25-08-2020, 01:41 PM
काला बदबूदार मुसल ८ इंच का सुलेमान का तगड़ा नन्गा मादरजाद लंड काव्या के ठीक नजदीक था. एकदम तना हुआ साप जैसा डुलता हुआ लंड को इतने करीब से देखके काव्या के गाल लाल-लाल हो गए. वो अपने होशो आवाज में नहीं रही. सुलेमान को तो ये सब पता ही था. वो जान बूझकर सब कर रहा था. दूसरी और सलमा को वो उसी समय सरे आम रगड़े भी जा रहा था. जहा सुलेमान अपने मादरजाद लंड को सरे आम खुला करके बैठा था उस समय भले उसका चेहरा सलमा की और था पर ध्यान था काव्या की और. उसका मुसल लंड एक दम तन गया था. घने काले झाटो के ऊपर तना हुआ हथियार बहुत आकर्षक दिख रहा था. जिसने सुन्दर काव्या की आखे चमका दी.
उसने सलमा को अपनी और जोर से खीच और उसके कमीज़ के ऊपर से उसके दूध मसल दिए. जैसे ही उसने उसने सलमा के दूध मसले तुरंत उसके लंड ने एक अंगड़ाई ली. वो सप बोलके तन गया जैसे वो किसीको सलामी दे रहा हो. काव्या की आंखे मानो ऊपर जम से गयी थी. वो बिना किसी सोच से एक दम से लंड को गौर से देख रही थी. लंड जब जब सलामी देता उसके छाती में ‘धस’ हो जाता. शहर की डोक्टोरिन साहिबा की धड़कन धक् धक् गर्ल की तरह भाग रही थी. डर और वासना काव्या के मन पे हावी हो रहें थे. बस ये देखना था के जीत किसकी होती हैं.
सत्तू जो ऑटो बहुत धीरे चलाकर सामने वाले शीशे में पूरा ध्यान लगाके सब मजे देख रहा था, उसने भी काव्या की नज़रे ताड़ ली. जो गए २-३ मिनट से एक जैसे सुलेमान के लंड को निहार रही थी. उसने सुलेमान से कहा,
“अरे सुलेमान भाई ..तनिक बस भी करियो. क्या पूरा प्यार यहाँ पर ही कर लोगे भाभी से?..हा हा हा”
सुलेमान सलमा को अपनी बाहों पे पकडे हुए बोला,
“अरे सत्तू मादरचोद, क्या बताए हम कितना खुश हु आज ..लगता है बेगम को उठा के नाच दू. बहुत प्यार करू.”
“मिया, पर जरा संभलके. वरना गए टाइम की तरह हमको ऑटो कही रुकवा कर बाहर निकलना होगा. तुम शुरू होने के बाद नहीं रुकते. तुम तो मजे करोगे भाभी जान के साथ हमरी तो जाने दो पर बीबीजी क्या करेगे फिर...?”
तभी सुलेमान ने अपना गन्दा चेहरा काव्या की तरफ किया. जैसे ही उसने काव्या की और देखा काव्या ने अपनी निगाहें दूसरी और कर दी. उसको लगा कही सुलेमान को ऐसा प्रतीत न हो के वो उसके लिंग को देह रही थी. भले उसके लिए ये सब अनजाने में हो रहा था किन्तु सुलेमान के लिए तो ये सब सोची समझी करतूत की तरह था.
“अबे हाँ..मैं भूल ही गया था बीबीजी..काव्या हमरी बाजू में हैं”, काव्या की तेज़ धडकनों को सुलेमान समझ गया था.
