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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#12
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भीमा का मन कुछ भी करने को नहीं हो रहा था। जो कुछ जैसे पड़ा था, वो वैसे ही रहने दिया। आगे बढ़ने की हिम्मत या फिर कहिए मन ही नहीं कर रहा था। वो तो बस अब कामया के करीब जाना चाहता था। वो कुछ भी नहीं सोच पा रहा था, उसकी सांसें अब तो रुक-रुक कर चल रही थीं। वो खड़ा-खड़ा बस इंतेजार कर रहा था की क्या करे? उसका अंतरमन कह रहा था की नहीं यह गलत है। पर एक तरफ वो कामया के शरीर को छूना चाहता था। उसके मन के अंदर में जो उथल पुथल थी वो उसे पार नहीं कर पा रहा था। वो अभी भी खड़ा था।

और उधर कामया अपने कमरे में पहुँचकर जल्दी से बाथरूम में घुसी और अपने को सवांरने में लग गई थी। वो इतनी जल्दीबाजी में लगी थी की जैसे वो अपने बायफ्रेंड से मिलने जा रही हो। वो जल्दी से बाहर निकली और वार्डरोब से एक स्लीवलेश ब्लाउज़ और एक सफेद कलर का पेटीकोट निकालकर वापस बाथरूम में घुस गई।
वो इतनी जल्दी में थी की कोई भी देखकर कह सकता था की वो आज कुछ अलग मूड में थी, चेहरा खिला हुआ था, और एक जहरीली मुश्कान भी थी। उसके बाल खुले हुए थे, और होंठों पर डार्क कलर की लिपस्टिक थी, कमर के बहुत नीचे उसने पेटीकोट पहना था। ब्लाउज़ तो जैसे रखकर सिला गया हो, टाइट इतना था की जैसे हाथ रखते ही फट जाएगा। आधे से ज्यादा चूचियां सामने से ब्लाउज़ के बाहर आ रही थीं, पीछे से सिर्फ ब्रा के ऊपर तक ही था। ब्लाउज़ कंधे पर बस टिका हुआ था, दो बहुत ही पतली पट्टी लगभग ½ सेंटीमीटर की ही होगी।

बाथरूम से निकलने के बाद कामया ने अपने को मिरर में देखा तो वो खुद को देखती रह गई। क्या लग रही थी? बोल्कुल सेक्स की गुड़िया। कोई भी ऋषि-मुनि उसे ना नहीं कर सकता था। कामया अपने को देखकर बहुत ही उत्तेजित हो गई थी। हाँ, उसके शरीर में आग सी भर गई थी। वो खड़ी-खड़ी अपने शरीर को अपने ही हाथों से सहला रही थी, अपने उभारों को खुद ही सहलाकर अपने को और भी उत्तेजित कर रही थी, और अपने शरीर पर भीमा चाचा के हाथों के स्पर्श को भी महसूस कर रही थी। उसने अपने को मिरर के सामने से हटाया और एक चुन्नी अपने उपर डाल ली, और भीमा चाचा का इंतेजार करने लगी। पर इंटरकम तो जैसे शांत था, वैसे ही शांत पड़ा हुआ था।

उधर भीमा भी अपने हाथ को साफ करके किचेन में ही खड़ा था, सोच रहा था की क्या करे? फोन करे या नहीं? कहीं किसी को पता चल गया तो? लेकिन दिल है की मानता नहीं। वो इंटरकम तक पहुँचा और फिर थम गया अंदर एक डर था, मालिक और नौकर का रिश्ता था, उसको वो कैसे भूल सकता था? पागल सियार की तरह वो किचेन में तो कभी किचेन के बाहर तक आता और फिर अंदर चला जाता। इस दौरान वो दो बार बाहर का दरवाजा भी चेक कर आया, जो की ठीक से बंद है की नहीं? पागल सा हो रहा था वो, लग रहा था की हटो यार कर ही देता हूँ फोन, और वो जैसे ही फोन तक पहुँचा फोन अपने आप ही बज उठा।

