14-09-2020, 09:50 PM
मैं: सोच रहा था की अभी तो अंशिका की चूत मिली नहीं है और मैं: स्नेहा के चक्कर में पड़ गया, कहीं ऐसा ना हो की मैं: न यहाँ का रहूँ और न वहां का.पर यारों ये उम्र ही ऐसी है, वैसे भी अंशिका के साथ अपनी सेटिंग ऐसी है की मैं: अगर बाद में स्नेहा के साथ भी चक्कर चला लूं तो वो मुझे मना नहीं करेगी...पर जैसा की वो चाहती है की पहली बार मैं: सेक्स उसके साथ ही करूँ फिर किसी और के साथ, यानी अंशिका की चूत मारने के बाद मैं: आराम से स्नेहा की भी मार सकता हूँ..पर अभी उसके बारे में मुझे अपनी तरफ से बताने की कोई जरुरत नहीं है, क्योंकि वैसे भी वो मेरे बारे में काफी पोसेसिव है..ये तो पारुल वाले मामले में मैं: देख ही चूका था..मुझे हर कदम सोच समझ कर रखना होगा..
पर सबसे पहले तो मेरे सामने ये सवाल था की मैं: स्नेहा को उसके घर पर टयूशन पड़ाने के लिए कैसे जाऊ . मेरे दिमाग में एक आईडिया आया. मैंने झट से अंशिका को फोन मिलाया.
अंशिका: हाय...कैसे हो...इस समय कैसे फोन किया
मैं: हाय..मैं: ठीक हूँ..दरअसल तुम्हे एक न्यूज़ देनी थी..मैंने टयूशन देना शुरू कर दिया है, सुबह के टाइम , मैंने सोचा की इससे मेरी पॉकेट मनी भी निकल जायेगी और कुछ टाइम भी कट जाएगा..
अंशिका: वाव..आई एम् इम्प्रेस ..तुम ऐसा सोचते हो, मुझे अच्छा लगा, वैसे भी तुम्हे अब अपने घर वालो पर ज्यादा भार नहीं डालना चाहिए..इस तरह से पार्ट टाइम जॉब करके या टयूशन देकर तुम अपनी पॉकेट मनी निकाल सको तो उन्हें भी अच्छा लगेगा..
मैं: थेंक्स..मुझे मालुम था तुम्हे ये सुनकर अच्छा लगेगा, इसलिए मैंने तुम्हे फोन किया..
अंशिका: कोन सी क्लास के स्टुडेंट है..
मैं: 10th और 12 th के..दो भाई बहन है, उनके घर जाकर पढाना है, सुबह सात बजे, राज नगर में..
अंशिका: राज नगर, वो तो मेरे कॉलेज के बिलकुल पीछे ही है..
मैं: हाँ मैं: जानता हूँ.. ..वैसे तब तो हम एक काम कर सकते हैं,तुम रोज कॉलेज बस से सात बजे ही जाती हो, मैं: रोज सुबह तुम्हे कॉलेज छोड़ता हुआ टयूशन पड़ाने चला जाऊंगा..ठीक है न..
अंशिका: हाँ...ठीक तो है..पर तुम्हे ज्यादा मुश्किल न हो..
मैं: अरे..मुश्किल कैसी, तुम्हे रोज छोड़ने के लिए तो मैं: वैसे भी आ सकता हूँ, और अब तो ये बहाना भी है..
अंशिका: चलो ठीक है, तुम कल सुबह आ जाना, मेरे घर.
मैं: ठीक है..और सुनाओ, अभी क्या कर रही हो.
अंशिका: कुछ ख़ास नहीं, स्टुडेंट्स को पड़ा रही थी..मालुम है आज क्या हुआ, मैं: जब अपनी क्लास में गयी तो ब्लेक बोर्ड पर किसी ने पेनिस जैसी चीज बना रखी थी, मुझे तो बड़ी शर्म आई
मैं: तुमने पूछा नहीं की किसने किया वो..
