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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#6
बस थोडा सा आगे जाके दो तीन झाड़ियो के बाद एक जगह सलमा रुक गयी. वो जगह थोड़ी साफ़ थी और वहा बस थोड़ी सी घास उगोई हुई थी. काव्या भी अपनी हील्स से अटक अटक के चलके कैसे तो उसके बाजु खड़ी हो गयी.
सलमा जो के इन सब हालात जुदा नही थी उसने बडी आदरता से काव्या से कहा,
"बीबीजी..यहा ठीक रहेगा. कर लो आप यहा."

काव्या ने पहले आसपास एक नज़र दौड़ाई. सचमुच उसको वहा बहुत नयी जैसी अनकही फीलिंग आ रही थी. उसने कभी खुदको वैसे हालात में नहीं पाया था. चारो तरफ झाडिया, दोपहर की धुप और सुनसान इलाका ये सब बाते उसको नयी थी. कहा एक तरफ आलिशान बंगले में मेहन्गे विलायती कमोड पे बैठके अपने सबसे अनमोल अंग से पेशाब की धार छोड़ने वाली काव्या आज, वही धार एक देहाती कच्ची जगह पे छोड़ने वाली थी. बात तो तब और बिगड़ जाती जब कभीकबार उन्ही झाड़ियों से कोई हवा का झोका उसके कमसिन बदनको छू के निकल जाता और उसमे एक रोमांचभरी सिरहन उठा देता.

उसने थोडासा हिचक के सलमा से कहा, "अरे.. नही तुम भी करो यही ,और मैं..?”और वो बोलते बोलते रूक गयी.

सलमा समझ गयी शहर की डोक्टोरिन को ऐसे जगह की आदत नहीं होगी इसलिए शायद वो शर्मा रही हैं. उसपे सलमा ने कहा “ बीबीजी..मुझे पता हैं आप बड़े लोगो को इसकी आदत नहीं होगी पर हम गाँव वाले ऐसे ही सब करते हैं, खुले में”
काव्या ने उसकी बाते सुनके सिर्फ गर्दन हाँ में हिलाकर रेस्पोंसे दिया. और फिर से नज़रे आस पास दौड़ा दी.
सलमा ने उसकी इस हरकत पे जरा हस के चुटकी लेते कहा “ बीबीजी..भला आप भी इतना क्यों शर्मा रहे हो?”

काव्या को ये बात ज़रा लग गयी. उसको लगा सलमा उसको कही शर्मीली तो नहीं समझ रही. काव्या के बारे में एक बात थी. वो बहुत प्रोफेशनल किस्म की महिला थी. उसके सहेलियोके ग्रुप में भी कोई अगर उसको कुछ चिडाता या चैलेंज देता तो उसको ये बात बिलकुल हजम नहीं होती थी. उसको कभी ये पसंद नहीं था के कोई उसको किसी बात पे कम समझे. बस सलमा की मंद हसी को देख अपना ईगो सम्भालाते काव्या ने थोड़े उचे स्वर में कहा “ अरे, वो बात नहीं हैं. अक्चुअली, मुझे न ऐसे आदत नहीं हैं इसलिए लग रहा था कैसे करते हो तुम सब ऐसे, कोई आता तो नहीं न बिचमे ही?”

सलमा काव्या के इस बात पे और ज़रा हस दी. उसने इस बार ज़रा खुलके बात की.
“अरे नही बीबीजी..आप ऐसा मत समझो..बस आप कर लो तनिक, कोई नही आएगा इधर देखिएगा..”

खुद में विश्वास भर के अपने ईगो को बिना हर्ट करके के काव्या और देहाती कमसिन सलमा दोनों एक बार अपने आस पास नज़र डालके अपने आपको पेशाब करने के लिए तय्यार कर रही थी. तब तक सत्तू और सुलेमान जो उनको टटोल रहे थे वो दोनों वहा नज़दीक एक पेड़ के पीछे छुप गये. वहा से उनको उन दोनो के पिछेका का पूरा हिस्सा जैसे 'सीधा' दिख रहा था. दोनों को वैसा देख के, पिछे कलुटो के मन में तो जैसे दावत के बाँध फुल रहे थे.