भीमा ने भी झट से उठा लिया, उसकी सांसें फूल रही थी- “ज्ज्जीऽऽ…”

उधर से कामया की आवाज थी, शायद वो और इंतेजार नहीं करना चाहती थी- “क्या हुआ चाचा, काम नहीं हुआ आपका?” आवाज में जैसे मिशरी सी घुल गई थी भीमा के कानों में।

हकलाते हुए भीमा की आवाज निकली- “जी, बहू बस…”

कामया- “क्या जी जी? मुझे खाना भी तो खाना है आओगे की… …” जानबूझ कर कामया ने अपना वाक्य आधूरा छोड़ दिया।

भीमा जल्दी से बोल उठा- “नहीं नहीं बहू, मैं तो बस आ ही रहा था। आप बस आया…” और लगभग दौड़ता हुआ वो एक साथ दो तीन सीढ़ियां चड़ता हुआ कामया के रूम के सामने था। मगर हिम्मत नहीं हो रही थी की खटखटा सके। खड़ा हुआ भीमा क्या करे?

भीमा सोच ही रहा था की दरवाजा कामया ने खोल दिया, जैसे देखना चाहती हो की कहां रहा गया है वो? सामने से भी सुंदर बिल्कुल किसी अप्सरा की तरह खड़ी थी कामया। चुन्नी जो की उसके ब्लाउज़ के उपर से ढलक गई थी, उसके आधे खुले ब्लाउज़ जो की बाहर की ओर थे, उसे न्योता दे रहे थे की आओ और खेलो मेरे साथ, चूसो और दबाओ, जो जी में आए करो, पर जल्दी करो।

भीमा दरवाजे पर खड़ा हुआ कामया के इस रूप को टकटकी बांधे देख रहा था, हलक सुख गया था, इस तरह से कामया को देखते हुए।

कामया की आँखों में और होंठों में एक अजीब सी मुश्कुराहट थी, वो वैसे ही खड़ी भीमा चाचा को अपने रूप का रस पिला रही थी, उसने अपनी चुन्नी से अपने को ढकने की कोशिश भी नहीं की, बल्की थोड़ा सा आगे आकर भीमा चाचा का हाथ पकड़कर अंदर खींचा- “क्या चाचा, जल्दी करो ऐसे ही खड़े रहोगे क्या? जल्दी से ठीक कर दो, फिर खाना खाना है मुझे…”

भीमा किसी कठपुतली की तरह एक नरम से और कोमल से हाथ की पकड़ के साथ अपने को खिंचाता हुआ कामया के कमरे में चला आया, नहीं तो क्या कामया में दम था की भीमा जैसे आदमी को खींचकर अंदर ले जा पाती। यह तो भीमा ही खींचा चला गया उस खुशबू की ओर, उस मल्लिका की ओर, उस अप्सरा की ओर, उसके सूखे हुए होंठ और गला लिए अकड़े हुए पैरों के साथ, सिर घुमाता हुआ और आँखें कामया के शरीर पर जमी हुई।

जैसे ही भीमा अंदर आया कामया ने अपने पैरों से ही रूम का दरवाजा बंद कर दिया और साइड में रखे सोफे पर बैठ गई, जो की कुछ नीचे की ओर था, बेड से थोड़ी दूर। भीमा आज पहली बार कामेश भैया के रूम में आया था। उनकी शादी के बाद कितना सुंदर सजाकर रखा था बहू ने। जितनी सुंदर वो थी उतना ही अपने रूम को सजा रखा था। इतने में कामया की आवाज उसके कानों में टकराई।

कामया- क्या भीमा चाचा, क्या सोच रहे हो?

भीमा चुप था। वो बुत बना कामया को देख रहा था। कामया से नजर मिलते ही वो फिर से कोमा में चला गया। क्या दिख रही थी कामया? सफेद कलर की टाइट ब्लाउज़ और पेटीकोट पहने हुए थी, और लाल कलर की चुन्नी तो बस डाल रखी थी। क्या वो इस तरह से मालिश कराएगी? क्या वो कामया को इस तरह से छू सकेगा? उसके कंधों को, उसके बालों को, या फिर?