अंशिका: हाँ..मैंने पूछा तो एक स्टुडेंट ने कहा की पिछली क्लास में हयूमन सायेंस के टीचर ने बनायीं होगी..
मैं: फिर ठीक है..
अंशिका: नहीं ठीक नहीं है, वो पिक्चर जिस तरह से बनी हुई थी, साफ़ पता चल रहा था की किसी स्टुडेंट ने ही बनायीं है, मुझे परेशां करने के लिए, वो बिलकुल खड़ा हुआ पेनिस था, और उसके दोनों तरफ गोल गोल....
वो आगे न बोल पायी, उसे शायद शर्म आ रही थी , बताने में..
मैं: ओहो...तो कोई स्टुडेंट है जो तुम्हे शर्माते हुए देखकर मजे ले रहा है...तुम भी मजे लो फिर..प्रोब्लम क्या है..
अंशिका: तुम भी न...मैं: वहां टीचर हूँ..मैं: ये सब नहीं कर सकती कॉलेज में...मैंने ब्लेक बोर्ड साफ़ किया और फिर अपनी क्लास ली और जल्दी से स्टाफ रूम में आ गयी..बस तभी से बैठी हूँ, अगली क्लास दस मिनट बाद है...
मैं: अच्छा ..तुम ज्यादा परेशान मत हो..
अंशिका: ठीक है...अच्छा मैं: रखती हूँ, कोई और टीचर भी हैं यहाँ..रात को बात करुँगी..
उसके बाद उसने रात को बात की, थोड़ी बहुत किस्सेस और नोर्मल बात हुई फोन पर, और फिर अगले दिन सुबह टाइम से आने का वादा लेकर उसने फोन रख दिया.
मैं: सुबह 7 बजे उसके घर आ गया, वो थोड़ी देर में बाहर आई और मेरे पीछे बैठ गयी, मैं: उसे लेकर चल दिया, वो हमेशा की तरह मुझसे लिपट कर बैठी थी
मैंने उसे कॉलेज के पास उतारा और चल दिया, वापिस घर...उसे क्या मालुम था की मैं: तो अपनी भूमिका बाँध रहा हूँ...
अगले दिन भी मैंने उसे कॉलेज छोड़ा..और इस तरह से लगातार तीन दिन हो गए...पर जो मैं: चाहता था वो अभी तक नहीं हुआ था..और आखिर चोथे दिन वही हुआ जो मैं: चाहता था.
मैं: अंशिका को लेकर जैसे ही कॉलेज पहुंचा, किटी मेम की कार हमारे पास आकर रुकी, मैंने और अंशिका ने उन्हें देखा और उन्हें विश किया
किटी :गुड मोर्निंग...और विशाल, कैसे हो...कैसी चल रही है तुम्हारी जॉब..
मैं: मेरी जॉब...? कोन सी..
किटी मेम :येही, अंशिका को अपनी बाईक पर छोड़ने की...तुम तो इसके ड्राईवर ही बन गए हो...हा हा...
अंशिका: नहीं मेम ऐसा कुछ नहीं है....वो तो आजकल ये रोज सुबह यहीं राज नगर में टयूशन पड़ाने आता हूँ, और मैं: भी इसके साथ आ जाती हूँ...वर्ना ये इतनी सुबह उठने वालों में से नहीं है..
किटी मेम अंशिका की बात सुनकर कुछ सोचने लगी..और फिर मुझसे बोली
किटी : तुम टयूशन भी पदाते हो, कोन सी क्लास को..
मैं: जी..वो..कोई भी हो..वैसे अभी तो 10 th और 12th के बच्चो को पड़ा रहा हूँ..
