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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#24
“कौन आ गया इस समय..मा चोद दूंगा.”

बड़े ही गुस्से से खुदसे बडबडाते हुए रफीक दरवाजे की और दौड़ा. दरवाजे की बेल अभीभी बज रही थी. शायद बाहर की और भी कोई बहुत हलचल में था.

“आया ... आया ..रुको”

जोर से और गुस्से से रफीक अन्दर से बुलावा देता हैं. एकदम ख़ट से वो दरवाजे की कुण्डी खोलता हैं और गुस्से से सामने गाली निकालते हुए देखता हैं. तो अचानक से अपने मूह को कस कर लगाम भी लगा देता हैं. क्योकि सामने उसकी सौतेली मा नजमा जो खड़ी थी.

“तू...?”

अपने गुस्से का अचानक से रूपांतर चौक के उसने नजमा से बोला.

“हाँ मैं..तू इतना क्यों चौंक गया रे?” नजमा ने उसको उलटा सवाल किया. होश में आते रफीक ने फिर बात पलटाना शुरू कर दिया.

वो बोला ,“नहीं नही...अम्मी मतलब..इस समय तुम यहाँ कैसे?”

“अरे बावला हो गया क्या? शाम के ५ बजने को हैं..मालकिन के खाना बनाने का समय हुआ हैं. मैं तो हमेशा ही आती हूँ तूझे नहीं पता क्या?”

इसपे रफीक को एहसास हुआ के अभी भी उसका सर भीतर के महोल में ही अटका हैं. बस इस गलती पे अपनि बगले झाकने लगा.

“चल हट, मुझे अन्दर आने दे, काम हैं बहुत. अपने आवारा दोस्तों के साथ रहकर तू भी आवारा बन गया हैं रफीक”

रफीक को हटाकर सलमा अन्दर की और आ गयी. उसने अपना थैला सोफे पे रख दिया जो वो रोज करती थी और अपने काम पे लग जाती थी. पर आज उसने कुछ अलग किया. वही रफीक दरवाजे के बाहर देखता हैं सच में बारिश शुरू थी. और रात होने जैसे लग रह थी. रफीक खुदको मन ही मन समझाता हैं, “बाल-बाल बच गया आज, वरना अम्मी को तो गाली देने ही वाला था..या अलाह शुक्रिया”. ऐसा कहके दरवाजा फिर से लगा कर पिच्छे की और मुड जाता हैं. जैसे ही वो पिच्छे मुड़ता हैं वो और फिर से एक बार चौक जाता हैं.

सामने का नजारा देख वो हक्काबक्का हो जाता हैं. नजमा ने अपने सारी का पल्लू पूरा का पूरा निचे गिरा दिया था. शायद बारिश के कारण उसने वैसा किया. वो बरिश के कारन पूरी भीग जो गयी थी. उसकी साडी भीगने से उसके गठीले मादक बदन से चिपके हुयी थी. उसका ब्लाउज पूरा का पूरा उसकी चुचियों को दर्शा रहा था. उसकी गांड उभरी हुयी थी तो भीगने के कारन और मादक हो गयी थी. रफीक उसका ये अवतार देख सन्न रह गया. ४२ साल की नजमा बिलकुल ३५ साल से ज्यादा नहीं लग रही थी. भीगा बदन कहर ढा रहा था. वो ज्यादा सावली भी नहीं थी इसलिए उसका बदन दमक रहा था. ब्लाउज में दूध का क्लेवेज साफ साफ़ दिख रहा था.

यु तो ये सब बाते रफीक के लिए नयी नहीं थी. नजमा उसको बच्चे की तरह मानती थी. उसके साथ वो कही बार नदी पे नहाई भी थी. और रफीक तो बिना किसी हिचक से उम्र के साथ उसके साथ और घुल मिल जाया करता था. पर आज का समा कुछ और था. आज रफीक को मर्द होने का पूरा एहसास जो मिल गया था. उसकी मर्दानगी को ये सभी बाते ललकार रही थी. उसकी आँखे नजमा के भीगे जिस्म पे टिकी रही और उसके टाईट लंड में फिर से अकड आने लगी.
नजमा वही बेशर्मी से अपने सर के बाल साफ़ कर रही थी. उसको इन बातो का कोई परिणाम था नहीं. वो हमेशा की तरह अपने काम में व्यस्त थी. पर रफीक का ध्यान आज कहा अपने काममे था.

वो वैसे ही नजमा की करीब जाके पिछे से एक झटके में ही उससे बदन से चिपक जाता हैं.
यु तो उसके लिए नजमाँ को चिपकना नया नहीं था. रात में वो आज भी कई कबार नजमा के चुचियों से खेलता, कही बार तो उनका दूध पिता. पर उसने कभी घर के बाहर ऐसी जरुरत नहीं की थी.

“अमीई......रफीक....”

अचानक से हुए इस हमले से नजमा भी चौक गयी. रफीक उससे जम कर के पीछे से चिपक के खड़ा हुआ जो था.

नजमा ने होश सँभालते कहा,
“र..रफीक...बेटे,,क्या हुआ? छोडो ऐसे नहीं करते..”

