09-03-2019, 11:24 AM
मैंने कहा- लुंगी तो नहीं है ! आप चाहें तो मेरा लॉन्ग स्कर्ट पहन लें, वो भी लुंगी ही जैसी है !
यह कह कर मैं हंस दी... इस पर विशाल भैया बोले- हाँ यार ! पहन ले ! मजा आयेगा। मैंने उनको स्कर्ट दी, फिर प्रदीप ने मुझसे कहा- तुम बाहर जाओ, मैं कपड़े बदल लूँ... ! इस पर विशाल भैया बोले- यार संध्या से क्या परदा ।
अभी हम सब लोग नंगे हो जायेंगे ! यह कहते हुए विशाल भैया खुद अपना स्लीपिंग सूट उतारने लगे और मुझसे बोले- संध्या ... तुम भी अपने कपड़े उतारो... नहीं तो प्रदीप शरमाएगा।
मैं तो यही चाहती थी, मैंने तुरन्त अपनी सलवार और कुर्ता उतार दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी, विशाल भैया भी नंगे हो चुके थे और अपने खड़े लंड से खेल रहे थे। यह देख कर प्रदीप भी अपने सारे कपड़े उतारने लगे। पहले उन्होंने अपनी शर्ट और बनियान उतारी फिर पैन्ट उतारी, जैसे ही प्रदीप ने अपनी चड्ढी उतारने के लिए हाथ बढ़ाया, वैसे ही विशाल भैया बोले- रुको प्रदीप, तुम्हारी चड्ढी संध्या उतारेगी ! फिर मुझसे बोले- चलो, इसकी इसकी चड्ढी उतारो !
मैं प्रदीप भैया के पास पहुंची और उनकी चड्ढी नीचे सरका दी, उनका लंड पूरी तरह खड़ा था, सुपाड़े की त्वचा नीचे थी, गुलाबी रंग का सुपारा चमक रहा था, उनका लंड फूफा जी के लंड से भी बड़ा था लगभग 8" लम्बा और 4" मोटा ! बिल्कुल घोड़े के लंड की तरह था।
इसको देखते ही मेरे मुँह से अनायास निकल गया- ओह माई गॉडऽऽ ! आपका तो लंड बहुत मोटा और लम्बा है... प्रदीप भय्य्य्या...!
इस पर विशाल भैया मुझसे बोले- यार संध्या ... हम लोगों को 'भैया' मत कहा करो। सेक्सी फीलिंग की ऐसी की तैसी हो जाती है।
इस पर प्रदीप भी बोले- हाँ 'भैया' ना बोला करो, कम से कम चुदाई के माहौल में तो बिल्कुल नहीं !
मैंने कहा- ठीक है ! मैं नहीं कहूँगी, लेकिन बाहर सबके सामने तो कहना ही पड़ेगा।
इस पर विशाल बोले- हाँ, सबके सामने तुम कह सकती हो। इसके बाद प्रदीप और विशाल दोनों हंसते हुए कहने लगे- हम लोग अब बहनचोद नहीं कहलाएंगे और संध्या ... तुम, भैया चोद नहीं कहलाओगी। इस पर हम सब हंसने लगे। फिर विशाल बोले- ऐसा है कि आज हम लोग तुमको एक साथ चोदेंगे।
मैंने पूछा- वो कैसे?
विशाल बोले- अभी बताता हूँ... ऐसा करो प्रदीप ! तुम लेट जाओ। संध्या … तुम प्रदीप की टांगों के बीच में डॉगी स्टाइल से प्रदीप का हलब्बी लंड चूसो और मैं तुम्हारी चूत को चोदता हूँ ! इस तरह से तुम्हारी चूत रँवा हो जाएगी और जब प्रदीप तुम्हें चोदेगा तो तुमको कोई परेशानी नहीं होगी। ठीक है?
