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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#5
एक तरफ सत्तू का मुसल हथियार और दूसरी तरफ उसके बाजू में ही सुलेमान की कामुक हरकते देख वो जैसे अन्दर से मोम की तरह पिघल रही थी. सुलेमान ये जान बुज़के कर रहा था. एक और बार काव्या के तरफ अपनी गंदे मूह से मुस्कान दिखाके उसने गहरी सांस भरी. इलायची जैसे खुशबु काव्य के मूह से आरही थी. सुलेमान को वो नशा किसी भांग से कम नहीं था. उसको काव्या के जिस्म की हर एक कोने की खुशबू बहुत पसंद आ रही थी. और वो हर मौके का हिसाब बराबरी का उठा रहा था.

सुलेमान भी अब ऑटो से उतरने लगा. तभी जान बुज़कर उसने काव्या के साइड से उतरने का प्रयास किया और उतरते टाइम उसने वो किया जो काव्या ने शायद कभी सोचा न था.
उसने उतरते समय अपना दाया हाथ काव्या के लेफ्ट थाइस पे रखा और ऑटो से उतर गया. उसके मजबूत हाथो ने कुछ सेकेंड के लिए काव्या की मुलायम थाइस को जैसे कुचल ही दिया था. इस अचानक हुए हमले से काव्या डर के मारे चौक सी गयी. उसको जैसे लगा के किसीने उसको दबा दिया हो. उसके मन मे एक जैसे भूचाल आ गया पर साथ ही बहुत महीनो के बाद, वो भी किसी अंजान पर पुरुष के ऐसे सख़्त हाथो का स्पर्श उसके भी मन को भा लिया. सुलेमान की मजबूत पकड़ शायद एकदम सही जगह बैठी थी और कौन जाने उसने इसी वजह से उसका कोई विरोध नही किया. सुलेमान का स्पर्ष इतना कठोर था के काव्या को छोटी सी सनसनी अपनी योनी में आती हुयी महसूस हुयी.

सुलेमान भी सत्तू के पास जाके खड़ा हुवा और ठीक उसके बाजू में ही बेशर्मी से अपना ७.५ इंच का काला मुसल लंड निकाल के चालू हो गया. उसका लंड तो सत्तू जैसा ही बड़ा था पर उसपे कही सारे बाल थे. सुलेमान बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे की दाढ़ी साफ़ करता था ये तो बात बहुत दूर की थी.

वो इतना बेशरम था के उसने पलट के भी देखा और वैसे ही अपना खुला लंड हाथ मे पकड़े हुए काव्या की तरफ शैतानी मुस्कान दे के सलमा से बोला...
"अरी ओ सलमा रानी..जाओ जल्दी वरना आऊ क्या गोदी मे उठाने?"

अपने सख़्त हाथों मे खुदका साप जैसा लंड लिए वो ऐसे बोल रा था जैसे उसने नुमाइश रखी हैं उसकी. खुद के लंड से पेशाब के फवारे वो उड़ा रहा था. जो यहाँ तो कभी वह गिर रहे थे. दोनों कलुटो ने जैसे पेशाब के झरने बहाने चालू किया था जैसे कोई कॉम्पटीशन लगी हो.

यहा ये सब देखकरके काव्या का हाल हद से ज्यादा बेहाल हो रहा था उन दोनो के लंड देख के अब काव्या तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी. रमण के प्रति उसका आदर अब कम हो रह था. जिसके लिंग को वो अपनी संतुष्टि समझती थी वो असल में नकली नोटों की माफिक उसके सामने फीका गिर रहा था. उसके दिल में भले ही रमण के लिए बहुत ज्यादा प्रेम था लेकिन उसकी शारीरिक भूक उसको कही और लेके जा रही थी. इतने बड़े दो मुसल लंड देखके उसकी हालत पतली हो रही थी. जिस लिंग को वो अपनी जिंदगी समझ बैठी थी वो तो इनके सामने जैसे किसी पंक्चर हुए टायर के जैसा था. उसका मन उसे टटोल रहा था. पर उसका आत्मसम्मान उसे ये देखने से रोक रहा था. लालसा और नियमोके बिच फासी काव्या ने तभी अपने आखो पे हाथ रख दिए और मूह निचे छुपा दिया.

शायद अब सूरज भी सर चढ़ के बोल रहा था और काव्या के चूत मे भी हौले से कही सिरहन दौड़ रही थी. अब तो शर्म और आत्मसम्मान से उसकी हालत इतनी ख़राब हो गइ थी के उन दोनो को छोड़ वो बाजू बैठी सलमा से भी अपनी नज़रे नही मिला पा रही थी. लेकिन उसे ये कहा पता था? जो वो सलमा से छुपा रही हैं, वो काम वासना की अंगारे सलमा अब भाप गयी थी.

