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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#10
.
नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठाई थी उसने कभी। और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो, एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी। वो उसकी आधी खुली हुई चूचियों को मन भर के देख रहा था, उसकी खुशबू सूंघ सकता था, और शायद हाथ भी लगा सकता था। पर हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी कामया की आवाज उसके कानों में टकराई।

कामया- अरे चाचा क्या कर रहे हो? पराठा खतम हो गया।

भीमा- “जी जी यह…”

और जब तक भीमा हाथ बढ़ाकर पराठा कामया की प्लेट में रखता, तब तक कामया का हाथ भी उसके हाथों से टकराया और कामया उसके हाथों से अपना पराठा लेकर खाने लगी। उसका पल्लू अब थोड़ा और भी खुल गया था, उसकी ब्लाउज़ में छुपी हुई चूचियां उसको पूरी तरह से दिख रही थीं, नीचे तक उसका पेट और जहां से साड़ी बंधी थी वहां तक। भीमा चाचा की उत्तेजना में यह हालत थी की अगर घर में माँजी नहीं होती तो शायद आज वो कामया का रेप ही कर देता। पर नौकर था इसलिए चुपचाप प्रसाद में जो कुछ मिल रहा था उसी में खुश हो रहा था, और इसी को जन्नत का मजा मानकर चुपचाप कामया को निहार रहा था।

कामया कुछ कहती हुई खाना भी खा रही थी, पर भीमा का ध्यान कामया की बातों पर बिल्कुल नहीं था।
हाँ, था तो बस उसके ब्लाउज़ पर और उसके अंदर से दिख रहे चिकने और गुलाबी रंग के शरीर का वो हिस्सा, जहां वो शायद कभी भी ना पहुँच सके। वो खड़ा-खड़ा बस सोच ही सकता था, और उस अप्सरा की खुशबू को अपने जेहन में समेट सकता था। इस तरह कब समय खतम हो गया, पता भी नहीं चला। पता चला तब जब कामया ने उठते हुए कहा।

कामया- बस हो गया चाचा।

भीमा- “जी जी…” और अपनी नजर फिर से नीचे की और चौंक कर हाथ बांधे खड़ा हो गया।

कामया उठी और वाशबेसिन पर गई और झुक कर हाथ मुँह धोने लगी। झुकने से उसके शरीर में बँधी साड़ी उसके नितम्बों पर कस गई, जिससे की उसके नितम्बों का शेप और भी सुडौल और उभरा हुआ दिखने लगा।

भीमा पीछे खड़ा हुआ मंत्रमुग्ध सा कामया को देखता रहा, और सिर्फ देखता रहा। कामया हाथ धोकर पलटी, तब भी भीमा वैसे ही खड़ा था, उसकी आखें पथरा गई थीं, मुख सूख गया था, और हाथ पांव जमीन में धंस गये थे, पर सांसें चल रही थी, या नहीं? पता नहीं। पर वो खड़ा था कामया की ओर देखता हुआ। कामया जब पलटी तो उसकी साड़ी उसके ब्लाउज़ के ऊपर नहीं थी, कंधे पर शायद पिन के कारण टिका हुआ था, और कमर पर से जहां से मुड़कर कंधे तक आई थी, वहां पर ठीक-ठाक थी। पर जहां ढकना था, वहां से गायब थी, और उसका पूरा यौवन या फिर कहिए चूचियां जो की किसी पहाड़ की छोटी की तरह सामने की और उठी हुई भीमा चाचा की ओर देख रही थी।

भीमा अपनी नजर को झुका नहीं पाया, वो बस खड़ा हुआ कामया की ओर देखता ही रहा, और बस देखता ही जा रहा था। कामया ने भी भीमा की ओर जरा सा देखा और मुड़कर सीढ़ी की ओर चल दी अपने कमरे की ओर जाने के लिए। उसने भी अपनी साड़ी को ठीक नहीं किया था।

