25-08-2020, 02:25 PM
यहाँ दूसरी और सुलेमान के पलंगतोड हमलो से सलमा की योनी में सिरहन आने लगी. थोड़ी देर बाद सुलेमान ने अपना लंड निकाला और उसकी चूत में सपाक बोलके ऐसा भींच दिया मानो कोई तलवार। उसकी चूत इतनी गीली हो गयी थी कि लंड उसकी चूत में जड़ तक समा गया। उसने जोर से सिसकारी भरी और सुलेमान को अपनी बांहों में जकड़ लिया। सुलेमान ने और तेजी से धक्के मारना चालू कर दिया। हर धक्के पर उसकी सिसकारियाँ तेज होती जा रही थी। इस लम्बी हुई चुदाई से एकदम से उसका बदन थरथराया और उसने कस कर सुलेमान की पीठ पर नाख़ून गाड दिए. सत्तू का लंड अपने एक हाथ में मसलते हुए उसने अपनी आँखे बहुत जोर लगाके मीटा दी और अपने होठ चबाके एक आह भरी...
“आह....अम्मी....मई तो गयी......”
यहाँ सलमा ने अपना पानी छोड़ दिया था. वो झड गयी थी. उसके बुर में से उसका काम रस रिस होकर बह उठा जो सीधे सुलेमान के लंड के ऊपर से चलते होके खाट पे बह गया. वो निढाल होकर ढेर हो गयी. अब सुलेमान भी अपने चरम सीमा पर था. आधे घंटे से वो सलमा को चोदे जा रह था. उसका भीगा लंड अब अकड़ कर फुल रहा था. सलमा को उसके गरम फुलेहुये लंड की हलचल अपने योनि में महसूस हो गयी.
महसूस तो रफीक को भी बहुत कुछ हो रहा था सलमा की तरह. बस एकतरफ शोर का माहोल था और दूसरी तरफ वीराने का. एक तरफ बदन से बदन घिस रहा था तो दूसरी तरफ एक हल्का सा स्पर्श मिल रहा था. कितने अलग दृश्य थे दोनों भी. एक तरफ तूफ़ान था तो दूसरी तरफ पहल. एक तरफ अंत था तो एक तरफ प्रारंभ. जहा सुलेमान नोच-नोच के देहाती खाना खा रहा था और एक तरफ रफीक जो फुक-फुक के शाही दावत का लुफ्त उठा रहा था. पर दोनों में एक बात एक जैसी थी और वो थी “काम वासना” जो उस वक़्त अपने शिखर पर विराजमान थी.
रफीक अब ज़रासा निचे हटा काव्या के पेट को देख बैठा. उसकी लालसा और बढ़ गयी थी. वो हल्का सा निचे आया और अपने होठो से उसके पेट की एक चुम्मी ले ली. वो जैसे दूसरी दुनिया में चले गया. उसको कुछ होश नही रहा. भरपूर जवानी और खूबसूरती से भरी पड़ी राजसी शहर की महिला उसके लिए मानो एक ऐसे बला थी जिसको वो प्यार करना चाहता था, और शोषण भी. बड़े आराम से वो उसके बदन की खुशबू और गर्मी को सेक रहा था. उसके मुलायम बदन के कोने कोने को वो चाटना चाहता था. उसने वैसे ही काव्या के बदन से अपना बदन धीरे से लपेट लिया. और अपने कानो से उसकी धड़कन की आवाज को सुनने लगा.
उसके लिए ये सब अनुभव नए थे. वो नया खिलाडी था इसलिए खुद ही कभी हिम्मत दिखाता और कभी कमजोर गिर जाता. दोहरे परेशानी में उसको काव्या का बदन आत्मविशवास की शक्ति प्रदान कर रहा था. उसने काव्या के बदन से लिपटे हुए बहुत ज्यादा आनन्द प्राप्त हुआ. शायद ये बड़ा फर्क था सुलेमान और रफीक में. सुलेमान ने कभी किसी औरत को ऐसी नज़र से नहीं देखा था वो सिर्फ उनको चखना चाहता था. वहि रफीक उसका अराम से स्वाद लेना चाहता था. सुलेमान को काव्या एक रंडी की तरह लगती थी जिसको वो अपने निचे सुलाके उसको अपने लंड से तडपाना चाहता था ठीक जैसे वो सलमा को चोद रहा था, रगड़ रहा था. पर रफीक एक नवयुवक था उसके दिल में प्रेम के भाव जाग रहे थे. काव्या उसको किसी गुडिया की तरह लग रही थी. जिसके वो बाल बनाना चाहता था, श्रृंगार कराना चाहता था, उसको नेह्लाके उसको कपडे पह्नाके एक दम दुल्हन की तरह सजा धजा के प्यार करना चाहता था. उसके साथ मनपसंद भोजन करना चाहता था, खेलना चाहता था. उसको लिपट के सोना चाहता था. गहरी नींद में सोयी हुयी काव्या उसको उस मादक और खुबसूरत सेक्स डॉल की तरह लग रहि थी जिसके साथ वो अपनी हर तमन्ना पूरी कर सके.
