25-08-2020, 02:24 PM
यहाँ सुलेमान धक्के पे धक्के मार रहा था. २० मिनट होने को थे लेकिन वो तो झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. चुदाई का जैसे कोई भूत उसपे सवार हो गया था. ये सब देख सत्तु नशे में धूत, बाजु में ही खुदका लंड हिलाते हुए खड़ा का खड़ा देख रहा था.
“गुरु...बस भी करो...हमका भी खाने दो माल...”
सुलेमान अपने धक्के चालू रखते हुए वैसे ही हाफ्ते हाफ्ते बोला, ”अबे मादरचोद...रुक ..आज साला मन नहीं कर रहा रुकने का..आआह्ह...आज खाने दे..डोक्टोरनी ने आग लगा दी हैं...आह..”
उसके मूह से डोक्टोरनी का नाम सुनते ही सलमा को थोडा समझने लगा. और उसका शक यकीन में बदल गया. दोनों कलूटो ने क्यों इतनी दरियादिली दिखाई थी काव्या के प्रति इसका राज उसको पता चल गया. ये सब बाते जानकार नशे में धूत सलमा गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने चुदते-चुदते ही सुलेमान की और देख बोला,
” आः....आ...कुत्ते..इसलिए ये सब चल रहा हैं...आःह्ह...तो बीबी जी की ले न...मेरी क्यों ले रहा हैं..आह...अम्मी......”
२० मिनट से लगातार धक्के खाती हुयी सलमा अटक अटक के बड़े कामुक अंदाज़ में गुस्से से सब बोल रही थी. पर इसका परिणाम होता उल्टा. उसकी ऐसी बाते सुनके असलम को और ज्यादा जोर आता. वो हर आगे का धक्का पिछेवाले से जोर से लगाता. और उसका हिसाब बराबर करता. उसने अपने धक्को की रफ़्तार बधाई और बोला,
“आह्ह,,,ये ले मेरी सलमा रानी...अब उस रंडी को भी चोदुंगा..पर पहले ..आः....तेरी चूत तो खाने दे..”
और एक जोर का धक्का लगाके उसने सलमा की चूत के कोने कोने में अपनी मौजूदगी दिखा दी. झोपडी में आहो की चीखों की आवाजे घूम रही थी. शराब की बदबू और शबाब की खुशबू से वो समा इतना मादक बन गया था के मत पूछो. सलमा भी अब खुद होके इन सब का मजा ले रही थी. उसको ये सब पसंद आने लग रहा था. जो नफरत उसको एक घंटे पहले आ रही थी अब वो नफरत वासना में परिवर्तित हो गयी थी. इसमें कारन सुलेमान था के काव्या थी ये बड़ी रोचक बात हैं. सुलेमान से हो रही चुदाई को देख उसको ये भी लगने लगा था के सुलेमान के इस रफ़्तार को रोकना हैं तो उसीको ही कुछ करना पड़ेगा.
झोपडी से ठीक उल्टा समा काव्या के रूम में था. एकदम सन्नाटा और ठंढी शीतल हवाओं से वह सब तरफ एक अलग ही रम्यता आई हुई थी. उस वक़्त अगर वह कोई चीज शोर कर रही थी तो वो थी रफीक के दिल की धड़कने. अपने धड़कने और कापते हाथो को संभाल के वो काव्या का रूप पूरी सयमता से निहार रहा था. उसकी पिंडलिया जांघो से लेकर पीठ तक की खूबसूरती उसके जवान लंड में उतर रही थी. पर ये सयमता का बाँध टूटने जा रहा था. उसके मूह में पानी तो आ रहा था लेकिन हाथ काप रहे थे.
उसने थोड़ी हिम्मत बढायी, चुपके से यहाँ वह देख वो काव्या के करीब गया. अपना एक हाथ उसने काव्या के पैर पे रखा. आह...क्या मुलायम पैर थे उसके. उसका हाथ थर थर काप रहा था. धड़कने इतनी तेज़ हो गयी थी के मानो वो दिल को चीर के बाहर आ जाये. काव्या के बदन की खुशबू उसको पागल बना रही थी और उकसाने का काम भी कर रही थी. उसने अपना हाथ वैसे ही उसके पिंडलियों पे थोड़ी देर के लिए रखा. और धीरे से उसके जांघो की तरफ उनका रूख मोड़ लिया.
थोडा आगे जाके वो थोडा और झुक गया. किसी सम्मोहन की तरह काव्या की जांघो को घूरता बैठा. काव्या की और से कोई हरकत ना देख उसकी हिम्मत और बढ़ी. और बड़े ही वीरता से उसने अपने दोनों हाथो से काव्या की जांघो को बहुत ही धीरे से पकड़ लिया. जसी उसने कोई किला जीत लिया हो. मुलायम, गोरी, दूध जैसे जाँघों को हाथ में लेते ही उसके लंड में बहुत ज्यादा तनाव आया गया. जीवन में पहली बार ऐसी रूप सुंदरी सामने देख और उसको छू कर उसकी हालत और ख़राब होने लगी जिसके कारण उसके मूह से सिसक निकल गयी.
