Thread Rating:
  • 10 Vote(s) - 2.4 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Thriller कामुक अर्धांगनी
विरजु बड़े आनंद पूर्वक मधु के ऊपर सवार हो चुत के गहराई मैं लड़ डाले मधु के होंठो का रस पान करने लगा था और मधु अपनी टाँगों को विरजु के कमर पर जकड़ अपने बाहों के हार उसके गर्दन पर लपेटी खुल के चुम्बन मे रामी हुई थी मानो दो प्यासे प्रेमी बरसों बाद एक दुज़े के जिस्म को भोग रहे हो और इधर कालू की उँगलियी मेरी मुँह मे घुसी हुई थी और वो मेरे होंठो को खिंचता अपने लड़ को मेरी गाँड पर दबाते मुझे तड़पा रहा था ।



हम दोनों बहनें दो मर्दों के साथ संभोग मे पूर्णतः लीन थे और कमरे मे बस मादकता की छटायें बिखरी पड़ी थी और मंद मंद सिशकिया गुज़ रही थी ।


मेरी गाँड की नसें कालू के लिंग से तार तार हुई घर्षण की प्यासी होने लगी थी और एक प्यासी औरत की तरह मे खुद के गाँड को कालू के लिंग पर दबाने लगी थी मानो मैं अपना सूद भूल चुकी हूँ और कालू मेरी कसी गाँड पर लड़ डाले बड़े उतेजित भाव से मेरी होंठो को हाथों से खींच मेरी तड़प को टटोलने मे खोया था , अब मुझसे बिना चुदवाये रहा न जाने लगा था और मैं कालू के उंगलियों को जीभ से चाटने लगी थी और गाँड कालू के लिंग पर धकलने लगी और कालू झुक कर मेरी गर्दन पर दाँतो को गड़ाने लगा था मानो वो मेरी प्यासी जवानी को और तड़पाने पर आतुर हुआ हो ।


कालू के यू बदन पर प्यार से दाँतो के वार से मैं अति रोमांचित होती जा रही थी और खुद के जिस्म पर एक अजीब सिहरण सी महसूस करने लगी थी और कालू के दाँत काटने से और सिहर जाती वो मेरे जिस्म पर अपने भारी तगड़े बदन को हौले हौले रगड़ रहा था और उसके सीने के बालों को अपने चिकने बदन पर महसूस करती मैं सातवें आसमान पर उड़ने लगी थी ।


चारों टाँगों पर कुतिया बनी अनु यानी मैं निढ़ाल सी होने लगी थी मानो मैं एक औरत की विवशता को महसूस करती मर्द के आगे टूटने लगी थी ।


मेरी झाघो पर तनाव आ गया था ओर हाथ काँपने लगे थे और एक पल आया कि मैं बिस्तर पर गिरती बस करहाने लगी और कालू मेरी चिकनी पीठ पर न जाने कितने दाँतो के निशान बनाने लगा और मैं उसके उँगलियों को चुस्ती उसके जिस्म के भार से दबती बिल्कुल खो के पागल हो गई थी ।



कालू ने मेरे कान को दाँतो से खिंचा था और फुसफुसा के बोला मेरी बछडी चल पलट जा और झटके से लड़ खिंच मुझे चीख़ने पर विवश करता वो मुझे बिस्तर पर पलट खुद को मेरे बदन के ऊपर रख मेरे होंठो को चुसने लगा था और हाथों से मेरी बालों को खिंचता मुझे दर्द कसक और प्यार से बाबली बनाये जा रहा था ।



मैं औरत बन मधु के कसक को समझने लगी थी और खुद के फैसले पर इतराने लगी थी कि मैंने खुद अपने हाथों से मधु के योवन को मर्दों के हवाले कर एक बड़ा नेक कार्य किया था ।


कालू मेरी जीभ ज़ोर से खींच चुसता और अपने जीभ को मेरे जीभ से रगड़ता और मैं हाथों को बिस्तर के चादर पर रगड़ती की कहीं भूल से कालू के बीच न ले जाऊ । कालू संपूर्ण तरीके से मुझे निढ़ाल कर चुका था और मेरी चिकने जिस्म पर हाथों को फेरता अपने लिंग को मेरे पेट पर दबाते जा रहा था और मैं सोच रही थी कि कब ये लिंग मेरी गाँड मे समा जाए ।


