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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#14
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किचेन में एक दरवाजा पीछे की ओर भी खुलता था, जिससे की भीमा कचरा वगैरा फेंकता था, या फिर नौकरों के आने जाने के लिये था। किसी को खाना खाना हो तो बाहर एक शेड बना था, उसमें वो बैठे थे। बाहर निकलने वाला शायद लक्खा ही होगा। पर वो इस समय किचेन में क्या कर रहा था? शायद पानी या फिर कुछ खाने आया होगा। जैसे ही लक्खा बाहर को निकला, वैसे ही भीमा किचेन के दरवाजे से दरवाजा बंद करने के लिये डाइनिंग स्पेस में निकलकर आया।

अब भीमा और कामया एकदम आमने सामने थे। कामेश बाहर निकल गया था। कामया ड्राइंग रूम के बीच में खड़ी थी, पूरी तरह से ड्रेसप होकर बिजली गराती हुई, कामसुख और मादकता लिए हुए, सुंदर और सेक्सी दिखती हुई और, और किसी भी साधु या फिर सन्यासी की नियत को हिलाने के लिए।

जैसे ही भीमा और कामया की नजर आपस में टकराई, दोनों जैसे जमीन में धंस गये थे। दोनों एक दूसरे को देखते रह गये। भीमा की नजर तो जैसे जम गई थी कामया के ऊपर। नीचे से ऊपर तक एकटक निहारता रह गया वो कामया को, क्या लग रही थी किसी अप्सरा की तरह।

और भीमा को देखकर कामया को दोपहर का वाकया याद आ गया की कैसे भीमा ने उसे रौंदा था, और कैसे उसके हाथ और होंठों ने उसे चूसा और चूमा था था। हर वो पहलू दोनों के जेहन में एक बार फिर ताजा हो गई थी। दोनों की आँखों में एक सेक्स की लहर दौड़ गई थी। कामया का पूरा शरीर सिहर गया था, उसकी जांघों के बीच में हलचल मच गई थी, निपल्स ब्रा के अंदर सख़्त हो गये थे।

भीमा का भी यही हाल था। उसकी धोती के अंदर एक बार फिर उसके पुरुषार्थ ने चिहुंक कर अपने अस्तित्व की आवाज को बुलंद कर दिया था, वो अपने को आजाद करने की गुहार लगाने लग गया था। दोनों खड़े हुए एक दूसरे को देखते रहे किसी ने भी आगे बढ़ने की या फिर नजर झुका के हटने की कोशिश नहीं की।

पर बाहर से कामेश की आवाज ने कामया और भीमा को चौंका दिया। कामया पलटकर जल्दी से गाड़ी की ओर भागी, और भीमा ने भी अपनी नजर झुका ली।

बाहर कामेश गाड़ी के अंदर बैठ चुका था और लक्खा गाड़ी का गेट खोले नजरें झुकाए खड़ा था। कामया अपने पल्लू को संभालकर जल्दी से गाड़ी के पास आई, और गाड़ी में बैठने लगी। पर ना जाने क्यों उसकी नजर लक्खा काका पर पड़ गई, जो की नजरें झुकाए हुए भी कामया के ऊपर नजर डालने से नहीं चूका था। जब कामया बैठ गई तो लक्खा दरवाजा बंद करके जल्दी से घूमकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी गेट के बाहर की ओर दौड़ चली।

कामेश और कामया पीछे बैठे हुए बाहर की ओर देख रहे थे, और अपने पार्टी वाले जगह पर पहुँचने की बारे में सोच रहे थे। बीच-बीच में एक दूसरे से कुछ बातें भी करते जा रहे थे। लक्खा काका गाड़ी चलेने में लगे थे। कामया की नजर कभी बाहर कभी अंदर की ओर थी। आज बहुत दिनों बाद बाहर निकली थी।

पर अचानक ही उसकी नजर बैक व्यू पर पड़ी तो लक्खा काका की नजर को अपनी ओर पाकर वो चौंक गई। जब वो गाड़ी में बैठ रही थी तब भी उसे लगा था की लक्खा काका उसी को देख रहे हैं, पर उसने ध्यान नहीं दिया था। शायद वो कुछ गलत सोच रही थी। पर अब वो पक्का था की लक्खा काका की नजर अब उसी पर थी। अपने पति की नजर चुराकर वो कई बार इस बात को साबित भी कर चुकी थी।