किटी मेम : अच्छा...मैं: भी स्नेहा के लिए कोई होम टयूटर ढूंढ रही थी...अगर तुम उसे भी पड़ा सको तो बड़ा अच्छा होगा, अभी तो उसे काफी दूर जाना पड़ता है और आजकल आना जाना कितना मुश्किल है,वो तो तुम जानते ही हो...प्लीस विशाल...पड़ा दोगे क्या उसे ..
मैंने अंशिका की तरफ देखा, वो भी कुछ सोच रही थी, जैसे उसे मेरा ये सब करना अच्छा नहीं लगेगा, पर बात किटी मेम की बेटी की थी, वो बीच में पड़कर बुरी भी नहीं बनना चाहती थी..उसने मुझे आँखों ही आँखों में हाँ कहा..
मैं: ठीक है मेम...मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है...क्या टाइम सूट करेगा स्नेहा को
किटी :देखो...वो कॉलेज से दो ढाई बजे के आस पास आती है, और फिर थोड़ी देर खाना और सोना..शाम को पांच बजे ठीक रहेगा..
मैं: ठीक है मेम...मैं: आ जाऊंगा..कल से.
किटी मेम :कल से क्यों..आज से क्यों नहीं..मुझे आज कॉलेज में मीटिंग अटेंड करनी है, इसलिए मैं: तो लेट हो जाउंगी..तुम चले जाना, घर तो तुमने देख ही रखा है.मैं: स्नेहा को फ़ोन कर दूंगी..ठीक है न.
मैं: ठीक है मेम...मैं: आज ही चला जाऊंगा.
और फिर उन दोनों को बाय करने के बाद मैं: वापिस चल दिया..अपने प्लान को कामयाब होते देखकर मुझे काफी ख़ुशी हो रही थी.
शाम को ठीक पांच बजे मैं: स्नेहा के घर पहुँच गया, और बेल बजायी, दरवाजा स्नेहा ने ही खोला, वो मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी, उसकी कातिल मुस्कान देखकर मेरा मन करा की अभी उसे दबोच लूं और उसके पिंक लिप्स को चबा जाऊ ..
उसने सफ़ेद चेक वाला पायजामा और पिंक टी शर्ट पहनी हुई थी, बड़ी ही क्यूट सी लग रही थी वो , उसने मुझे अन्दर आने को कहा, मैं: उसके पीछे चल दिया, आगे चलते हुए उसके मांसल चूतड़ों की उठा पटक देखकर मैं: मन ही मन सोच रहा था की इतनी कितने सेक्सी हो गए हैं उसके हिप्स इतनी छोटी सी उम्र में..
उसने मुझे सोफे पर लेजाकर बिठाया और पानी लेकर आई, पानी देते हुए जब वो नीचे झुकी तो उसकी टी शर्ट का गला नीचे लटक गया, जिसके अन्दर उसके सफ़ेद ब्रा में कैद छोटे-२ कबूतर देखकर मेरा लंड टन से खड़ा हो गया, मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी टांगो को इधर उधर करके उसे एडजस्ट किया..
वो मेरे सामने आकर बैठ गयी.
स्नेहा: मुझे तो विशवास ही नहीं हो रहा है की तुमने ये कर दिया..आई एम् सो हेप्पी..
मैं: अच्छा...तुम्हे मेरा यहाँ आना ज्यादा अच्छा लगा या मुझसे पडोगी, वो ज्यादा अच्छा है..
स्नेहा शरमाते हुए ) दोनों..अच्छा, यहीं पदाओगे या अन्दर...मेरे कमरे में..
मैं: बेडरूम में ही चलते हैं तुम्हारे..वहीँ ठीक रहेगा..
मेरी बात सुनकर उसका चेहरा एकदम से लाल सुर्ख हो गया..जैसे मैं: उसे चोदने की बात कर रहा हूँ..
मैं: तुम्हारा भाई कहाँ है..
स्नेहा: वो...वो तो क्रिकेट खेलने जाता है, चार से छे बजे तक...आज तो मम्मी भी लेट ही आएँगी, और पापा शाम को कभी 6 बजे आ जाते हैं और कभी ज्यादा काम हो तो 8 बजे तक..
