने किया होगा।"

           "मानसी, इस तरह किसी पर आँख बंद करके विश्वास करना गलत हैं, क्योंकि धोखा खाने की यही सबसे बड़ी वजह साबित होता हैं।"

          "डैड, हर्षित पर मेरे ट्रस्ट को आँख बंद करके विश्वास करना नहीं कहा जा सकता हैं, क्योंकि उस पर मेरा ये ट्रस्ट करीब आठ साल तक उसका बिहेवियर और एक्टीविटिज क्लोजली वाॅच करने के बाद बना हैं एंड आई एम श्योर फाॅर इट कि मेरा ये ट्रस्ट कभी ब्रीच नहीं होगा।"

          "बेटा, तो तुम मुझे ये बताओं कि ये कारनामा हर्षित का नहीं हैं तो किसका हैं ?"

          "आई डोंट नो, बट आई एम श्योर कि इतना घटिया काम हर्षित कर ही नहीं सकता।"

           "बेटा, ये जो तुम्हारी सोच हैं न कि कोई इंसान ने काफी लम्बे समय तक जिन उच्च आदर्शों और सिद्धांतों को अमल में लाता रहा, वह हमेशा हीं उन आदर्शों और सिद्धांतों पर अडिग रहेगा, ये भी गलत हैं क्योंकि चंद लोग हीं पैदाइशी बेईमान होते हैं, ज्यादातर तो अपनी उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर हीं बेईमानी का रास्ता अख्तियार करते हैं। मुझे लगता हैं कि ये लड़का भी उन ज्यादातर लोगों जैसा हैं।"

           "नहीं डैड, आपकी ये गेसिंग पूरी तरह से इनकरेक्ट हैं। आप हर्षित को एक चांस दीजिए, वो अपने इनोसेंट होने का प्रूफ भी आपको दे देगा और असली गुनाहगार को भी बेनकाब कर देगा।"

           "बेटा, मेरा दिल मुझे उससे कोई भी बात करने की इजाजत नहीं दे रहा हैं।"

            "प्लीज डैड, मेरे लिए आप एक बार उससे बात कर लीजिए। आई प्राॅमिश टू यू कि वो अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाता हैं तो मैं आपको उसे अपनी कम्पनी से निकालने से नहीं रोकूँगी। पर आपको उसे एक मौका तो देना हीं पड़ेगा, ये मेरी आपके रिक्वेस्ट भी और जिद भी।"

            "बेटा, मेरा मन तो नहीं हो रहा हैं, पर तुम नहीं मान रही हो तो मैं उससे बात करके एक मौका दे देता हूँ।"

            "थैंक यू डैड।"

             मानसी के प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले ही एस के गुप्ता ने अपना मोबाइल निकाल लिया।

            "डैड, क्या कहा हर्षित ने ?" एस के गुप्ता की मोबाइल पर बात खत्म होने के बाद मानसी ने पूछा।

           "वो कह रहा था कि उसे दो-तीन का टाइम चाहिए, असली गुनाहगार का पता लगाने के लिए।"

           "डैड, प्लीज हर्षा को दो-तीन दिन का टाइम दे दीजिए न।"

           "आलरेडी दे चुका हूँ।"

           "थैंक्स डैड। आइए, मैं आपके लिए डिनर लगाती हूँ।" कहकर मानसी किचन की ओर चली गई।
                            ..................

          "हर्षित, हमारे टेंडर लीक मामले के बारे में तुम्हारे हाथ कोई बड़ा सुराग लग चुका हैं और उसे तुम मुझसे छुपा रहे हो ?" एस के गुप्ता ने हर्षित की आँखों में झाँकते हुए सवाल किया।

         "सर, ऐसा कुछ नहीं हैं। आज दिनभर की तमाम कोशिशों के बावजूद इस मामले के सुराग के नाम मेरे हाथ पूरी तरह से खाली हैं, बट आई होप कि अगले एक-दो दिन में मैं इस मामले के सूत्रधार का चेहरा बेनकाब कर दूँगा।" हर्षित ने अपने स्वर में बनावटी आत्मविश्वास के भाव लाने का प्रयास करते हुए जवाब दिया।

         "बेटा, मैंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं बल्कि लम्बे समय तक बिजनेस करते हुए सफेद हुए हैं, इसलिए तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश करना बंद करों और साफ-साफ बता दो कि उस नाइट शिफ्ट में ड्यूटी करने वाले ऑफिस के वाॅचमेन ने तुम्हें क्या बताया, जिसे तुमने ऑफिस की सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद अपने कैबिन में पूछताछ के लिए बुलवाया था ?"