मैंने कहा- ठीक है।
फिर प्रदीप लेट गए, मैं कुतिया की तरह पोजीशन बना कर प्रदीप का लंड अपने मुँह में लेने की कोशिश की, लेकिन उसका सुपाड़ा इतना बड़ा था कि मेरे मुँह में पूरा घुस ही नहीं रहा था। फिर मैंने सुपारे को कोन-आइस्क्रीम की तरह चाटना शुरू किया। प्रदीप का लंड और टाइट हो गया। प्रदीप के मुँह से अह्ह्ह्…ओह्ह्ह निकलने लगा। मैं उनका लंड लगातार चूसे जा रही थी। इधर विशाल फर्श पर खड़े हो कर मेरी चूत में दो उंगलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगे।
तकरीबन एक मिनट के बाद वो तीन उंगलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगे। मेरी चूत बहुत टाइट थी, सिर्फ एक बार की चुदी थी, वो भी विशाल के पतले लंड से। शायद इसीलिए विशाल अपनी उंगलियों से चोद कर मेरी चूत को प्रदीप के लंड के काबिल बना रहे थे लेकिन मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
फिर अचानक विशाल अपनी चार उंगलियों को चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे। मुझे दर्द होने लगा।
मैंने चीखते हुए विशाल से कहा- दर्द हो रहा है, क्या मेरी चूत आज ही फाड़ डालोगे ?
विशाल बोले- अभी दर्द गायब हो जायेगा।
फिर वो उंगली अन्दर बाहर करने की स्पीड और बढ़ाते हुए मुझसे बोले- तुम्हारी चूत को आज हम लोग भोसड़ा बना देंगे ताकि तुम्हें आगे कोई परेशानी ना हो।
खैर ! जैसा कि विशाल ने कहा था वैसा ही हुआ।
थोड़ी ही देर में दर्द काफूर हो गया और अब मेरी चूत कस कर पानी छोड़ने लगी। फिर विशाल ने अपना लंड मेरी चूत में डाला और चोदना शुरू किया। उनका पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में घुस रहा था जो कि काफी लम्बा था लेकिन पतला होने के कारण मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था। फिर भी मजा आ रहा था। इधर पूरी तरह से प्रदीप के लंड को चूसते चूसते मेरा मुँह भी ज्यादा खुलने लगा और अब मैं उसका पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के अन्दर ले कर चूस रही थी। प्रदीप की हालत बिगड़ती जा रही थी और कमर उचका उचका कर मेरे मुँह को चोदने की कोशिश कर रहे थे। इतने में उनके मुँह से निकला- आह्ह्ह्… ! मैं तो खलास होने वाला हूँ ! संध्या तुम लंड से मुँह मत हटाना…
और प्रदीप मेरे मुँह में झड़ने लगे। प्रदीप के लंड से इतना वीर्य निकला कि मेरा पूरा मुँह भर गया और थोड़ा सा बाहर भी बह कर निकलने लगा। मैं तुरन्त पूरा वीर्य पी गई और जो बह कर नीचे प्रदीप के लंड पर और उनकी झांटो पर गिर गया था उसको भी मैं चाट गई।
इधर विशाल मेरी चूत में लगातार धक्के मारे जा रहा था और ओह्ह्ह्… आह्ह्ह्ह्… की आवाजें निकाल रहा था, शायद वह भी झड़ने वाला था। फिर एक दम से अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और मुझसे बोला- ले जल्दी से मेरे लंड को चूस ! माल निकलने वाला है ! मैं प्रदीप के लंड को छोड़ कर विशाल की तरफ घूमी और जल्दी से उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और लगी कस कर चूसने।
कोई 30-40 सेकेंड में विशाल भी झड़ने लगा। विशाल का वीर्य उतना नही निकला जितना प्रदीप का निकला था, लेकिन विशाल का वीर्य ज्यादा स्वादिष्ट था और मुझे अपनी चूत के रस का भी स्वाद मिल रहा था। इन दोनो का वीर्य पी कर मेरा तो पेट ही भर गया था।
जब मैंने पलट कर प्रदीप की तरफ मुँह किया तो देखा कि प्रदीप अपने लंड को फिर खड़ा करने में लगा था। मैं समझ गई कि प्रदीप भी मेरी चूत को चोदना चाहता है।
मैंने उनसे कहा- मैं अभी आ रही हूँ… और मैं नंगी ही टॉयलेट की तरफ भागी क्योंकि मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। जब मैं टॉयलेट से लौट रही थी तो मैंने सोचा कि मम्मी के बेडरूम में झांक कर देखा जाए कि यहाँ क्या चल रहा है !
जब मैं टॉयलेट से लौट रही थी तो मैंने सोचा कि मम्मी के बेडरूम में झांक कर देखा जाए कि यहाँ क्या चल रहा है !
