17-09-2020, 10:36 PM
(This post was last modified: 17-09-2020, 11:03 PM by sanskari_shikha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
स्नेहा: वैसे एक बात बोलू, तुम्हारी वो कजन है न...अंशिका, तुम उसके साथ कुछ ज्यादा ही चिपके रहते हो..कहीं दिल तो नहीं आ गया तुम्हारा अपनी कजन पर...हूँ...
मैं तो एकदम से सकपका गया उसकी बात सुनकर, साली ये लड़कियां कितनी चालू होती है, झट से ताड़ लेती है की कौन किसके साथ कैसे पेश आ रहा है, जरुर इसने मुझे और अंशिका को एक दुसरे के साथ कुछ ख़ास करते देख लिया होगा, तभी ये ऐसा कह रही है..
मैं: ये कैसी बात कर रही हो...तुमने मुझे अभी तक हमेशा उसके ही साथ देखा है शायद इसलिए ऐसा कह रही हो, मैं तो बस उसे अपनी बाईक पर लिफ्ट दे देता हूँ, जब भी उसे मेरी जरुरत होती है...तुम बेकार का सोच रही हो..वो मेरी कजन है, मैं उसके बारे में ऐसा कुछ नहीं सोच सकता..अब अगर तुम्हारी एन्कुयारी ख़त्म हो गयी हो तो थोड़ी सी पढाई कर ले...अपनी मम्मी को क्या बोलोगी की आज क्या पढ़ाया मैंने..
मैंने उसका ध्यान बांटने के लिए पढाई की बात कही थी, वर्ना इस खुबसूरत कबूतरी से गुटर गू करने में काफी मजा आ रहा था. उसने भी बुरा सा मुंह बनाते हुए अन्दर चलने को कहा, जैसे उसे मेरी ये बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी, वो बेड के ऊपर एक टांग करके बैठ गयी और उसने अपना बेग खोलकर बुक्स निकाल ली और मुझे दिखने लगी. पर मेरा सारा ध्यान तो उसकी नंगी टांगो पर था , वो अपनी एक टांग को बेड पर लेकर बैठी थी और दूसरी नीचे लटक रही थी, ऊपर वाली टांग की नंगी पिंडलियाँ देखकर मेरा मन कर रहा था की उसे वहीँ से चाटना शुरू कर दूं और मेरा मन ना जाने क्यों ऐसा कह रहा था की वो भी मुझे नहीं रोकेगी. पर इन लड़कियों के मन में क्या है ये तो वोही जाने, अगर मेरा अंदाजा गलत हुआ तो लेने के देने पढ़ जायेंगे, पहले इसके दिल की बात जान लू या फिर वो ही अपनी तरफ से पहल करे, तभी सही रहेगा. मैंने बुक्स को उठाया और इंग्लिश की बुक लेकर उसे पढ़ाना शुरू कर दिया. अगले आधे घंटे तक मैं पुरे मन से उसे पढाता रहा. मैंने उसे लिखने के लिए एक एक्स्सर्सयीज़ दी, वो नीचे झुक कर लिखने लगी तो उसका गला लटक गया, और मैंने पहली बार उसके अन्दर का नजारा देखा, वहां उसने स्पोर्ट्स ब्रा पहनी हुई थी, जो सफ़ेद रंग की थी, और उसके छोटे-छोटे चूजे उनमे कैद थे, छोटे होने की वजह से सिर्फ उनकी बनावट ही दिख पा रही थी, कुछ ख़ास तो नहीं था पर मुझे बड़ी उत्तेजना फील हो रही थी. मेरा ध्यान एकदम से बुक्स के ऊपर से हट गया, स्नेहा ने जब काम करके मुझे दिखाया तो मुझे ये तक पता नहीं चल रहा था की मैंने उसे क्या करने को कहा था. मैं तो बस उसकी छाती को एकटक देखे जा रहा था. मेरा लंड बिलकुल टाईट हो चूका था जिसे एडजस्ट करने में बड़ी मुश्किल हो रही थी. मेरी हालत देखकर वो भी शायद समझ गयी थी की मेरा ध्यान किधर है, वो मेरी हालत देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगी.
स्नेहा: क्या हुआ विशाल..."सर"...आपका ध्यान किधर है..
मैं: वो...वो..दरअसल...मैं सोच रहा था की थोड़ी देर का ब्रेक लेना चाहिए..