         "उससे कोई काम की बात पता नहीं चली।"

         "तो तुमने उससे पूछताछ करने के बाद अचानक अपनी इन्क्वायरी क्यों बंद कर दी ?"

          "सर, मैंने इन्क्वायरी बंद नहीं की हैं, सिर्फ कुछ देर के लिए ब्रेक की हैं।"

          "बेटा, तुम पिछले पाँच साल से मेरे साथ काम कर रहे हो और इस तीन माह में मैंने कभी भी तुम्हें इस टाइप की सेन्सेटिव प्राॅब्लम सामने खड़ी होने पर इतना लम्बा ब्रेक लेते हुए नहीं देखा हैं, जितना लम्बा ब्रेक तुमने आज लिया हैं, इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि तुम्हें उस वाॅचमेन से ऐसा इस फ्राॅड से जुड़ा कोई सुराग जरूर मिला हैं, जिसे तुम सबसे सीक्रेट रखना चाहते हो, इस वजह से तुमने ये इन्क्वायरी यही पर क्लोज कर दीं। पर तुम्हारी जानकारी के लिए मैं बता देता हूँ कि यदि तुम ये इन्क्वायरी आगे नहीं बढ़ाओगे तो मुझे इसे आगे बढ़ानी पड़ेगी क्योंकि मैं अपनी कम्पनी को डेढ़-दो करोड़ का चूना लगाने वाले गद्दार को बेनकाब करके सजा दिलाए बिना नहीं रह सकता। तुम मुझे वाॅचमेन से मिले सुराग के बारे में नहीं बताओंगे तो मुझे मजबूरन उसे सिक्युरिटी की मदद से उससे सच्चाई उगलवाकर ये इन्क्वायरी आगे बढ़ानी पड़ेगी।"

         "सर, आई रिक्वेस्ट टू यू कि आप एक-दो दिन तक ऐसा कुछ मत कीजिए। यदि एक-दो दिन मैं उस गद्दार को बेनकाब नहीं कर पाया तो आपको जो सही लगे, कर लीजिएगा।"

          "अरे बेटा, लेकिन ये मामला आज ही सिक्युरिटी के हवाले करने में नुकसान क्या हैं ?"

          "इससे मानसी की बदनामी हो सकती हैं।"

          "क्या ?"

          "हाँ सर।"

          "तो क्या तुम ये कहना चाहते हो कि इस फ्राॅड में मानसी का कोई रोल हैं ?"

          "नो सर।"

          "तो फिर ये मामला सिक्युरिटी को सौंपने से मानसी की बदनामी क्यों होगी ?"

           "एक्चुअली, उस नाइट शिफ्ट वाले वाचमेन कहना हैं कि करीब तीन माह पहले उसने मानसी के कहने पर मेरे कैबिन में हिडन कैमरा फिट किया था और वह उसी के कहने पर पिछले तीन माह से हर दिन सुबह करीब छः बजे मेरे कैबिन आकर उस कैमरे से उसमें लगा मेमोरी कार्ड निकालकर नया मेमोरी कार्ड फिट करता था और पिछले चौबीस घंटे की रिकार्डिंग वाला मेमोरी कार्ड मानसी को सौंप देता था, इसलिए मुझे लगता हैं कि आप उसे सिक्युरिटी के हवाले करेंगे तो वो सिक्युरिटी को भी यही बताएगा और इससे टेंडर लीक का एलीगेशन मानसी पर लग जाएगा।"

           "क्या तुम सही बोल रहे हो ?"

           "जी हाँ। आपको यकीन नहीं आ रहा हैं तो मैं उस वाॅचमेन के साथ हुई मेरी बातचीत की रिकार्डिंग आपको सुना सकता हूँ जो उसी हिडन कैमरे में रिकॉर्ड हुई हैं जो उसने बगलवाली कबर्ड के ऊपर रखे मैटल एलीफेन्ट के पैरों के पीछे छुपाकर रखा था। एक मिनट रूकिए, मैं आपको भी दिखा देता हूँ।" कहकर हर्षित ने अपनी मेज के ड्राअर से एक छोटा-सा डिजिटल कैमरा निकाला और उसमें लगा मेमोरी कार्ड निकालकर अपने कम्प्यूटर से कनेक्ट किया। इसके बाद एक स्केन प्ले करके कम्प्यूटर के माॅनीटर का फेस एस के गुप्ता की ओर घुमा दिया।

