25-08-2020, 03:29 PM
“रुक जा बेटे...कोई आ जायेगा..अब तू बच्चा नहीं रहा के मैं कही भी दूध पिला सकू..समझ”
रफीक के दबाव के निचे सोफे पे खुद दबते हुए नजमा वहा रफीक को समझा रही थी. पर वो तो कही अलग ही दुनिया में था जो उसके चुचियों को जम के रगड़े जा रहा था.
“अम्मी,..मुझ होना,,,”
नजमा के कान काटते हुए उसका तना लंड इस कदर साडी के ऊपर से नजमा के गद्देदार गांड को चुभ गया के उसकी एक चीख निकल गयी.
“आ:;;;;ह्ह्ह.......”
डर और जल्दबाजी में उसके मूह से ये चीख निकल तो गयी थी. पर उसकी आवाज सुन के काव्या के नानी ने अपने कमरे से ही कहा,
“कौन? कौन हैं ? काव्या बेटी जाग गयी क्या?”
अचनक से निकली अपनी चीख से नजमा किसी बुत के माफिक थम गयी. उसने तुरंत पीछे मूड के वैसे ही हालात में रफीक से लगभग भीग मांगते हुए कहा,
“बेटा ,, छोड़ दे अपनी मा को समझ...तू बड़ा हो गया हैं अब.. ये यहाँ नहीं हो सकता..तू देख छोटी मेमसाब भी हैं घर में..काव्या बीबी..वो जाग जायेगी “
काव्या का नाम सुनते ही रफीक होश में आ गया. उसका नाम किसी दवा की तरह काम कर गया. रफिक एकदम से नजमा के ऊपर से हट गया. और बाजु में खड़ा हो गया. नजमा ने रहत की सांस छोड़ी. जैसे ही वो खड़ी हो गयी, अन्दर से काव्या की नानी आती हुयी उसको दिख गयी. बाल-बाल बच गयी थी वो अगर थोड़ी भी देरी हो जाती तो आज न जाने दोनों मा बेटो का नाम का क्या हो जाता. नजमाँ वही समझा रही थी जो रफीक नहीं समझ रहा था. काव्या का नाम उसको किसी फ़रिश्ते से कम नहीं लगा उस वक़्त.
उसने अपना साडी का पल्लू कैसे तो कंधे पे वापस ले लिया. कुछ समय में ही उसके ब्लाउस को रफीक के मर्दाना हातो ने तितर बितर कर दिया था. उसके ऊपर का बटन खिचातानी में टूट गया था. खैर नजमा ने एक बार गुस्से से रफीक और देखा और अपनि साडी ठीक करने लगी.
“क्यों रे? तू हैं? मुझे लगा काव्या बेटी हैं. इतना क्यों जोर से चीखी तू”, काव्या के नानी के आये ताबड़तोड़ सवाल ने नजमा को उलझन में दाल दिया.
अपने साडी का पल्लू का एक छोर कमर पे घुसाते हुए उसने हिचकिचाते कहा, “जी....वो...बड़ी ठकुराइनी...अम्मा जी..छिपकली दिख गयी थी सोफे के निचे साफ़ करते ..तनिक घबरा गयी मैं बावली”
नजमा अपनी नज़ारे यहाँ वह घुमा रही थी. काव्या की नानी की नज़र उसके ब्लाउज पे गया. उसकी हालत देख के उसको कुछ अजीब लगा पर बाजु में रफीक को देख उसने कुछ गलत नहीं समझा. पर उसको क्या पता वही सच था.
“अच्छा ठीक है..अपने कपडे ठीक कर और काम पर लग जा..काव्या बेटी आई हैं अछा खाना बना आज. दूध की खीर बनानि है उसके पसंद की तुझे और उसको पुछ लेना कल से क्या क्या बनाना हैं. और हा, एक बात”
“जी अम्मा जी क्या?”
“खुदको ज़रा ढंग में रखा कर. कैसे कपडे हो गए हैं तेरे. गिले और तितर बितर. तेरा बीटा भी बड़ा हो रहा हैं न, अकल नहीं क्या तुझे?”