और ये कहकर मैं बाथरूम में चला गया. अपना लंड निकाला, जो स्टील जैसा हुआ खड़ा था, पेशाब की लम्बी धार मारी, और फिर मैंने स्नेहा के बारे में और उसके चूजों के बारे में सोचते हुए मुठ मारना शुरू कर दिया.
मैंने दरवाजे के पीछे लटके कपड़ों में पेंटी देखी, जिसे झट से मैंने उठाया, वो स्नेहा की थी, क्रीम कलर की, जिसपर ब्लेक धारियां थी, मैंने उसे अपने मुंह से लगाकर सुंघा, बड़ी मादक सी महक आ रही थी, और फिर उसे अपने लंड पर लपेटा और फिर से मुठ मारना शुरू कर दिया..अपनी आँखें बंद की और जल्दी ही मेरे लंड से गाड़े रस की फुहारे निकलने लगी..जिसे मैंने उसकी कच्छी में समेट लिया, और फिर कुछ सोचकर मैंने उसे वहीँ कोने में फेंक दिया, वो पूरी तरह से मेरे रस से भीग चुकी थी, और फिर मैं बाहर आया, थोड़ी देर तक उसे पढाया और तभी उसकी माँ आ गयी..
किटी मैम: और विशाल, कैसा रहा पहला दिन , स्नेहा ने तंग तो नहीं किया न...
मैं: अरे नहीं मैम, ये तो मन लगाकर पढाई कर रही थी, बड़ी ही होशियार है ये तो..
किटी मैम: अरे रहने दो, इतनी ही होशियार होती तो टयूशन न लगानी पड़ती इसकी...चलो छोड़ो ..तुम बैठो मैं चेंज करके आती हूँ..
और फिर वो अपने कमरे में चली गयी..मैंने भी उसे थोडा देर और पढाया और वापिस आ गया, स्नेहा ने आते हुए कहा की वो रात को फोन करेगी
मैं वापिस सात बजे पहुंचा, और मैंने अंशिका को फ़ोन किया..
अंशिका: तो टाइम मिल गया जनाब को...कैसा रहा पहला दिन.
मैं: ठीक था, तुम सुनाओ कैसी हो.
अंशिका: मैं तो ठीक हूँ..क्या तुम अभी फ्री हो.
मैं: हाँ...बोलो
अंशिका: दरअसल, मैं मार्केट जा रही थी, तुम भी वहीँ आ जाओ, साथ में शोपिंग करेंगे.
मैं: कोई ख़ास बात, एकदम से मार्केट जाने की क्या सूझी
अंशिका: यार, मुझे एक जींस लेनी है, बड़े दिनों से सोच रही थी, और आज जब सेलेरी आ गयी है तो मुझसे रहा नहीं जा रहा..
मैं: ठीक है, मैं आधे घंटे में तुम्हे एम् ब्लाक मार्केट में मिलता हूँ.
और फिर मैं बाईक लेकर चल दिया अपनी अंशिका से मिलने. बाईक चलाते हुए मैं सोच रहा था की शाम को स्नेहा और रात को अंशिका, पर दोनों को एक दुसरे के बारे में पता नहीं चलना चाहिए, मतलब एक के साथ रहते हुए दूसरी को पता न चले..ये मुझे देखना होगा. मैं मार्केट पहुंचा, वो मेरा ही इन्तजार कर रही थी, उसने टी शर्ट और कार्गो पहनी हुई थी, बड़ी स्वीट लग रही थी वो, हम एक दूकान में चले गए, वहां कस्टमर काफी कम थे, अंशिका ने एक दो जींस देखी और उन्हें ट्रायल रूम में लेकर चली गयी. मैं वहीँ खड़ा होकर उसका वेट करने लगा.
तभी अंशिका की आवाज आई, सुनो विशाल, एक मिनट यहाँ आओ. मैंने सेल्स गर्ल की तरफ देखा, वो मुस्कुरा रही थी, मैं ट्रायल रूम की तरफ गया, पर्दा हटाकर गेलरी सी थी वहां जिसमे दो केबिन बने हुए थे, उसने दरवाजा खोला और अन्दर खड़े होकर चारों तरफ से मुझे अपनी जींस की फिटिंग दिखाने लगी..वो घूमी और पीछे से दिखाया, उसकी बैक बड़ी सोलिड लग रही थी. मैंने आगे बढ़ कर उनपर हाथ रख दिया, वो एकदम से घबरा गयी और बोली ये क्या कर रहे हो...कोई आ जाएगा..
मैं: कोई नहीं आएगा..
और ये कहते हुए मैं अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया. वो मेरी आँखों में देखती रही और एकदम से मेरे गले लग गयी.