          "बेटा, आज इस रिकॉर्डिंग को देखने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा हैं कि करीब तीस साल तक बिजनेस के फील्ड में रहकर तरह-तरह के लोगों से मिलने और जीवन में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद भी मैं इस मायावी दुनिया की एबीसीडी तक नहीं जान पाया। ये मैं कभी इमेजिन तक नहीं कर सकता था कि मेरी बेटी मानसी मेरे साथ चीटिंग करने के मामले में मेरी बीवी, मेरे दूसरे बच्चों और मेरे दामाद से भी चार कदम आगे निकल जाएगी।"

          "बट सर, मुझे ऐसा नहीं लगता कि हमारी कम्पनी का टेंडर के एमाउंट की डिटेल हमारी कम्पेटेटर कम्पनी को देने में मानसी का कोई हाथ हैं।"

          "बेटा, ये तुम नहीं बल्कि तुम्हारा मानसी के प्रति ब्लाइंड फैथ बोल रहा हैं। यदि तुम अपने इस ब्लाइंड फैथ का चश्मा उतारकर देखोगे तो तुम्हें ये समझने में एक मिनट से भी कम समय लगेगा कि ये काम मानसी के अलावा किसी दूसरे का नहीं हो सकता, पर तुम ये चश्मा उतारकर देखोगे नहीं इसलिए मैं ही तुम्हें समझा देता हूँ। देखो, अभी तक मेरा शक तुम पर था क्योंकि उस टेंडर की रकम की मेरे अलावा सिर्फ तुम्हें जानकारी थीं, लेकिन अब हमारी जानकारी में एक ऐसा तीसरा शख्स आ चुका हैं जो तुम्हारे कैबिन में होनेवाली हर गतिविधियों की गुपचुप तरीके रिकार्डिंग करवाता हैं जो सीधा इस बात की ओर इशारा करता हैं कि ये घृणित काम उसी तीसरे शख्स का हैं। तुम्हें याद तो होगा न कि हम दोनों उस टेंडर के एमाउंट के बारे में डिसकस इसी कैबिन में किया था ?

            "यस सर।"

            "तो फिर तुम ये भी समझ हीं गए होंगे कि हमारी बातचीत की रिकार्डिंग देखने वाले शख्स को उस टेंडर का एमाउंट की जानकारी बिना दिमाग खर्च किए बड़ी आसानी से हो सकती हैं ?"

            "जी हाँ।"

            "तो अब क्या कहना हैं तुम्हारा ?"

            "यही कि मानसी ऐसा घटिया काम नहीं कर सकती। मुझे लगता हैं कि वो वाॅचमेन झूठ बोल रहा हैं। इसमें तो कोई शक नहीं हैं कि ये हिडन कैमरा उसी ने फिट किया था और वो हर दिन सुबह इसमें से रिकॉर्डिंग निकालकर किसी को देता भी था, क्योंकि इस कैबिन के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में वो इस कैबिन में हर दिन सुबह आता-जाता नजर आ रहा हैं, लेकिन लगता हैं कि वो सब ये किसी और के कहने पर कर रहा था और उसी का नाम छिपाने के लिए उसने मानसी का नाम बता दिया होगा, इसलिए हमें किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले एक बार मानसी से बात करनी चाहिए। मैं तो उससे बात कर नहीं सकता, इसलिए आपको हीं उससे बात करनी पड़ेगी।"

            "मैं उससे किसी भी हालत में बात नहीं करूँगा।"

            "तो फिर मुझे हीं उसके साथ बात करनी पड़ेगी।"

            "मुझे नहीं लगता हैं कि तुम्हें भी उससे मिलकर कुछ हासिल होने वाला हैं, पर तुम अपनी तसल्ली के लिए उससे मिलने के लिए मेरी ओर से स्वतंत्र हो।" कहकर एस के गुप्ता हर्षित के कैबिन से बाहर निकल गए।
                                 ...........

         "मानसी, आर यू ओके ?" हर्षित ने कुछ चिंतित स्वर में पूछा।

        "डोंट वरी मिस्टर हर्षित, आई एम एब्सॅल्यूटली फाइन।" इस बार हर्षित को तुरंत जवाब मिल गया। जवाब देने के साथ हीं मानसी अचानक मुस्कुराती हुई उठकर खड़ी हो गई।

        "तुम ठीक हो तो नीचे क्यों नहीं आयी ?"

        "क्योंकि मैं नीचे आ जाती तो तुम ऊपर नहीं आते और तुम्हें मेरे रूम में कम से कम एक बार बुलाने की मेरी तमन्ना आज भी पूरी नहीं होती।"

        "और तुम मुझे अपने रूम में बुलाना किसलिए चाहती थीं ?"

