25-08-2020, 01:44 PM
सच में भारत देश की महिमा भी काफी अलग हैं. यहाँ लोग एकदूसरे के साथ प्रकृति, जानवर और चीजो को भी जोड़ लेते हैं. कितना एक हैं हम सब फिर भी लड़ते रहते हैं. प्रकृति तो अच्छी हैं पर मानव बदल गया हैं.
वो फूल ओने हाथो से उठाकर के अपनी पोती की तरफ देख कर नानी ने कहा, “जाओ काव्या, तुम आराम करो. थक गयी होगी. फिर शाम नजमा आएगी तब खाना खा लेते हैं”
“ओह सच नानी .. नजमा फूफा अभी भी हैं यहाँ “
“हां बेटी वो बेचारी कहा जायगी और अब ऐसे लोग मिलते भी नहीं “काव्या ने नानी को एक जोर की झप्पी दे दी और सीधे अपने रूम की तरफ निकल पड़ी.
“कमरा याद हैं न बेटी”
“हा दादी मैं कैसे भूलूंगी कितना खेलती थी मैं वहां बचपन में. आप आराम करो मैं खुद जाती हु”
“ओके बेटी. कुछ लगे तो आवाज दे न. घर में नौकर हैं मैं भी हैं वो नजमा का बेटा हैं आने वाला था शायद उसने साफ़ करके राखी होगी तुम्हारी खोली”
काव्या सीडिया चढ़ते हुए बोली “ओके नानी.. आप फ़िक्र मत करो मैं देखती हूँ”
उसका घर सबसे पुराना और बड़ा था उस गाँव में. उसके नाना जी को सब पहचानते थे. बड़ा रुतबा था उनका. पर उनके गुज़र जाने के बाद मकान सुना हो गया. अब वह सिर्फ नानी और नौकरानी नजमाँ और उसका बेटा रहते थे. नजमाँ एक पुराणी नौकरानी थी वो काव्या को बचपन से जानती थी.
जब काव्या २ साल की थी तबसे वो वह काम करती थी. वैसे तो नजमा पे काव्या के नाना का बहुत सारे उपकार थे. उसका पति शराब में गिरा हुआ था और वो किसी औरत के साथ भाग गया.. तबसे वो वापस नहीं आया था. उसके पति को एक बेटा था रफ़ीक. फिर उसीने उसको पला पोसा अपने बेटे की तरह रखा. उसके बाद यही सब वो काम कर लेती थी. कहा जाता हैं के वो जवानी में बहुत भरी हरी भरी थी. और रफ़ीक के बाप के भाग जाने के बाद काव्या के नाना ने भी उसको चोदा था. शायद उसी काम के लिए उन्होंने उसको काम पे रख लिया.
काव्या को वो अपने हाथो से खाना खिलाती थी, नेहलाती थी और सुलाया करती थी. अब वो ४२ साल की हो चुकी थी. पर आज भी वो गरम थी. उसका बदन भरा हुवा था. आज भी वो उसके पडोसी रहीम चाचा से चुदवाया करती हैं. रहीम चाचा जो ६० साल का अधेड़ बुजुर्ग आदमी हैं. वो उसके पड़ोस में ही एक जुग्गी में रहता था. रफ़ीक के साथ उसकी बहुत जमती थी. बुढा बड़ा ठरकी था. उसने नजमा को बेटी बेटी बोल के एक रात उसपे हाथ मार ही दिया. दिखने में तो वो ६० साल का था पर चुदाई करते टाइम उसने ४२ साल की विधवा नजमा की नस नस तोड़ दी थी.
उस रात के बाद नजमा उससे हफ्ते में एक बार तो चुदवा ही लेती थी. जब भी रफ़ीक दोस्तों के साथ रात-रात बाहर रहता यहाँ उसकी सौतेली माँ अपना बदन रहीम चाचा से सेक लेती थी. रहीम चाचा की भी बीवी नहीं थी. दोनों का हाल एक जैसा ही था. वो शहर में ब्रा-पेंटी बेचने का धंदा करता था. उसका मालिक उसको इस काम के बदले छोटी मोठी रकम देता था. उससे उसका गुज़ारा चल जाता था. देसी शराब और मुर्गी खाके सोना और अपने दमदार लंड से नजमा की कस कर चुदाई करना जैसा उसके जीवन का एक अंग हो गया था.