तभी सलमा अपना सलवार का नाडा खोलते खोलते काव्या से बोली,“बीबीजी, डरो नही साडी कर लो उपर..यहा कोई नही आएगा"
जैसे ही काव्या ने उसकी तरफ़ हा मे इशारा करते देखा वो जैसे चौक ही गयी.

सलमा जिसने अपना सलवार के नाड़े की गाथ ढीली कर दी थी जिसके कारन उसका सलवार उसके जवान पैरो से नीचे सटक कर ज़मीन पे गिर गया था. और उसके पिंडलिया नग्न हो गयी थी. जैसे ही नीचे पेशाब करने के लिए उकड़ू बैठी उसकी खुली चुत काव्या के नज़रो के सामने आ गयी. उसकी चूत उसके ही जैसी सावली थी और उसके उपर बालो का घना साया था. अभी अभी हुयी चुदाई के वजह से उसकी चूत थोड़ी सुज़ भी गयी थी.

क्योंकि पेशे से डॉक्टर होने से उसके इस हालत पे देख काव्या ने एकदम सब भूलके अपनी चुप्पी तोड़ के सलमा से पुछा,

"ओह माय गॉड, डिअर...एक बात पुछू?"

सलमा थोडा शर्मांके वैसे ही अपनी कमीज को अपने हाथ मे पकड़ते हुई बोली "अरे बोलिए ना बीबीजी..क्या हुआ?.."

काव्या उसके चूत पे नज़र टीकाके बोली, "वही जो दिख रहा हैं..डिअर तुम कभी शेव नही करती नीचे?"
सलमा इस बात पे शर्म से पानी हो गयी. उसने अपनी तिर्छी नज़रो से नीचे देखा तो सच मे बालो का जंजाल बन चुका था. शायद जवानी मे जब से कदम रखा था उसने वहा कभी रेज़र लगाई ही नही थी. देहाती सलमा को यह सवाल अजीब लगना स्वाभिविक था. शरमाते हुए वो झिजकते हुए काव्या से बोली "जी वो न..नही बीबीजी.."
काव्या जो एक डॉक्टर थी, उसके लिए ऐसी बातों पे शरमाने की कोई वजह ही नही थी. वो इसपे और खुलके बोली, "अरे...ऐसे कैसे..तुमको ये जगह बिलकुल साफ रखनी चाहिए. इसको ऐसे नहीं रखना कभी. तुम्हे किसीने नहीं बताया क्या? तुम्हारे हज़्बेंड को कुछ नहीं लगा क्या इसका ?"

काव्या ने और बात चलाते हुए बोला, "और तो और तुम उसको ढक कर भी नही रखती? कुछ अंदर पहना भी नही हैं तुमने तो..?"

भले ही काव्या एक डॉक्टर की तरह सीधे उसको सवाल पे सवाल पूछ रही थी पर सलमा ये सब बाते सुनके शर्म से लाल हुए जा रही थी. ठीक वैसे जैसे कुछ समय पहले काव्या को ये माहोल देख के लग रहा था. लेकिन काव्या के इन सवालों का उसके पास कोई जवाब नही था.

सलमा जिसको ये पता था के सुलेमान उसका पति नहीं हैं वो सिर्फ काव्या के सामने ये सब नाटक कर रहा हैं. उसका मकसद सलमा को पता नहीं था पर उसको काव्या को बताने के लिए कोई शब्द भी नहीं थे. वैसे सलमा बोले तो क्या बोले? के 1 घंटे पहले ही सुलेमान ने खुद सलमा की कच्छी उतार के अपने पास रख दी थी जो शायद उस वक़्त उसके जेब मे ही ठुसी हुई थी. बस सलमा कुछ ना बोलते निचे देखते हुए चुप रही और कुछ ही पल मे उसके चूत मे से पेशाब की धार स्रर्र्र्ररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र...........हो के निकलने लगी.