मैं: यानी अभी हम तुम अकेले हैं..
स्नेहा मेरी बात का मतलब समझ कर फिर से उसी कातिलाना अंदाज में मुस्कुराने लगी..पर कुछ बोली नहीं..
वो उठकर अन्दर की और चल दी.
मैं: भी उसके पीछे-२ उसके बेडरूम में आ गया.
उसका कमरा बिलकुल साफ़ सुथरा सा था, अटेच बाथरूम और बालकोनी..कंप्यूटर टेबल और कोने में सुन्दर सा बेड..
मैं: उसकी बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया, वो भी मेरे साथ सटकर खड़ी हो गयी, उनका फ्लेट टॉप फ्लोर पर था, इसलिए वहां से नीचे का नजारा बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था..
स्नेहा: यहाँ से रात के समय पूरा शहर दिखाई देता है..
मैं: जानता हूँ, उस दिन मैंने देखा था ऊपर..तुम्हारे टेरेस से..मैं: वहां से पुरे शहर को ही देखने गया था...पर कुछ और ही दिखाई दे गया..
स्नेहा (झेंपते हुए) विशाल....मैंने तुमसे कहा न..वो बात मत करो...वैसे भी मैंने अंकित से बात करनी छोड़ दी है चार दिनों से..
मैं: क्यों ? कोई और बॉय फ्रेंड मिल गया है क्या...
स्नेहा: नहीं!!! फ्रेंड मिल गया है....तुम...अब खुश हो...यही सुनना चाहते थे न..
उसने ये बात इतने भोलेपन से की थी की मैंने आगे बड़ कर उसके गाल पर चूम लिया..
वो मेरी इस हरकत से हैरान रह गयी..
मैं: क्या हुआ...वो तुम्हारा बॉय फ्रेंड तुम्हे लिप्स पर किस कर सकता है तो मैं: तुम्हारा फ्रेंड होने के नाते तुम्हारे गाल तो चूम ही सकता हूँ न..
मेरी बात सुनकर वो दूसरी तरफ मुंह करके मुस्कुराने लगी..और बोली :बहुत बदमाश हो तुम, बचकर रहना पड़ेगा तुमसे तो..वैसे जैसे दीखते हो, वैसे हो नहीं..
मैं: मतलब ??
स्नेहा: उस दिन , मम्मी के कॉलेज में, तुम चार घंटे तक मेरे साथ रहे, पर तुमने मुझे नोटिस ही नहीं किया..मैं: बार-२ तुम्हारी तरफ देख रही थी..पर तुम कहीं और ही खोये हुए थे, तब मुझे लगा था की शायद तुम और लडको की तरह नहीं हो..पर अब लगता है की शायद हो..
मैं: मैं: जैसा हूँ, वेसा ही दिखाई देता हूँ...आज और उस दिन में काफी फर्क है, वो पहली बार था जब मैं: तुमसे मिला था, और पहले दिन ही किसी लड़की पर बुरा इम्प्रेशन नहीं डालना चाहिए..
स्नेहा (मेरी आँखों में आँखें डालकर) : अच्छा जी...
मैं: हाँ जी.
और हम दोनों हंसने लगे..हँसते-२ उसका हाथ कब मेरे हाथ के ऊपर आ गया, शायद उसे भी पता नहीं चला.
स्नेहा: उस दिन , मम्मी के कॉलेज में, तुम चार घंटे तक मेरे साथ रहे, पर तुमने मुझे नोटिस ही नहीं किया..मैं: बार-२ तुम्हारी तरफ देख रही थी..पर तुम कहीं और ही खोये हुए थे, तब मुझे लगा था की शायद तुम और लडको की तरह नहीं हो..पर अब लगता है की शायद हो..
