09-03-2019, 11:36 AM
पकड़ी गई
पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई।
मैं अकेली रह गई।
जीजा की मुश्कान देखकर मैं भांप गई कि उन्होंने मेरी हालत समझ ली है। उन्होंने जेब से पेंट निकाला और अपने हाथ पर मला। मैं कातर हिरणी की तरह भागी, पर कितना भाग पाती। उन्होंने मुझे पकड़ लिया। उन्हें अब कोई जल्दी नहीं थी।
उन्होंने एक हाथ से मेरी दोनों कलाईयां पकड़ लीं और दूसरे हाथ से फ्राक के सारे हुक धीरे-धीरे खोल दिये।
मेरे कुँवारे उभारों को पहले तो वह धीरे-धीरे सहलाते रहे फिर उन्होंने कसकर रगड़ते हुये, मेरे टेनिस बाल साइज, उभरते हुए, किशोर जोबन का पूरा मजा लेना शुरू कर दिया।
कभी वह कसकर दबा देते, कभी निप्पल्स को पकड़कर खींच देते।
फ्राक उठने से, उनका जोश… लोहे सा कड़ा… सीधे मेरे चूतड़ों के बीच… उनकी चाहत का और मेरी नई आई जवानी का एहसास करा रहा था। बाहर होली का हल्ला पूरे पीक पर था और अन्दर फागुन का नशा मेरे तन में, मन में छा रहा था। मेरी चूचियों पर जीजू का हाथ, शर्म भी लग रही थी।
और मन कर रहा थ कि बस… जीजू ऐसे रगड़ते ही रहें।
उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा तो मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मैं फ्री हो गई, पर… उस हाथ से उन्होंने मेरे छोटे-छोटे, कसे-कसे, चूतड़ों पर रंग लगाना शुरू कर दिया।
जब तक मैं सम्हलती, पैंटी में हाथ डालकर उन्होंने मेरी कुँवारी गुलाबी सहेली को भी दबोच लिया। वहां खूब रंग लगाने के बाद उनकी शरारती उंगलियां मेरे भगोष्ठों में जवानी का नशा जगाने लगीं।
उनका अगूंठा मेरे क्लिट को छेड़ रहा था। ऊपर जोबन की रगड़ाई, मसलाई और नीचे… जीजा ने एक उगंली मेरी कसी कली में, खूब जोर से घुसा दी। उनकी उगंली की टिप जो मेरी चूत के अन्दर थी, अब अच्छी तरह से आगे पीछे हो रही थी। मैं मस्ती से पागल हो रही थी। अनजाने में ही मैं अपना चूतड़ उनके लण्ड पर रगड़ रही थी।
पर किसी तरह मैं बोली- “जीजू, प्लीज… निकाल लीजिये…”
जीजू- “क्या? अभी तो मैंने डाला भी नहीं है साली जी…”
कसकर चूची दबाते हुये, जीजू ने चिढ़ाया।
मैं-
“और… क्या डालेंगें…”
उसी मूड में मैंने भी, उनके खूंटे पर पीछे धक्का देते हुए पूछा।
जीजू-
“यह लण्ड… तुम्हारी चूत में…”
उन्होंने भी धक्का लगाते हुए जवाब दिया।
मैं- “नहीं… वह दीदी की चीज है… वहीं डालिये…”
हँसते हुए मैं बोली।
जीजू- “नहीं… आज तो दीदी की छोटी दीदी की बुर में जायेगा…”
जीजा बोले।
मैं- “अच्छा, तो आपका मतलब है की, आपकी दीदी यानी कि, दीदी की नन्द… उसके साथ तो आप पहले से ही…”
मेरी बात काटकर, जीजू ने मेरी चूची कसकर दबाते हुये इत्ती जोर का धक्का मारा कि मुझे लगा कि उनका लण्ड, पैंटी फाड़कर सीधे मेरी बुर में समा जायेगा।
जीजू बोले-
“अच्छा तो तुम भी… अब तो तुम्हारी कुँवारी चूत फाड़कर ही दम लूंगा…”
तभी काफी जोर का हल्ला हुआ, पड़ोस की भाभियां बाहर से धक्का दे रही थीं। इस हगांमे का फायदा उठाकर, मैं छुड़ाकर सीधे छत पर भाग गई।