पिछे झाड़ी के बगल खड़े हुए सत्तू और सुलेमान तो जैसे इस सबका मज़ा लेने मे मगन थे. सत्तू ने धीरे से सुलेमान के कानो मे बोला " क्यो बे हरामी..सलमा की चूत चोदने के बाद तूने उसकी कच्छी कहा डाल दी?"

सुलेमान अपनी गन्दि शैतानी मुस्कान देके धीरे से बोला, "अबे मादरचोद..मैने वो अपने जेब मे रखी हैं. उसको तेरे ऑटो मे और चोदने का प्लान था मेरा. पर मा की लोडी बच गयी"

उसपे सत्तू बोला " चल जाने दे..अब तो इसको इस डोक्टोरिन के साथ चोदेगे.."

और इस बात पर दोनों कलूटे अपनी गन्दी हंसी हंस रहे थे. उन् दोनो से अंजान यहा सलमा और काव्या अपने काम मे व्यस्त थे. स्रर्र्र्र्ररर.......धार की आवाज से वहा की शांति थोड़ी ख़त्म हुई. काव्या ने यहा वहा एक और बार देखा और अब वहा वो होने वाला था जो शायद सत्तू और सुलेमान को कोई जन्नत के दरवाजो से कम नही था.
सलमा अपनी धार छोड़ने में व्यस्त थी अब काव्या को भी पेशाब संभाली नहीं जा रही थी. सो काव्या थोड़ासा आगे बढ़ी और सलमा के थोडा बाजू में ही खड़ी हो गयी.

वो ज़रा नीचे बेंड होके अपनी साडी दोनो हाथो से उठाने लगी. धीरे धीरे करते हुए उसकी महंगी शिफोन की साड़ी उसके पैरो से लेके पिंडलीओ तक पूरी गांड के उपर चढ़ जैसे गयी, और वहा वो उसको दोनो हातो से समेट कर खड़ी हो गयी.

यह देख पीछे खड़े दोनो कलूटो के लिंग मे तो जैसे भुचाल आ गया. वो दृश्य ही कुछ ऐसा था के अच्छे अच्छो का पानी निकल जाए. काव्या ने उसकी की साडी कमर तक पकड़ी हुई थी, जिससे उसका पिछवाडा पूरी तरह से साडी से बाहर नग्न हो गया था उसके कारण उसकी महंगी प्यांटी जो के कोटन मटीरियल की पिंक आउटलाइन की एक विलायती ब्रांड कंपनी की थी वो साफ दिख रही थी. उसके पिछवाड़े को वो चिपक के लगी हुयी थी. काव्या की टांगे दूध जैसी गोरी थी के जो किसी भी लंड को पिघला दे. गोरी, दूध जैसे एकदम चिकनी टांगे और उसपे पिच्छेसे भरी उभरी हुई गद्देदार गोल मटोल सुडोल गांड को देखके दोनो कलूटो के मूह मे पानी आ गया.

अप्सरा जैसी सुंदरी काव्या को देख के सामने बैठी सलमा भी चौक गयी. उसने काव्या की खूबसूरती का नज़ारा देख कर उसके प्रति सहिष्णुता दिखाई. अब बारी सलमा की थी जो सवालो के घेरो में बंध रही थी. वैसे ही अपना पेशाब चालू रखते भोली देहाती सलमा ने काव्या से बिना शर्माके पूछा,
"बीबीजी..आपके टाँगो पे तो एके भी बाल नही हैं?"

काव्या उसके इस नादान सवाल पे थोड़ी मुस्कुराते हुए बोली, "अरे, वो वॅक्स किया हैं मैने.”