अंशिका: तुम्हारी यही बातें तो मुझे अच्छी लगती है, तुम दबंग हो एकदम...आई लाईक इट..
मैंने उसे अपनी तरफ किया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए, मुझे मालुम था की ये जगह इन सबके लिए ठीक नहीं है, बाहर सेल्स गर्ल हमारे निकलने का वेट कर रही होगी..
अंशिका: सुनो...तुम्हे कोई याद कर रहा है..
मैं: कौन ??
अंशिका: ये...
और उसने अपनी टी-शर्ट को एकदम से ऊपर उठाया और साथ ही साथ अपनी ब्रा को भी, और उसके दोनों मुम्मे उछल कर बाहर निकल आये. मैं उसकी हिम्मत देखकर दंग रह गया
मैं: दबंग तो तुम हो, तुममे इतनी हिम्मत कैसे आ गयी...ये सब ऐसी जगह करने की..
अंशिका: तुम्हारे साथ रहते हुए ही ऐसा हुआ है...अब देख क्या रहे हो...जल्दी प्यार करो इन्हें...
मुझे कुछ और कहने की जरुरत नहीं थी. मैंने झट से उसके दोनों कबूतर पकडे और उनके गले दबा दिए...मतलब उन्हें मसलने लगा और उसके निप्पल पकड़कर अपने मुंह में डाले और उन्हें चूसने लगा...
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......स्स्स्सस्स्स्स मैं मर जाउंगी.....अह्ह्हह्ह्ह्ह
उसने मेरे लंड पर हाथ रख दिया..मुझे लगा पूरी दुनिया वहीँ रुक गयी है, मैंने अपना सर ऊपर उठाया और उसने अगले ही पल अपने गीले होंठो से मुझे फिर से चूमना और चुसना शुरू कर दिया, वो बड़ी बेकरार सी लग रही थी, मैंने उसके लटकते हुए फलों के ऊपर अपने मुंह से बनाये निशान को देखा वो थोडा हल्का हो गया था, मैंने अपना मुंह वहीँ पर लगाया और फिर से अपने दांतों और जीभ से उस जगह को चुसना शुरू कर दिया...
अह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......म्मम्मम ह्ह्ह्हह्ह दर्द हो रहा है.....धीरे....अह्ह्हह्ह
मुझे लगा की शायद उसकी आवाज बाहर न चली जाए इसलिए मैंने उसे छोड़ दिया, और उसकी छाती पर फिर से वही लाल निशान अपने पुरे शबाब पर चमकने लगा. उसने मुझे एक बार और किस किया और बोली चलो अब बाहर, कहीं वो शॉप वाले अन्दर ही न आ जाए और उसने मेरे लंड पर एक बार और हाथ फेरा और कहा इसे फिर कभी देखेंगे और फिर मैं जल्दी से बाहर निकल आया, वहां गेलरी में कोई नहीं था, मैं बेकार में निकल आया, पर तब तक अंशिका भी निकली और उसने वहीँ जींस पहने हुए ही सेल्स गर्ल को कहा "आई विल टेक दिस". सेल्स गर्ल भी हलके से मुस्कुराते हुए उसका बिल बनाने लगी, जैसे उसे मालुम था की हम क्या करके आये हैं अन्दर से. अंशिका ने अपनी कार्गो पेक करवाई और हम बाहर निकल आये. रास्ते में वो मुझसे चिपक कर बैठी रही और अपनी गोलाइयों से मेरी पीठ की मालिश करती रही. मैंने उसके घर के पास उसे छोड़ा और वापिस चला आया.
घर पहुँचते ही मेरा मोबाइल बजने लगा, मैं जानता था की अंशिका ने मुझसे स्टोर में हुई घटना के बारे में बात करने के लिए फोन किया है. पर ये तो स्नेहा का था. मैंने फोन उठाया.
स्नेहा: हाय...क्या कर रहे हो.
मैं: बस तुम्हारे ही फोन का इन्तजार कर रहा था.
स्नेहा: अच्छा जी..मेरे फोन का इन्तजार कर रहे थे तो तुम ही फोन कर लेते..
मैं: चुप रहा.
स्नेहा: वैसे मैंने तुमसे शिकायत करने के लिए फोन किया है ..पता है तुम्हारी वजह से मेरा काम बढ़ गया आज..
मैं: मेरी वजह से...कैसे ?
स्नेहा: वो तुमने बाथरूम में मेरी....पेंटी के साथ....क्या किया..बोलो..मुझे कितना टाइम लगा उसे धोने में...पता है..
