25-08-2020, 03:27 PM
नवयुवक अपने चरम पहल पे विराजमान था. उसने आज अपने जीवन की एक बहुत बड़ी बात को आज अंजाम दिया था. २० साल के इस जवान बच्चे ने आज खुद को एक मर्द होने का एहसास समझाया था. और क्या किस्मत पायी इस जवान कद के युवक ने, अपने पहले ही जवानी के खेल में काम रस पिया तो भी ऐसे राजसी सुंदरी स्त्री का. वो स्वाद वो अब कभी नहीं भूलने वाला. बड़े आराम से और तमंनाओंसे अपने मिन्नतो से भरी हुयी मेहनत का वो फल जो था.
काव्या के चेहरे को रफीक ने गौर से देखा. उसने काव्या के चहरे को अपने एक हाथ से पकड़ कर फिराया. उसके मादक होठो को छूकर उसका लंड जोर से तन गया.
सच में बड़े ही गहरी नींद में थी ये कामुक परी. उसका एक हाथ ऊपर मूह से लुढ़क के गले के पास था तो दूसरा जांघो पे टिका था. दोनों पैर खुल गए थे जिसके कारण चूत खुली पड़ो हुयी थी. उसके होठ भी खुल गए थे जैसे वो नन्द में कुछ बुदबुदाती हो. अपने खुबसूरत जिस्म से पूरा समा मादक बनानेवाली इस सुंदरी की ये हालत देख के तो बूढ़े लंड में भी तनाव आ जाये. और यहाँ तो अभी-अभी जवान हुआ लंड था. गहरी नींद में डूबी काव्या जो कुछ देर पहले ही झड गयी थी जिसके कारण उसके चेहरे पे एक अलग ही सुकून छाया दिख रहा था. पर फिर भी उसके गुलाबी पंखुरी जैसे होठ, सेब जैसे गाल और माथे पे बिखरे हुए रेशमी बाल उस मासूम चेहरे को एक काम देवी जैसा दर्शा रहे थे. खैर अपने होठो पे जबान फिराते वो खुद काव्या के मद मस्त जिस्म के बाजू में लेट गया.
रफीक ने काव्या का आराम से देखा. उसकी चुचिया जो ब्रा में कैद थी उसको देखके लग रहा था वही ब्रा फाड़ के मसल कर उनको पी लिया जाये. शायद कोई और होता तो वो कर भी लेता. पर यही तो फर्क होता हैं वासना और प्रेम में. रफीक कमजोर दिल का इंसान जो था. भले ही उसका लंड उस वक़्त अकड़ खाए था पर दिल काव्या पे मेहरबान था. उसने उसके मादक स्वरुप को भी प्रेम भरी नजरो से देखा. उसे ऐसा लग रहा था वही काव्या के बालो को सवारा जाए, उसके होठो पे लिपस्टिक लगाई जाए, गालो पे लाली पाउडर लगाया जाए. उसके बदन की मालिश की जाये, किसी गुडिया की तरह नए कपडे पहनाये जाए और उसको लिपट के कम्बल के निचे गरम चिपक के सोया जाए. ऐसे प्रेमभाव में खोये नवयुवक को एक अप्रतिम प्रेम का अनूप आनंद प्राप्त हो रहा था. वैसे ही काव्या के बाजु में लेट कर वो उसकी चूत को सहला रहा था.
सच में दोस्तों, प्रेम और वासना में बड़ा फर्क होता हैं. वासना जहा सिर्फ भोग का दूसरा नाम हैं वही प्रेम एक नाजुक सा छुपा हुआ कोई कोमल भाव. वासना का रिश्ता शरीर के अस्तित्व से होता हैं, मनुष्य जो चीज में वासना से लीन हो, उसको वो बंद आखो से भी ध्वस्त कर बैठता हैं, न किसी चीज की शर्म हया, या कोई गंदगी की घिन, उसको रोकती हैं. बस उसको चाहिए होती हैं वो डोर जिससे वो अपने अरमान बाँध सके. जब तक शरीर में उर्जा रहती हैं वो उस डोर को खींचते रहता हैं और जैसे ही उर्जा निकल जाती हैं किसी कटी पतंग की तरह वो भी टूट के ढेर हो जाता हैं. लेकिन प्रेम इसके बिलकुल उल्टा होता हैं. उसमे एक अलग ही ओढ़ रहती हैं. जो हर पल एक दुसरे को करीब खिचती हैं और किसी डोर की तरह टूटती भी नहीं. उसमे सपने होते हैं. जहा इंसान खुली आँखों से सपने देखने लगता हैं. उसी प्रेम की बहाव में नवयुवक रफीक बह रहा था. उसने काव्या का हाथ अपने लंड पे धीरे धीरे मलना शुरू किया.