मैंने देखा कि फूफा जी मम्मी को कुतिया की तरह बहुत तेजी से चोद रहे थे और मुँह से अजीब अजीब सी आवाजें निकाल रहे थे, साथ ही साथ उत्तेजना में गाली भी बक रहे थे।
इतने में मम्मी की नजर मेरे ऊपर पड़ी। मैं तुरन्त खिड़की से भागी लेकिन मम्मी ने आवाज दे कर मुझे अन्दर बुला लिया। दरवाजा खुला था। मैं अन्दर चली गई।
फ़ूफा जी लगातार मम्मी को आँख बन्द कर के चोदे जा रहे थे। मेरी उपस्थिति का उन्हें पता ही नहीं चला। मम्मी ने मुझे धीरे से बगल में बैठने के लिए इशारा किया और मैं उनके बगल में बैठ गई। लेकिन शायद फ़ूफा जी को कुछ आभास हुआ और उन्होंने अपनी आँखें खोल दी।
मुझे अपने सामने नंगी देख कर बोले- तुम कब आई? चलो अच्छा है, अब मैं झड़ने वाला हूँ ! तुम इसे पी लो...
यह कहते हुए उन्होने मम्मी के भोसड़े से अपना लंड बाहर निकाला और खुद बेड से उतर कर खड़े हो गए। मैं घुटनों के बल उनकी टांगों के बीच बैठ कर हुंकार मारते हुए लंड को एक हाथ से पकड़ कर, गप से अपने मुंह में ले कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से मैं अपनी चूत को सहलाने लगी। मेरी चूत अभी भी पूरी तरह गीली थी। मैं अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करने लगी। इधर फूफा जी कुछ ही पलों में अपना पूरा लंड मेरे मुंह में घुसेड़ते हुए झड़ने लगे, मैं उनका वीर्य पीने लगी। जब उनका लंड झड़ना बन्द हुआ, तब मैंने उनका लंड मुँह से बाहर निकाला और भाग कर मैं अपने कमरे में आ गई।
यहाँ प्रदीप और विशाल अपना अपना लंड खड़ा किए हुए सहला रहे थे। मुझे देखते ही विशाल बोला- इतनी देर से तुम कहां थी?
कुछ नहीं... दरअसल फ़ूफा जी मम्मी को चोद रहे थे तो मम्मी ने मुझे उनका वीर्य पीने के लिए बुला लिया था, इसलिए थोड़ी देर लग गई।
विशाल बोले- ओह... यह बात थी। खैर उसी तरह से तुम मेरी टांगों के बीच डॉगी स्टाइल में आ जाओ। तुम्हारी चूत रंवा हो चुकी है और अब प्रदीप तुम्हें हचक कर चोदेगा।
मैंने वैसा ही किया जैसे विशाल ने कहा। प्रदीप अपना हलब्बी लंड हाथ से पकड़े मेरे चूतड़ों के पीछे पहुँच गया और उसने एक साथ अपनी तीन उंगलियों को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मैं एकदम से उचक गई। इसकी मुझे कतई आशा नही थी कि प्रदीप पहले उंगलियों से चोदेगा। वो अपनी तीनों उंगलियों से कुछ देर चोदता रहा। मैं विशाल का लंड चूसे जा रही थी।
फिर प्रदीप ने चार उंगलियों से चोदना शुरू किया। मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था लेकिन मजा भी आ रहा था। अब मेरी चूत पूरी की पूरी गीली हो चुकी थी मेरी चूत से पानी बिस्तर पर टपकना शुरू हो गया था, शायद प्रदीप के लंड के स्वागत के लिए तैयार थी। यह बात प्रदीप भी जान गया था, तभी उसने उंगलियों से चोदना बन्द कर अपने दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ ली और अपने खड़े लंड का सुपारा मेरी चूत के गुलाबी होठों पर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। मेरे पूरे बदन के रोएँ खड़े हो गए इस एहसास से कि जब प्रदीप अपना हलब्बी लंड घुसेड़ेगा तो कैसा लगेगा। मैं यह सोच ही रही थी कि तभी लंड का सुपारा मेरी चूत में घुसा। मुझे लगा कि कोई बहुत मोटा लट्ठ मेरी चूत को फाड़ कर अन्दर घुस रहा हो।
मैं दर्द के मारे कराहने लगी, प्रदीप बोले- बस संध्या जान ! थोड़ा सा दर्द सह लो, अभी तुमको आराम मिल जायेगा। मैं करती तो क्या करती? प्रदीप मेरी कमर को कसकर पकड़े हुए थे और विशाल मेरा सिर को पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़े हुए थे। मेरे मुँह से तो कराह की आवाज तक ठीक से नहीं निकल पा रही थी, मैं तो दोनों के बीच में फंसी थी। मेरी मजबूरी थी दर्द सहना।