कामया- क्या चाचा, बताइए कहा करेंगे? यही बैठूं?

भीमा- “जी जी…” और गले से थूक निगलने की कोशिश करने लगा।

भीमा कामया की ओर देखता हुआ थोड़ा सा आगे बढ़ा, पर फिर ठिठक कर रुक गया, क्या करे हाथ लगाए? उफफ्फ़… क्या वो अपने को रोक पाएगा? कहीं कोई गड़बड़ हो गई तो? भाड़ में जाए सब कुछ। वो अब आगे बढ़ गया था। अब पीछे नहीं हटेगा। वो धीरे से कामया की ओर बढ़ा और सामने खड़ा हो गया, देखते हुए कामया को जो की सोफे के थोड़ा सा नीचे होने से थोड़ा नीचे हो गई थी।

कामया- “मैं पलट जाऊँ की आप पीछे आयेंगे?” कामया ने भीमा चाचा को अपनी ओर आते देखकर पूछा। उसकी सांसें भी कुछ तेज चल रही थीं। ब्लाउज़ के अंदर से उसकी चूचियां बाहर आने को हो रही थीं।

भीमा की नजर कामया के ब्लाउज़ पर से नहीं हट रही थी। वो घूमते हुए कामया के पीछे की ओर चला गया था। उसकी सांसों में एक मादक सी खुशबू बस गई थी, जो की कामया के शरीर से निकल रही थी। वो कामया का रूप का रस पीते हुए, उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। ऊपर से देखने में कामया का पूरा शरीर कीसी मोम की गुड़िया की तरह से दिख रहा था। सफेद कपड़ों में कसा हुआ उसका शरीर जो की कपड़ों से बाहर की ओर आने को तैयार था, और उसके हाथों के इंतेजार में था।

कामया अब भी चुपचाप वहीं बैठी थी, और थोड़ा सा पीछे की ओर हो गई थी। भीमा खड़ा हुआ, अब भी कामया को ही देख रहा था। वो कामया के रूप को निहारने में इतना गुम था की वो यह भी ना देख पाया की कब कामया अपना सिर ऊंचा करके भीमा की नजर की ओर ही देख रही थी।

कामया- “क्या चाचा शुरू करो ना प्लिज़्ज़…”

भीमा के हाथ कांप गये थे इस तरह की रिक्वेस्ट से। कामया अब भी उसे ही देख रही थी। उसके इस तरह से देखने से कामया की दोनों चूचियां उसके ब्लाउज़ के अंदर बहुत अंदर तक दिख रही थीं। कामया का शरीर किसी रूई के गोले के समान दिख रहा था भीमा को, कोमल और नाजुक। भीमा ने कांपते हुए हाथ से कामया के कंधे को छुआ तो, एक करेंट सा दौड़ गया भीमा के शरीर में। उसके अंदर का सोया हुआ मर्द अचानक जाग गया। आज तक भीमा ने इतनी कोमल और नरम चीज को हाथ नहीं लगाया था।

एकदम मखमल की तरह कोमल और चिकना था कामया का कंधा, उसके हाथ मालिश करना तो जैसे भूल ही गये थे, वो तो उस एहसास में ही खो गया था, जो की उसके हाथों को मिल रहा था। वो चाहकर भी अपने हाथों को हिला नहीं पा रहा था, बस अपनी उंगलियों को उसके कंधे पर हल्के से फेर रहा था, और उसकी नाजुकता का एहसास अपने अंदर भर रहा था। फिर वो अपने दूसरे हाथ को भी कामया के कंधे पर ले गया, और दोनों हाथों से वो कामया के कंधे को बस छूकर देख रहा था।

