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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#13
.
कामया भीमा के इस इंतेजार को सह ना पाई, और उसकी आँखें भी खुल गईं। भीमा की आँखों में देखते ही वो जैसे समझ गई थी की भीमा क्या चाहता है? उसने अपने होंठों को भीमा के होंठों में रख दिया, जैसे कह रही हो, लो चूमो चाटो और जो मन में आए करो; पर मुझे शांत करो। कामया की हालत इस समय ऐसी थी की वो किसी भी हद तक जा सकती थी। वो भीमा के होंठों को अपने कोमल होंठों से चूस रही थी।

और भीमा जो की कामया की इस हरकत को नजर अंदाज नहीं कर पाया, वो अब भी कामया की दोनों चूचियों को कसकर निचोड़ रहा था, और अपने मुँह में कामया के होंठों को लेकर चूस रहा था। वो हब्सियों की तरह हो गया था। उसके जीवन में इस तरह की घटना आज तक नहीं हुई थी, और आज वो इस घटना को अपने आप में समेट कर रख लेना चाहता था। वो अब कामया को भोगे बगैर नहीं छोड़ना चाहता था। वो भूल चुका था की वो
इस घर का नौकर है। अभी तो वो सिर्फ और सिर्फ एक मर्द था, और उसे भूख लगी थी किसी नारी के शरीर की, और वो नारी कोई भी हो उससे फर्क नहीं पड़ता था, उसकी मालेकिन ही क्यों ना हो। वो अब नहीं रुक सकता था। उसने कामया को अपने बलिष्ठ हाथ से खींच लिया।

लगभग गिरती हुई कामया सोफे को छोड़कर भीमा के ऊपर गिर पड़ी। पर भीमा तैयार था। उसने कामया को सहारा दिया और अपनी बाहों में कसकर बाँध लिया। उसने कामया को अब भी पीठ से पकड़ा हुआ था। उसके होंठों की छीना झपटी में कामया की दोनों चूचियां ब्रा के बाहर आ गई थीं। बल्की कहिए खुद ही आजाद हो गई होंगी। कितना जुल्म सहे बेचारी कैद में। कामया का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो इतनी उत्तेजित हो चुकी थी की लग रहा था की अब कभी भी भीमा पर चढ़ जाएगी।

पर भीमा की उत्तेजना तो इससे भी कहीं अधिक थी। उसका लिंग तो जैसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। भीमा अब नहीं रुकना चाहता था, और ना ही कुछ आगे की ही सोच पा रहा था। उसने कामया को अपनी और कब मोड़ लिया, कामया को पता भी ना चला। बस पता चला तब, जब उसकी सांसें अटकने लगी थीं। भीमा चाचा की पकड़ इतनी मजबूत थी की वो उनकी बाहों में हिल भी नहीं पा रही थी, सांस लेना तो दूर की बात वो अपने होंठों को भी भीमा चाचा से अलग करके थोड़ा सा सांस ले ले, वो भी नहीं कर पा रही थी।

भीमा जो की बस अब कामया के पूरे तन पर राज कर रहा था, उसके होंठों का खिलोना पाकर वो उसे अपनी बाहों में जकड़े हुए उसके होंठों को अपने मुख में लेता जा रहा था, और अंदर तक वो अपनी जीभ को कामया के सुंदर और कोमल मुख में घुसाकर अंदर उसकी लार को अपने मुख में लेकर आमृत पान कर रहा था। उसने कामया को कितनी जोर से जकड़ रखा था, यह वो नहीं जानता था। हाँ… पर उसे यह जरूर पता था कि रूई के गेंद सी कोई चीज, जो की एकदम कहीं से भी खुरदुरी नहीं है, उसकी बाहों में है। उसका लिंग अब कामया की जांघों के बीच में रगड़ खा रहा था। भीमा की दोनों हथेली कामया को थोड़ा सा ढीला छोड़कर अपनी बाहों में आए हुश्न की परिक्रमा करने चल दिया।