सत्तू ने सुलेमान से कहा, ”अरे सुलेमान भाई, भाभी के लिए तनिक काव्याजी को भी धन्यवाद् करियो”
“अरे हां...सत्तू, मादरचोद पहले बार अकल की बात की तूने. भाई, सच में काव्या ही तो है वो, जिसके कारण आज इतनी ख़ुशी हो रही हैं हमको”
ऐसा बोलते समय उसने अपना बाया हाथ सीधे काव्या की दाए (थाइस) जांघ पे रख दिया. काव्या जो पहले ही उसके मुसल खुले लंड से सदमे में थी अब तो उसके योनी में भी सिरहन आ गयी. सुलेमान ने बिना किसी खौफ से उसके जांघो पे अपना सख्त हाथ रख दिया. उसने उसको और ऊपर की और सहलाते हुए धीरे से काव्या की कानो में कहा,
“काव्या..शुक्रिया..जी तनिक इधर तो देखिये ”
काव्या के पुरे बदन में सनसनी आ गयी. उसके माथे पे पसीना आ गया. खुला मुसल लंड, जांघो पे सख्त हाथ और कानो में आती हुयी गर्म सासे इन सबसे उसका बदन अकड़ने लगा. सुलेमान का लंड उसके जैसा ही निकम्मा था. जैसे वो कोई भैंसा हो और तमाम चूत उसके लिए भैंसिया. शायद जिस तरह सुलेमान को काव्या चाहिए थी, ठीक वैसेही उसके लंडको घुसने के लिए उसकी राजसी चूत चाहिए थी जो के नयी दुल्हन की तरह अभी भी छुपी हुयी थी. वो और तन-तन के सलामिया देने लगा. काव्या ने अपनी आँखे मूँद ली. अपनी हथेलियों को कसके अपने हैण्ड बैग पे रोंद दिया. उसकी साँसे रुक सी गयी.
“काव्या...देखोगी नहीं..बताओ न..”, अपने हाथ काव्या के गद्देदार जान्घो पे उसकी महंगी शिफोन सारी के ऊपर से चलाते हुए सुलेमान ने बड़े ही कामुक अंदाज़ में कहा.
“जी..जी....वो....” हडबड़ाती काव्या कापते स्वर में बोल पड़ी.
“हाँ बोलो न...क्या हुआ?”
“जी मैं कैसे कहूँ..?”मैं नहीं देख सकती आपकी और...”
“क्यों बीबीजी..क्या हम गरीब हैं इसिलिये? हम समझ गए...” अपना चेहरा दुखी करके सुलेमान अपने हाथो को काव्या के पेट पे लेके जाते हुए बोल पड़ा.
“बात वो नहीं हैं....” कस्म्कसते हुए काव्या ने अपना हाथ सुलेमान के हाथ पर रख दिया. शायद वो उसको आगे जाने से रोक रही थी.
“फिर का हैं? बोलो न..” बड़े ही कामुक अंदाज़ में सुलेमान काव्या की हाथो की पर्व न करता अपने हाथ की बिचवाली ऊँगली काव्या किए गोरी सुन्हेरी नाभि में डालते हुए बोल पड़ा.
काव्या इन सभी हरकतों से पिघल रही थी. उसने सुलेमान के हाथ को पकड़ते हुए थोड़े जोर से कहा, “आप प्लीज निचे देखिये” पर उसने उसका हाथ हटाया नहीं.
“कहा नीचे...कुछ भी तो नहीं हैं “ अपनी उसके नाभि के निचे सरकाते उसने कहा. शायद वो खुदके निचे नहीं काव्या के निचे देख रहा था.
अब काव्या ने उसके हाथ को और निचे जाने से रोक कर खुद उसकी और हिम्मत कर के देखा और जरा डांटते स्वर में कहा,
“अरे.. अब कैसे बताऊ ,, आप का वो प्लीज् आप नीचे देखो न ज़रा”
सुलेमान ने मौके को समझ कर अपना हाथ वह से हटा दिया. उसको अपने इतने देर से चलते हुए खेल पे पानी नहीं चलाना था. उसने अपने निचे की और देखा और नार्मल समझते हुए ऐसा रिएक्शन दिया जो उसके लिए कोई आम बात हो.