”आह....”..
“आह....आह....सलमा...तेरी चूत की तो....आह....डोक्टोरनी.. आह...”
सुलेमान के धक्को को बर्दाश्त कर के सलमा भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी. अचानक उसनके वो किया जो उन दोनों ने पहली बार देखा. उसने अपने दोनों पाँव उठा लिए और सुलेमान की पेट के ऊपर जकड दिये. सत्तू ये देखकर चौक गया. सलमा का ये रूप उसने कभी नहीं देखा था. सलमा वही नहीं रुकी तो उसने सुलेमान का सर अपने हाथो में भींच कर के उसको अपने सीने से रगड़ के रखा. इस कारन सुलेमान के लंड में तनाव आना शुरू हो गया. क्योंकि सलमा अपने चूत में खुद होकर उसका लंड निगल रही थी.
“चोद..भड़वे...चोद...मिटा दे अपनी भूक...आः.....”
सलमा की ये बाते और उसका रूप देख सत्तू हस पड़ा. अपने नशे में धूत वो सलमा के करीब आ के बोल पड़ा,
“भूक तो तुझे भी लगी हैं रानी... अब बर्दाश्त हमका भी नहीं हो रहा चल पकड़...”
और अपना खड़ा लंड वही उसके हाथ में दे दिया. सलमा ने कोई देरी ना करते उसका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसको आगे पिच्छे करना चालू कर दिया. दृश्य बहुत ही विचित्र बन गया था. बड़े कामुकता से सलमा उसका लंड भी मसल रही थी और सुलेमान का लंड जकड भी रही थी. उसकी इस हरकत से दोनों कलूटो को असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी. ऐसा लग रहा था मनो दो नर एक मादी को भोगने चले हो लेकिन असल में मादी ही नरो का भोग करने बैठ जाए. ठीक ऐसे विलोभनीय कामुक अंदाज़ में काम वासना का चल चित्र वह प्रतीत हो रहा था. दोनों तरफ नारी ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही थी. वो थी उसकी सुन्दरता और कामुकता.
काव्या के जांघो से आती हुई खुशबू रफीक को पागल बना रही थी. वो उसको महसूस कर रहा था. उसको और ज्यादा करीब से वह मखमली जिस्म महसूस करना था. लेकिन उसको डर था कही काव्या जाग न जाए. उसकी संयमता की दाद देनी पड़ेगी. वो वह से उठ गया और काव्या के चेहरे की तरफ चला गया. एक बार उसने काव्या को थोडा सा कंधे से हिलाया, या मानो, सीर्फ हलकासा स्पर्श किया के कही वो अगर जागी हो तो समझ जाए.
किन्तु दिनभर की थकान से ये युवती गहरी नींद में इस कदर डूब गयी थी के उसको अब किसी हाल की परवाह नहीं थी. रफीक की हिम्मत इससे बढ़ गयी. उसने अपना रुख फिर से काव्या के बदन की और मोड़ दिया.
उसके गोरे मुलायम पीठ पे जैसे ही उसने हाथ रखा. उसके अन्दर जकडन आने लगी. वो पागल हो गया क्या करू क्या नहीं. काव्या की सुन्दरता की और उसने घुटने टेक दिए. नौजवान युवक ने अपने होठ काव्या के पीठ पे लेके टिका दिए. वो तो उसको बाहों में भरना चाहता था पर उसकी हिम्मत उतनी ज्यादा नहीं थी. उस समय वो काप रहा था पर साथ ही काव्या के बदन से आती हर मादक खुशबू सूंघने में वो मशगुल भी था.
तभी एक हवा का झोका किसी बिन बुलाये मेहमान के भाति खिड़की से आया और काव्या ने अपना शरीर नींद में ही थोडा हिलाया.रफीक को मानो दिन में तारे दिख गए हो. वो वही जम कर अकड गया. पल भर के लिए उसको लगा के काव्या जाग ही गयी. वो हिल भी नहीं सकता था. वैसे ही काव्या की पीठ पे वो चिपक के वो चीपका रहा. कुछ समय के लिए उसने अपनी साँसे तक रोक ली, पर काव्या तो गहरी नींद में थि बस ये हवा का झोका शायद उसको नींद में छेड़ने के लिए आया हो. कोई हलचल न देख राहत से रफीक ने अपनी रुकी हुयी गरम सांसे काव्या की पीठ पर ही छोड़ दी. पर काव्या जब हिली थी तब उसका पेट ऊपर की और आ गया और उसका गोरा मुलायम पेट साथ ही भरे भरे स्तन ब्रांडेड ब्रा में कैद रफीक की नजरो के सामने आ गए.