भीमा अब कामया की पीठ से लेकर नितम्बों तक घूम आया। कब कहां कौन सा हाथ था, यह कामया भी नहीं जनना चाहती थी, न ही भीमा। हाँ… स्पर्श जिसका ही एहसास दोनों को महसूस हो रहा था, वो खास था। कामया के शरीर को आज तक किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था। इतनी बड़ी-बड़ी हथेलियों का स्पर्श और इतना कठोर स्पर्श, आज तक कामया के शरीर ने नहीं झेला था, या कहिए महसूस नहीं किया था।

भीमा जैसे आंटा गूँध रहा था। वो कामया के शरीर को इस तरह से मथ रहा था की कामया का सारा शरीर ही उसके खेलने का खिलोना था, वो जहां मन करता था वहीं उसे रगड़ रहा था। भीमा और कामया अब नीचे कालीन में लेते हुए थे, और भीमा नीचे से कामया को अपने ऊपर पकड़कर उससे खेल रहा था। उसके होंठ अब भी कामया के होंठों पर थे, और एक दूसरे के थूक से खेल रहे थे।

कामया अपने को संभालने की स्थिति में नहीं थी। उसका पेटीकोट उसकी कमर के चारों तरफ एक घेरा बनाकर रह गया था, अंदर की पैंटी पूरी तरह से गीली थी, और वो भीमा चाचा को अपने जांघों की मदद से थोड़ा बहुत पकड़ने की कोशिश भी कर रही थी।

पर भीमा तो जो कुछ कर रहा था उसका उसे अनुभव ही नहीं था। वो कभी कामया को इस तरफ, तो कभी उस तरफ करके उसके होंठों को अपने मुख में घुसा लेता था। दोनों हाथ आजादी से उसके जिश्म के हर हिस्से पर घूम-घूमकर उनकी सुडौलता का और कोमलता का एहसास भी कर रहे थे। भीमा के हाथ अचानक ही उसके नितम्बों पर रुक गये थे, और कामया की पैंटी की आउट लाइन के चारों तरफ घूमने लगे थे।

कामया का पूरा शरीर ही समर्पण के लिए तैयार था। इतनी उत्तेजना उसे तो पहली बार ही हुई थी। उसके पति ने भी कभी उसके साथ इस तरह से नहीं खेला था, या फिर उसके शरीर को इस तरह से नहीं छुआ था। भीमा चाचा के हर टच में कुछ नया था, जो की उसके अंदर तक उसे हिलाकर रख देता था। उसके शरीर के हर हिस्से से सेक्स की भूख अपना मुँह उठाकर भीमा चाचा को पुकार रही थी। वो अब और नहीं सह सकती थी। वो भीमा चाचा को अपने अंदर समा लेना चाहती थी। भीमा जो की अब भी नीचे था और कामया को एक हाथ से जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके पैंटी के चारों ओर से आउटलाइन बना रहा था।

अचानक ही भीमा ने अपना हाथ उसके पैंटी के अंदर घुसा दिया और कस-कस कर उसके नितम्बों को दबाने लगा, फिर दूसरा हाथ भी इस खेल में शामिल हो गया।

कामया पर पकड़ जैसे ही थोड़ा ढीली हुई कामया अपनी योनि को और भी भीमा के लिंग के समीप ले गई, और खुद ही ऊपर से घिसने लगी।

भीमा का लिंग तो आजादी के लिए तड़प ही रहा था। कामया के ऊपर-नीचे होने से वो और भी ख़ूँखार हो गया था। वो भीमा को परेशान कर रहा था, वो अपने जगह पर रह ही नहीं रहा था, अब तो उसे आजाद होना ही था। और भीमा को यह करना ही पड़ा।

कामया ऊपर से भीमा के होंठों से जुड़ी हुई अपने हाथों को वो भी भीमा के शरीर पर चला रही थी। उसके हाथों में बालों का गुच्छा-गुच्छा आ रहा था, जहां भी उसका हाथ जाता बाल ही बाल थे, और वो भी इतने कड़े की काँटे जैसे लग रहे थे। पर कामया के नंगे शरीर पर वो कुछ अच्छे लग रहे थे। यह बाल उसकी कामुकता को और भी बढ़ा रहे थे। भीमा की आँखें बंद थी।