“अबे इसकी मा का..तो ये मा का लोडा हैं, अरे काव्या, गलती से बाहर आ गया ससुरा. रुको इसको हम अभी अन्दर डलवा देते हैं. तुम फिकर ना करो. इस ससुरे को चैन ही नहीं हैं जब भी हम भावुक हो जाते न इ ससुरा ऐसे बिच में आ जाता हैं..चल हट मादरचोद अन्दर ”
काव्या को उसकी बाते सुनके हंसी बी आ रही थी और शर्म भी आ रही थी. उसको समझ नही आ रहा था करू तो क्या करू.
अपना मुसल ताना हुआ लं लुंगी अन्दर डालके सुलेमा ने काव्या पे एक और चुटकी ले ली,
“लो डाल दिया इसको अन्दर काव्या. अब नाही आएगा बाहर. बस तुम पे भावुक हो गए थे हम ज़रासा”
काव्या ने अपने सुन्ग्लासेस आँखों पे दाल दिए. और ओने मूह हें हाथ रख दिया. वो अपनी हंसी दबा रही थी. पर वो थोड़े ही ऐसे छुपने वाली थी.
१ घंटे से चल रहा ये ऑटो का सफ़र का ठिकाना आखिरकर आ गया. १८ साल के बाद काव्या ने अपने गाँव को देखा. बरवाड़ी की ताज़ी ताज़ी हवाओने ने उसका पुरे जोश के साथ स्वागत किया.
सत्तू ने जोर से सुलेमान को कहा “लो सुलेमान भाई गाओ आ गया अब ज्यादा भावुक मत होना. वरना ऑटो वापस मोड़ना पड़ेगा” और दोनों कलूटे जोर से हसने लगे.
गाओ में काव्या का आगमन हो गया था. सुलेमान का शातिर दिमाग बस वो दिन का इंतज़ार कर रहा था के कब वो काव्य को अपने निचे सुलाएगा. मानो न मनो कही पे जुदाई का गम उसको सता रहा था. ऑटो का सफ़र आज उसके लिए बहुत छोटा लग रहा था. पर गाँव का सफ़र अभि भी उसके लिए आगे की परिकल्पना के लिय सशक्त किये जा रह था.
शहर की डोक्टोरिन साहिबा काव्या के नाना जी के बंगले की तरफ औटो ने रुख मोड़ लिया. बस १०-१५ मीनट में ही काच्ची सडको पे से हिलते डुलते देहाती ऑटो काव्या के घर पे रुकने वाला था. जहा पे कोई और उसका स्वागत करने के लिए इंतेज़ार में खड़ा था. बस समझ लो काव्या अब अपनी छुटिया में इतना सारा अनुभव प्राप्त करने वाली थी जो उसके जीवन को नयी नयी बातो से अवगत करने वाली थी.
उसने सलमा को अपनी और जोर से खीच और उसके कमीज़ के ऊपर से उसके दूध मसल दिए. जैसे ही उसने उसने सलमा के दूध मसले तुरंत उसके लंड ने एक अंगड़ाई ली. वो सप बोलके तन गया जैसे वो किसीको सलामी दे रहा हो. काव्या की आंखे मानो ऊपर जम से गयी थी. वो बिना किसी सोच से एक दम से लंड को गौर से देख रही थी. लंड जब जब सलामी देता उसके छाती में ‘धस’ हो जाता. शहर की डोक्टोरिन साहिबा की धड़कन धक् धक् गर्ल की तरह भाग रही थी. डर और वासना काव्या के मन पे हावी हो रहें थे. बस ये देखना था के जीत किसकी होती हैं.
सत्तू जो ऑटो बहुत धीरे चलाकर सामने वाले शीशे में पूरा ध्यान लगाके सब मजे देख रहा था, उसने भी काव्या की नज़रे ताड़ ली. जो गए २-३ मिनट से एक जैसे सुलेमान के लंड को निहार रही थी. उसने सुलेमान से कहा,
“अरे सुलेमान भाई ..तनिक बस भी करियो. क्या पूरा प्यार यहाँ पर ही कर लोगे भाभी से?..हा हा हा”
सुलेमान सलमा को अपनी बाहों पे पकडे हुए बोला,
“अरे सत्तू मादरचोद, क्या बताए हम कितना खुश हु आज ..लगता है बेगम को उठा के नाच दू. बहुत प्यार करू.”