दादी से मुलाकात करके काव्या अपने रूम में चली गयी. वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको ज़र्ता पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. खैर अपनी बैग बीएड पे डालके उसने रूम की विंडो खोली. एक बड़ी विंडो थी. जिसको खोलते ही सूरज की रौशनी अन्दर आ गयी और गाँव की ताज़ी हवा के साथ. और काव्या ने चैन की एक लम्बी आह भरी.
वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको जादा पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. रफीक के बारे में बताया जाए तो, रफ़ीक एक २० साल का युवक था. उसको पता था के उसकी माँ किसी गैर मर्द से चुद्वाती हैं. उसने कही बार उसके कच्छी पे सफ़ेद दाग देखे थे. और जब वो छोटा था तबसे उसको भनक लगी थी के रात में उसकी माँ कहराति क्यों हैं. इन सभी बातो से उसके मन में बचपन से ही सेक्स से भरी बाते बैठ गयी थी. वो बहुत उसमे रूचि लेता था.
उसके मवाली दोस्त उसको गन्दी गन्दी चुदाई की किताबे देते थे. पर वो था बड़ा शर्मीला वो उनके सामने उसको देखता भी नहीं था. पर उसको खुद पता नहीं चला कब वो उनको पढके अपनि मूठ मारने लगा था. रफ़ीक का लंड भी बड़ा मजेदर था. ७ इंच का एकदम कोरा लंड था उसका. वो हर बार फिल्मी किताबे देखता था उसमे सुन्दर अभिनेत्रिओं के फोटो देखके अपनी मुठ मारता था. उसने कही बार ब्लू फिल्मे भी देखि थी. इन सब से वो एकदम मर्द बन गया था. ये उसे तब पता चला जब उसका लंड रात में अपनी माँ के गांड को देखे फूलने लगा था.भले ही नजमाँ की वो सौतेली संतान थी पर सलमा उसका ख्याल बहुत रखती थी.
बचपन से नजमा उसको अपने साथ ही रखके सब काम करती थी जैसे खाना पकाना, कपडे धोना, नहाना, सोना. बात तो इतनी ज्यादा थी के आज भी वो रफ़ीक को एक बच्चे की तरह समझती थी. आज भी रफ़ीक अपनी हरी भरी माँ को अगर मन चाहे तो उसके ३८ के बड़े बड़े मम्मो को चुसकर सोता था. और वो भी उसको बच्चे की तरह पिलाती थी. शायद उसको वो बच्चा ही लगता था पर फर्क था के रफ़ीक अब जरा बड़ा हो गया था और वो उसपे ज्यादा जोर लगाया करता था.
मर्द सम्भोग में मादी पे हावी हो ही जाता हैं. वो उसको भोगना चाहता हैं. भले ही आधुनिक युग में नारी को पूर्ण रूप से भोग विलास में किरदार निभाये दिखाते हैं फिर भी अंतिम सत्य यही हैं के सौंदर्य और नाजुकता नारी का प्रतिक हैं. और मर्द उसका भूका. ये नियम से रफीक भला कहा बचने वाला था. अब रात में सोते वक़्त रफ़ीक के अन्दर का मर्द उसको ललकार रहा था. दिन भर दिन उसके हरकते बढती जा रही थी. शायद उसको वो नहीं समझ रहा था पर नजमा भले भाति सब समझ रही थी. उसकी नज़रे नजमा के मम्मो से हटकर अब उसके साडी के अन्दर जाने लगी थी. और नजमा भी उस बात को अच्छी खासी जान चुकी थी. रात में रफ़ीक कभी उसको चिपक के सोता था तो अपना हाथ उसके साडी के अन्दर डालने की कोशिश करता था पर वो उसके हातो को भिन्च्के अपने सिने से लगा लेती थी. और उसको सुलाने के सब उपाय करती थी. बिना बाप के और गरीबी की वजह से उसके कदम कही बहक न जाये इसलिए उसको आज भी वो बच्चे की तरह संभालती थी. उसके शादी तक उसको कही गलत लत न लगे इसकी वो पूरी कोशिश करती थी. सौतेली संतान को इतना प्यार देने वाली नज्म को बचपन की तरह अब उसको सुलाना इतना आसान नहीं रह गया था.