पर कामया ने थोड़ी हिम्मत करके अपनी आँखें खोली तो भीमा के नंगे पड़े हुए शरीर को देखती रह गई, जो कसा हुआ था, मांसपेशियां कहीं से भी ढीली नहीं थीं, थुलथुलापन नहीं था कहीं भी। उसके पति की तरह भीमा में कोई कोमलता भी नहीं थी, कठोर और बड़ा भी था बालों से भरा हुआ, और उसके हाथ तो बस उसकी कमर के चारों ओर तक जाते थे। जांघों के बीच में कुछ गड़ रहा था, अगर उसका लिंग हुआ तो बाप रे… इतना बड़ा भी हो सकता है किसी का? उसका मन अब तो भीमा के लिंग को आजाद करके देखने को हो रहा था।

कामया अपने को भीमा पर जिस तरह से घिस रही थी, उसका पूरा अंदाजा भीमा को था। वो जानता था की कामया अब पूरी तरह से तैयार थी। पर वो क्या करे? उसका मन तो अब तक इस हसीना के बदन से नहीं भरा था। वो चाहकर भी उसे आजाद नहीं करना चाहता था। पर इसी उधेड़बुन में कब कामया उसके नीचे चली गई पता भी नहीं चला; और वो कब उसके ऊपर हावी हो गया नहीं पता?

वो कामया के पीठ को जकड़े हुए उसके होंठों को अब भी चूस रहा था, कामया के शरीर पर अब वो चढ़ने की कोशिश कर रहा था। कामया की पैंटी में एक हाथ ले जाते हुए वो उसको उतारने लगा। उतरने क्या लगभग फाड़ ही दी उसने, और बचाखुचा उसके पैरों से आजाद कर दिया। पेटीकोट तो कमर के चारों ओर था ही, जरूरत थी तो बस अपने साहब को आजाद करने की। भीमा होंठों से जुड़े हुए ही अपने हाथों से अपनी धोती को अलग करके, अपने बड़े से उअंडरवेर को भी खोलकर अपने लिंग को आजाद कर लिया और फिर से चढ़ गया कामया पर। अब उसे कोई चिंता नहीं थी, वो अब अपने हर अंग से कामया को छू रहा था। अपने लिंग को भी वो कामया की जांघों के बीच में रगड़ रहा था।

भीमा के लिंग के गर्मी से तो कामया और भी पागल सी हो उठी। अपनी जांघों को खोलकर उसने उसको जांघों के बीच में पकड़ लिया, और भीमा से और भी सट गई। अपने हाथों को भीमा के पीठ के चारों ओर करके भीमा चाचा को अपनी ओर खींचने लगी। कामया की इस हरकत से भीमा और भी खुल गया जैसे अपनी पत्नी को ही भोग रहा हो। वो झट से कामया के शरीर पर छा गया और अपनी कमर को हिलाकर कामया के अंदर घुसने का ठिकाना ढूँढ़ने लगा।

कामया भी अब तक सहन ही कर रही थी। पर भीमा के झटकों ने उसे भी अपनी जांघों को खोलने और अपनी योनि द्वार को भीमा के लिंग के लिए स्वागत पर खड़े होना ही था सो उसने किया पर एक ही झटके में भीमा उसके अंदर जब उतरा तो

कामया- “ईईईई… आआअह्ह…” कर उठी।

भीमा का लिंग था की मूसल? बाप रे मर गई… कामया की तो शायद फटकर खून निकल गया होगा, आँखें पथरा गई थी कामया की। इतना मोटा और कड़ा सा लिंग जो की उसके योनि में घुसा था, अगर वो इतनी तैयार ना होती तो मर ही जाती। पर उसके योनि के रस ने भीमा के लिंग को आराम से अपने अंदर समा लिया। पर दर्द के मारे तो कामया सिहर उठी।

भीमा अब भी उसके ऊपर उसे कसकर जकड़े हुए उसकी जांघों के बीच में रास्ता बना रहा था। कामया थोड़ी सी अपनी कमर को हिलाकर किसी तरह से अपने को अडजस्ट करने की कोशिश कर ही रही थी, की भीमा का एक तेज झटका फिर पड़ा, और कामया के मुख से एक तेज चीख निकल गई। पर वो तो भीमा के गले में ही गुम हो गई।