उस स्पर्श में बहा हां कर उसको भी काव्या के साथ मीठे-मीठे सपने दिख रहे थे. लेकिन साथ ही वासना का पगडा भी उसको छेड़ रहा था. प्रेम और वासना दोनों भाव में बह कर कमजोर दिल के नवयुवक रफीक का लंड अब सहनशक्ति के परे हो रहा था. उसने खुली आँखों से काव्या की चूत के और गौर से देखा. और अपने लंड के बचपने को पूरा करने की जोखिम उठा दी. एक बार काव्या के चेहरे को टटोलकर अपने निचे के हिस्से को ज़रा आगे खिसका के उसने काव्या के जांघो से अपनी जांघे बहुत ही धीरे से चिपका दी.
आह....क्या स्पर्श था. उसने अपनी आँखे ही मूँद ली थोड़ी देर के लिए. जीवन पे पहली बार किसी स्त्री के योनी से हुआ मुलायम स्पर्श उसके मन को भा लिया. एक बार फिर से वासना के पक्ष में पैर रख के उस ने अपना तना हुआ लंड हाथो में पकड़ा और एक बहुत धीमी सिसक के साथ ही निचे काव्या के चूत के इलाके के पास उसको टिका दिया.
उसके कोमल गद्देदार चूत के ऊपर से अपना लंड को गोल गोल उपर निचे घुमाना शुरू किया. उसको मानो जन्नत जैसा अनुभव प्राप्त हो रहा था. फिरसे वो प्रेम और वासना के भाव में उलझ गया. वो मुलायम स्पर्श उसके नाजुक दिल के प्रेम भरे भाव को छू गया. और बहुत देर से तना हुआ लंड भी उस आभास को झेल नहीं पाया.उसके कोमल स्पर्ष ने लंड की नसों को तान दिया. लंड के टोपी को सिरहन महसूस होने लगी. ऐसा अनुभव हो रहा था के जवान लंड पिघलने वाला हैं. काव्या की योनी किसी आग की तरह प्रतीत हो रही थी जिसके जलन से यहाँ शमा पिघलने वाला था.
और वही हुआ. शायद उपरवाले ने उसकी मिन्नत सुनी नहीं. इस बार का प्रयास फेल हो गया. अनुभव से कमी होना और प्रेम के भावो में गिरा हुआ नवयुवक ने जैसेही काव्या के चूत के अन्दर लंड घुसाने की कोशिश करता हैं उसके कमसिन लंड ने वही अपना दम तोड़ दिया. एक झटके में ही वो उसने वही अपना वीर्य छोड़ दिया.
जीवन में पहली बार अपनी पिचकारी उसने किसी चूत के ऊपर छोड़ दी. रफीक तो मानो किसी दूसरी दुनिया में था. उसने आँखे बंद करके अपना पानी छुटने दिया. जो काव्या के पेट पे, चूत से प्यान्ति और निचे जांघो से लुडक कर चद्दर पे गिर गया. आखरी बूंद तक उसने लंड को हाथ से निचोड़ा. उसका पानी भले जल्दी निकल गया था पर आनंद का पूर्ण रूप से उसने अनुभव प्राप्त किया था.
खेल ख़तम हो गया था. रफीक अभी भी आँखे बंद किये लंड को हाथ में लिए वही था. शायद प्रेम भाव से बाहर आना उसको मुश्किल हो रहा था.
तभी अचानक “ डिंग डाँग.....”
बाहर से दरवाजे की बेल बजी. रफीक के होश ही उड़ गए. उसकी धड़कने तेज़ी से दौड़ाने लगी. उसने दिवार पे लटकाई घडी की और देखा शाम के ५ बजे थे. वक़्त कैसा गुज़रा उसको समझा ही नहीं. बाहर बदल भी धीमी बारिश कर रहे थे. अँधेरा छाने लगा था. इस समय किशोरीलाल के बंगले में भले कौन आ सकता हैं?
“मा की चूत...कौन हैं इस समय?”
गुस्से में उसने खुद से बडबडाया. और झट से बेड से उठ खड़ा हुआ . अपना कच्छा उसने ठीक किया. अभी भी उसका लंड थोडा तना हुआ था. उसने कैसे तो उसको एडजस्ट किया. कोई जागने से पहले उसने वह से निकलना ही मुनासिफ समझा. अचानक वो रूम के दरवाजे की तरफ रुका और काव्या पे एक आखरी नज़र डालके के उसने अपने होठो से एक फ़्लाइंग किस काव्या की और फेकी. और रूम से बाहर की और निकल पड़ा. यहाँ वह देख उसने मुख्य दरवाजे की और कदम बढाए. उसके मन में गुस्सा था के इस वक़्त कौन हो सकता हैं. शायद इतना ज्यादा के वो उसकी मा चोद दे.