अपने मन में प्रेम के असीम भाव जगाकर रफिक को बहुत सुकून मिल रहा था. उसके अंतर्मन में प्रेम के उच्त्तम भाव जग रहे थे. उसके लिए काव्या उस वक़्त सबसे नाजुक सुंदरी थी और उसके लिए बस उसको संभाल के रखना ही मानो जिम्मेवारी थी. ब्यूटी एंड बीस्ट के माफिक एक नाजुक रिश्ता उमढ रहा था. किन्तु मनुष्य को ये पता ही नहीं चलता के कब वो प्रेम के इस कोमल भाव से वासना के सख्त भाव पे परिवर्तित हो जाता हैं. प्रेम जहा राफिक को काव्या से ऊर्जा दे रहा था वहि वासना अब उसको उसी उर्जा से उकसा रही थी. और हुआ यही रफीक ने अपने आखे खोली और उसकी नज़रे काव्या की जान्घो पे फिर से आ गयी. काव्या सोयी भी ऐसी थी के उसके अंतरपटल साफ़ दिख रहे थे. जो रफीक के प्रेम का मजाक उड़ा रहे थे. उसकी हालात ऐसी हो गयी थी के मानो किसी भूके के सामने चिकन तंदूर रखा हो और उस दिन उपवास आ जाये. खैर काव्या की सुन्दरता और मादकता के सामने एक बार फिर उसने घुटने टेक दिए और उसने उस भूके इंसान के तरह अपना हाथ बड़ी निडरता से काव्या की जांघो की और फिर से मोड़ दिया.
बहुत धीरे से उसने उसका पेटीकोट और ऊपर की और ढकेला. उसकी धड़कने तेज़ हो गयि थी. फिर भी उसका तना हुआ लिंग उसको धीरज दे रहा था. उसका मूह और उसकी आखे जाने कितने समय से खुली थी. पेटीकोट पूरा ऊपर हो गया था उसकी मेहनत को फल मिल गया. काव्या की पूरी पयांटी उसके आँखो के सामने थी. गोरी दूध जैसे जांघो में उसकी ब्रांडेड निकर उसके खूबसरती को चार चाँद लगा रही थी. किसी सेक्सी मॉडल की तरह वो उस समय प्रतित हो रही थी. इतने सुडोल पैर, जांघे और निकर में उभरी हुई चूत देखके रफीक की तो किस्मत सवार गयी. पोर्न फिल्मो में उसने अभी तक ऐसे दृश्य देखे थे. आज बड़ा ही वो खुदको किस्मतवाला समझ रहा था. उसको छूने की लालसा जाग रही थी. कामूक किताबे. पिक्चरे देख के उसका मन हर उस बात से अवगत था जो पूर्ण रूप से आनंद दान दे सके.
“आह....अम्मी....मई तो गयी......”
यहाँ सलमा ने अपना पानी छोड़ दिया था. वो झड गयी थी. उसके बुर में से उसका काम रस रिस होकर बह उठा जो सीधे सुलेमान के लंड के ऊपर से चलते होके खाट पे बह गया. वो निढाल होकर ढेर हो गयी. अब सुलेमान भी अपने चरम सीमा पर था. आधे घंटे से वो सलमा को चोदे जा रह था. उसका भीगा लंड अब अकड़ कर फुल रहा था. सलमा को उसके गरम फुलेहुये लंड की हलचल अपने योनि में महसूस हो गयी.
महसूस तो रफीक को भी बहुत कुछ हो रहा था सलमा की तरह. बस एकतरफ शोर का माहोल था और दूसरी तरफ वीराने का. एक तरफ बदन से बदन घिस रहा था तो दूसरी तरफ एक हल्का सा स्पर्श मिल रहा था. कितने अलग दृश्य थे दोनों भी. एक तरफ तूफ़ान था तो दूसरी तरफ पहल. एक तरफ अंत था तो एक तरफ प्रारंभ. जहा सुलेमान नोच-नोच के देहाती खाना खा रहा था और एक तरफ रफीक जो फुक-फुक के शाही दावत का लुफ्त उठा रहा था. पर दोनों में एक बात एक जैसी थी और वो थी “काम वासना” जो उस वक़्त अपने शिखर पर विराजमान थी.
रफीक अब ज़रासा निचे हटा काव्या के पेट को देख बैठा. उसकी लालसा और बढ़ गयी थी. वो हल्का सा निचे आया और अपने होठो से उसके पेट की एक चुम्मी ले ली. वो जैसे दूसरी दुनिया में चले गया. उसको कुछ होश नही रहा. भरपूर जवानी और खूबसूरती से भरी पड़ी राजसी शहर की महिला उसके लिए मानो एक ऐसे बला थी जिसको वो प्यार करना चाहता था, और शोषण भी. बड़े आराम से वो उसके बदन की खुशबू और गर्मी को सेक रहा था. उसके मुलायम बदन के कोने कोने को वो चाटना चाहता था. उसने वैसे ही काव्या के बदन से अपना बदन धीरे से लपेट लिया. और अपने कानो से उसकी धड़कन की आवाज को सुनने लगा.
उसके लिए ये सब अनुभव नए थे. वो नया खिलाडी था इसलिए खुद ही कभी हिम्मत दिखाता और कभी कमजोर गिर जाता. दोहरे परेशानी में उसको काव्या का बदन आत्मविशवास की शक्ति प्रदान कर रहा था. उसने काव्या के बदन से लिपटे हुए बहुत ज्यादा आनन्द प्राप्त हुआ. शायद ये बड़ा फर्क था सुलेमान और रफीक में. सुलेमान ने कभी किसी औरत को ऐसी नज़र से नहीं देखा था वो सिर्फ उनको चखना चाहता था. वहि रफीक उसका अराम से स्वाद लेना चाहता था. सुलेमान को काव्या एक रंडी की तरह लगती थी जिसको वो अपने निचे सुलाके उसको अपने लंड से तडपाना चाहता था ठीक जैसे वो सलमा को चोद रहा था, रगड़ रहा था. पर रफीक एक नवयुवक था उसके दिल में प्रेम के भाव जाग रहे थे. काव्या उसको किसी गुडिया की तरह लग रही थी. जिसके वो बाल बनाना चाहता था, श्रृंगार कराना चाहता था, उसको नेह्लाके उसको कपडे पह्नाके एक दम दुल्हन की तरह सजा धजा के प्यार करना चाहता था. उसके साथ मनपसंद भोजन करना चाहता था, खेलना चाहता था. उसको लिपट के सोना चाहता था. गहरी नींद में सोयी हुयी काव्या उसको उस मादक और खुबसूरत सेक्स डॉल की तरह लग रहि थी जिसके साथ वो अपनी हर तमन्ना पूरी कर सके.
अपने मन में प्रेम के असीम भाव जगाकर रफिक को बहुत सुकून मिल रहा था. उसके अंतर्मन में प्रेम के उच्त्तम भाव जग रहे थे. उसके लिए काव्या उस वक़्त सबसे नाजुक सुंदरी थी और उसके लिए बस उसको संभाल के रखना ही मानो जिम्मेवारी थी. ब्यूटी एंड बीस्ट के माफिक एक नाजुक रिश्ता उमढ रहा था. किन्तु मनुष्य को ये पता ही नहीं चलता के कब वो प्रेम के इस कोमल भाव से वासना के सख्त भाव पे परिवर्तित हो जाता हैं. प्रेम जहा राफिक को काव्या से ऊर्जा दे रहा था वहि वासना अब उसको उसी उर्जा से उकसा रही थी. और हुआ यही रफीक ने अपने आखे खोली और उसकी नज़रे काव्या की जान्घो पे फिर से आ गयी. काव्या सोयी भी ऐसी थी के उसके अंतरपटल साफ़ दिख रहे थे. जो रफीक के प्रेम का मजाक उड़ा रहे थे. उसकी हालात ऐसी हो गयी थी के मानो किसी भूके के सामने चिकन तंदूर रखा हो और उस दिन उपवास आ जाये. खैर काव्या की सुन्दरता और मादकता के सामने एक बार फिर उसने घुटने टेक दिए और उसने उस भूके इंसान के तरह अपना हाथ बड़ी निडरता से काव्या की जांघो की और फिर से मोड़ दिया.
बहुत धीरे से उसने उसका पेटीकोट और ऊपर की और ढकेला. उसकी धड़कने तेज़ हो गयि थी. फिर भी उसका तना हुआ लिंग उसको धीरज दे रहा था. उसका मूह और उसकी आखे जाने कितने समय से खुली थी. पेटीकोट पूरा ऊपर हो गया था उसकी मेहनत को फल मिल गया. काव्या की पूरी पयांटी उसके आँखो के सामने थी. गोरी दूध जैसे जांघो में उसकी ब्रांडेड निकर उसके खूबसरती को चार चाँद लगा रही थी. किसी सेक्सी मॉडल की तरह वो उस समय प्रतित हो रही थी. इतने सुडोल पैर, जांघे और निकर में उभरी हुई चूत देखके रफीक की तो किस्मत सवार गयी. पोर्न फिल्मो में उसने अभी तक ऐसे दृश्य देखे थे. आज बड़ा ही वो खुदको किस्मतवाला समझ रहा था. उसको छूने की लालसा जाग रही थी. कामूक किताबे. पिक्चरे देख के उसका मन हर उस बात से अवगत था जो पूर्ण रूप से आनंद दान दे सके.