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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#22
“उम.....याह...रमण....बेबी...उम्म्म....म्मम्म”
गहरी नींद में काव्या जोर जोर से सिसक रही थी. कबसे रफीक अपने मूह से उसकी राजसी सी चूत की मा चोदे जा रहा था. पुरे जोश से अब वो उसकी चूत चाट रहा था. काव्या के कमर पे दोनों तरफ हाथ डालके उसकी चूत बेताबी से चाटते हुए अपनी पूरी जीभ उसके चूत के अन्दर घुसाके रफीक उसका स्वाद सही मायने में किसी अनुभवी चुद्द्कड़ के जैसे चख रहा था. तभी उसको काव्या के चूत से कुछ सिरहन आती महसूस हुयी. शायद बहुत देर से जो खेल चल रहा उस खेल की सीमा उसने पार की. रफीक के देर तक ऐसे चूत चाटने से नींद में खोइ काव्या के जिस्म में एक सरसराहट दौड़ गयी. वो इतनी जोर की थी के नींद में भी उस सिरहन ने काव्या की जवानी को पिघला कर रख दिया. शायद वो मौका आ ही गया जहा जीवन में पहली बार उस नवयुवकको वो काम रस चखने मिलना था जिसका उसने कभी अनुभव नहीं लिया होगा.

एक बड़ी आह के साथ शहर की डोक्टोरिन साहिबा ने अपने होठ काटते हुए एक कसमसाते हुए आह भरी,

“ओह...माय बेबी.....आह......”, अपना पानी छोड़ दिया.

अपने इस तीखी सिसक के साथ ही मीठी काव्या झड गयी. नींद में ही उसकी योनी ने अपना पानी छोड़ दिया. जो सीधे उसकी चूत से निकल कर रफीक के मूह में उतर गया. बहुत अजीब स्वाद था उसके लिए वो. जैसे बहुत मेहनत करके कोई रस निचोड़ा जाए. वो काम रस चख के वो नवयुवक इतना तो समझ गया के ये पेशाब तो नहीं हैं पर क्या हैं? क्या वही जो वो पोर्न फिल्मो में वो देखता हैं? स्त्री का काम रस? हाँ. ये वही हैं. इस बातो को उसके दिमाग ने पल भर में समझ लिया. और उस रस को चखना उसने बिना वक़्त गवाते ताबड़तोड़ शुरू कर दिया.

उस रस का बहाव उसके योनी से होते हुए उसके नाजुक गद्देदार जन्घो पे और नीचे बिस्तर पर टपक रहा था. रफीक पुरे मन से उसको चाट रहा था. किसी कुत्ते के माफिक उसको सूंघ रहा था. उसकी जीभ बड़ी फुर्तीली थी वो अपने बेहतर काम पे खुश थी. रफीक जो धीरे धीरे सब समझ रह था उसके लिए ये सब नया था. टार्ज़न फिलम की तरह वो हर बात को पहले देखता, टटोलता, महसूस करता. चूत को गीली कर तो उसने पहली ही कर दिया था, अब वो उसको चाट-चाट के साफ़ कर रहा था.

उस वक़्त वो खुदको विजेता जैसा महसूस कर रहा था. और क्यों ना माने? वो सच में विजयपथ पे विजेता बन गया था. जीवन में पहली ही वासना खेल में उसने एक सुंदरी का कामरस निकाल ले उसको चखा जो था. भले ही उसके जीभ ने ये कारनामा किया हो पर उफान में तो उसका लंड ही था जो अब उसके नियंत्रण से बाहर निकल गया था.

रस तो किशोरीलाल के भव्य बंगले में एक आलिशान बिस्तर पे बहा था वैसे ही सुलेमान के झोपडी में भी एक खाट पे बहने वाला था. सत्तू मादरजाद अपने कगार पे खड़ा था. उसका मुसल लंड कब से सलमा का मूह रोंद रहा था. सलमा के गले तक उसके लंड ने अपनी मौजूदगी करवाई थी. सोयी हुयी सलमा के मूह में खुदका मुसल लंड घुसा-घुसा के वो उसका कोना कोना चोद रहा था. पुरे लंड पे उसकी थूक चढ़ गयी थी, लंड की नसे पहले से ज्यादा तन गयी थी और सलमा का गला सुख के मरे पडा हुआ था.