क्यों नहीं ठीक किया था? भीमा सोचने लगा कि शायद ध्यान नहीं होगा, या फिर नींद आ रही होगी, या फिर बड़े लोग हैं, सोच भी नहीं सकते की नौकर लोगों की इतनी हिम्मत तो हो ही नहीं सकती, या फिर कुछ और? आज कामया को हुआ क्या है? या फिर मुझे ही कुछ हो गया है? पीछे से कामया का मटकता हुआ शरीर किसी सांप की तरह बल खाती हुए चाल की तरह से लग रहा था। जैसे-जैसे वो एक-एक कदम आगे की ओर बढ़ती थी, उसका दिल मुँह पर आ जाता था।

भीमा आज खुलकर कामया के हुश्न का लुत्फ ले रहा था। उसको रोकने वाला कोई नहीं था, कोई भी नहीं था घर पर। माँ जी अपने कमरे में थी, और बहू अपने कमरे की ओर जा रही थी और चली गई। सब शून्य हो गया, खाली हो गया, कुछ भी नहीं था, सिवाए भीमा के जो की डाइनिंग टेबल के पास कुछ जूठे प्लेट के पास सीढ़ी की ओर देखता हुआ मंत्रमुग्ध सा खड़ा था। सांसें भी चल रही थी की नहीं पता नहीं? भीमा की नजर शून्य से उठकर वापस डाइनिंग टेबल पर आई तो कुछ जूठे प्लेट ग्लास पर आकर अटक गई।

कामया की जगह खाली थी पर उसकी खुशबू अब भी डाइनिंग रूम में फैली हुई थी, पता नहीं? या फिर सिर्फ भीमा के जेहन में थी। भीमा शांत और थका हुआ सा अपने काम में लग गया। धीरे-धीरे उसने प्लेट और जूठे बर्तन उठाए और किचेन की ओर मुड़ गया। पर अपनी नजर को सीढ़ियों की ओर जाने से नहीं रोक पाया था, शायद फिर से कामया दिख जाए? पर वहां तो बस खाली था, कुछ भी नहीं था, सिर्फ सन्नाटा था। मन मारकर भीमा किचेन में चला गया।

और उधर कामया भी जब अपने कमरे में पहुँची तो पहले अपने आपको उसने मिरर में देखा। साड़ी तो क्या बस नाममात्र की साड़ी पहने थी वो। पूरा पल्लू ढीला था और उसकी चूचियों से हटा हुआ था। दोनों चूचियां बिल्कुल साफ-साफ ब्लाउज़ पर से दिख रही थीं, क्लीवेज तो और भी साफ था। आधे खुले गले से उसकी चूचियां लगभग पूरी ही दिख रही थीं। वो नहीं जानती थी की उसके इस तरह से बैठने से भीमा चाचा पर क्या असर हुआ था? पर हाँ, कल की बात से वो बस अंदाजा ही लगा सकती थी की आज चाचा ने उसे जी भरकर देखा होगा। वो तो अपनी नजर उठाकर नहीं देख पाई थी। पर हाँ… देखा तो होगा और यह सोचते ही कामया एक बार फिर गरम होने लगी थी। उसकी जांघों के बीच में हलचल मच गई थी, निपल्स कड़े होने लगे थे। वो दौड़कर बाथरूम में घुस गई और अपने को किसी तरह से शांत करके बाहर आई।

धम्म से बिस्तर पर अपनी साड़ी उतारकर लेट गई। सोचते हुए पता नहीं कब वो सो गई। शाम को फिर से वहीं पति का इंतेजार, या फिर मम्मीजी के आगे पीछे या फिर टीवी या फिर कमरा, सब कुछ बोरियत से भरी हुई जिंदगी थी कामया की, ना कुछ फन था और ना कुछ ट्विस्ट। सोचते हुए कामया अपने कमरे में इधर उधर हो रही थी। मम्मीजी शाम होते ही अपने पूजा घर में घुस जाती थी, और पापाजी और कामेश के आने से पहले ही निकलती थी, और फिर इसके बाद खाना पीना और फिर सोना। हाँ यही जिंदगी रह गई थी कामया की।

रात को 8:30 बजे पापाजी आ गये और अपने कमरे में चले गये। कामया इंतेजार में थी की कामेश आ जाए तो थोड़ा बहुत बोल सके, नहीं तो पूरा दिन तो बस चुपचाप ही रहना पड़ता था। मम्मीजी से क्या बात करो, वो बस पूजा पाठ और कुछ बोलो तो बस हाँ या हूँ में ही जबाब देती थी। लेकिन कामेश का कहीं पता नहीं। तभी इंटरकम की घंटी बजी, मम्मीजी थीं।

मम्मीजी- अरे कामया, आ जा खाना खा ले, कामेश को लेट होगा आने में।

कामया- जी आई।

धत् तेरी की। सब मजा ही किरकिरा कर दिया। एक तो पूरे दिन इंतेजार करो, फिर शाम को पता चलता है की देर से आयेंगे। कहां गये है वो? झट से सेल उठाया और कामेश को रिंग कर दिया।

कामेश- हेलो।

कामया- क्या जी लेट आओगे?