उधर कामया का तो सारा शरीर ही आग में जल रहा था। जैसे ही भीमा चाचा का हाथ उसके कंधे पर टकराया उसके अंदर तक सेक्स की लहर दौड़ गई, उसके पूरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गये, और शरीर कांपने लगा था। उसे ऐसे लग रहा था की वो बहुत ही ठंडी में बैठी है। वो किसी तरह से ठीक से बैठी थी, पर उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। वो ना चाहते हुए भी थोड़ा सा तनकर बैठ गई। उसकी दोनों चूचियां अब सामने की ओर बिल्कुल किसी पहाड़ की चोटी की तरह से खड़ी थीं और सांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। उसकी सांसों की गति भी बाढ़ गई थी। भीमा के सिर्फ दोनों हाथ उसके कंधे पर छूने का ही एहसास उसके शरीर में वो आग भर गया था, जो की आज तक कामया ने अपनी पूरे शादीशुदा जिंदगी में महसूस नहीं किया था। कामया अपने आपको संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी, पर नहीं संभाल पा रही थी। वो ना चाहते हुए भी भीमा चाचा से टिकने की कोशिश कर रही थी। वो पीछे की ओर होने लगी थी, ताकि भीमा चाचा से टिक सके।

उसके इस तरह से पीछे आने से भीमा भी थोड़ा आगे की ओर हो गया। अब भीमा के पेट से लेकर जांघों तक कामया टिकी हुई थी। उसका कोमल और नाजुक बदन उसके आधे शरीर से टीका हुआ उसके जीवन काल का वो सुख दे रहा था, जिसकी कल्पना भीमा ने नहीं सोची थी। भीमा का हाथ अब पूरी आजादी से कामया के कंधे पर घूम रहा था। वो उसके बालों को हटाकर उसकी गर्दन को अपने बूढ़े और मजबूत हाथों से स्पर्श करके कामया के शरीर का ठीक से अवलोकन कर रहा था। वो अब तक कामया के शरीर से उठ रही खुशबू में ही डूबा हुआ था, और उसके कोमल शरीर को अपने हाथों में पाकर नहीं सोच पा रहा था की आगे वो क्या करे? पर हाँ… उसके हाथ कामया के कंधे और बालों से खेल रहे थे।

कामया का सिर भीमा के पेट पर था और वो और भी पीछे की ओर होती जा रही थी। अगर भीमा उसे पीछे से सहारा ना दे तो वो धम्म से जमीन पर गिर जाए। वो लगभग नशे की हालत में थी और उसके मुख से धीमे-धीमे सांसें चलने की आवाज आ रही थी, उसके नथुने फूल रहे थे, और उसके साथ ही उसकी छाती भी अब कुछ ज्यादा ही आगे की ओर हो रही थी।

भीमा खड़ा-खड़ा इस नजारे को देख भी रहा था और अपनी जिंदगी के हसीन पल को याद करके खुश भी हो रहा था। वो अपने हाथों को कामया की गर्दन पर फेरने से नहीं रोक पा रहा था। अब तो उसके हाथ उसकी गर्दन को छोड़कर उसके गले को भी स्पर्श कर रहे थे। कामया जो की नशे की हालत में थी, कुछ भी सोचने और करने की स्थिति में नहीं थी। वो बस आँखें बंद किए भीमा के हाथों को अपने कंधे और गले में घूमते हुए महसूस भर कर रही थी, और अपने अंदर उठ रहे ज्वार को किसी तरह नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही थी। उसकी छाती आगे और आगे की ओर हो रही थी, सिर भीमा के पेट पर छुआ था, कमर नितम्बों के साथ पीछे की ओर हो रही थी।

बस भीमा इसी तरह उसे सहलाता जाए, या फिर प्यार करता जाए, यही कामया चाहती थी, बस रुके नहीं। उसके अंदर की ज्वाला जो की अब किसी तरह से भीमा को ही टंडा करना था, वो अपना सब कुछ भूलकर भीमा का साथ देने को तैयार थी।