“आह....ले रंडी...आह....और ले...”
“गुरु...बस भी करो...हमका भी खाने दो माल...”
सुलेमान अपने धक्के चालू रखते हुए वैसे ही हाफ्ते हाफ्ते बोला, ”अबे मादरचोद...रुक ..आज साला मन नहीं कर रहा रुकने का..आआह्ह...आज खाने दे..डोक्टोरनी ने आग लगा दी हैं...आह..”
उसके मूह से डोक्टोरनी का नाम सुनते ही सलमा को थोडा समझने लगा. और उसका शक यकीन में बदल गया. दोनों कलूटो ने क्यों इतनी दरियादिली दिखाई थी काव्या के प्रति इसका राज उसको पता चल गया. ये सब बाते जानकार नशे में धूत सलमा गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने चुदते-चुदते ही सुलेमान की और देख बोला,
” आः....आ...कुत्ते..इसलिए ये सब चल रहा हैं...आःह्ह...तो बीबी जी की ले न...मेरी क्यों ले रहा हैं..आह...अम्मी......”
२० मिनट से लगातार धक्के खाती हुयी सलमा अटक अटक के बड़े कामुक अंदाज़ में गुस्से से सब बोल रही थी. पर इसका परिणाम होता उल्टा. उसकी ऐसी बाते सुनके असलम को और ज्यादा जोर आता. वो हर आगे का धक्का पिछेवाले से जोर से लगाता. और उसका हिसाब बराबर करता. उसने अपने धक्को की रफ़्तार बधाई और बोला,
“आह्ह,,,ये ले मेरी सलमा रानी...अब उस रंडी को भी चोदुंगा..पर पहले ..आः....तेरी चूत तो खाने दे..”
और एक जोर का धक्का लगाके उसने सलमा की चूत के कोने कोने में अपनी मौजूदगी दिखा दी. झोपडी में आहो की चीखों की आवाजे घूम रही थी. शराब की बदबू और शबाब की खुशबू से वो समा इतना मादक बन गया था के मत पूछो. सलमा भी अब खुद होके इन सब का मजा ले रही थी. उसको ये सब पसंद आने लग रहा था. जो नफरत उसको एक घंटे पहले आ रही थी अब वो नफरत वासना में परिवर्तित हो गयी थी. इसमें कारन सुलेमान था के काव्या थी ये बड़ी रोचक बात हैं. सुलेमान से हो रही चुदाई को देख उसको ये भी लगने लगा था के सुलेमान के इस रफ़्तार को रोकना हैं तो उसीको ही कुछ करना पड़ेगा.
झोपडी से ठीक उल्टा समा काव्या के रूम में था. एकदम सन्नाटा और ठंढी शीतल हवाओं से वह सब तरफ एक अलग ही रम्यता आई हुई थी. उस वक़्त अगर वह कोई चीज शोर कर रही थी तो वो थी रफीक के दिल की धड़कने. अपने धड़कने और कापते हाथो को संभाल के वो काव्या का रूप पूरी सयमता से निहार रहा था. उसकी पिंडलिया जांघो से लेकर पीठ तक की खूबसूरती उसके जवान लंड में उतर रही थी. पर ये सयमता का बाँध टूटने जा रहा था. उसके मूह में पानी तो आ रहा था लेकिन हाथ काप रहे थे.
उसने थोड़ी हिम्मत बढायी, चुपके से यहाँ वह देख वो काव्या के करीब गया. अपना एक हाथ उसने काव्या के पैर पे रखा. आह...क्या मुलायम पैर थे उसके. उसका हाथ थर थर काप रहा था. धड़कने इतनी तेज़ हो गयी थी के मानो वो दिल को चीर के बाहर आ जाये. काव्या के बदन की खुशबू उसको पागल बना रही थी और उकसाने का काम भी कर रही थी. उसने अपना हाथ वैसे ही उसके पिंडलियों पे थोड़ी देर के लिए रखा. और धीरे से उसके जांघो की तरफ उनका रूख मोड़ लिया.
थोडा आगे जाके वो थोडा और झुक गया. किसी सम्मोहन की तरह काव्या की जांघो को घूरता बैठा. काव्या की और से कोई हरकत ना देख उसकी हिम्मत और बढ़ी. और बड़े ही वीरता से उसने अपने दोनों हाथो से काव्या की जांघो को बहुत ही धीरे से पकड़ लिया. जसी उसने कोई किला जीत लिया हो. मुलायम, गोरी, दूध जैसे जाँघों को हाथ में लेते ही उसके लंड में बहुत ज्यादा तनाव आया गया. जीवन में पहली बार ऐसी रूप सुंदरी सामने देख और उसको छू कर उसकी हालत और ख़राब होने लगी जिसके कारण उसके मूह से सिसक निकल गयी.