“जी अम्मा जी ...आइन्दा से ख्याल रखूंगी”
अपने नज़रे निचे ज़मीन की और टिकाकर वो चुप चाप कड़ी हो गयी. बिच बिच में रफीक की और वो बड़ी आँखे कर के देखती वो भी वह कोने में चुप चाप गाय के माफिक खड़ा था.
काव्या की नानी थी उम्र से ज्यादा पर थी वो बिलकुल कड़क. उसका स्वाभाव बिलकुल सख्त था खासकर नौकर चाकर के साथ. और नजमा के प्रति वो जरा इर्षा भी रखती थी. कही बार किशोरी लाल को उसने नजमा के साथ करीब होते हुए देखा था, गाँव में चर्चे भी थे के बूढ़े ने इस को इसलिए सिर्फ मस्ती के लिए रखा था. पर नजमा सब सह लेती क्योंकि किशोरी लाल के बहुत उपकार उसके घर पे थे.
गरीब और अमिर ये भले भगवन ने नहीं बनाये हो परन्तु इंसान आज इनि बातो से घिरा हुआ हैं. बात थी काव्या के नानी की जिसको नजमा के कपड़ो पे ऐतराज था, परन्तु खुदकी पोती पे उसको नाज था. शायद इसलिए क्योंकि नजमा गरीब हैं. काव्या आमिर हैं, उसकी पोती हैं, इसलीये वो जो करे वो उसके लिए ठीक था. काश वो एखाद बार काव्या के रूम में चली जाके देख लेती तो उसको पता चलता कपड़ो की मर्यादा की सिख किसको ज्यादा जरुरी हैं. पर क्या पता? वो उसको भी प्रशंशा की नजर से देखती, के जमाना मॉडर्न हैं.
खैर बात कपड़ो की नहीं हैं, बात हैं अमिर और गरीब की. दुनिया भले ही अपने आप को कपड़ो से, रीती रिवाजो से, रहन सहन से मॉडर्न बुला दे. पर सच तो ये हैं, के आज भी इस मॉडर्न दुनिया में कोई मार खाता हैं तो वो हैं गरीब. अगर कोई गरिब इस दुनिया के तरीके सिख भी ले फिर भी उसको ही झुकना पड़ेगा. समाज तभि आगे बढ़ पायेगा जब गरीब और अमिर ये अंतर ख़त्म हो जाए. इतिहास गवा हैं काला धन रहे या काला मन रहे ये काला कम करने वाले अमिर तो खुदको सफ़ेद करके निकल जाते हैं बाद में इसका काला कलंक सिर्फ गरीबो को झेलना पड़ता हैं.
काव्या के नानी ने रफीक की और नज़र घुमाई. वो कोने में चुप चाप निचे गर्दन झुकाके खड़ा था. उसको देख के थोड़े कठोर शब्दों में नानी बोली,
“सुन. तू गया था क्या काव्या के खोली में साफ़ करने?”
रफीक के मानो कबूतर उड गए. उसके माथे पे पसीना आ गया. उसकी धड़कन एक दम से तेज़ दौड़ने लगी. वो कुछ बोल ही नहीं पाया.
“हां या नहीं बोल. साप सूंघ गया क्या तुझे?”
अलग ही रंजिश में फसा रफीक ने अपना सर एकबार ना में हिलाया एक बार हां में. काव्या के नानी को ये देख कर और माथा खनक गया वो नजमा की और देख के फिर से गुस्से से बोली,
“क्या बचपना हैं नज्मा. तेरे बेटे को ख़ाक बात समझती नहीं. क्या काम करेगा वो यहाँ? दोनों मा बेटे कुछ काम के नहीं हो”, नजमा चुपचाप सब सुनके खामोश खड़ी थी.
“बावले लोग हैं. खैर इसको बोल काव्या का रूम साफ़ करने. और अभी मत जा..वो सोयी होगी. और दरवाजा बजाके जाते जाओ दोनों अब से. हर बात बोलनी पड़ती”
“जी अम्मा जी”, नजमा ने हां में सर हिलाया और गुस्से से रफीक की और देखा.