मैं: मैं: जैसा हूँ, वेसा ही दिखाई देता हूँ...आज और उस दिन में काफी फर्क है, वो पहली बार था जब मैं: तुमसे मिला था, और पहले दिन ही किसी लड़की पर बुरा इम्प्रेशन नहीं डालना चाहिए..
स्नेहा (मेरी आँखों में आँखें डालकर) : अच्छा जी...
मैं: हाँ जी.
और हम दोनों हंसने लगे..हँसते-२ उसका हाथ कब मेरे हाथ के ऊपर आ गया, शायद उसे भी पता नहीं चला.
पर सबसे पहले तो मेरे सामने ये सवाल था की मैं: स्नेहा को उसके घर पर टयूशन पड़ाने के लिए कैसे जाऊ . मेरे दिमाग में एक आईडिया आया. मैंने झट से अंशिका को फोन मिलाया.
अंशिका: हाय...कैसे हो...इस समय कैसे फोन किया
मैं: हाय..मैं: ठीक हूँ..दरअसल तुम्हे एक न्यूज़ देनी थी..मैंने टयूशन देना शुरू कर दिया है, सुबह के टाइम , मैंने सोचा की इससे मेरी पॉकेट मनी भी निकल जायेगी और कुछ टाइम भी कट जाएगा..
अंशिका: वाव..आई एम् इम्प्रेस ..तुम ऐसा सोचते हो, मुझे अच्छा लगा, वैसे भी तुम्हे अब अपने घर वालो पर ज्यादा भार नहीं डालना चाहिए..इस तरह से पार्ट टाइम जॉब करके या टयूशन देकर तुम अपनी पॉकेट मनी निकाल सको तो उन्हें भी अच्छा लगेगा..
मैं: थेंक्स..मुझे मालुम था तुम्हे ये सुनकर अच्छा लगेगा, इसलिए मैंने तुम्हे फोन किया..
अंशिका: कोन सी क्लास के स्टुडेंट है..
मैं: 10th और 12 th के..दो भाई बहन है, उनके घर जाकर पढाना है, सुबह सात बजे, राज नगर में..
अंशिका: राज नगर, वो तो मेरे कॉलेज के बिलकुल पीछे ही है..
मैं: हाँ मैं: जानता हूँ.. ..वैसे तब तो हम एक काम कर सकते हैं,तुम रोज कॉलेज बस से सात बजे ही जाती हो, मैं: रोज सुबह तुम्हे कॉलेज छोड़ता हुआ टयूशन पड़ाने चला जाऊंगा..ठीक है न..
अंशिका: हाँ...ठीक तो है..पर तुम्हे ज्यादा मुश्किल न हो..
मैं: अरे..मुश्किल कैसी, तुम्हे रोज छोड़ने के लिए तो मैं: वैसे भी आ सकता हूँ, और अब तो ये बहाना भी है..
अंशिका: चलो ठीक है, तुम कल सुबह आ जाना, मेरे घर.
मैं: ठीक है..और सुनाओ, अभी क्या कर रही हो.
अंशिका: कुछ ख़ास नहीं, स्टुडेंट्स को पड़ा रही थी..मालुम है आज क्या हुआ, मैं: जब अपनी क्लास में गयी तो ब्लेक बोर्ड पर किसी ने पेनिस जैसी चीज बना रखी थी, मुझे तो बड़ी शर्म आई
मैं: तुमने पूछा नहीं की किसने किया वो..
अंशिका: हाँ..मैंने पूछा तो एक स्टुडेंट ने कहा की पिछली क्लास में हयूमन सायेंस के टीचर ने बनायीं होगी..
मैं: फिर ठीक है..
अंशिका: नहीं ठीक नहीं है, वो पिक्चर जिस तरह से बनी हुई थी, साफ़ पता चल रहा था की किसी स्टुडेंट ने ही बनायीं है, मुझे परेशां करने के लिए, वो बिलकुल खड़ा हुआ पेनिस था, और उसके दोनों तरफ गोल गोल....