कामेश- हाँ यार कुछ काम है, थोड़ा लेट हो जाऊँगा। खाना खाकर आऊँगा, तुम खा लेना। ठीक है?

कामया- “तुम्हें क्या हुआ? आज ही कहा था की जल्दी आना कहीं चलेंगे, और आज ही आपको काम निकल आया…” कामया का गुस्सा सातवें आसमान में था।

कामेश- अरे यार बाहर से कुछ लोग आए हैं। तुम घर में आराम करो, मैं आता हूँ।

कामया- “और क्या करती हूँ मैं घर में? कुछ काम तो है नहीं, पूरा दिन आराम ही तो करती हूँ, और आप हैं की बस…”

कामेश- अरे यार माफ कर दो। आज के बाद ऐसा नहीं होगा। प्लीज… यार, अगर जरूरी नहीं होता तो क्या तुम जैसी बीवी को छोड़कर काम में लगा रहता? प्लीज यार समझा करो…”

कामया- “ठीक है जो मन में आए करो…” कहकर झट से फोन काट दिया, और गुस्से में पैर पटकती हुई नीचे डाइनिंग टेबल पर पहुँची।

मम्मीजी टेबल पर आ गई थी। पापाजी का इंतेजार हो रहा था। टेबल पर खाना ढका हुआ रखा था। मम्मीजी ने प्लेट सजा दिए थे। बस पापाजी आ जाएं तो खाना शुरू हो। तभी पापाजी भी आ गये और खाना शुरू हो गया। पापाजी और मम्मीजी कुछ बातें कर रहे थे, तीर्थ पर जाने का। कामया का मन बिल्कुल उस बात पर नहीं था, शायद मम्मीजी अपने किसी संबंधी या फिर जान पहचान वालों के साथ कोई टूर अरंज कर रही थी कुछ दिनों के तीर्थ यात्रा पर जाने का। तभी पापाजी के मुख से अपना नाम सुनकर कामया थोड़ा सा सचेत हो गई।

पापाजी- बहू, कामेश कह रहा था की तुम घर पर बहुत बोर हो जाती हो?

कामया- “नहीं पापाजी, ऐसा कुछ नहीं है…” बहुत गुस्से में थी कामया, पर फिर भी अपने को संतुलित करके कामया ने पापाजी को जबाब दिया।

मम्मीजी- “औरर क्या? दिन भर घर में अकेली पड़ी रहती है, कोई भी नहीं है बातचीत करने को, या फिर कहीं घूने फिरने को। कामेश को तो बस काम से फुर्सत मिले, तब ना कहीं ले जाए बिचारी को…”

कामया- नहीं मम्मीजी, ऐसा कुछ नहीं है।

पापाजी- सुनो बहू, तुम गाड़ी चलाना क्यों नहीं सीख लेती? लक्खा को कह देते हैं कि तुम्हें गाड़ी चलाना सिखा देगा।

कामया- नहीं पापाजी ठीक है, ऐसा कुछ भी नहीं जो आप लोग सोचे रहे हैं।

पापाजी- अरे इसमें बुराई ही क्या है? घर में एक गाड़ी हमेशा ही खड़ी रहती है, तुम उसे चलना, जहां मन में आए जाना, और कभी-कभी मम्मी को भी घुमा लाना।

मम्मीजी- हाँ… हाँ… तुम तो लक्खा को बोल दो, कल से आ जाए तुम्हें छोड़ने के बाद।

पापाजी- अरे दिन में कहां चलाएगी वो गाड़ी? सुबह को ठीक रहेगा।

मम्मीजी- अरे सुबह को इतना काम रहता है और तुम दोनों को भी तो काम पर जाना है। कामेश को तो हाथ में उठाकर सब देना पड़ता है, नहीं तो वो तो वैसे ही चला जाइए दुकान पर।

पापाजी- तो ठीक है। शाम को चले जाना ग्राउंड पर। दिन में और सुबह तो ग्राउंड में बच्चे खेलते हैं, तुम शाम को चले जाना। ठीक है?