जब भी गाड़ी किसी लाल लाइट पर खड़ी होती थी तो, या फिर जब भी वो मिरर में देखता था पीछे की ओर देखने के लिए तो एक बार वो कामया को जरूर निहार लेता था। कामया के पूरे शरीर में जो सनसनी भीमा चाचा के पास उनके देखने पर हुई थी, वो अब एक कदम और आगे बढ़ गई थी। वो ना चाहकर भी नजरें बचाकर लक्खा काका की नजर का पीछा कर रही थी। वो कई बार इस बात की पुष्टि कर चुकी थी की लक्खा काका उसे ही देख रहे थे।

तभी वो लोग वहां पहुँच गये, और गाड़ी पार्क करके लक्खा काका दौड़कर कामया की ओर के दरवाजे की ओर लपके। कामेश तो दूसरी तरफ का दरवाजा खोलकर उतर गये, और पास खड़े हुए किसी से बात भी करने लगे थे। पर कामया को उतरने में थोड़ी देर हुई। जब लक्खा काका ने दरवाजा खोला तब पहले उसने अपनी टांगों को बाहर निकालकर पैरों के ऊपर से उसकी साड़ी थोड़ी ऊपर की ओर हुई और उसके सुंदर और गोरे-गोरे पैरों के दर्शन लक्खा को हुए, जो की नजरें झुकाए अब भी वहीं खड़े थे।

सुंदर पिंडलियों में कामया की सुंदर सी सैंडल हील वाली, उसके गोरे-गोरे पैरों पर बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। दूसरे पैर के बाहर निकलते ही कामया थोड़ा सा आगे की ओर हुई और झुक कर बाहर को निकली, तो लक्खा अपनी नजर को कामया के पेट और नाभि से लेकर ब्लाउज़ तक ले जाने से नहीं रोक पाया। वो मंत्रमुग्ध सा कामया की उठी हुई चूचियों को और नाजुक और सुडौल शरीर को निहारता रहा।

जब कामया लक्खा के सामने से निकलकर बाहर खड़ी हुई तो उसके नथुनों में एक कामुक और ताजी सी खुशबू उसके जेहन तक बस गई और वो लगभग गिरते-गिरते बचा था। उसका पूरा शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। वो इस अप्सरा के इतने पास था, पर वो कुछ नहीं कर सकता था। बीच में सिर्फ गाड़ी का दरवाजा और उस तरफ कामया, जिसका पूरा साड़ी का पल्लू उसके ब्लाउज़ के ऊपर से ढलका हुआ था और गाड़ी से बाहर निकलने के बाद उसके सामने खड़ी हुई ठीक कर रही थी। वाह… क्या दृश्य था, लक्खा खड़ा-खड़ा उस सुंदरता को अपने अंदर उतार रहा था, और नजरें नीचे किए अब भी उसकी कमर को देख रहा था, जहां कामया की साड़ी फँसी हुई थी और लक्खा अपने मुकद्दर को कोस रहा था।

तभी कामेश की आवाज पर कामया झटके से पलटी और कामेश की ओर देखने लगी।

ऊओह्ह… लक्खा तो शायद मर ही गया होता, जब कामया के पलटने से उसके खुले हुए बाल उड़कर लक्खा के चेहरे पर पड़े, और गेट के पास से होते हुए नीचे गिर गये उसके सिर के सहारे। लक्खा का तो जैसे दम ही घुट गया था, गला सूख गया था, हाथ पांव ने जबाब दे दिया था, वो जहां था वहीं जम गया था, मुँह खुला का खुला रह गया था, एक तेज लहर उसके शरीर में दौड़ गई थी, और उसके नथुनों में एक और खुशबू ने प्रवेश किया था। वो उसके शरीर के खुशबू से अलग थी।