वो आगे न बोल पायी, उसे शायद शर्म आ रही थी , बताने में..
मैं: ओहो...तो कोई स्टुडेंट है जो तुम्हे शर्माते हुए देखकर मजे ले रहा है...तुम भी मजे लो फिर..प्रोब्लम क्या है..
अंशिका: तुम भी न...मैं: वहां टीचर हूँ..मैं: ये सब नहीं कर सकती कॉलेज में...मैंने ब्लेक बोर्ड साफ़ किया और फिर अपनी क्लास ली और जल्दी से स्टाफ रूम में आ गयी..बस तभी से बैठी हूँ, अगली क्लास दस मिनट बाद है...
मैं: अच्छा ..तुम ज्यादा परेशान मत हो..
अंशिका: ठीक है...अच्छा मैं: रखती हूँ, कोई और टीचर भी हैं यहाँ..रात को बात करुँगी..
उसके बाद उसने रात को बात की, थोड़ी बहुत किस्सेस और नोर्मल बात हुई फोन पर, और फिर अगले दिन सुबह टाइम से आने का वादा लेकर उसने फोन रख दिया.
मैं: सुबह 7 बजे उसके घर आ गया, वो थोड़ी देर में बाहर आई और मेरे पीछे बैठ गयी, मैं: उसे लेकर चल दिया, वो हमेशा की तरह मुझसे लिपट कर बैठी थी
मैंने उसे कॉलेज के पास उतारा और चल दिया, वापिस घर...उसे क्या मालुम था की मैं: तो अपनी भूमिका बाँध रहा हूँ...
अगले दिन भी मैंने उसे कॉलेज छोड़ा..और इस तरह से लगातार तीन दिन हो गए...पर जो मैं: चाहता था वो अभी तक नहीं हुआ था..और आखिर चोथे दिन वही हुआ जो मैं: चाहता था.
मैं: अंशिका को लेकर जैसे ही कॉलेज पहुंचा, किटी मेम की कार हमारे पास आकर रुकी, मैंने और अंशिका ने उन्हें देखा और उन्हें विश किया
किटी :गुड मोर्निंग...और विशाल, कैसे हो...कैसी चल रही है तुम्हारी जॉब..
मैं: मेरी जॉब...? कोन सी..
किटी मेम :येही, अंशिका को अपनी बाईक पर छोड़ने की...तुम तो इसके ड्राईवर ही बन गए हो...हा हा...
अंशिका: नहीं मेम ऐसा कुछ नहीं है....वो तो आजकल ये रोज सुबह यहीं राज नगर में टयूशन पड़ाने आता हूँ, और मैं: भी इसके साथ आ जाती हूँ...वर्ना ये इतनी सुबह उठने वालों में से नहीं है..
किटी मेम अंशिका की बात सुनकर कुछ सोचने लगी..और फिर मुझसे बोली
किटी : तुम टयूशन भी पदाते हो, कोन सी क्लास को..
मैं: जी..वो..कोई भी हो..वैसे अभी तो 10 th और 12th के बच्चो को पड़ा रहा हूँ..
किटी मेम : अच्छा...मैं: भी स्नेहा के लिए कोई होम टयूटर ढूंढ रही थी...अगर तुम उसे भी पड़ा सको तो बड़ा अच्छा होगा, अभी तो उसे काफी दूर जाना पड़ता है और आजकल आना जाना कितना मुश्किल है,वो तो तुम जानते ही हो...प्लीस विशाल...पड़ा दोगे क्या उसे ..
मैंने अंशिका की तरफ देखा, वो भी कुछ सोच रही थी, जैसे उसे मेरा ये सब करना अच्छा नहीं लगेगा, पर बात किटी मेम की बेटी की थी, वो बीच में पड़कर बुरी भी नहीं बनना चाहती थी..उसने मुझे आँखों ही आँखों में हाँ कहा..