यह कह कर मैं हंस दी... इस पर विशाल भैया बोले- हाँ यार ! पहन ले ! मजा आयेगा। मैंने उनको स्कर्ट दी, फिर प्रदीप ने मुझसे कहा- तुम बाहर जाओ, मैं कपड़े बदल लूँ... ! इस पर विशाल भैया बोले- यार संध्या से क्या परदा ।
अभी हम सब लोग नंगे हो जायेंगे ! यह कहते हुए विशाल भैया खुद अपना स्लीपिंग सूट उतारने लगे और मुझसे बोले- संध्या ... तुम भी अपने कपड़े उतारो... नहीं तो प्रदीप शरमाएगा।
मैं तो यही चाहती थी, मैंने तुरन्त अपनी सलवार और कुर्ता उतार दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी, विशाल भैया भी नंगे हो चुके थे और अपने खड़े लंड से खेल रहे थे। यह देख कर प्रदीप भी अपने सारे कपड़े उतारने लगे। पहले उन्होंने अपनी शर्ट और बनियान उतारी फिर पैन्ट उतारी, जैसे ही प्रदीप ने अपनी चड्ढी उतारने के लिए हाथ बढ़ाया, वैसे ही विशाल भैया बोले- रुको प्रदीप, तुम्हारी चड्ढी संध्या उतारेगी ! फिर मुझसे बोले- चलो, इसकी इसकी चड्ढी उतारो !
मैं प्रदीप भैया के पास पहुंची और उनकी चड्ढी नीचे सरका दी, उनका लंड पूरी तरह खड़ा था, सुपाड़े की त्वचा नीचे थी, गुलाबी रंग का सुपारा चमक रहा था, उनका लंड फूफा जी के लंड से भी बड़ा था लगभग 8" लम्बा और 4" मोटा ! बिल्कुल घोड़े के लंड की तरह था।
इसको देखते ही मेरे मुँह से अनायास निकल गया- ओह माई गॉडऽऽ ! आपका तो लंड बहुत मोटा और लम्बा है... प्रदीप भय्य्य्या...!
इस पर विशाल भैया मुझसे बोले- यार संध्या ... हम लोगों को 'भैया' मत कहा करो। सेक्सी फीलिंग की ऐसी की तैसी हो जाती है।
इस पर प्रदीप भी बोले- हाँ 'भैया' ना बोला करो, कम से कम चुदाई के माहौल में तो बिल्कुल नहीं !
मैंने कहा- ठीक है ! मैं नहीं कहूँगी, लेकिन बाहर सबके सामने तो कहना ही पड़ेगा।
इस पर विशाल बोले- हाँ, सबके सामने तुम कह सकती हो। इसके बाद प्रदीप और विशाल दोनों हंसते हुए कहने लगे- हम लोग अब बहनचोद नहीं कहलाएंगे और संध्या ... तुम, भैया चोद नहीं कहलाओगी। इस पर हम सब हंसने लगे। फिर विशाल बोले- ऐसा है कि आज हम लोग तुमको एक साथ चोदेंगे।
मैंने पूछा- वो कैसे?
विशाल बोले- अभी बताता हूँ... ऐसा करो प्रदीप ! तुम लेट जाओ। संध्या … तुम प्रदीप की टांगों के बीच में डॉगी स्टाइल से प्रदीप का हलब्बी लंड चूसो और मैं तुम्हारी चूत को चोदता हूँ ! इस तरह से तुम्हारी चूत रँवा हो जाएगी और जब प्रदीप तुम्हें चोदेगा तो तुमको कोई परेशानी नहीं होगी। ठीक है?
मैंने कहा- ठीक है।
फिर प्रदीप लेट गए, मैं कुतिया की तरह पोजीशन बना कर प्रदीप का लंड अपने मुँह में लेने की कोशिश की, लेकिन उसका सुपाड़ा इतना बड़ा था कि मेरे मुँह में पूरा घुस ही नहीं रहा था। फिर मैंने सुपारे को कोन-आइस्क्रीम की तरह चाटना शुरू किया। प्रदीप का लंड और टाइट हो गया। प्रदीप के मुँह से अह्ह्ह्…ओह्ह्ह निकलने लगा। मैं उनका लंड लगातार चूसे जा रही थी। इधर विशाल फर्श पर खड़े हो कर मेरी चूत में दो उंगलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगे।
तकरीबन एक मिनट के बाद वो तीन उंगलियाँ डाल कर अन्दर बाहर करने लगे। मेरी चूत बहुत टाइट थी, सिर्फ एक बार की चुदी थी, वो भी विशाल के पतले लंड से। शायद इसीलिए विशाल अपनी उंगलियों से चोद कर मेरी चूत को प्रदीप के लंड के काबिल बना रहे थे लेकिन मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
फिर अचानक विशाल अपनी चार उंगलियों को चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे। मुझे दर्द होने लगा।
मैंने चीखते हुए विशाल से कहा- दर्द हो रहा है, क्या मेरी चूत आज ही फाड़ डालोगे ?