भीमा अब तो जैसे पागल ही हो गया था। उसे ना कुछ सोचने की जरूरत थी और न ही कुछ समझने की, बस अपने लिंग को पूरी रफ़्तार से कामया की योनि में डाले हुए अपनी रफ़्तार पकड़ने में लगा था। उसे इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी की कामया का क्या होगा? उसे इस तरह से भोगना क्या ठीक होगा बहुत ही नाजुक है और कोमल भी पर भीमा तो बस पागलों की तरह अपनी रफ़्तार बढ़ने में लगा था।

और कामया मारे दर्द के बुरी तरह से तड़प रही थी। वो अपनी जांघों को और भी खोलकर किसी तरह से भीमा को अडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी। पर भीमा ने उसे इतनी जोर से जकड़ रखा था की वो हिल तक नहीं पा रही थी, उसके शरीर का कोई भी हिस्सा वो खुद नहीं हिला पा रही थी, जो भी हिल रहा था वो बस भीमा के झटकों के सहारे ही था। भीमा अपनी स्पीड पकड़ चुका था और कामया के अंदर तक पहुँच गया था। हर एक धक्के पर कामया चिहुंक कर और भी ऊपर उठ जाती थी, पर भीमा को क्या?

आज जिंदगी में पहली बार भीमा एक ऐसी हसीना को भोग रहा था, जिसकी की कल्पना भी वो नहीं कर सकता था। वो अब कोई भी कदम उठाने को तैयार था। भाड़ में जाये सब कुछ। वो तो इसको अपने तरीके से ही भोगेगा और वो सचमुच में पागलों की तरह से कामया के सारे बदन को चूम चाट रहा था, और जहां-जहां हाथ पहुँचते थे, बहुत ही बेदर्दी के साथ दबा भी रहा था। अपने भार से कामया को इस तरह से दबा रखा था की कामया क्या कामया के पूरे घर वाले भी जमा होकर भीमा को हटाने की कोशिश करेंगे तो नहीं हटा पाऐंगे।

और कामया जो की भीमा के नीचे पड़े हुए अपने आपको नर्क के द्वार पर पा रही थी। अचानक ही उसके शरीर में अजीब सी फुर्ती सी आ गई, भीमा की दरिंदगी में उसे सुख का एहसास होने लगा, उसके शरीर के हर अंग को भीमा के इस तरह से हाथों से रगड़ने की आदत सी होने लगी थी, यह सब अब उसे अच्छा लगने लगा था। वो अब भी नीच पड़ी हुई भीमा के धक्कों को झेल रही थी, और अपने मुख से हर चोट पर चीत्कार भी निकालती, पर वो तो भीमा के गले ही गुम हो जाती थी।

अचानक ही भीमा की स्पीड और भी तेज हो गई और उसकी जकड़ भी बहुत टाइट हो गई। अब तो कामया का सांस लेना भी मुश्किल हो गया था, पर उसके शरीर के अंदर भी एक ज्वालामुखी उठ रहा था, जो की बस फूटने ही वाला था। हर धक्के के साथ कामया का शरीर उसके फटने का इंतेजार करता जा रहा था, और भीमा के तने हुए लिंग का एक और जोरदार झटका उसके अंदर कहीं तक टच होना था की कामया का सारा शरीर कांप उठा और वो झड़ने लगी और झड़ती ही जा रही थी।

कामया भीमा से बुरी तरह से लिपट गई, अपनी दोनों जांघों को ऊपर उठाकर भीमा की कमर के चारों तरफ एक घेरा बनाकर शायद वो भीमा को और भी अंदर उतार लेना चाहती थी। भीमा भी एक दो जबरदस्त धक्कों के बाद झड़ने लगा था, वो भी कामया के अंदर ढेर सारा वीर्य उसके लिंग से निकाला था, जो की कामया की योनि से बाहर तक आ गया था। पर फिर भी भीमा आखीर तक धक्के लगाता रहा, जब तक उसके शरीर में आखीरी बूँद तक बची थी, और उसी तरह कसकर कामया को अपनी बाहों में भरे रहा। दोनों कालीन पर वैसे ही पड़े रहे।