मैं: कुछ ना बोल पाया, मुझे लगा था की शायद वो शर्म के मारे मुझे कुछ नहीं बोल पाएगी...पर शायद ये उसका बचपना था की वो मुझसे अपनी पेंटी की हालत के बारे में बात कर रही थी...या फिर वो जरुरत से ज्यादा चालू थी...मुझे इसका पता लगाना ही था.
मैंने अनजान बनने का नाटक किया
मैं: तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ नहीं मालुम...
स्नेहा: अच्छा जी..मैं सब जानती हूँ , तुम मेरे मुंह से साफ़-साफ़ सुनना चाहते हो, इसलिए ये सब कह रहे हो..
मैं: तो ठीक है न..साफ़ साफ़ बोलो, बात को क्यों घुमा रही हो.
स्नेहा (थोड़ी देर तक चुप रही, फिर धीमी आवाज में बोली): तुमने मेरी पेंटी के साथ मास्टरबेट किया था न..?
मैं: हाँ...
स्नेहा: मैं पूछ सकती हूँ क्यों ?
मैं: सच बोलू या झूठ.
स्नेहा: सच बोलो..
उसने तीखी आवाज में कहा..
मैं: तो सुनो, मैंने जब से तुम्हे देखा है,मुझे अजीब सा एहसास होता है, सच कहूँ तो तुम मुझे काफी सेक्सी लगती हो, और अब जब मैं तुम्हारे इतने पास हूँ, जहाँ से तुम्हारे जिस्म की खुशबू और तुम्हारा सुन्दर सा चेहरा और तुम्हारी बॉडी खासकर तुम्हारे बूब्स जो मुझे बड़े क्यूट से लगे, जब तुम नीचे झुक कर मुझे पानी दे रही थी और मैं जब तक तुम्हारे पास रहा, मैं वही सोचता रहा और जब मुझसे कण्ट्रोल नहीं हुआ तो मैंने बाथरूम में जाकर मास्टरबेट करने की सोची और जब मैं कर रहा था तो मुझे तुम्हारी पेंटी नजर आई , मैं और भी ज्यादा एक्स्कायटिड हो गया और मैंने उसे अपने पेनिस पर लपेट कर मास्टरबेट किया.
मैंने उसे साफ़ साफ़ बोल दिया, यही एक तरीका था उसके मन की बात जानने का, मैं जानता था की वो ये सब किसी और से नहीं कहेगी, क्योंकि मेरे पास भी उसका एक राज (छत्त पर अंकित को किस्स करने वाला) था.
स्नेहा कुछ न बोली, पर मुझे उसकी तेज साँसों की आवाज साफ़ सुने दे रही थी फोन पर..
मैं समझ गया की मेरे मुंह से मुठ मारने की बात सुनकर और शायद पेनिस वर्ड सुनकर उसकी चूत में से भी पानी निकलने लगा होगा..
उसके जिस्म में जो आग सुलग रही थी मुझे वो और भड्कानी होगी..
मैं: और जानती हो, मैंने तो तुम्हारी पेंटी को अपने मुंह पर रगडा और उसे चूमा भी था...
ऊऊ ह्म्म्मम्म ..... दूसरी तरफ से उसके मोन की आवाज आई..
मैं: उसमे से अजीब तरह की स्मेल आ रही थी, पर मुझे वो बहुत अच्छी लगी, मैंने अपनी जीभ से तुम्हारी पेंटी के अन्दर वाला हिस्सा चाटा तो मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसे अपने लंड पर लपेटा और तुम्हारी चूत और ब्रेस्ट को इमेजिन करके मैंने मुठ मारनी शरू कर दी...
स्नेहा: ओह्ह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल.......
अब उसकी नशे में डूबी आवाजें निकलने लगी थी..शायद वो फिंगरिंग कर रही थी, मुझसे बात करते हुए..
मैं: मेरी आँखों के सामने तुम्हारा क्यूट सा चेहरा था और उतने ही क्यूट तुम्हारे बूब्स भी हैं, जिन्हें मैं आँखें बंद करे चूस रहा था, तुम मेरा सर अपने बूब्स पर दबा रही थी...बस यही सोचकर मैं तुम्हारी पेंटी को अपने लंड पर लपेट कर मुठ मार रहा था और फिर मेरे लंड से निकला सारा रस मैंने तुम्हारी पेंटी में छोड़ दिया...मैंने सोचा की शायद तुम्हे अच्छा लगे...पर तुम तो नाराज हो रही हो..."