“मिया, पर जरा संभलके. वरना गए टाइम की तरह हमको ऑटो कही रुकवा कर बाहर निकलना होगा. तुम शुरू होने के बाद नहीं रुकते. तुम तो मजे करोगे भाभी जान के साथ हमरी तो जाने दो पर बीबीजी क्या करेगे फिर...?”
तभी सुलेमान ने अपना गन्दा चेहरा काव्या की तरफ किया. जैसे ही उसने काव्या की और देखा काव्या ने अपनी निगाहें दूसरी और कर दी. उसको लगा कही सुलेमान को ऐसा प्रतीत न हो के वो उसके लिंग को देह रही थी. भले उसके लिए ये सब अनजाने में हो रहा था किन्तु सुलेमान के लिए तो ये सब सोची समझी करतूत की तरह था.
“अबे हाँ..मैं भूल ही गया था बीबीजी..काव्या हमरी बाजू में हैं”, काव्या की तेज़ धडकनों को सुलेमान समझ गया था.
सत्तू ने सुलेमान से कहा, ”अरे सुलेमान भाई, भाभी के लिए तनिक काव्याजी को भी धन्यवाद् करियो”
“अरे हां...सत्तू, मादरचोद पहले बार अकल की बात की तूने. भाई, सच में काव्या ही तो है वो, जिसके कारण आज इतनी ख़ुशी हो रही हैं हमको”
ऐसा बोलते समय उसने अपना बाया हाथ सीधे काव्या की दाए (थाइस) जांघ पे रख दिया. काव्या जो पहले ही उसके मुसल खुले लंड से सदमे में थी अब तो उसके योनी में भी सिरहन आ गयी. सुलेमान ने बिना किसी खौफ से उसके जांघो पे अपना सख्त हाथ रख दिया. उसने उसको और ऊपर की और सहलाते हुए धीरे से काव्या की कानो में कहा,
“काव्या..शुक्रिया..जी तनिक इधर तो देखिये ”
काव्या के पुरे बदन में सनसनी आ गयी. उसके माथे पे पसीना आ गया. खुला मुसल लंड, जांघो पे सख्त हाथ और कानो में आती हुयी गर्म सासे इन सबसे उसका बदन अकड़ने लगा. सुलेमान का लंड उसके जैसा ही निकम्मा था. जैसे वो कोई भैंसा हो और तमाम चूत उसके लिए भैंसिया. शायद जिस तरह सुलेमान को काव्या चाहिए थी, ठीक वैसेही उसके लंडको घुसने के लिए उसकी राजसी चूत चाहिए थी जो के नयी दुल्हन की तरह अभी भी छुपी हुयी थी. वो और तन-तन के सलामिया देने लगा. काव्या ने अपनी आँखे मूँद ली. अपनी हथेलियों को कसके अपने हैण्ड बैग पे रोंद दिया. उसकी साँसे रुक सी गयी.
“काव्या...देखोगी नहीं..बताओ न..”, अपने हाथ काव्या के गद्देदार जान्घो पे उसकी महंगी शिफोन सारी के ऊपर से चलाते हुए सुलेमान ने बड़े ही कामुक अंदाज़ में कहा.
“जी..जी....वो....” हडबड़ाती काव्या कापते स्वर में बोल पड़ी.
“हाँ बोलो न...क्या हुआ?”
“जी मैं कैसे कहूँ..?”मैं नहीं देख सकती आपकी और...”
“क्यों बीबीजी..क्या हम गरीब हैं इसिलिये? हम समझ गए...” अपना चेहरा दुखी करके सुलेमान अपने हाथो को काव्या के पेट पे लेके जाते हुए बोल पड़ा.
“बात वो नहीं हैं....” कस्म्कसते हुए काव्या ने अपना हाथ सुलेमान के हाथ पर रख दिया. शायद वो उसको आगे जाने से रोक रही थी.
