25-08-2020, 01:39 PM
काव्या को अब बिलकुल संभला नहीं जा रह था. उसको कैसे भी करके सुलेमान से इसका जवाब निकलवाना था. उसने थोडा अपने हाथो का भार उसके कंधे पे और बढाया और धीरे मधुर स्वर में पुछा, “हाँ..बोलो न प्लीज्”..
बस और क्या सुलेमान के लिए तो ये कोइ सिग्नल से कम नहीं था. काव्या के बदन की आग के साथ अब उसके मधुर आवाज ने सुलेमान को जैसे और उकसा दिया. शैतानी दिमाग सुलेमान ने, कोई वक्त जाया ना करते उसका हाथ अपने हाथो में ऐसे भींच लिया जैसे डाली से कोई फूल को तोड़ लिया जाये. उसने वैसे ही बहुत मजबूती से काव्या की नाजुक हतेली अपने सख्त काले हाथो में पकड़ के बड़े ही नौटंकी अंदाज़ में रोती सूरत बनाकर कहा, “बीबीजी...हमरी सलमा को भूलने की बीमारी हैं"..
“क्या? भूलने की बीमारी,.ओह गोड..कब से?” काव्या एकदम से शॉक होकर बोली.
इसपे अपने मन ही मन में खुश होकर साथ ही साथ चेहरे पे अफ़सोस के भाव जताते हुए सुलेमान ने काव्या का हाथ वैसे ही भिन्च्के बोला, “हा बीबीजी...वो शादी से ही वैसी हैं...बाते भूल जाती हैं”
काव्या उसके जवाबो से नया सवाल बनाती. ठीक उसने वैसा ही किया. सुलेमान के इस जवाब पे उसने उसको पुछा, ”बाते भूल जाती हैं?...लाइक कैसी? किस प्रकार की बाते?”
सुलेमान ने उसको हर बार की तरह घुमा घुमा के जवाब दिया, “हां न बीबीजी..हर दिन कुछ कुछ ना कुछ भूल जाती हैं. एक दिन गहने, कभी पैसे, कभी कपड़े और कभी कभी तो ये भी भूल जाती हैं के मैं उसका शोहर हूँ"
काव्या इसमे इंटरेस्ट लेने लगी थी. उसको अन्दर की डोक्टोरिन को नया केस जो मिल गया था. उसके अन्दर का डॉक्टर अब इस देहाती गाँव में जाग गया था. वो खुलके इस बात पर बोल रही थी.
"ओह,,,आई सी...ये तो मुश्किल हैं. पर तुम मायूस मत हो इसका इलाज भी हैं. ओके"
सुलेमान दुखी चेहरा बनाते हुए उसके स्लीवलेस ब्लाउज के दीखते हुए दूध के नजारो की तरफ अपनि नज़रे गिडाते हुए बोला, "नही बीबीजी..हमरे पास इतने पैसे नही. शहर के डॉक्टर तो बस पैसे लेते हैं. हमरा बिसवास नही उनपे..हम ऐसे ही ज़िंदगी काट लेंगे, गरीबो का कोनो नाही दुनिया में.."
सुलेमान का भोला चेहरा देख काव्या को उसपे बहुत दया आई और खास कर के उसके गरीब शब्द पर. जैसा का काव्य के बारे में कहा था वो भोली थी. कही जानो को वो फीस भी नहीं लेती थी. बस फिर क्या अन्दर से करुना से पिघल्के वो उसको बड़ी सादगी से बोल पड़ी,
"ओह हो.... सुलेमान.. ऐसा नही हैं तुम मुझपे ट्रस्ट करो ओके. चलो मैं पैसे नही लूँगी जब तक सलमा ठीक ना हो जाए"
"सच काव्या???? हमरी बेगम ठीक हो जाएगी????"
एकदम से चेहरे के भाव बदलकर, एक ख़ुशी की मुस्कान ले के सुलेमान ने बीबीजी से काव्या पे ऐसी करवट ली के काव्या के साथ ही सलमा और सत्तू भी सन्न रह गए. सत्तू को उस टाइम सुलेमान को पकड़ के गले लगाने का मन किया. जिस तरह से उसकी स्पीड थी लग रहा था काव्या को जल्द ही वो अपने गोदी में खिलायेगा. काव्या भी उसके इस बात पे शॉक तो बहुत हुयी लेकिन पर वो उसकी ख़ुशी को देखके कुछ नहीं बोली. उसने उल्टा उसको और दिलासा देने की कोशिश की.
