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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#9
काव्या का हाथ अपने लंड पे छूते ही सुलेमान को एक तगड़ा झटका लग गया. उसका एक सपना जो पूरा हो गया था. बस फिर क्या? उसके साथ ही उसने काव्या को और जोर से अपने बाहो में भीच लिया. जिसके कारण उसका ब्लाउज उसकी जालीदार बनियान की छाती से सट गया. उसको काव्या के उभारो का स्पर्ष प्रतीत हुआ. उसके सख्त छाती से वो दबे जा रहे थे. क्या एहसास था जिस सुन्दरता को वो कितने देर घुर रहा था अब वो उसके छाती से सट हो गए दबे जा रहे थे. उसका मन तो किया वही उन उभारो को मसल कर उनका अमृतपान किया जाए. पर उसने खुदपे लगाम लगा दी. इस मामले में संयमता कोई इस निकम्मे से सीखे. पर उसने बाकी के सभी मौको का भरपूर फायदा उठाया. भागते को लंगोटी सही, सुलेमान ने अपना नाक काव्या के घने खुशबूदार बालो में सटाके एक लम्बी आह भरी. जिससे उसके लिंग में और तनाव आया और उसने भी काव्या कि नाजुक हथेली में एक तगड़ा झटका मार ही दिया.

क्या तकदीर पायी थी आज उस कलुटे ने. वो दृश्य ही इतना कामुक था के देखने वाले के होश उड जाए. ३३ साल का अधेड़ देहाती कलूटे ने २८ साल की शहर की सुन्दर राजसी डोक्टोरिन साहिबा को अपने बाहों में कस के जकड़ा हुआ था. उसके गन्दी लुंगी के कोने में से उसका मुसल लिंग पुरे गर्व से बाहर झूम रहा था. जो के इस राजसी महिला के नाजुक हथेली में लपका गया. जिससे वो पूरी तरह अनजान थी.
सत्तू जो के कही समय से ये सब देखे जा रह था. उसकी आँखों में जैसे अँधेरा छा गया. वो पूरी तरह से पिछे की और गर्दन करके ये सब नज़ारा देखे जा रहा था. वही सलमा अपनी नज़रे निचे की और करके बूत बन गयी थी जैसे मानो सच में उसको कोई सौतन मिल गयी हो. ये रंगीन नज़ारा देखके पूरा ऑटो जैसे मादकता का मंच को दर्शा रहा था.

सुलेमान की स्पीड शायद इस नज़ारे को कही ज्यादा आगे ले जाती पर उसको रोकने का काम किया एक कच्ची सड़क ने. अचानक से रास्ते पे गड्डा आ गया और ऑटो थोडा धपाक से हिल के एकदम से रुक गया. इसके साथ ही दोनों की बाहों की जकड टूट गयी और काव्या सुलेमान की बाहों से आज़ाद हो गयी.
अपना पूरा मजा कीरकिरा होने के कारण सुलेमान गुस्से से आग बबूला हो गया. वो सत्तू की तरफ मूह करके

जोर से चिल्लाया,“क्या हुआ बे मादरचोद.. सरफिरे लवडे..तेरी गांड क्यों फट गयी. क्या डंडा घुस गया तेरी गांड में..ऑटो क्यों रुक गया”

सत्तू को सुलेमान की गलियों की आदत थी. बस काव्या के सामने सुनके उसको खुदका अपमान लगा. पर वो करता भी क्या? उसको भी काव्या को अपने बाहों में भींचना था जो सिर्फ सुलेमान ही उसके लिए करवा सकता था. वो चुप चाप से बोल पड़ा, “सुलेमान भाई...वो रास्ता कच्चा था इसलिए हुआ..मेरी गलती नाही थी”

“अबे मादरचोद..फिर आगे देख के चलाना ऑटो पीछे क्या अपनी अम्मा को देखे जा रहा था तबसे?”

बार-बार गालिया सुनकर सत्तू ने भी इस बार एक चुटकी सुलेमान पे डाल दी, “भाई ..तुम बिबीजी को ऐसे प्यार कर रहे थे न तो हमरी भी नज़र वैसे ही अटक गयी. गलती तो तुम्हारी हुयी न ”

“अबे चूतिये..मैं तो बस काव्या का शुक्रिया कर रहा था. अब हमरी बेगम अच्छी हो जाएगी तुझे क्या मालुम भडवे? बीवी क्या होती हैं. तू रंडियों को चोदते बैठ सिर्फ ”

सुलेमान के मूह से इतनी सारि गालिया और चोदने चुदाने की बाते सुन काव्या के गाल लाल हो गए. अभी अभी उसके सख्त जिस्म से छुठ के वो खुदसे आझाद फील कर रही थी. पर साथी ही उसको गैर आदमी का ऐसा कसा हुआ बदन उसके मुलायम बदन को एक नयी उर्जा दे गया था.

सुलेमान ने काव्या के और बड़े प्यार से देखा और बोला, “ बोलो न काव्या...मैंने गलत किया? तुम्हारा शुक्रिया मानके..क्या तुमको हम गरीबो को गले लगाना पसंद नहीं ?”

काव्या के नाजुक भावनाओं पे तीर चलाते सुलेमान ने अपना चेहरा फिर से दुखी बना दिया. बस हमेशा की तरह काव्या पिघल गयी. और उसने कहा,

“ अरे..नहीं मैंने कुछ कहा क्या? आई डोंट माइंड..इट्स ओके” और अपने गले से पसीना पोंछ लिया.

“ देख भड़वे, कमीने इसे कहते डोक्टोरिन साहिबा. इनके पैर धो के पि ले तू ”, सुलेमान ने सत्तू को गुस्से से कहा और फिर से अपनी शैतानी मुस्कान काव्या की और बढाई.

“ क्यों काव्या पिलाओगी न ?”

बड़े ही मादक स्वर में उसने काव्या को पुछा. काव्या को बात समझी नहीं उसने बस थोड़ी स्माइल दे कर अपनी नज़रे बाजू कर दी.

“आई.हाई...काव्या शर्मा गयी..अब तो पिलाना ही पड़ेगा बीबीजी..”
और अपनी गन्दी मुस्कान के साथ सुलेमान ने इस बार सलमा को अपनों बाहों में जकड लिया.

स्त्री की अजीब विडम्बना होटी हैं. सलमा को काव्या सौतन लग रही थी अब ठीक काव्या को वैसा लगने लगा. सलमा को सुलेमान की बाहों में देख उसने ना चाहते हुए भी अपने चेहरे पे इर्षा वाले भाव बना दिए. पर तभी वो हुआ जो काव्या के जज्बातों को किसी सुनामी की तरह बहा ले गया.

जैसे ही काव्या ने सलमा की और इर्षा से देखा काव्या की मानो सासे रुक गयी उसके सामने अँधेरा जैसा छा गया. उसकी आँखे इस बार जम गयी. कारण था सुलेमान का मुसल लंड. जो कबसे पूरा लुंगी के बाहर झूम था, बस काव्या की नजर उसपे अभी चली गयी थी. काव्या तब सिहर गयी जब उसके पढ़ाकू दिमाग को दो पल में ही समझ गया के उसकी हथेली ने कुछ देर पहले किस चीज को अपने में समेटा हुआ था.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 01:40 PM



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