मम्मीजी- हाँ हाँ ठीक है, शाम का टाइम ही अच्छा है। आराम से सो लेगी और शाम को कुछ काम भी नहीं रहता। तुम लोग एक ही गाड़ी में आ जाना।

पापाजी- हाँ हाँ क्यों नहीं? लक्खा को मैं शाम को भेज दूँगा। थोड़ा सा अंधेरा हो जाए तब जाना, बच्चे भी खाली कर देंगे ग्राउंड। ठीक है ना बहू?

कामया- जी, वैसे कोई जरूरा नहीं है पापाजी।

मम्मीजी बिल्कुल चिढ़कर बोली- “कैसे जरूरत नहीं है? मेरे जैसे घर में पड़ी रहोगी क्या? तुम जाओ पहले गाड़ी सीखो फिर मुझे भी खूब घुमाना। हीहीही…” डाइनिंग रूम में एक खुशी का माहौल हो गया था।

कामया ने भी सोचा- ठीक ही तो है, घर में पड़ी-पड़ी कामेश का इंतेजार ही तो करती है। शाम को अगर गाड़ी चलाने चली जाएगी, तो टाइम भी पास हो जाएगा और जब वो लौटेगी तब तक कामेश भी आ जाएगा। थोड़ा चेंज भी हो जाएगा और गाड़ी भी चलाना सीख जाएगी…” तो फाइनल हो गया की कल से लक्खा काका शाम को आयेंगे और कामया गाड़ी चलाने को जाएगी। थोड़ी देर में खाना खतम हो गया।

मम्मीजी ने भीमा को आवाज लगा दी- अरे भीमा प्लेट उठा ले, हो गया।

भीमा- “जी माँ जी…” और लगभग भागता हुआ सा डाइनिंग रूम में आया और नीचे गर्दन करके चुपचाप झूठे बर्तन उठाने लगा।

पापाजी ने हाथ धोया और भीमा को कहा- “अरे भीमा, आजकल तुम्हारे खाने में स्वाद कुछ अलग सा था, क्या बात है, कहीं और दिमाग लगा है क्या?”

भीमा- जी साहब नहीं तो कुछ गुस्ताखी हुई क्या?

पापाजी- अरे नहीं, मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था। तुम्हारे हाथों का खाते हुए सालों हो गये, पर आज कुछ चेंज था, शायद मन कहीं और था?

भीमा- जी माफ कर दीजिए, कल से नहीं होगा।

पापाजी- अरे यार तुम तो बस… गाँव में सब कुछ ठीक-ठाक तो है ना?

भीमा- जी साहब, सब ठीक है जी।

पापाजी- चलो ठीक है, कुछ जरूरत हो तो बताना शर्माना नहीं। तुम कभी कुछ नहीं मांगते।

भीमा- वैसे ही मिल जाता है साहब इतना कुछ, तो क्या माँगें? माफ करना साहब, अगर कुछ गलती हो गई हो तो।

मम्मीजी बीच में ही बोल उठी- “अरे अरे, कुछ नहीं भीमा। तू तो जा। इनकी तो आदत है, तू तो जानता है चुटकी लेते रहते हैं।

और मम्मीजी पापाजी की ओर देखते हुए बोली- क्या तुम भी… बहू के सामने तो कम से कम ध्यान दिया करो?

पापाजी- हाहाहा… अरे मैं तो बस मजाक कर रहा था। बहू भी तो हमारे घर की है, भीमा को क्या नहीं पता?

भीमा- “जी…” और मुड़कर जूठी प्लेटें और बचा हुआ खाना लेकर अंदर चला गया। जाते हुए चोर नजर से एक बार कामया को जरूर देखा उसने।

जिसपर की कामया की नजर पर पड़ गई। थोड़ा सा मुश्कुरा कर कामया मम्मीजी के पीछे-पीछे ड्राइंग रूम में आ गई। थोड़ी देर सभी ने टीवी देखा और कामेश का इंतेजार करते रहे, पर कामेश नहीं आया।

मम्मीजी- कामेश को क्या देर होगी आने में?