उधर भीमा जो की पीछे खड़े-खड़े कामया की स्थिति का अवलोकन कर रहा था, और जन्नत की किसी अप्सरा के हुश्न को अपने हाथों में पाकर किस तरह से आगे बढ़े? सोच रहा था। वो अपने आप में नहीं था। वो भी एक नशे की हालत में ही था, नहीं तो कामया जो की उसकी मालेकिन थी उसके साथ उनके कमरे में आज इस तरह खड़े होने की कल्पना तो दूर की बात, सोच से भी परे थी उसके।

पर आज वो कामया के कमरे में कामया के साथ, जो की सिर्फ एक ब्लाउज़ और पेटीकोट डाले उसके शरीर से टिकी हुई बैठी थी, और वो उसके कंधे और गले को आराम से सहला रहा था। अब तो वो उसके गाल तक पहुँच चुका था, कितने नरम और चिकने गाल थे कामया के, और कितने नरम होंठ थे। अपने अंगूठे से उसके होंठों को छूकर देखा था भीमा ने। भीमा थोड़ा सा और आगे की ओर हो गया, ताकि वो कामया के होंठों को अच्छे से देख और छू सके।

भीमा के हाथ अब कामया की गर्दन को छूकर कामया के गालों को सहला रहे थे। कामया भी नशे में थी, सेक्स के नशे में, और कामुकता तो उसपर हावी था ही। भीमा अब तक अपने आपको कामया के हुश्न के गिरफ़्त में पा रहा था। वो अपने को रोकने में असमर्थ था। वो अपने सामने इतनी सुंदर स्त्री को पाकर अपना सुधबुध खो चुका था। उसके शरीर से आवाजें उठ रही थीं। वो कामया को छूना चाहता था, और छूना चाहता था, सब कुछ छूना चाहता था। भीमा ने अपने हाथों को कामया के ठोड़ी के नीचे रखकर उसकी ठोड़ी को थोड़ा सा ऊपर की ओर किया, ताकि उसे उसके होंठों को ठीक से देख सके।

कामया ने भी ना नुकर न करते हुए अपने सिर को ऊंचा कर दिया, ताकि भीमा जो चाहे कर सके, बस उसके शरीर को ठंडा करे, उसके शरीर की सेक्स की भूख को ठंडा कर दे, उसकी कामुकता को ठंडा करे बस।

भीमा उसको इस तरह से अपना साथ देता देखकर और भी गरमा गया था। उसकी धोती के अंदर उसके पुरुष की निशानी अब बिल्कुल तैयार था अपने पुरुषार्थ को दिखाने के लिया। भीमा अब सब कुछ भूल चुका था, उसके हाथ अब कामया के गालों को छूते हुए होंठों तक बिना किसी झिझक के पहुँच जाते थे। वो अपने हाथों के स्पर्श से कामया के स्किन का अच्छे से छूकर देख रहा था। उसकी जिंदगी का पहला एहसास था, वो थोड़ा सा झुका हुआ था, ताकि वो कामया को ठीक से देख सके।

कामया भी चेहरा उठाए चुपचाप भीमा को पूरी आजादी दे रही थी की जो मन में आए करो, और जोर-जोर से सांस फेंक रही थी। भीमा की कुछ और हिम्मत बढ़ी तो उसने कामया के कंधों से उसकी चुन्नी को उतर फेंका और फिर अपने हाथों को उसके कंधों पर घुमाने लगा। उसकी नजर अब कामया के ब्लाउज़ के अंदर की ओर थी पर हिम्मत नहीं हो रही थी। उसके हाथ एक कंधे पर और दूसरा उसके गालों और होंठों पर घूम रहे थे।

भीमा की उंगलियां जब भी कामया के होंठों को चूती तो कामया के मुख से एक सिसकारी निकल जाती थी, उसके होंठ गीले हो जाते थे। भीमा की उंगलियां उसके थूक से गीली हो जाती थीं। भीमा भी अब थोड़ा सा निडर होकर अपनी उंगली को कामया के होंठों पर ही घिस रहा था, और थोड़ा सा होंठों के अंदर कर देता था। भीमा की सांसें जोर-जोर से चल रही थी। उसका लिंग भी अब पूरी तरह से कामया की पीठ पर घिस रहा था, किसी खंबे की तरह था। वो इधर-उधर होता था तो एक चोट सी पड़ती थी कामया की पीठ पर। जब वो थोड़ा सा उसकी पीठ से दायें या बायें होता था तो उसकी पीठ पर जो हलचल हो रही थी, वो सिर्फ कामया ही जानती थी, पर वो भीमा को पूरा समय देना चाहती थी।