”आह....”..
“आह....आह....सलमा...तेरी चूत की तो....आह....डोक्टोरनी.. आह...”
सुलेमान के धक्को को बर्दाश्त कर के सलमा भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी. अचानक उसनके वो किया जो उन दोनों ने पहली बार देखा. उसने अपने दोनों पाँव उठा लिए और सुलेमान की पेट के ऊपर जकड दिये. सत्तू ये देखकर चौक गया. सलमा का ये रूप उसने कभी नहीं देखा था. सलमा वही नहीं रुकी तो उसने सुलेमान का सर अपने हाथो में भींच कर के उसको अपने सीने से रगड़ के रखा. इस कारन सुलेमान के लंड में तनाव आना शुरू हो गया. क्योंकि सलमा अपने चूत में खुद होकर उसका लंड निगल रही थी.
“चोद..भड़वे...चोद...मिटा दे अपनी भूक...आः.....”
सलमा की ये बाते और उसका रूप देख सत्तू हस पड़ा. अपने नशे में धूत वो सलमा के करीब आ के बोल पड़ा,
“भूक तो तुझे भी लगी हैं रानी... अब बर्दाश्त हमका भी नहीं हो रहा चल पकड़...”
और अपना खड़ा लंड वही उसके हाथ में दे दिया. सलमा ने कोई देरी ना करते उसका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसको आगे पिच्छे करना चालू कर दिया. दृश्य बहुत ही विचित्र बन गया था. बड़े कामुकता से सलमा उसका लंड भी मसल रही थी और सुलेमान का लंड जकड भी रही थी. उसकी इस हरकत से दोनों कलूटो को असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी. ऐसा लग रहा था मनो दो नर एक मादी को भोगने चले हो लेकिन असल में मादी ही नरो का भोग करने बैठ जाए. ठीक ऐसे विलोभनीय कामुक अंदाज़ में काम वासना का चल चित्र वह प्रतीत हो रहा था. दोनों तरफ नारी ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही थी. वो थी उसकी सुन्दरता और कामुकता.
काव्या के जांघो से आती हुई खुशबू रफीक को पागल बना रही थी. वो उसको महसूस कर रहा था. उसको और ज्यादा करीब से वह मखमली जिस्म महसूस करना था. लेकिन उसको डर था कही काव्या जाग न जाए. उसकी संयमता की दाद देनी पड़ेगी. वो वह से उठ गया और काव्या के चेहरे की तरफ चला गया. एक बार उसने काव्या को थोडा सा कंधे से हिलाया, या मानो, सीर्फ हलकासा स्पर्श किया के कही वो अगर जागी हो तो समझ जाए.
किन्तु दिनभर की थकान से ये युवती गहरी नींद में इस कदर डूब गयी थी के उसको अब किसी हाल की परवाह नहीं थी. रफीक की हिम्मत इससे बढ़ गयी. उसने अपना रुख फिर से काव्या के बदन की और मोड़ दिया.
उसके गोरे मुलायम पीठ पे जैसे ही उसने हाथ रखा. उसके अन्दर जकडन आने लगी. वो पागल हो गया क्या करू क्या नहीं. काव्या की सुन्दरता की और उसने घुटने टेक दिए. नौजवान युवक ने अपने होठ काव्या के पीठ पे लेके टिका दिए. वो तो उसको बाहों में भरना चाहता था पर उसकी हिम्मत उतनी ज्यादा नहीं थी. उस समय वो काप रहा था पर साथ ही काव्या के बदन से आती हर मादक खुशबू सूंघने में वो मशगुल भी था.
तभी एक हवा का झोका किसी बिन बुलाये मेहमान के भाति खिड़की से आया और काव्या ने अपना शरीर नींद में ही थोडा हिलाया.रफीक को मानो दिन में तारे दिख गए हो. वो वही जम कर अकड गया. पल भर के लिए उसको लगा के काव्या जाग ही गयी. वो हिल भी नहीं सकता था. वैसे ही काव्या की पीठ पे वो चिपक के वो चीपका रहा. कुछ समय के लिए उसने अपनी साँसे तक रोक ली, पर काव्या तो गहरी नींद में थि बस ये हवा का झोका शायद उसको नींद में छेड़ने के लिए आया हो. कोई हलचल न देख राहत से रफीक ने अपनी रुकी हुयी गरम सांसे काव्या की पीठ पर ही छोड़ दी. पर काव्या जब हिली थी तब उसका पेट ऊपर की और आ गया और उसका गोरा मुलायम पेट साथ ही भरे भरे स्तन ब्रांडेड ब्रा में कैद रफीक की नजरो के सामने आ गए.
“आह....ले रंडी...आह....और ले...”