"हा हाँ ज़रूर..मैं करूँगी तुमको मदत अब तो विश्वास हैं?"
काव्य की तरफ से कोई विरोध ना देख सुलेमान ने अपनी बाते जारे रखी. उसका हात और कास के पकड़ कर उसने कहा, "अरे काव्या...आप पे तो बहुत भरोसा हैं हमरा. अब हम खुश हुए...आप तो महान हैं..बड़ी प्यारी है "
तभी सत्तू जो के ये सब बाते देखे जा रहा था. न जाने उसको कौनसी अचानक से जलन हुयी उसने बात काटते हुए बिच में ही कुछ बोल दिया,
"अरे सुलेमान भाई, भाभी के इलाज मे गुम तुम मेडम जी को नाम से पुकारे हो..पागल हो गये क्या? "
सुलेमान ज़रा ढोंग करते हुए बोला, "अरे हन..काव्या ग..ब्ब..बीबीजी..हमसे ग़लती हो गयी माफ़ कीजिए गा..
वो हुम गरीब हैं न इसलिए बहक गए"
उसने फिर से काव्या की कमजोर नस पे वार किया था. गरिबी की हालात को बार बार वो उसके सामने बता रहा था. और काव्य भी उसको ढील पे ढील डे जा रही थी. उसने तुरंत अपना मूह दुखी बना दिया.
बस काव्या को और चाहिये ही क्या था उसने फिर से सुलेमानको दिलासा देना चाहा. यही भूल वो बार बार किये जा रही थी.
उसने सत्तु की तरफ मूह करके बोला, “"अरे..उसमे क्या? मेरा नाम ही काव्या हैं. ईटस ओके. आई डोंट माइंड..तुम मुझे नाम से पुकार सकते हो, आई मीन आप सुलेमान. अब सलमा मेरी ज़िम्मेदारी है ओके. और वो ठीक नहीं होती तब तक मैं उसकी जांच करुँगी. बट प्लीज, खुदको गरीब बोलके उदास मत करना"
सुलेमान ने काव्य की इतनी ढील का नदाजा नहीं लगाया था. उसने इसका पूरा फायदा उठाया. और जोर से कहा, "सच काव्या...तुम कितनी अच्छी हो..जी कर रहा हैं तुमको उठाके झूम लू"
इस्पे भी काव्य ने कोई गुस्से वाला रिअक्शन नहीं दिया. वो सिर्फ शरमाके शरमाके हस दी.
बीबीजी से...काव्या जी..और अब काव्या जी से सीधे काव्या पे आने वाले सुलेमान के खेल को काव्या बिलकुल समझ ही नही पा रही थी. शायद उसको अपने मरीज़ के लिए सब ठीक ही लग रहा था और वो सुलेमान की जाल मे फसे जा रही थी. दूसरी तरफ़ सलमा ये सब बाते सुनके हैरान और चुपचाप बैठी थी.
कहते हैं अन्होनी और हादसे बता के नहीं आते. वही काव्या के साथ हो. जाने क्या सुझा वक़्त ने पूरी तरह से बाजी सुलेमान को जैसे दे दी. सुलेमान उसी पल मौका गरमा देख काव्या का हाथ छोड़ तो दिया. पर सामने रास्ते पे जैसा एक मोड़ आया वैसे ही अब एक और मोड़ काव्या के लिए उसने ला दिया. वहां ऑटो ने करवट ली और यहाँ सुलेमान ने पूरे हाथो से काव्या को अपने बाहों में भींच लिया. उसके सख्त बदन ने काव्या को को पलक झपकते ही दबोच लिया. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकड गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया.
“नहीं काव्या....तुम महान हो..,मै आजसे तुम्हारा मुरीद बन गया..आह..”