वो फूल ओने हाथो से उठाकर के अपनी पोती की तरफ देख कर नानी ने कहा, “जाओ काव्या, तुम आराम करो. थक गयी होगी. फिर शाम नजमा आएगी तब खाना खा लेते हैं”
“ओह सच नानी .. नजमा फूफा अभी भी हैं यहाँ “
“हां बेटी वो बेचारी कहा जायगी और अब ऐसे लोग मिलते भी नहीं “काव्या ने नानी को एक जोर की झप्पी दे दी और सीधे अपने रूम की तरफ निकल पड़ी.
“कमरा याद हैं न बेटी”
“हा दादी मैं कैसे भूलूंगी कितना खेलती थी मैं वहां बचपन में. आप आराम करो मैं खुद जाती हु”
“ओके बेटी. कुछ लगे तो आवाज दे न. घर में नौकर हैं मैं भी हैं वो नजमा का बेटा हैं आने वाला था शायद उसने साफ़ करके राखी होगी तुम्हारी खोली”
काव्या सीडिया चढ़ते हुए बोली “ओके नानी.. आप फ़िक्र मत करो मैं देखती हूँ”
उसका घर सबसे पुराना और बड़ा था उस गाँव में. उसके नाना जी को सब पहचानते थे. बड़ा रुतबा था उनका. पर उनके गुज़र जाने के बाद मकान सुना हो गया. अब वह सिर्फ नानी और नौकरानी नजमाँ और उसका बेटा रहते थे. नजमाँ एक पुराणी नौकरानी थी वो काव्या को बचपन से जानती थी.
जब काव्या २ साल की थी तबसे वो वह काम करती थी. वैसे तो नजमा पे काव्या के नाना का बहुत सारे उपकार थे. उसका पति शराब में गिरा हुआ था और वो किसी औरत के साथ भाग गया.. तबसे वो वापस नहीं आया था. उसके पति को एक बेटा था रफ़ीक. फिर उसीने उसको पला पोसा अपने बेटे की तरह रखा. उसके बाद यही सब वो काम कर लेती थी. कहा जाता हैं के वो जवानी में बहुत भरी हरी भरी थी. और रफ़ीक के बाप के भाग जाने के बाद काव्या के नाना ने भी उसको चोदा था. शायद उसी काम के लिए उन्होंने उसको काम पे रख लिया.
काव्या को वो अपने हाथो से खाना खिलाती थी, नेहलाती थी और सुलाया करती थी. अब वो ४२ साल की हो चुकी थी. पर आज भी वो गरम थी. उसका बदन भरा हुवा था. आज भी वो उसके पडोसी रहीम चाचा से चुदवाया करती हैं. रहीम चाचा जो ६० साल का अधेड़ बुजुर्ग आदमी हैं. वो उसके पड़ोस में ही एक जुग्गी में रहता था. रफ़ीक के साथ उसकी बहुत जमती थी. बुढा बड़ा ठरकी था. उसने नजमा को बेटी बेटी बोल के एक रात उसपे हाथ मार ही दिया. दिखने में तो वो ६० साल का था पर चुदाई करते टाइम उसने ४२ साल की विधवा नजमा की नस नस तोड़ दी थी.
उस रात के बाद नजमा उससे हफ्ते में एक बार तो चुदवा ही लेती थी. जब भी रफ़ीक दोस्तों के साथ रात-रात बाहर रहता यहाँ उसकी सौतेली माँ अपना बदन रहीम चाचा से सेक लेती थी. रहीम चाचा की भी बीवी नहीं थी. दोनों का हाल एक जैसा ही था. वो शहर में ब्रा-पेंटी बेचने का धंदा करता था. उसका मालिक उसको इस काम के बदले छोटी मोठी रकम देता था. उससे उसका गुज़ारा चल जाता था. देसी शराब और मुर्गी खाके सोना और अपने दमदार लंड से नजमा की कस कर चुदाई करना जैसा उसके जीवन का एक अंग हो गया था.