कामया के शरीर में तो जैसे जान ही नहीं बची थी, वो निढाल सी होकर लटक गई थी। भीमा चाचा जो की अब तक उसे अपनी बाहों में समेटे हुए थे, अब धीरे-धीरे अपनी गिरफ़्त को ढीला छोड़ रहे थे। और ढीला छोड़ने से कामया के पूरे शरीर में जैसे जान ही वापस आ गई थी, उसे सांस लेने की आजादी मिल गई थी वो जोर-जोर से सांसें लेकर अपने आपको संभालने की कोशिश कर रही थी।

भीमा कामया पर से अपनी पकड़ ढीली करता जा रहा था और अपने को उसके ऊपर से हटाता हुआ बगल में लुढ़क गया था। वो भी अपनी सांसों को संभालने में लगा था। रूम में जो तूफान आया था वो अब थम चुका था। दोनों लगभग अपने को संभाल चुके थे, लेकिन एक दूसरे की ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। भीमा वैसे ही कामया की ओर ना देखते हुए दूसरी तरफ पलट गया, और फटुआ और अपनी धोती ठीक करने लगा, अंडरवेर पहना और अपने बालों को ठीक करता हुआ धीरे से उठा और दबे पांव कमरे से बाहर निकल गया।

कामया जो की दूसरी ओर चेहरा किए हुए थी, भीमा की ओर ना उसने देखा, और ना ही उसने उठने की कोशिश की। वो भी चुपचाप वैसे ही पड़ी रही, और सब कुछ ध्यान से सुनती रही। उसे पता था की भीमा चाचा उठ चुके हैं, और अपने आपको ठीक-ठाक करके बाहर चले गये हैं। कामया के चहरे पर एक विजयी मुश्कान थी, उसके चेहरे पर एक संतोष था, एक अजीब सी खुशी थी आँखों में, और होंठों को देखने से यह बात सामने आ सकती थी।

पर वो वैसे ही लेटी रही और कुछ देर बाद उठी और अपने आपको देखा तो उसके शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था, जिसका की नाड़ा कब का टूट गया था जो उसे नहीं पता था, और कुछ भी नहीं था। हाँ… था कुछ और भी… भीमा के हाथों और दांतों के निशान और उसका पूरा शरीर थूक और पशीने से नहाया हुआ था। वो अपने को देखकर थोड़ा सा मुश्कुराई। आज तक उसके शरीर में इस तरह के दाग कभी नहीं आए थे। होंठों पर एक मुश्कान थी। भीमा चाचा के पागलपन को वो अपने शरीर पर देख सकती थी, जो की उसने कभी भी अपने पति से नहीं पाया था, वो आज उसने भीमा चाचा से पाया था। उसकी चूचियों पर लाल-लाल हथेली के निशान साफ-साफ दिख रहे थे। वो यह सब देखती हुई उठी और पेटीकोट को संभालते हुए अपनी ब्लाउज़ और ब्रा को भी उठाया और बाथरूम में घुस गई।

जब वो बाथरूम से निकली तो उसे बहुत जोर से भूख लगी थी। याद आया की उसने तो खाना खाया ही नहीं था। अब क्या करे? नीचे जाने की हिम्मत नहीं थी। भीमा चाचा का सामना करने की हिम्मत वो जुटा नहीं पा रही थी, पर खाना तो खाना पड़ेगा, नहीं तो भूख का क्या करे? घड़ी पर नजर गई तो वो सन्न रह गई, 2:30 बज गये थे। तो क्या भीमा और वो एक दूसरे से लगभग दो घंटे तक सेक्स का खेल रहे थे? कामेश तो 5 से 10 मिनट में ही ठंडा हो जाता था। और आज तो कमाल हो गया।

कामया का पूरा शरीर थक चुका था। उसके हाथों पैरों में जान ही नहीं थी, पूरा शरीर दुख रहा था। हर एक अंग में दर्द था और भूख भी जोर से लगी थी। थोड़ी हिम्मत करके उसने इंटरकाम उठाया और किचेन का नम्बर डायल किया।

एक घंटी बजते ही उधर से भीमा- “हेलो जी, खाना खा लीजिए…”