दूसरी तरफ से आवाज आनी बंद हो गयी थी..मैंने दो तीन बार हेलो हेलो किया...पर फोन कट चूका था.
मैं तो एकदम से सकपका गया उसकी बात सुनकर, साली ये लड़कियां कितनी चालू होती है, झट से ताड़ लेती है की कौन किसके साथ कैसे पेश आ रहा है, जरुर इसने मुझे और अंशिका को एक दुसरे के साथ कुछ ख़ास करते देख लिया होगा, तभी ये ऐसा कह रही है..
मैं: ये कैसी बात कर रही हो...तुमने मुझे अभी तक हमेशा उसके ही साथ देखा है शायद इसलिए ऐसा कह रही हो, मैं तो बस उसे अपनी बाईक पर लिफ्ट दे देता हूँ, जब भी उसे मेरी जरुरत होती है...तुम बेकार का सोच रही हो..वो मेरी कजन है, मैं उसके बारे में ऐसा कुछ नहीं सोच सकता..अब अगर तुम्हारी एन्कुयारी ख़त्म हो गयी हो तो थोड़ी सी पढाई कर ले...अपनी मम्मी को क्या बोलोगी की आज क्या पढ़ाया मैंने..
मैंने उसका ध्यान बांटने के लिए पढाई की बात कही थी, वर्ना इस खुबसूरत कबूतरी से गुटर गू करने में काफी मजा आ रहा था. उसने भी बुरा सा मुंह बनाते हुए अन्दर चलने को कहा, जैसे उसे मेरी ये बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी, वो बेड के ऊपर एक टांग करके बैठ गयी और उसने अपना बेग खोलकर बुक्स निकाल ली और मुझे दिखने लगी. पर मेरा सारा ध्यान तो उसकी नंगी टांगो पर था , वो अपनी एक टांग को बेड पर लेकर बैठी थी और दूसरी नीचे लटक रही थी, ऊपर वाली टांग की नंगी पिंडलियाँ देखकर मेरा मन कर रहा था की उसे वहीँ से चाटना शुरू कर दूं और मेरा मन ना जाने क्यों ऐसा कह रहा था की वो भी मुझे नहीं रोकेगी. पर इन लड़कियों के मन में क्या है ये तो वोही जाने, अगर मेरा अंदाजा गलत हुआ तो लेने के देने पढ़ जायेंगे, पहले इसके दिल की बात जान लू या फिर वो ही अपनी तरफ से पहल करे, तभी सही रहेगा. मैंने बुक्स को उठाया और इंग्लिश की बुक लेकर उसे पढ़ाना शुरू कर दिया. अगले आधे घंटे तक मैं पुरे मन से उसे पढाता रहा. मैंने उसे लिखने के लिए एक एक्स्सर्सयीज़ दी, वो नीचे झुक कर लिखने लगी तो उसका गला लटक गया, और मैंने पहली बार उसके अन्दर का नजारा देखा, वहां उसने स्पोर्ट्स ब्रा पहनी हुई थी, जो सफ़ेद रंग की थी, और उसके छोटे-छोटे चूजे उनमे कैद थे, छोटे होने की वजह से सिर्फ उनकी बनावट ही दिख पा रही थी, कुछ ख़ास तो नहीं था पर मुझे बड़ी उत्तेजना फील हो रही थी. मेरा ध्यान एकदम से बुक्स के ऊपर से हट गया, स्नेहा ने जब काम करके मुझे दिखाया तो मुझे ये तक पता नहीं चल रहा था की मैंने उसे क्या करने को कहा था. मैं तो बस उसकी छाती को एकटक देखे जा रहा था. मेरा लंड बिलकुल टाईट हो चूका था जिसे एडजस्ट करने में बड़ी मुश्किल हो रही थी. मेरी हालत देखकर वो भी शायद समझ गयी थी की मेरा ध्यान किधर है, वो मेरी हालत देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगी.
स्नेहा: क्या हुआ विशाल..."सर"...आपका ध्यान किधर है..
मैं: वो...वो..दरअसल...मैं सोच रहा था की थोड़ी देर का ब्रेक लेना चाहिए..
और ये कहकर मैं बाथरूम में चला गया. अपना लंड निकाला, जो स्टील जैसा हुआ खड़ा था, पेशाब की लम्बी धार मारी, और फिर मैंने स्नेहा के बारे में और उसके चूजों के बारे में सोचते हुए मुठ मारना शुरू कर दिया.
