30-08-2020, 09:02 PM
और तभी चरर की आवाज से मेरा ध्यान एक बार फिर से इनकी और इनकी कम्मो भौजी की ओर लौट गया।
उनका ब्लाउज ,.... मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।
कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,
खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , ...
38 डी डी ,
मम्मे देखकर तो ये वैसे ही ललचाते थे , और इनकी कम्मो भौजी के मम्मे तो और एकदम जबरदंग ,
और ऊपर से वो कभी भी ब्रा नहीं पहनती थी और ब्लाउज भी एकदम पतला , ... झलकते छलकते रहते थे , दोनों मम्मे
कल होली की शुरआत में बेचारे ब्लाउज के अंदर भले हाथ न डाल पाए हों पर रंग से भीगे , देह से चिपके पतले पारभासी ब्लाउज से झलक के एकदम साफ़ साफ़ दिख रहे थे , और ऊपर से जब वो ब्लाउज के ऊपर से अपनी कम्मो भौजी के ३८ डी डी वाले उभार दबा रहे थे , मसल रहे थे ,
वो भी उन्हें उकसा रही थी अपने कड़े कड़े बड़े बड़े चूतड़ कस कस के अपने देवर के भीगे पाजामे में तने बौराये खूंटे पे रगड़ रगड़ कर के ,
समझ तो ये भी रहे थे की उनकी भौजी फागुन में क्या चाहती हैं ,
और आज तो ,
एक तो कल रात मैंने उन्हें साफ़ साफ़ समझा दिया था , उनको भी , उनके उस मूसलचंद को भी , ... फागुन में भौजी , साली सलहज का हक इसपर मुझसे पहले है ( और मुझे तो शक था की जब ये ससुराल पहुंचेंगे तो उस लिस्ट में उनकी सास भी जुड़ जाएंगी ) ,
,
उन से ज्यादा उनकी कम्मो भौजी को ,
उनके देवर गौने की दुल्हिन से भी ज्यादा लजाते शर्माते हैं , जबतक कुछ जोर जबरदस्ती नहीं करेंगी वो , तो फागुन ऐसे सूखा चला जाएगा ,
और फिर आज सुबह देवर भौजाई दोनों को डबल भांग की दो दो गुझिया ,
और आज मेरी जेठानी, सास भी नहीं थी , सिर्फ मैं , और मैं तो खुद ही उन दोनों लोगो को चढ़ा रही थी ,
उनका एक हाथ ब्लाउज के अंदर घुस गया ,
चरर चररर , रहा सहा ब्लाउज भी फट गया ,... और अब दोनों हाथों की चांदी ,
कोई छोटे मोटे उभार नहीं थे , एकदम बड़े बड़े मक्खन के कटोरे , मुश्किल से उनके देवर के दोनों हाथों में आ रहे थे और ऊपर से उनकी कम्मो भौजी बजाय छुड़ाने के गरिया रही थीं
" अभिन हमहुँ फाड़ेंगी तोहार , लेकिन खाली पजामा नहीं पजामे अंदर वाला भी , ... बचपन में गांड मरवाये होंगे न वो याद आजायेगा , ... लौंडे तेल वैसलीन लगा के इस चिकने की मारते रहे होंगे पर मैं सूखी मारूंगी ,... "
मैं बरामदे में बैठी बैठी देवर भाभी की मस्ती देख रही थी , पर मैं अपने को नहीं रोक पायी , ... वहीँ से खिलखिलाते हुए बोली ,
" अरे नहीं , अभी इनकी कोरी है , कोहबर में खुद अपनी सास सलहज के सामने कबूला था इन्होने "
तब तक ये कस कस के कम्मो भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया मसल रहे थे , और जोबन मर्दन में तो जैसे इन्होने पी एच डी कर रखी थी , मुझसे ज्यादा कौन जानता था इस बात को , बस एक बार चोली खुल जाए और इनका हाथ लड़की के उभारों पर छू बस जाए , फिर तो वो खुद टाँगे फैला देगी , ...
कौन
और कम्मो तो खूब खेली खायी , ... उसकी हालत तो एकदम , ... वो एक जोबन एक निपल फ्लिक कर रहे थे तो दूसरे को पूरी ताकत से मीज रहे थे
सच में देवर भाभी की होली हो , जीजा साली की या नन्दोई सलहज की रंग तो बहाना है ,असली चीज तो जोबन मीजना मसलना रगड़ना है , और होली में जिसने भौजाई , साली , सलहज के जोबन नहीं मसले रगड़े न वो असली देवर , जीजा या नन्दोई है , और जिसने न मलवाया वो असली भौजाई , साली , सलहज नहीं ,
लेकिन कम्मो भौजी असली भौजी थीं , और उन्हें डर ये था की कहीं उनका देवर बिचक न जाये , इसलिए नाम के लिए भी वो इनका हाथ नहीं पकड़ रही थी , पर उन्हें गरियाने से कौन रोक सकता था
मैं तो कत्तई नहीं ,
" हे कहाँ से सीखा अइसन चूँची मीजना , मसलना , बचपन से आपन बहिन महतारी चूँची मीज मीज , के, स्साले तेरी बहन की गाँड़ मारुं ,... " कम्मो उन्हें गरिया रही थी , और हँसते हुए मैं बोली
" एकदम सही कह रही हो आप , लेकिन उस एलवल वाली की कच्ची अमिया , .. जरूर अपनी महतारी के साथ , ... उन्ही की बड़ी बड़ी हैं , ... "
" एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "
मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,
उनका ब्लाउज ,.... मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।
कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,
खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , ...