पापाजी- हाँ, शायद खाना खाकर ही आएगा। बाहर से कुछ लोग आए हैं, हीरा मार्चेंट्स हैं, एक्सपोर्ट का आर्डर है, थोड़ा बहुत टाइम लगेगा।

कामया चुपचाप दोनों की बातें सुन रही थी। उसे एक्सपोर्ट आर्डर हो या इम्पोर्ट आर्डर हो, उसे क्या? उसका तो बस एक ही इंतेजार था कामेश जल्दी आ जाए, पर कहां? कामेश तो काम खतम किए बगैर कुछ नहीं सोच सकता था। रात करीब 10:30 बजे तक सभी ने इंतेजार किया और फिर सभी अपने कमरे में चले गये।

सीढ़ियां चड़ते समय कामया को मम्मीजी की आवाज सुनाई दी- “भीमा कामेश लेट ही आएगा। सोना मत, दरवाजा खोल देना। ठीक है?

भीमा- “जी माँ जी आप बेफिकर रहिए…” और नीचे बिल्कुल सूनसान हो गया।

कामया ने भी कमरे में आते ही कपड़े चेंज किया और झट से बिस्तर पर ढेर हो गई। गुस्सा तो उसे था ही और चिढ़ के मारे काब सो गई पता नहीं। सुबह जब आँखें खुली तो कामेश उठ चुका था। कामया वैसे ही पड़ी रही।

बाथरूम से निकलने के बाद कामेश कामया की ओर बढ़ा और कन्धे को हिलाकर- “मेडमजी उठिए 8:00 बज गये हैं…”

पर कामया के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।

कामेश जानता था कामया अब भी गुस्से में है। वो थोड़ा सा झुका और कामया के गालों को किस करते हुए- “सारी बाबा, क्या करता, काम था ना?”

कामया- तो जाइये काम ही कीजिए, हम ऐसे ही ठीक हैं।

कामेश- अरे सोचो तो जरा, यह आर्डर कितना बड़ा है? हमेशा एक्सपोर्ट करते रहो। ग्राहकों का झंझत ही नहीं। एक बार जम जाइए तो बस फिर तो आराम ही आराम। फिर तुम मर्सिडीज में घूमना।

कामया- हाँ… मर्सिडीज में, वो भी अकेले-अकेले… है ना? तुम तो बस नोट कमाने में लगे रहो।

कामेश- “अरे यार, मैं भी तो तुम्हारे साथ रहूँगा ना। चलो यार, अब उठो। पापा मम्मी इंतेजार करते होंगे जल्दी उठो…” और कामया को प्यार से सहलाते हुए उठकर खड़ा हो गया।

कामया भी मन मारकर उठी और मुँह धोने के बाद नीचे पापाजी और मम्मीजी के पास पहुँच गई। दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे।

पापाजी- क्या हुआ कल?

कामेश- हो गया पापा। बहुत बड़ा आर्डर है। 3 साल का कांट्रैक्ट है। अच्छा हो जाएगा।

पापाजी- हूँ… देख लेना कुछ पैसे वैसे की जरूरत हो तो बैंक से बात करेंगे।

कामेश- अरे अभी नहीं, वो बाद में। फिलहाल तो ऐसे ही ठीक है।

कामया और मम्मीजी भूत बने दोनों की बातें सुन रहे थे, कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा था।

मम्मीजी भी इधर उधर देखती रही। थोड़ा सा गैप जहां मिला, झट बोल पड़ी- “और सुन कामेश, यह रात को बाहर रहना अब बंद कर। घर में बहू भी है, अब उसका ध्यान रखाकर…” और कामया की ओर देखकर मुश्कुराई।

पापाजी और कामेश इस अचानक हमले के लिये तैयार नहीं थे। दोनों की नजर जैसे ही कामया पर गई तो कामया नजरें झुकाकर चाय की चुस्की लेने लगी।

पापाजी- हाँ, बिल्कुल ठीक है तुम ध्यान दिया करो।

कामेश- जी।

पापाजी- हाँ, और आज लक्खा आ जाएगा। बहू तुम चले जाना। ठीक है?