मैंने दरवाजे के पीछे लटके कपड़ों में पेंटी देखी, जिसे झट से मैंने उठाया, वो स्नेहा की थी, क्रीम कलर की, जिसपर ब्लेक धारियां थी, मैंने उसे अपने मुंह से लगाकर सुंघा, बड़ी मादक सी महक आ रही थी, और फिर उसे अपने लंड पर लपेटा और फिर से मुठ मारना शुरू कर दिया..अपनी आँखें बंद की और जल्दी ही मेरे लंड से गाड़े रस की फुहारे निकलने लगी..जिसे मैंने उसकी कच्छी में समेट लिया, और फिर कुछ सोचकर मैंने उसे वहीँ कोने में फेंक दिया, वो पूरी तरह से मेरे रस से भीग चुकी थी, और फिर मैं बाहर आया, थोड़ी देर तक उसे पढाया और तभी उसकी माँ आ गयी..
किटी मैम: और विशाल, कैसा रहा पहला दिन , स्नेहा ने तंग तो नहीं किया न...
मैं: अरे नहीं मैम, ये तो मन लगाकर पढाई कर रही थी, बड़ी ही होशियार है ये तो..
किटी मैम: अरे रहने दो, इतनी ही होशियार होती तो टयूशन न लगानी पड़ती इसकी...चलो छोड़ो ..तुम बैठो मैं चेंज करके आती हूँ..
और फिर वो अपने कमरे में चली गयी..मैंने भी उसे थोडा देर और पढाया और वापिस आ गया, स्नेहा ने आते हुए कहा की वो रात को फोन करेगी
मैं वापिस सात बजे पहुंचा, और मैंने अंशिका को फ़ोन किया..
अंशिका: तो टाइम मिल गया जनाब को...कैसा रहा पहला दिन.
मैं: ठीक था, तुम सुनाओ कैसी हो.
अंशिका: मैं तो ठीक हूँ..क्या तुम अभी फ्री हो.
मैं: हाँ...बोलो
अंशिका: दरअसल, मैं मार्केट जा रही थी, तुम भी वहीँ आ जाओ, साथ में शोपिंग करेंगे.
मैं: कोई ख़ास बात, एकदम से मार्केट जाने की क्या सूझी
अंशिका: यार, मुझे एक जींस लेनी है, बड़े दिनों से सोच रही थी, और आज जब सेलेरी आ गयी है तो मुझसे रहा नहीं जा रहा..
मैं: ठीक है, मैं आधे घंटे में तुम्हे एम् ब्लाक मार्केट में मिलता हूँ.
और फिर मैं बाईक लेकर चल दिया अपनी अंशिका से मिलने. बाईक चलाते हुए मैं सोच रहा था की शाम को स्नेहा और रात को अंशिका, पर दोनों को एक दुसरे के बारे में पता नहीं चलना चाहिए, मतलब एक के साथ रहते हुए दूसरी को पता न चले..ये मुझे देखना होगा. मैं मार्केट पहुंचा, वो मेरा ही इन्तजार कर रही थी, उसने टी शर्ट और कार्गो पहनी हुई थी, बड़ी स्वीट लग रही थी वो, हम एक दूकान में चले गए, वहां कस्टमर काफी कम थे, अंशिका ने एक दो जींस देखी और उन्हें ट्रायल रूम में लेकर चली गयी. मैं वहीँ खड़ा होकर उसका वेट करने लगा.
तभी अंशिका की आवाज आई, सुनो विशाल, एक मिनट यहाँ आओ. मैंने सेल्स गर्ल की तरफ देखा, वो मुस्कुरा रही थी, मैं ट्रायल रूम की तरफ गया, पर्दा हटाकर गेलरी सी थी वहां जिसमे दो केबिन बने हुए थे, उसने दरवाजा खोला और अन्दर खड़े होकर चारों तरफ से मुझे अपनी जींस की फिटिंग दिखाने लगी..वो घूमी और पीछे से दिखाया, उसकी बैक बड़ी सोलिड लग रही थी. मैंने आगे बढ़ कर उनपर हाथ रख दिया, वो एकदम से घबरा गयी और बोली ये क्या कर रहे हो...कोई आ जाएगा..
मैं: कोई नहीं आएगा..
और ये कहते हुए मैं अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया. वो मेरी आँखों में देखती रही और एकदम से मेरे गले लग गयी.
अंशिका: तुम्हारी यही बातें तो मुझे अच्छी लगती है, तुम दबंग हो एकदम...आई लाईक इट..