क्रमश:
काव्या के चेहरे को रफीक ने गौर से देखा. उसने काव्या के चहरे को अपने एक हाथ से पकड़ कर फिराया. उसके मादक होठो को छूकर उसका लंड जोर से तन गया.
सच में बड़े ही गहरी नींद में थी ये कामुक परी. उसका एक हाथ ऊपर मूह से लुढ़क के गले के पास था तो दूसरा जांघो पे टिका था. दोनों पैर खुल गए थे जिसके कारण चूत खुली पड़ो हुयी थी. उसके होठ भी खुल गए थे जैसे वो नन्द में कुछ बुदबुदाती हो. अपने खुबसूरत जिस्म से पूरा समा मादक बनानेवाली इस सुंदरी की ये हालत देख के तो बूढ़े लंड में भी तनाव आ जाये. और यहाँ तो अभी-अभी जवान हुआ लंड था. गहरी नींद में डूबी काव्या जो कुछ देर पहले ही झड गयी थी जिसके कारण उसके चेहरे पे एक अलग ही सुकून छाया दिख रहा था. पर फिर भी उसके गुलाबी पंखुरी जैसे होठ, सेब जैसे गाल और माथे पे बिखरे हुए रेशमी बाल उस मासूम चेहरे को एक काम देवी जैसा दर्शा रहे थे. खैर अपने होठो पे जबान फिराते वो खुद काव्या के मद मस्त जिस्म के बाजू में लेट गया.
रफीक ने काव्या का आराम से देखा. उसकी चुचिया जो ब्रा में कैद थी उसको देखके लग रहा था वही ब्रा फाड़ के मसल कर उनको पी लिया जाये. शायद कोई और होता तो वो कर भी लेता. पर यही तो फर्क होता हैं वासना और प्रेम में. रफीक कमजोर दिल का इंसान जो था. भले ही उसका लंड उस वक़्त अकड़ खाए था पर दिल काव्या पे मेहरबान था. उसने उसके मादक स्वरुप को भी प्रेम भरी नजरो से देखा. उसे ऐसा लग रहा था वही काव्या के बालो को सवारा जाए, उसके होठो पे लिपस्टिक लगाई जाए, गालो पे लाली पाउडर लगाया जाए. उसके बदन की मालिश की जाये, किसी गुडिया की तरह नए कपडे पहनाये जाए और उसको लिपट के कम्बल के निचे गरम चिपक के सोया जाए. ऐसे प्रेमभाव में खोये नवयुवक को एक अप्रतिम प्रेम का अनूप आनंद प्राप्त हो रहा था. वैसे ही काव्या के बाजु में लेट कर वो उसकी चूत को सहला रहा था.
सच में दोस्तों, प्रेम और वासना में बड़ा फर्क होता हैं. वासना जहा सिर्फ भोग का दूसरा नाम हैं वही प्रेम एक नाजुक सा छुपा हुआ कोई कोमल भाव. वासना का रिश्ता शरीर के अस्तित्व से होता हैं, मनुष्य जो चीज में वासना से लीन हो, उसको वो बंद आखो से भी ध्वस्त कर बैठता हैं, न किसी चीज की शर्म हया, या कोई गंदगी की घिन, उसको रोकती हैं. बस उसको चाहिए होती हैं वो डोर जिससे वो अपने अरमान बाँध सके. जब तक शरीर में उर्जा रहती हैं वो उस डोर को खींचते रहता हैं और जैसे ही उर्जा निकल जाती हैं किसी कटी पतंग की तरह वो भी टूट के ढेर हो जाता हैं. लेकिन प्रेम इसके बिलकुल उल्टा होता हैं. उसमे एक अलग ही ओढ़ रहती हैं. जो हर पल एक दुसरे को करीब खिचती हैं और किसी डोर की तरह टूटती भी नहीं. उसमे सपने होते हैं. जहा इंसान खुली आँखों से सपने देखने लगता हैं. उसी प्रेम की बहाव में नवयुवक रफीक बह रहा था. उसने काव्या का हाथ अपने लंड पे धीरे धीरे मलना शुरू किया.