काव्या की नानी को बाहर बगीचे में जाते हुए देख के नजमा ने राहत ली. उसने तुरंत रफीक की और देखा और गुस्से से बोला, ” तुझे हो क्या गया? देख तेरे वजह से मुझ सुनना पड़ा. वो कितना सुनाती तुझे पता न.”
रफीक उसकी बाते सुन कर बोल पड़ा,”मेरी क्या गलती अम्मी. मुझे बस दुधू चाहिए था..”
नजमा ने अपने सर पे हाथ लगाया. रफीक के नादान जवाब ने उसका गुस्सा दूर भगा दिया. उसके करीब जाके वो धीरे से बोला “ बेटा, घर में तुम कुछ भी करो, यहाँ नहीं“
अचानक रफीक के चेहरे पे ख़ुशी लौट आई.
“सच अम्मी?”
उसकी ख़ुशी को देख नजमा भी थोड़े खुश होक बोली” हां सच” रफीक का डर सब एक पल भर में भाग गया. वो खुश होक हँसने लगा.
नजमा ने उसकी ख़ुशी देखते कहा,” बड़ा खुश हो रहा है आज. पहले तो नहीं देखा. चल सीधे घर जा कही भटक मत. मैं खाना बनाके आ जाती हु घर. यही से कुछ खाना ले कर आती हु ठीक हैं”
“जी अम्मी..आप बहुत प्यारी हो” और हस्ते हुए रफीक दरवाजे के बाहर निकालने लगा. नजमा से उसे पिच्छे से जोर से पुकारके कहा,” सुन....सीधे घर जाके पढ़ाई करना”
“ अच्छा अम्मी..”और अपने साइकिल पे बैठके अपने घर की और वो रवाना हो गया. नजमा भी अपने काम में लग गयी. रात का खाना जो आज बनाना था. वो किचन में गयी और अपने काम में लग गयी. खीर बनाने के लिए पहले उसने फ्रिज से दूध निकाल लिया. सच में आज तो दूध की बहुत जरुरत थी उसको अभी खाने में और बाद में घर में रफीक के लिये.
रफीक के दबाव के निचे सोफे पे खुद दबते हुए नजमा वहा रफीक को समझा रही थी. पर वो तो कही अलग ही दुनिया में था जो उसके चुचियों को जम के रगड़े जा रहा था.
“अम्मी,..मुझ होना,,,”
नजमा के कान काटते हुए उसका तना लंड इस कदर साडी के ऊपर से नजमा के गद्देदार गांड को चुभ गया के उसकी एक चीख निकल गयी.
“आ:;;;;ह्ह्ह.......”
डर और जल्दबाजी में उसके मूह से ये चीख निकल तो गयी थी. पर उसकी आवाज सुन के काव्या के नानी ने अपने कमरे से ही कहा,
“कौन? कौन हैं ? काव्या बेटी जाग गयी क्या?”
अचनक से निकली अपनी चीख से नजमा किसी बुत के माफिक थम गयी. उसने तुरंत पीछे मूड के वैसे ही हालात में रफीक से लगभग भीग मांगते हुए कहा,
“बेटा ,, छोड़ दे अपनी मा को समझ...तू बड़ा हो गया हैं अब.. ये यहाँ नहीं हो सकता..तू देख छोटी मेमसाब भी हैं घर में..काव्या बीबी..वो जाग जायेगी “
काव्या का नाम सुनते ही रफीक होश में आ गया. उसका नाम किसी दवा की तरह काम कर गया. रफिक एकदम से नजमा के ऊपर से हट गया. और बाजु में खड़ा हो गया. नजमा ने रहत की सांस छोड़ी. जैसे ही वो खड़ी हो गयी, अन्दर से काव्या की नानी आती हुयी उसको दिख गयी. बाल-बाल बच गयी थी वो अगर थोड़ी भी देरी हो जाती तो आज न जाने दोनों मा बेटो का नाम का क्या हो जाता. नजमाँ वही समझा रही थी जो रफीक नहीं समझ रहा था. काव्या का नाम उसको किसी फ़रिश्ते से कम नहीं लगा उस वक़्त.