विशाल बोले- अभी दर्द गायब हो जायेगा।
फिर वो उंगली अन्दर बाहर करने की स्पीड और बढ़ाते हुए मुझसे बोले- तुम्हारी चूत को आज हम लोग भोसड़ा बना देंगे ताकि तुम्हें आगे कोई परेशानी ना हो।
खैर ! जैसा कि विशाल ने कहा था वैसा ही हुआ।
थोड़ी ही देर में दर्द काफूर हो गया और अब मेरी चूत कस कर पानी छोड़ने लगी। फिर विशाल ने अपना लंड मेरी चूत में डाला और चोदना शुरू किया। उनका पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में घुस रहा था जो कि काफी लम्बा था लेकिन पतला होने के कारण मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था। फिर भी मजा आ रहा था। इधर पूरी तरह से प्रदीप के लंड को चूसते चूसते मेरा मुँह भी ज्यादा खुलने लगा और अब मैं उसका पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के अन्दर ले कर चूस रही थी। प्रदीप की हालत बिगड़ती जा रही थी और कमर उचका उचका कर मेरे मुँह को चोदने की कोशिश कर रहे थे। इतने में उनके मुँह से निकला- आह्ह्ह्… ! मैं तो खलास होने वाला हूँ ! संध्या तुम लंड से मुँह मत हटाना…
और प्रदीप मेरे मुँह में झड़ने लगे। प्रदीप के लंड से इतना वीर्य निकला कि मेरा पूरा मुँह भर गया और थोड़ा सा बाहर भी बह कर निकलने लगा। मैं तुरन्त पूरा वीर्य पी गई और जो बह कर नीचे प्रदीप के लंड पर और उनकी झांटो पर गिर गया था उसको भी मैं चाट गई।
इधर विशाल मेरी चूत में लगातार धक्के मारे जा रहा था और ओह्ह्ह्… आह्ह्ह्ह्… की आवाजें निकाल रहा था, शायद वह भी झड़ने वाला था। फिर एक दम से अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और मुझसे बोला- ले जल्दी से मेरे लंड को चूस ! माल निकलने वाला है ! मैं प्रदीप के लंड को छोड़ कर विशाल की तरफ घूमी और जल्दी से उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और लगी कस कर चूसने।
कोई 30-40 सेकेंड में विशाल भी झड़ने लगा। विशाल का वीर्य उतना नही निकला जितना प्रदीप का निकला था, लेकिन विशाल का वीर्य ज्यादा स्वादिष्ट था और मुझे अपनी चूत के रस का भी स्वाद मिल रहा था। इन दोनो का वीर्य पी कर मेरा तो पेट ही भर गया था।
जब मैंने पलट कर प्रदीप की तरफ मुँह किया तो देखा कि प्रदीप अपने लंड को फिर खड़ा करने में लगा था। मैं समझ गई कि प्रदीप भी मेरी चूत को चोदना चाहता है।
मैंने उनसे कहा- मैं अभी आ रही हूँ… और मैं नंगी ही टॉयलेट की तरफ भागी क्योंकि मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। जब मैं टॉयलेट से लौट रही थी तो मैंने सोचा कि मम्मी के बेडरूम में झांक कर देखा जाए कि यहाँ क्या चल रहा है !
जब मैं टॉयलेट से लौट रही थी तो मैंने सोचा कि मम्मी के बेडरूम में झांक कर देखा जाए कि यहाँ क्या चल रहा है !