“फिर का हैं? बोलो न..” बड़े ही कामुक अंदाज़ में सुलेमान काव्या की हाथो की पर्व न करता अपने हाथ की बिचवाली ऊँगली काव्या किए गोरी सुन्हेरी नाभि में डालते हुए बोल पड़ा.
काव्या इन सभी हरकतों से पिघल रही थी. उसने सुलेमान के हाथ को पकड़ते हुए थोड़े जोर से कहा, “आप प्लीज निचे देखिये” पर उसने उसका हाथ हटाया नहीं.
“कहा नीचे...कुछ भी तो नहीं हैं “ अपनी उसके नाभि के निचे सरकाते उसने कहा. शायद वो खुदके निचे नहीं काव्या के निचे देख रहा था.
अब काव्या ने उसके हाथ को और निचे जाने से रोक कर खुद उसकी और हिम्मत कर के देखा और जरा डांटते स्वर में कहा,
“अरे.. अब कैसे बताऊ ,, आप का वो प्लीज् आप नीचे देखो न ज़रा”
सुलेमान ने मौके को समझ कर अपना हाथ वह से हटा दिया. उसको अपने इतने देर से चलते हुए खेल पे पानी नहीं चलाना था. उसने अपने निचे की और देखा और नार्मल समझते हुए ऐसा रिएक्शन दिया जो उसके लिए कोई आम बात हो.
“अबे इसकी मा का..तो ये मा का लोडा हैं, अरे काव्या, गलती से बाहर आ गया ससुरा. रुको इसको हम अभी अन्दर डलवा देते हैं. तुम फिकर ना करो. इस ससुरे को चैन ही नहीं हैं जब भी हम भावुक हो जाते न इ ससुरा ऐसे बिच में आ जाता हैं..चल हट मादरचोद अन्दर ”
काव्या को उसकी बाते सुनके हंसी बी आ रही थी और शर्म भी आ रही थी. उसको समझ नही आ रहा था करू तो क्या करू.
अपना मुसल ताना हुआ लं लुंगी अन्दर डालके सुलेमा ने काव्या पे एक और चुटकी ले ली,
“लो डाल दिया इसको अन्दर काव्या. अब नाही आएगा बाहर. बस तुम पे भावुक हो गए थे हम ज़रासा”
काव्या ने अपने सुन्ग्लासेस आँखों पे दाल दिए. और ओने मूह हें हाथ रख दिया. वो अपनी हंसी दबा रही थी. पर वो थोड़े ही ऐसे छुपने वाली थी.
१ घंटे से चल रहा ये ऑटो का सफ़र का ठिकाना आखिरकर आ गया. १८ साल के बाद काव्या ने अपने गाँव को देखा. बरवाड़ी की ताज़ी ताज़ी हवाओने ने उसका पुरे जोश के साथ स्वागत किया.
सत्तू ने जोर से सुलेमान को कहा “लो सुलेमान भाई गाओ आ गया अब ज्यादा भावुक मत होना. वरना ऑटो वापस मोड़ना पड़ेगा” और दोनों कलूटे जोर से हसने लगे.
गाओ में काव्या का आगमन हो गया था. सुलेमान का शातिर दिमाग बस वो दिन का इंतज़ार कर रहा था के कब वो काव्य को अपने निचे सुलाएगा. मानो न मनो कही पे जुदाई का गम उसको सता रहा था. ऑटो का सफ़र आज उसके लिए बहुत छोटा लग रहा था. पर गाँव का सफ़र अभि भी उसके लिए आगे की परिकल्पना के लिय सशक्त किये जा रह था.
शहर की डोक्टोरिन साहिबा काव्या के नाना जी के बंगले की तरफ औटो ने रुख मोड़ लिया. बस १०-१५ मीनट में ही काच्ची सडको पे से हिलते डुलते देहाती ऑटो काव्या के घर पे रुकने वाला था. जहा पे कोई और उसका स्वागत करने के लिए इंतेज़ार में खड़ा था. बस समझ लो काव्या अब अपनी छुटिया में इतना सारा अनुभव प्राप्त करने वाली थी जो उसके जीवन को नयी नयी बातो से अवगत करने वाली थी.