भीमा की उंगली अब कामया के होंठों के अंदर तक चली जाती थी, उसकी जीभ को छूती थी। कामया भी उत्तेजित तो थी ही, झट से उसकी उंगली को अपने होंठों के अंदर दबा लिया और चूसने लगी थी। कामया का पूरा ध्यान भीमा की हरकतों पर था।

भीमा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। वो अब नहीं रुकेगा। हाँ… आज वो भीमा के साथ अपने शरीर की आग को टंडा कर सकती है। वो और भी सिसकारी भरकर थोड़ा और ऊंचा उठ गई। भीमा के हाथ जो की कंधे पर थे, अब धीरे-धीरे नीचे की ओर उसकी बाहों की ओर सरक रहे थे। वो और भी उत्तेजित होकर भीमा की उंगली को चूसने लगी।

भीमा भी अब खड़े रहने की स्थिति में नहीं था वो झुक कर अपने हाथों को कामया की बाहों पर घिस रहा था, और साथ ही साथ उंगलियों से उसकी चूचियों को छूने की कोशिश भी कर रहा था। पर कामया के उत्तेजित होने के कारण वो कुछ ज्यादा ही इधर-उधर हो रही थी, तो भीमा ने वापस अपना हाथ उसके कंधे पर पहुँचा दिया, और वहीं से धीरे-धीरे अपने हाथों को उसके गले से होते हुए उसकी चूचियों तक पहुँचाने की कोशिश में लग गया। उसका पूरा ध्यान कामया पर भी था, उसकी एक ‘ना’ उसके सारे सपने को धूमिल कर सकती थी। इसलिए वो बहुत ही धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

कामया का शरीर अब पूरी तरह से भीमा की हरकतों का साथ दे रहा था। वो अपनी सांसों को कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। तेज और बहुत ही तेज सांसें चल रही थी उसकी। उसे भीमा के हाथों का अंदाजा था की अब वो उसके चूचियों की ओर बढ़ रहे हैं। उसके ब्लाउज़ के अंदर एक ज्वार आया हुआ था। उसके सांस लेने से उसके ब्लाउज़ के अंदर उसकी चूचियां और भी सख़्त हो गई थी, निपल्स तो जैसे तनकर कोई ठोस से हो गये थे। वो बस इंतेजार में थी की भीमा उसकी चूचियों को छुए।

और तभी भीमा की हथेली उसकी चूचियों के ऊपर थी, बड़ी-बड़ी और कठोर सी हथेली उसके ब्लाउज़ के ऊपर से उसके अंदर तक उसके हाथों की गर्मी को पहुँचा चुके थे। कामया थोड़ा सा चिहुंक कर और भी तन गई थी। भीमा जो की अब कामया के गोलाईयों को हल्के हाथों से टटोल रहा था ब्लाउज़ के ऊपर से, और ऊपर से उनको देख भी रहा था, और अपने आप पर यकीन नहीं कर पा रहा था की वो क्या कर रहा था? सपना था की हकीकत था वो नहीं जानता था?