सुलेमान काव्या को अपनी बाहो में जकड़े हुय ये सब बात कर रहा था. सत्तू के तो आँखों पे पट्टी बंध गयी हो, उसका मूह खुला का खुला ही रह गया. ऑटो की स्पीड इतनी कम हो गयी, के मानो वो लगभग बंद ही गिरने वाला हो. क्योंकि असलम ने काव्या को अपनी बाहों में भींच लिया था उसके कारण काव्या का मूह सलमा की और था. सो सलमा भी काव्या को देख के आँखे चुरा रही थी.
“ओह...काव्या...तुम बहुत अच्छी हो..” अपने हाथ काव्या के गोरी और मुलायम पीठ पे चलाते हुए देहाती सुलेमान हर पल का मजा ले रहा था.
काव्या के गर्दन पे उसकी नाक थी और वो उसके बदन की हर आती मादक खुशबू सूंघे जा रहा था. मुलायम, गद्देदार, राजसी महिला को ऐसे बाहों में ले कर के, उसको अपने से चिपका कर उसमे वासना के शोले उमढ पड़े.
यहाँ काव्या का चेहरा आश्चर्यता से भरा हुआ था. पर वो सब नॉर्मल समझकर सुलेमान की ख़ुशी की खातिर चुप थी. लेकिन जैसे ही सुलेमान ने धीरे धीरे अपना हाथ उसके पीठ पे चलाना शुरू किया उसके कारण उसको अब थोडा अजीब लगने लगा. सुलेमान अपनी गरम सासे काव्या की गर्दन पे छोड़े जा रहा था और उसको हर पल जोर-जोर से अपने पास भींछे जा रहा था. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकडसी गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया. वो था सुलेमान का मुसल लिंग.
उसका मुसल काला लिंग फुल के कद्दू जैसा बन गया था. और उस पुरे हलबल में वो फुला हुआ कद्दू उसके लुंगी के उपरी कोने में से ठीक जैसे उसने सोचा था वैसे ही सपाक बोलके पूरा का पूरा बाहर किसी रोंकेट की तरह कूद पड़ा. काव्या का हाथ न जाने उसके ऊपर आ गया. गरम और एकदम तना हुआ काला मुसल लंड काव्या के नाजुक कोमल हथेली के निचे आ गया. काव्या की नज़रे सलमा की तरफ थी सो उसको इसकी भनक नहीं लगी के उसका हाथ सुलेमान की लिंग पे जकड़ा था.
बस और क्या सुलेमान के लिए तो ये कोइ सिग्नल से कम नहीं था. काव्या के बदन की आग के साथ अब उसके मधुर आवाज ने सुलेमान को जैसे और उकसा दिया. शैतानी दिमाग सुलेमान ने, कोई वक्त जाया ना करते उसका हाथ अपने हाथो में ऐसे भींच लिया जैसे डाली से कोई फूल को तोड़ लिया जाये. उसने वैसे ही बहुत मजबूती से काव्या की नाजुक हतेली अपने सख्त काले हाथो में पकड़ के बड़े ही नौटंकी अंदाज़ में रोती सूरत बनाकर कहा, “बीबीजी...हमरी सलमा को भूलने की बीमारी हैं"..
“क्या? भूलने की बीमारी,.ओह गोड..कब से?” काव्या एकदम से शॉक होकर बोली.
इसपे अपने मन ही मन में खुश होकर साथ ही साथ चेहरे पे अफ़सोस के भाव जताते हुए सुलेमान ने काव्या का हाथ वैसे ही भिन्च्के बोला, “हा बीबीजी...वो शादी से ही वैसी हैं...बाते भूल जाती हैं”
काव्या उसके जवाबो से नया सवाल बनाती. ठीक उसने वैसा ही किया. सुलेमान के इस जवाब पे उसने उसको पुछा, ”बाते भूल जाती हैं?...लाइक कैसी? किस प्रकार की बाते?”
सुलेमान ने उसको हर बार की तरह घुमा घुमा के जवाब दिया, “हां न बीबीजी..हर दिन कुछ कुछ ना कुछ भूल जाती हैं. एक दिन गहने, कभी पैसे, कभी कपड़े और कभी कभी तो ये भी भूल जाती हैं के मैं उसका शोहर हूँ"
काव्या इसमे इंटरेस्ट लेने लगी थी. उसको अन्दर की डोक्टोरिन को नया केस जो मिल गया था. उसके अन्दर का डॉक्टर अब इस देहाती गाँव में जाग गया था. वो खुलके इस बात पर बोल रही थी.