मेरा सीना अभी भी धड़क रहा था।
पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई।
मैं अकेली रह गई।
जीजा की मुश्कान देखकर मैं भांप गई कि उन्होंने मेरी हालत समझ ली है। उन्होंने जेब से पेंट निकाला और अपने हाथ पर मला। मैं कातर हिरणी की तरह भागी, पर कितना भाग पाती। उन्होंने मुझे पकड़ लिया। उन्हें अब कोई जल्दी नहीं थी।
उन्होंने एक हाथ से मेरी दोनों कलाईयां पकड़ लीं और दूसरे हाथ से फ्राक के सारे हुक धीरे-धीरे खोल दिये।
मेरे कुँवारे उभारों को पहले तो वह धीरे-धीरे सहलाते रहे फिर उन्होंने कसकर रगड़ते हुये, मेरे टेनिस बाल साइज, उभरते हुए, किशोर जोबन का पूरा मजा लेना शुरू कर दिया।
कभी वह कसकर दबा देते, कभी निप्पल्स को पकड़कर खींच देते।
फ्राक उठने से, उनका जोश… लोहे सा कड़ा… सीधे मेरे चूतड़ों के बीच… उनकी चाहत का और मेरी नई आई जवानी का एहसास करा रहा था। बाहर होली का हल्ला पूरे पीक पर था और अन्दर फागुन का नशा मेरे तन में, मन में छा रहा था। मेरी चूचियों पर जीजू का हाथ, शर्म भी लग रही थी।
और मन कर रहा थ कि बस… जीजू ऐसे रगड़ते ही रहें।
उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा तो मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मैं फ्री हो गई, पर… उस हाथ से उन्होंने मेरे छोटे-छोटे, कसे-कसे, चूतड़ों पर रंग लगाना शुरू कर दिया।
जब तक मैं सम्हलती, पैंटी में हाथ डालकर उन्होंने मेरी कुँवारी गुलाबी सहेली को भी दबोच लिया। वहां खूब रंग लगाने के बाद उनकी शरारती उंगलियां मेरे भगोष्ठों में जवानी का नशा जगाने लगीं।
उनका अगूंठा मेरे क्लिट को छेड़ रहा था। ऊपर जोबन की रगड़ाई, मसलाई और नीचे… जीजा ने एक उगंली मेरी कसी कली में, खूब जोर से घुसा दी। उनकी उगंली की टिप जो मेरी चूत के अन्दर थी, अब अच्छी तरह से आगे पीछे हो रही थी। मैं मस्ती से पागल हो रही थी। अनजाने में ही मैं अपना चूतड़ उनके लण्ड पर रगड़ रही थी।
पर किसी तरह मैं बोली- “जीजू, प्लीज… निकाल लीजिये…”
जीजू- “क्या? अभी तो मैंने डाला भी नहीं है साली जी…”
कसकर चूची दबाते हुये, जीजू ने चिढ़ाया।
मैं-
“और… क्या डालेंगें…”
उसी मूड में मैंने भी, उनके खूंटे पर पीछे धक्का देते हुए पूछा।
जीजू-
“यह लण्ड… तुम्हारी चूत में…”
उन्होंने भी धक्का लगाते हुए जवाब दिया।
मैं- “नहीं… वह दीदी की चीज है… वहीं डालिये…”
हँसते हुए मैं बोली।
जीजू- “नहीं… आज तो दीदी की छोटी दीदी की बुर में जायेगा…”
जीजा बोले।
मैं- “अच्छा, तो आपका मतलब है की, आपकी दीदी यानी कि, दीदी की नन्द… उसके साथ तो आप पहले से ही…”
मेरी बात काटकर, जीजू ने मेरी चूची कसकर दबाते हुये इत्ती जोर का धक्का मारा कि मुझे लगा कि उनका लण्ड, पैंटी फाड़कर सीधे मेरी बुर में समा जायेगा।
जीजू बोले-
“अच्छा तो तुम भी… अब तो तुम्हारी कुँवारी चूत फाड़कर ही दम लूंगा…”
तभी काफी जोर का हल्ला हुआ, पड़ोस की भाभियां बाहर से धक्का दे रही थीं। इस हगांमे का फायदा उठाकर, मैं छुड़ाकर सीधे छत पर भाग गई।
मेरा सीना अभी भी धड़क रहा था।