पर हाँ… उसकी हथेलियों में कामया की गोल-गोल ठोस और कोमल और नाजुक सी रूई के गोले के समान चूचियां थीं जरूर। वो एक हाथ से कामया की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही टटोल रहा था, या कहिए सहला रहा था; और दूसरे हाथ से कामया के होंठों में अपनी उंगलियों को डाले हुए उसके गालों को सहला रहा था। वो खड़ा हुआ अपने लिंग को कामया की पीठ पर रगड़ रहा था, और कामया भी उसका पूरा साथ दे रही थी, कोई ना नुकर नहीं था उसकी तरफ से। कामया का शरीर अब उसका साथ छोड़ चुका था। अब वो भीमा के हाथ में थी, उसके इशारे पर थी, अब वो हर उस हरकत का इंतेजार कर रही थी जो भीमा करने वाला था।

ूधर भीमा अपना सुध बुध खोया हुआ अपने सामने इस सुंदर काया को अपने हाथों का खिलोना बनाने के लिये आजाद था। वो उसकी चूचियों को तो ब्लाउज़ के ऊपर से सहला रहा था, पर उसका मन तो उसको अंदर से छूने को था। उसने दूसरे हाथ को कामया के गालों और होंठों से आजाद किया और धीरे से उसके ब्लाउज़ के गैप से उसके अंदर डाल दिया, तो मखमल सा एहसास उसके हाथों को हुआ और वो बढ़ता ही गया। जैसे-जैसे उसका हाथ कामया के ब्लाउज़ के अंदर की ओर होता जा रहा था, वो कामया से और भी सटता जा रहा था। अब दोनों के बीच में कोई भी गैप नहीं था।

कामया भीमा से पूरी तरह सटी हुई थी, या कहिए अब पूरी तरह से उसकी जांघों के सहारे से टिकी अपनी पीठ पर भीमा चाचा के लिंग का एहसास लेते हुए कामया एक अनोखे संसार की सैर कर रही थी।

कामया के शरीर में जो आग लगी थी, अब वो धीरे-धीरे इतनी भड़क चुकी थी की उसने अपने जीवन काल में इस तरह का एहसास नहीं किया था। वो अपने को भूलकर भीमा चाचा को उनका हाथ अपने ब्लाउज़ में घुसाने में थोड़ा मदद की। वो थोड़ा सा आगे की ओर हुई, अपने कंधों को आगे करके; ताकि भीमा चाचा के हाथ आराम से अंदर जा सकें। भीमा चाचा की कठोर और सख्त हथेली जब उसके स्किन से टकराए तो वो और भी सख्त हो गई, उसका हाथ अपने आप उठकर अपने ब्लाउज़ के ऊपर से भीमा चाचा के हाथ पर आ गया। फिर भीमा चाचा का हाथ ब्लाउज़ के अंदर रखे हुये वो और भी तन गई, अपनी चूचियों को और भी सामने की ओर करके वो थोड़ा सा सोफे से उठ गई थी।

भीमा ने भी कामया के समर्थन को पहचान लिया था। वो समझ गया था की कामया अब ना नहीं कहेगी। वो अब अपने हाथों का जोर उसकी चूचियों पर बढ़ाने लगा था। धीरे-धीरे भीमा उसकी चूचियों को छेड़ता रहा और उसकी सुडौलता को अपने हाथों से तौलता रहा, और फिर उसकी उंगलियों के बीच में निपल को लेकर धीरे-धीरे दबाने लगा।

कामया के मुख से एक लम्बी सी सिसकारी निकली- “ऊऊह्ह प्लीज़्ज़… आआह्ह्ह…”

भीमा को क्या पता क्या बोल गई थी कामया? पर हाँ उसके दोनों हाथों के दबाब से वो यह तो समझ ही गया था की कामया क्या चाहती थी? उसने अपने दोनों हाथों को उसके ब्लाउज़ के अंदर घुसा दिया। इस बार कोई औपचारिकता नहीं की, बस अंदर और अंदर और झट से दबाने लगा। पहले धीरे-धीरे फिर थोड़ा सा जोर से। इतनी कोमल और नरम चीज आज तक उसके हाथ में नहीं आई थी। वो अपने आप पर बिस्वास नहीं कर पा रहा था। वो थोड़ा सा और झुका और अपने बड़े-बड़े और मोटे-मोटे होंठों को कामया के चिकने और गुलाबी गालों पर रख दिया, और चूमने लगा। चूमने क्या लगा शहद जैसे चाटने लगा था, पागलों जैसी स्थिति थी भीमा की। अपने हाथों में एक बड़े घर की बहू को वो शारीरिक रूप से छेड़छाड़ कर रहा था और कामया उसका पूरा साथ दे रही थी। कंधे का दर्द कहां गया? वो तो पता नहीं।