कामेश- हो गई बात लक्खा काका आज से आयेंगे। चलो यह ठीक रहा।

सभी अब कामया के ड्राइविंग सीखने जाने की बात करते रहे, और चाि खतम करके सभी अपने कमरे की ओर रवाना हो गये, आगे की रुटीन की ओर। कमरे में पहुँचते ही कामेश दौड़कर बाथरूम में घुस गया और कामया कामेश के कपड़े वार्डरोब से निकालने लगी। कपड़े निकलते समय उसे गर्दन में थोड़ी सी दर्द हुई पर ठीक हो गया। अपना काम करके कामया कामेश का बाथरूम से निकलने का इंतेजार करने लगी। कामेश हमेशा की तरह अपने टाइम से निकला, एकदम साहब बनकर। बाहर आते ही जल्दी से कपड़े पहनने की जल्दी और फिर जूता-मोजा पहनकर तैयार, 10 बजे तक पूरी तरह से तैयार।

कामया बिस्तर पर बैठी-बैठी कामेश को तैयार होते देखती रही, और अपने हाथों से अपनी गर्दन को मसाज भी करती रही। कामेश के तैयार होने के बाद वो नीचे चले गये और कामेश तो बस हबड़-तबड़ कर खाता था। जल्दी से खाना खाकर बाहर का रास्ता। करीब 10:30 बजे तक कामेश हमेशा ही दुकान की ओर चाल देता था। पापाजी को करीब 11:30 बजे तक निकलते थे।

कामया भी कामेश के चले जाने के बाद अपने कमरे की ओर चल दी। टेबल पर भीमा चाचा जूठी प्लेटें उठा रहे थे। एक नजर उनपर डाली और अपने कमरे की ओर जाते-जाते उसे लगा की भीमा चाचा की नजरें उसका पीछा कर रही हैं। सीढ़ी के आखिरी मोड़ पर वो पलटी, तो चाचा की नजरें उसपर ही थीं। पलटते ही चाचा अपने को फिर से काम में लगा लिए, और जल्दी से किचेन की ओर मुड़ गये।

कामया के शरीर में एक झुरझुरी सी फैल गई और कमरे तक आते-आते पता नहीं क्यों वो बहुत ही कामुक हो गई थी। एक तो पति है की काम से फुर्सत नहीं, सेक्स तो दूर की बात, देखने और सुनने की भी फुर्सत नहीं
है। आज तो कामया कमरे में पहुँचकर बिस्तर पर चित्त लेट गई, छत की ओर देखते हुए पता नहीं क्या सोचने लगी थी, पता नहीं? पर मरी हुई सी बहुत देर लेटी रही। तभी घड़ी ने 11:00 बजे का बीप किया। कामया झट से उठी और बाथरूम की ओर चली। बाथरूम में भी कामया बहुत देर तक खड़ी-खड़ी सोचती रही।

कपड़े उतारते वक़्त कामया के कंधे में फिर से थोड़ा सा अकड़न हुई। अपने हाथों से कंधे को सहलाते हुए वो मिरर में देखकर थोड़ा सा मुश्कुराई, और फिर ना जाने कहां से उसके शरीर में जान आ गई। जल्दी-जल्दी फटाफट सारे काम चुटकी में निपटा लिए, और पापाजी और मम्मीजी के पास नीचे खाने की टेबल की ओर चल दी। पापाजी और मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर आते ही होंगे, वो उनसे पहले पहुँचना चाहती थी। पर मम्मीजी पहले ही वहां थी, कामया को देखकर मम्मीजी थोड़ा सा मुश्कुराई और बैठ गईं।

कामया पापाजी और मम्मीजी का प्लेट लगाने लगी, और खड़ी-खड़ी पापाजी के आने इंतेजार करने लगी। पापाजी के आने बाद खाने पीने का दौर शुरू हो गया, और पापाजी और मम्मीजी की बातों का दौर। पर कामया का ध्यान उनकी बातों में नहीं था, उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। पापाजी और मम्मीजी की बातों का हाँ या हूँ में जबाब देती जा रही थी, और खाने खतम होने का इंतेजार कर रही थी। पता नहीं क्यों आज ज्यादा ही टाइम लग रहा था। किचेन में भीमा चाचा के काम करने की आवाजें भी आ रही थी। पर दिखाई कुछ नहीं दे रहा था। कामया का ध्यान उस तरफ ज्यादा था। क्या भीमा चाचा उसे देख रहे हैं? या फिर अपने काम में
ही लगे हुए हैं?