"ओह,,,आई सी...ये तो मुश्किल हैं. पर तुम मायूस मत हो इसका इलाज भी हैं. ओके"
सुलेमान दुखी चेहरा बनाते हुए उसके स्लीवलेस ब्लाउज के दीखते हुए दूध के नजारो की तरफ अपनि नज़रे गिडाते हुए बोला, "नही बीबीजी..हमरे पास इतने पैसे नही. शहर के डॉक्टर तो बस पैसे लेते हैं. हमरा बिसवास नही उनपे..हम ऐसे ही ज़िंदगी काट लेंगे, गरीबो का कोनो नाही दुनिया में.."
सुलेमान का भोला चेहरा देख काव्या को उसपे बहुत दया आई और खास कर के उसके गरीब शब्द पर. जैसा का काव्य के बारे में कहा था वो भोली थी. कही जानो को वो फीस भी नहीं लेती थी. बस फिर क्या अन्दर से करुना से पिघल्के वो उसको बड़ी सादगी से बोल पड़ी,
"ओह हो.... सुलेमान.. ऐसा नही हैं तुम मुझपे ट्रस्ट करो ओके. चलो मैं पैसे नही लूँगी जब तक सलमा ठीक ना हो जाए"
"सच काव्या???? हमरी बेगम ठीक हो जाएगी????"
एकदम से चेहरे के भाव बदलकर, एक ख़ुशी की मुस्कान ले के सुलेमान ने बीबीजी से काव्या पे ऐसी करवट ली के काव्या के साथ ही सलमा और सत्तू भी सन्न रह गए. सत्तू को उस टाइम सुलेमान को पकड़ के गले लगाने का मन किया. जिस तरह से उसकी स्पीड थी लग रहा था काव्या को जल्द ही वो अपने गोदी में खिलायेगा. काव्या भी उसके इस बात पे शॉक तो बहुत हुयी लेकिन पर वो उसकी ख़ुशी को देखके कुछ नहीं बोली. उसने उल्टा उसको और दिलासा देने की कोशिश की.
"हा हाँ ज़रूर..मैं करूँगी तुमको मदत अब तो विश्वास हैं?"
काव्य की तरफ से कोई विरोध ना देख सुलेमान ने अपनी बाते जारे रखी. उसका हात और कास के पकड़ कर उसने कहा, "अरे काव्या...आप पे तो बहुत भरोसा हैं हमरा. अब हम खुश हुए...आप तो महान हैं..बड़ी प्यारी है "
तभी सत्तू जो के ये सब बाते देखे जा रहा था. न जाने उसको कौनसी अचानक से जलन हुयी उसने बात काटते हुए बिच में ही कुछ बोल दिया,
"अरे सुलेमान भाई, भाभी के इलाज मे गुम तुम मेडम जी को नाम से पुकारे हो..पागल हो गये क्या? "
सुलेमान ज़रा ढोंग करते हुए बोला, "अरे हन..काव्या ग..ब्ब..बीबीजी..हमसे ग़लती हो गयी माफ़ कीजिए गा..
वो हुम गरीब हैं न इसलिए बहक गए"
उसने फिर से काव्या की कमजोर नस पे वार किया था. गरिबी की हालात को बार बार वो उसके सामने बता रहा था. और काव्य भी उसको ढील पे ढील डे जा रही थी. उसने तुरंत अपना मूह दुखी बना दिया.
बस काव्या को और चाहिये ही क्या था उसने फिर से सुलेमानको दिलासा देना चाहा. यही भूल वो बार बार किये जा रही थी.
उसने सत्तु की तरफ मूह करके बोला, “"अरे..उसमे क्या? मेरा नाम ही काव्या हैं. ईटस ओके. आई डोंट माइंड..तुम मुझे नाम से पुकार सकते हो, आई मीन आप सुलेमान. अब सलमा मेरी ज़िम्मेदारी है ओके. और वो ठीक नहीं होती तब तक मैं उसकी जांच करुँगी. बट प्लीज, खुदको गरीब बोलके उदास मत करना"
सुलेमान ने काव्य की इतनी ढील का नदाजा नहीं लगाया था. उसने इसका पूरा फायदा उठाया. और जोर से कहा, "सच काव्या...तुम कितनी अच्छी हो..जी कर रहा हैं तुमको उठाके झूम लू"
इस्पे भी काव्य ने कोई गुस्से वाला रिअक्शन नहीं दिया. वो सिर्फ शरमाके शरमाके हस दी.
