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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#7
वहा सलमा अपनी निगाहे काव्या के साफ गोरी चूत से हटा ही नही पा रही थी. क्यों जाने उसको उस समय काव्या पे बहुत ज़्यादा जलन आने लगी थी. उसकी चूत जो के जवानी के चरम पे थी काव्या के सामने मानो फीकी गिर गयी थी. अब वो काव्या से दूरी नही बल्कि नज़दीकिया बढ़ाना चाहती थी शायद उसको भी स्त्री के सौंदर्य की पहचान हो रही थी.

उसने वैसे ही काव्य के योनी पे नज़ारे गड़ाकर कहा, "जी ज़रूर बीबीजी. मैं आपकी हर बात मानूँगी वो ‘वाकस’ करना आप मेरा भी."

वॅक्स को वाकस बोलने वाली सलमा को काव्य हर बारी की तरह थोडा हंस के हा मे जवाब दे दिया. उसके पेशाब से निकली हर बूँद मानो एक खुश्बू लेके निकल रही थी जिससे पूरा समां मादक बन गया था. तभी अचानक झाड़ियो से एक हल्का हवा का झोंका भागा चला आया. दोनों के पैरो के नीचे वो बह के निकल गया.

“आह....स्सीई....”
एक बहुत हलकी सी सिसकारी काव्या ने छोड़ दी. पहली बार खुले में पेशाब करने वाली काव्या को ये अनुभव एक ऐसी भेट दे दिया के उसके योनी में सिरहन की लाट आ गयी. वो आवारा हवा का झोंका उसके नाजुक कमसिन योनी के फाको को छु कर जो गुजरा था. जो उसको भरी गर्मी में भी ठंडी की राहत दे बैठा.

कुछ देर बाद दोनो का मूतना बंद हो गया. काव्या ने अपने पास से एक टिश्यू पेपर निकाला और अपनी चूत को साफ़ करने लगी. उसपे कुछ एंटीबायोटिक भी था जिससे कोई इन्फेक्शन न हो. ये सब सलमा को कहा पता. उसको देख के काव्य ने तीन-चार पेपर निकाले और सलमा को देते हुए कहा, "ये लो, तुम भी. पेशाब के बाद वहा इससे साफ करती जाओ"

सलमा जो ये सब बाते पहली बार देख रही थी उसने हैरत से पेपर लिया और ठीक काव्या को देख वैसे ही खुदकी चूत को साफ करना आरंभ किया. उसके बाद जैसे ही दोनो खड़ी हुई उनको देख दोनो कलूटे धीरे से वहा से निकल गये और वापस ऑटो की तरफ भागने लगे. वहा सलमा अपनी सलवार फिर से चढ़ा रही थी और काव्या भी अपनी प्यांटी वापस अपने कोमल अंगो पे खिसका रही थी. महंगी साड़ी ठीक करके उसने साड़ी को निचे कर दिया. जाने कितनो का दिल जैसे उसने तोड़ दिया हो. अचानक से उसकी जवानी फिर से ढक जो गयी थी. देर तक हवा में रहने से उसका पिछवाड़े को ठंडक महसूस हो रही थी. न जाने क्यों उसको अब ये सब अच्छा लगने लग रहा था.
शहर की डोक्टोरिन साहिबा को देहाती जीवन में रूचि आने लगी थी शायद ये दिलचस्पी उसको आगे और कही नए रोमांच का किरदार बनाने वाली थी. दोनों ने पेपर बाजू में फेक दिये और वापस ऑटो की तरफ चल पड़ी.
यहा सुलेमान और सत्तू जो अभी अभी काव्या के अप्सरा जैसे बदनको उसके सुनहरी नंगे पिछवाड़े के साथ देखके आ रहे थे वो दोनों जल्दी से ऑटो मे जाके बैठ गये. दोनो के दिमाग़ मे से वो तस्वीर जाने का नाम नहीं ले रह थी.
सत्तू अपने पजामे के ऊपर हाथ मलते हुए सुलेमान से बोलता हैं," सुलेमान मिया...क्या माँदरज़ाद गांड हैं इस डोक्टोरनी की...बड़ा मज़ा आ गया.. बेहनचोद पहली बार अखी ज़िन्दगी में ऐसी माल औरत देखि हैं. साला लवडा है के तम्बू के माफिक खड़ा हो गया"
जब उसने सुलेमान की तरफ देखा तो उसने उसको खोया खोया पाया. सुलेमान जो अपने शैतानी दिमाग़ के सोच मे जो डूबा था.
सत्तू ने उसको जोर का धक्का मारा और बोला, "अरे ..भाई किधर खो गये तुम? हमरी बात तनिक सुने हो के नाहीं?"

उसपे सुलेमान बोला, "अबे चुतिए..इतना जोर का धक्का क्यों मारा? सोया नही मैं सोच रहा था.."

“क्या गुरु? मुझे भी बताओ आखिर क्या सोच रहे हो?”

सत्तू ने बड़े गौर से और सुलेमान की चापलूसी करते कहा. सत्तू को पता था सुलेमान का दिमाग इन बातो में कैसे तेज तर्रार चलता हैं. सत्तू को उसने अपने तौरतरीके जो सिखाये थे. मानो वो उसका चेला हो और ये गुरु. और वो सच भी था. सुलेमान ने सत्तु को अपने झोली से बहुत कुछ दिया था. जैसे शहर की रंडियों से मिलवाना, जुवा सिखाना, और खुबसूरत औरतो के अंतरिम अंगों के नजारों के दर्शन करवाना.
सुलेमान और सत्तू थे तो मजदूर उच्चके पर अपने शोक को वो शान से पालते. खासकर चिंधी चोर सुलेमान को शहर में घूमना, औरतो को टटोलना, किसी साहब की तरह रहना बड़ा पसंद था. जब पहली बार सत्तू सुलेमान के साथ बड़े शहर गया था, तब कोठे पे जाने के बाद वो एक बड़े से शौपिंग मॉल के अन्दर गए थे. वहा के नज़ारे देख के दोनों को ऐसा प्रतीत हुवा मानो वो किसी स्वर्ग में आ गये हो. चारो तरफ सुन्दर और जवानी से भरपूर मॉडर्न औरते और लडकिया. सत्तू वो बात कभी भूलनेवाला नहीं था, के कैसे सुलेमान ने वहा पे एक हाई प्रोफाइल औरत के पिछवाड़े को भीड़ में कस-कस के मसला था. सत्तू की हिम्मत तो नहीं हो पायी पर, इसके बाद सुलेमान उसके लिए किसी गुरु के माफिक बन गया था.

जब आशावादी होकर सत्तू ने सुलेमान से पुछा तब सुलेमान अपने खड़े नंगे लंड पे जो लुंगी के आधा बाहर था उसपे हाथ मलते हुए बोला, "अबे भूतनी के, यही के इस डॉक्टोरिनिया को नंगी कैसे किया जाये, चोदा कैसे जाए....साली क्या माल हैं..अंगार हैं..आज तक मैने ऐसी गांड नहीं देखा ...साली को अपना लंड खिलवाना ही पड़ेगा.आह...हरामी लंड"

सुलेमान को शायद काव्या की सुनहरी मखमली भरा हुआ पिछवाडा देख याद आया के कैसे एक बार उसने ज़बरदस्ती रजनी नाम के धन्देवाली की गांड मरवा दी थी. उसको उसमे बड़ा मज़ा आया था. रजनी जिसकी गांड उसने धोके से मार दि थी, उसको सुलेमान के मुसल लंड से बहुत दर्द हुआ था उसके बाद उसने सुलेमान को अपने आस-पास भी आने नही दिया. सस्ती रंडिया 200 से 500 रुपयो तक पैसा मांगती थी. उसके लिए तो वही सस्ती रंडिया चोदने के लिए नसीब में रहती.
सलमा उन रंडियों से कही ज़्यादा सुंदर और कमसिन थी उसी कारण उस मादरजादने उसको ढंग से पेल दिया था. इंसान जब चोदने पे उतर जाता हैं तब रिश्तो की अहमियत भी मिट्टी मे मिल जाती हैं. वासना सभी बातो पे हावी हो जाती हैं फिर कौन क्या हैं ये भूल कर बस मनुष्य भूक मिटने को देखता है. सुलेमान इसका प्रत्यक्ष उदहारण हैं. अपनी चाचा की लड़की सलमा की कमसिन सील उसने अपने पहले ही चुदाई मे तोड़ दी थी. दो दिन तक चलन मुनासिफ नहीं हुआ बेचारी को. पर उसकी गांड माँरने का मौका उसे कभी नही मिला था. आज काव्या जो के उसके लिए मानो किसी सपनो की अप्सरा जैसी थी अब वो ये मौका भले हाथ से कैसे जाने दे.

सत्तू ने सुलेमान की इस बात पे अपना सवाल रखा, "सुलेमान भाई..बात तो सही हैं..माल तो बढ़िया हैं..वू शोपिंग मौल में देखे थे वैसे ही. आज तक नाही भूले हम गुरु. पर तनिक ये बताओ. इसको कैसे पटाओगे..साली शहर की डॉक्टोरीं हैं. ऐसे सीधे सीधे हाथ तो नही आने वाली.."

इसपे सुलेमान बोला, "इसकी सारी अकड़ निकाल दूँगा मैं. बहनचोद तू सिर्फ़ देखते जा. इसके गांड मे मेरा लंड जाता हैं के नही .अल्लाह कसम साली की गांड को तो मैं फाड़ के रहूँगा मेरे हथियार से.." और दोनो कलूटे हसने लगे.

तभी सामने से काव्या और सलमा को आते हुए देख सत्तू झट से सीधा हो गया और सुलेमान भी अपने जगह जाके बैठा. उसके शैतानी दिमाग़ मे जाने क्या सूझा के उसने अपनि लुंगी में से लंड जरा बाहर दिखे ऐसे अपनी लुंगी सेट की. बस थोडा सा अगर वो लुंगी को सरकाता तो उसका मुसल लिंग पूरा का पूरा सप बोलके बाहर निकल जाता. और वैसे ही अपने जालीदार बनियान और गंदे दस्ताने को गले में डाल के पीछे जाके बैठ गया.

"ओह हो...आ गयी बेगम..कुछ तकल्लूफ तो नही हुई ना करने मे?"

सलमा जो अभी अभी काव्या को बेज़िज़क बोल रही थी उसने अपना मूह फिर से गुस्से जैसा बना दिया. कोई जवाब ना देते हुए वो ऑटो मे आके बैठ गयी. काव्या सलमा के बाजू आके बैठ गयी. तभी सुलेमान झट से उठा और सलमा को खींच के फिर से वही पहले के कॉर्नर मे सरका दिया और खुद उनके बीच मे जाके बैठ गया.

"आहा...बेगम..हम भी बच्चे हैं.. अपनी जगह नही जाने देते.."

बचकानी बातो से अपने खेल खेलने वाला सुलेमान ने और एक बार अपनी गंदी मुस्कान ली. ये देखके के दोनो कलूटे जोर जोर से हसने लगे. सत्तू ने ऑटो स्टार्ट किया और फिर से सफ़र चालू हो गया.

थोड़ी देर बाद सत्तू आगे के शीशे में देख के बोला, "अरे सुलेमान मिया..आप भी क्या बच्चो जैसे करते हैं..भाभी को हमेशा तंग करते हो, अब बीबीजी के सामने तो तंग मत करियो"

सुलेमान बोला "अरे सत्तू मिया, आप शादी कर लो फिर समझेगा..इसमे कितना मज़ा होता. हैं ना बेगम?"
और उसने अपने गंदे होठ सलमा की गाल पे रख के एक चुम्मी ले ली.

सलमा ने गुस्से से मूह फेर लिया तो सुलेमान हस के बोला "अरे बेगम रानी, लगता हैं अभी भी नाराज़ हो मेरे पे. पता हैं? मैं तुम्हारे हर बात का ध्यान रखता हूँ और तुम नाराज़ हो हम से"
इसपे सत्तू बोला" क्या कह रहे हो मिया..भाभी फिर नाराज़ क्यों हैं"

सुलेमान ने काव्या की तरफ़ मूह किया और बोला, "बीबीजी..अब तुमसे क्या छुपाए..डॉक्टोरीं हो तो बोलिए ना. किसी बेगम को अपने मिया से ऐसा रूठना ठीक हैं क्या? और वो भी इतनी छोटी बात पे?"

काव्या के मन मे वो अपनी बाते इस तरह बिठा रहा था के काव्या की उन बातों में दिलचस्पी और बढ़े. काव्या ठीक दिलचस्पी से बोली, "ह्ममम्म..वैसे देखे तो नो..नहीं...वाइफ को मीन्स आपके बेगम को ऐसे रूठना तो नही चाहिए पर डोंट माइंड आप वो वजह बोल सकेते हो तो शायद मैं समझ लू के वो क्यों रूठी हैं?"

झूठ मूठ का दुखी चेहरा बनके बड़ी गंभीरता से उसने काव्या की आखो में देख के कहा,
"ठीक हैं बीबीजी..अगर आप कहे तो बता ही देते हैं हमारी बेगम की बीमारी"

"वॉट? बीमारी?" काव्या शॉक होके पूछने लगी.

इसपे असलम झुठ मूठ का दुखी चेहरा करके अपने सर पे हाथ रखके बोला," हा बीबीजी..सलमा रानी को एक बीमारी हैं शादी से ही हमको समझ आ गया था.."

काव्या एक डॉक्टर थी. वो अपने प्रोफेशन से बहुत प्यार करती थी. वो तुरंत बोली, "अरे....प्लीज़ बोलो आई विल हेल्प यु..मैं मदत करूँगी..कौनसी बीमारी हैं सलमा को?"

इसपे सत्तू जो बडे ध्यान से बाते सुन रहा था उसने भी थोड़ी आग सेक ली और बोला, "बता भी दो सुलेमान मिया..मेडम जी मदत करने को तयार हैं..बोल भी दो..मुझे बोला वैसा इनको भी बोल दो"

काव्या बड़ी डेस्पेरेट हो गयी थी, भोली सी काव्या का हाथ ढोंग करने वाले सुलेमान के कंधो पे न चाहते हुए चला गया और पुरे भरे स्वर में उसने पूछा, ”प्लीज् सुलेमान, आप बताइए क्या हुआ सलमा को?”

बस सुलेमान को यही तो पाना था. मछली जाल मे फँस गयी सोचके सुलेमान बड़ा खुश हुआ. वो अपना हर पेंतरा फूँक फूँक के डाल रहा था. और अपनि मनचली बातो से काव्या को अपनी तरफ खींचे जा रहा था. काव्य का मदद भरा हाथ अब वो अपने हाथो से कहा जाने देने वाला था
काव्या का हाथ अपने बाहों पे पाके सुलेमान तो जैसे परलोक सिद्ध हो गया. बस उसको यकीन हो रहा था बहुत जल्दी वो हाथ उसके मुसल लिंग पे होगा सिर्फ उसको वो पल आने तक का इंतज़ार करना था.

सुलेमान झुठमूठ के दुखी स्वर मे थोडा नौटंकी करते हुए बोला "बीबीजी..वो ..उसको.."

बिच बिच में बात काटके वो खुदको ऐसा प्रतीत करवा रहा था जैसे उसको बहुत दर्द हो रहा हो बताने के लिए. सच में नौटंकी का कोई पदक उसको देना उचित रहता. और दूसरी तरफ पधिलिखी काव्या तो, मानो उसके जवाबो में ऐसी धसती जा रही थी के वो उसके लिए कोई जिम्मेदारी बन गयी हो. उसकी बैचैनी देख काव्या भी अब बैचैन हो रही थी. उसके चेहरे पे तनाव के भाव स्पष्ट झलक रहे थे .

काव्याने भी बड़ी बैचिने से सुलेमान पुछा, “प्लीज बोलो...क्या हुआ सलमा को...हाँ बोलो सुलेमान..प्लीज्”

सुलेमान इस गहरी बात पे और ज्यादा नौटंकी करते बडी बैचेनी दिखाते हुए बोला “बीबीजी..वो..उसको..”
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 01:33 PM



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