उफफ्फ़… क्या खुशबू थी? गाड़ी के अंदर जो खुशबू थी वो तो उसने जो सेंट या पर्फ्यूम लगाया था उसकी थी, तो क्या यह खुशबू कामया के शरीर की थी? उफफ्फ़… लक्खा खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था और नजरें उठाये कामया को बल खाते हुए अपने पति की ओर जाते हुए देखता रहा। क्या कमर मटका-मटका कर चलती थी बहू? क्या फिगर था? कमर कितनी पतली सी थी, और चूचियां तो बहुत ही मस्त हैं, कितनी गोरी और नाजुक सी दिखती है बहू? वो गाड़ी का दरवाजा पकड़कर, खड़ा-खड़ा कामया को अपने पति के साथ जाते हुए देखता रहा, जैसे कोई भूखा अपने हाथों से रोटी छिनते हुए देख रहा हो।

लक्खा अब भी मंत्रमुग्ध सा कामया को निहार रहा था की अचानक ही कामया पलटी और लक्खा की नजरें उससे टकराई, तो लक्खा पथरा गया और जल्दी से नजरें नीचे करके दरवाजा बंद करने लगा। पर नजरें झुकाते समय उसे बहू की नजरों में, होंठों में एक मुश्कुराहट को उसने देखा था। जब तक वो फिर से उस तरफ देखता, तब तक वो अंदर जा चुके थे।

लक्का सन्न रह गया था। क्या बहू को मालूम था की वो उसे देख रहा था? बाप रे बाप… कहीं साहब से शिकायत कर दिया तो मेरी नौकरी तो गई, और फिर बेइज्जती, बाप रे बाप… आज तक लक्खा इतना नहीं डरा था, जो अभी उसकी हालत थी। उसे माफी माँग लेना चाहिए। बहू से कह देगा की गलती हो गई। पर पर बहू तो मुश्कुराई थी। हाँ… यह तो पक्का था, उसे अच्छे से याद था। वो जानती थी की वो उसे देख रहा था, फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। वो कामेश को कह सकती थी। लक्खा घर से लेकर अब तक की घटना को याद करने लगा था। जब भी वो पीछे देखता था तो उसकी नजर बहू से टकराती थी। तो क्या बहू जानती थी की वो उसे देख रहा था? या फिर ऐसे ही उसकी कल्पना थी?

और उधर कामया जब गाड़ी से बाहर निकली तो लक्खा उसके लिए दरवाजा खोले खड़ा था। उसके उतरते हुए साड़ी का उठना और फिर उसके खड़े होते हुए लक्खा के समीप होना, यह सब कामया जानती थी, और जब वो पलटकर जाने लगी थी तो एक लम्बी सांस लेने की आवाज भी उसे सुनाई दी थी। पति के साथ जब वो अंदर की ओर जाने लगी थी तो उसने पलटकर देखा भी था की वाकई क्या लक्खा काका उसे ही देख रहे हैं? या फिर उसके दिल की कल्पना मात्र थी? हाँ… काका उसे ही निहार रहे थे। कामया का शरीर झंझना गया था। पलटते समय उसके चेहरे पर एक मुश्कान थी जो की शायद लक्खा काका ने देख लिया था।

कामया तो अंदर चली गई, पर लक्खा काका को बेसुध कर गई। वो गाड़ी के पास खड़ा-खड़ा बहू के बारे में ही सोच रहा था, और अपने आपको बड़ा ही खुशनसीब समझ रहा था की वो एक इतनी सुंदर मालेकिन का नौकर है। घर पर सब उसे बहुत इज्जत देते थे, और बहू भी। पर आज तो बहू कमाल की लग रही थी। अचानक ही उसके दिमाग में एक बात बिजली की तरह दौड़ गई।

अरे, उसे तो बहू को ड्राइविंग भी सिखानी है, पर क्या वो बहू को ड्राइविंग सिखा पाएगा? कहीं उससे कोई गलती हो गई तो? और बहू अगर इस तरह के कपड़े पहनेगी तो क्या वो अपनी निगाहों को उसे देखने से दूर रख पाएगा? बाप रे अब क्या करे? अभी तक तो सब कुछ ठीक था, पर आज जो कुछ भी उसके मन में चल रहा था, उसके बाद तो वो बहू को देखते ही अपना आपा ना खो दे? यही सोचकर वो कांप गया था। बहू के पास जब वो सामने उसे ड्राइविंग सिखाएगा तो बहू उसके बहुत पास बैठी होगी और उसकी खुशबू से लेकर उसके स्पर्श तक का अंदाजा लक्खा गाड़ी में बैठे-बैठे ही लगा रहा था और अपने में खोया हुआ बहू की सुंदरता को अपनी सोच के अनुरूप ढाल रहा था।