उस स्पर्श में बहा हां कर उसको भी काव्या के साथ मीठे-मीठे सपने दिख रहे थे. लेकिन साथ ही वासना का पगडा भी उसको छेड़ रहा था. प्रेम और वासना दोनों भाव में बह कर कमजोर दिल के नवयुवक रफीक का लंड अब सहनशक्ति के परे हो रहा था. उसने खुली आँखों से काव्या की चूत के और गौर से देखा. और अपने लंड के बचपने को पूरा करने की जोखिम उठा दी. एक बार काव्या के चेहरे को टटोलकर अपने निचे के हिस्से को ज़रा आगे खिसका के उसने काव्या के जांघो से अपनी जांघे बहुत ही धीरे से चिपका दी.
आह....क्या स्पर्श था. उसने अपनी आँखे ही मूँद ली थोड़ी देर के लिए. जीवन पे पहली बार किसी स्त्री के योनी से हुआ मुलायम स्पर्श उसके मन को भा लिया. एक बार फिर से वासना के पक्ष में पैर रख के उस ने अपना तना हुआ लंड हाथो में पकड़ा और एक बहुत धीमी सिसक के साथ ही निचे काव्या के चूत के इलाके के पास उसको टिका दिया.
उसके कोमल गद्देदार चूत के ऊपर से अपना लंड को गोल गोल उपर निचे घुमाना शुरू किया. उसको मानो जन्नत जैसा अनुभव प्राप्त हो रहा था. फिरसे वो प्रेम और वासना के भाव में उलझ गया. वो मुलायम स्पर्श उसके नाजुक दिल के प्रेम भरे भाव को छू गया. और बहुत देर से तना हुआ लंड भी उस आभास को झेल नहीं पाया.उसके कोमल स्पर्ष ने लंड की नसों को तान दिया. लंड के टोपी को सिरहन महसूस होने लगी. ऐसा अनुभव हो रहा था के जवान लंड पिघलने वाला हैं. काव्या की योनी किसी आग की तरह प्रतीत हो रही थी जिसके जलन से यहाँ शमा पिघलने वाला था.
और वही हुआ. शायद उपरवाले ने उसकी मिन्नत सुनी नहीं. इस बार का प्रयास फेल हो गया. अनुभव से कमी होना और प्रेम के भावो में गिरा हुआ नवयुवक ने जैसेही काव्या के चूत के अन्दर लंड घुसाने की कोशिश करता हैं उसके कमसिन लंड ने वही अपना दम तोड़ दिया. एक झटके में ही वो उसने वही अपना वीर्य छोड़ दिया.
जीवन में पहली बार अपनी पिचकारी उसने किसी चूत के ऊपर छोड़ दी. रफीक तो मानो किसी दूसरी दुनिया में था. उसने आँखे बंद करके अपना पानी छुटने दिया. जो काव्या के पेट पे, चूत से प्यान्ति और निचे जांघो से लुडक कर चद्दर पे गिर गया. आखरी बूंद तक उसने लंड को हाथ से निचोड़ा. उसका पानी भले जल्दी निकल गया था पर आनंद का पूर्ण रूप से उसने अनुभव प्राप्त किया था.
खेल ख़तम हो गया था. रफीक अभी भी आँखे बंद किये लंड को हाथ में लिए वही था. शायद प्रेम भाव से बाहर आना उसको मुश्किल हो रहा था.
तभी अचानक “ डिंग डाँग.....”
बाहर से दरवाजे की बेल बजी. रफीक के होश ही उड़ गए. उसकी धड़कने तेज़ी से दौड़ाने लगी. उसने दिवार पे लटकाई घडी की और देखा शाम के ५ बजे थे. वक़्त कैसा गुज़रा उसको समझा ही नहीं. बाहर बदल भी धीमी बारिश कर रहे थे. अँधेरा छाने लगा था. इस समय किशोरीलाल के बंगले में भले कौन आ सकता हैं?
“मा की चूत...कौन हैं इस समय?”
गुस्से में उसने खुद से बडबडाया. और झट से बेड से उठ खड़ा हुआ . अपना कच्छा उसने ठीक किया. अभी भी उसका लंड थोडा तना हुआ था. उसने कैसे तो उसको एडजस्ट किया. कोई जागने से पहले उसने वह से निकलना ही मुनासिफ समझा. अचानक वो रूम के दरवाजे की तरफ रुका और काव्या पे एक आखरी नज़र डालके के उसने अपने होठो से एक फ़्लाइंग किस काव्या की और फेकी. और रूम से बाहर की और निकल पड़ा. यहाँ वह देख उसने मुख्य दरवाजे की और कदम बढाए. उसके मन में गुस्सा था के इस वक़्त कौन हो सकता हैं. शायद इतना ज्यादा के वो उसकी मा चोद दे.
क्रमश: