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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#21
अपने थूक और जुबान से काव्या की योनी में रफीक ने अपना डेरा जमाया था. २० साल का ये नवयुवक किसी अनुभवी नर जैसे खुदको इस्तेमाल कर रहा था. जीवन में प्रथम किसी महिला की योनी को स्पर्ष करने से उसका स्वाद लेने तक का अनुभव उसको मिल गया था. वो भी किस्मत में जब ऐसी राजसी महिला हो तो क्या कहना. जिसके कोने कोने में सुन्दरता और मादकता का पंचम रस का समावेश हो. जहा भी मुख डालो वह से कुछ न कुछ ज़रूर आनंद मिले ऐसे मादक और सुन्दर शरीर की देवी उसके सामने थी. जिसने उसके काम जीवन का आरम्भ में ही उसको प्रसन्न होके कोई वरदान दिया हो.
अपने जवान काम वासना और प्रेम भाव में डूबा ये नवयुवक इस सुंदरी के सबसे अनमोल शरीर का बड़े ही विलोभनीय अंदाज़ से भोग कर रहा था. उसके मूह में योनी का स्वाद अब पूरा उतर गया था. और साथ ही उसका जवान लंड उस स्वाद से, उस अनुभव से उछल उछल के उच्चतम शिखर पे जा पहुंच गया.

लालसा न हो वो वासना कैसे? बस यही तो हो रहा था वहा. रफीक की लालसा काव्या की और बढ़ रही थी. छूने से ले कर महसूस कर ने तक, अब वो स्वाद भोगने तक पहुच गयी तो थी. पर अभी भी कही कुछ सूनापन उसके दिमाग को टटोल रहा था. वो था उसके नवजीवन भाव से भरा पड़ा कमसिन लंड और उसकी भूक. इसी लालसा भरे विचारो ने फिरसे उसके उलझे मनों को प्रश्नों के आहट से जगा डाला.

पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..गाओ में से निकल देंगे तुमको...रुको
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और क्या करने वाले लोग...जा मजे कर..
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...
दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. पर कहते हैं न बहुमत की सरकार होती हैं वैसे ही उसका बहुमत पहले मत की और था. क्योंकि उसकी वासना और झूम के तना हुआ लंड उसके पक्ष में खड़े थे. जो उसके दिमाग की मा चुदा रहे थे.

दूसरी तरफ सत्तू सलमा का कब से मूह चोदे जा रहा था. मुसल लंड पूरा उसके थूक से भीग गया था. सलमा भी खुद से उसका लंड चुसे जा रहा थी. सुलेमान का सांड जैसा शरीर का बोझ उठाके उसके मूह से लेक्र पुरे शारीर पे पसीना बिखर गया था. चेहरे पे बाल बिखर रहे थे. सच में आज किसी पक्की रंडी की माफिक वो लग रही थी. उसके नाजुक देहाती होठ सत्तू के लंड को रगड़ खा रहे थे और जुबान उसके टोपे को छेड़ रही थी. उसके लंड के झाटे तक थूक से लद बद हो गए थे. सबके कारण उसके लंड की नसे तन रही थी और, वो और लंड फुल कर चरम उसकी सीमा पर बढ़ रहा था. सत्तू हर उसके दबाव का आनंद अपनी आँखे बंद किये हुए होठो पे संतुष्टता के भाव लिए उठा रहा था.
पर वासना के पुजारी ये कलुटे शांत रहे तो कैसे? जब मादरजाद ने अपनी आँखे खोली तो उसको और एक पाशविक बात सूझी. उसने सलमा का दूध कस के मसलते हुए कहा...

“आह....रंडी....आह....तनिक निचे की गोटीया भी ली लो तोहार मूह में....चोद दो आज.....”

उसने बिना समय गवाए सलमा के बालो को खींचकर अपना लंड उसके मूह से निकाल के निचे की गोटियों को सलमा के खुले मूह में ठूस दिया. और बहुत जोर से शैतानी हसी हस दि.

“आह....छिनाल...इसको भी चूस...”

सलमा ने उनको चूसते-चूसते उसकी और इस बार भी गुस्से से देखा पर वैसे ही उसने अपना ध्यान अपने मुखमैथुन पे केन्द्रित किया ठीक जैसे रफीक ने किया था. नारी हो या नर ध्यान वही था जहा वासना का पगडा भरी था. यहाँ पर भी बहुमत का पक्ष काम वासना ने जीत लिया.

दोनों मनो की बात सुन के, रफीक ने सोचा क्यों न बस एक बार काव्या की योनी को बाहर से लंड से छू दिया जाए. बस इतना एक बार करने थोड़ी कुछ होगा? बस एक बार अम्मी की कसम. एक बार करवादे खुदा. फिर से मिन्नते मांगते मांगते कब उसकी जुबान काव्या के चूत के और अन्दर की और फिसल गयी उसको समझा ही नहीं. और ऐसा ही कुछ आगे हो गया जैसे उसकी मन्नत कबुल की गयी हो.

“उम्म्म......रमण......आऊच......याह”

एक जोर की सिसक काव्या ने छोड़ दी. नींद में उसके ये भाव देख के लग रहा था नवयुवक के खेलो ने अपना गहरा जादू उसके ऊपर चलाया दिया हो. उसकी मन्नत काबुल हो गयी हो. वासना के सपनो में खोयी काव्या नींद में सब लुफ्त उठा रही थी सिर्फ उसका साथी रमण था. शायद उसके लिए भी ये अनुभव नया था. उसका बिजी रहनेवाल पति रमण जो कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था शायद ही उसने उसकी राजसी योनी को इस कदर चखा हो जैसे ये नवयुवक चुसे रहा था. इसीका असर ये हुवा के काव्या का बाया हाथ अपने आप ही उसके योनी की और सरक गया. और उसकी उँगलियाँ योनी के ऊपर आ गयी ठीक रफीक के मूह निचे.

रफीक उसकी हर एक हरकत गौर से देख रहा था. क्या नजारा बन गया था. काव्या की ऊँगली खुद होक उसके योनी में प्रवेश कर रही थी. तभी जैसे कोई शिकारी शिकार पास आते हु उसपे टूट पड़े वैसे रफीक ने उसकी ऊँगली को अपने मूह में भींच लिया. और उसको भी चूत के साथ चाटना शुरू किया.
नाजुक उंगलिया, नरम गरम चूत दोनों को मजे से और धीरे धीरे चाटते उसकी थूक और चूत का रस दोनों एक दुसरे में मिल रहा थे. इन सबे से उसको संभाले नहीं जा रहा था और तभी उसने अपना दूसरा हाथ अपने लंड पे ले लिया और उसकी चमड़ी को आगे पीछे करना चालू कर दिया.

“उम.......याह,.....ऊऊऊऊम्म्म्म..बेबी...”

काव्या की आहे उसकी हर हरकत से तेज़ हो रही थी. काव्या की बाये हाथ की ऊँगली अब उसके मूह में चली गयी. ठीक उस पोर्न फिल्म कि तरह प्रतित हो रहा था. जिसमे मोडल का एक हाथ चूत पे और एक हात मूह में हो. रफीक ये सब देख बेकाबू हो रहा था. और उससे भी बुरी हालत उसके लंड की थी. जिसको को मल रहा था.

वही सलमा की हालत भी कहा सस्ता थी. सत्तू मादरजाद झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. लग रहा था देसी दारू का नशा उसके लंड में उतर गया हो. सलमा ने उसका लंड को हाथ में समेटा और उसकी टोपी पे थूक दिया. बड़े कामुकता से उसको मूह में फिर से डाल दिया. और अपने होठो से ऊपर से निचे पूरी तरह से सरकाना चालू कर दिया. उसके लंड की गोटियों को वो बड़े मन लग्गाए चूस रही थी. जैसे उसने प्रतिज्ञा ली हो इस बार वो उसका पानी निकल के दम लेगी. इस चाल से सत्तू ने भी एक आह छोड़ी.

“आः.....छिनाल....चूस...”

दोनों तरफ चुसना और चुसाना अपने चरम सीमा पर पहुँच गया था.. दोनों तरफ सिसक, आन्हे तेज़ हो रही थी. और जल्दी ही किसी भी समय कामुकता का रस दोनों के मूख में बारिश की तरह बरसने वाला हो. किसी अलग अंदाज से देखे तो लग रहा था ये काम वासना की यह सर्जिकल स्ट्राइक कभी भी अपने मुकाम पे विजय प्राप्त कर सकती हैं.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 02:43 PM



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