तभी बाहर से कच में दस्तक हुई, तो लक्खा ने बाहर देखा की कामेश खड़ा है, और बहू भी उससे थोड़ी दूर अपने दोस्तों से बात कर रही है। वो झटपट बाहर निकला और दौड़ता हुआ गाड़ी का दरवाजा खोलने लगा। कामेश तो झट से बैठ गया, पर कामया अपने दोस्तों से बात करके जब पलटी तो लक्खा अपनी नजर को नीचे नहीं कर पाया, वो मंत्रमुग्ध सा कामया के यौवन को निहारता रहा, और अपनी आँखों में उसकी सुंदरता को उतारता रहा।

कामया ने एक बार लक्खा काका की ओर देखा और चुपचाप दरवाजे से अंदर जाकर अपनी सीट पर बैठ गई। लक्खा भी लगभग दौड़ता हुआ अपनी सीट की ओर भागा। उसे पता ही नहीं चला था की कैसे दो घंटे बीत गये थे? और वो सिर्फ कामया के बारे में ही सोचता रहा गया था। वो अपने अंदर एक ग्लानि से पीड़ित हो गया था। छीः छीः वो क्या सोच रहा था? जिनका वो नमक खाता है उनके घर की बहू के बारे में वो क्या सोच रहा था? कामेश को उसने दो साल का देखा था और तब से वो इस घर का नौकर था। भीमा तो उससे पहले का था। नहीं उसे यह सब नहीं सोचना चाहिए, यह गलत है। वो कोई जानवर तो नहीं है, वो एक इंसान है। जो गलत है वो उसके लिए भी गलत है।

लक्खा गाड़ी चला रहा था, पर उसका दिमाग पूरा समय घर तक इसी सोच में डूबा था, पर उसके मन का वो क्या करे? वो चाहकर भी अपनी नजर बहू के ऊपर से नहीं हटा पाया था। पर घर लौटते समय उसने एक बार भी बहू की ओर नहीं देखा था। उसने अपने मन पर काबू पा लिया था। इंसान अगर कोई चीज ठान ले तो क्या नहीं कर सकता? बिल्कुल कर सकता है। उसने अपने दिमाग पर चल रहे ढेर सारे सवालों को एक झटके से निकल दिया, और फिर से एक नमकहलाल ड्राइवर के रूप में आ गया, और गाड़ी घर की ओर तेजी से दौड़ चली थी। अंदर बिल्कुल सन्नाटा था।

घर के गेट पर चौकीदार खड़ा था। गाड़ी आते देखकर झट से दरवाजा खुल गया। गाड़ी की आवाज से अंदर से भीमा भी दौड़कर आया और घर का दरवाजा खोलकर बाजू में सिर झुकाए खड़ा हो गया।

गाड़ी के रुकते ही लक्खा काका बाहर निकले और पहले कामेश की ओर जाते, पर कामेश तो खुद ही दरवाजा खोलकर बाहर आ गया था, तो वो बहू की ओर का दरवाजा खोले नीचे नजरें किए खड़ा हो गया। कामेश गाड़ी से उतरते ही अंदर की ओर लपका, कामया को बाहर ही छोड़कर। भीमा भी दरवाजे पर खड़ा था और लक्खा गाड़ी के दरवाजे को खोले।

कामया अपनी ही नजाकत से बाहर निकली और लक्खा के समीप खड़े होकर कहा- “काका, कल से मैं गाड़ी चलाने चलूंगी, आप शाम को जल्दी से आ जाना…”