मैंने उसे अपनी तरफ किया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए, मुझे मालुम था की ये जगह इन सबके लिए ठीक नहीं है, बाहर सेल्स गर्ल हमारे निकलने का वेट कर रही होगी..
अंशिका: सुनो...तुम्हे कोई याद कर रहा है..
मैं: कौन ??
अंशिका: ये...
और उसने अपनी टी-शर्ट को एकदम से ऊपर उठाया और साथ ही साथ अपनी ब्रा को भी, और उसके दोनों मुम्मे उछल कर बाहर निकल आये. मैं उसकी हिम्मत देखकर दंग रह गया
मैं: दबंग तो तुम हो, तुममे इतनी हिम्मत कैसे आ गयी...ये सब ऐसी जगह करने की..
अंशिका: तुम्हारे साथ रहते हुए ही ऐसा हुआ है...अब देख क्या रहे हो...जल्दी प्यार करो इन्हें...
मुझे कुछ और कहने की जरुरत नहीं थी. मैंने झट से उसके दोनों कबूतर पकडे और उनके गले दबा दिए...मतलब उन्हें मसलने लगा और उसके निप्पल पकड़कर अपने मुंह में डाले और उन्हें चूसने लगा...
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......स्स्स्सस्स्स्स मैं मर जाउंगी.....अह्ह्हह्ह्ह्ह
उसने मेरे लंड पर हाथ रख दिया..मुझे लगा पूरी दुनिया वहीँ रुक गयी है, मैंने अपना सर ऊपर उठाया और उसने अगले ही पल अपने गीले होंठो से मुझे फिर से चूमना और चुसना शुरू कर दिया, वो बड़ी बेकरार सी लग रही थी, मैंने उसके लटकते हुए फलों के ऊपर अपने मुंह से बनाये निशान को देखा वो थोडा हल्का हो गया था, मैंने अपना मुंह वहीँ पर लगाया और फिर से अपने दांतों और जीभ से उस जगह को चुसना शुरू कर दिया...
अह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल......म्मम्मम ह्ह्ह्हह्ह दर्द हो रहा है.....धीरे....अह्ह्हह्ह
मुझे लगा की शायद उसकी आवाज बाहर न चली जाए इसलिए मैंने उसे छोड़ दिया, और उसकी छाती पर फिर से वही लाल निशान अपने पुरे शबाब पर चमकने लगा. उसने मुझे एक बार और किस किया और बोली चलो अब बाहर, कहीं वो शॉप वाले अन्दर ही न आ जाए और उसने मेरे लंड पर एक बार और हाथ फेरा और कहा इसे फिर कभी देखेंगे और फिर मैं जल्दी से बाहर निकल आया, वहां गेलरी में कोई नहीं था, मैं बेकार में निकल आया, पर तब तक अंशिका भी निकली और उसने वहीँ जींस पहने हुए ही सेल्स गर्ल को कहा "आई विल टेक दिस". सेल्स गर्ल भी हलके से मुस्कुराते हुए उसका बिल बनाने लगी, जैसे उसे मालुम था की हम क्या करके आये हैं अन्दर से. अंशिका ने अपनी कार्गो पेक करवाई और हम बाहर निकल आये. रास्ते में वो मुझसे चिपक कर बैठी रही और अपनी गोलाइयों से मेरी पीठ की मालिश करती रही. मैंने उसके घर के पास उसे छोड़ा और वापिस चला आया.
घर पहुँचते ही मेरा मोबाइल बजने लगा, मैं जानता था की अंशिका ने मुझसे स्टोर में हुई घटना के बारे में बात करने के लिए फोन किया है. पर ये तो स्नेहा का था. मैंने फोन उठाया.
स्नेहा: हाय...क्या कर रहे हो.
मैं: बस तुम्हारे ही फोन का इन्तजार कर रहा था.
स्नेहा: अच्छा जी..मेरे फोन का इन्तजार कर रहे थे तो तुम ही फोन कर लेते..
मैं: चुप रहा.
स्नेहा: वैसे मैंने तुमसे शिकायत करने के लिए फोन किया है ..पता है तुम्हारी वजह से मेरा काम बढ़ गया आज..
मैं: मेरी वजह से...कैसे ?
स्नेहा: वो तुमने बाथरूम में मेरी....पेंटी के साथ....क्या किया..बोलो..मुझे कितना टाइम लगा उसे धोने में...पता है..
