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Adultery मायके का जायका
#46
(19-07-2020, 12:11 PM)Meerachatwani111 Wrote: आगे आगे दो सिपाही रमेश भैया और दामु को अपने घेरे में लेकर चल रहे थे और एक सिपाही हम तिनो के पिछे पिछे आ रहा थ।रमेश भैया और दामु दोनो के हाथ में एक एक बैग था जिसमें हमारे कपरे और पुजा का सामान था।दोनो आगे चलने वाला सिपाही तिखी आवाज मेंकभी दामु तो कभी रमेश भैया को कुछ कहकर धमका रहा था,एक बार तो दामु ने बैग खोलने को हाथ बढाया और कह रहा था देखिये न हवलदार साहेब पुजा का सामान  है,हमलोग सच में पुजा करने ज रहे हैं।चुप मादंरचोद तोहार बहिनीया के बुर में लौरा,पुजाआआ कंरे जात रहे आउर तीन तीन कबुरचोदी रंडी लेके,पुजा में रंडी नचावे खतिरा,चल साहेब के बताव।
यह सब देख सुनकर मेरी घबराहट बढती जा रही थी, पैरों में थरथराहट महसुस होने लगी,मैं नजर घुमा कर उषा भाभी के तरफ देखी,उनके चेहरे का भी रंग ऊतरा हुआ था,पर वो भी सीमा केकंंधे पर हाथ रखे हुए अपने को निर्भिक दिखलाने का प्रयास कर रही थी।
उधर रमेश भैया ऊस हवलदार या दारोगा जो भी हो उससे हाथ जोरे कह रहे थे,सर हम लोग सभी साभ्रांत परिवार से हैं,हम लोग सच में मंदिर दर्शन करने जा रहे हैं।फिर वो उषा भाभी कि ओर ईशारा कर बोले सर यह मेरी पत्नि ऊषा है,ईसके मामा का घर भी यहीं ...पुर में है,यह बात मैं पहले ही सिपाही जी को बता दिया था। तभी ऊनमें से एक सिपाही बोल परा,ओ हुजुर वही मैडम जी कॉलेज के बगल वाली..... वर बाबू के बारे में बता रहल बानीएहनी के,और यह बताते हुए उसने एक अश्लिल मुस्कान के साथ ऊषा भाभी कि ओर ईशारा किया।
उषा के मामा का नाम सुनते ही हवलदार या दरोगा जो भी हो,उसके चेहरे पर एक निश्चितता के भाव आ गए जैसे वह सारा माजरा समझ गया हो लेकिन अब वहँ बरी गहरी नजरों से हम तीनों औरतों को देखने लगा फिर उसने एक सिपाही को जिसका नाम बलवंत था से बोला का हो टेम्पु चेक कईल ह।हां हुजूर,फिर दरोगा ने उसे हमलोगों से थोड़ी दूर ले जाकर हल्के आवाज में कुछ कहा,वाह साहेब ठिक है और वह ऊषा भाभी कि ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहीं चला गया। फिर उसने सिपाही मंगर को डपटता हुआ बोला ,झोरा और बैग खुलवा देखी का का बा।पहले मंगल नामक सिपाही ने झोला लेने के लिए हाथ बढाया ही था कि ऊषा भाभी बोल परी,एमे पूजा के समान बा।मंगर नठिठक कर ईधर उधर देखने लगा और उसने दूर पर रखे अखबार के दो तीन पन्ओओ जमीन पर बिछा दिया और फिर ऊषा भाभी से बोला ,चल निकल के देखा कौन कौन सामान है।ऊषा भाभी एक एक कर सामान झोले से निकाल कर अखबार पर रखने लगी।उसमें से पुजा का सामान निकला।फिर वापस झोले में रख बैग का जिप खोल कर दिखानी शुरू कि,जिसमें हम लोगों के कपरेथे।अचानक हवलदार ने एक लाल रंग के पैकेट को देखते हुए कहा,हउ का बाटे रे मंगरु हेने ला त देखीं और अपना हाथ बढा दिया।भाभी कहने लगी अरे कुछौ नाही दरोगा जी।लेकिन ऊषा भाभी कि बात न सुनकर मंगर नामक सिपाही ने वह पैकेट ऊषा भाभी के हाथ से झपट कर दरोगा के हाथ में रख दिया।दरोगा नेवह पैकेट में से एक पैकेट छोटा सा निकाला, उसे देख करमेरे दिल कि धड़कन बढ गई।वह कंडोम का पैकेट था।वह दरोगा एक पैकेट कोफारकर उसमें से कंडोम निकाल कर ऊषा भाभी कि ओर बढाते हुए पुछा ,ई का है जी,जी जी....ईईई बोलकर वह शर्म से मुंह घुमा ली।होने मुंह घुमाए से का ना चली चल बताव हई का बा ,दरोगा दहारते हुए बोला।रमेश भैया जो एकंरफ खरे थे,बोले साहब हमलोग शादीशुदा हैं और भूलवश ईस बैग में चल आया है,अभी दरोगा कुछ बोलता कि एक मोटरसाइकिल के रुकने कि आवज आई,और धरधराते हुए एक युवक अंदर आ गया।एक उचटती नजर से हमलोगो को देखते हुए बोला सर उ त आज ना धराईल,पर पन्डेऊआ बोल लस ह जे शनिचर के जरूर आई।त हेतना देरी कहां मरावत रहल बरल।हे हे सर का बताई सर ओकरा खोजे खतिरा जात रहीं त ऊ पुरनका कचहरी में आवाज आवत सुननी, त हमरा शक भैल कि जरूर ए में होखी।पर ऊहाँ त सवितिया रहे तीन गो के ले के।और जोर से हंसने लगा।तब त तोहार आज के रात बन गेल होखी हंसते हुए दरोगा बोला।