लक्खा- “जी बहूरानी…” उसकी आवाज में लड़खड़ाहट थी, गला सूख गया था।

कामया और लक्खा के बीच में सिर्फ गाड़ी का दरवाजा ही था, उसके बाल हवा में उड़ते हुए उसके चेहरे पर पड़ रहे थे। फिर जब कामया ने अपने हाथों से अपने बालों को सवांरा तो लक्खा फिर से अपनी सुधबुध खो चुका था। फिर से वो सब कुछ भूल चुका था, जो वो अभी-अभी गाड़ी चलाते हुए सोच रहा था। वो बेसुध सा कामया के रूप को नजरें झुकाए हुए देखता रहा। उसकी ब्लाउज़ में फँसी हुई उसकी दो गोलाईयों को और उसके नीचे की ओर जाते हुए चिकने पेट को, और लम्बी-लम्बी बाहों को। वो सब कुछ भूलकर सिर्फ कामया के हुश्न के बारे में सोचता रह गया, और कामया को घर के अंदर जाते हुए देखता रह गया।

दरवाजे पर कामया के गायब होते ही लक्खा को होश आया तो देखा की भीमा उसे ही देख रहा था। वो झेंप गया और गाड़ी लाकच करके जल्दी से अपनी स्कूटर लेकर गेट से बाहर निकल गया।

कामया भी जल्दी से अपनी नजर को नीचे किए भीमा चाचा को पार करके सीधे सीढ़ियों की ओर भागी और वो अपने रूम में पहुँची। रूम में जाकर देखा की कामेश बाथरूम में है तो वो अपनी साड़ी उतारकर सिर्फ ब्लाउज़ और पेटीकोट में ही खड़ी होकर अपने आपको मिरर में निहारती रही। वो जानती थी की कामेश के बाहर आते ही उसपर टूट पड़ेगा, इसलिए वो वैसे ही खड़ी होकर उसका इंतेजार करती रही। हमेशा कामेश उसे घूमकर आने के बाद ऐसे ही सिर्फ साड़ी उतारने को ही कहता था, बाकी उसका काम था। आज्ञाकारी पत्नी की तरह कामया खड़ी कामेश का इंतेजार कर रही थी।

बाथरूम का दरवाजा खुला। कामया को मिरर के सामने देखकर कामेश भी उसके पास आ गया और पीछे से कामया को बाहों में भरकर उसकी चूचियों को दबाने लगा। कामया के मुख से एक आऽऽ निकली और उसने अपने सिर को कामेश के कंधों के सहारे छोड़ दिया, और कामेश के हाथों को अपने शरीर में घूमते हुए महसूस करती रही। वो कामेश का पूरा साथ देती रही, और अपने आपको कामेश के ऊपर निछावर करने को तैयार थी।

कामेश के हाथ कामया की दोनों चूचियों को छोड़कर उसके पेट पर आ गये थे और अब वो कामिया की नाभि को छेड़ रहा था। वो अपनी उंगली को उसकी नाभि के अंदर, तो कभी बाहर करके कामया को चिढ़ा रहा था, अपने होंठों को कामया के गले और गले से लेजाकर उसके होंठों पर रखकर कामया के होंठों से जैसे शहद को निकालकर अपने अंदर लेने की कोशिश कर रहा था।

कामिया से भी नहीं रहा गया, वो पलटकर कामेश की गर्दन के चारों ओर अपनी बाहों को पहनाकर खुद को कामेश से सटा लिया, अपने पेट और योनि को वो कामेश से रगड़ने लगी थी। उसके शरीर में जो आग भड़की थी, वो अब कामेश ही बुझा सकता था। वो अपने आपको कामेश के और भी नजदीक ले जाना चाहती थी, और अपने होंठों को वो कामेश के मुख में घुसाकर अपनी जीभ को कामेश के मुख में चला रही थी।

कामेश का भी बुरा हाल था। वो भी पूरे जोश के साथ कामया के बदन को अपने अंदर समा लेना चाहता था। वो भी कामया को कसकर अपने में समेटे हुए धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ा। गिरते ही कामेश कामया के ब्लाउज़ पर टूट पड़ा, जल्दी-जल्दी उसने एक झटके में कामया के ब्लाउज़ को हवा में उछाल दिया और ब्रा भी उसके कंधे से उसी तरह बाहर हो गई थी। कामया के ऊपर के बस्त्रों के बाद कामेश ने कामया के पेटीकोट और पैंटी को भी खींचकर उतार दिया और बिना किसी देरी के वो कामया के अंदर एक ही झटके में समा गया।