हाँ पता था तो बस एक खेल की शुरुआत हो चुकी थी, और वो था सेक्स का खेल शारीरिक भूख का खेल, एक दूसरे को संतुष्ट करने का खेल, एक दूसरे को समर्पित करने का खेल।

कामया तो बस अपने आपको खो चुकी थी। भीमा के झुक जाने की बजह से उसके ब्लाउज़ के अंदर भीमा के हाथ अब बहुत ही सख़्त से हो गये थे। वो उसके ब्लाउज़ के ऊपर के दो तीन बटनों को खोल चुका था, दोनों तरफ के ब्लाउज़ के साइड लगभग अब उसका साथ छोड़ चुके थे। वो अब बस किसी तरह नीचे के कुछ एक दो या फिर तीन हुक के सहारे थे, वो भी कब तक साथ देंगे पता नहीं? पर कामया को उससे क्या? वो तो बस अपने शरीर की भूख को शांत करना चाहती थी, इसीलिए तो भीमा चाचा को उसने अपने कमरे में बुलाया था। वो शांत थी और अपने हाथों का दबाब भीमा के हाथों पर और जोर से कर रही थी। वो भीमा के झुके होने से अपना सिर भीमा के कंधे पर टिकाए हुए थी। वो शायद सिटी को छोड़कर अपने पैरों को नीचे रखे हुए और सिर को भीमा के कंधे पर टिकाए हुए अपने को हवा में उठा चुकी थी।

भीमा तो अपने होंठों को कामया के गालों और गले तक जहां तक वो जा सकता था ले जा रहा था। अपने हाथों का दबाब भी वो अब बढ़ा चुका था। कामया की चूचियों को जोर-जोर से दबा रहा था, जब तक की कामया के मुख से एक जोर से चीत्कार नहीं निकल गई।

कामया- “ईईईईईई… आअह्ह… उउफफफ्फ़…”

फिर झटक से कामया के ब्लाउज़ ने भी कामया का साथ छोड़ दिया अब उसकी ब्लाउज़ सिर्फ अपना अस्तित्व बनाने के लिए ही थे उसके कंधे पर; और दोनों पाट खुल चुके थे, अंदर से उसकी महीन सी, पतली सी ब्रा पतले-पतले स्ट्रैप्स के सहारे कामया के कंधे पर टिके हुए थे; और ब्रा के अंदर भीमा के मोटे-मोटे हाथ उसके उभारों को दबा-दबा के निचोड़ रहे थे।

भीमा भूल चुका था की कामया एक बड़े घर की बहू है, कोई गाँव की देहाती लड़की नहीं, या फिर कोई देहात की खेतो में काम करने वाली लड़की नहीं है। पर वो तो अपने हाथों में रूई सी कोमल और मखमल सी कोमल नाजुक लड़की को पाकर पागलों की तरह अब उसे रौंदने लगा था। वो अपने दोनों हाथों को कामया की चूचियों पर रखे हुए, उसे सहारा दिए हुए उसके गालों और गले को चाट और चूम रहा था। उसका थूक कामया के पूरे चेहरे को भीगा चुका था।

कामया अब एक हाथ से भीमा की गर्दन को पकड़ चुकी थी और खुद ही अपने गालों और गर्दन को इधर-उधर या फिर ऊंचा करके भीमा को जगह दे रही थी की यहां चाटो या फिर यहां चूमो। उसके मुख और नाक से सांसें अब भीमा के चेहरे पर पड़ रही थीं।

भीमा की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी, वो अधखुली आँखों से कामया की ओर देखता रहा और अपने होंठों को उसके होंठों की ओर बढ़ाने लगा।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 08-03-2019, 08:32 AM



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