भीमा की हालत खराब थी। वो जब नीचे आया तो उसके हाथ पांव फूले हुए थे। वो सोच नहीं पा रहा था की वो अब बहू का कैसे सामना करेगा? वो अपने आपको कहां छुपाए की बहू की नजर उसपर ना पड़े? पर जैसे ही वो नीचे आया तो उसके मन में एक चिंता घर कर गई थी और खड़ा-खड़ा किचेन में यही सोच रहा था की बहू ने खाना तो खाया ही नहीं। मर गये अब क्या होगा? मतलब कामया को खाना ना खिलाकर वो तो किचेन साफ भी नहीं कर सकता, और वो बहू को कैसे नीचे बुलाए? और क्या बहू नीचे आएगी? कहीं वो अपने कमरे से कामेश या फिर साहब को फोन करके बुला लिया तो? कहीं पोलिस के हाथों उसे दे दिया तो? क्या यार, क्या कर दिया मैंने? क्यों किया यह सब?

वो अपने हाथ जोड़कर भगवान को प्रार्थना करने लगा- “प्लीज भगवान्… मुझे बचा लो प्लीज… अब नहीं करूँगा…" उसकी आँखों में आँसू थे। वो सचमुच में शर्मिंदा था। जिस घर का नमक उसने खाया था, उसी घर की इज्जत पर उसने हाथ डाला था। अगर किसी को पता चला तो उसकी इज्जत का क्या होगा? गाँव में भी उसकी थू-थू हो जाएगी। और तो और वो साहब और माँ जी को क्या मुँह दिखाएगा? सोचते हुए वो
खड़ा ही था की इंटरकाम की घंटी बज उठी। डर के साथ हकलाहट में वो सब कुछ एक साथ कह गया पर दूसरी और से कुछ भी आवाज ना आने से वो फिर घबरा गया।

भीमा- हेल्लू।

कामया- “खाना लगा दो…” और फोन काट दिया। कामया के पास और कुछ कहने को नहीं था। अगर भूखी नहीं होती तो शायद नीचे भी ना जाती। पर क्या करे? उसने फिर से वहीं सुबह वाली सूट पहनी और नीचे चल दी। सीढ़ियां के ऊपर से उसने भीमा चाचा को देखा, जो की जल्दी-जल्दी खाने के टेबल पर उसका खाना लगा रहे थे। वो भी बिना कुछ आहट किए चुपचाप डाइनिंग टेबल पर पहुँची।

कामया को आता सुनकर ही भीमा जल्दी से किचेन में वापस घुस गया। कामया भी नीचे गर्दन किए खाना खाने लगी थी। जल्दी-जल्दी में क्या खा रही थी उसे पता नहीं था, पर जल्दी से वो यहां से निकल जाना चाहती थी। किसी तरह से उसने अपने मुँह में जितनी जल्दी जितना हो सकता था ठूंसा और उठकर वापस अपने कमरे की ओर भागी। नीचे बेसिन पर हाथ मुख भी नहीं धोया था उसने। कमरे में आकर उसने अपने मुँह के नीवाले को ठीक से खाया और बाथरूम में मुँह हाथ धोकर बिस्तर पर लेट गई अब वो सेफ थी।

पर अचानक ही उसके दिमाग में बात आई की उसे तो शाम को ड्राइविंग पर जाना था। अरे यार अब क्या करे? उसका मन तो बिल्कुल नहीं था, उसने फोन उठाया और कामेश को रिंग किया।

कामेश- हेलो।

कामया- सुनिए प्लीज… आज मैं ड्राइविंग पर नहीं जाऊँगी, कल से चली जाऊँगी। ठीक है?

कामेश- हाँ ठीक है। क्यों क्या हुआ?