कालू हल्का उठ मेरी दोनों निप्पलों को उँगलियी के बीच रगड़ता ज़ोर से मसलने लगा था और मैं बिस्तर पर कौंधने लगी थी और कालू मेरी चढ़ती कमुक आँखों को देख मंद मंद मूशक रहा था मानो वो अपने दासी की दीनता देख इतरां रहा हो ।



मेरी निप्पलों पर कालू बेरहमी से उँगलियों को रगड़ रहा था और मैं डबडबाती आँखों से काँपते होंठो से सिसक रही थी । कालू एक ऐसा मर्द था जो मुझ गांडू को कुछ पल मे ही संपूर्ण औरत की बिवसता समझाने लगा था कि क्यों एक सुखी औरत सब मान मर्यादा त्याग एक पराये मर्द के लिए क्यों तड़प जाती आखिर क्यों वो एक मर्द के लिए समाज से परे कार्य करती ।



कालू मुझे सिर्फ समझा ही नहीं रहा था पर महसूस भी कराता जा रहा था कि एक मर्द के नीचे ही औरत की प्यास बुझती है , जो पति नामर्द निकल जाए तोह कालू जैसे मर्दो की रखेल बन जाती है क्योंकि मर्द की प्यास असली प्यास होती है और कालू तोह एक औरत की प्यास बुझाने मे निपुण तोह था ही ।


मुझ जैसी नामर्द गांडू को यू औरत सा योवन सुख देता कालू मेरे निप्पलों को मसलता बोला अनु मेरी कुतिया तुझे मज़ा आ रहा है ना और मैं होंठो को होंठो तले दबाती बोली कालू लड़ डालो न मेरी गाँड मे और कालू निप्पलों को ऊपर खिंचते बोला खुद ही पकड़ के रास्ता दिखा कुतिया मेरे लौड़े को अपनी प्यासी गाँड का शाली हिजड़े और उसकी बातें मुझे और उतेजित करती और मैं कालू के लड़ को पकड़ खुद के गाँड पर रखते बोली डालो न कालू और कालू बोला पकड़ी रह लड़ और कमर उठा एक दम से मेरी गाँड चीरता बोला वाह कुतिया तेरी गाँड बिल्कुल मेरे लौड़े के नाप की खुल गयी और मैं ज़ोर से रोती तड़पने लगी थी ।



मेरी आँखों के आँसू की कोई कीमत न थी और न ही मेरे दर्द की परवाह कालू बस मुझे एक सुख का बदन समझ उठ मेरी झाघो को फ़ैलाते लड़ से रौदने लगा था और मैं बिलखती तड़पती आहे भर्ती जा रही थी । मेरे रोम रोम मैं हवस की बूंदे बह रही थी और दर्द मात्र एक जरिया बना पड़ा था सुख के अनुभूति को पाने का ।



मैं भले कसक मचल तड़प लिए चीख रही थी पर दिल से कालू के धक्कों को पूर्ण रूप से सत्कार किये जा रही थी । कालू मेरे लुल्ली को खिंचता बोला अनु ये बेकार सा लुल्ली रख क्या फायदा मेरी मान तोह कटवा दे और एक छेद बनवा ले , मेरी मस्तिष्क मैं अश्लील फिल्मों वाली छाया समा गई जहाँ गांडू ऑपरेशन करवा चुत लगवा लेते है और मैं सोच मे खो गयी थी कि कालू के ज़ोरदार थपड़ से पूरी जवानी डोल गयी थी और मैं गालो को सहलाती सुबकने लगी और कालू बड़े प्यार से बोला कुतिया सुनती भी है अपने पति का या बस सोचती रहती हैं शाली तू मेरी जोरू है तोह बस मेरी सुन सोच मत कहता वो अपने हाथों के बने निसान को मेरे गालो पर होंठ लगा चूमने लगा था और गाँड उठा मेरी गाँड चोद रहा था ।
[+] 2 users Like kaushik02493's post
Like Reply


Messages In This Thread
RE: कामुक अर्धांगनी - by kaushik02493 - 20-09-2020, 09:50 PM
RE: कामुक अर्धांगनी - by Bhavana_sonii - 24-11-2020, 11:46 PM



Users browsing this thread: 1 Guest(s)