        "अरे, भड़को मत यार। मैंने तुम्हें अपने रूम में किसी गलत पर्पस से नहीं बुलाया हैं। मैंने तो तुम्हें सिर्फ यहाँ इसलिए बुलाया हैं कि तुम मेरी तन्हाई के गवाह इस रूम में आकर मेरे दिल के दर्द को कुछ लम्हों के लिए महसूस करों, ताकि तुम्हें प्यार में असफल इस बेचारी मासूम-सी लड़की को होनेवाली असहनीय पीड़ा का कुछ अहसास हो सके।"

        "मुझे अपनी पीड़ा का अहसास कराकर तुम्हें क्या मिल जाएगा ?"

         "हम लोग अपना दर्द किसी को क्यों बताते हैं ?"

         "आई डोंट नो, क्योंकि मैंने कभी अपना दर्द किसी को नहीं बताया ?"

         "कोई बात नहीं, मैं तुम्हें बता देती हूँ कि हम लोग अपना दर्द दूसरों को इसलिए बताते हैं क्योंकि इससे हमारे दिल का दर्द कुछ कम हो जाता हैं।"

         "तुम्हें कुछ और कहना हैं या मैं तुम्हारे साथ जो बात करने आया हूँ, वो शुरू करूँ ?"

          "बस एक आखिरी बात सुन लो, फिर आराम से अपनी बात कर लेना।"

           "बोलो ..।"

           "पहले आराम से बैठ जाओं और चाय या काॅफी लो, उसके बाद बताती हूँ। चंदा ..।"

           "देखो मानसी, मेरे पास आराम बैठकर चाय-काॅफी पीने का टाइम नहीं हैं, इसलिए तुम्हें जो कहना हैं, जल्दी कहो ताकि उसके बाद मैं अपनी बात कर सकूँ।"

           "ठीक हैं, लेकिन बैठ तो जाओ।"

           "लो यार, बैठ गया। अब तो कह दो कि क्या बताना चाह रही हो ?"

            "इस रूम की दीवारों को देखकर तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इन पर पोस्टर जैसी कोई चीजें टेप की हेल्प चिपकाकर बाद में हटा दीं गई हैं ?"

            "लगता हैं।"

            "क्या तुम गेस कर सकते हो कि इन पर क्या चिपकाया गया था और क्यों हटाया गया ?"

             "नहीं।"

             "कोई बात नहीं, मैं बता देती हूँ। इन दीवारों पर तुम्हारी तस्वीरें लगीं हुई थीं और उन्हें मैंने रिषु की वजह से हटाई। एक्चुअली, एक दिन मैं उसे अपने साथ लेकर आयी थीं और वो मेरा रूम देखने की जिद करने लगा तो मुझे उसे रूम में लेकर आने से पहले तुम्हारी तस्वीरें हटानी पड़ी, ताकि उसे मेरे रूम तुम्हारी तस्वीरें देखकर कोई स्ट्रेंज फीलिंग न हो। अब तुम अपनी बात शुरू कर सकते हो।"

          "थैंक्स। तुम सबसे पहले ये बताओ कि क्या तुमने हमारे ऑफिस के वाॅचमेन अनोखेलाल से तीन माह पहले मेरे कैबिन में हिडन कैमरा फिट करवाया था ?"

           "हाँ।"

           "व्हाट ?"

           "अरे, तुम तो मेरी 'हाँ' सुनकर ऐसे चौंक उठे जैसे मैंने कैमरा नहीं बल्कि कोई टाइम बम फिट करवाया था। अरे बाबा, ......।"

           "तुम अपनी बकवास बंद करों और ये बताओ कि तुमने ये स्टूपिड काम किस पर्पस से करवाया था ?"

           "रेग्युलरली तुम्हारी दिन भर की एक्टीविटिज देखने के लिए। एक्चुअली, मेरी प्राॅब्लम ये हैं कि मैं तुम्हें देखें और तुम्हारी बातें सुने बिना नहीं रह सकती हूँ इसलिए जब लोगों ने मेरा तुमसे मिलने और तुम्हारे साथ बातचीत करने के सारे रास्ते बंद कर दिए तो मुझे तुम्हें देखने और तुम्हारी बातें सुनने का यही एक तरीका नजर आया और मैंने उस वाॅचमेन की हेल्प से ये करना शुरू कर दिया।"

           "यार मानसी, कभी-कभी मुझे ऐसा लगता हैं कि तुम्हें एक दर्शनीय चीज की तरह म्यूजियम में बिठाकर रखना चाहिए। जानती हो, तुम्हारी इस बचकानी हरकत की वजह से हीं हमारी कम्पनी का पिछला टेंडर हमारे हाथ से निकला हैं।"