दूसरी और सलमा करती भी क्या उन कलुटो को वो अभी अभी झेल चुकी थी इसिलिये वो शर्मा तो नही रही थी पर थोड़ा झुठ मूठ का गुस्सा दिखा के अपने नाराज़गी के भाव बता रही थी. उन कलूटो के मुसंडे लंडो ने उसकी कमसिन सावली चूत का चोद चोद के भोसड़ा बना दिया था. उसकी अन् छुई कमसिन चूत को पहली बार सुलेमान ने जब चोदा था तब उसको पता था दर्द के मारे वो दो दिन ठीक से खड़ी तक नहीं हुयी थी. बाद में तो जाने कैसे कैसे दोनों निकम्मोने अपने अरमान उससे पुरे किये थे. अब वो भी इन सबसे जानी पहचानी हो गयी थी. इसीलिए गन्ने के खेतो में हुई चुदाई में उसने भी अब की बार खुद होके मजा लिया था. आखिर गन्ने के खेतो में उसीका तो रस निचोड़ के पिया था दोनों ने और उसने भी पिलाया था. शायद इसी कारण से उसको भी बड़ी देर से पेशाब लगी थी.

और उसने थोडासा साहस करके काव्या की बाहों पे हाथ रख के कुछ कहना चाहा. वो पहली बार काव्या की तरफ मूह कर के बोली .."ब,बीबीजी.."

काव्या ने अपना चहरे पर से अपने हाथ हटाके हटाके सलमा की और देखा और हिचकिचाते हुए बोली.."हा ब्ब,,बोलो..स,,सलमा"

पढ़िलिखी शहर की मॉडर्न हाई प्रोफाइल काव्या की बोली भी जैसे अटके अटके रह गयी थी दोनो कलूटो के मुसल लंड देखके. हालाकी काव्या पेशे से डॉक्टर थी पर इस कदर उसने कभी सीधी देहाती जिंदगी देखि नहीं थी. शादी के ४ महीने बाद से ही रमण के बिजनेस में बीजी हो जाने से उसके सेक्स लाइफ मे मानो सूखा गिर गया था. सो अब इन दो गैर लंडो को देख उसके काम जीवन मे नयी वर्षा की तरह प्रतीत हो रहा था.

सलमा बहुत धीरे स्वरों में आगे बोली, "बीबीजी मैं भी ज़रा कर लेती हु. और बुरा न मानियेगा पर लगा तो आप भी कर लो ..गाओं मे जाने तक वक़्त लगेगा थोडा. अगर आपको लगे तो..."

उसकी सहमी बाते सुन के काव्या जरा अपने होश में आ रही थी. काव्या ने जरा धीरता से कहा, “अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात? ये तो नेचुरल हैं. तुम्हे आई है न वैसे मुझे भी आती हैं.”

काव्या ने भी सोचा उसको भी पेशाब लगी हैं. पूरी धूप मे वो अपनी इकलोती बिसलेरी की बॉटल ख़त्म कर चुकी थी. पर वो ज़रा अकड़ रही थी क्योंकि अपने शानदार बाथरूम और बड़े बड़े होटेल के कामोड पे मूतने वाली काव्या को खुले आसमान के नीचे पेशाब करने का कोई अनुभव नही था. पर सलमा को देख उसने भी आख़िर हा मे हा भर ही दी. और दोनो एक साथ ही ऑटो मे से उतर गये.

वहा दोनो कलूटे अपनी धारो मे व्यस्त थे तभी उन्होने देखा सलमा और उसके पिछे काव्या जो अपने हाइ हील्स से अटक अटक के कच्ची सड़को से झाड़ियो के अन्दर चली जा रही हैं उनको देख सुलेमान जोर से बोला

"अरी ओ सलमा रानी..बीबीजी को संभाल के लेके जाओ..और ज़्यादा अंदर मत जाना साप वाप होते हैं यहा. अगर कही घुस गया तो हमको रात मे हमें ही निकालना पड़ेगा..हा...."

दोनों निकम्मे इस बात पे जोर जोर से हस पड़े. जैसे कोई हैवान अपनी हैवानियत पे हसे.

सलमा ने उसकी तरफ़ मूह टेडा करते हुए गुस्से वाले इशारे में जवाब दिया और बिना कुछ बोले आगे चल दी. उसको अपनी हाई हील्स से बहुत प्यार था. हर ड्रेस पे म्याचिंग हील्स पहननेवाली काव्या को पहली बार देहाती कच्ची सडक पर चलते समय वही हील्स सरदर्द जैसा प्रतीत हो रही थी. वो जरा रुकी और अपने हील्स को थोडा एडजस्ट करने लगी सीधी होने के बाद ज़दियो से ठंडी हवा का एक झोंका उसकी तरफ आया. उस गर्मी में उसको इतना सुकून मिला के उसका स्वागत उसने अपनी गोरी मुलायम बाहे फैलाके किया. पल भर के लिए ऐसा लगा के सुनसान जंगले में कोई मोरनी जैसे सुंदरी ने अपने पंख बाहर निकाले हो और कोई नृत्य करने के लिए. एक अंगडाई देने के बाद, काव्या सलमा के पिच्छे धीरे धीरे से जाने लगी.

उन दोनों के थोड़ी दूर जाने के बाद झट से सुलेमान ने सत्तू से धीरे से कहा “अबे बहनचोद, अब क्या दिन यहाँ पे ही डाल देगा,चल तुझे जन्नत की फिल्म दिखाता हु".
तब तक सत्तू जो अपना पेशाब कर चूका था सो वो दोनो भी मौके का फायदा उठाके उन् दोनो के पीछे चुप चाप चल धीरे कदम चल दिए.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 01:24 PM



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