मैं: ठीक है मेम...मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है...क्या टाइम सूट करेगा स्नेहा को
किटी :देखो...वो कॉलेज से दो ढाई बजे के आस पास आती है, और फिर थोड़ी देर खाना और सोना..शाम को पांच बजे ठीक रहेगा..
मैं: ठीक है मेम...मैं: आ जाऊंगा..कल से.
किटी मेम :कल से क्यों..आज से क्यों नहीं..मुझे आज कॉलेज में मीटिंग अटेंड करनी है, इसलिए मैं: तो लेट हो जाउंगी..तुम चले जाना, घर तो तुमने देख ही रखा है.मैं: स्नेहा को फ़ोन कर दूंगी..ठीक है न.
मैं: ठीक है मेम...मैं: आज ही चला जाऊंगा.
और फिर उन दोनों को बाय करने के बाद मैं: वापिस चल दिया..अपने प्लान को कामयाब होते देखकर मुझे काफी ख़ुशी हो रही थी.
शाम को ठीक पांच बजे मैं: स्नेहा के घर पहुँच गया, और बेल बजायी, दरवाजा स्नेहा ने ही खोला, वो मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी, उसकी कातिल मुस्कान देखकर मेरा मन करा की अभी उसे दबोच लूं और उसके पिंक लिप्स को चबा जाऊ ..
उसने सफ़ेद चेक वाला पायजामा और पिंक टी शर्ट पहनी हुई थी, बड़ी ही क्यूट सी लग रही थी वो , उसने मुझे अन्दर आने को कहा, मैं: उसके पीछे चल दिया, आगे चलते हुए उसके मांसल चूतड़ों की उठा पटक देखकर मैं: मन ही मन सोच रहा था की इतनी कितने सेक्सी हो गए हैं उसके हिप्स इतनी छोटी सी उम्र में..
उसने मुझे सोफे पर लेजाकर बिठाया और पानी लेकर आई, पानी देते हुए जब वो नीचे झुकी तो उसकी टी शर्ट का गला नीचे लटक गया, जिसके अन्दर उसके सफ़ेद ब्रा में कैद छोटे-२ कबूतर देखकर मेरा लंड टन से खड़ा हो गया, मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी टांगो को इधर उधर करके उसे एडजस्ट किया..
वो मेरे सामने आकर बैठ गयी.
स्नेहा: मुझे तो विशवास ही नहीं हो रहा है की तुमने ये कर दिया..आई एम् सो हेप्पी..
मैं: अच्छा...तुम्हे मेरा यहाँ आना ज्यादा अच्छा लगा या मुझसे पडोगी, वो ज्यादा अच्छा है..
स्नेहा शरमाते हुए ) दोनों..अच्छा, यहीं पदाओगे या अन्दर...मेरे कमरे में..
मैं: बेडरूम में ही चलते हैं तुम्हारे..वहीँ ठीक रहेगा..
मेरी बात सुनकर उसका चेहरा एकदम से लाल सुर्ख हो गया..जैसे मैं: उसे चोदने की बात कर रहा हूँ..
मैं: तुम्हारा भाई कहाँ है..
स्नेहा: वो...वो तो क्रिकेट खेलने जाता है, चार से छे बजे तक...आज तो मम्मी भी लेट ही आएँगी, और पापा शाम को कभी 6 बजे आ जाते हैं और कभी ज्यादा काम हो तो 8 बजे तक..
मैं: यानी अभी हम तुम अकेले हैं..
स्नेहा मेरी बात का मतलब समझ कर फिर से उसी कातिलाना अंदाज में मुस्कुराने लगी..पर कुछ बोली नहीं..
वो उठकर अन्दर की और चल दी.
मैं: भी उसके पीछे-२ उसके बेडरूम में आ गया.