उसने अपना साडी का पल्लू कैसे तो कंधे पे वापस ले लिया. कुछ समय में ही उसके ब्लाउस को रफीक के मर्दाना हातो ने तितर बितर कर दिया था. उसके ऊपर का बटन खिचातानी में टूट गया था. खैर नजमा ने एक बार गुस्से से रफीक और देखा और अपनि साडी ठीक करने लगी.
“क्यों रे? तू हैं? मुझे लगा काव्या बेटी हैं. इतना क्यों जोर से चीखी तू”, काव्या के नानी के आये ताबड़तोड़ सवाल ने नजमा को उलझन में दाल दिया.
अपने साडी का पल्लू का एक छोर कमर पे घुसाते हुए उसने हिचकिचाते कहा, “जी....वो...बड़ी ठकुराइनी...अम्मा जी..छिपकली दिख गयी थी सोफे के निचे साफ़ करते ..तनिक घबरा गयी मैं बावली”
नजमा अपनी नज़ारे यहाँ वह घुमा रही थी. काव्या की नानी की नज़र उसके ब्लाउज पे गया. उसकी हालत देख के उसको कुछ अजीब लगा पर बाजु में रफीक को देख उसने कुछ गलत नहीं समझा. पर उसको क्या पता वही सच था.
“अच्छा ठीक है..अपने कपडे ठीक कर और काम पर लग जा..काव्या बेटी आई हैं अछा खाना बना आज. दूध की खीर बनानि है उसके पसंद की तुझे और उसको पुछ लेना कल से क्या क्या बनाना हैं. और हा, एक बात”
“जी अम्मा जी क्या?”
“खुदको ज़रा ढंग में रखा कर. कैसे कपडे हो गए हैं तेरे. गिले और तितर बितर. तेरा बीटा भी बड़ा हो रहा हैं न, अकल नहीं क्या तुझे?”
“जी अम्मा जी ...आइन्दा से ख्याल रखूंगी”
अपने नज़रे निचे ज़मीन की और टिकाकर वो चुप चाप कड़ी हो गयी. बिच बिच में रफीक की और वो बड़ी आँखे कर के देखती वो भी वह कोने में चुप चाप गाय के माफिक खड़ा था.
काव्या की नानी थी उम्र से ज्यादा पर थी वो बिलकुल कड़क. उसका स्वाभाव बिलकुल सख्त था खासकर नौकर चाकर के साथ. और नजमा के प्रति वो जरा इर्षा भी रखती थी. कही बार किशोरी लाल को उसने नजमा के साथ करीब होते हुए देखा था, गाँव में चर्चे भी थे के बूढ़े ने इस को इसलिए सिर्फ मस्ती के लिए रखा था. पर नजमा सब सह लेती क्योंकि किशोरी लाल के बहुत उपकार उसके घर पे थे.
गरीब और अमिर ये भले भगवन ने नहीं बनाये हो परन्तु इंसान आज इनि बातो से घिरा हुआ हैं. बात थी काव्या के नानी की जिसको नजमा के कपड़ो पे ऐतराज था, परन्तु खुदकी पोती पे उसको नाज था. शायद इसलिए क्योंकि नजमा गरीब हैं. काव्या आमिर हैं, उसकी पोती हैं, इसलीये वो जो करे वो उसके लिए ठीक था. काश वो एखाद बार काव्या के रूम में चली जाके देख लेती तो उसको पता चलता कपड़ो की मर्यादा की सिख किसको ज्यादा जरुरी हैं. पर क्या पता? वो उसको भी प्रशंशा की नजर से देखती, के जमाना मॉडर्न हैं.