कामया- अरे कुछ नहीं, मन नहीं कर रहा, कल से ठीक है।

कामेश- हाँ ठीक है, कल से चलो रखो।

कामया- जी…” और फोन काट गया।

कामया ने भी फोन रखा और बिस्तर पर लेटे-लेटे सीलिंग की और देखती रही, और पता नहीं क्या सोचती रही, और कब सो गई पता नहीं।

शाम को जब वो उठी तो एक अजीब सा एहसास था उसके शरीर में, एक अजीब सी कशिश थी, उसके अंदर एक ताजगी सी महसूस कर रही थी वो, सिर हल्का था, शरीर का दर्द पता नहीं कहां चला गया था? सोई तो ऐसी थी की जनम में ऐसी नींद उसे नहीं आई थी। बहुत अच्छी और फ्रेश करने वाली नींद आई थी। उठकर जब कामया बाथरूम से वापस आई तो मोबाइल पर रिंग बज रहा था। उसने देखा तो कामेश का फोन था।

कामया- हेलो।

कामेश- कहां थी अब तक?

कामया- क्यों क्या हुआ?

कामेश देखो 6-7 बार काल किया।

कामया- अरे मैं तो सो रही थी और अभी ही उठी हूँ।

कामेश- अच्छा बहुत सोई हो आज तुम?

कामया- जी कहिए, क्या बात है?

कामेश- पार्टी में चलना है रात को?

कामया- कहां?

कामेश- अरे बर्थ-डे पार्टी है मेहता जी के बेटे के बेटे का।

कामया- हाँ हाँ ठीक है, कितने बजे?

कामेश- वही रात को 9:30-10:00 बजे के करीब तैयार रहना।

कामया- “ठीक है…” कहकर कामया का फोन काट गया।

अब कामया ने देखा की 6 मिस्ड काल थे उसके सेल पर। कितना सोई थी आज वो? फ्रेश सा लग रहा था। वो मिरर के सामने खड़ी होकर अपने को देखा तो बिल्कुल फ्रेश लग रही थी, चेहरा खिला हुआ था, और आँखें भी नींद के बाद भी खिली हुई थीं। अपना ड्रेस और बाल को ठीक करने के बाद वो नीचे जाती की इंटरकाम बज उठा।

मम्मीजी- बहू, चाय नहीं पीनी क्या?

कामया- “आती हूँ मम्मीजी…” और भागती हुई नीचे चली गई।

भीमा चाचा का कहीं पता नहीं था, शायद किचेन में थे। मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर थी और कामया का ही इंतेजार कर रही थी। कामया भी जाकर मम्मीजी पास बैठ गई और दोनों चाय पीने लगे।

मम्मीजी- कामेश का फोन आया था, कह रहा था की कोई पार्टी में जाना है।

कामया- जी बात हो गई।

मम्मीजी- हाँ कह रहा था की कामया फोन नहीं उठा रही है।

कामया- जी सो रही थी, सुनाई नहीं दिया।

मम्मीजी- “हाँ… मैंने भी यही कहा था…” फिर कुछ सोचते- “थोड़ा बहुत घूम आया कर तू। पूरा दिन घर में रहने से तू भी मेरे जैसे ही हो जाएगी…”

कामया- जी कहां जाऊँ?

मम्मीजी- देख बहू, इन दोनों को तो कमाने से फुर्सत नहीं है। पर तू तो पढ़ी लिखी है, घर के चारदीवारी से बाहर निकल और देख दुनियां में क्या चल रहा है? और कुछ खर्चा भी किया कर। क्या करेंगे इतना पैसा जमा करके? कोई तो खर्चा करे।

कामया- “जी हाँ…” और मम्मीजी को देखकर मुश्कुराने लगी।

मम्मीजी- और क्या? मैंने तो सोच लिया है कुछ दिनों के लिए तीरथ हो आती हूँ, घूमना भी हो जाएगा और थोड़ा सा बदलाव भी आ जाएगा। तू भी कुछ प्रोग्राम बना ले और घूम आ।

दोनों सासूमाँ और बहू में हँसी मजाक चल रहा था और एक दूसरे को सिखाने में लगे थे। पर कामया का मन तो आज बिल्कुल साफ था। आज का अनुभव उसके जीवन में जो बदलाब लाने वाला था, उससे वो बिल्कुल अनजान थी। बातों में दोपहर की घटना को वो भूल चुकी थी, या फिर कहिए की अब भी उसका ध्यान उस तरफ नहीं था। वो तो मम्मीजी के साथ हँसी मजाक के मूड में थी, और शाम की पार्टी में जाने के लिए तैयार होने जा रही थी। बहुत दिनों के बाद आज वो कहीं बाहर जा रही थी। चाय पीने के बाद मम्मीजी अपने पूजा के कमरे की ओर चली गई।