मैं: कुछ ना बोल पाया, मुझे लगा था की शायद वो शर्म के मारे मुझे कुछ नहीं बोल पाएगी...पर शायद ये उसका बचपना था की वो मुझसे अपनी पेंटी की हालत के बारे में बात कर रही थी...या फिर वो जरुरत से ज्यादा चालू थी...मुझे इसका पता लगाना ही था.
मैंने अनजान बनने का नाटक किया
मैं: तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ नहीं मालुम...
स्नेहा: अच्छा जी..मैं सब जानती हूँ , तुम मेरे मुंह से साफ़-साफ़ सुनना चाहते हो, इसलिए ये सब कह रहे हो..
मैं: तो ठीक है न..साफ़ साफ़ बोलो, बात को क्यों घुमा रही हो.
स्नेहा (थोड़ी देर तक चुप रही, फिर धीमी आवाज में बोली): तुमने मेरी पेंटी के साथ मास्टरबेट किया था न..?
मैं: हाँ...
स्नेहा: मैं पूछ सकती हूँ क्यों ?
मैं: सच बोलू या झूठ.
स्नेहा: सच बोलो..
उसने तीखी आवाज में कहा..
मैं: तो सुनो, मैंने जब से तुम्हे देखा है,मुझे अजीब सा एहसास होता है, सच कहूँ तो तुम मुझे काफी सेक्सी लगती हो, और अब जब मैं तुम्हारे इतने पास हूँ, जहाँ से तुम्हारे जिस्म की खुशबू और तुम्हारा सुन्दर सा चेहरा और तुम्हारी बॉडी खासकर तुम्हारे बूब्स जो मुझे बड़े क्यूट से लगे, जब तुम नीचे झुक कर मुझे पानी दे रही थी और मैं जब तक तुम्हारे पास रहा, मैं वही सोचता रहा और जब मुझसे कण्ट्रोल नहीं हुआ तो मैंने बाथरूम में जाकर मास्टरबेट करने की सोची और जब मैं कर रहा था तो मुझे तुम्हारी पेंटी नजर आई , मैं और भी ज्यादा एक्स्कायटिड हो गया और मैंने उसे अपने पेनिस पर लपेट कर मास्टरबेट किया.
मैंने उसे साफ़ साफ़ बोल दिया, यही एक तरीका था उसके मन की बात जानने का, मैं जानता था की वो ये सब किसी और से नहीं कहेगी, क्योंकि मेरे पास भी उसका एक राज (छत्त पर अंकित को किस्स करने वाला) था.
स्नेहा कुछ न बोली, पर मुझे उसकी तेज साँसों की आवाज साफ़ सुने दे रही थी फोन पर..
मैं समझ गया की मेरे मुंह से मुठ मारने की बात सुनकर और शायद पेनिस वर्ड सुनकर उसकी चूत में से भी पानी निकलने लगा होगा..
उसके जिस्म में जो आग सुलग रही थी मुझे वो और भड्कानी होगी..
मैं: और जानती हो, मैंने तो तुम्हारी पेंटी को अपने मुंह पर रगडा और उसे चूमा भी था...
ऊऊ ह्म्म्मम्म ..... दूसरी तरफ से उसके मोन की आवाज आई..
मैं: उसमे से अजीब तरह की स्मेल आ रही थी, पर मुझे वो बहुत अच्छी लगी, मैंने अपनी जीभ से तुम्हारी पेंटी के अन्दर वाला हिस्सा चाटा तो मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसे अपने लंड पर लपेटा और तुम्हारी चूत और ब्रेस्ट को इमेजिन करके मैंने मुठ मारनी शरू कर दी...
स्नेहा: ओह्ह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल.......
अब उसकी नशे में डूबी आवाजें निकलने लगी थी..शायद वो फिंगरिंग कर रही थी, मुझसे बात करते हुए..
मैं: मेरी आँखों के सामने तुम्हारा क्यूट सा चेहरा था और उतने ही क्यूट तुम्हारे बूब्स भी हैं, जिन्हें मैं आँखें बंद करे चूस रहा था, तुम मेरा सर अपने बूब्स पर दबा रही थी...बस यही सोचकर मैं तुम्हारी पेंटी को अपने लंड पर लपेट कर मुठ मार रहा था और फिर मेरे लंड से निकला सारा रस मैंने तुम्हारी पेंटी में छोड़ दिया...मैंने सोचा की शायद तुम्हे अच्छा लगे...पर तुम तो नाराज हो रही हो..."
दूसरी तरफ से आवाज आनी बंद हो गयी थी..मैंने दो तीन बार हेलो हेलो किया...पर फोन कट चूका था.