ना सर ओकरा पर त तीनो भिरल रहे,रहिम ससुरा ओकरा मूंहे पर भिरल रहे,ओकरा हटईनी आ आपन हथियार चुसवा के चल अईली,पांच सौ दिहलस तीनों मीलके।यह सब बातें वह हमलोगों के सामने ही करता जा रहा था।फिर अचानक उसे कुछ याद आयाऔर वह एक झटके सेबाहर जाकर फिर वापस आया।और वह घुर कर ऊषा भाभी को देखने लगा,फिर वह दरोगा के तरफ देखकर बोला,सर ऊ सवितिया त टेम्पो पर बैठ के चल गईल रहे,त वापस कैसे आईल।दूअरा पर जे टेम्पो ह वही से त ऊ गईल रहे ढाबा पर से और ऊषा भाभी के तरफ ईशरा करते हुए बोला ईहां के साथे त गईल रहे सवितिया।यह सब सुनकर दरोगा जी कि आंखों में चमक बढ गशर्ब ऊसने एक पतली सी छरी बांस के करची वाली उठाई और बैग से निकले कपरों को ईधर ऊधर करने लगा।अचानक एक ब्रा उसके छरी मे गई जिसे उसने हवा में उठा कर एक एक कर हम तीनो के आख के सामने कम हमलोगों के सिने के सामने करता हुआ बोला,हई केकर बा हो। हम तीनो शर्म से नजरे फेर कर ईधर ऊधर देखने लगे।फिर वह रमेश भैया और दामू के तरफ ईशारा करते हुए आगंतुक से बोला बलवंत दुनो के लाव त भीतर,फिर वहां मौजूद दोनो सिपाहियों से बोला तोहनी के ई तीनो रांड पर नजर राखे के बा।और वह दोनो रमेश भैया और दामु को लेकर अंदर वाले कमरे में चले गए।पांच मिनट भी न बिते होंगे कि रमेश भैया के चिखने कि आवाज आई,जिसे सुनते ही ऊषा भाभि ऊस कमरे के तरफ बढी,पर एक सिपाही ऊनकी हाथ को पकर कर अपने तरफ घसीटा और करीब करीब अपने शरिर से सटा लिया,जिसके कारण भाभि कि भारी उभरी हुई गांड़ सिपाही के पैन्ट मे तंबु बनाए हुए लौरे से जा टकराई।कहां जात बारे छिनरी,तोहार केंकियाई के बारी आई तनिक ठहर और अपने बाएँ पंजे को भाभि कि चुचियों पर दबाता हुआ दरवाजे से परे कर दिया।यह सब देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी।और जोरों से पेशाब लग रही थी।पता नही कब तक छुट्टी मिलेगी ईस मुशिबत से।भितर से आवाज तो आ रही थी पर लगता था दूर से आ रही है।घबराने से और पेशाब करने कि बेचैनी बढती जा रही थी।मै सीमा कि ओर झुककर उससे धिमे स्वर में बोली, सीमा शुशु लाग रहल वा का करी। सीमा बोली एहि हाल त हमरो बा,ठहर फिर वह एक सिपाही से बोली ,भईआ मीरा के बाहर जाऐं दिही ,हल्का हो के आ जाईं।सिपाही सीमा को घुरता हुआ बोला,तोहनी के सुनले नईखे का कहलन रहे साहेब,चुपचाप खरा रह।मेरी अब हालत और खराब हो रही थी,मैं मिन्नत भरी आंखों से फिर सीमा के तरफ देखी और ईशारे से कही भी।सीमा फिर उस सिपाही को बोली,भईआ जाए दिहीं ना।यह सुनकर दूसरा सिपाही जो चौकी के पायताने पर चुपचाप बैठा हुआ हाथ मेंडंडा पकरे ईधर ऊधर कर रहा था बरे जोर से हंसा तथा अपने साथी से बोला जा बे साले आज त तहरा के हम बहिनचोद त बनायल चाही।फिर वह दरवाजे के समिप जाकर जोर से बोला ओ साहेब सुनल जाला।का बात ह रे भितर दूर से आवाज आती सुनाई दी।कुछो नाही सर ईहा के बाहर जाए के चाहतानी।ठिक बा एक एक कर के ले जाऔर ले आ।यह सुनते ही वह सिपाही सीमा को चलने का ईशारा करने लगा।सीमा मेरी तरफ देख कर बोली पहिले ईनका के ले जाईं।मैं उस सिपाही के साथ बाहर आई और नजर दौराने लगी कोई झारी बगैरह।थोरी दूर पर नहर किनारे एक सरकंडे और लम्बे वाले घास के पिछे जगह दिखी तो उधर बढने लगी।कने जा तारू तोहरा जगह नईखे दिखात।ऐने ओने ना देख यही किनारे बैठ के मूत ले।ठिक बा आपन मूंह ओने घुमा ली न मैने बिनती भरी आवाज में बोली।हं हं ठिक बोलतारी,हम ओने मुंह करी आउर तु एने चम्पत।चल कोना में बैठ के मूत जादे नखरा करबु त चल भितरे।मजंबूरी में मैं कोने मेंजाकर पहले अपनी पैंटी ऊतारी फिर लहंगा के पायंचे को कमर तक उठा कर पेशाब करने बैठी।और सर्र सर्र कि आवाज के साथ पेशाब करने लगी।पेशाब करके जैसे ही ऊठने लगी तो सामने देख चौंक परी,वह सिपाहि बरे गौर से मुझे देख रहा था और अपने हाथ मे पकरे डंडे को दुसरे हाथ को ऊसपर आगे पिछे कर रहा था।
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RE: मायके का जायका - by Meerachatwani111 - 07-09-2020, 02:44 PM



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