आज उसने इस समय सूट ही पहना था। रोज की तरह ही था, लेकिन टाइट फिटिंग वाला। उसका शरीर खिल रहा था उस सूट में, वो यह जानती थी। तो क्या भीमा चाचा ने उसे देख लिया है, या फिर देख रहे हैं? पता नहीं पापाजी और मम्मीजी को खाना खिलाते समय उसके दिमाग में कितनी बातें उठ रही थीं; हाँ और ना के बीच में आकर खतम हो जाती थी। कभी-कभी वो पलटकर या फिर तिरछी नजर से पीछे की ओर देख भी लेती थी। पर भीमा चाचा को वो नहीं देख पाई थी अब तक। इसी तरह पापाजी और मम्मीजी का खाना भी खतम हो गया।

मम्मीजी- अरे बहू, तू भी खाना खा ले अब।

कामया- जी मम्मीजी खा लूँगी।

पापाजी- ज्यादा देर मत किया कर, नहीं तो गैस हो जाएगा।

कामया- जी।

फिर पापाजी और मम्मीजी उठकर हाथ मुख धोने लगे। पापाजी जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर भागे, उनके निकलने का टाइम जो हो गया था। मम्मीजी ने भीमा को आवाज देकर प्लेट उठाने को कहा और कामया के साथ ड्राइंग रूम के दरवाजे पर पहुँच गई। पीछे भीमा डाइनिंग टेबल से प्लेटें उठा रहा था और सामने ड्राइंग रूम के दरवाजे के पास कामया खड़ी थी उसकी ओर पीठ करके। भीमा प्लेटें उठाते हुए पीछे से उसे देख रहा था, सबकी नजर बचाकर।

मम्मीजी कुछ कह रही थी कामया से। तभी अचानक कामया पलटी और भीमा और कामया की नजरें एक हुईं। भीमा सकपका गया और झट से नजरें नीचे करके जल्दी से जूठे प्लेट लिए किचेन में घुस गया। कामया ने जैसे ही भीमा को अपनी ओर देखते हुए देखा, वो भी पलटकर मम्मीजी की ओर ध्यान देने लगी थी। तभी पापाजी भी आ गये थे, वो बाहर की चले गये तो मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे बाहर दरवाजे तक आए। बाहर गाड़ी के पास लक्खा काका अपनी वही पूरी पोशाक में हाजिर थे नीचे गर्दन किए धोती और शर्ट पहने हुए पीछे का गेट खोले खड़े थे।

पापाजी ने उसके पास पहुँचकर कहा- “आज से तुम्हारे लिए नई ड्यूटी लगा दी है, पता है?”

लक्खा- जी साहब।

पापाजी- आज से बहू को ड्राइविंग सिखाना है आपको।

लक्खा- जी साहब।

पापाजी- कोई दिक्कत तो नहीं?

लक्खा- जी नहीं साहब।

पापाजी- कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए। ठीक है?

लक्खा- “जी साहब…” लक्खा का सिर अब भी नहीं उठा था, न ही उसने कामया की ओर ही देखा था।

मम्मीजी- शाम को जल्दी आ जाना, ठीक है।

लक्खा- जी माँ जी।

मम्मीजी- कितने बजे भेजोगे?

पापाजी- हाँ… करीब 6:00 बजे।

मम्मीजी- जी ठीक है।

फिर पापाजी गाड़ी में बैठ गये और लक्खा भी जल्दी से दौड़कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी गेट के बाहर हो गई। मम्मीजी और कामया भी अंदर की ओर पलटे। डाइनिंग टेबल में कुछ ढका हुआ था, शायद कामया का खाना था।

मम्मीजी- “जा अब तू खाना खा ले। मैं तो जाऊँ आराम करूं…”

कामया- “जी…” और कामया डाइनिंग रूम में रुक गई।

और मम्मीजी अपने रूम की ओर चली गईं।

कामया किचेन की ओर चली और दरवाजे पर रुकी- “चाचा एक मदद चाहिए…”

भीमा- जी छोटी बहू कहिए, आप तो हुकुम कीजिए…” और अपनी नजर झुका कर हाथ बाँध कर सामने खड़ा हो गया। सामने कामया खड़ी थी पर वो नजर उठाकर नहीं देख पा रहा था। उसकी साँसे बहुत तेज चल रही थीं। सांसों में कामया के सेंट की खुशबू बस रही थी, वो मदहोश सा होने लगा था।

कामया- वो असल में आ आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना?