खैर बात कपड़ो की नहीं हैं, बात हैं अमिर और गरीब की. दुनिया भले ही अपने आप को कपड़ो से, रीती रिवाजो से, रहन सहन से मॉडर्न बुला दे. पर सच तो ये हैं, के आज भी इस मॉडर्न दुनिया में कोई मार खाता हैं तो वो हैं गरीब. अगर कोई गरिब इस दुनिया के तरीके सिख भी ले फिर भी उसको ही झुकना पड़ेगा. समाज तभि आगे बढ़ पायेगा जब गरीब और अमिर ये अंतर ख़त्म हो जाए. इतिहास गवा हैं काला धन रहे या काला मन रहे ये काला कम करने वाले अमिर तो खुदको सफ़ेद करके निकल जाते हैं बाद में इसका काला कलंक सिर्फ गरीबो को झेलना पड़ता हैं.
काव्या के नानी ने रफीक की और नज़र घुमाई. वो कोने में चुप चाप निचे गर्दन झुकाके खड़ा था. उसको देख के थोड़े कठोर शब्दों में नानी बोली,
“सुन. तू गया था क्या काव्या के खोली में साफ़ करने?”
रफीक के मानो कबूतर उड गए. उसके माथे पे पसीना आ गया. उसकी धड़कन एक दम से तेज़ दौड़ने लगी. वो कुछ बोल ही नहीं पाया.
“हां या नहीं बोल. साप सूंघ गया क्या तुझे?”
अलग ही रंजिश में फसा रफीक ने अपना सर एकबार ना में हिलाया एक बार हां में. काव्या के नानी को ये देख कर और माथा खनक गया वो नजमा की और देख के फिर से गुस्से से बोली,
“क्या बचपना हैं नज्मा. तेरे बेटे को ख़ाक बात समझती नहीं. क्या काम करेगा वो यहाँ? दोनों मा बेटे कुछ काम के नहीं हो”, नजमा चुपचाप सब सुनके खामोश खड़ी थी.
“बावले लोग हैं. खैर इसको बोल काव्या का रूम साफ़ करने. और अभी मत जा..वो सोयी होगी. और दरवाजा बजाके जाते जाओ दोनों अब से. हर बात बोलनी पड़ती”
“जी अम्मा जी”, नजमा ने हां में सर हिलाया और गुस्से से रफीक की और देखा.
काव्या की नानी को बाहर बगीचे में जाते हुए देख के नजमा ने राहत ली. उसने तुरंत रफीक की और देखा और गुस्से से बोला, ” तुझे हो क्या गया? देख तेरे वजह से मुझ सुनना पड़ा. वो कितना सुनाती तुझे पता न.”
रफीक उसकी बाते सुन कर बोल पड़ा,”मेरी क्या गलती अम्मी. मुझे बस दुधू चाहिए था..”
नजमा ने अपने सर पे हाथ लगाया. रफीक के नादान जवाब ने उसका गुस्सा दूर भगा दिया. उसके करीब जाके वो धीरे से बोला “ बेटा, घर में तुम कुछ भी करो, यहाँ नहीं“
अचानक रफीक के चेहरे पे ख़ुशी लौट आई.
“सच अम्मी?”
उसकी ख़ुशी को देख नजमा भी थोड़े खुश होक बोली” हां सच” रफीक का डर सब एक पल भर में भाग गया. वो खुश होक हँसने लगा.
नजमा ने उसकी ख़ुशी देखते कहा,” बड़ा खुश हो रहा है आज. पहले तो नहीं देखा. चल सीधे घर जा कही भटक मत. मैं खाना बनाके आ जाती हु घर. यही से कुछ खाना ले कर आती हु ठीक हैं”
“जी अम्मी..आप बहुत प्यारी हो” और हस्ते हुए रफीक दरवाजे के बाहर निकालने लगा. नजमा से उसे पिच्छे से जोर से पुकारके कहा,” सुन....सीधे घर जाके पढ़ाई करना”
“ अच्छा अम्मी..”और अपने साइकिल पे बैठके अपने घर की और वो रवाना हो गया. नजमा भी अपने काम में लग गयी. रात का खाना जो आज बनाना था. वो किचन में गयी और अपने काम में लग गयी. खीर बनाने के लिए पहले उसने फ्रिज से दूध निकाल लिया. सच में आज तो दूध की बहुत जरुरत थी उसको अभी खाने में और बाद में घर में रफीक के लिये.