कामया उउउफ तक नहीं कर पाई और कामेश उसके अंदर था, अंदर और अंदर और भी अंदर और फिर कामेश किसी पिस्टन की भांति कामया के अंदर-बाहर होता चला गया। कामया के अंदर एक ज्वार सा उठ रहा था और वो लगभग अपने शिखर पर पहुँचने वाली ही थी। कामेश जिस तरह से उसके शरीर से खेल रहा था, उसको उसकी आदत थी। वो कामेश का पूरा साथ दे रही थी और उसे मजा भी आ रहा था।

उधर कामेश भी अपने आपको जब तक संभाल सकता था संभाल चुका था। अब वो भी कामया के शरीर के ऊपर ढेर लग गया था, अपनी कमर को एक-दो बार आगे पीछे करते हुए वो निढाल सा कामया के ऊपर पड़ा रहा, और कामया भी कामेश के साथ ही झड़ चुकी थी, और अपने आपको संतुष्ट पाकर वो भी खुश थी। वो कामेश को कसकर पकड़े हुए उसके चेहरे से अपना चेहरा घिस रही थी, और अपने आपको शांत कर रही थी।

जैसे ही कामेश को थोड़ा सा होश आया वो लुढ़क कर कामया के ऊपर हाथ और अपने तकिये पर सिर रखकर कामया की ओर देखते हुए कहा- “स्वीट ड्रीम्स डार्लिंग…”

कामया- “स्वीट ड्रीम्स डियर…” और उठकर वैसे ही बिना कपड़े के बाथरूम की ओर चल दी।

जब वो बाहर आई तो कामेश सो चुका था और वो अपने कपड़े जो की जमीन पर जहां तहां पड़े थे, उसको समेटकर वार्डरोब में रखा और अपनी जगह पर लेट गई, और छत की ओर देखते हुए कामेश की तरफ से नजरें घुमा ली, जो की गहरी नींद में था। कामया अपनी ओर पलटकर सोने की कोशिश करने लगी, और बहुत ही जल्दी वो भी नींद के आगोश में चली गई।

सुबह रोज की तरह वो लेट ही उठी। कामेश बाथरूम में था। वो भी उठकर अपने आपको मिरर में देखने के बाद कामेश का बाथरूम से निकलने का इंतेजार करने लगी। जब कामेश निकला तो वो भी बाथरूम में घुस गई और कुछ देर बाद दोनों चेंज करके नीचे पापाजी और मम्मीजी के साथ चाय पी रहे थे। पापाजी और मम्मीजी और कामेश एक दूसरे से बातों में इतना व्यस्त थे की कामया का ध्यान किसी को नहीं था, और न ही कामया को कोई इंटेरस्ट था इन सब बातों में। वो तो बस अपने आप में ही खुश रहने वाली लड़की थी कोई ज्यादा अपेक्षा नहीं थी उसे कामेश से, और अपने घर वालों से। एक तो किसी बात की बंदिश नहीं थी उसे यहां और ना ही कोई रोक-टोक, और न ही कोई काम था तो क्या शिकायत करे वो? बस कामेश की चाय खतम हुई और दोनों अपने कमरे की ओर चल दिए।

पापाजी और मम्मीजी भी अपने कमरे की ओर, और पूरे घर में फिर से शांति। सब अपने कमरे में जाने की तैयारी में लगे थे। कामया वहीं बिस्तर बैठी कामेश के बाथरूम से निकलने की राह देख रही थी और उसके कपड़े निकालकर रख दिए थे। वो बैठे-बैठे सोच रही थी की कामेश बाथरूम से निकलते ही जल्दी से अपने कपड़े उठाकर पहनने लगा।

कामेश- हाँ… कामया, आज तुम क्या गाड़ी चलाने जाओगी?

कामया- आप बताइए?

कामेश- “नहीं नहीं, मेरा मतलब है की शायद मैं थोड़ा देर से आऊँगा तो अगर तुम भी कहीं बीजी रहोगी तो अपने पति की याद थोड़ा काम आएगी हीहीही…”

कामया- कहिए तो पूरा दिन ही गाड़ी चलाती रहूँ।

कामेश- अरे यार, तुमसे तो मजाक भी नहीं कर सकते।

कामया- क्यों आयेंगे लेट?