भीमा- चुप रहा।

कोई जबाब ना पाकर कामया- वो असल में कल सोने के समय थोड़ा सा गर्दन में मोच आ गई थी। मैं चाहती थी की अगर आप थोड़ा सा मालिश कर दें तो?”

भीमा- “ज्ज्जीईईऽऽ…”

कामया भी भीमा के जबाब से कुछ सकपकाई, पर तीर तो छूट चुका था। कामया ने सभाला- “नहीं नहीं, अगर कोई दिक्कत है तो कोई बात नहीं। असल में उस दिन जब आपने मेरे पैरों की मोच ठीक किया था ना… इसलिए मैंने कहा। और आज से तो गाड़ी भी चलाने जाना है ना… इसलिए सोचा आपको बोलकर देखूँ…”

भीमा की तो जान ही अटक गई थी गले में, मुँह सुख गया था, नजरों के सामने अंधेरा छा गया था, उसके गले से कोई भी आवाज नहीं निकली। वो वैसे ही खड़ा रहा और कुछ बोल भी ना पाया।

कामया- आप अपना काम खतम कर लीजिए, फिर कर देना। ठीक है? मैं उसके बाद खाना खा लूँगी।

भीमा- चुप था

कामया- चलिए मैं आपको बुला लूँगी। कितना टाइम लगेगा आपको?

भीमा- “जी…”

कामया- “फ्री होकर रिंग कर देना, मैं रूम में ही हूँ…” कहकर कामया अपने रूम की ओर पलटकर चली गई।

भीमा किचेन में ही खड़ा था, किसी बुत की तरह सांसें ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे, दिमाग सुन्न, आँखें पथरा गई थी, हाथ पांव में जैसे जान ही ना हो, खड़ा-खड़ा कामया को जाते हुए देखता रहा पीछे से, उसकी कमर बलखाती हुई और नितम्बों के ऊपर से उसकी चुन्नी इधर-उधर हो रही थी।

सीढ़ी से चड़ते हुए कामया के शरीर में एक अजीब सी लचक थी। फिगर जो की दिख रहा था, कितना कोमल था। वो सपने में कामया को जैसे देखता था, वो आज उसी तरह बलखाती हुई सीढ़ियों से चढ़कर अपने रूम की ओर मुड़ गई थी। भीमा वैसे ही थोड़ी देर खड़ा रहा, सोचता रहा की आगे वो क्या करे? आज तक कभी भी उसने यह नहीं सोचा था की वो कभी भी इस घर की बहू को हाथ भी लगा सकता था, मालिश तो दूर की बात… और वो भी कंधे को… मतलब वो आज कामया के शरीर को कंधे से छू सकेगा।

आअह्ह… भीमा के पूरे शरीर में एक अजीब सी हलचल मच गई थी, बूढ़े शरीर में एक उत्तेजना की लहर फैल गई, उसके सोते हुए अंगों में आग सी भर गई। कितनी सुंदर है कामया? कहीं कोई गलती हो गई तो
पूरे जीवन काल की बनी बनाई निष्ठा और नमकहलाली धरी रह जाएगी। पर मन का क्या करे? वो तो चाहता था की वो कामया के पास जाए। भाड़ में जाए सब कुछ, वो तो जाएगा। वो अपने जीवन में इतनी सुंदर और कोमल लड़की को आज तक हाथ नहीं लगाया था, वो तो जाएगा कुछ भी हो जाए। वो जल्दी से पलटकर किचेन में खड़ा चारों ओर देख रहा था सिंक पर जूठे प्लेट पड़े थे और किचेन भी अस्त-व्यस्त था, पर उसकी नजर बाहर सीढ़ियों पर चली जाती थी।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 08-03-2019, 08:29 AM



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