उसका कमरा बिलकुल साफ़ सुथरा सा था, अटेच बाथरूम और बालकोनी..कंप्यूटर टेबल और कोने में सुन्दर सा बेड..
मैं: उसकी बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया, वो भी मेरे साथ सटकर खड़ी हो गयी, उनका फ्लेट टॉप फ्लोर पर था, इसलिए वहां से नीचे का नजारा बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था..
स्नेहा: यहाँ से रात के समय पूरा शहर दिखाई देता है..
मैं: जानता हूँ, उस दिन मैंने देखा था ऊपर..तुम्हारे टेरेस से..मैं: वहां से पुरे शहर को ही देखने गया था...पर कुछ और ही दिखाई दे गया..
स्नेहा (झेंपते हुए) विशाल....मैंने तुमसे कहा न..वो बात मत करो...वैसे भी मैंने अंकित से बात करनी छोड़ दी है चार दिनों से..
मैं: क्यों ? कोई और बॉय फ्रेंड मिल गया है क्या...
स्नेहा: नहीं!!! फ्रेंड मिल गया है....तुम...अब खुश हो...यही सुनना चाहते थे न..
उसने ये बात इतने भोलेपन से की थी की मैंने आगे बड़ कर उसके गाल पर चूम लिया..
वो मेरी इस हरकत से हैरान रह गयी..
मैं: क्या हुआ...वो तुम्हारा बॉय फ्रेंड तुम्हे लिप्स पर किस कर सकता है तो मैं: तुम्हारा फ्रेंड होने के नाते तुम्हारे गाल तो चूम ही सकता हूँ न..
मेरी बात सुनकर वो दूसरी तरफ मुंह करके मुस्कुराने लगी..और बोली :बहुत बदमाश हो तुम, बचकर रहना पड़ेगा तुमसे तो..वैसे जैसे दीखते हो, वैसे हो नहीं..
मैं: मतलब ??
स्नेहा: उस दिन , मम्मी के कॉलेज में, तुम चार घंटे तक मेरे साथ रहे, पर तुमने मुझे नोटिस ही नहीं किया..मैं: बार-२ तुम्हारी तरफ देख रही थी..पर तुम कहीं और ही खोये हुए थे, तब मुझे लगा था की शायद तुम और लडको की तरह नहीं हो..पर अब लगता है की शायद हो..
मैं: मैं: जैसा हूँ, वेसा ही दिखाई देता हूँ...आज और उस दिन में काफी फर्क है, वो पहली बार था जब मैं: तुमसे मिला था, और पहले दिन ही किसी लड़की पर बुरा इम्प्रेशन नहीं डालना चाहिए..
स्नेहा (मेरी आँखों में आँखें डालकर) : अच्छा जी...
मैं: हाँ जी.
और हम दोनों हंसने लगे..हँसते-२ उसका हाथ कब मेरे हाथ के ऊपर आ गया, शायद उसे भी पता नहीं चला.
स्नेहा: उस दिन , मम्मी के कॉलेज में, तुम चार घंटे तक मेरे साथ रहे, पर तुमने मुझे नोटिस ही नहीं किया..मैं: बार-२ तुम्हारी तरफ देख रही थी..पर तुम कहीं और ही खोये हुए थे, तब मुझे लगा था की शायद तुम और लडको की तरह नहीं हो..पर अब लगता है की शायद हो..
मैं: मैं: जैसा हूँ, वेसा ही दिखाई देता हूँ...आज और उस दिन में काफी फर्क है, वो पहली बार था जब मैं: तुमसे मिला था, और पहले दिन ही किसी लड़की पर बुरा इम्प्रेशन नहीं डालना चाहिए..
स्नेहा (मेरी आँखों में आँखें डालकर) : अच्छा जी...
मैं: हाँ जी.
और हम दोनों हंसने लगे..हँसते-२ उसका हाथ कब मेरे हाथ के ऊपर आ गया, शायद उसे भी पता नहीं चला.