“आह...रंडी...चुस....” गल्प.. गल्प .. खस खस,... हचाक गचाक से लंड मुह को चोदे जा रहा था. और इसी चुदम चुदाई में सत्तू ने भी अपना वीर्य निकाल दिया.

“आह,....सलमा.अ........रंडी......आया....”

सलमा ने पूरी ताकद उसका लंड अपने मूह से निकाला उसको जोर से खासी आई. पर वह तो....ढेर सारा वीर्य थूक से लदबद पलक झपकते ही उसके देहाती खुबसूरत सावले पसीने से ढके मूह पे सररर बोलके बह गया . उसके मूह पे , नाक पे उस वीर्य की बारिश को जगह मिली. सलमा के बालो पर भी कुछ बुंदे छा गयी. सत्तू बड़े सुकून की आह भर भर के धार छोड़े जा रह था और सलमा का मूह को किसी कारागीर की तरह अपने वीर्य से रंग रहा था. सलमा के चेहरे पे अपना लंड मलते हुए सत्तू संतुष्टता से बोल पड़ा,

“रंडी...आज तूने कमाल कर दिया..खुश कर दिया...छिनाल..चल साफ़ कर लंड को फिर सुलेमान को थोडा सरकता हु तेरे जिस्म पे से...”

सलमा की तरफ वो ही चारा था. उसने बची अपनी ताकद से सत्तू का लंड अपने मूह में भर दिया और उसको जबान से साफ़ करने लगी. उसको बाहर निकाल के आस पास से चाट कर साफ़ करने लगी. सत्तू उसको देखके मन से हस पड़ा. और थोडा सा सुलेमान को धक्का देकर वही ज़मीन पे निढाल होकर गिर पड़ा.
वीर्य से भरा पूरा चहरा और पसीने से लदबद शरीर को सँभालते देहाती कमसीन सलमा भी वही थक के ढेर हो गयी. बस वो होश में थी पर थकान से कमजोर हो गयी थी. उसने जब नज़र दौड़ाई तो उसको दोनों कलुटे तो जैसे घोड़े बेचके ऐसे पड़े हुए दिखे मानो अब महीनो बाद वो जागने वाले हो. खैर झोपडी में सन्नाता छा गया और बारिश की बुँदे टपकती छत से सलमा के बदन पे गिरने लगी.

दोनों तरफ वासना संतुष्ट हो चुकी थी. सब एक दुसरे को भोग के सुन्न गिर पड़े थे. पर शायद कोई था जो अभी भी तड़प रहा था. वो था रफीक का कमसिन लंड.
जैसे कोई बच्चा किसी चोकोलेट के लिए बचपना करता हैं. वैसे ही कुछ बचपना रफीक का लंड उसके दिमाक से कर रहा था. वो तो उसकी जबान से भी खुद्को बेनसीब समझा रहा था. उसके बचपने से फिर से रफीक असमंजस में गिर गया और वही बैचनी ने उसके विचारों को फिर से जागृत कर दिया.

पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..जा आगे
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..तू बस मत कर
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और तू सोच मत..जा अब तक कुछ हुआ क्या ?
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...

दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. लेकिन कहते हैं न बूढ़े की तजुर्बा और बच्चे का बचपना इसको कोई जवाब नहीं होता. वही हुआ खुदके लंड के बचपने से तंग नवयुवक रफीक ने फिर से आँखे बंद कर के ऊपर वाले से मिन्नत की,

“य..एक बार...बस एक बार...फिर कभी नहीं...अम्मी की कसम”

अपनी सौतेली मा की कसम ले के उसने आँखे खोली. सामने थी सुंदरी महिला नींद में ढेर और उसकी खुली पड़ी चूत. एक बार खड़ा होकर उसने उसको गौर से देखा और अपने लंड को हाथ में मलते हुए उसके बाजू में बहुत धीरे से जा के सो गया. अब बस उसके सामने था काव्या का कामुक महकता जिस्म और खुली पड़ी बेत्ताब चूत.
पर बहुत देर से तना अनुभव से कम नवयुवक का लंड इस क्रिया के लिए सच में तैयार था? ये सवाल का जवाब तो आने वाला वक़्त ही बता सकेगा. खैर बहुत बड़ी हिम्मत दिखाई थी इस नवयुवक ने जो उसके डर को हौले हौले मिटा रही थी.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 03:27 PM



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