बीबीजी से...काव्या जी..और अब काव्या जी से सीधे काव्या पे आने वाले सुलेमान के खेल को काव्या बिलकुल समझ ही नही पा रही थी. शायद उसको अपने मरीज़ के लिए सब ठीक ही लग रहा था और वो सुलेमान की जाल मे फसे जा रही थी. दूसरी तरफ़ सलमा ये सब बाते सुनके हैरान और चुपचाप बैठी थी.
कहते हैं अन्होनी और हादसे बता के नहीं आते. वही काव्या के साथ हो. जाने क्या सुझा वक़्त ने पूरी तरह से बाजी सुलेमान को जैसे दे दी. सुलेमान उसी पल मौका गरमा देख काव्या का हाथ छोड़ तो दिया. पर सामने रास्ते पे जैसा एक मोड़ आया वैसे ही अब एक और मोड़ काव्या के लिए उसने ला दिया. वहां ऑटो ने करवट ली और यहाँ सुलेमान ने पूरे हाथो से काव्या को अपने बाहों में भींच लिया. उसके सख्त बदन ने काव्या को को पलक झपकते ही दबोच लिया. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकड गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया.
“नहीं काव्या....तुम महान हो..,मै आजसे तुम्हारा मुरीद बन गया..आह..”
सुलेमान काव्या को अपनी बाहो में जकड़े हुय ये सब बात कर रहा था. सत्तू के तो आँखों पे पट्टी बंध गयी हो, उसका मूह खुला का खुला ही रह गया. ऑटो की स्पीड इतनी कम हो गयी, के मानो वो लगभग बंद ही गिरने वाला हो. क्योंकि असलम ने काव्या को अपनी बाहों में भींच लिया था उसके कारण काव्या का मूह सलमा की और था. सो सलमा भी काव्या को देख के आँखे चुरा रही थी.
“ओह...काव्या...तुम बहुत अच्छी हो..” अपने हाथ काव्या के गोरी और मुलायम पीठ पे चलाते हुए देहाती सुलेमान हर पल का मजा ले रहा था.
काव्या के गर्दन पे उसकी नाक थी और वो उसके बदन की हर आती मादक खुशबू सूंघे जा रहा था. मुलायम, गद्देदार, राजसी महिला को ऐसे बाहों में ले कर के, उसको अपने से चिपका कर उसमे वासना के शोले उमढ पड़े.
यहाँ काव्या का चेहरा आश्चर्यता से भरा हुआ था. पर वो सब नॉर्मल समझकर सुलेमान की ख़ुशी की खातिर चुप थी. लेकिन जैसे ही सुलेमान ने धीरे धीरे अपना हाथ उसके पीठ पे चलाना शुरू किया उसके कारण उसको अब थोडा अजीब लगने लगा. सुलेमान अपनी गरम सासे काव्या की गर्दन पे छोड़े जा रहा था और उसको हर पल जोर-जोर से अपने पास भींछे जा रहा था. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकडसी गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया. वो था सुलेमान का मुसल लिंग.
उसका मुसल काला लिंग फुल के कद्दू जैसा बन गया था. और उस पुरे हलबल में वो फुला हुआ कद्दू उसके लुंगी के उपरी कोने में से ठीक जैसे उसने सोचा था वैसे ही सपाक बोलके पूरा का पूरा बाहर किसी रोंकेट की तरह कूद पड़ा. काव्या का हाथ न जाने उसके ऊपर आ गया. गरम और एकदम तना हुआ काला मुसल लंड काव्या के नाजुक कोमल हथेली के निचे आ गया. काव्या की नज़रे सलमा की तरफ थी सो उसको इसकी भनक नहीं लगी के उसका हाथ सुलेमान की लिंग पे जकड़ा था.