देहाती सलमा को भले इन चीजो से क्या वास्ता वो चौकके बोली, “क्या?..’वकास’, ...वो क्या होता हैं, कोई इंजेक्शन या तनिक कोणी ओपरेशन होता क्या बीबीजी?”

काव्या को उसके भोलेपन पे मन से हंसी आई. सच में क्या दृश्य था, मेनका जैसी राजसी महिला एक मीठी मुस्कान के साथ साडी कमर तक पकडे हुए अपने हाई हील्स पे कच्ची देहाती जगह खड़ी थी. और उसके बाजू में ही एक देहाती कमसिन जवान लड़की अपने योनी से मूत्र की धार छोड़े जा रही थी. भला कामदेव भी ऐसे चित्र को देख खुदको संभाल न पाएं.

“तुमको भी बताऊगी मैं ओके, हें हें.." काव्या ने उसको मीठी मुस्कान के साथ कवाब दिया.

सलमा को उसके जवाब से संतुष्टि तो नहीं हुयी पर असमझ में गिरी सलमा ने निचे देख अपने काम पे ध्यान केन्द्रित किया. अब आगे जो होने वाला था वो देख के जैसे काम देव भी सत्तू और सुलेमान की किसमत पे जलन महसूस करते होगे.
तभी काव्या ने साडी को एक हाथ से पकड़ा और अपने दूसरे हाथ की नाजुक उंगलिया अपने ब्रांडेड प्यान्ति के अन्दर डलवा दी. आह... अपने नाजुक अंगो से प्यांटी की इलास्टिक को उसने धीरे धीरे नीचे कर दिया.

जैसे ही प्यांटी उसके नाज़ुके अंगो से घुटनों पे अटकी, सप बोलके वो खिसक के निचे गिर गयी. और उसकी साफ सपाट चिकनी दूध जैसी गोरी भरी भरी चूत सलमा के नज़रो के सामने आ गयी.
काव्या वही पे उकड़ू बैठ गयी और साडी को हाथो मे समेट लिया. अंत में वो क्षण आया और खुले आसमान मे अपनी चूत के फाको से बहती पेशाब को काव्या ने देहाती ज़मीन पे छोड़ दिया...
स्रर्र्र्र्रररर्र्रर्र्रर्र्र........
ये सब देखकर वह सत्तू और सुलमन होश खो बैठे थे. एक बार भी उन्होंने अपनी पलके तक नहीं झुकाई थी. एक जैसे वो ये सब देखे जा रहे थे. और काव्या की पिछवाड़े का आँखों से ही स्वाद ले जा रहे थे. जब वो उकडू बैठके पेशाब करने लगी तन उसके योनी से निकली हर वो बूँद उनको किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था. उनके मूह में जैसे पानी की बाढ़ आगई थी. किसी बूत की तरह वो उसी जगह पे जकड गए थे.

"आहह....मा कसम..सत्तू इस मादरज़ाद की गांड तो देख. साला कितनी कसी हुई, कितनी गोरी, भरी भरी हैं. इसकी गांड तो मैं पहले मूह से चोदुंगा और फिर इसको हवा अपने गोदी में उठाके मेरे लवडे से दना दन ठोकुंगा."
सुलेमान जो कई बार शहर की सस्ती रंडियो को चोदे हुए था और एक बार एक की गांड भी मार चुका था उसके लिए काव्या जैसे राजसी युवती की गांड मानो जैसे ज़िंदगी का मकसद हो.

दोनों निकम्मे अपने लंड को मल रहे थे. सत्तू ने तो वहा पे ही अपने लंड को निकल के हाथ में पकड़ लिया और वैसे ही मूठ मारते हुए बोल पड़ा, "बहनचोद..इस की गांड देख के तो लवडा पागल बन गया हैं.. कसम जुवे की, लग रा के अभी लंड कही घुसाऊ और मूठ मारू....बोल डालु क्या तेरी गांड मे ही?"
उसकी बाते सुनके दोनो कलूटे शैतानो की तरह हस दिए
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 01:26 PM



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