और कामया अपने कमरे की ओर, तैयार जो होना था। वार्डरोब से साड़ियों के ढेर से अपने लिए एक जरी की साड़ी निकाली और उसके साथ ही माचिंग ब्लाउज़। कामेश को बहुत पसंद था ए ड्रेस। यही सोचकर वो तैयारी में लग गई। 9:00 बजे तक कामेश आ जाएगा सोचकर वो जल्दी से अपने काम में लग गई। करीब 9:15 तक कामेश आ गया और अपने कमरे में पहुँचा।

कमरे में कामया लगभग तैयार थी। कामेश को देखकर कामया ड्रेसिंग टेबल छोड़कर खड़ी हो गई और मुश्कुराते हुए अपने आपको कामेश के सामने प्रेज़ेंट करने लगी। कामेश जो की उसका दिमाग कहीं और था, कामया की सुंदरता को अपने सामने खड़े इस तरह की साड़ी में देखता रह गया।

कामया इस समय एक जरी वाली महीन सी साड़ी पहने हुए थी। स्लीवलेश ब्लाउज़ था और चूचियों को समझ के ढका था, पर असल में दिखाने की ज्यादा कोशिश की थी। साड़ी का पल्लू भी दाईं चूची को छोड़कर बीच से होता हुआ कंधे पर गया था, उससे दाईं चूची बाहर की ओर उछलकर मुँह उठाए देख रही थी। बाईं चूचियां ढका क्या था, सामने वाले को निमंत्रण था की कोशिश करो तो शायद कुछ ज्यादा दिख जाए। क्लीवेज साफ-साफ नीचे तक दिख रहा था। मुश्कुराते हुए कामया ने पलटकर भी कामेश को अपना हुश्न दिखाया, पीछे से पीठ आधे से ज्यादा खुली हुई थी, पतली सी पट्टी ही उसे सामने से पकड़ी हुई थी, और वैसे ही कंधे पर से पट्टी उतरी थी।

कामेश सिटी बजाते हुए- क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही तैयार हो? हाँ… कहां बिजली गिरने वाली हो?

कामया- हीहीही… और कहां, जहां गिर जाए? यहां तो कुछ फर्क नहीं पड़ता, क्यों है ना?

कामेश- हाँ… फिर आज नहीं जाते यहीं बिजली गिराते रहो। ठीक है?

कामया- ठीक है।

कामेश हँसते हुए बाथरूम में घुस गया और कामया भी वापस अपने आपको मिरर में सवारने का अंतिम रूप दे रही थी। कामेश भी जल्दी से तैयार होकर कामया को साथ में लेकर नीचे चल दिया। कामेश के साथ कामया भी नीचे जा रही थी। डाइनिंग रूम को पार करते हुए, वो दोनों पापाजी और मम्मीजी के कमरे की ओर चल दिए, ताकि उनको बोलकर जा सकें।

कामेश- मम्मी हम जा रहे हैं।

मम्मीजी- ठीक है, जल्दी आ जाना।

पापाजी- लक्खा रुका है, उसे ले जाना।

कामेश- “जी…” और पलटकर वो बाहर की ओर चले।

मम्मीजी- अरे भीमा, दरवाजा बंद कर देना।

कामया के शरीर में एक सिहरन सी फैल गई। जैसे ही उसने भीमा चाचा का नाम सुना, ना चाहकर भी पीछे पलटकर किचेन की ओर देख ही लिया। शायद पता करना चाहती हो की भीमा चाचा ने उसे इस तरह से तैयार हुए देखा की नहीं? क्यों चाहती थी कामया की भीमा उसे देखे? पर कामया थोड़ा सा रुक गई। कामेश आगे निकल गया था। पलटकर कामया ने जब किचेन की ओर देखा तो पाया की किचेन के पीछे के दरवाजे से किसी को बाहर की ओर निकलते हुए।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 08-03-2019, 08:33 AM



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