          "यदि ऐसा हुआ हैं तो मुझे अपनी इस हरकत के लिए हमेशा अफसोस रहेगा, बट प्लीज बिलिव मी, मैंने सिर्फ उसी पर्पस से ये सब किया जो मैंने तुम्हें बताया।"

           "मुझे तो पूरा यकीन हैं कि तुमने ये किसी गलत पर्पस से नहीं किया होगा, बट तुम्हारे डैड तुम्हें गलत समझ बैठे हैं।"

           "यानि, उनकी शक की सुई तुम्हारी ओर से मेरी ओर घूम गई ?"

            "हाँ।"

            "थैंक्स गाॅड।"

            "बड़ी अजीब लड़की हो यार तुम। तुम्हारे डैड तुम्हें गलत समझ बैठे हैं और तुम परेशान होने की बजाय भगवान को धन्यवाद कह रही हो।"

             "अरे, मैं भगवान को मेरे डैड के मुझे गलत समझ लेने की वजह से धन्यवाद नहीं दे रही हूँ बल्कि उनकी कृपा से मेरे डैड के शक की सुई तुम पर से हट जाने की वजह से उन्हें धन्यवाद दे रही हूँ।"

             "तो क्या तुम्हें तुम्हारे डैड के तुम्हें गलत समझ लेने का कोई दुख नहीं हैं ?"

            "थोड़ा दुख तो हो रहा हैं बट खुशी इतनी ज्यादा हो रहीं हैं कि ये दुख का अहसास उसके नीचे दबकर दम तोड़ रहा हैं।"

            "मानसी, तुम पागल हो गई हो।"

            "इसे पागल होना नहीं दीवाना होना कहते हैं।"

             "जो भी कहते हो, लेकिन इसकी वजह से मेरी सिरदर्दी बढ़ गई हैं। एक बात बताओं कि वो वाॅचमेन तुम्हें मेरे कैबिन की रिकार्डिंग डेली सौंपता था या .....?"

              "डेली सौंप देता था।"

              "करीब कितने बजे ?"

              "शुरू के एक-डेढ़ माह तक वो सुबह साढ़े आठ से नौ बजे के बीच आकर दे देता था, लेकिन उसके बाद वो दोपहर बारह से साढ़े बारह बजे के बीच सौंपने लगा था।"

             "बाद में सुबह रिकार्डिंग न दे पाने का उसने कोई रिजन बताया था ?"

             "हाँ, कह रहा था कि आजकल उसकी तबियत ठीक नहीं रह रही हैं इसलिए रातभर ड्यूटी करने के बाद उसके लिए सुबह आठ बजे छुट्टी होते हीं बिना रेस्ट किए मेरे घर तक आना पाॅसिबल नहीं हैं, इस वजह वो मुझे रिकार्डिंग तीन-घंटे लेट सौंप रहा हैं।"

            "इसका मतलब ये हुआ कि वो पहले तो रिकार्डिंग डायरेक्ट तुम्हें लाकर देता था, लेकिन बाद में उसने तुम्हें सौंपने से पहले या तो खुद देखना शुरू कर दिया था या फिर किसी और को दिखाना शुरू कर दिया था। मुझे लगता हैं कि ये टेंडर लीक की गुत्थी नाइंटी परसेन्ट सुलझ चुकी हैं, बस टेन परसेन्ट सुलझाना बाकी हैं। मानसी, अब मैं चलता हूँ।"

            "अरे, ऐसे कैसे जा सकते हो ? पहली बार हीं तो घर आए हो और  .....।"

            "मानसी, मेरा मन तो हो रहा हैं कि मैं तुम्हारा दिल रखने के लिए कुछ खा-पी लूँ, बट आई एम सो साॅरी कि मुझे अभी के अभी जाना हैं इसलिए मैं कुछ भी खा-पी नहीं पाऊँगा। मैं जा रहा हूँ।"
                
             "फिर कब आओगे ?"
   
             "पता नहीं।"

             "ओके, टेक केयर।"

             "यू टू , बाय।"

             "बाय।" मानसी के मुँह से ये सुनने के बाद हर्षित उसके कमरे से बाहर निकल गया।

             (Rest story read in next part which is coming soon)
Images/gifs are from internet & any objection, will remove them.
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RE: चक्रव्यहू by Jayprakash Pawar 'The Stranger' - by pastispresent - 10-03-2019, 10:49 PM



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