मैंने देखा कि फूफा जी मम्मी को कुतिया की तरह बहुत तेजी से चोद रहे थे और मुँह से अजीब अजीब सी आवाजें निकाल रहे थे, साथ ही साथ उत्तेजना में गाली भी बक रहे थे।
इतने में मम्मी की नजर मेरे ऊपर पड़ी। मैं तुरन्त खिड़की से भागी लेकिन मम्मी ने आवाज दे कर मुझे अन्दर बुला लिया। दरवाजा खुला था। मैं अन्दर चली गई।
फ़ूफा जी लगातार मम्मी को आँख बन्द कर के चोदे जा रहे थे। मेरी उपस्थिति का उन्हें पता ही नहीं चला। मम्मी ने मुझे धीरे से बगल में बैठने के लिए इशारा किया और मैं उनके बगल में बैठ गई। लेकिन शायद फ़ूफा जी को कुछ आभास हुआ और उन्होंने अपनी आँखें खोल दी।
मुझे अपने सामने नंगी देख कर बोले- तुम कब आई? चलो अच्छा है, अब मैं झड़ने वाला हूँ ! तुम इसे पी लो...
यह कहते हुए उन्होने मम्मी के भोसड़े से अपना लंड बाहर निकाला और खुद बेड से उतर कर खड़े हो गए। मैं घुटनों के बल उनकी टांगों के बीच बैठ कर हुंकार मारते हुए लंड को एक हाथ से पकड़ कर, गप से अपने मुंह में ले कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से मैं अपनी चूत को सहलाने लगी। मेरी चूत अभी भी पूरी तरह गीली थी। मैं अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करने लगी। इधर फूफा जी कुछ ही पलों में अपना पूरा लंड मेरे मुंह में घुसेड़ते हुए झड़ने लगे, मैं उनका वीर्य पीने लगी। जब उनका लंड झड़ना बन्द हुआ, तब मैंने उनका लंड मुँह से बाहर निकाला और भाग कर मैं अपने कमरे में आ गई।
यहाँ प्रदीप और विशाल अपना अपना लंड खड़ा किए हुए सहला रहे थे। मुझे देखते ही विशाल बोला- इतनी देर से तुम कहां थी?
कुछ नहीं... दरअसल फ़ूफा जी मम्मी को चोद रहे थे तो मम्मी ने मुझे उनका वीर्य पीने के लिए बुला लिया था, इसलिए थोड़ी देर लग गई।
विशाल बोले- ओह... यह बात थी। खैर उसी तरह से तुम मेरी टांगों के बीच डॉगी स्टाइल में आ जाओ। तुम्हारी चूत रंवा हो चुकी है और अब प्रदीप तुम्हें हचक कर चोदेगा।
मैंने वैसा ही किया जैसे विशाल ने कहा। प्रदीप अपना हलब्बी लंड हाथ से पकड़े मेरे चूतड़ों के पीछे पहुँच गया और उसने एक साथ अपनी तीन उंगलियों को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मैं एकदम से उचक गई। इसकी मुझे कतई आशा नही थी कि प्रदीप पहले उंगलियों से चोदेगा। वो अपनी तीनों उंगलियों से कुछ देर चोदता रहा। मैं विशाल का लंड चूसे जा रही थी।
फिर प्रदीप ने चार उंगलियों से चोदना शुरू किया। मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था लेकिन मजा भी आ रहा था। अब मेरी चूत पूरी की पूरी गीली हो चुकी थी मेरी चूत से पानी बिस्तर पर टपकना शुरू हो गया था, शायद प्रदीप के लंड के स्वागत के लिए तैयार थी। यह बात प्रदीप भी जान गया था, तभी उसने उंगलियों से चोदना बन्द कर अपने दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ ली और अपने खड़े लंड का सुपारा मेरी चूत के गुलाबी होठों पर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। मेरे पूरे बदन के रोएँ खड़े हो गए इस एहसास से कि जब प्रदीप अपना हलब्बी लंड घुसेड़ेगा तो कैसा लगेगा। मैं यह सोच ही रही थी कि तभी लंड का सुपारा मेरी चूत में घुसा। मुझे लगा कि कोई बहुत मोटा लट्ठ मेरी चूत को फाड़ कर अन्दर घुस रहा हो।
मैं दर्द के मारे कराहने लगी, प्रदीप बोले- बस संध्या जान ! थोड़ा सा दर्द सह लो, अभी तुमको आराम मिल जायेगा। मैं करती तो क्या करती? प्रदीप मेरी कमर को कसकर पकड़े हुए थे और विशाल मेरा सिर को पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़े हुए थे। मेरे मुँह से तो कराह की आवाज तक ठीक से नहीं निकल पा रही थी, मैं तो दोनों के बीच में फंसी थी। मेरी मजबूरी थी दर्द सहना।
// सुनील पंडित // 

मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!