कामेश- काम है यार, पापा भी साथ में रहेंगे।

कामया- ठीक है। पर क्या मतलब कब तक चलाती रहूँ?

कामेश- अरे जब तक तुम्हें चलानी है तब तक और क्या? मेरा मतलब था की कोई जरूरत नहीं है जल्दीबाजी करने की।

कामया- ठीक है। पर क्या रात को इतनी देर तक मैं वहां ग्राउंड पर लक्खा काका के साथ? मेरा मतलब?

कामेश- अरे यार, तुम भी ना… लक्खा काका हमारे बहुत ही पुराने नौकर हैं, अपनी जान दे देंगे पर तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।

कामया- जी पर?

कामेश- क्या पर पर? छोड़ो मैं भेज दूँगा, तुम तैयार रहना। ठीक है? जब भी आए चली जाना।

कामया- जी।

और दोनों नीचे की ओर चल दिए। डाइनिंग रूम में खाना लगा था। कामेश के बैठते ही कामया ने उसकी प्लेट लगा दिया और पास में बैठकर कामेश को खाते देखती रही। कामेश जल्दी-जल्दी अपने मुख में रोटी और सब्जी ठूंस रहा था और जल्दी से हाथ मुँह धोकर बाहर लपका। कामेश के जाने के बाद कामया भी अपने रूम की ओर चल दी।

पर जाते हुए उसे भीमा चाचा डाइनिंग टेबल के पास दिख गये वो जूठे प्लेट और बाकी का समान समेट रहे थे। कामया के कदम एक बार तो लड़खड़ाए फिर वो संभलकर जल्दी से अपने कमरे की ओर लपकी और जल्दी से अपने कमरे में घुसकर दरवाजा लगा लिया। पता नहीं क्यों उसे डर लग रहा था।

अभी थोड़ी देर में ही पापाजी भी चले जाऐंगे, और मम्मीजी भी अपने कमरे में घुस जाएंगी तब वो क्या करेगी? अभी आते समय उसने भीमा चाचा को देखा था। पता नहीं क्यों उनकी आँखों में एक अजीब सी बात थी की उनसे नजर मिलते ही वो कांप गई थी। उसकी नजर में एक निमंत्रण था, जैसे की कह रहा था की आज का क्या? कामया बाथरूम में जल्दी से घुसी और जितनी जल्दी हो सके तैयार होकर नीचे जाने को तैयार थी। जब उसे लगा की पापाजी और मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर पहुँच गये होंगे, तो वो भी सलवार कुर्ता पहने हुए डाइनिंग टेबल पर पहुँच गई और मम्मीजी के पास बैठ गई।

पापाजी और मम्मीजी को भी कोई आपत्ति नहीं थी, या फिर कोई शक या शुबाहा नहीं। मम्मीजी ने भी कामया का प्लेट लगा दिया और कामया नजरें झुका कर अपना खाना शुरू रखा।

मम्मीजी- आज क्या आपको भी देर होगी?

पापाजी- हाँ… बैंक वालों को बुलाया है कामेश ने। कुछ और लोग भी हैं, खाना खाकर ही आयेंगे।

मम्मीजी- जल्दी आ जाना, और हाँ… वो टूर वालों से भी पता कर लेना।

पापाजी- “हाँ… कर लूँगा…” और कामिया की ओर देखते हुए- “हाँ… लक्खा आज आ जाएगा। तुम चली जाना गाड़ी सीखने।

कामया- जी।

कामया के सोए हुए अरमान फिर से जाग उठे थे। जो बात को वो भूल जाना चाहती थी, पापाजी ने एक बार फिर से याद दिला दिया था। वो आज अकेले नहीं खाना चाहती थी और ना ही भीमा चाचा के करीब ही आना चाहती थी। कल की गलती का उसे गुमान था, वो उसे फिर से नहीं दोहराना चाहती थी। पर ना जाने क्यों जैसे ही पापाजी ने लक्खा काका का नाम लिया तो उसे कल की शाम की घटना याद आ गई थी। और फिर खाते-खाते दोपहर की।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 08-03-2019, 08:35 AM



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