दादी से मुलाकात करके काव्या अपने रूम में चली गयी. वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको ज़र्ता पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. खैर अपनी बैग बीएड पे डालके उसने रूम की विंडो खोली. एक बड़ी विंडो थी. जिसको खोलते ही सूरज की रौशनी अन्दर आ गयी और गाँव की ताज़ी हवा के साथ. और काव्या ने चैन की एक लम्बी आह भरी.
वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको जादा पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. रफीक के बारे में बताया जाए तो, रफ़ीक एक २० साल का युवक था. उसको पता था के उसकी माँ किसी गैर मर्द से चुद्वाती हैं. उसने कही बार उसके कच्छी पे सफ़ेद दाग देखे थे. और जब वो छोटा था तबसे उसको भनक लगी थी के रात में उसकी माँ कहराति क्यों हैं. इन सभी बातो से उसके मन में बचपन से ही सेक्स से भरी बाते बैठ गयी थी. वो बहुत उसमे रूचि लेता था.
उसके मवाली दोस्त उसको गन्दी गन्दी चुदाई की किताबे देते थे. पर वो था बड़ा शर्मीला वो उनके सामने उसको देखता भी नहीं था. पर उसको खुद पता नहीं चला कब वो उनको पढके अपनि मूठ मारने लगा था. रफ़ीक का लंड भी बड़ा मजेदर था. ७ इंच का एकदम कोरा लंड था उसका. वो हर बार फिल्मी किताबे देखता था उसमे सुन्दर अभिनेत्रिओं के फोटो देखके अपनी मुठ मारता था. उसने कही बार ब्लू फिल्मे भी देखि थी. इन सब से वो एकदम मर्द बन गया था. ये उसे तब पता चला जब उसका लंड रात में अपनी माँ के गांड को देखे फूलने लगा था.भले ही नजमाँ की वो सौतेली संतान थी पर सलमा उसका ख्याल बहुत रखती थी.
बचपन से नजमा उसको अपने साथ ही रखके सब काम करती थी जैसे खाना पकाना, कपडे धोना, नहाना, सोना. बात तो इतनी ज्यादा थी के आज भी वो रफ़ीक को एक बच्चे की तरह समझती थी. आज भी रफ़ीक अपनी हरी भरी माँ को अगर मन चाहे तो उसके ३८ के बड़े बड़े मम्मो को चुसकर सोता था. और वो भी उसको बच्चे की तरह पिलाती थी. शायद उसको वो बच्चा ही लगता था पर फर्क था के रफ़ीक अब जरा बड़ा हो गया था और वो उसपे ज्यादा जोर लगाया करता था.
मर्द सम्भोग में मादी पे हावी हो ही जाता हैं. वो उसको भोगना चाहता हैं. भले ही आधुनिक युग में नारी को पूर्ण रूप से भोग विलास में किरदार निभाये दिखाते हैं फिर भी अंतिम सत्य यही हैं के सौंदर्य और नाजुकता नारी का प्रतिक हैं. और मर्द उसका भूका. ये नियम से रफीक भला कहा बचने वाला था. अब रात में सोते वक़्त रफ़ीक के अन्दर का मर्द उसको ललकार रहा था. दिन भर दिन उसके हरकते बढती जा रही थी. शायद उसको वो नहीं समझ रहा था पर नजमा भले भाति सब समझ रही थी. उसकी नज़रे नजमा के मम्मो से हटकर अब उसके साडी के अन्दर जाने लगी थी. और नजमा भी उस बात को अच्छी खासी जान चुकी थी. रात में रफ़ीक कभी उसको चिपक के सोता था तो अपना हाथ उसके साडी के अन्दर डालने की कोशिश करता था पर वो उसके हातो को भिन्च्के अपने सिने से लगा लेती थी. और उसको सुलाने के सब उपाय करती थी. बिना बाप के और गरीबी की वजह से उसके कदम कही बहक न जाये इसलिए उसको आज भी वो बच्चे की तरह संभालती थी. उसके शादी तक उसको कही गलत लत न लगे इसकी वो पूरी कोशिश करती थी. सौतेली संतान को इतना प्यार देने वाली नज्म को बचपन की तरह अब उसको सुलाना इतना आसान नहीं रह गया था.