38 डी डी ,
मम्मे देखकर तो ये वैसे ही ललचाते थे , और इनकी कम्मो भौजी के मम्मे तो और एकदम जबरदंग ,
और ऊपर से वो कभी भी ब्रा नहीं पहनती थी और ब्लाउज भी एकदम पतला , ... झलकते छलकते रहते थे , दोनों मम्मे
कल होली की शुरआत में बेचारे ब्लाउज के अंदर भले हाथ न डाल पाए हों पर रंग से भीगे , देह से चिपके पतले पारभासी ब्लाउज से झलक के एकदम साफ़ साफ़ दिख रहे थे , और ऊपर से जब वो ब्लाउज के ऊपर से अपनी कम्मो भौजी के ३८ डी डी वाले उभार दबा रहे थे , मसल रहे थे ,
वो भी उन्हें उकसा रही थी अपने कड़े कड़े बड़े बड़े चूतड़ कस कस के अपने देवर के भीगे पाजामे में तने बौराये खूंटे पे रगड़ रगड़ कर के ,
समझ तो ये भी रहे थे की उनकी भौजी फागुन में क्या चाहती हैं ,
और आज तो ,
एक तो कल रात मैंने उन्हें साफ़ साफ़ समझा दिया था , उनको भी , उनके उस मूसलचंद को भी , ... फागुन में भौजी , साली सलहज का हक इसपर मुझसे पहले है ( और मुझे तो शक था की जब ये ससुराल पहुंचेंगे तो उस लिस्ट में उनकी सास भी जुड़ जाएंगी ) ,
,
उन से ज्यादा उनकी कम्मो भौजी को ,
उनके देवर गौने की दुल्हिन से भी ज्यादा लजाते शर्माते हैं , जबतक कुछ जोर जबरदस्ती नहीं करेंगी वो , तो फागुन ऐसे सूखा चला जाएगा ,
और फिर आज सुबह देवर भौजाई दोनों को डबल भांग की दो दो गुझिया ,
और आज मेरी जेठानी, सास भी नहीं थी , सिर्फ मैं , और मैं तो खुद ही उन दोनों लोगो को चढ़ा रही थी ,
उनका एक हाथ ब्लाउज के अंदर घुस गया ,
चरर चररर , रहा सहा ब्लाउज भी फट गया ,... और अब दोनों हाथों की चांदी ,
कोई छोटे मोटे उभार नहीं थे , एकदम बड़े बड़े मक्खन के कटोरे , मुश्किल से उनके देवर के दोनों हाथों में आ रहे थे और ऊपर से उनकी कम्मो भौजी बजाय छुड़ाने के गरिया रही थीं
" अभिन हमहुँ फाड़ेंगी तोहार , लेकिन खाली पजामा नहीं पजामे अंदर वाला भी , ... बचपन में गांड मरवाये होंगे न वो याद आजायेगा , ... लौंडे तेल वैसलीन लगा के इस चिकने की मारते रहे होंगे पर मैं सूखी मारूंगी ,... "
मैं बरामदे में बैठी बैठी देवर भाभी की मस्ती देख रही थी , पर मैं अपने को नहीं रोक पायी , ... वहीँ से खिलखिलाते हुए बोली ,
" अरे नहीं , अभी इनकी कोरी है , कोहबर में खुद अपनी सास सलहज के सामने कबूला था इन्होने "
तब तक ये कस कस के कम्मो भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया मसल रहे थे , और जोबन मर्दन में तो जैसे इन्होने पी एच डी कर रखी थी , मुझसे ज्यादा कौन जानता था इस बात को , बस एक बार चोली खुल जाए और इनका हाथ लड़की के उभारों पर छू बस जाए , फिर तो वो खुद टाँगे फैला देगी , ...
कौन
और कम्मो तो खूब खेली खायी , ... उसकी हालत तो एकदम , ... वो एक जोबन एक निपल फ्लिक कर रहे थे तो दूसरे को पूरी ताकत से मीज रहे थे
सच में देवर भाभी की होली हो , जीजा साली की या नन्दोई सलहज की रंग तो बहाना है ,असली चीज तो जोबन मीजना मसलना रगड़ना है , और होली में जिसने भौजाई , साली , सलहज के जोबन नहीं मसले रगड़े न वो असली देवर , जीजा या नन्दोई है , और जिसने न मलवाया वो असली भौजाई , साली , सलहज नहीं ,
लेकिन कम्मो भौजी असली भौजी थीं , और उन्हें डर ये था की कहीं उनका देवर बिचक न जाये , इसलिए नाम के लिए भी वो इनका हाथ नहीं पकड़ रही थी , पर उन्हें गरियाने से कौन रोक सकता था
मैं तो कत्तई नहीं ,
" हे कहाँ से सीखा अइसन चूँची मीजना , मसलना , बचपन से आपन बहिन महतारी चूँची मीज मीज , के, स्साले तेरी बहन की गाँड़ मारुं ,... " कम्मो उन्हें गरिया रही थी , और हँसते हुए मैं बोली
" एकदम सही कह रही हो आप , लेकिन उस एलवल वाली की कच्ची अमिया , .. जरूर अपनी महतारी के साथ , ... उन्ही की बड़ी बड़ी हैं , ... "
" एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "
मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,