रफीक अपना भार पीछे से और बढाते हुए नजमा के गले पे अपनी गरम सासे छोड़ते हुए भले ही मादक आवाज में बोल पड़ा,

“ उम...नही...अम्मी..आज मुझे चाहिए...”

नजमा यहाँ वहा देखते हुए उसको अपने आप से छुड़ाने की कोशीश कर रही थी. “बेटा... कक..क्या होना? छोडो अभी,,,”

रफीक ने अपने हाथ सामने से सीधे नजमा के चुचियों पे रख दिए. और उनको जम कर दबाते हुए बोला, “ये चाहिए...मुझे आज..”

जब रफीक के नजमा का दूध दबाया. नजमा तो होश के बाहर हो गयी. उसकी पकड़ बहुत मजबूत लग रही थी आज. उसकी आह निकलते निकलते उसने रोक दी कही कोई आ ना जाए.
और अपने होठो को चबाते हुए वो बोल बड़ी हुए धीरे कस्म्कसाते हुए बोल पड़ी,

“बे,,,,बेटा .. तू...तू घर पे पि लेना .यहाँ नहीं रहता ऐसे, समझो...”

लेकिन आज रफीक कहा सुनने वाला था. उसने अपना जोर और बढ़ाया और इसीके साथ पहली बार नजमा को रफीक की और से अपने बड़ी गद्देदार गांड पे कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ. उसको ये समझने बिल्कुल वक़्त नहीं लगा के ये रफीक का लंड था. उसको इसके कारन एक झटका लगा और अब उसको रफीक से थोडा डर भी लगने लगा.

“नहीं..मुझे अभी चाहिए...पिलाओ...”

नजमा को बुरी तरह अपने से चिपकाते हुए उसकी चुचियों को लगातार मसलना उसने जारी रखा. रहीम चाचा से मसलने से नजमा की चुचिया आज भी ढीली ढाली नहीं थी. बहुत सुडोल थी वो. ३६ साइज़ की चुचिया रफीक पुरे जोश के साथ मसल रहा था. पर बात चुचियों की नहीं थी बात थी उसकी पकड़ की जिसमे मर्दाना एहसास ज्यादा था, ना के बच्चे का. साथ ही बात उसके लंड की थी जो उसके गांड की साडी के ऊपर से मा चोद रहा था.

“नहीं....रफीक....ज़बरदस्ती नहीं करते,...छोडो...अच्छे बचे की तरह..”

नज्मा अभी भी उसको बच्चे की तरह दाट रही थी. शायद उसको अभीभि सब साधारण ही लग रहा था. पर तभी वो हुआ जो सलमा के लिए किसी बड़ी सुनामी की तरह था.

रफीक ने अपना पूरा बोझ उसके पीछ डाल दिया था. और होशो आवाज से बाहर होकर उस नवयुवक से अपनी मा को इस कदर दबाया के खड़े खड़े ही वो सामने सोफे पर झुक गयी. उसके हाथ सोफे पे थे. और पीछे गांड उभर के रफीक से लपकी थी. कुत्ता कुतिया पे जैसा चढ़ता हैं वैसे स्थिथि में दोनों की हालत थी. ताज्जुब ये था के बारिश भी गिर रही थी. जिससे सच में वो दृश्य बहुत ही कामुक हो गया था. नजमा के सासे ही अटक गयी. उसने पूरी कोशीश की रफीक को समझाने की. अटक अटक सांस लेते हुए उसने कहा,

“रफीक,,,छोडो...मार पड़ेगी अब तुमको...सुनते हो के नहीं?”

पर यहाँ तो बच्चा पूरा जवान हो गया था वो क़हा अब डरने वाला था. उसका ध्यान तो बस नजमा का बदन सेकने में डूबा था. अपनी आखे बंद रखते हुए ही उसने अपना शरीर का दबाव और बढ़ाया. जिस कारण उसका लंड सलमा के गांड के बीचो बीच आके अपना बल दिखाने में सफल हो गया.

अब वो भी खुद झूक गया और उसका मूह सलमा की पीठ पर चिपक गया. और उसके चेहरे को हाथो से मलते हुए लाड में आकर चुम्मी लेते हुए बोला,

“आह...नहीं...अमी..मुझे अभी चाहिए...जाओ”

रफीक तो मानने में नहीं दिख रहा था. तभी नजमा को निचे की कमरे की लाइट जली हुयी दिख पड़ी. शायद काव्या की नानी जाग गयी थी. नजमा को विंडो से दिख रहा था. वो कभी भी आ सकती थी. नजमा करे तो क्या करे? अगर इस हालात में कोई गलती से देख ले तो उसको तो मूह दिखाने जगह नहीं रहेगी. उसको कैसे भी करते रफीक को हटाना था. नज्मा की आँखे ये सोच के डर के मार खुली की खुली रह जाती हैं उसे कैसी भी करके रफीक को अब हटाना ज़रूरी बन गया था.

उसकी इन हरकतों को अभी भी वो बचपना समझ रही थी. उसके बचपने से वो एक सौदा करने का ठान लिया. जैसे बचचो के साथ चॉकलेट पे किया जाता हैं. पर शायद उसको ये सौदा रफीक के जवान लंड की करतूतों से मेहंगा न गिर जाये.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 03:28 PM



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