08-03-2019, 11:17 AM
वह 5 मिनट तक हर रोज़ लगभग 8 बजे ऐसे ही पूजा करती थी, जिसे मैं हर रोज़ चोरी से देखने लगा था और हर रोज वहीं खड़ा होकर हाथ से अपना पानी निकाल लेता था.
एक दिन हेमा भाभी ने मुझसे पूछा- राज भैया! आपको स्कूटर चलाना आता है?
मैंने कहा- जी हां आता है.
तो वह कहने लगी- मुझे बाज़ार में थोड़ा काम है, प्रोफेसर साहब बिजी हैं, तो आप थोड़ी देर के लिए मुझे स्कूटर पर बाज़ार में ले चलो.
मैंने कहा- ठीक है.
स्कूटर सीढ़ियों में खड़ा होता था. मैं तैयार हुआ, स्कूटर बाहर निकाला और हेमा भाभी को पीछे बैठाकर मार्केट की ओर निकल गया। बाहर जाते हुए लता भाभी ने हमें देख लिया था और उनके चेहरे से लगा कि वह जलकर खाक हो गई थी.
स्कूटर पर हेमा भाभी मेरे साथ बेफिक्री से बैठी थी, उनके पट, चुचे और शरीर बार बार मुझसे टच हो रहे थे जिससे मेरा शरीर रोमांच से भर गया था. वैसे तो मार्किट पास ही थी, परन्तु उन्हें दूसरी मार्किट में जाना था.
मैं स्कूटर थोड़ा तेज़ चला रहा था और कोई सामने आ जाता था तो एकदम ब्रेक मारते ही भाभी मुझसे लगभग सट जाती थी. उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी सीट पकड़ रखी थी. उनके व्यवहार से ज़रा भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें मुझमें कोई रूचि है. लेकिन उनके शरीर छूने से और बदन की खुशबू से मेरा लंड खड़ा हो गया था.
भाभी तीन-चार दुकानों पर गई, मैं बाहर खड़ा रहता था.
काम ख़त्म होने के बाद उन्होंने अपने हाथ में कुछ थैले लिए और मेरे पीछे फिर बैठ गई. सामान के साथ बैठते हुए उन्हें थोड़ी दिक्कत हो रही थी अतः उन्होंने सभी थैलों को अपनी गोद में रखा और बैठते हुए मेरा कन्धा पकड़ लिया.
मैंने हिम्मत करके कहा- भाभी, आप मुझे पकड़ लो वर्ना गिर जाओगी.
उन्होंने मुझे कमर से पकड़ लिया और कहने लगी- मैंने सोचा कभी तुम बुरा न मान जाओ, इसलिए नहीं पकड़ रही थी.
मैंने कहा- आप निश्चिन्त होकर बैठें और जैसे मर्ज़ी पकड़ें.
मैं जानबूझ कर थोड़ा ब्रेक मारने लगा तो भाभी की छातियाँ लगभग मुझसे चिपकने लगी.
हम घर आ गए, लता भाभी ने फिर हमें अच्छी तरह बैठे देख लिया था और उन्होंने अपना मुंह बिचका लिया था. इस प्रकार से हेमा भाभी मुझसे स्कूटर पर बैठकर अपने काम करवाने लगी. मेरा भी धीरे-धीरे हौसला बढ़ता गया और हेमा भाभी भी कुछ-कुछ मुझमें रूचि लेने लगी थी.
एक दिन हेमा भाभी ने मुझसे पूछा- राज भैया! आपको स्कूटर चलाना आता है?
मैंने कहा- जी हां आता है.
तो वह कहने लगी- मुझे बाज़ार में थोड़ा काम है, प्रोफेसर साहब बिजी हैं, तो आप थोड़ी देर के लिए मुझे स्कूटर पर बाज़ार में ले चलो.
मैंने कहा- ठीक है.
स्कूटर सीढ़ियों में खड़ा होता था. मैं तैयार हुआ, स्कूटर बाहर निकाला और हेमा भाभी को पीछे बैठाकर मार्केट की ओर निकल गया। बाहर जाते हुए लता भाभी ने हमें देख लिया था और उनके चेहरे से लगा कि वह जलकर खाक हो गई थी.
स्कूटर पर हेमा भाभी मेरे साथ बेफिक्री से बैठी थी, उनके पट, चुचे और शरीर बार बार मुझसे टच हो रहे थे जिससे मेरा शरीर रोमांच से भर गया था. वैसे तो मार्किट पास ही थी, परन्तु उन्हें दूसरी मार्किट में जाना था.
मैं स्कूटर थोड़ा तेज़ चला रहा था और कोई सामने आ जाता था तो एकदम ब्रेक मारते ही भाभी मुझसे लगभग सट जाती थी. उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी सीट पकड़ रखी थी. उनके व्यवहार से ज़रा भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें मुझमें कोई रूचि है. लेकिन उनके शरीर छूने से और बदन की खुशबू से मेरा लंड खड़ा हो गया था.
भाभी तीन-चार दुकानों पर गई, मैं बाहर खड़ा रहता था.
काम ख़त्म होने के बाद उन्होंने अपने हाथ में कुछ थैले लिए और मेरे पीछे फिर बैठ गई. सामान के साथ बैठते हुए उन्हें थोड़ी दिक्कत हो रही थी अतः उन्होंने सभी थैलों को अपनी गोद में रखा और बैठते हुए मेरा कन्धा पकड़ लिया.
मैंने हिम्मत करके कहा- भाभी, आप मुझे पकड़ लो वर्ना गिर जाओगी.
उन्होंने मुझे कमर से पकड़ लिया और कहने लगी- मैंने सोचा कभी तुम बुरा न मान जाओ, इसलिए नहीं पकड़ रही थी.
मैंने कहा- आप निश्चिन्त होकर बैठें और जैसे मर्ज़ी पकड़ें.
मैं जानबूझ कर थोड़ा ब्रेक मारने लगा तो भाभी की छातियाँ लगभग मुझसे चिपकने लगी.
हम घर आ गए, लता भाभी ने फिर हमें अच्छी तरह बैठे देख लिया था और उन्होंने अपना मुंह बिचका लिया था. इस प्रकार से हेमा भाभी मुझसे स्कूटर पर बैठकर अपने काम करवाने लगी. मेरा भी धीरे-धीरे हौसला बढ़ता गया और हेमा भाभी भी कुछ-कुछ मुझमें रूचि लेने लगी थी.
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!